BCom 2nd Year Procedure Assessment Return Income Permanent Account Study Material Notes In Hindi

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(II) करनिर्धारण के प्रकार

Table of Contents

(Types of Assessment)

कर-निर्धारण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

1 स्वयं कर-निर्धारण (Self Assessment) धारा 140A

2. नियमित कर-निर्धारण (Regular Assessment) धारा 143

3. सर्वोत्तम कर-निर्धारण (Best Judgement) धारा 144

4. पुनः कर-निर्धारण (Re Assessment) धारा 147

5. स्वयं करनिर्धारण (Self Assessment)-धारा 140A के प्रावधानों के अनुसार, स्वयं कर-निर्धारण से आशय करदाता द्वारा अपनी आय का विवरण दाखिल करते समय स्वयं कर-योग्य आय की गणना करने से है। इस सम्बन्ध में मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

(i) यदि किसी करदाता की कुल आय, करयोग्य सीमा से अधिक है और इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन में आय-कर विवरणी निर्धारित प्रारूप में जमा कर रहा है तो आय-कर विवरणी को आय-कर कार्यालय में दाखिल करने से पूर्व विवरणी के आधार पर देय कर (अग्रिम कर एवं स्रोत पर कर के समायोजन के पश्चात् शेष राशि) को सरकारी खाते में जमा कराना पड़ता है एवं कर जमा करने के प्रमाण को भी विवरणी के साथ संलग्न करना होगा। यदि विवरणी दाखिल करने में विलम्ब हो गया है तो विलम्ब का ब्याज भी जमा करके प्रमाण विवरणी के साथ संलग्न किया जायेगा।

(ii) यदि करदाता द्वारा जमा की गई राशि उसके द्वारा देय आय-कर एवं ब्याज की राशि से कम है. तो जमा राशि सर्वप्रथम ब्याज के भुगतान के लिए समायोजित की जायेगी और शेष राशि को आय-कर के भुगतान के लिए समायोजित किया जायेगा। धारा 153A के प्रावधान भी लागू होंगे।

(iii) धारा 234A के अन्तर्गत देय ब्याज की गणना आय विवरणी में घोषित कुल आय पर वर्णित उस कर की राशि पर की जायेगी जिसमें से स्रोत पर काटा गया आय-कर एवं अग्रिम जमा आय-कर घटा दिया गया है।

(iv) धारा 234B के अन्तर्गत देय ब्याज की गणना निर्धारित आय-कर की राशि पर अथवा, जैसी भी स्थिति हो, उस राशि पर जो निर्धारित आय-कर में से अग्रिम आय-कर घटाने के बाद बचती है

निर्धारित कर‘ (Assessed Tax) से आशय आय-विवरणी में घोषित कुल आय पर वर्णित कर से है जिसमें उस आय में से स्रोत पर काटा गया कर घटा दिया जायेगा जो उक्त कुल आय में सम्मिलित कर ली गई है।

(v) यदि करदाता इस धारा के अन्तर्गत देय सम्पूर्ण आय-कर अथवा उसके किसी भाग को अथवा ब्याज को अथवा दोनों को चुकाने में त्रुटि करता है तो ऐसा करदाता ‘चूक में करदाता’ (Assessee in default) माना जायेगा तथा तदनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही की जायेगी। इस प्रकार के कर-निर्धारण को स्वयं कर-निर्धारण इसीलिए कहा जाता है कि इसमें करदाता स्वयं अपनी आमदनी पर कर का अनुमान लगाकर कर चुकाता है।

इस प्रकार के कर-निर्धारण में जब करदाता अपनी आय का विवरण निर्धारित फॉर्म में दाखिल करता है, तो साथ में रिटर्न प्राप्ति रसीद (Acknowledgement) की दो प्रतियाँ प्रस्तुत करता है। इसमें करदाता का संक्षिप्त विवरण विभिन्न शीर्षका की। कर-याग्य आय, सकल कुल आय, कटौतियाँ, देय कर, छुटे आदि की संक्षिप्त जानकारी दी जाती है, एक प्रति आय-कर विभाग। अपने पास रख लेता है एवं एक प्रति पर आय-कर विभाग की प्राप्ति की मुहर लगाकर उस पर हस्ताक्षर करके करदाता को लौटा देता है। रिटर्न प्राप्ति की रसीद ही एक प्रकार से कर-निर्धारण आदेश होता है।

