लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों की वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों से मिलान की प्रक्रिया
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(Procedure of Reconciliation of Results as shown by Cost Accounts with Results as per Financial Accounts)
जब लागत लेखों एवं वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभों में भिन्नता होती है तो दोनों पुस्तकों द्वारा प्रदर्शित परिणामों के अन्तर का मिलान करने के लिये समाधान विवरण‘ या समाधान खाता‘ तैयार किया जाता हा समाधान विवरण’ या ‘समाधान खाता’ तैयार करने से पूर्व निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है
(1) अन्तर के कारण ज्ञात करना-प्रदत्त लागत लेखों की सूचनाओं तथा वित्तीय लेखों (अर्थात् व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता) से सम्बन्धित प्रत्येक मद की परस्पर तुलना करते हुए यह पता लगायेंगे कि कौन-कौन-सी मदों की राशियाँ। दोनों लेखों में अलग-अलग हैं। जिन मदों की राशियाँ दोनों लेखों में एक समान हों उन पर कोई ध्यान नहीं देंगे क्योंकि उनसे प्रदर्शित परिणामों में कोई अन्तर उत्पन्न नहीं होता।
अध्ययन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अन्तर की विभिन्न मदों को कारणवार निम्नलिखित शीर्षकों में वर्गीकृत कर देगे
(1) उपरिव्ययों में अन्तर-(अ) लागत लेखों में कम चार्ज किये गये उपरिव्यय एवं वित्तीय लेखों की तुलना में कितनी रकम कम चार्ज की गई है; (ब) लागत लेखों में अधिक चार्ज किये गये उपरिव्यय एवं वित्तीय लेखों की तुलना में कितनी रकम अधिक चार्ज की गई है।
(ii) ऐसे व्यय एवं हानियाँ जिन्हें केवल वित्तीय लेखों में दर्शाया गया है अर्थात् व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाते में डेबिट किया गया है, परन्तु लागत लेखों में नहीं लिखा गया है। __iii) ऐसे लाभ एवं प्राप्तियाँ जिन्हें केवल वित्तीय पुस्तकों में क्रेडिट किया गया है परन्तु लागत लेखों में शामिल नहीं किया गया है।
(iv) ऐसी मदें जिन्हें लागत लेखों में तो लिखा गया है परन्तु वित्तीय लेखों में सम्मिलित नहीं किया गया है।
(v) ह्रास की रकम लागत लेखों में कम चार्ज की गई है या अधिक एवं वित्तीय पुस्तकों की तुलना में चार्ज की गई। रकम में कितना अन्तर है।
(vi) प्रारम्भिक स्कन्ध का लागत लेखों में कम मूल्य पर मूल्यांकन किया गया है या अधिक पर एवं मूल्यांकन की रकम में कितना अन्तर है।
(vii) अन्तिम स्कन्ध का लागत लेखों में कम मूल्य पर मूल्यांकन किया गया है या अधिक पर एवं मूल्यांकन की रकम में कितना अन्तर है।
(viii) प्रत्यक्ष व्ययों में अन्तर (यदि स्पष्ट सूचना हो तो)-(अ) लागत लेखों में अधिक चार्ज की गयी रकम, (ब) लागत लेखों में कम चार्ज की गयी रकम।
किसी स्पष्ट सूचना के अभाव में मूल लागत (Prime Cost) ज्ञात करने तक के सभी प्रत्यक्ष व्ययों की रकम वित्तीय तथा लागत दोनों लेखों में बराबर मानी जाती है। विक्रय (Sales) की रकम भी स्पष्ट सूचना के अभाव में दोनों लेखों में बराबर ही मानी जाती है।
