BCom 2nd Year Cost Accounting Labour Cost Control Procedure Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Cost Accounting Labour Cost Control Procedure Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Cost Accounting Labour Cost Control Procedure Study Material Notes in Hindi: Labour cost Job Time Recording Computation and payment of Wages This Post is very Important For Bcom 2nd Year Students in Hindi and English. (Most Important Notes For BCom 2nd Year Students )

Labour Cost Control Procedure
Labour Cost Control Procedure

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      श्रम लागत नियन्त्रण प्रक्रियाश्रम आवर्त,कार्यहीन समय एवं अधिसमय 

(Labour Cost Control Procedure : Labour Turnover, Idle Time and Overtime) 

लागत के तीनों तत्त्वों (सामग्री, श्रम एवं व्यय) में श्रम का स्थान सर्वोपरि है. क्योंकि श्रम एक सजीव घटक है जिससे नियोक्ता मनमाने ढंग से काम नहीं ले सकता। वास्तव में किसी उद्योग अथवा फर्म में विभिन्न साधनों का कुशल प्रयोग श्रम की दक्षता पर ही निर्भर करता है।

श्रम लागत

(Labour Cost) 

किसी संस्था में कार्यरत श्रमिकों पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जो भी व्यय किया जाता है, उसके योग को ही श्रम लागत कहा जाता है। श्रमिकों को दी जाने वाली मल मजदरी. महंगाई भत्ते एवं बोनस के अतिरिक्त स्थगित मौद्रिक लाभ भी श्रम लागत में सम्मिलित होते हैं −

लेखांकन के दृष्टिकोण से श्रम लागत को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(i) प्रत्यक्ष श्रम लागत (DirectLabourCost) तथा (ii) अप्रत्यक्ष श्रम लागत (Indirect LabourCost

प्रत्यक्ष श्रम लागत (Direct Labour Cost)-किसी उत्पाद या उपकार्य के निर्माण हेतु प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी ‘प्रत्यक्ष श्रम लागत’ कही जाती है। यह वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होती है। अत: किसी भी लागत इकाई या लागत केन्द्र पर प्रत्यक्ष श्रम लागत की स्पष्ट तथा पृथक् पहचान सम्भव हो जाती है। उदाहरणार्थ, ईंटों के भट्टे पर ईंट बनाने हेतु लगाया जाने वाला श्रम प्रत्यक्ष श्रम है क्योंकि 1,000 ईंट बनाने के लिए दी गई मजदूरी को सुविधापूर्वक 1,000 ईंटों की लागत पर डाला जा सकता है।

अप्रत्यक्ष श्रम लागत (Indirect Labour Cost)-अप्रत्यक्ष श्रम लागत में उन कर्मचारियों एवं श्रमिकों के वेतन तथा मजदूरी को शामिल किया जाता है जो उत्पादन कार्य में सहयोग तो देते हैं परन्तु उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष रूप में संलग्न नहीं होते; जैसे, सुपरवाइजर्स, गेट-कीपर, वाचमैन, टाइम-कीपर, फोरमैन, आदि। अप्रत्यक्ष श्रम की लागत को सुविधापूर्वक किसी कार्य, प्रक्रिया या वस्तु विशेष पर नहीं डाला जा सकता वरन् ऐसा श्रम सम्पूर्ण कारखाने से सम्बन्धित होता है।

प्रत्यक्ष श्रम लागत. मूल लागत (Prime Cost) का हिस्सा होती है. किन्त अप्रत्यक्ष श्रम लागत उपरिव्यय के अन्तर्गत आती है जिसे विभिन्न लागत इकाइयों अथवा केन्द्रों में विभाजित किया जाता है। अत: इस अध्याय में केवल प्रत्यक्ष श्रम या मजदरी का ही वर्णन किया गया है तथा अप्रत्यक्ष श्रम लागत का वर्णन उपरिव्यय वाले अध्याय में आगे किया गया है।

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लागत लेखांकन प्रमाप/मानक-7 : कर्मचारियों की लागत पर लागत लेखांकन

(Cost Accounting Standard-7: Cost Accounting on Employees Cost) 

लागत लेखांकन प्रमाप-7 (CAS-7) के अनुसार, “किसी उपक्रम के कर्मचारियों (अस्थायी, अंशकालिक एवं ठेके पर कर्मचारियों को शामिल करते हुये) प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिये भुगतान किये गये, भुगतान के लिये देय तथा भावी भुगतानों के लिये किये गये प्रावधानों सहित सभी प्रतिफलों के योग को कर्मचारी लागत कहते हैं। प्रतिफलों में मजदूरी, वेतन, संविदा भुगतान एवं लाभों जो भी लागू हों या कर्मचारी की ओर से किये गये भुगतानों को शामिल किया जाता है। इसे श्रम लागत भी कहते हैं।”

संक्षेप में कर्मचारी लागत में (i) वेतन, मजदूरी, भत्ते, बोनस/प्रेरणाएं (ii) भविष्य निधि एवं अन्य कोषों में अंशदान (iii) श्रम कल्याण पर किया गया व्यय एवं (iv) कर्मचारियों को प्रदत्त अन्य लाभों एवं सुविधाओं पर किये गये व्ययों को सम्मिलित किया जाता है।

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कर्मचारी लागत के सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बिन्दु।

(Rememberable Important points Regarding Employee Cost) 

(1) ठेके पर कर्मचारियों में उन कर्मचारियों को सम्मिलित किया जाता है जो नियोक्ता द्वारा स्वयं संविदा आधार पर रखे गये हैं, परन्तु इसमें संगठन में कार्यरत किसी ठेकेदार के कर्मचारियों को शामिल नहीं किया जाता।।

(2) किसी विगत अवधि के सम्बन्ध में किसी विवाद या न्यायालय निर्णय के कारण कर्मचारियों को भुगतान की गई। क्षतिपूर्ति की राशि कर्मचारी लागत नहीं मानी जाती।।

(3) किसी पूर्व अवधि के लिए चाल अवधि में किया गया कोई प्रावधान चालू अवधि में कर्मचारी लागत का भाग नहीं होगा।

(4) कर्मचारियों को नकदी या वस्तु किसी भी रूप में किये गये भुगतान/प्रतिफलों का योग कर्मचारी लागत में शामिल किया जाता है।

Labour Cost Control Procedure

लागतलेखांकन प्रमाप-7 के अन्तर्गत कर्मचारी लागत के सम्बन्ध में निम्नलिखित पहलुओं की विवेचना की गई

() कर्मचारी लागत के मापन के सिद्धान्त (Principles of Measurement of Employee Cost)−

(i) कर्मचारियों की लागत के निर्धारण में उनका सम्पूर्ण वेतन सभी प्रकार के देय भत्तों सहित एवं उन्हें देय परिलाभों की लागत को सम्मिलित किया जायेगा।

(ii) बोनस के रूप में कर्मचारियों को भगतान की गई राशि कर्मचारी लागत में ही शामिल की जाती है, चाहे बोनस का भुगतान लाभ में भागीदारी के आधार पर किया जाये अथवा वैधानिक रूप से न्यनतम भगतान के आधार पर किया गया हो।

(iii) संचालक मण्डल में प्रशासनिक संचालकों एवं समामेलित संस्था के अन्य अधिकारियों सहित सभी प्रबन्धकीय कर्मचारियों के पारिश्रमिक को कर्मचारी लागत का भाग माना जाता है। गैर प्रशासनिक संचालकों (Non-executive Directors) के पारिश्रमिक को कर्मचारी लागत का भाग नहीं माना जाता, वरन् प्रशासनिक उपरिव्यय मानते हैं।

(iv) सेवा निवृत्ति, छंटनी अथवा सेवा समाप्ति आदि से सम्बन्धित पृथक्कीकरण की लागतें (Separation Costs) ऐसी लागतों के लाभ की अवधि में बाँटकर किश्तों में कर्मचारी लागत में शामिल की जायेंगी।

(v) आरोपित लागतों (Imputed Costs) को कर्मचारी लागत में शामिल नहीं किया जाता।

(vi) यदि कर्मचारी लागत का निर्धारण प्रमापित लागत (Standard Cost) के आधार पर किया जाता है तो ऐसी दशा में सामान्य कारणों से कर्मचारी लागत में उत्पन्न विचरणों/अन्तरों को कर्मचारी लागत का भाग माना जाता है। इसके विपरीत असामान्य कारणों से उत्पन्न विचरणों को असामान्य लागत माना जायेगा।

(vii) यदि कर्मचारी लागतों के सम्बन्ध में कोई अनुदान, सहायता, प्रोत्साहन राशि या अन्य इस प्रकार की कोई राशि प्राप्त हुई है या होगी, तो वह राशि कर्मचारी लागत में से घटा दी जाती है।

