वित्तीय नियोजन के प्रकार
Table of Contents
(Types of Financial Planning)
समय-अन्तराल के आधार पर वित्तीय नियोजन की प्रक्रिया तीन प्रकार की हो सकती है
(अ) अल्पकालीन वित्तीय नियोजन (Short-term Financial Planning)-अल्पकालीन वित्तीय नियोजन के अन्तर्गत सामान्यतः एक वर्ष की अवधि के लिए योजनाएं बनायी जाती हैं। इस प्रकार की योजनाएं। मुख्य रूप से कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध हेत तैयार की जाती हैं ताकि संस्था के वित्तीय साधनों/कोषों में आवश्यक तरलता बनी रहे । विभिन्न प्रकार के अल्पकालीन बजट विशेषकर रोकड़-बहाव बजट, प्रक्षेपित लाभ-हानि खाता या चिट्ठा, फण्ड की प्राप्ति व उपयोग का विवरण कार्यशील पूँजी का अनुमान, आदि अल्पकालीन वित्तीय नियोजन के महत्त्वपूर्ण उपकरण माने जाते हैं।
(ब) मध्यकालीन वित्तीय नियोजन (Medium-term Financial Planning) सामान्यतः एक वर्ष से अधिक परन्तु 5 वर्ष से कम अवधि के लिए जब वित्तीय योजनाएं बनायी जाती हैं तो उसे मध्यकालीन वित्तीय नियोजन कहते हैं। इसके अन्तर्गत सम्पत्तियों के रख-रखाव, उनका प्रतिस्थापन,शोध एवं विकास कार्यों को चलाने विशेष कार्यशील पूँजी की व्यवस्था करने, आदि आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मध्यकालीन वित्तीय नियोजन की आवश्यकता पड़ती है। इस नियोजन के माध्यम से ऐसे पूँजी स्रोत को प्राप्त करने की चेष्टा की जाती है जिससे पूँजी लागत में कमी आये और संस्था का वित्तीय ढाँचा तरल व लोचपूर्ण भी रहे ।
(स) दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन (Long-term Financial Planning)-दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन का सम्बन्ध उन सभी वित्तीय योजनाओं से होता है जो पाँच वर्ष से अधिक अवधि के लिए बनायी जाती हैं। दीर्घकालीन वित्तीय लक्ष्यों का निर्धारण, पूँजीकरण की मात्रा निर्धारित करना, पूँजी-ढांचा तैयार करना, भावी विस्तार योजना व पुनर्संगठन हेतु अतिरिक्त पूँजी की व्यवस्था करना, आदि को दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन में शामिल करते हैं।
वित्तीय आवश्यकता अनुमान
(Estimating Financial Requirements)
किसी भी व्यवसाय एवं उपक्रम की सफलता उसके श्रेष्ठ वित्तीय नियोजन पर ही निर्भर करती है। श्रेष्ठ-वित्तीय नियोजन के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यवसाय एवं उपक्रम हेतु आवश्यक वित्तीय कोषों की मात्रा का निर्धारण करना आवश्यक है अर्थात् व्यवसाय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए न तो कोषों की मात्रा अधिक ही और न कम ही हो । वित्तीय कोषों की आवश्यकता का अनुमान निम्नलिखित तीन प्रकार की सम्पत्तियों के आधार पर कर सकते हैं
(1) स्थायी सम्पत्तियों के लिए वित्त का अनुमान (Estimate of Finance for Fixed Assets)-प्राय: प्रत्येक व्यवसाय एवं उपक्रम में कुछ न कुछ स्थिर सम्पत्तियों की आवश्यकता होती है. जैसेभूमि, भवन, संयन्त्र एवं फर्नीचर आदि । व्यापारिक फर्मों एवं सेवा कार्य में लगी हुई फर्मों में तुलनात्मक रूप से स्थिर सम्पत्तियों में कम विनियोजन करना पड़ता है जबकि निर्माणी उद्योगों में स्थिर सम्पत्तियों में अधिक विनियोजन करना पड़ता है। नये व्यवसाय की दशा में स्थापना के समय प्रवर्तकों द्वारा स्थायी सम्पत्तियों के लिए वित्त का अनुमान किया जाता है। भूमि की लागत स्थानीय स्रोतों से, भवन निर्माण की लागत ठेकेदारों से तथा मशीनों की लागत निर्माताओं से ज्ञात की जाती है। इसी प्रकार अन्य स्थिर सम्पत्तियों की लागत सम्बन्धित स्रोतों से ज्ञात करके सभी स्थिर सम्पत्तियों के लिए वित्त की मात्रा का अनुमान कर लिया जाता है।
(2) चालू सम्पत्तियों के लिए वित्त का अनुमान (Estimate of Finance for Current Assets)-चालू सम्पत्तियों में रोकड़, प्राप्य विपत्र, देनदार एवं रहतिया आदि को शामिल किया जाता है । दिन-प्रतिदिन के कार्यों के कुशल संचालन के लिए प्रत्येक व्यवसाय एवं उपक्रम में चालू सम्पत्तियों को आवश्यकता भी अनिवार्यतः होती है। चालू सम्पत्तियों हेतु आवश्यक वित्त की मात्रा व्यवसाय के स्वभाव,
आकार, क्रय-विक्रय की शर्तों एवं उत्पादन प्रक्रिया में लगने वाले समय आदि अनेक बातों पर निर्भर करती है। अतः चालू सम्पत्ति के प्रत्येक अंग का सही अनुमान लगाकर चाल सम्पत्तियों में होने वाले विनियोग की मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है।
(3) अमूर्त सम्पत्तियों के लिए वित्त का अनुमान (Estimate of Finance for Intangible Assets)-व्यवसाय की स्थापना के समय प्रवर्तन व्यय, पार्षद सीमा नियम, पार्षद अन्तर्नियम एवं प्रविवरण आदि को तैयार कराने, छपवाने और प्रस्तत करने के व्यय ख्याति पेटेन्ट, कापीराइट आदि पर भी काफी व्यय करना पड़ता है। अतः इनके सम्बन्ध में भी अनमानित वित्त की आवश्यकता का अनुमान करना आवश्यक होता है।
निष्कर्ष-स्पष्ट है कि कुल वित्तीय आवश्यकता का अनुमान लगाने के लिए उपर्युक्त तीनों प्रकार की सम्पत्तियों के लिये वित्तीय आवश्यकताओं का निर्धारण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। इन सम्पत्तियों के लिए वित्तीय आवश्यकताओं का अनुमान करते समय वर्तमान एवं भावी कार्यक्रम राजकीय नियम, वित्त प्राप्ति के स्रोत और पूँजी बाजार की स्थिति आदि बातों पर भी ध्यान देना चाहिए।