उपरिव्ययों के सम्बन्ध में प्रमुख समस्या सामान्यतः प्रश्नों में उपरिव्ययों की रकम भी दी हई होती है एवं अलग-अलग प्रतिशतों के आधार पर उन्हें गणना करने सम्बन्धी जानकारी भी दी हुई होती है। ऐसी दशा में विद्यार्थी प्राय: भ्रमित रहते हैं कि कौन-सी रकम वित्तीय लेखों से सम्बन्धित है एवं कौन-सी लागत लेखों से। जैसा कि पीछे स्पष्ट कर चुके हैं कि वित्तीय लेखों में उपरिव्ययों (अप्रत्यक्ष व्ययों) की वास्तविक रकम लिखी जाती है जबकि लागत लेखों में विगत अनुभव के आधार पर अनुमानित रकमें लिखी जाती हैं। अत: उपरिव्ययों की जो रकम स्वयं ही प्रश्न में दी हई होती है वह वास्तविक । रकम होती है और उसे वित्तीय लेखों में दर्शाते हैं जबकि दिये हुए प्रतिशतों या अवशोषण की अन्य किसी विधि से (प्रदत्त । निर्देशानुसार) जो अनुमानित रकम निकल कर आती है उसे लागत लेखों में लिखा जाता है।
(2) अन्तर के प्रत्येक कारण का लागत लेखों के परिणामों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना-यह जानने के बाद कि दोनों लेखों में किन-किन मदों की राशियाँ अलग-अलग हैं अर्थात् दोनों लेखों के प्रदर्शित परिणामों में अन्तर के कौन-कौन से कारण है, यह भी देखेंगे कि अन्तर का प्रत्येक कारण लागत लेखों के परिणामों को किस प्रकार प्रभावित करता हैं अर्थात् उस अन्तर के कारण लागत लेखों के लाभ में वृद्धि हुई होगी अथवा कमी हुई होगी।
(3) समाधान विवरण या समाधान खाता तैयार करना-दोनों लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में अन्तर के कारण एवं अन्तर के प्रत्येक कारण का लागत लेखों के परिणाम पर क्या प्रभाव पडेंगा , यह जानने के पश्चात् अन्तिम कार्य दोनो लेखों के अन्तर का मिलान करना है जिसके लिये समाधान विवरण या समाधान खाता तैयार किय जाता है ।
समाधान विवरण या समाधान पत्रक
(Reconciliation Statement)
जिस प्रकार बैंक पास-बुक तथा रोकड़ पुस्तक द्वारा प्रदर्शित शेषों का मिलान करने के लिये बैंक समाधान विवरण बनाया जाता है, उसी प्रकार लागत लेखों तथा वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों का मिलान करने के लिये भी समाधान विवरण तैयार किया जाता है। दूसरे शब्दो में, लागत लेखों एवं वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों का मिलान करने हेतु जो पत्रक या विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे ‘समाधान पत्रक’ या ‘समाधान विवरण’ कहते है।
समाधान विवरण तैयार करने के उद्देश्य
समाधान विवरण तैयार करने के प्रमख उद्देश्य इस प्रकार हैं
(1) अन्तर के कारणों को स्पष्ट करना-समाधान विवरण-पत्र तैयार करने का मुख्य उद्देश्य लागत लेखों तथा वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभों के अन्तर का कारण ज्ञात करना होता है।
(2) लागत लेखों की शुद्धता ज्ञात करना-समाधान विवरण बनाने का उद्देश्य लागत लेखों की शुद्धता की जांच करना भी है। यदि दोनों लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में भिन्नता केवल नीति सम्बन्धी कारणों से है तो यह निष्कर्ष निकलता है कि दोनों पुस्तकों में विभिन्न मदों का लेखा ठीक प्रकार से किया गया है। परन्तु यदि यह अन्तर नीति सम्बन्धी मदों के समाधान के बाद भी रहता है तो इसका अर्थ है कि विभिन्न मदों के लेखन में कहीं त्रुटि रह गई है।
(3) लागत लेखों में पूर्णता लाना-लागत लेखों को तब तक पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक समाधान विवरण तैयार न कर लिया जाये। इसे लागत लेखों का अन्तिम अंग माना जाता है, इसके अभाव में लागत लेखे अपूर्ण रहते है। एच० ज० ह्वेल्डेन के अनुसार, “जब तक लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणाम व्यापारिक लेखों के परिणाम से मिला न लिया जाये तब तक लेखों की विधि पूर्ण नहीं मानी जायेगी।” समाधान विवरण तैयार करने की विधि