(viii)दण्ड, वधानिक आधकरण या अन्य किसी तृतीय पक्षकार को भुगतान की गई क्षतिपर्ति की राशि को कर्मचारी लागत का भाग नहीं माना जाता है।

(ix) यदि मुफ्त आवास, मुफ्त वाहन या ऐसे ही अन्य कोई लाभ कर्मचारियों को दिए गए हैं तो इनकी लागत का निर्धारण इन लाभों को प्रदान करने में प्रयुक्त सभी संसाधनों की कुल लागत के आधार पर किया जायेगा।

(x) यदि कर्मचारी को दिये गये किसी लाभ के बदले कोई राशि प्राप्त की जाती है जैसे मकान किराया तो इसे कर्मचारी लागत में से घटा दिया जाता है।

(xi) कार्यहीन समय की लागत कर्मचारी या कर्मचारी समूह को देय प्रति घन्टा दर में कार्यहीन घन्टों से गुणा करके प्राप्त की जायेगी।

(xii) कर्मचारी लागत का निर्धारण करने के लिये प्रयुक्त लागत लेखांकन सिद्धान्तों में कोई परिवर्तन केवल उसी दशा में किया जाय जब लागत लेखांकन मानक की अनुपालना के लिये या किसी नियम के अन्तर्गत ऐसा करना आवश्यक हो. या ऐसा करने से संस्था के लागत विवरण अधिक औचित्य के साथ तैयार कर प्रस्तुत किये जा सकेंगे।

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() कर्मचारी लागतों का आबंटन

(Assignment of Employee Costs)

(i) यदि कर्मचारियों की सेवाएँ किसी लागत इकाई के साथ स्पष्ट रूप से पहचानी जा सकती हैं, तो कर्मचारी लागत को उस लागत इकाई पर प्रयुक्त समय, कर्मचारियों की संख्या अथवा अन्य किसी मापनीय आधार पर आबंटित कर दिया जाता है।

(ii) यदि कर्मचारियों की सेवाएँ किसी लागत इकाई के साथ स्पष्ट रूप से नहीं पहचानी जा सकती हैं तो ऐसी दशा में किसी उपयुक्त आधार पर कर्मचारी लागत आबंटित की जायेगी। जैसे-समय अध्ययन के आधार पर समय का अनुमान।

(iii) कर्मचारियों की ऐच्छिक सेवानिवृत्ति छंटनी या सेवामक्ति से साम्बन्धित पक्कीकरण की लागतें जो किसी अवधि में स्त्रों में बाँट दी गई हो, अप्रत्यक्ष लागत मानी जायेगी एवं किसी उपयुक्त आधार पर लागत इकाई को आबंटित कर दी जायगा।

(iv) भर्ती की लागत, प्रशिक्षण की लागत एवं अन्य ऐसी लागतों को उपरिव्यय माना जायेगा तथा तद्नुसार ही उनका निपटारा किया जाता है।

( ) कर्मचारी लागतों का प्रस्तुतीकरण (Presentation of Employee Cost)

(i) प्रत्यक्ष कर्मचारी लागत को लागत विवरण में एक पृथक लागत शीर्षक के अन्तर्गत प्रदर्शित किया जाता है ।

(ii)अप्रत्यक्ष कर्मचारी लागत को लागत विवरण में सम्बन्धित कार्यों जैसे निर्माणी, प्रशासनिक, विपणन आदि क उपरिव्ययों के भाग के रूप मे प्रदर्शित किया जायेगा।

(iii) लागत विवरण में कर्मचारी लागत को संवर्ग (category) के अनुसार प्रदर्शित किया जाता ह।  जैसे स्थायी कर्मचारियों, अस्थायी, कर्मचारियों, अंशकालिक कर्मचारियों तथा संविदा कर्मचारियों का वेतन/मजदूरी।

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() कर्मचारी लागतों का प्रकटीकरण (Disclosures of Employee Cost)

कर्मचारी लागत के सन्दर्भ में लागत विवरण में निम्नलिखित प्रकटीकरण करने होंगे

(i) स्थगित आयगत व्यय अथवा पूँजीगत कार्य की प्रकृति के कार्यों से सम्बन्धित कर्मचारी लागत-ऐसी लागत का आबंटित करने की विधि का उल्लेख करते हुए।

(ii) कर्मचारियों को भुगतान की गयी पृथक्कीकरण लागत (Separation Cost)|

(iii) असामान्य लागत (Abnormal Cost) जो कर्मचारी लागत में शामिल न की गयी हो।

(iv) दण्ड या क्षतिपूर्ति की भुगतान की गई राशि जो कर्मचारी लागत में शामिल न की गयी हो।

(v) कर्मचारी लागत में से घटायी गयी अनुदान, सहायता, प्रोत्साहन राशि अथवा अन्य कोई ऐसी राशि। (vi) सम्बन्धित पक्षकारों (Related Parties) को भुगतान की गई कर्मचारी लागत।

(vii) विदेशी विनिमय में भुगतान की गई कर्मचारी लागत।

श्रम लागत के संघटक/अवयव(Components of Labour Cost)

श्रम लागत में सामान्यतया निम्नलिखित लागतों/व्ययों को शामिल किया जाता है।

(i) माद्रिक भुगतान (Monetary Payments) (1) मल मजदूरी या वेतन, (2) महंगाई भत्ता, (3) उत्पादन या लाभ बोनस, (4) प्रॉविडेण्ट फण्ड में नियोक्ता का अंशदान, (5) कर्मचारी राज्य बीमा में नियोक्ता का अशंदान, (6) ग्रेच्युइटी, (7) पेंशन, (8) अवकाश वेतन, (9) अन्य कोई भत्ते जैसे नगर भत्ता, चिकित्सा भत्ता, आदि।।

(II) गैरमौद्रिक लाभ (Non-Monetary or Fringe Benefits)-(1) मनोरंजन सुविधाएं, (2) स्वास्थ्य सुविधाएं, (3) कैण्टीन सहायता, (4) आवास सुविधाएं, (5) कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा सुविधाएं, आदि।

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श्रम लागत पर नियन्त्रण    (Control on Labour Cost) 

न्यूनतम लागत पर अधिक उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रम लागत पर उचित नियन्त्रण आवश्यक है क्योंकि प्रत्येक वस्तु की कुल लागत का एक बड़ा भाग श्रम लागत ही होता है। श्रम लागत में कमी अथवा श्रम लागत की वृद्धि को रोक कर ही उत्पादन लागत में कमी अथवा वृद्धि पर रोक लग सकती है। श्रम का मानवीय तत्व श्रम लागत पर नियन्त्रण को काफी जटिल बना देता है। इसके अतिरिक्त श्रम उत्पादन का नाशवान घटक है, अत: इसको कार्यकुशलतापूर्वक तुरन्त प्रयोग किया जाना चाहिए। श्रम, एक बार नष्ट होकर पुनः वापस नहीं लिया जा सकता।Bcom 2nd Year Cost Accounting Labour Cost Control Procedure Study Material Notes in Hindi

श्रम लागत के लेखांकन व नियंत्रण के लिए संगठन(Organisation for Accounting and Control of Labour Cost)

सामान्यतया बड़े औद्योगिक संगठनों में श्रम लागत पर नियंत्रण व इसके लेखांकन के लिए निम्नलिखित पाँच विभाग होते हैं ।

1.कर्मचारी विभाग (PersonnelDepartment)-इस विभाग के मुख्य कार्य निम्नलिखित प्रकार से हैं

(i) श्रमिकों का चयन व नियुक्ति।

(ii) श्रमिकों का प्रशिक्षण एवं मानवीय शक्ति का विकास।

(iii) श्रमिकों की योग्यता के अनुसार उन्हें उचित कार्य पर लगाना।।

(iv) श्रम के कुशल प्रयोग एवं नियंत्रण की योजनाएँ बनाना।

2. इंजीनियरिंग एवं कार्य अध्ययन विभाग (Engineering and Works Study Department) works Study Department) यह विभाग श्रम सम्बन्धी निम्नलिखित कार्य करता है

(i) प्रत्येक कार्य/ उपकार्य के लिए उत्पादन की योजना तथा विशिष्टीकरण तैयार करना।

(ii) समय एवं गति अध्ययन (Time and motion studies) करना।

(iii) उपकार्य विश्लेषण करना।

(iv) कार्यानुसार मजदूरी दरें निश्चित करना।

(v) उत्पादन विभागों की क्रियाओं का निरीक्षण करना।

Labour Cost Control Procedure

3.समय लेखन विभाग (Time-keeping Department) इस विभाग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