2. नियमित करनिर्धारण (Regular Assessment)-धारा 143 के अन्तर्गत किए गए कर-निर्धारण को नियमित कर-निर्धारण कहते हैं। यह कर-निर्धारण दो प्रकार का हो सकता है

(अ) आय की विवरणी के आधार पर कर-निर्धारण (Summary Assessment on the basis of return of income),

(ब) सबूतों के आधार पर कर-निर्धारण (Scrutiny assessment on the basis of evidence)||

() आय की विवरणी के आधार पर करनिर्धारण (Summary Assessment on the basis of return of Income) [धारा 143(1)]-यदि करदाता ने आय की विवरणी धारा 139(1) के अन्तर्गत अथवा 142(1) में दिए गए नोटिस के अनुपालन में प्रस्तुत की है, तो कर-निर्धारण अधिकारी उक्त आय के विवरण के आधार पर करदाता को बिना बुलाए कर-निधारण कर सकता है, इसे संक्षिप्त कर-निर्धारण (Summary Assessment) कहते हैं। इस प्रकार के कर-निर्धारण से सम्बन्धित मुख्य प्रावधान निम्नलिखित प्रकार हैं

(i) ऐसा कर निर्धारण होने के बाद यदि करदाता पर कर या ब्याज की कोई राशि बकाया निकलती है, तो उसे माँग का नोटिस दिया जाएगा। ऐसी सूचना सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद 1 वर्ष के अन्दर दी जानी चाहिए।

(ii) यदि ऐसे कर-निर्धारण के फलस्वरूप कोई वापसी (Refund) निकलती है, तो ऐसी राशि करदाता को वापिस की जाएगी।

(iii) यदि करदाता द्वारा प्रस्तुत की गयी आय-कर विवरणी के आधार पर न तो कोई कर या ब्याज बाकी निकलता है और न कोई वापसी निकलती है, तो ऐसी दशा में करदाता को कोई सूचना नहीं दी जाएगी।  आय-कर विवरणी की प्राप्ति रसीद (acknowledgement) ही सूचना मानी जाएगी, अर्थात् प्रस्तुत की गयी विवरणी के आधार पर कर-निर्धारण हो गया है।

विशेषआय-कर अधिनियम, 1961 में 1 अप्रैल, 2009 से हुए संशोधन के परिणामस्वरूप धारा 143(1) के अन्तर्गत कर-निर्धारण अधिकारी आय के विवरण में निम्नलिखित समायोजन कर सकता है

Procedure Assessment Return Income

1 आय-कर विवरणी में कोई अंकगणितीय अशुद्धि,

2. कोई अशुद्ध दावा जो आय-कर विवरणी में प्रस्तुत सूचनाओं से ही स्पष्ट है जैसे कोई कटौती निर्धारित सीमा से ज्यादा राशि की दी गयी है।

नोटउपरोक्त सुधार इलैक्ट्रोनिक माध्यम से प्रस्तुत विवरणी सॉफ्टवेयर की सहायता से ही किये जायेंगे एवं इसमें कोई भी मानवीय हस्तक्षेप नहीं होगा।

() सबूतों के आधार पर नियमित करनिर्धारण (Regular or Scrutiny Assessment on the Basis of Evidence) [धारा 143(3)]-स्वयं कर-निर्धारण के अन्तर्गत करदाताओं से प्राप्त हुई आय-कर विवरणियों में से आय-कर विभाग द्वारा कुछ प्रतिशत रिटर्न फॉर्म प्रतिवर्ष विशेष जाँच-पड़ताल के लिए आकस्मिक रूप से निकाल लिये जाते हैं। सामान्यतया प्रत्यक्ष करों के केन्द्रीय बोर्ड (CBDT) के द्वारा निर्धारित मापदण्डों के आधार पर जाँच के लिए कुछ रिटर्न फॉर्म निकाले जाते हैं। इन आय-विवरणियों की गहन जांच करने के बाद यदि कर-निर्धारण अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहँचता है कि आय के विवरण (Return of Income) में करदाता ने आय कम बतायी है या हानि अधिक दिखायी है या कर कम चुकाया है, तो वह करदाता को धारा 143(2) के अन्तर्गत नोटिस देगा कि वह जमा किये गये आय के विवरण के पक्ष में सबत प्रस्तत करे या विशिष्ट तिथि को कार्यालय में उपस्थित होकर आय-विवरणी की सत्यता को प्रमाणित करे। करदाता को नोटिस दिये जाने के सम्बन्ध में निम्नलिखित । बिन्दुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है

