BCom 3rd Year Financial Management An Introduction Study Material Notes In Hindi

/////

वित्तीय प्रबन्ध का महत्व

Table of Contents

(Importance or Significance of Financial Management)

वर्तमान समय में व्यवसाय में प्रतिदिन प्रबन्धकों को महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते हैं। वैसे तो हर विभागीय क्रियाएं (क्रय, विक्रय, उत्पादन, विपणन, आदि) महत्वपूर्ण हैं, परन्तु आज के प्रतियोगितात्मक युग में प्रत्येक निर्णय को अन्तिम रूप देने से पहले उसके वित्तीय पक्ष की जाँच-परख करना अनिवार्य हो गया है। निर्णय व्यवसाय के चाहे किसी भी क्षेत्र से सम्बन्धित क्यों न हो, अन्ततोगत्वा उसके वित्तीय विश्लेषण के पश्चात् ही उसे अन्तिम रूप दिया जाता है। आधुनिक समय में वित्तीय प्रबन्ध के महत्त्व से सभी लोग भली-भाँति परिचित हैं। वित्तीय प्रबन्ध का ज्ञान प्रबन्धकों, अंशधारियों, विनियोक्ताओं, वित्तीय संस्थाओं सभी के लिए महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन का कार्य करता है। संक्षेप में, इसके महत्त्व या उपयोगिता को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अभिव्यक्तं किया जा सकता है :

(1) व्यावसायिक प्रबन्धकों के लिए महत्त्व (Importance for Business Managers) कम्पनी और निगमों में जनता के विभिन्न वर्गों द्वारा पूँजी का विनियोग किया जाता है जबकि कम्पनी का प्रबन्ध, संचालक-मण्डल एवं प्रबन्धकों के अधीन होता है। अतः प्रबन्धकों का यह कर्तव्य होता है कि जनता द्वारा विनियोजित पूँजी का सदुपयोग किया जाये, ताकि सदस्यों को विनियोजित पूँजी एवं जोखिम के लिए समुचित लाभांश दिया जा सके। लेकिन यह तभी सम्भव है जब प्रबन्धकों को वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का पूर्ण एवं स्पष्ट ज्ञान हो। इस प्रकार वित्तीय प्रबन्ध की समुचित जानकारी के बिना प्रबन्धक अपनी भूमिका का निर्वाह भली प्रकार नहीं कर सकते ।।

(2) अंशधारियों के लिए महत्त्व (Importance for Shareholders)- यदि अंशधारियों को वित्तीय प्रबन्ध का ज्ञान है तो वे कम्पनी की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन कर सकते हैं तथा कम्पनी की वार्षिक सभाओं में अच्छे सुझाव भी दे सकते हैं। इतना ही नहीं, अपने हितों के विरुद्ध किये गये किसी भी कार्य का विरोध करके संचालकों व प्रबन्धकों को उचित वित्तीय नीति अपनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं।

(3) विनियोक्ताओं के लिए महत्त्व (Importance for Investors)-विनियोक्ता के लिए वित्तीय प्रबन्ध का ज्ञान इसलिए आवश्यक है ताकि विनियोग करते समय वह यह निर्णय कर सके कि उसे अपनी बचत किस कम्पनी या निगम की प्रतिभूति में विनियोजित करनी है जिससे अधिकतम लाभ की प्राप्ति हो सके। भारत में विनियोग बैंकों का अभाव होने के कारण विनियोक्ताओं को प्रतिभूति विक्रेताओं एवं दलालों पर निर्भर रहना पड़ता है और ये लोग विनियोक्ताओं को सही सलाह नहीं देते। अतः जिन विनियोक्ताओं को वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का ज्ञान होता है वे स्वयं इस विषय में उचित निर्णय करने की स्थिति में हो जाते हैं।

(4) वित्तीय संस्थाओं के लिए महत्त्व (Importance for Financial Institutions)-विभिन्न वित्तीय संस्थाओं जैसे, बैंकों अभिगोपकों, प्रन्यास कम्पनियों, आदि के प्रबन्धकों को भी वित्तीय प्रबन्ध का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है । इन संस्थाओं के प्रबन्धकों को विषय का पूर्ण ज्ञान न होने पर वे गलत कम्पनियों को अधिक उधार दे सकते हैं अथवा खराब प्रतिभूतियों में विनियोजन कर सकते हैं अथवा गलत अभिगोपन द्वारा अनावश्यक हानि उठाने के लिए बाध्य हो सकते हैं। यही कारण है कि प्रायः इस प्रकार की संस्थाएं अपने लिए ऐसे वित्तीय विशेषज्ञों की सेवाएं प्राप्त करती हैं जो वित्तीय प्रबन्ध के प्रत्येक पहलू से पूर्ण परिचित होते हैं।

(5) अन्य पक्षकारों के लिए महत्त्व (Importance for Other Parties)- समाज के विभिन्न पक्षकारों जैसे, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, आदि भी वित्तीय प्रबन्ध के ज्ञान से लाभान्वित होते हैं क्योंकि इस विषय के ज्ञान के अभाव में वे देश की आर्थिक समस्याओं को सही ढंग से नहीं समझ सकेंगे।

उपयुक्त विवरण से स्पष्ट है कि वित्तीय प्रबन्ध की उपयोगिता व्यावसायिक प्रबन्धकों, विनियोक्ताओं, अंशधारियों, वित्तीय संस्थाओं तथा अन्य पक्षों सभी के लिए है। वित्तीय प्रबन्ध के महत्त्व के सम्बन्ध में सोलोमन इजरा का कथन काफी महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा है कि वित्तीय प्रबन्ध आज केवल वित्तीय साधन संकलित। करने की एक विशेषज्ञ क्रिया मात्र ही नहीं है, अपितु सम्पूर्ण, प्रबन्धकीय विज्ञान का एक अभिन्न अंग बन