(i)समयानुसार मजदूरा प्राप्त करने वाले श्रमिकों के आने व जाने के समय का लेखा-जोखा रखकर उनकी मजदूरी की गणना करने में सहायता प्रदान करना।

(ii) कार्यानुसार मजदूरी प्राप्त करने वाले श्रमिकों में उपस्थिति सम्बन्धी अनुशासन बनाए रखना।

(iii) वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना।

4.मजदूरी भुगतान विभाग (Payroll Department) श्रम लागत के नियंत्रण व लेखांकन में मजदूरी भुगतान विभाग निम्नलिखित कार्य करता है

(i) प्रत्येक श्रमिक के उपकार्य वर्गीकरण, विभाग व मजदूरी दर का लेखा रखना।

(ii) प्रत्येक श्रमिक के दैनिक समय पत्रक में दर्शाए गये समय का सत्यापन करना तथा उसे सारांश रूप में प्रस्तुत करना।

(iii) मजदूरी सूची बनाना तथा प्रत्येक श्रमिक की मजदूरी की गणना करना।

(iv) मजदूरी में से घटाई जाने वाली कटौतियों की गणना करना।

(v) मजदूरी के भुगतान की व्यवस्था करना।

5. लागत लेखांकन विभाग (Cost Accounting Department) लागत लेखांकन विभाग का कार्य मजदूरी सूची तथा श्रमिकों के समय व कार्ड के रिकार्ड का विश्लेषण कर यह ज्ञात करना है कि प्रत्यक्ष श्रम लागत (Direct Labour Cost) कितनी है, अधिसमय (Overtime) कितना हुआ है तथा सामान्य (Normal) एवं असामान्य (Abnormal) कार्यहीन समय (Idle Time) कितना है आदि। इन सब तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद प्रबन्धकों को सूचना दे दी जाती है ताकि वे श्रम नीति की कार्यकुशलता की जाँच कर सकें तथा श्रम लागत पर उचित नियन्त्रण रखने के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकें।

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श्रम लागत नियन्त्रण हेतु विचारणीय महत्वपूर्ण पहलू 

(Important Aspects to be considered for Labour Cost Control) 

संक्षेप में, श्रम सम्बन्धी लेखा-जोखा रखने तथा श्रम लागत पर नियन्त्रण के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है −

  1. श्रमिकों का चयन, नियुक्ति एवं कार्य वितरण;

2.श्रमिकों के आने-जाने के समय पर नियन्त्रण;

  1. श्रम सम्बन्धी लेखे अथवा कार्य-समय अंकन
  2. मजदूरी का निर्धारण एवं भुगतान;
  3. श्रम लागत से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण पहल:
  4. पारिश्रमिक देने की विभिन्न विधियाँ।

पारिश्रमिक देने की विभिन्न विधियों का वर्णन अगले अध्याय में किया गया है।

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1श्रमिकों का चयन, नियुक्ति एवं कार्य वितरण

(Selection, Appointment and Work Distribution of Workers)

प्राय: प्रत्येक संस्था में श्रमिकों के चयन, नियुक्ति, प्रशिक्षण, कार्य वितरण तथा स्थानान्तरण आदि का कार्य कर्मचारी विभाग (PersonnelDeptt.) द्वारा किया जाता है जिसका अध्यक्ष कर्मचारी प्रबन्धक (Personel Manager) होता है।

जब भी किसी विभाग को श्रमिकों की आवश्यकता होती है तो उस विभाग द्वारा सर्वप्रथम श्रम नियुक्ति माँगपत्र(Labour placement requisition slip) कर्मचारी विभाग को भेजा जाता है। इस माँग-पत्र में इस बात का उल्लेख किया जाता है कि किस कार्य के लिए, किस योग्यता के, कितने व्यक्तियों की, किस तिथि से आवश्यकता है। इस मांग-पत्र की प्राप्ति के बाद कर्मचारी प्रबन्धक सर्वप्रथम यह देखता है कि संस्था के किसी विभाग में वांछित योग्यता के अतिरिक्त श्रमिक ता नहा है। ऐसी दशा में नये श्रमिकों का चयन न करके स्थानान्तरण द्वारा श्रमिक मांग को पूरा कर दिया जाता है। लेकिन यदि किसा विभाग में अतिरिक्त श्रमिक नहीं हैं तो वह श्रमिकों की नियक्ति का प्रबन्ध करता है। इसके लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जाती है

(i) विज्ञापन अथवा किसी एजेन्सी के माध्यम से आवेदन-पत्र प्राप्त करनाः

(ii) आवेदन-पत्रों की जाँच करके कुछ छाँटे हुए व्यक्तियों को साक्षात्कार के लिए बुलाना;

(iii) साक्षात्कार के लिए आये हुए व्यक्तियों में से चयन करके श्रमिकों की नियुक्ति करना तथा उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था करना;

(iv) प्रशिक्षित कर्मचारियों को सम्बन्धित विभाग को सौंप देना।

श्रमिकों का कार्य का वितरण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कर्मचारी को उसकी योग्यता, क्षमता एवं रुचि के अनुसार ही कार्य दिया जाये।

यदि अस्थायी रूप से कर्मचारियों की आवश्यकता हो तो अधिसमय (overtime) कार्य करवाकर या आकस्मिक श्रमिकों से कार्य करवाकर श्रम आवश्यकता की पूर्ति करनी चाहिए, क्योंकि श्रमिकों को नियुक्ति करने के पश्चात् सेवा मुक्त करना कठिन कार्य है।

संस्था में नियुक्त किये गये श्रमिक का पूर्ण विवरण भी कर्मचारी विभाग द्वारा एक पत्रक में रखा जाता है। इस पत्रक में उसका नाम, पता, विभाग, श्रेणी, वेतन, पूर्व अनुभव, पूर्व नौकरी छोड़ने का कारण, वर्तमान पता, योग्यता, विवाहित या अविवाहित, नियुक्ति तिथि, आदि बातों का विवरण लिखा जाता है। इस पत्रक को श्रमिक इतिहास कार्ड Workers History Card) या कर्मचारी लेखा कार्ड (Personnel Record Card) कहते हैं।

Labour Cost Control Procedure

नियुक्ति के उपरान्त कर्मचारी विभाग पद ग्रहण तिथि, विभाग, मजदूरी दर, समय अंकन संख्या, स्टेट इन्श्योरेन्स कोड, श्रेणी, आदि का लेखा-जोखा तैयार करता है तथा आवश्यकतानुसार समय अंकन विभाग, पे-रौल विभाग तथा अन्य सम्बन्धित विभागों को रिपोर्ट भेज दी जाती है।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि श्रमिकों के चयन, नियुक्ति एवं कार्य वितरण के सम्बन्ध में यथोचित नियन्त्रण रखने हेतु निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहिए

(i) सभी नियुक्तियाँ कर्मचारी विभाग के माध्यम से होनी चाहिए।

(ii) कर्मचारी विभाग के प्रबन्धक द्वारा ‘कर्मचारी नियुक्ति माँग-पत्र’ का समुचित निरीक्षण किया जाना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि क्या किसी अन्य विभाग के अतिरिक्त श्रमिक का स्थानान्तरण किया जा सकता है।

(iii) यदि अतिरिक्त श्रमिक की स्थायी रूप से आवश्यकता नहीं है तो आकस्मिक (Casual) अथवा अस्थायी श्रमिकों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए।

(iv) श्रम लागतों को कम करने के लिए मशीनीकरण किया जा सकता है तो इस सम्बन्ध में निर्णय लेना चाहिए।

(v) प्रत्येक विभाग को श्रम उपयोग सम्बन्धी प्रतिवेदन बनाने के लिए कहा जाना चाहिए। इन प्रतिवेदनों द्वारा श्रमिकों के उपयोग एवं कुशलता की जानकारी मिलती है।

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 श्रमिकों के आनेजाने के समय पर नियन्त्रण

(Control on Entry and Exit time of Workers)

श्रमिक के कारखाने में आने एवं जाने के समय का लेखा करना एवं नियन्त्रण करना लागत की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। यह कार्य समय अंकन विभाग (Time Keeping Department) द्वारा किया जाता है। इससे श्रमिकों पर नैतिक प्रभाव पड़ता है तथा वह अनुशासित रूप से कार्य करते हैं। संक्षेप में, ‘समय अंकन विभाग द्वारा निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं

(i) समयानुसार भुगतान पाने वाले श्रमिकों की मजदूरी की गणना करने में सहायता प्रदान करना;