(i) 1 अप्रैल, 2009 से यह प्रावधान किया गया है कि करदाता को यह नोटिस जिस वित्तीय वर्ष में आय का विवरण दाखिल किया गया है उस वित्तीय वर्ष के समाप्त होने से 6 माह के भीतर ही दिया जा सकता है अर्थात् आय-विवरणी । दाखिल किये गये वित्तीय वर्ष के समाप्त होने पर आगामी 30 सितम्बर तक ही नोटिस दिया जा सकता है उसके बाद नहीं। इस प्रकार कर-निर्धारण वर्ष/वित्तीय वर्ष 2017-18 में जमा की गई आय-कर विवरणी के सम्बन्ध में 30 सितम्बर 2018 तक ही नोटिस दिया जा सकता है, चाहे विवरणी किसी भी तिथि को एवं किसी भी माह में जमा की गई हो।

(ii) ऐसा नोटिस तभी दिया जा सकता है, जबकि करदाता ने अपनी ओर से आय-विवरणी दाखिल की हो

(iii) कर-निर्धारण अधिकारी कर-निर्धारण करने के लिए करदाता को निम्नलिखित कार्य करने के लिए नोटिस दे सकता है(अ) यदि ऐसे व्यक्ति ने सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति से पूर्व आय का विवरण दाखिल नहीं किया है तो आय का विवरण निर्धारित फॉर्म में दाखिल करने के लिए; अथवा

() ऐसे लेखे अथवा प्रपत्र प्रस्तुत करने के लिए जो कर-निर्धारण अधिकारी कर-निर्धारण के लिए आवश्यक समझता है; अथवा

() करनिर्धारण अधिकारी द्वारा विशिष्ट बिन्दुओं पर मांगी गई सूचना लिखित में निर्धारित ढंग से सत्यापित करके दाखिल कर दे; अथवा

() सम्पत्तियों एवं दायित्वों का विवरण प्रस्तुत करने के लिए, परन्तु इसके लिए कर-निर्धारण अधिकारी को नोटिस देने से पूर्व संयुक्त कमिश्नर की पूर्व अनुमति लेनी होगी।

नोटिस के उत्तर में प्राप्त सबूतों के बाद कर-निर्धारण-धारा 143(2) के अन्तर्गत करदाता को दिए गए नोटिस के उत्तर में। करदाता द्वारा प्रस्तुत किए गए सबूतों एवं प्रमाणों के आधार पर तथा अन्य एकत्रित सम्बन्धित सामग्री को ध्यान में रखकर कर-निरिण अधिकारी करदाता की कुल आय अथवा हानि का निर्धारण करेगा तथा इसके आधार पर करदाता द्वारा देय कर। अथवा उसे वापिस चुकाये जाने वाले कर की राशि का निर्धारण करेगा एवं लिखित में कर-निर्धारण का आदेश देगा।

3. सर्वोत्तम निर्णय करनिर्धारण अथवा एक पक्षीय करनिर्धारण (Best Judgement Assessment/Ex-Parte Assessment) [धारा 144]-कर-निर्धारण के दौरान जब कर-निर्धारण अधिकारी विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने के लिए करदाता को नोटिस देता है और यदि करदाता नोटिस में मांगी गई जानकारी कर-निर्धारण अधिकारी को प्रदान नहीं करता है तो उस दशा में तथा अन्य कुछ दशाओं में कर-निर्धारण अधिकारी अपने विवेक के आधार पर करदाता का कर-निर्धारण कर देता है तो उसे ‘सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ कहते हैं। अत: जब करदाता कर-निर्धारण के सम्बन्ध में कर-निर्धारण अधिकारी को सहयोग नहीं करता तो कर-निर्धारण अधिकारी करदाता की आय से सम्बन्धित उपलब्ध सामग्री, तथ्यों एवं सूचनाओं के आधार पर अपने सर्वोत्तम विवेक से करदाता को हानि पहुँचाये बिना जो कर-निर्धारण करता है, उसे ‘सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ कहते हैं। चूँकि यह कर-निर्धारण अकेले कर-निर्धारण अधिकारी के निर्णय, पूर्ण विवेक एवं अनुमान पर आधारित होता है, इसलिए इसे ‘एक पक्षीय कर-निर्धारण’ (Ex-Parte Assessment) भी कहा जाता है। ऐसा कर-निर्धारण करदाता तथा राजस्व के हितों को ध्यान में रखते हुए सबसे अधिक उत्तम एवं उचित माना जाता है।

सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण करने से पूर्व सम्बन्धित कर-निर्धारण अधिकारी के द्वारा करदाता को इस आशय का नोटिस दिया जायेगा कि करदाता यह बताए कि क्यों न उस पर सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण कर दिया जाये ? यदि करदाता इस नोटिस का संतोषजनक उत्तर नहीं देता तो उसके विरुद्ध ऐसा कर-निर्धारण कर दिया जाता है।

Procedure Assessment Return Income

सर्वोत्तम निर्णय करनिर्धारण दो प्रकार का होता है-(i) अनिवार्य (Compulsory), तथा (ii) विवेकीय (Discretionary)

(i) अनिवार्य सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण (Compulsory Best Judgement Assessment)-कर-निर्धारण अधिकारी निम्नलिखित में से किसी भी दशा में अनिवार्य सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण कर सकता है

() यदि करदाता अपनी आय का स्वैच्छिक अथवा नोटिस की प्राप्ति के बाद भी विवरण दाखिल नहीं करता है; अथवा

() यदि करदाता नोटिस के अनुसार लेखे अथवा अन्य प्रपत्र अथवा मांगी गयी सूचनाएँ प्रस्तुत नहीं करता है अथवा अपने लेखों का अंकेक्षण नहीं कराता है; अथवा

() यदि करदाता नोटिस मिलने पर सुनवाई के लिए कार्यालय में उपस्थित नहीं होता अथवा आय के विवरण के पक्ष में सबूत प्रस्तुत नहीं करता तो कर-निर्धारण अधिकारी ‘अनिवार्य सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ कर सकता है।

(ii) विवेकीय सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण (Discretionary Best Judgement Assessment)-ऐसा कर-निर्धारण निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है(अ) जब कर-निर्धारण अधिकारी करदाता के हिसाब-किताब की शुद्धता (Correctness) एवं पूर्णता (Completeness) से असन्तुष्ट है, अथवा (ब) करदाता ने हिसाब-किताब की कोई नियमित पद्धति न अपनायी हो। (स) केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित प्रमापों के अनुसार आय की गणना नहीं की गई है। [Notification No. 32/2015 Dated 31.03.2015]

उपरोक्त दशाओं में करनिर्धारण अधिकारी के पास सर्वोत्तम कर-निर्धारण के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। कर-निर्धारण अधिकारी को ईमानदारी से कर की उचित राशि का निर्धारण करना चाहिए। इसके लिए पिछले वर्षों के आय विवरणों, कर-निर्धारणों आदि का ध्यान रखना चाहिए। ऐसे कर-निर्धारण से पूर्व करदाता को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करना होगा।

सर्वोत्तम करनिर्धारण के परिणाम (Consequences of Best Judgement Assessment)-सर्वोत्तम कर-निर्धारण के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं

1 करदाता पर अर्थदण्ड लगाया जा सकता है।

2. करदाता पर अभियोजन किया जा सकता है।

3. कर की वापसी ‘अस्वीकृत’ की जा सकती है।

4. करदाता को “निर्धारित कल आय” के बारे में अपील करते समय “अपीलीय अधिकारियों के समक्ष नए तथ्य प्रस्तुत करने से रोका जा सकता है।

सर्वोत्तम निर्णय करनिर्धारण के विरुद्ध प्राप्त उपचार/उपाय/अपील करना (Remedies against Best Judgement Assessment)-यदि करदाता कर-निर्धारण अधिकारी के सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण से सन्तुष्ट नहीं है अर्थात उसे ऐसा लगता है कि जो सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण किया गया है उसमें अनुचित रूप से अत्यधिक कर लगा दिया गया है तो ऐसी दशा में करदाता को सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण के विरुद्ध निम्नलिखित उपचार उपलब्ध है