वित्त कार्य का अन्य व्यावसायिक कार्यों से सम्बन्ध

(Relation of Finance Functions to other Business Functions)

विभिन्न आर्थिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों को एक सूत्र में बाँधने के लिए किसी ऐसे साधन की। आवश्यकता होती है जो उन्हें सुचारु रूप से निर्देशित और संचालित कर सके। ‘वित्त’ ही वह शक्तिशाली साधन है जो इस कार्य को पूरा करता है। स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यावसायिक क्रिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में वित्त से अवश्य ही सम्बन्धित है। निम्नांकित कथन हमारा ध्यान इस बात की ओर आकर्षित करते हैं कि वित्त । का अन्य व्यावसायिक क्रियाओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है। ।

“सम्भवत: व्यवसाय का कोई भी क्रियात्मक क्षेत्र उसके अन्य क्षेत्रों से इतना आन्तरिक रूप से सम्बन्धित नहीं है, जितना की वित्त ।

गुथमैन एवं डूगाल के अनुसार “वित्त की समस्या, क्रय, उत्पादन एवं विपणन समस्याओं से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।”

वित्त के अन्य व्यावसायिक कार्यों से सम्बन्ध की विवेचना निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत की जा सकती है :

  1. वित्त और विपणन में सम्बन्ध (Relation of finance to marketing)-वित्त और विपणन क्रिया में घनिष्ठ सम्बन्ध है। आधुनिक विपणन व्यवस्था में विपणन की समस्या केवल वस्तुओं को उत्पादक से उपभोक्ताओं के हाथों में पहुंचाने तक ही सीमित नहीं है अपित विपणन प्रक्रिया में अनेक उपकार्य करने पड़ते हैं, जैसे-बाजार अनुसन्धान, माल का एकत्रीकरण, परिवहन, वितरण, विज्ञापन एवं विक्रय संवर्धन, आदि । इन सभी क्रियाओं के लिए वित्त की आवश्यकता पड़ती है। अतः वित्त की समुचित व्यवस्था विपणन प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग है।
  2. वित्त और उत्पादन में सम्बन्ध (Relation of finance to production)-प्रत्येक उत्पादन कार्य के लिए कुछ साधनों की आवश्यकता होती है, जिनकी सहायता के बिना उत्पादन नहीं हो सकता। किसी भी वस्तु के उत्पादन के लिए मुख्य रूप से कच्चे माल, मशीन, औजार व श्रम की आवश्यकता पड़ती है और इन सभी साधनों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वित्त का होना आवश्यक है। स्पष्ट है कि उत्पादन और वित्त भी परस्पर एक-दूसरे से अभिन्न रूप में जुड़े हुए हैं।
  3. वित्त और सेविवर्गीय प्रबन्ध में सम्बन्ध (Relation of finance to personnel management)-सेविवर्गीय प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण,मजदूरी भुगतान एवं प्रब्याजि योजनाएं तथा श्रमिकों से सम्बन्धित कल्याणकारी योजनाओं को शामिल किया जाता है। इन सभी क्रियाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु पर्याप्त वित्त की आवश्यकता पड़ती है। अतः कहा जा सकता है कि वित्त का सेविवर्गीय प्रवन्ध से भी निकट का सम्बन्ध है।
  4. वित्त और लेखाकर्म में सम्बन्ध (Relation of finance to accountancy)-वित्त और लेखाकर्म भी एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित हैं। वित्त और लेखाकर्म के सम्बन्ध को दो रूपों में देखा जा सकता है। एक सम्बन्ध तो हम यह देखते हैं कि लेखाकर्म में केवल उन्हीं लेन-देनों या घटनाओं को लिखा जाता है जिन्हें मुद्रा (वित्त) में व्यक्त किया जाता है। ऐसी घटनाएँ जो व्यवसाय के लिए तो महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन उन्हें मुद्रा में व्यक्त नहीं किया जा सकता (जैसे व्यवसाय के प्रबन्ध संचालक की मृत्यु), ऐसी घटनाओं को लेखाकर्म में नहीं लिखा जाता। दूसरा सम्बन्ध यह है कि कोषों की उपलब्धता एवं प्रयोग के समंक लेखांकन विभाग ही वित्त विभाग को उपलब्ध कराता है । इतना ही नहीं, वित्तीय विश्लेषण की विभिन्न तकनीकों के प्रयोग का आधार भी लेखांकन के आँकड़े ही होते हैं।

निष्कर्ष-विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के वित्त से सम्बन्ध के उपर्युक्त अध्ययन के आधार पर हमें यह धारणा कदापि नहीं बना लेनी चाहिए कि सभी व्यावसायिक क्रियाएं केवल वित्तीय ही होती हैं; क्योंकि विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं में वित्त की समस्या के अतिरिक्त अन्य पहलू भी होते हैं। उदाहरणार्थ, उत्पादन एवं विपणन सम्बन्धी क्रियाओं में इनसे सम्बन्धित तकनीकी पहलू भी होते हैं जिनका वित्त से दूर-दूर तक भी कोई सम्बन्ध नहीं होता। अत: केवल उन सभी क्रियाओं को जिनका सम्बन्ध प्राथमिक रूप से वित्त से है, वित्तीय प्रबन्ध से सम्बन्धित किया जा सकता है।

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Insurance Claim Questions Answers Study Material Notes In hindi

Next Story

BCom 3rd Year Financial Management Planning Study Material Notes In Hindi

Latest from B.Com