(ii) वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति

iii) उपस्थिति सम्बन्धी अनुशासन बनाये रखना;

(iv) प्रत्येक श्रमिक के फैक्टरी में आने-जाने के समय का लेखा-जोखा रखना चाहिए ताकि सामान्य समय, अधिसमय (Overtime), उपस्थिति में देरी तथा जल्दी कार्य छोड़ने सम्बन्धी सूचनाओं को रिकॉर्ड किया जा सके। समय अंकित करने के कुछ प्रचलित ढंग निम्न प्रकार हैं

() उपस्थिति रजिस्टर पद्धति (Attendance Register Method)-इस विधि में कारखाने के प्रवेश द्वार पर एक रजिस्टर रख दिया जाता है जिसमें कारखाने के सभी श्रमिकों के नाम लिखे रहते हैं। प्रत्येक श्रमिक के कारखाने में आने और जाने का समय इस रजिस्टर में या तो श्रमिकों द्वारा स्वयं ही अंकित कर दिया जाता है अथवा इस कार्य के लिए एक समय

लेखन लिपिक (Time keeping clerk) की नियुक्ति की जा सकती है। इस रजिस्टर को, प्रत्येक श्रमिक की मजदूरी ज्ञात कर के उद्देश्य से लागत लेखा विभाग में भेज दिया जाता है।

यह विधि अत्यन्त सरल तथा मितव्ययी है तथा छोटी संस्थाओं में जहाँ श्रमिकों की संख्या बहुत कम होती है. लाल जा सकती है। परन्तु यह प्रणाली दोषपर्ण है क्योकि इस विधि में बेइमानी होने के पर्याप्त अवसर होते हैं। श्रमिको  तथा टाइम-कीपर की मिलीभगत से गलत समय रिकार्ड किया जा सकता है। दूसरे टाइम-कीपर द्वारा समय अंकित किये जाने की दशा में श्रमिक गेट-कीपर द्वारा अंकित समय को मानने से इंकार कर सकते हैं। यह भी सम्भव है कि गेट-कीपर अंकित करने में त्रुटि हो जाये।

() धातु टोकन विधि Metal Disc Methody-इस विधि में प्रत्येक कर्मचारी के लिए एक संख्या निर्धारित जाता ह आर प्रत्येक कर्मचारी के लिए एक धात का टोकन या टिकट बनवा दिया जाता है, जिस पर श्रमिक का रहता है। कारखाने के प्रवेश द्वार पर विभिन्न कण्डों से यक्त एक बोर्ड टांग दिया जाता है तथा इस पर सभी कर्मचारिस टोकन टंगे होते हैं। कारखाने के प्रत्येक विभाग के लिए अलग-अलग बोर्ड टाँगे जा सकते हैं ताकि बिना समय बर्ग कमचारया को अपना टोकन मिल सके। जैसे ही कर्मचारी कारखाने के द्वार में प्रवेश करते हैं, वे अपना टोकन को कर पास रखे एक बॉक्स में डाल देते हैं। कारखाने में प्रवेश करने के निर्धारित समय के पश्चात् यह बॉक्स हटा दिया । तथा देर से आने वाले कर्मचारियों को अपने टोकन व्यक्तिगत रूप से टाइम-कीपर को देने पड़ते हैं ताकि उनके आगमन सही समय नोट किया जा सके और जिनके टोकन बोर्ड पर टंगे रह जाते हैं, उन्हें अनुपस्थित माना जाता है। यही व्य श्रमिकों के जाने का समय अंकित करने के लिए भी अपनायी जाती है। इस प्रकार इन टोकनों के आधार पर टाइम दैनिक समय पत्र (Daily Time Sheet) तैयार कर उसे मजदूरी विभाग को मजदूरी का हिसाब लगाने के लिए भेज देता है।।

यह प्रणाली ऐसी संस्था में, जहाँ अधिक श्रमिक हों, उपयुक्त है तथा यह समझने में सरल है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक श्रमिक की उपस्थिति ज्ञात करने में भी अधिक समय नहीं लगता। लेकिन यह तरीका भी दोषमुक्त नहीं है क्योंकि आने एवं जाने के निर्धारित समय पर बोर्ड के पास काफी भीड एकत्रित हो जाने के कारण इस बात की काफी सम्भावना रहती है। कि कोई कर्मचारी अपने अनुपस्थित साथी का भी टोकन उतारकर बक्से में डाल दे। इस प्रकार अनुपस्थित श्रमिक को उपस्थिति लगने का डर बना रहता है। इस कार्य को यदि ईमानदार कर्मचारियों की देख-रेख में कराया जाये तो श्रमिकों टा की जाने वाली गड़बड़ी को काफी सीमा तक रोका जा सकता है। दूसरे इस विधि में श्रमिकों के आने-जाने के समय का कोई लिखित प्रमाण तो होता नहीं, अत: समय के बारे में विवाद उत्पन्न हो सकता है। इतना ही नहीं, टाइम-कीपर द्वारा उपस्थिति रजिस्टर में झूठे कर्मचारी दर्ज किये जाने के भी पर्याप्त अवसर हो सकते हैं।

() समय अंकित करने वाली घड़ी (Time Recording Clock)-इस विधि के अन्तर्गत श्रमिकों के आने व जाने का समय नोट करने के लिए एक स्वचालित मशीन का प्रयोग किया जाता है, जिसे ‘टाइम रिकार्डर’ कहते हैं। रिकार्डर मशीन को कारखाने के प्रवेश द्वार के पास लगा दिया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत प्रत्येक श्रमिक को एक कार्ड दे दिया जाता है जिसका नमूना नीचे दिया गया है। ये कार्ड क्रमानुसार कारखाने के प्रवेश द्वार पर एक ट्रे में रख दिये जाते हैं। श्रमिक जैसे ही। कारखाने में प्रवेश करता है वह अपने कार्ड को ट्रे से उठाता है तथा उसे इस मशीन में डाल देता है तथा कार्ड के निर्धारित । स्थान पर श्रमिक के आने का समय अंकित हो जाता है। यदि श्रमिक समय से उपस्थित होता है तो कार्ड पर नीली स्याही से समय अंकित होता है जबकि निश्चित समय के बाद अर्थात् देरी से आने पर समय तथा तिथि स्वत: ही लाल स्याही से छपने लग जाती है। परिणामस्वरूप विलम्ब से आने की सूचना स्पष्ट नजर आ जाती है। समय अंकित करने का यही तरीका श्रमिकों के कारखाने से बाहर जाने, लौटने तथा छद्री होने पर अपनाया जाता है। प्रत्येक श्रमिक समय अंकित कराने के बाद अपने। कार्ड को दूसरी दराज में व्यवस्थित ढंग से रख देता है और इसी के आधार पर उसकी उपस्थिति एवं आने-जाने का समय दर्ज कर लिया जाता है।

जहाँ कर्मचारी अपेक्षाकृत अधिक संख्या में होते हैं वहाँ यह विधि अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है। इस पद्धति का प्रमुख गुण यह है कि इसमें समय को रिकार्ड करने में अशुद्धि या मतभेद की सम्भावना नहीं रहती क्योकि समय को घड़ी रिकार्ड करती है न कि टाइम-कीपर। अत: मानवीय विधियों के समान इसमें भेदभाव तथा असावधानी का प्रश्न ही नहीं उठता। इस पद्धति में एक ही दोष है कि कहीं कोई श्रमिक अपने किसी साथी के कार्ड पर भी समय अंकित न करवा ले जबकि वह वास्तव में देर से आया हो या अनुपस्थित रहा हो लेकिन यदि टाइम-कीपर सतर्क रहे तो इस बात की सम्भावना बहुत कम रहती है। दूसरा मुख्य दोष यह है कि यदि घड़ी खराब हो जाए या गलत समय रिकार्ड करने लगे तो समस्या उत्पन्न हो सकती है।

() डायल समय रिकार्डर (Dial Time Recorder)-यह मशीन भी एक घडी जैसी होती है जिसके चारों ओर एक डायल लगा रहता है। इस डायल में 150 के लगभग छिद्र होते हैं तथा प्रत्येक छिद्र का एक नम्बर होता है। प्रत्येक श्रमिक को एक नम्बर दे दिया जाता है। इस डायल के एक ओर एक हैण्डिल लगा रहता है जिसे श्रमिक द्वारा घमाकर अपने नम्बर के। छिद्र पर लाना होता है। इसके बाद वह हेण्डिल को दबा देता है जिससे इस मशीन में लगे कागज पर उस छिद्र का नम्बर । तथा समय अंकित हो जाता है।