(i) करदाता कमिश्नर (अपील) के यहाँ अपील कर सकता है।।

(ii) करदाता कमिश्नर (अपील) के निर्णय के विरुद्ध अपीलेट ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है। (iii) यदि किसी मामले में कानूनी बिन्दु सन्निहित हो तो ऐसी दशा में वह उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

(iv) करदाता कमिश्नर को पुनर्विचार हेत प्रार्थना-पत्र दे सकता है।

5. पनः करनिर्धारण अथवा वंचित आय का करनिर्धारण (Re-assessment or Income Escaping Assessment)-धारा 147 के अनुसार, जब कर-निर्धारण अधिकारी को यह विश्वास करने के पर्याप्त कारण है कि कोई आय जिस पर आय-कर लगना चाहिए था, कर-निर्धारण होने से रह गई है या छूट गई है अर्थात् उक्त आय पर आय-कर नहीं चुकाया गया है, तो वह धारा 148 से 153 के प्रावधानों के अनुसार ऐसी आयों का कर-निर्धारण या पुनः कर-निर्धारण कर सकता है। चकि यह कर-निर्धारण उन आयों से सम्बन्धित है जिन आयों पर कर-निर्धारण नहीं हो सका है, इसलिए इसे ‘वंचित आय का कर-निर्धारण’ भी कहते हैं। सामान्यतया निम्नलिखित दशाओं में यह माना जाता है कि कर-योग्य आय पर आय-कर लगने से रह गया है

(i) यदि करदाता की कुल आय अधिकतम कर मुक्त सीमा/न्यूनतम कर योग्य सीमा से अधिक है, परन्तु उसने आय का विवरण दाखिल नहीं किया है;

(ii) यदि आय का विवरण तो दाखिल किया है परन्तु उस पर कर-निर्धारण नहीं हुआ है तथा कर-निर्धारण अधिकारी की जानकारी में यह भी आया है कि करदाता ने आय को वास्तविक कुल आय से कम प्रदर्शित किया हुआ है अथवा हानियों, कटौतियों, राहतों एवं छूटों के सम्बन्ध में आय-कर अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत स्वीकृत अधिकतम सीमाओं से अधिक राशि की मांग की है।

(iii) यदि कर-निर्धारण तो हो चुका है, परन्तु-(अ) कर-योग्य आय की कम गणना की गई है; या (ब) ऐसी आय पर कम दर से कर लगा दिया है; या (स) ऐसी आय पर अधिनियम के अन्तर्गत स्वीकृत रियायतों से अधिक रियायतें दे दी गई है; या (द) इस अधिनियम के अन्तर्गत हानियों, हास एवं अन्य छूटों की स्वीकृत हो सकने वाली राशि से अधिक राशि की गणना की गई है।

(iv) भारत के बाहर स्थित किसी सम्पत्ति (किसी सत्ता में वित्तीय हित को शामिल करते हुए) से आय, जो कर-योग्य है।

Procedure Assessment Return Income

परन्तु करनिर्धारण से रह गई है। [01.07.2012 से प्रभावी) पुनः करनिर्धारण हेतु नोटिस जारी करना (Issue of Notice for Re-Assessment) (धारा 148)-धारा 147 के अन्तर्गत कर-निर्धारण अथवा पुनः कर-निर्धारण करने से पूर्व कर-निर्धारण अधिकारी करदाता को नोटिस देगा जिसमें एक निश्चित अवधि में सम्बन्धित कर निर्धारण वर्ष की आय की विवरणी दाखिल करने के लिए कहा जायेगा। ऐसा नोटिस जारी करने से पूर्व कर-निर्धारण अधिकारी नोटिस जारी करने के कारणों को अभिलेखित (Record) करेगा। यदि कर-निर्धारण अधिकारी सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति से चार वर्ष में धारा 148 के अन्तर्गत नोटिस देना चाहता है एवं वह संयुक्त कमिश्नर से नीचे का पदाधिकारी है तो उसे नोटिस देने से पूर्व संयुक्त कमिश्नर से इसका अनुमोदन (Approval) लेना होगा।

