BCom 2nd Year Industrial Las General Introduction Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Industrial Las General Introduction Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Industrial Las General Introduction Study Material Notes in Hindi: Origin and Development of Industrial Las Meaning and Definition of Industrial Las Objective of Industrial Las Principles of Industrial Law Scope of Industrial Law Important Examination Questions ( most important notes for Bcom 2nd year Students )

Industrial Las General Introduction
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BCom 2nd year Corporate Law Winding Company Study material Notes in Hindi

औद्योगिक सन्नियम : सामान्य परिचय

(INDUSTRIAL LAW : GENERAL INTRODUCTION)

औद्योगिक सन्नियम का उद्गम एवं विकास

(Origin and Development of Industrial Law)

औद्योगिक सन्नियम का विकास ब्रिटिश सरकार के ईस्ट इंडिया अधिनियम एवं रायल चार्टर्स से प्रारम्भ हुआ जिसे गति 20वीं शताब्दी में मिली। प्रायः कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यह कथन औद्योगिक सन्नियम पर भी पूरी तरह से सत्य सिद्ध होता है। उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उद्योगों का तीव्र गति से विकास प्रारम्भ हुआ एवं विशालकाय मशीनों के माध्यम से बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। इस प्रकार बढ़ते औद्योगीकरण ने पूँजीपति एव श्रमिक दो वर्गों को जन्म दिया। पूँजीपतियों ने अपने विशाल उद्योगों के माध्यम से श्रमिकों का शोषण प्रारम्भ कर दिया। उनका प्रमुख उद्देश्य श्रमिकों से मनमाने ढंग से कार्य कराना, उन्हें कम मजदूरी देना तथा अधिक लाभ कमाना था। उद्योगपतियों द्वारा प्रत्येक स्तर पर श्रमिकों का हर सम्भव शोषण किया गया जैसे उचित कार्यदशाओं का न होना, उचित सुरक्षा प्रावधानों की कमी, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याणकारी कार्यक्रमों के प्रति उदासीनता, उचित पारिश्रमिक का भुगतान न करना आदि । परिणामस्वरूप श्रम समस्यायें दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। इन्हीं समस्याओं के प्रति जागरूकता उत्पन्न होने पर श्रमिकों ने संगठित होकर मालिकों का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। श्रमिकों को इस प्रकार की दयनीय स्थिति और राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों ने सरकार को श्रमिकों के लाभार्थ कुछ कानून बनाने के लिये विवश किया। भारत में कार्य करने वाले श्रमिकों की दशा को सुधारने के लिये कानून (सन्नियम) विधान बनाने का प्रश्न सर्वप्रथम सन् 1872-73 में बम्बई सूती विभाग के महानिरीक्षक मेजर मूर ने उठाया था। परिणामस्वरूप श्रम समस्याओं के नियमन के लिये पहली बार 1881 में कारखाना अधिनियम पारित किया गया। इसके बाद समय-समय पर विभिन्न श्रम समस्याओं को हल करने हेतु विभिन्न कानून बनाये गये। वस्तुत: भारत में विभिन्न श्रम सम्बन्धी अधिनियम पिछले 50-60 वर्षों में ही बनाये गये हैं। आज औद्योगिक सन्नियम के द्वारा ही देश के उद्योगपतियों एवं श्रमिकों को वैधानिक परिधि के अन्तर्गत कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। औद्योगिक सन्नियम के परिणामस्वरूप ही आज औद्योगिक विकास की तीव्र गति स्थापित हो रही है। उचित कार्य दशाओं की उपलब्धि, उचित स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रावधान, सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधानों का लागू होना,श्रम कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों को वैधानिक रूप से लागू करना, न्यूनतम मजदूरी का भुगतान एवं मजदूरी भुगतान की अच्छी व्यवस्था होने से श्रमिकों एवं उद्योगपतियों के मध्य औद्योगिक सम्बन्धों में काफी सुधार हुआ है । श्रमिकों की सामजिक सुरक्षा के लिये प्रॉविडेण्ट फण्ड अधिनियम, प्रेच्युइटी भुगतान अधिनियम, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम एवं अन्य अनेक अधिनियमों के लागू होने से श्रमिकों में आत्म-विश्वास उत्पन्न हुआ है।

औद्योगिक सन्नियम का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definitions of Industrial Law)

