BCom 2nd Year Factory Act 1948 An Introduction Study Material Notes in Hindi

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कारखाने के लक्षण

(Characteristics of a Factory)

(1) कारखाने के लिये भवन का होना आवश्यक है। यहाँ भवन से तात्पर्य चारदीवारी में विभक्त भूमि या भवन अथवा अन्य प्रकार से सीमांकन किये हये या घेरे हये स्थान से है।

(ii) निर्माण प्रक्रिया का होना भी कारखाने का प्रमुख तत्त्व है। यदि किसी भूगृह अथवा उसके भाग में कोई निर्माण प्रक्रिया नहीं की जाती है तो उसे कारखाना नही कहा जायेगा, परन्तु यदि कारखाने के परिसर के किसी एक भाग में भी निर्माण प्रक्रिया की जाती है तो भी सम्पूर्ण परिसर ही कारखाना कहलायेगा।

(iii) निर्माण प्रक्रिया शक्ति की सहायता से अथवा बिना शक्ति की सहायता से हो सकती है।

(iv) शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया होने की दशा में श्रमिकों की संख्या कम-से-कम 10 होनी चाहिये। यदि बिना शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया की जाती है तो श्रमिकों की संख्या

कम-से-कम 20 होनी चाहिये। धारा 85 के अनुसार, राज्य सरकार राजपत्र (Gazette) में घोषणा करके किसी भी स्थान को कारखाना मान सकती है, जहाँ शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया की जाती हो तथा 10 से कम श्रमिक कार्य करते हों और यदि निर्माण प्रक्रिया बिना शक्ति की सहायता से की जाती हो तथा 20 से कम श्रमिक कार्य करते हों।

विशेषराज्य सरकार किसी भी परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली निर्माण प्रक्रिया को कारखाना घोषित करने का अधिकार नहीं रखती है।

यहाँ यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि किसी भी परिसर को कारखाना मानने या न मानने का निर्णय करते समय “कारखाना” के उपर्युक्त सभी लक्षणों पर एक ही साथ विचार करना पड़ता है। एक या अधिक लक्षणों को ध्यान में रखकर या छोड़कर हम सही निर्णय पर नहीं पहुँच सकेंगे।

केस लॉकारखाना अधिनियम के अन्तर्गत दी गई ‘कारखाना’ शब्द की परिभाषा तथा उसके लक्षणों का अध्ययन करने के उपरान्त भी कभी-कभी इस बात का निर्णय करना कठिन हो जाता है कि अमुक स्थान कारखाना है अथवा नहीं। अतः इसको और अधिक स्पष्ट करने के लिये विभिन्न न्यायालयों द्वारा दिये गये कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय निम्नलिखित हैं

शेख जफ्फार हिप्तुल्लाह भाई बनाम शेख इस्माईल के मामले में यह निर्णय दिया गया है कि रुई से बिनौले निकालने तथा उसे दबाने की प्रक्रिया जिस स्थान पर होती है वह एक कारखाना है।

इन्दरसिंह बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के मामले में यह निर्णय दिया गया कि रेलवे वर्कशॉप कारखाने में शामिल है।

ताजमहल कैफे बनाम कारखाना निरीक्षक के मामले में यह निर्णय दिया गया कि किसी जलपान-गृह में रेफ्रीजरेटर का उपयोग किया जाता हो तो उसे तब तक कारखाना नहीं कहा जा सकता जब तक उस रेफ्रीजरेटर की सहायता से कोई निर्माणी-प्रक्रिया न की जाती हो।

रसोईघर (Kitchen) जहाँ भोजन बनाया जाता है, एक कारखाना नहीं माना गया है। _Hathras Municipality Vs. Union of India A.I.R. 1975 मामले में हाथरस नगरपालिका नगर में जल आपूर्ति के लिये एक वाटर वर्क्स चला रही थी। निर्णय दिया गया कि इस अधिनियम की परिभाषा के अनुसार ‘वाटर पम्पिग’ एक उत्पादकीय प्रक्रिया है यद्यपि आम चलन में यह एक उत्पादकीय प्रक्रिया नहीं हो सकती है। अतः ‘वाटरवर्क’ कारखाने की परिभाषा में आ जाता है जहाँ इस बात के प्रति विवाद नहीं होता कि दस या अधिक व्यक्ति उसमें काम कर रहे हैं तथा जल को पॉवर के उपयोग द्वारा ‘पम्प’ किया जाता है।

