BCom 3rd Year Financial Management An Introduction Study Material Notes In Hindi

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  1. तरलता बनाये रखना (To Maintain Liquidity)-उपक्रम को अपने दायित्वों का समय पर भुगतान करने तथा दैनिक कार्यों के सफल निष्पादन हेतु पर्याप्त तरलता बनाये रखना आवश्यक होता है । इसके लिये रोकड़ प्रवाहों का पूर्वानुमान, कोषों का संग्रहण तथा रोकड़ अन्तर्वाहों का प्रबन्ध किया जाता है। वित्तीय प्रबन्धक को उपक्रम की तरलता बनाये रखने के लिये रोकड़ अन्तर्वाह (Cash Inflows) तथा रोकड़ बहिर्वाह (Cash Outflows) में समन्वय स्थापित करना पड़ता है। इसके लिये वह रोकड़ बजट तथा रोकड़ पूर्वानुमान विधियों का प्रयोग करता है।
  2. लाभदायकता सम्बन्धी कार्य (Profitability Functions)-अंशधारियों में अधिकतम लाभाश वितरित करने तथा संस्था की सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि करने के उद्देश्य से वित्तीय प्रबन्धक उपक्रम के लाभी। को अधिकतम करने का कार्य करता है । इसके लिये वह लाभ-नियोजन, वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य निर्धारण, पूँजी लागत की गणना तथा लागत नियंत्रण जैसी तकनीकों का प्रयोग करता है।
  3. वित्तीय निष्पादन का मूल्यांकन (Evaluation of Financial Performance) वित्तीय प्रबन्धक का यह दायित्व होता है कि वह उपक्रम के वित्तीय निष्पादन का विश्लेषण करके उसके परिणामों के बारे में संचालक मण्डल को अवगत कराये ताकि त्रुटियों को प्रकाश में लाया जा सके तथा भावी नीतियों और योजनाओं में परिवर्तन किया जा सके । वित्तीय मूल्यांकन में गत वर्ष की प्रगति की तुलना में चालू वर्ष की कार्य निष्पत्ति। का समीक्षात्मक विश्लेषण किया जाता है । इसके लिये अन्त:वर्ष तुलना एवं अन्त:फर्म तुलना विधियों का प्रयोग। किया जाता है । अन्तःवर्ष तुलना में उपक्रम की चालू वर्ष की कार्य निष्पत्ति की तुलना पिछले वर्षों में हुई प्रगति । के स्तर से की जाती है ताकि प्रगति की प्रवृत्ति ज्ञात हो सके। जबकि अन्त:फर्म तलना में उपक्रम की प्रगति का तुलना उसी उद्योग में संलग्न अन्य इकाइयों की प्रगति से की जाती है ताकि उद्योग में उपक्रम के स्थान की जानकारी हो सके । वित्तीय विश्लेषण के लिये वित्त प्रबन्धक द्वारा अनुपात विश्लेषण,प्रवृत्ति विश्लेषण,कोष-प्रवाह विश्लेषण रोकड-प्रवाह विश्लेषण,लागत-लाभ-मात्रा विश्लेषण, विचरण विश्लेषण आदि आधुनिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
  4. स्कन्ध विनिमय मूल्यों पर निगाह (To Keep track of Stock Exchange Quotations)– स्कन्ध विनिमय उद्धरण अर्थव्यवस्था के लिये बेरोमीटर का कार्य करते हैं। वित्तीय प्रबन्धक भी स्कन्ध बाजार पर निगाह रखकर व्यावसायिक उपक्रम की वित्त सम्बन्धी नीतियों के लिये अधिक कुशलतापूर्वक योजनाएँ बना सकता है।
  5. अन्य विभागों से समन्वय (Coordination with other Departments) किसी भी उपक्रम की सफलता विभिन्न विभागों की क्रियाओं में समन्वय पर निर्भर करती है। अत: वित्त विभाग तथा अन्य विभागों की योजनाओं एवं क्रियाओं में अच्छा समन्वय होना चाहिए।

III. नैत्यिक कार्य (Routine Functions)

इस श्रेणी में वे कार्य आते हैं जो निम्न-स्तरीय कर्मचारियों (जैसे सहायक लेखापाल या लिपिक आदि) द्वारा प्रतिदिन सम्पादित किये जाते हैं। परन्तु ये कार्य भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन कार्यों की सहायता से उच्च अधिकारियों को वित्तीय निर्णय लेने में काफी सुविधा रहती है। नैत्यिक कार्यों में मुख्यतः निम्नलिखित कार्यों को शामिल किया जाता है :

(1) प्रत्येक व्यवहार का लेखा रखना (Record keeping)।

(2) विभिन्न विवरण पत्रों को तैयार करना (Preparation of various financial statements)|

(3) रोकड़ शेषों की व्यवस्था करना (Managing cash balances)।

(4) उधार का प्रबन्ध करना (Credit Management)।

(5) महत्त्वपूर्ण विलेखों/वित्तीय प्रपत्रों को सुरक्षित रखना (Safeguard the important financial documents)

वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र

Table of Contents

(Scope of Financial Management)