(Method of preparing Reconciliation Statement)
समाधान विवरण तैयार करने की विधि निम्नलिखित प्रकार है
(1) सर्वप्रथम लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणाम को आधार मानिये। यद्यपि वित्तीय लेखों के लाभ को आधार मानकर उसे लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ से भी मिलाया जा सकता है। किन्तु अच्छा यही है कि लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ को ही आधार माना जाये।
(2) इसके बाद अन्तर के प्रत्येक कारण से लागत लेखों के परिणाम पर पड़ने वाले प्रभाव (लागत लेखों का लाभ बढ़ता है या घटता है) के अनुसार वित्तीय लेखों के परिणाम को ज्ञात करने के लिये अन्तर की राशि को लागत लेखों के लाभ में जोड़ देंगे या घटा देगे। यदि अन्तर के कारण लागत लेखों का लाभ बढ़ता हो तो वित्तीय लेखों का लाभ ज्ञात करने के लिये अन्तर की राशि को लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ में से घटा देंगे। इसके विपरीत, यदि अन्तर के कारण लागत लेखों का लाभ कम हुआ हो तो वित्तीय लेखों का लाभ ज्ञात करने के लिये अन्तर की राशि को लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ में जोड़ देगे।
लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ में उपर्युक्त अन्तर की राशि जोड़ने एवं घटाने के पश्चात् जो राशि आयेगी वह वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ की राशि के बराबर होगी। इस प्रकार लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों का वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों से मिलान हो जायेगा। समाधान विवरण तैयार करने में जोड़ने एवं घटाने की मदों के सम्बन्ध में सामान्य नियम
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर समाधान विवरण तैयार करने हेतु जोड़ने एवं घटाने की मदों से सम्बन्धित प्रमुख नियम इस प्रकार याद किये जा सकते हैं
(1) लागत लेखों में कम चार्ज किये गये व्ययों के लिये अन्तर की राशि को कम करेंगे अर्थात् घटायेंगे जबकि अधिक चार्ज किये गये व्ययों के लिये अन्तर की राशि को जोड़ देंगे।
(2) जो व्यय या हानियाँ वित्तीय लेखों में डेबिट की गई हैं परन्तु लागत में नहीं लिखी गई हैं उनकी रकम भी घटा देंगे।
(3) जो लाभ या प्राप्तियाँ वित्तीय लेखों में क्रेडिट की गई हैं परन्तु उन्हें लागत लेखों में नहीं शामिल किया गया है उनकी रकम जोड़ दी जायेगी।
(4) केवल लागत पुस्तकों में लिखे गये व्ययों की रकम जोड़ दी जाती है।
(5) प्राराम्भिक स्कन्ध का मूल्यांकन लागत लेखों में अधिक मल्य पर होने की दशा में आधिक्य का रकम जाहदा जायेगी जबकि कम मूल्यांकन की दशा में अन्तर की राशि घटा दी जायेगी।
(6) आन्तिम स्कन्ध का मूल्यांकन यदि वित्तीय लेखों की अपेक्षा लागत लेखों में कम कीमत पर किया गया हा ता अन्तर। की राशि जोड़ देगे जबकि विपरीत दशा में अन्तर की राशि को घटा देंगे।
नोट-यदि वित्तीय लेखों के लाभ को आधार मानकर समाधान विवरण तैयार करना चाहें तो उपरोक्त वर्णित जोड़ने वाले मद घटा दिये जायेगे तथा घटाने वाले मद जोड़ दिये जायेंगे।