Dr. P.S.S. Sundar Rao, G.S. Vs. Inspector of Factories, Vellore (1995) #  प्रश्न खड़ा किया गया कि क्या एक क्रिश्चियन मैडिकल कॉलेज तथा अस्पताल से जुड़ी लाउन्ड्री इस अधिनियम के अन्तर्गत एक कारखाना है। मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अस्पताल द्वारा चलाई जा रही लाउन्ड्री को मुख्य संस्था से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। उच्च मात्रा की सफाई सुनिश्चित करने के लिये अस्पताल में प्रयुक्त वस्त्रों की धुलाई हेतु उसकी अपनी लाउन्डी थी। अतः लाउन्डी को अस्पताल का मात्र सहायक, हल्का-फुल्का तथा प्रासंगिक स्थान माना जायेगा जो स्वयं एक कारखाना नहीं है। अस्पताल के प्रभावी संचालन हेतु स्थापित अस्पताल का एक विभाग मुख्य संस्था से अलग नहीं किया जा सकता है जिसे कारखाना कहा जाये । हमको मुख्य संस्थान की प्रकति को अवश्य ही देखना होगा जो स्वयं ही कारखाना नहीं है उसका एक विभाग कारखाना नहीं हो सकता है भले ही वहाँ एक उत्पादकीय गतिविधि चलाई जाये।

विभिन्न मामलों के निर्णयों के आधार पर रेलवे वर्कशाप,रुई से बिनौले निकालने तथा दबाने की प्रक्रिया वाले विभाग, एक भवन में 20 से अधिक व्यक्तियों द्वारा काली मिर्च छाँटने का कार्य, नगर निगम का विद्या विभाग, नगर निगम द्वारा पानी की पूर्ति करने वाला विभाग, छापेखाने द्वारा छापने के उद्देश्य से किया जाने वाला कम्पोजिंग कार्य एवं प्रयोग में लाने के उद्देश्य से तम्बाकू के पत्ते सुखाने और छाँटने के कार्य को कारखाना माना गया है, किन्तु एक लॉउन्ड्री व्यवसायी की दुकान, एक विद्यालय में शिक्षण के उद्देश्य से कपड़ों का निर्माण रेलवे का गोदाम,खेत पर आटा पीसने के उद्देश्य से लगा संयन्त्र आदि कारखाना नहीं माना जायेगा।

17. दखलदार अथवा परिभोगी अथवा अधिष्ठाता (Occupier)-संशोधित कारखाना अधिनियम,1987 के अनुसार परिभोगी से आशय उस व्यक्ति से है जिसका कारखाने के सभी कार्यों पर अन्तिम नियन्त्रण है। जहाँ कारखाने के मामले संचालकों को सौंप दिये गये हैं, वहाँ उनमें से कोई भी संचालक परिभोगी माना जायेगा। [धारा 2(n)]

परन्तु(i) किसी कर्मचारी या अन्य व्यक्तिगत समूह की दशा में उसका कोई एक व्यक्तिगत भागीदार या सदस्य अधिष्ठाता समझा जायेगा।

(ii) किसी कम्पनी की दशा में निदेशकों में से कोई एक अधिष्ठाता समझा जायेगा।

(iii) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण के स्वामित्वाधीन या नियन्त्रणाधीन कारखाने की दशा में यथास्थिति केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा कारखाने के कामकाज के प्रबन्ध के लिये नियुक्त किये गये व्यक्ति या व्यक्तियों को अधिष्ठाता समझा जायेगा।

परन्तु किसी पोत (ship) की दशा में अधिष्ठाता के लिये इस अधिनियम में अनेक व्यवस्थायें दी गई हैं जिनका वर्णन सम्बन्धित अध्यायों के अन्तर्गत किया गया है।

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परिभोगी के सम्बन्ध में न्यायालयों द्वारा दिये गये प्रमुख निर्णय

(i) कारखाने का परिभोगी,मालिक, पट्टेदार (Lessee) अथवा लाइसेन्सधारी (Licensee) हो सकता है, बशर्ते उसे कारखाने के प्रबन्ध आदि मामलों पर अन्तिम नियन्त्रण रखने का अधिकार हो (एम्परर बनाम जमशेदजी नसरवानजी लोदी)।

(ii) कारखाने का ऐसा नौकर जिसे विशिष्ट रूप से यन्त्रों, श्रमिकों अथवा कार्यालय पर नियन्त्रण रखनेका काम सौंपा गया हो, परिभोगी नहीं माना जा सकता है। अतः परिभोगी मालिक अथवा ऐसा व्यक्ति होना चाहिये,जिसके अधिकार में कारखाना हो तथा समस्त क्रियाओं पर उसका पूर्ण नियन्त्रण हो, न कि आंशिक रूप में ऐसा हो।

