मूल लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन के विकल्प
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(Alternatives of Basing Depreciation on Original Cost)
सम्पत्ति की मूल लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन की उपर्युक्त सीमाओं के कारण पुनर्मूल्यन लेखा-विधि के अन्तर्गत निम्नांकित विकल्प प्रस्तुत किये जाते हैं
(अ) प्रतिस्थापन लागत (Replacement Cost)-सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत का आशय उस राशि से होता है जो कि वर्तमान सम्पत्ति के उपयोगी जीवन काल की समाप्ति पर उसके पुनर्स्थापन अर्थात् उसके स्थान पर नई सम्पत्ति स्थापित करने के लिये आवश्यक होगी। यदि मूल्य-स्तर स्थिर रहता है तो सम्पत्ति की मूल लागत और प्रतिस्थापन लागत में अन्तर करना अर्थहीन है क्योंकि मूल लागत के आधार पर आयोजित ह्रास की राशि सम्पत्ति के प्रतिस्थापन के लिये पर्याप्त रहेगी, किन्तु मूल्य-स्तर में स्थिरता की बात आज कल्पना मात्र ही है। बढ़ते हुए मूल्य-स्तर की दशा में मूल लागत के आधार पर आयोजित ह्रास की राशि सम्पत्ति के प्रतिस्थापन के लिये अपर्याप्त रहेगी और मूल्यों में गिरावट की दशा में यह प्रतिस्थापन के लिये अधिक रहेगी। अत: इसके लिये यह उचित ही होगा कि सम्पत्ति पर हास का आयोजन उसकी प्रतिस्थापन लागत के आधार पर किया जाये।
प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास की गणना-सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत की गणना मूल्य निर्देशांकों के आधार पर की जाती है तथा प्रतिवर्ष ह्रास का आयोजन इस प्रकार किया जाता है जिससे कि सम्पत्ति के जीवन काल की समाप्त पर आयोजित ह्रास की कुल राशि उसके प्रतिस्थापन मूल्य के समान हो जाये। वार्षिक ह्रास की रशि ज्ञात करने के लिये निम्नलिखित पद्धतियों का प्रयोग किया जा सकता है
(1) ह्रास आधार विधि (Depreciation Base Method)
(2) सम्पत्ति मूल्यांकन विधि (Assets Valuation Method)
(1) ह्रास आधार विधि (Depreciation Base Method)—हस विधि के अन्तर्गत ह्रास आयोजन के लिये निम्न प्रकिया अपनाई जाती है
(i) मूल्य निर्देशांकों के आधार पर प्रतिवर्ष सम्पत्ति की वर्तमान प्रतिस्थापन लागत (Current Replacement Cost) की गणना करना। इसके लिये निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है
(ii) वर्तमान प्रतिस्थापन लागत प्रभार (Current Replacement Cost Charge) ज्ञात करना। इसके लिये (i) में अगणित वर्तमान प्रतिस्थापन लागत में सम्पत्ति के कार्यकाल की अवधि का भाग दिया जाता है।
(iii) प्रतिवर्ष कमी समायोजन (Deficiency Appropriation) की राशि ज्ञात करना। मूल्य स्तर में वृद्धि के समय सम्पत्ति के प्रतिस्थापन मूल्य में प्रतिवर्ष वृद्धि के कारण प्रतिवर्ष प्रतिस्थापन लागत प्रभार की राशि बढ़ती जाती है। अत: प्रतिवर्ष के वर्तमान प्रतिस्थापन लागत प्रभार में पिछले वर्षों में कम चार्ज की गई राशि के लिये समायोजन आवश्यक हो जाता है। इसके लिय चालू वर्ष के प्रतिस्थापन लागत प्रभार से गत वर्ष का प्रतिस्थापन लागत प्रभार घटाकर प्राप्त अन्तर की राशि को वर्ष संख्या से गुणा किया जाता है। कमी समायोजन के लिये निम्न लेखा-प्रविष्टि की जायेगी
Profit and Loss Appropriation Account Dr.
To Provision for Depreciation Account
नोट-उपर्युक्त समायोजन निर्देशांकों के आधार पर पुनर्मूल्यांकन की स्थिति में ही किया जाता है। मल्य ठहराव विधि से हास आयोजन की स्थिति में उपर्युक्त समायोजन की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसमें वार्षिक हास का आयोजन हासित सम्पत्ति के वर्तमान मूल्य पर किया जाता है।
(iv) कुल वर्तमान आयोजन (Total Current Provision) की राशि (अर्थात् चाल वर्ष के लिये प्रतिस्थापन प्रभार की कुल राशि) ज्ञात करना। यह उपरोक्त (ii) और (iii) का योग होगा।
(2) सम्पत्ति मूल्यांकन विधि (Asset Valuation Method)-इस विधि के अन्तर्गत ह्रास आयोजन के लिये निम्न प्रक्रिया अपनायी जाती है
(i) मूल्य निर्देशांकों के आधार पर प्रतिवर्ष सम्पत्ति की वर्तमान प्रतिस्थापन लागत ज्ञात करना।
(ii) प्रतिवर्ष उपयुक्त सम्पत्ति की मल लागत (अर्थात सम्पत्ति की लागत पर आयोजित ह्रास प्रभार की संचयी राश) जाता करना।
(iii) प्रतिवर्ष उपयुक्त सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत ज्ञात करना। इसके लिये निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
Replacement Cost of Asset Consumed
(iv) वर्तमान प्रतिस्थापन लागत प्रभार ज्ञात करना। यह (iii) में आगणित राशि में सम्पत्ति के कार्यकाल का भाग देकर ज्ञात किया जाता है।
(v) प्रतिस्थापन लागत प्रभार की संचयी राशि ज्ञात करना।
(vi) उपर्युक्त (iii) में से (v) की राशि घटाकर संचयी कमी (Deficiency up to date) की राशि ज्ञात की जाती है।
(vii) संचयी कमी की राशि से प्रतिवर्ष कमी समायोजन की राशि ज्ञात की जाती है।
(viii) कुल वर्तमान आयोजन की राशि ज्ञात करना। यह (iv) और (vii) का योग होती है।