औद्योगिक सन्नियम से आशय ऐसे कानूनों एवं अधिनियमों से है जो औद्योगिक उपक्रमों/संस्थानों एवं उनमें कार्यरत श्रमिकों एवं उद्योगपतियों पर लागू होते हैं एवं जिनके माध्यम से औद्योगिक क्रियाओं को व्यवस्थापित व नियन्त्रित करने के साथ-साथ श्रमिकों की कार्यदशाओं, मजदूरी एवं कल्याणकारी कार्यों को नियमित करना तथा कारखाना मालिकों के विभिन्न दायित्वों को वैधानिक रूप से पूरा करवाया जाता है। औद्योगिक सन्नियम से सम्बन्धित कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं

विधि शब्दकोष के अनुसार, “औद्योगिक सन्नियम/विधि राजनियम की वह विशेष शाखा है जिसके द्वारा औद्योगिक क्षेत्र के पक्षकार, उद्योगपति एवं श्रमिकों के बीच विभिन्न अधिनियमों द्वारा उनकी क्रियाओं, कार्यदशाओं, अधिकार एवं दायित्वों का निष्पादन वैधानिक रूप से क्रियान्वित करवाया जाता है।”

एडवर्ड पेण्टन के अनुसार, “औद्योगिक सन्नियम/विधि राजनियम की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्र में उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान एवं सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधानों का प्रभावी नियमन कर समस्त औद्योगिक क्रियाओं को व्यवस्थित एवं नियमित किया जाता है ।” ।

लीक के अनुसार, “औद्योगिक सन्नियम/विधि राजनियम की वह शाखा है, जिसमें उद्योगपतियों एवं श्रमिकों के उन अधिकारों एवं दायित्वों का वर्णन होता है, जो औद्योगिक क्षेत्र की क्रियाओं को लागू करने में सहायक होते हैं।”

ब्लैक स्टोन के अनुसार,”औद्योगिक सन्नियम/विधि राजनियम की वह शाखा है जिसके द्वारा औद्योगिक क्षेत्र से सम्बन्धित पक्षकारों अर्थात उद्योगपतियों एवं श्रमिकों के अधिकार दायित्व एवं विभिन्न क्रियाकलापों पर नियमन एवं नियन्त्रण कर औद्योगिक वातावरण को सुखद बनाना है।”

निष्कर्षउपरोक्त सभी परिभाषाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि “औद्योगिक सन्नियम/विधि राजनियम की वह शाखा है जिससे औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत उद्योगपति एवं श्रमिक के बीच अधिकार एवं दायित्वों के निष्पादन,उचित कार्यदशाओं, कल्याण,स्वास्थ्य,सुरक्षा एवं उचित मजदूरी के निर्धारण एवं भुगतान सम्बन्धी कार्यों का प्रभावी रूप से निष्पादन किया जा सके।”

औद्योगिक सन्नियम के उद्देश्य

(Objectives of Industial Law)

1 औद्योगिक क्रियाओं को व्यवस्थित एवं नियन्त्रित करना।

2. उद्योगपतियों के वैधानिक अधिकार एवं दायित्वों को परिभाषित करना।

3. श्रमिकों के अधिकार एवं दायित्वों को व्यापक रूप से स्पष्ट करना।

4. उद्योगपतियों द्वारा औद्योगिक क्षेत्र में क्रियान्वित आचार संहिता का पालन करवाना।

5. नियोक्ता द्वारा श्रमिकों के शोषण को रोकना।।

6. उद्योगपतियों एवं श्रमिकों के बीच मधुर सम्बन्धों की स्थापना करना।

7. कारखानों में कार्य की दशाओं के उच्च स्तरीय मापदण्डों के अनुसार कार्य-दशाओं में सुधार करना।

8. श्रमिकों के कल्याण कार्यों की व्यवस्था करना।

9. श्रमिकों की सुरक्षा सम्बन्धी कार्यों को लागू करवाना।

10. श्रमिकों के स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यों को लागू करवाना।

11. कर्मचारियों की भविष्य की सुरक्षा हेतु प्रॉविडेण्ट फण्ड सम्बन्धी नियमों को लागू करना।

12. कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा हेतु ग्रेच्युइटी अधिनियम को लागू करवाना।

13. बालक तथा स्त्री श्रमिक के रोजगार पर प्रतिबन्ध लगाना।

14. अन्तर्राष्टीय श्रम संघ द्वारा निर्धारित मापदण्डों को देश की परिस्थिति के अनुरूप लागू करना।

15. औद्योगिक शान्ति की स्थापना करना।

16. औद्योगिक सम्बन्धों को मधुर एवं सुखद बनाये रखने में सहयोग करना।

औद्योगिक सन्नियम/विधि के सिद्धान्त

(Principles of Industrial Law)