आदर्श समय लखनावाध का अनिवार्यताएं Repuicitee of.Gond Time.keening Method)-त्रामिको के आने जाने के लसमय कालखा करन पर यथाचित नियन्त्रण आवश्यक है। इस सम्बन्ध में आदर्श समय लखन वायत बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है−

(i) समय लेखन विधि इस प्रकार की होनी चाहिए कि कर्मचारियों को किसी अनपस्थित कर्मचारी की उपस्थिति लगा देने का मौका न मिल पाये।

(ii) कर्मचारी के आगमन तथा प्रस्थान दोनों ही समयों को रिकॉर्ड किया जाये ताकि उसके द्वारा लगाये गये कुल समय के आधार पर मजदूरी की गणना की जा सके।

(iii) जहा तक हो सके समय लेखन का कार्य यान्त्रिक हो ताकि श्रमिकों एवं टाइम-कीपर में समय लेखन पर विवाद उतपन्न न हो पाएं

(iv) विधि सरल, अनवरत तथा तीव्रगामी होनी चाहिए ताकि कारखाने के द्वार पर श्रमिकों की लम्बी कतारें न लग जाये।

कार्य समय अंकन

(Job Time Recording)

कारखाने में श्रमिक की उपस्थिति तथा आने एवं जाने के समय का लेखा रखने के साथ-साथ यह देखना भी आवश्यक है कि श्रमिक ने कितने समय तक कारखाने में किस उपकार्य या किस विभाग में कार्य किया ताकि प्रत्येक कार्य की श्रम। लागत ज्ञात की जा सक तथा कार्यहीन समय की बर्बादी नियन्त्रित की जा सके। इस प्रकार कार्य समय अंकनका अभिप्राय श्रमिक द्वारा कारखाने के भीतर व्यतीत किये गये समय का विभिन्न कार्यों एवं उपकार्यों पर लगाये गये समय का लेखाजोखा रखने से है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(i)प्रत्येक कार्य तथा उपकार्य की पृथक् रूप से श्रम लागत ज्ञात करना;

(ii) उपरिव्ययों को विभिन्न कार्यों व उपकार्यों पर अभिभाजित करने में सुविधा;

(iii) अनुपयोगी अथवा कार्यहीन समय का निर्धारण एवं नियन्त्रणः

(iv) प्रमापित समय तथा वास्तविक समय की तुलना से श्रमिकों की कार्यक्षमता का ज्ञान एवं बोनस निर्धारण में सुविधा।

(iv) किसी कार्य पर खर्च किये गये समय का लेखा निम्नलिखित विधियों में से किसी भी एक विधि द्वारा रखा जा सकता है

(अ) दैनिक समय पत्रक (Daily Time Sheets)

(ब) साप्ताहिक समय पत्रक (Weekly Time Sheets); अथवा

(स) उपकार्य कार्ड (JobCards);

(द) कार्यानुसार कार्य पत्रक (Piece Work Card)

() दैनिक समय पत्रक-यह पत्रक सामान्यत: छोटे संस्थानों द्वारा प्रयोग में लाये जाते हैं। इस विधि के अन्तर्गत प्रत्येक श्रमिक को एक दैनिक समय पत्रक दिया जाता है जिसमें वह प्रत्येक कार्य आदेश (Work Order) अथवा उपकार्य (Job) पर व्यतीत किये गये समय का विवरण लिखता है। श्रमिक द्वारा इस पत्रक को प्रतिदिन भरा जाता है तथा फोरमैन को दे दिया जाता है। अशिक्षित श्रमिक की स्थिति में इस पत्रक को भरने में फोरमैन की सहायता ली जा सकती है। यदि श्रमिक अनेक विभागों, जॉब या प्रक्रियाओं में काम करता है तो दैनिक समय पत्रक के प्रारूप में आवश्यकतानुसार सुधार कर लिया जाता है। दैनिक समय पत्रक में भरी गयी प्रविष्टियों को सम्बन्धित फोरमैन द्वारा अपने हस्ताक्षर करके प्रमाणित किया जाता है।

दैनिक समय पत्रक का नमूना निम्नांकित प्रकार है

दैनिक समय पत्रक का नमूना 

दैनिक समय पत्रक से लाभ(i) इसका प्रयोग सरल तथा सुविधाजनक है। (ii) इस पत्रक द्वारायह सरलता से ज्ञात हो जाता है कि श्रमिक ने उस दिन कितने समय कार्य किया है तथा एक दिन में किये गये कार्य का विवरण भी जाना जा सकता है। (ii) फोरमैन द्वारा हस्ताक्षर किये जाने के कारण पत्रक में की गई प्रविष्टियों की सत्यता भी प्रमाणित हो जाती है।

दैनिक समय पत्रक से हानियाँ-(i) बड़े उद्योगों के लिए यह प्रणाली उपयुक्त नहीं है। (ii) अशिक्षित श्रमिकों की स्थिति में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता। ।

() साप्ताहिक समय पत्रक-दैनिक समय पत्रकों के रखने में बहत अधिक समय लगता है तथा कार्य भी अधिक बढ़ जाता है। अतः दैनिक समय पत्रकों के स्थान पर साप्ताहिक समय पत्रक रखे जा सकते हैं। इस विधि के अन्तर्गत श्रमिकों को एक ही कार्ड पर सम्पूर्ण सप्ताह में किये गये कार्य तथा कुल समय का लेखा करना होता है।

इस विधि के अन्तर्गत समय एवं श्रम की बचत होती है तथा एक ही स्थान पर श्रमिक के कार्यहीन समय’ का पता चल जाता है। परन्तु इस पद्धति में यह कमी है कि यदि उचित निरीक्षण न किया गया तो श्रमिक दो-तीन दिन की प्रविष्टियाँ एक साथ भी भर सकते हैं जिससे अशुद्धि होने का भय रहता है। कुछ श्रमिक तो पूरे सप्ताह की प्रविष्टियां ही सप्ताह के अन्तिम दिन भरते हैं। अत: फोरमैन को ध्यान रखना चाहिए कि श्रमिक प्रतिदिन के कार्य का लेखा उसी दिन करे ताकि किसी अशुद्धि या कपट की सम्भावना न रहे।

() उपकार्य कार्ड (Job Cards)-यह पत्रक उन संस्थानों के लिए अधिक उपयुक्त रहता है जिनमें एक साथ अनेक उपकार्य किये जाते हैं तथा प्रत्येक उपकार्य पर कई श्रमिकों द्वारा कार्य किया जाता है। समय कार्ड के आधार पर यह तुरन्त ज्ञात नहीं हो पाता कि किस उपकार्य पर कल कितने श्रम घण्टे (Labour Hours) खर्च हुए हैं और उस उपकार्य पर कुल कितनी मजदूरी खर्च हुई है। अत: प्रत्येक उपकार्य की श्रम लागत तुरन्त ज्ञात करने के लिए प्रत्येक उपकार्य का एक अलग पत्रक बनाया जाता हैउपकार्य पत्रकएक ऐसा पत्रक है जिसमें एक उपकार्य पर उससे सम्बन्धित सभी श्रमिकों द्वारा लगाये गये कुल समय का लेखा किया जाता है। इसमें एक जॉब पर कार्य करने वाले समस्त श्रमिकों में से श्रमिक अपने कार्य का लेखा करके इसे अगले श्रमिक को दे देता है। इसे श्रमिक स्वयं भरता है और सम्बन्धित उपकार्य के फोरमैन द्वारा उसे प्रमाणित किया जाता है।

इसका मुख्य लाभ यह है कि प्रत्येक उपकार्य की श्रम लागत का आसानी से पता चल जाता है। इसके अतिरिक्त इसे तैयार करने की दशा में पृथक् रूप से ‘मजदूरी संक्षिप्ति’ बनाने की आवश्यकता भी नहीं रहती। इसका प्रारूप निम्न प्रकार होता है

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(द) कार्यानुसार कार्य पत्रक (Piece Work Cardy-जिन कारखानों में श्रमिकों को मजदरी का भुगतान किये गये कार्य या उत्पादन को मात्रा के आधार पर किया जाता है, वहाँ पर श्रमिक द्वारा किये गये कार्य का लेखा रखने के लिए ‘कार्यानुसार कार्य पत्रक का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक श्रमिक को एक अलग पत्रक दे दिया जाता है जिसमें वह श्रमिक किया गया कार्य एवं लगने वाला समय अंकित कर देता है। ऐसी दशा में एक निरीक्षक के द्वारा श्रमिक के कार्य का निरीक्षण किया जाता है। यदि निरीक्षक द्वारा श्रमिक का कार्य सन्तोषजनक पाया जाता है तो वह श्रमिक के पत्रक पर हस्ताक्षर कर दता। है अन्यथा नहीं। ये पत्रक मजदूरी विभाग द्वारा एकत्रित कर लिये जाते हैं तथा देय मजदूरी की गणना करके इन पत्रकों को लागत विभाग में भेज दिया जाता है। लागत विभाग में इन पत्रकों से मजदूरी संक्षिप्ति (Wages abstract) में प्रविष्टि कर दा जाती है तथा मजदूरी पर किये गये व्यय को उपकार्य की लागत में सम्मिलित कर लिया जाता है। मजदूरी का भुगतान कार्यानुसार किये जाने के कारण कार्यहीन समय (Idle Time) का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। इसीलिए श्रमिक को भुगतान का। गई सम्पूर्ण राशि को ही उपकार्य की लागत में सम्मिलित किया जाता है।