वित्तीय प्रबन्ध की विचारधारा में परिवर्तन के साथ-साथ वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र भी परिवर्तित होता रहा है। आज वित्तीय प्रबन्ध वित्त प्राप्ति की व्यवस्था तथा वित्त के प्रभावपूर्ण उपयोग तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह व्यवसाय प्रबन्ध में निश्चयीकरण की प्रक्रिया (Process of Decision-making) बन गया है। वास्तव में आज कोई भी निर्णय व्यवसाय में भले ही किसी भी विभाग से सम्बन्धित हो, अन्ततोगत्वा वित्तीय विश्लेषण के बाद ही अन्तिम रूप लेता है। यही कारण है कि आज वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र जो पहले वर्णनात्मक (Descriptive) तथा कर्तात्मक (Subjective) अधिक था वह अब विश्लेषणात्मक (Analytical) एवं वस्तुपरक (Objective) अधिक हो गया है । इसके साथ ही वित्तीय प्रबन्ध जो पहले अन्त : प्रेरणा (Intuition) तथा अनुभव (Experience) पर आधारित था, अब उसका आधार वैज्ञानिक तथा गत्यात्मक हो गया है। वित्तीय प्रबन्ध के क्षेत्र को अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से निम्नलिखित शीर्षकों में बांटा जा सकता है :

(1) वित्तीय पूर्वानुमान लगाना (Financial Forecasting) वित्तीय प्रबन्ध के कार्य-क्षेत्र का सर्वप्रथम पहलू वित्तीय पूर्वानुमान लगाना है। नये उपक्रमों में यह कार्य प्रवर्तकों द्वारा किया जाता है जबकि एक चालू उपक्रम की दशा में प्रत्येक परियोजना के लिए वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान वित्त विभाग के अधिकारियों द्वारा ही लगाया जाता है । वित्तीय पूर्वानुमानों में बजटों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

(2) विनियोग सम्बन्धी निर्णय लेना (To Make Investment Decisions)-विनियोग निर्णय का अर्थ यह निर्णय लेना है कि स्थायी तथा चालू सम्पत्तियों में से किस सम्पत्ति में कितना विनियोग करना वांछनीय होगा। पूँजी बजटन तथा कार्यशील सम्पत्तियों के प्रबन्ध को विनियोग सम्बन्धी निर्णय में ही शामिल किया जाता है।

(3) वित्तीय प्रबन्ध व्यवस्था (Arrangement of Finance)-वित्तीय प्रबन्ध के अन्तर्गत यह क्रिया भी सम्मिलित होती है कि वित्त किन-किन साधनों से एकत्रित किया जायेगा। कितनी मात्रा में अल्पकालीन तथा कितनी पात्रा में दीर्घकालीन वित्त उपयुक्त रहेगा।

(4) वित्त प्राप्त करना (Procurement Finance)-पूर्वानुमानित पूंजीकरण तथा प्रस्तावित पँजी-ढाँचे के अनुसार विभिन्न स्त्रोतों से आवश्यक पूँजी एकत्रित करना भी वित्तीय प्रबन्ध के कार्य-क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

(5) आय का प्रबन्ध (Management of Income)-आय का प्रबन्ध एक व्यापक शब्द है जिसमें शिलित है। सरल शब्दों में, आय का प्रबन्ध करते समय वित्तीय प्रबन्धक आया को अधिकतम करने के लिए तो प्रयत्नशील रहता ही है साथ-ही-साथ इस बात पर भी भली-भांति है कि आय का कितना भाग संचय के रूप में रखा जाये तथा कितना भाग अंशधारियों को लाभ भुगतान किया जाये।

6) वित्तीय नियन्त्रण (Financial Control) वित्तीय नियन्त्रण के अभाव में व्यावसायिक तर को प्राप्त करना कठिन ही नहीं असम्भव है । वित्तीय नियन्त्रण हेतु वास्तविक निष्पादनों की पर्वानमा करके विचरणों का पता लगाया जाता है और इसके बाद गहन अध्ययन के आधार पर सधारात्मक कार्यवाही की जाती है। बजटरी नियन्त्रण तथा विचरण विश्लेषण, वित्तीय नियन्त्रण की मख्य तकली

(7) वित्तीय निष्पादन का विश्लेषण एवं मूल्याकंन (Analysis and Appraisal of Financial Performance) – वित्तीय निष्पादन का विश्लेषण और प्राप्त परिणामों से कम्पनी के उच्च प्रबन्ध को अवगत कराना भी वित्तीय प्रबन्ध के क्षेत्र में शामिल किया जाता है । वित्तीय विश्लेषण हेतु मुख्यत: कोष-प्रवाह विश्लेषण अनपात विश्लेषण तथा लागत-मात्रा-लाभ विश्लेषण, आदि तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।

(8) उच्च प्रबन्ध को परामर्श देना (Advising the Top Management)-यद्यपि सभी महत्त्वपूर्ण मामलों में अन्तिम निर्णय लेने का अधिकार तो उच्च प्रबन्धकों को ही होता है लेकिन सम्बन्धित मामले के विभिन्न पहलुओं पर विचार करके पृष्ठभूमि तैयार करने का कार्य वित्त विभाग द्वारा ही किया जाता है।

chetansati

Admin

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