औद्योगिक सन्नियम निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित हैं

1 सामाजिक न्याय का सिद्धान्त (Principle of Social Justice) भारतीय संविधान की धारा 38 के अन्तर्गत सामाजिक न्याय को राज्य का एक संवेदनशील उद्देश्य माना गया है। सामाजिक न्याय के अन्तर्गत उद्योग के लाभों का नियोक्ता तथा श्रमिकों में न्यायसंगत वितरण करना तथा श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा नैतिकता पर पड़ने वाले हानिप्रद प्रभावों के विरुद्ध व्यापक संरक्षण प्रदान करना है।

2. सामाजिक सुरक्षा का सिद्धान्त (Principle of Social Security) औद्योगिक सन्नियम में श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है। सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान के अन्तर्गत वे समस्त अधिनियम आते हैं जो श्रमिकों के लिये विभिन्न सामाजिक लाभों-बीमारी, प्रसूति रोजगार सम्बन्धी आघात.प्रॉविडेण्ट फण्ड एवं न्यूनतम मजदूरी आदि की व्याख्या करते हैं। इस श्रेणी में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, कर्मचारी प्रॉविडेण्ट फण्ड अधिनियम, 1952 एवं न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 आदि। आते हैं।

3. जनहित का सिद्धान्त (Principle of Public Interest)- औद्योगिक सन्नियम बनाते समय जनहित को भी पूरी तरह से ध्यान में रखा गया है।

4. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का सिद्धान्त (Principle of National Economy)-किसी भी देश के । औद्योगिक सन्नियमों की रचना करते समय देश की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखना परमावश्यक है। भारत में औद्योगिक सन्नियम की रचना करते समय भारत की अर्थव्यवस्था को भी ध्यान में रखा गया है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय एकरूपता का सिद्धान्त (Principle of International Uniformity) आधुनिक विश्वस्तरीय औद्योगिक व्यवस्था में प्रत्येक देश एक-दूसरे पर निर्भर करता है । अतः श्रम एवं औद्योगिक कानूनों के निर्माण में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समानता लाना परम् आवश्यक हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा समानता लाने के लिये व्यापक प्रयास किये जा रहे हैं।

औद्योगिक सन्नियम का क्षेत्र

(Scope of Industrial Law)

औद्योगिक सन्नियम का व्यापक क्षेत्र है जिसके द्वारा औद्योगिक क्षेत्र में आने वाली सभी क्रियाओं, सभी वर्गों अर्थात् उद्योगपतियों एवं श्रमिकों को कानून के अन्तर्गत व्यवस्थित व नियन्त्रित किया जाता है जिससे कि वे अपनी-अपनी क्रियाओं का निष्पादन प्रभावी रूप से कर सकें । संक्षेप में, औद्योगिक सन्नियमों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

1 उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान (Legislation Pertaining to Factory and Labour) इस श्रेणी के अन्तर्गत ऐसे सभी अधिनियमों को शामिल किया गया है जो समस्त कारखानों एवं श्रमिकों के काम की दशाओं का नियमन करते हैं; जैसे कारखाना अधिनियम, 1948; औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947; भारतीय श्रम संघ अधिनियम, 1926; मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936; श्रमिक क्षति-पूर्ति अधिनियम, 1923 आदि। कुछ अधिनियम केवल विशिष्ट उद्योगों पर ही लागू किये जाते हैं; जैसे कोयला खान अधिनियम, भारतीय डाक मजदूर अधिनियम आदि।

2. सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान (Legislation Pertaining to Social Security) सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान के अन्तर्गत वे समस्त अधिनियम आते हैं जो श्रमिकों के लिये विभिन्न सामाजिक लाभों-बीमारी,प्रसूति,रोजगार सम्बन्धी आघात प्राविडेण्ट फण्ड,कल्याण,न्यूनतम मजदूरी इत्यादि की व्याख्या करते हैं। इस श्रेणी में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948; कर्मचारी प्राविडेण्ट फण्ड अधिनियम, 1952; न्यूनतम भृत्ति अधिनियम, 1948 आते हैं।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

1 औद्योगिक सन्नियम क्या है ? इसकी विशेषताओं एवं क्षेत्र को समझाइए।

What is Industrial Law ? State its characteristics and scope.

2. औद्योगिक सन्नियम कुछ आधारभूत सिद्धान्तों पर निर्भर होता है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।

“Industrial Law is based on some fundamental principles.” Discuss this statement.

3. औद्योगिक सन्नियम के मुख्य उद्देश्यों एवं इसकी महत्ता को स्पष्ट कीजिए।

Explain the main objectives and importance of Industrial Law.

4. औद्योगिक सन्नियम एवं औद्योगिक विकास क्या एक-दूसरे से पूरक हैं ? विवेचना कीजिए।

Are Industrial Law and Industrial Development complement to each other? Discuss it.

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chetansati

Admin

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