स्पष्ट है कि कार्यानसार मजदूरी की दशा में किये गये काम की मात्रा महत्वपूर्ण है न कि लगाया काम की मात्रा महत्वपर्ण है न कि लगाया गया समय। अत: कार्यानुसार मजदूरी पद्धति की दशा में श्रमिक द्वारा व्यतीत किये गये समय का लेखा रखना आवश्यक नहीं है, फिर भी निम्न कारणों से ऐसे श्रमिकों के समय का लेखा रखना आवश्यक माना जाता है

(1) श्रमिकों में अनुशासन बनाये रखने के लिए समय का लेखा आवश्यक है। इससे श्रमिक निर्धारित समय पर आता है। एवं निर्धारित समय पर ही कारखाना छोड़ता है।

(ii)श्रमिकों के अनशासित रहने से उत्पादन कार्य में गति बनी रहती है।

(iii) उपरिव्ययों का अभिभाजन करने के लिए प्रत्येक उपकार्य में श्रमिक द्वारा लगाये गये समय की जानकारी आवश्यक है क्योंकि उपरिव्ययों को प्रायः समयानुसार ही विभिन्न कार्यों पर वितरित किया जाता है। ।

(iv) समय के आधार पर मजदूरी पाने वाले एवं कार्य के आधार पर मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की तुलना। हेतु कार्यानुसार मजदूरी पाने वाले श्रमिकों द्वारा व्यतीत किये गये समय की जानकारी आवश्यक है।

(v) न्यूनतम मजदूरी निर्धारण की दशा में समय का लेखा रखना आवश्यक है।

(vi) यदि कार्यानुसार मजदूरी पद्धति के साथ प्रीमियम या बोनस देने की योजना को भी लागू करना हो तो बोनस या प्रीमियम की गणना हेतु श्रमिकों द्वारा लगाये गये समय का लेखा रखना आवश्यक है क्योंकि बोनस की गणना बचाये गये समय के आधार पर ही की जा सकती है।

इसका नमूना नीचे दिया जा रहा है

4 . मजदूरी का निर्धारण एवं भुगतान ( Computation and Payment of wages)

यह कार्य मजदूरी विभाग द्धारा किया जाता है । मजदूरी का निर्धारण श्रमिकों के उपस्थिति पत्र, उपकार्य पत्रक आदि की सहायता से सेवा शर्तों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है । इन पत्रकों के आधार पर मजदूरी विभाग द्धारा प्रत्येक श्रमिक की कुल मजदूरी , कटौतियाँ तथा शुद्ध देय राशि की गणना करने के लिए जो सूची तैयार की जाती है उसे मजदूरी सूची कहते हैं ।

ये सूचियाँ साप्ताहिक, पाक्षिक अथवा मासिक आधार पर बनाई जाती है।  सामान्यतः सकल मजदूरी में से निम्न मदों में अन्तर्गत कटौतियाँ की जाती हैं

(i) अनुपस्थिति के कारण दण्ड या कटौती

, (ii) मकान किराया एवं अन्य प्रदत्त सुविधाओं के कारण कटौती,

(iii) अग्रिम राशि की वसूली के कारण कटौती,

(iv) प्राविडेण्ट फण्ड एवं जीवन बीमा पॉलिसी तथा कर्मचारी राज्य बीमा अनुदान के अन्तर्गत कटौती,

(v) अन्य कोई कटौती।

मजदूरी सूची तयार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इस सची को बनाने वाले व इसका जाच करने वाले अलग-अलग हों ताकि जालसाजी या अशुद्धि होने की सम्भावना न रहे।

मजदूर सूची तैयार हो जाने पर प्रत्येक श्रमिक को देय मजदरी की पर्चियाँ तैयार कर ली जाती है। श्रमिकों से का जाती है कि इस पर्ची की प्रविष्टियों या गणनाओं के सम्बन्ध में यदि कोई आपत्ति हो तो इसका शिकायत तुरन्त करें तथा मजदूरी का भुगतान प्राप्त करते समय राशि का मिलान इस पर्ची से कर लिया जाए।

शुद्ध देय मजदूरी निर्धारित हो जाने के बाद उसके भगतान करने की व्यवस्था की जाती है। जितनी राशि का भुगतान किया जाता है उतनी  ही  रकम रोकडं द्वारा बैंक से निकाल ली जाती है। बैंक से रकम निकालने के बाद श्रमिकों पूरा का राशि का सविधापर्वक वितरण करने के लिये प्रत्येक श्रमिक को देय मजदूरी एक लिफाफै मैे मजदूरी  साथ रख दी जाती है। इन लिफाफों को उपस्थिति रजिस्टर में क्रम में रख लेते हैं। इसके बाद निर्धारित तिथि एवं समय पर मजदूरी का वितरण किया जाता है। श्रमिक को भगतान करते समय श्रमिक के हस्ताक्षर या अँगूठे की निशानी करवायी जाती है तथा सम्बन्धित फोरमैन से उसकी गवाही करवा ली जाती है ताकि गलत व्यक्ति को भुगतान न हो सके।

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(5) श्रम लागत से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण पहलू

(Other Important Aspects Related to Labour Cost)

 (1) विशेष प्रकार के श्रमिकों की लागतों का विश्लेषण (Cost Analysis of Specific Type of Workers)-कुछ विशेष प्रकार के श्रमिक कारखाने में स्थायी रूप से काम नहीं करते हैं अथवा उनकी लागतों का लेखा विशेष प्रकार से किया। जाता है। सामान्यतया ऐसे श्रमिक निम्नलिखित हो सकते हैं

() प्रशिक्षण हेत आये श्रमिकों की मजदूरी (Wages of Apprentice Workers) सामान्यतया ऐसे श्रमिकों को सामान्य मजदूरी दरों से कम मजदूरी दरों पर भुगतान किया जाता है एवं इनकी उत्पादन क्षमता भी कम होती है। ऐसी दशा में इनको दी गयी मजदूरी सामान्य मजदूरी की तरह उस उप-कार्य में लिख दी जाती है जिस पर वे काम कर रहे हैं। यदि इन श्रमिकों द्वारा काफी कम उत्पादन हो और सामग्री का क्षय भी अधिक हो तो सामान्य दशाओं में होने वाली लागत को ही उप-कार्य लागत में शामिल करेंगे। अतिरिक्त राशि उपरिव्यय मानेगे। यदि ये कोई उत्पादन न करें तो दी गयी सम्पूर्ण मजदूरी को उपरिव्यय मानेंगे। इनकी मजदूरी का 50% (या प्रतिशत जो दिया गया हो) उपरिव्यय व 50% प्रत्यक्ष लागत माना जा सकता है।

() आकस्मिक श्रमिक (Casual Workers)—ऐसे श्रमिक कारखाने की नियमित सेवा में नहीं होते हैं। कार्य का अधिक भार होने पर या अधिक श्रमिकों के अनुपस्थित रहने पर इन्हें काम पर लगाया जाता है। ऐसे श्रमिकों को दिये जाने वाले पारिश्रमिक का लेखा उसी प्रकार करते हैं जैसे कि उनके स्थान पर नियमित कर्मचारियों के कार्य करने पर दी जाने वाली मजदूरी का लेखा होता है। इन्हें ‘बदली श्रमिक’ भी कहते हैं।

आकस्मिक श्रमिकों के सम्बन्ध में भी समुचित एवं प्रभावपूर्ण नियन्त्रण की आवश्यकता होती है ताकि किसी भी प्रकार के कपटपूर्ण व्यवहार को रोका जा सके। लापरवाही की दशा में टाइम-कीपर या फोरमैन द्वारा श्रमिकों के झूठे नाम दिखाकर पारिश्रमिक का गबन किया जा सकता है।

() बाहरी श्रमिक (Out Worker)-बाहरी श्रमिकों की श्रेणी में निम्नलिखित दो प्रकार के श्रमिकों को शामिल किया जाता है