(iii) कारखाने का प्रबन्धक जो कारखाने के किसी भाग में रहता है, परिभोगी नहीं है।

(iv) कारखाने के प्रबन्धक को तभी परिभोगी माना जायेगा, जबकि उसे अपना अधिकार परिभोगी द्वारा हस्तान्तरित कर दिया गया हो तथा कारखाने का अन्तिम नियन्त्रण उसी के हाथ में हो (जॉन डोनाल्ड मैकेन्जी बनाम कारखाना मुख्य निरीक्षक बिहार, ए. आई. आर, 1962 उच्चतम न्यायालय)।

(v) प्रबन्ध अभिकर्ता (Managing Agent) के अभाव में समस्त स्वामी परिभोगी माने जायेंगे।

18. प्रबन्ध अभिकर्ता (Managing Agent) कारखाना अधिनियम में प्रबन्ध अभिकर्ता का वही अर्थ माना जाता है जो कम्पनी अधिनियम, 1956 में परिभाषित किया गया है अर्थात प्रबन्ध अभिकर्ता वह व्यक्ति, फर्म या सम्मिलित संस्था है जो भारतीय कम्पनी अधिनियम द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों के आधीन किसी कम्पनी के पूर्ण या अधिकांश मामलों के प्रबन्ध करने का अधिकारी हो।

19. निर्धारित (Prescribed) निर्धारित का तात्पर्य राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये नियमों द्वारा निर्धारित बातों से है।1

20. टोली तथा पाली (Relay and Shift कारखाने में जब एक ही प्रकार का काम श्रमिकों के दो या दा से अधिक समूहों द्वारा किया जाता है जो दिन में भिन्न-भिन्न अवधि में काम करते हैं, तो ऐसे श्रमिकों के प्रत्यक समूह (Set of group of Workers) को टोली (Relay) तथा प्रत्येक अवधि (Period) को शिफ्ट । (Shift) या पाली कहते हैं।

21. दिन के समय निर्देश (Reference to time of day) इस अधिनियम का अर्थ भारतीय प्रमाप समय में स्थान-स्थान पर दिन के समय’ का उल्लेख किया गया है। इस दिन के समय’ का अर्थ ‘भारतीय प्रमाप समय’ (Indian Standard Time) के अनुसार माना जायेगा जो कि ग्रीनविच मीन टाइम (Greenwich Mean Time) से साढ़े पाँच घण्टे आगे रहता है। किन्तु ऐसे क्षेत्र में जहाँ पर भारतीय प्रमाप समय का पालन नहीं किया जाता है वहाँ राज्य सरकार निम्नलिखित बातों के सम्बन्ध में नियम बना सकती है

(i) उस क्षेत्र को निर्धारित करने के सम्बन्ध में;

(ii) ‘उस क्षेत्र में सामान्य रूप से अपनाये जाने वाले औसत समय को निर्धारित करने के सम्बन्ध में।

(iii) उस क्षेत्र में स्थित समस्त अथवा किसी कारखाने मे ऐसे समय के पालन की अनुमति देने के सम्बन्ध

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22. विभिन्न विभागों को पृथक कारखाने अथवा दो या दो से अधिक कारखानों को एक कारखाना करने का अधिकार (Power to declare different departments to be separate factories or two or more factories to be a single factory) प्रत्येक राज्य सरकार को परिभोगी द्वारा आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने पर विभिन्न विभागों एवं शाखाओं को अलग-अलग कारखाना अथवा दो या दो से अधिक कारखानों को जिनका कि उल्लेख आवेदन-पत्र में किया गया है एक कारखाना घोषित करने का अधिकार है । [धारा 4]

23. सार्वजनिक संकट के समय कारखानों को मुक्त करने का अधिकार (Power to exempt Factories during Public Emergency) धारा 5 के अनुसार, सार्वजनिक संकट की किसी भी अवस्था में राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा किसी भी कारखाने या किसी भी वर्ग या श्रेणी के कारखाने को इस अधिनियम के समस्त अथवा कुछ प्रावधानों से (धारा 67 के प्रावधानों को छोड़कर) छट दे सकती है। यह छूट उन प्रावधानों तथा उस अवधि के लिये प्रदान की जायेगी जिसे राज्य सरकार उचित समझेगी। लेकिन इस प्रकार की छूट एक समय में तीन मास से अधिक की अवधि के लिये नहीं प्रदान की जा सकती है।

धारा 67 में वर्णित शर्तेकोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी आयु 14 वर्ष से कम है कारखाने में न तो नियुक्त किया जा सकता है और न ही उसे कारखाने में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है। इस धारा के प्रावधान सार्वजनिक संकट के समय में भी यथावत् लागू रहेंगे। सार्वजनिक संकट की घोषणा सरकार द्वारा तभी की जा सकती है जबकि भारत की सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक हो,या देश के किसी भाग में युद्ध,बाहरी हमले. या आन्तरिक उपद्रव उत्पन्न होने के कारण सार्वजनिक संकट उत्पन्न होने की आशंका हो ।

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