सम्बन्धित कर-निर्धारण की समाप्ति से चार वर्ष के पश्चात् कर-निर्धारण अधिकारी को धारा 148 में नोटिस देने से पूर्व प्रधान मुख्य कमिश्नर या मुख्य कमिश्नर या प्रधान कमिश्नर या कमिश्नर को सन्तुष्ट करना होगा कि ऐसे नोटिस की आवश्यकता है।

नोटिस देने की समय सीमा (Time Limit for Notice) (धारा 149)-धारा 148 के अन्तर्गत निम्नलिखित समय सीमा के अन्दर ही पुनः कर-निर्धारण हेतु नोटिस जारी किया जा सकता है

1 यदि कर लगने से छूटी हुई आय 1 लाख र से कम हो, तो सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद 4 वर्ष के अन्दर पुनः कर-निर्धारण के लिए नोटिस दिया जा सकता है।।

2. यदि कर लगने से छूटी हुई आय 1 लाख र या इससे अधिक हो, तो सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद 6 वर्ष के अन्दर पुनः कर-निर्धारण की सूचना दी जा सकती है।

3. भारत के बाहर स्थित किसी सम्पत्ति (किसी सत्ता में वित्तीय हित को शामिल करते हए) से आय जो कर-योग्य है परन्तु कर-निर्धारण से रह गई है, तो सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष के बाद 16 वर्ष के अन्दर पुनः कर-निर्धारण की सूचना दी। जा सकती है।

नोटिस देने की समय-सीमा का लागू न होना-धारा 150 के अनुसार अनलिखित दशाओं में पुन: कर-निर्धारण के लिए। कभी भी नोटिस दिया जा सकता है

(i) जब पुनः कर-निर्धारण के लिए किसी अपील या संशोधन (revision) के किसी आदेश में या किसी न्यायालय ने किसी कानून के अन्तर्गत चल रही कार्यवाही के दौरान निर्देश दिया है।

(ii) यदि अपील या संशोधन (revision) के अन्तर्गत पुनः कर-निर्धारण का निर्देश देते समय ऐसे निर्देश में पुनः कर-निर्धारण की समय-सीमा को निर्धारित कर दिया है तो कर-निर्धारण अधिकारी उसी निर्धारित समय-सीमा में पुनः

करनिर्धारण कर सकता है। करनिर्धारण अथवा पुनः करनिर्धारण समाप्त (पूरा) करने के लिए समयसीमा (Time Limit for Completion of Assessment or Reassessment) [धारा 153] (1.6.2016 से प्रभावी)-कर-निर्धारण अथवा पुनः कर-निधारण पूरा करने की समय-सीमा निम्नलिखित है

1 धारा 143 अथवा 144 के अन्तर्गत कर-निर्धारण का आदेश-जिस कर-निर्धारण वर्ष में आय प्रथम बार निर्धारणीय थी उसके अन्त से इक्कीस माह में कर-निर्धारण का आदेश दिया जा सकता है।

2. धारा 147 के अन्तर्गत हुए कर-निर्धारण अथवा पुनः कर-निर्धारण अथवा पुनः गणना का आदेश-उस वित्तीय वर्ष के अन्त से नौ माह में दिया जा सकता है, जिस वित्तीय वर्ष में धारा 148 का नोटिस तामील (Served) किया गया था।

3. यदि अपीलेट ट्रिब्यूनल के आदेश (धारा 254 के अन्तर्गत) या प्रधान कमिश्नर या कमिश्नर के पुनर्विचार आदेश (धारा 263 या धारा 264 के अन्तर्गत) के अनुसार नए सिरे से कर-निर्धारण करना है तो जिस वित्तीय वर्ष में अपीलेट ट्रिब्यूनल का आदेश प्राप्त हुआ था या पुनर्विचार आदेश दिया गया है उसकी समाप्ति से नौ माह में कर-निर्धारण आदेश दिया जाएगा।

(III) भूल सुधारधारा 154

(Rectification of Mistakes : Section 154)

एक बार कर-निर्धारण होने के बाद कर-निर्धारण अधिकारी को अपने दिये गये निर्णय में यदि कोई भूल पता चलती है, तो वह भूल वाले वित्तीय वर्ष के बाद चार वर्ष के अन्दर उसे सुधार सकता है। यह सुधार निम्नलिखित स्थितियों में किया जा सकता है-(i) कर-निर्धारण अधिकारी की स्वयं की इच्छा पर, (ii) करदाता द्वारा त्रुटि बताने पर, (iii) यदि मामला अपील में है, तो कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा त्रुटि बताने पर।