(i) वे श्रमिक जो फैक्टरी से सामग्री ले जाते हैं तथा अपने निवास स्थान पर उससे माल तैयार करते हैं। इसके लिए वह अपने यन्त्रों का उपयोग करते हैं। उदाहरणार्थ, बीड़ी बनाने वाले, सूत कातने वाले, थैली एवं डिब्बे बनाने वाले श्रमिक। इन श्रमिकों के लिए समय पत्रक नहीं रखे जाते क्योंकि उनके द्वारा किये गये उत्पादन की मात्रा के अनुसार ही मजदूरी का भुगतान किया जाता है। अतः इनके सम्बन्ध में कार्यानुसार कार्य पत्र (Piece work card) में लेखा किया जाता है। ऐसे श्रमिकों में प्राय: दूषित किस्म का माल बनाने की प्रवृत्ति होती है। अत: उत्पादित वस्तु की किस्म पर समुचित ध्यान देना आवश्यक है। इसलिए उत्पादित माल की किस्म पर नियन्त्रण हेतु यह पहले ही स्पष्ट कर देना चाहिए कि दूषित माल किस सीमा तक स्वीकृत होगा तथा दूषित उत्पादन के लिए किस दर से मजदूरी दी जायेगी।

(ii)  श्रमिक जो संस्था की ओर से ग्राहकों के घर जाकर काम करते हैं, जैसे नल व बिजली की फिटिंग, टी० वी०, आदि की मरम्मत का कार्य। ऐसे श्रमिकों द्वारा समय बर्बाद करने का भय अधिक रहता है। इसलिए इन श्रमिकों के कार्य भावपर्ण नियन्त्रण आवश्यक है। अत: ऐसे श्रमिकों को बाहर कार्य का समय पत्रक(Out work time sheet) दे दिया जाता है जिसमें लेखा करके श्रमिक फोरमैन से प्रमाणित करवा लेता है।

(ii) पारिश्रमिक सहित छुट्टियाँ (Holidays or Leave with Pay)—प्राय: महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वो तथा अन्य त्यौहारों। – श्रमिकों को वेतन सहित कुछ छुट्टियाँ दी जाती हैं। इसी प्रकार से प्रति सप्ताह एक दिन का वेतन सहित अवकाश दिया। या है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक श्रमिक को कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत भी कुछ अवकाश वेतन सहित पाने का अधिकार है. जैसे, आकस्मिक अवकाश (Casual leave), चिकित्सा अवकाश (Medical leave), अजित अवकाश (Earned 160) आदि। यद्यपि इस प्रकार की छुट्टियों एवं अवकाश का वेतन अनुत्पादक होता है क्योकि इस अवधि में श्रमिक ने कोई उत्पादन नहीं किया है, तो भी यह व्यय उत्पादन विभाग पर ही चार्ज किया जाना चाहिए। किन्तु इस प्रकार के पारिश्रमिक को प्रत्यक्ष श्रम का अंश नहीं माना जाता, बल्कि सम्पूर्ण वर्ष की छुट्टियों के कुल वेतन को उत्पादन उपरिव्यय मानकर लागत इकाइयों व लागत केन्द्रों पर आबंटित किया जाना चाहिए।

Labour Cost Control Procedure

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 Illustration 1.

निम्नलिखित समंकों से तृतीय श्रेणी कर्मचारी के लिए प्रमापित श्रम घण्टा दर की गणना कीजिएCalculate the standard labour hour rate for workman of Grade III from the following data:

Basic Pay                                                                          200Rs P.M.

D.A.                                                                                    150rs P.M.

Fringe Benefits                                                               100rs P.M.

प्रतिवर्ष कार्यशील दिनों की संख्या (No. of working days per year) = 300

अवकाश नियम (Leaverules):

30 days P. L. with full pay

20 days S. L. with half pay

सामान्यतः चिकित्सा अवकाश (S.L.) का उपयोग कर लिया जाता है। यदि वर्ष के दौरान कोई चिकित्सा अवकाश (S.L.) उपयोग नहीं किया जाता है तो प्रति घण्टा श्रम दर क्या होगी?

Usually, sick leave is availed of. What would be the labour cost per hour if no sick leave is availed of

during the year.

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(III) श्रम निकासी/श्रम फेर/श्रम आवर्त (Labour Turnover) सामान्यत: प्रत्येक कारखाने या औद्योगिक उपक्रम की श्रम-शक्ति में परिवर्तन होते ही रहते हैं। कुछ श्रमिक स्वेच्छा से संस्था को छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं तो कुछ को नियोक्ता भी निकाल देता है। इस प्रकार जाने वाले श्रमिकों के स्थान पर संस्था को नये श्रमिक नियुक्त करने पड़ते हैं। श्रम-शक्ति में होने वाले इस परिवर्तन को श्रम निकासी दर कहते हैं।।

एक निर्धारित अवधि में किसी कारखाने के कल श्रमिकों की तुलना में निकाले गये श्रमिकों अथवा छोड़कर जाने वाले श्रमिकों का अनुपात, श्रम निकासी दर कहलाता है।

श्रम निकासी के कारण (Causes of Labour Turnover)-श्रम निकासी के कारणों को नियन्त्रण के दृष्टिकोण से दो। भागों में बाँटा जा सकता है

(i) नियन्त्रणीय कारण/परिहार्य कारण (Avoidable Causes)-श्रम निकासी के ऐसे कारण जिन पर नियन्त्रण करके। श्रम निकासी दर में कमी की जा सकती है। जैसे, कार्य पारिश्रमिक की कमी, पदोन्नति के अवसरों का अभाव, नौकरी की सुरक्षा न होना, प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी, कारखाने में अस्वस्थ वातावरण, प्रबन्धकों, निरीक्षकों एवं सहयोगी कर्मचारियों में। अच्छे सम्बन्ध का अभाव, नियोक्ता या अधिकारियों द्वारा अनुचित व्यवहार, आदि। ।

(ii) अनियन्त्रणीय कारण/अपरिहार्य कारण (Unavoidable Causes)-ऐसे कारण जिन पर कोई नियन्त्रण नहीं। किया जा सकता; जैसे, श्रमिक की मृत्यु, अस्वस्थ होना, श्रमिक को श्रेष्ठ कार्य मिल जाना, अपराधपूर्ण कार्य आदि के कारण नौकरी से हटाया जाना, महिला श्रमिकों द्वारा विवाह के पश्चात् पद त्याग आदि।

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श्रम निकासी के माप की विधियाँ (Methods of Measurement of Labour Turnover Rate) श्रम निकासी दर का माप करने की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं

(1) पृथक्करण पद्धति (Separation Method) इस पद्धति के अन्तर्गत एक विशेष अवधि में कारखाने से अलग हुए श्रमिकों का उसी अवधि के औसत श्रमिकों के साथ अनुपात देखा जाता है। औसत श्रमिकों से अभिप्राय सम्बन्धित अवधि के प्रारम्भ एवं अन्त में श्रमिकों की संख्या के योग के आधे से है। संक्षेप में, इस पद्धति से श्रम निकासी दर को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-

यदि उपर्युक्त सूत्र में 100 से गुणा कर दिया जाये तो श्रम निकासी दर प्रतिशत के रूप में ज्ञात हो जाती है।

उदाहरणकिसी औद्योगिक उपक्रम में वर्ष के प्रारम्भ में 1,500 श्रमिक तथा वर्ष के अन्त में 2,500 श्रमिक कार्य करते थे। वर्ष में 38 श्रमिक कार्य से पृथक कर दिये गये और 42 श्रमिकों ने स्वेच्छा से संस्था को त्याग दिया। पृथक्कीकरण पद्धति से श्रम निकासी दर ज्ञात कीजिए।

 Solution:

(2) प्रतिस्थापन दर विधि (Replacement Method) इस विधि को विशुद्ध श्रम निकासी दर (Net Labour Turnover Method) विधि भी कहते हैं। इस विधि में भी सर्वप्रथम उपर्युक्त वर्णित आधार पर किसी अवधि विशेष के श्रमिकों की औसत संख्या ज्ञात कर ली जाती है। इसके बाद उस अवधि में प्रतिस्थापित श्रमिकों (नई भर्ती) की संख्या में औसत श्रमिकों की संख्या का भाग कर दिया जाता है। यह बात सदैव ध्यान रखें कि इस पद्धति के अन्तर्गत प्रतिस्थापित श्रमिकों में केवल उन्हीं श्रमिकों को गिना जाता है जिन्हें छोड़कर जाने वाले श्रमिकों के कारण रिक्त हुए पदों पर भर्ती किया गया है। संस्था के विस्तार (expansion) या अन्य किसी वजह से नई भर्ती किये गये श्रमिकों को प्रतिस्थापित श्रमिकों की संख्या में शामिल नहीं करते हैं। इस पद्धति में जाने वाले श्रमिकों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। संक्षेप में, विशुद्ध श्रम निकासी दर अग्रलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात की जाती है-