धारा 154 के अन्तर्गत भूल सुधार तभी किया जा सकता है, जबकि भूल रिकॉर्ड पर स्पष्ट रूप से दिखती है तथा उसके लिए किसी भी प्रकार की बहस, जांच-पड़ताल आदि की आवश्यकता न हो भूल सुधार के सम्बन्ध में अन्य महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित प्रकार हैं

1 किसी आदेश के सम्बन्ध में सुधार का आदेश केवल वही अधिकारी दे सकता है जिसका कि वह आदेश था, न कि कोई उससे उच्चतर अथवा निम्न अधिकारी। यदि स्थानान्तरण (transfer) के कारण उस पद का पदाधिकारी बदल जाता है तो उसके आदेश का भूल-सुधार उसी पद पर बाद में आने वाले अन्य अधिकारी द्वारा किया जा सकता है।

2. सुधार का आदेश (Order of Rectification)-यदि इस धारा के अन्तर्गत कोई सुधार किया जाना हो, तो सम्बन्धित आय-कर अधिकारी द्वारा सुधार सम्बन्धी आदेश लिखित में पारित करने होंगे।

3. सुनवाई का अवसर (Opportunity of being Heard)-यदि भूल-सुधार के कारण करदाता के कर-दायित्व में वृद्धि होती है अथवा करदाता को मिलने वाली कर-वापसी में कमी होती है या अन्य किसी प्रकार से करदाता का दायित्व बढ़ने की सम्भावना है तो ऐसा सुधार करने से पूर्व करदाता को नोटिस देकर उचित सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है।

4. यदि करदाता का कर दायित्व बढ़ जाता है तो उसे धारा 156 के अनुसार माँग नोटिस जारी किया जायेगा।

5. यदि करदाता के कर दायित्व में कमी आती है, तो उसे कर की राशि वापिस लौटा दी जाएगी

6. यदि करदाता ने भूल सुधार के लिए आवेदन 1 जून, 2011 को या इसके बाद किया है तो सम्बन्धित अधिकारी 6 माह के भीतर संशोधन का या उस दावे को रद्द करने का आदेश जारी करेगा।

7. धारा 154(7) के अनुसार, किसी भी आदेश में उसके पारित होने के 4 वर्ष बाद उसमें भूल-सुधार हेतु कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता।

नोट 01.07.2012 से उपरोक्त प्रावधान उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने वाले पर भी लाग होंगे, जिसने कर की कटौती का विवरण दाखिल किया है।

Procedure Assessment Return Income

(IV) माँग का नोटिस (धारा 156)

(Notice of Demand : Section 156)

आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत यदि किसी आदेश के फलस्वरूप कोई कर, ब्याज, अर्थ-दण्ड, जुर्माना या कोई अन्य राशि देय है, तो कर-निर्धारण अधिकारी निर्धारित फॉर्म पर करदाता को माँग का नोटिस देगा जिसमें देय राशि का उल्लेख होगा।

नोटिस के अन्तर्गत देय राशि का भुगतान 30 दिन के अन्दर करना अनिवार्य होता है।

Procedure Assessment Return Income

 (v) हानि की सूचना (धारा 157)

(Intimation of Loss : Section 157)

किसी करदाता की कुल आय का कर-निर्धारण करते समय यह निश्चित हो जाए कि उसे हानि हुई है जिसे यह आगे ले जाकर भविष्य के लाभों में से पूरा कर सकता है तो कर-निर्धारण अधिकारी धारा 157 के अन्तर्गत करदाता को लिखित आदेश के द्वारा निर्धारित की गई हानि के सम्बन्ध में सूचना भेजेगा।

Procedure Assessment Return Income

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 आय विवरणी से आप क्या समझते हैं ? आय विवरणी के सम्बन्ध में आय-कर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों की विवेचना कीजिए।

What do you mean by “Income Return” ? Discuss the provisions of Income Tax Act 1961 regarding, Income Return.

2. स्थायी खाता संख्या से आप क्या समझते हैं ? पैन के लिए कैसे आवेदन करना पड़ता है ? इस सम्बन्ध में आय-कर अधिनियम 1961 के प्रावधानों को समझाइये।

What do you understand by permanent account number? How to apply for PAN ? Explain the provisions of Income Tax Act 1961, regarding its.

3. निर्णय कर-निर्धारण’ क्या है ? यह किन परिस्थितियों में किया जा सकता है ? ऐसे कर-निर्धारण के लिए करदाता के पास क्या उपाय हैं ?

What is the best judgment assessment? Under what circumstances can it be made? What are the remedies open to the assessee against such an assessment?

4. सर्वोत्तम निर्णय कर-निर्धारण’ से क्या तात्पर्य है ? कर-निर्धारण की इस पद्धति को किन परिस्थितियों में अपनाया जा सकता है ? ऐसे कर-निर्धारण के विरुद्ध करदाता के पास क्या उपाय है?

What is meant by “Best Judgement Assessment” ? Under what circumstances can recourse be had to this method of assessment? What are the remedies open to the assessee against such assessment?

5. एकपक्षीय कर निर्धारण क्या है ? यह किन परिस्थितियों में किया जा सकता है? ऐसे कर निर्धारण के क्या परिणाम होते हैं? क्या ऐसे कर निर्धारण के विरुद्ध करदाता के पास कोई उपाय है ?

What is an ex-parte assessment? In what circumstances can it be made? Explain the consequences of such an assessment. Are there any remedies open to the assessee against such assessment?

6. आय-कर अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत कर-निर्धारण की कार्य-विधि (प्रक्रिया) को समझाइए।

Explain the procedure of assessment under the Income Tax Act, 1961.

7. कर-निर्धारण के विभिन्न प्रकारों को संक्षेप में समझाइए।

Explain briefly the various types of assessment.

8. स्वयं कर-निर्धारण की कार्य-विधि की व्याख्या कीजिए।

Explain the procedure of Self-assessment.

9. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए

(Write short notes on the following) :

(i) सर्वोत्तम कर-निर्धारण अथवा एक-पक्षीय कर-निर्धारण

(Best Judgment Assessment or Ex-Parte Assessment)

(ii) नियमित कर-निर्धारण (Regular Assessment)|

(iii) स्वयं कर-निर्धारण (Self Assessment)

10. निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए-

(अ) स्वैच्छिक आय का विवरण

(ब) विलम्बित आय का विवरण

(स) संशोधित आय का विवरण,

() दोषी आय का विवरण।

Write notes on :

(a) Voluntary Return of Income,

(b) Belated Return of Income,

(c) Revised Return of Income,

(d) Defective Return of Income.

Procedure Assessment Return Income

लघु उत्तरीय एवं अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short and Very Short Answer Questions)

1 स्थायी खाता संख्या क्या है ?

(What is a Permanent Account Number ?)

2. किन व्यवहारों में स्थायी खाता संख्या का उल्लेख करना अनिवार्य है ?

Under what transactions quoting of Permanent Account Number is compulsory?

3. स्थायी खाता संख्या से आप क्या समझते हैं ? स्थायी खाता संख्या के आबंटन के लिए प्रार्थना-पत्र देने में चूक करने के क्या परिणाम होते हैं ?

What do you understand by Permanent Account Number? What are the consequences for failure to apply for the allotment of a Permanent Account Number?

4. पुनः कर-निर्धारण से आप क्या समझते हैं ? यह किन परिस्थितियों में किया जाता है ?

What do you understand by re-assessment? Under what circumstances is it done?

5. दोषपूर्ण आय के विवरण का क्या अर्थ है ?

(What is defective return of income?)

6. किसी आय-कर पदाधिकारी द्वारा भूल-सुधार कब किया जा सकता है ?

When can a mistake be rectified by an income tax authority?

7. नियोक्ता के माध्यम से आय विवरण कैसे दाखिल की जा सकती है ?

How can the return of income be submitted through employer?

8. कर विवरणी तैयारकर्ता के द्वारा आय का विवरण दाखिल किये जाने की योजना के बारे में आप क्या जानते हैं ? समझाइए

What do you know about scheme for submission of return of income through Tax Return

9. आय का संशोधित विवरण किसे कहते हैं ?

(What is the revised return of income ?)

10. आय के विवरण को दोषपूर्ण कब माना जाता है ?

When shall a return of income be regarded as defective?

Procedure Assessment Return Income

chetansati

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