उदाहरण-किसी संस्था में 400 श्रमिक अवधि के प्रारम्भ में तथा 600 श्रमिक अवधि के अन्त में नियुक्त थे। इस अवधि में 80 श्रमिक पृथक् हुए एवं 60 नये श्रमिकों की नियुक्ति हई। प्रतिस्थापन दर विधि से श्रम निकासी दर ज्ञात कीजिये।

(3) आवागमन या स्त्राव पद्धति (Flux Method) इस विधि के अन्तर्गत किसी अवधि विशेष में पथक हए श्रमिकों तथा प्रतिस्थापित श्रमिकों के योग में उस अवधि में लगे हुए श्रमिकों की औसत संख्या से भाग देकर श्रम निकासी दर की गणना की जाती हैं। इस प्रकार यह पद्धति उपरोक्त दोनों पद्धतियों का सम्मिश्रण है। संक्षेप में, इस पद्धति के अन्तर्गत श्रम । निकासी दर की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

उदाहरण-किसी संस्था में 500 श्रमिक अवधि के प्रारम्भ में और 700 श्रमिक अवधि के अन्त में नियुक्त थे। अवधि में 35 श्रमिक पृथक् हुए एवं 55 श्रमिकों की नियुक्ति हुई। आवागमन पद्धति के द्वारा श्रम निकासी दर ज्ञात कीजिए।

Labour Cost Control Procedure

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विभिन्न विधियों द्वारा ज्ञात श्रम निकासी दरों में परस्पर सम्बन्ध (Inter-relationship among Rate of Labour Turnover Computed by Different Methods)-पृथक्करण पद्धति की दर एवं प्रतिस्थापन पद्धति की दर का योग आवागमन पद्धति की दर के बराबर होता है। सूत्र रूप में-

Flux Rate = Separation Rate + Replacement Rate

4) श्रम निकासी की समानार्थी वार्षिक दर (Equivalent Annual Rate of Labour Turnover) श्रम आवत दर मासिक, तिमाही अथवा किसी भी अवधि हेतु ज्ञात की जा सकती है। इस प्रकार परिकलित की गई श्रम आवर्त दर को वार्षिक दर से सम्बन्धित करने पर समानार्थी वार्षिक दर कहा जाता है। संक्षेप में श्रम निकासी की समानार्थी वार्षिक दर ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

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यदि वार्षिक श्रम आवर्त दर की गणना की गई हो एवं हमें उसके समानार्थी मासिक श्रम आवर्त दर की गणना करनी हो, तो समानार्थी मासिक श्रम आवर्त दर की गणना निम्नलिखित प्रकार की जायेगी Equivalent Monthly Labour Turnover Rate = Annual L.T.R

12 month

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श्रम निकासी लागत (Labour Turnover Cost)–श्रम निकासी की लागत दो प्रकार की होती हैं

(i)निषेधात्मक या सुरक्षात्मक लागतें (Preventive Costs) एवं

(ii) प्रतिस्थापन लागते (Replacement Costs)

निषेधात्मक या सुरक्षात्मक लागतें (Preventive Costs) वह होती हैं जिन्हें अत्यधिक श्रमिक परिवर्तन रोकने के लिए जाता है। इन लागतों का उद्देश्य श्रमिकों को सन्तष्ट रखना है ताकि वह फैक्टरी छोड़कर अन्यत्र न जायें। इस प्रकार की लागतों में कार्य पाती सम्बन्धी श्रेष्ठ सविधाओं को प्रदान करने की लागत श्रमिकों को बोनस, भत्ते आदि मौद्रिक लाभ एवं पदोन्नति । चिकित्सा तथा मनोरंजन की सुविधाएं प्रदान करने का मनोंरजन की सविधाएँ प्रदान करने की लागत तथा अन्य कल्याण सविधाएँ प्रदान करने की लागतों आदि को शामिल किया जाता है। इन्हें उपरिव्यय (Overhead) मानकर विभिन्न में अनुभाजन(Overhead) (apportionment) कर दिया जाता है।

Labour Cost Control Procedure

(ii) प्रतिस्थापन लागतें (Replacement Costs) श्रमिकों के प्रतिस्थापन से सबन्धित  हार से , नय श्रमिकों की भर्ती की लागत नये श्रमिकों के प्रशिक्षण का व्यय. नये श्रमिकों को अकामम रूकावट के कारण होने वाली उत्पादन की हानि आदि। इन्हें असामान्य लागत मानते हए लागत लाभ-हाल खाते से चार्ज कर लिया जाता है।

श्रम निकासी की लागतों का लेखांकन /Aaunting Treatment of Cost of Labour Turnover)-श्रम निकासी लागता का उपरिव्यय मानकर विभिन्न विभागों में श्रमिकों की संख्या के आधार पर वितरित कर दना चाहिए। हा तक प्रतिस्थापन लागतों का प्रश्न है. यदि ये लागतें किसी विभाग की गलती के कारण उत्पन्न हुई हैं तो ये लागते

का प्रत्यक्ष रूप से चार्ज कर देनी चाहिएँ। परन्त यदि श्रम आवर्त प्रबन्ध की दोषपर्ण नीतियों के कारण को आतस्थापन लागतों को विभिन्न विभागों में श्रमिकों की संख्या के आधार पर वितरित कर दिया जाना चाहिए।

Labour Cost Control Procedure

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निकासी का महत्व व प्रभाव (Significance and Effects of Labour Turnover) कुछ सीमा तक श्रम आवर्त ल स्वाभाविक है वरन् एक दृष्टि से स्वागत योग्य भी है क्योंकि इससे संस्था में नये रक्त व नये विचारों का आगमन । परन्तु बहुत अधिक श्रम निकासी चिन्ता का विषय बन जाती है। वस्तुत: श्रम निकासी की दर जितनी कम होगी उतना। अच्छा रहता है। यदि श्रम निकासी की दर अधिक हो तो यह श्रम में अस्थिरता का सूचक है। इससे श्रम कुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन लागत में वद्धि होती है। ऐसा निम्नलिखित कारणों से होता है

1.श्रम आवर्त से उत्पादन में बार-बार रुकावट आती है. इससे उत्पादन कम होता है।

  1. अनुभवा श्रमिकों के चले जाने से नये तथा बिना अनभव वाले श्रमिक उनके स्थान पर आ जाते हैं। नये श्रमिकों की भर्ती एवं उनके प्रशिक्षण पर काफी समय व धन का व्यय होता है। ।

3.नये श्रमिक कार्य सीखने में दोषपूर्ण काम करते हैं तथा ट-फट भी अधिक होती है। 4.नये श्रमिक कभी-कभी यान्त्रिक दर्घटनाओं का शिकार होकर स्वयं को तथा मशीनों को हानि पहुंचाते 5.नये श्रमिकों द्वारा औजारों व मशीनों का ठीक ढंग से प्रयोग न करने के कारण भी क्षति होती है।

स्पष्ट है कि श्रम आवर्त की दर अधिक होने से उत्पादन लागत बढ़ती है जिसके फलस्वरूप लाभ कम होता है। श्रम आवर्त की ऊंची दर प्रबन्धकों के लिए चिन्ता का विषय होती है क्योकि यह व्यापार के लिए काफी महंगी पड़ती है। श्रम आवर्त की अधिकता को कम करने का हर सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए।

श्रम निकासी का नियन्त्रण एवं कम करने के उपाय (Control and Reduction of Labour Turnover)-श्रम निकासी को रोकने व कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिएँ

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1.कुशल कर्मचारी प्रशासन तथा अच्छे प्रबन्ध-श्रमिक सम्बन्धों का निर्माण। 2. उपयुक्त व सन्तोषजनक पारिश्रमिक नीति का निर्माण। 3.प्रेरणादायक मजदूरी भुगतान की पद्धतियों को लागू करना। 4.श्रम कल्याण कार्यों में सुधार करना। 5. श्रमिकों के प्रशिक्षण की समुचित सुविधाएँ उपलब्ध कराना। 6. पदोन्नति एवं स्थानान्तरण की अच्छी नीति तैयार करना। 7.श्रमिकों की प्रबन्ध में भागीदारी। 8. श्रमिकों की कठिनाईयों/ समस्याओं के शीघ्र निराकरण करने की व्यवस्था करना।

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chetansati

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