BCom 2nd Year Cost Accounting Elements of Cost and Components Study Material Notes in hindi

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संक्षेप में, लागत के तत्वों के वर्गीकरण को निम्नलिखित चार्ट के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

उपरोक्त वर्णित लागत के तत्वों की विस्तृत विवेचना निम्नलिखित है
(1) सामग्री (Materials) लागत के तत्वों में सामग्री का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि बिना सामग्री के कोई भी वस्तु उत्पादित नहा का जा सकती। वस्तुत: किसी भी वस्तु की कल लागत का एक बड़ा भाग भी अधिकांशत: सामग्री लागत का हो होता है। सामग्री निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-(i) प्रत्यक्ष एवं (ii) अप्रत्यक्षा

(i) प्रत्यक्ष सामग्री (Direct Material) वह सामग्री जो उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग की जाती है और निर्मित वस्तु का प्रमख अंग होती है, प्रत्यक्ष सामग्री कहलाती है। इस प्रकार की सामग्री का निर्मित वस्तु में भौतिक अस्तित्व होता ह तथा निर्मित वस्तु में लगी इसकी मात्रा तथा मूल्य को सरलता से जाना जा सकता है। सरल शब्दों में, प्रत्यक्ष सामग्री से अभिप्राय उस सामग्रा स ह जिससे कि वस्तु बनी है। जैसे. चीनी उत्पादन में गन्ना, फर्नीचर बनाने में लकड़ी एवं कपड़ा उत्पादन के लिए सूत आदि।

लागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “प्रत्यक्ष सामग्री लागत, सामग्री की वह लागत है जिसे आर्थिक सम्भाव्य रूप में एक लागत केन्द्र या लागत वस्तु (Cost object) पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित किया जा सकता है।” (Direct | Material Cost is cost of material which can be directly allocated to a cost centre or a cost object in an economically feasible way.)

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संक्षेप में, निम्नलिखित सामग्रियों को प्रत्यक्ष सामग्री में सम्मिलित किया जाता है
(i) वह सामग्री जो उत्पादन में प्रत्यक्ष रुप से प्रयोग की जाती है; जैसे, फर्नीचर बनाने में लकड़ी, पुस्तक मुद्रण में कागज, आदि।
(ii) वह सामग्री जो किसी विशिष्ट कार्य या आदेश के लिए ही क्रय की गई हो जैसे, किसी ठेका कार्य के लिए क्रय की गयी ईंटें तथा सीमेण्ट।
(iii) एक विधि या प्रक्रिया का तैयार माल जो दूसरी विधि के लिए कच्चे माल का कार्य करे; जैसे, एक कपड़ा मिल में कताई विधि का तैयार माल, बुनाई विधि के लिए प्रत्यक्ष सामग्री का कार्य करता है।
(iv) वह सभी सामग्री जो स्टोर से किसी कार्य को पूरा करने के लिए ली गई हो।
विशेष-सामग्री के लागत मूल्य में सामग्री के क्रय-मूल्य के अतिरिक्त सामग्री को भण्डार-गृह तक पहुँचाने के सम्पूर्ण व्यय भी शामिल किये जाते हैं।
(ii) अप्रत्यक्ष सामग्री (Indirect Material)- जो सामग्री किसी वस्तु के उत्पादन में परोक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से सहायक होती है, उसे अप्रत्यक्ष सामग्री कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसी सामग्री जो उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग नहीं की जाती और न ही निर्मित वस्तु का हिस्सा बनती है किन्तु उस वस्तु के उत्पादन कार्य को कुशलतापूर्वक संचालित करने के लिए, उसका प्रयोग आवश्यक होता है, अप्रत्यक्ष सामग्री कही जाती है। जैसे, मशीनों को कार्यरत रखने के लिए आवश्यक तेल या मशीनों की सफाई के लिए प्रयोग किये जाने वाला कपड़ा। इसके अतिरिक्त कुछ सामग्री ऐसी भी होती हैं जो उत्पादित वस्तु का अंग तो होती हैं परन्तु वे मात्रा एवं मूल्य में इतनी कम होती हैं कि प्रति इकाई लागत मालूम करना बड़ा कठिन होता है अर्थात् उनका अलग से हिसाब रखना सुविधाजनक नहीं होता; जैसे, जूते में प्रयोग होने वाली कीलें, रेडीमेड वस्त्र व्यवसाय में किसी कपड़े की सिलाई में प्रयोग होने वाला धागा या पुस्तक की बाइण्डिग में प्रयोग होने वाला धागा एवं लेही, आदि।

लागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “अप्रत्यक्ष सामग्री, सामग्री की वह लागत है जिसे एक विशिष्ट लागत केन्द्र या लागत वस्तु पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित नहीं किया जा सकता है।” (Indirect Material is the cost of material which can not be directly allocable to a particular cost centre or cost object.)

सी० आई० एम० ए० के अनुसार, “अप्रत्यक्ष सामग्री लागत से आशय उस सामग्री लागत से है जो लागत केन्द्रों अथवा लागत इकाइयों पर प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित नहीं की जा सकती परन्तु उनमें अनुभाजित की जा सकती है अथवा अवशोषित की जा सकती है।

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(2) श्रम (Labour) अथवा मजदूरी (Wages)–लागत का दूसरा प्रमुख तत्व श्रम अथवा मजदूरी है। उत्पादन कार्य में संलग्न श्रमिकों को जो मजदूरी दी जाती है, उसे सम्बन्धित वस्तु की लागत में श्रम लागत के रूप में शामिल किया जाता है। संक्षेप में, श्रम या मजदूरी से आशय संस्था के कर्मचारियों को दिये गये पारिश्रमिक की लागत से है। सामग्री की भाँति मजदूरी को भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-(i) प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct Wages), एवं (ii) अप्रत्यक्ष मजदूरी (Indirect Wages

(i) प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct Wagesकिसी वस्तु के उत्पादन, निर्माण एवं रूप परिवर्तन पर प्रत्यक्ष रूप में किये गये मजदूरी व्यय को प्रत्यक्ष श्रम/प्रत्यक्ष मजदूरी के नाम से जाना जाता है। सरल शब्दों में, यह वह श्रम है जिसका सरलतापूर्वक किसी कार्य विशेष, उत्पाद या प्रक्रिया विशेष के साथ सम्बद्ध किया जा सकता है. इसीलिए इसे प्रत्यक्ष श्रम कहत हा जस, फनीचर बनाने के लिए बढ़ई को दी गई मजदूरी, कारखाने में मशीन पर कार्य करने वाले श्रमिक को दो गइ मजदूरा। इस Factory wages) अथवा परिचालन मजदूरी उत्पादक मजदूरी (Productive Wages), निर्माण या कारखाना मजदूरी (Factory Wages) अथवा परिचालन मजदूरी (Operative Wages) भी कहते हैं।

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लागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “प्रत्यक्ष श्रम लागत उन श्रमिकों का मजदूरा का किसी लागत केन्द्र या लागत वस्तु के साथ स्पष्ट रूप से सम्बद्ध किया जा सकता है या पहचाना Labour Cost is the cost of wages of those workers who are readily identified or link readily identified or linked with a cost centre or costobject.)

सी० आई० एम० ए० के अनुसार, “प्रत्यक्ष श्रम से आशय उस श्रम लागत से है जिसका सम्बन्ध पूर्णतया किसी निश्चित उत्पादित वस्तु, उपकार्य, प्रक्रिया, लागत केन्द्र या इकाई से जोड़ा जा सकता ह।।

(ii) अप्रत्यक्ष मजदूरी (Indirect Wages)_ऐसे श्रमिक जो उत्पादन कार्य में तो प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेते परन्त उत्पादन क्रिया के संचालन में सहयोग, उत्पादन क्रिया पर निरीक्षण अथवा उत्पादन क्रिया में प्रयुक्त मशीनों के अनुरक्षण का कार्य करते हैं, उन्हें दी जाने वाली मजदरी ही अप्रत्यक्ष मजदरी कही जाती है। सरल शब्दों में, ऐसे श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी जो उत्पादन कार्य में अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान करते हैं, अप्रत्यक्ष मजदूरी कही जाती है। जैसे, फोरमैन या कार्य निरीक्षक का श्रम, मशीनों की मरम्मत करने वाले कर्मचारी का श्रम, कारखाने के चौकीदार को दिया गया वेतन, जादा सा० आई० एम० ए० के अनुसार, “अप्रत्यक्ष श्रम लागत से आशय उस श्रम लागत से है जो लागत केन्द्रों अथवा लागत इकाइयों पर प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित नहीं की जा सकती परन्तु उनमें अनुभाजित की जा सकती है अथवा अवशोषित की जा सकती है।”

लागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “अप्रत्यक्ष श्रम लागत उन कर्मचारियों की मजदूरी है जिसे किसी विशिष्ट लागत केन्द्र पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित नहीं किया जा सकता।” (Indirect Labour Cost is the wages of the employees which are not directly allocable to a particular cost centre.)

(3) व्यय (Expenses)-सामग्री तथा श्रम के उपरान्त लागत का तीसरा प्रमुख तत्व व्यय (Expenses) है। उत्पादन क्रिया को सम्पन्न करने के लिए सामग्री तथा श्रम के अतिरिक्त कुछ व्यय भी आवश्यक रूप से करने पड़ते हैं। इन व्ययों को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
(i) प्रत्यक्ष व्यय अथवा प्रभारित व्यय (Direct or Chargeable Expenses)ॉ
(ii) अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses)
(i) प्रत्यक्ष व्यय (Direct expenses)—ऐसे व्यय जो किसी विशेष वस्तु के निर्माण अथवा एक विशेष कार्य से ही सम्बन्धित होते हैं, प्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। इन्हें प्रत्यक्ष प्रभार (Direct charges) अथवा प्रभारित व्यय (Chargeable expenses) भी कहते हैं। ये व्यय किसी विशेष उत्पादन से सम्बन्धित होते हैं, अत: इन्हें उत्पादित वस्तु की प्रत्येक इकाई पर डाल दिया जाता है। ऐसे व्यय किसी वस्तु की मूल लागत (Prime cost) का एक भाग होते हैं।
किसी व्यय को प्रत्यक्ष व्यय माना जाए अथवा अप्रत्यक्ष, इसकी कोई प्रमाणित सूची नहीं बनाई जा सकती। किसी व्यय का प्रत्यक्ष होना अथवा न होना व्यापार की दशाओं, व्यय के स्वरूप, आदि विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सामान्यत: निम्नलिखित व्ययों को प्रत्यक्ष व्यय में सम्मिलित किया जाता है
(1) भूमिपति को दिया गया अधिकार-शुल्क (Royalty)।

(2) प्रत्यक्ष सामग्री के क्रय पर दिया गया भाड़ा (Carriage), रेल किराया, चुंगी कर, आदि

(3) विशेष कार्य के लिए स्थापित मशीन का किराया, रखरखाव व्यय एवं संचालन व्यय।
(4) किसी विशेष कार्य के लिए नक्शे या डिजाइनों (Drawing or Designs) का व्यय, प्रतिरूप (मॉडल) तैयार करने का व्यय तथा प्रयोगात्मक व्यय।
(5) किसी विशेष कार्य या ठेके के सम्बन्ध में शिल्पकारों (Architects), इन्जीनियरों अथवा सर्वेक्षकों का शुल्क।

(6) किसी विशेष ठेके अथवा उपकार्य को प्राप्त करने के लिए किये गये यात्रा व्यय, होटल व्यय, कानूनी व्यय, आदि।
(7) असन्तोषजनक कार्य को सुधारने की लागत जो किसी विशेष कार्य से सम्बन्धित हो।
(8) उपअनुबन्ध की लागत (Subcontract cost)।
(9) उत्पादन कर (Excise duty)।

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कुछ व्यवसायों जैसे, भवन निर्माण तथा ठेके के व्ययों का एक बड़ा भाग प्रत्यक्ष व्यय ही माना जाता है क्योंकि इन कार्यों की प्रकृति ऐसी होती है कि अधिकांश व्ययों को आसानी से विशेष ठेके से सम्बन्धित किया जा सकता है। खानों (Mines), भट्टो (Brick kilns), स्लेट निर्माण संस्थाओं (Slate manufacturing companies) व पत्थर की खानों (Quarries) के सम्बन्ध में कोयला (Coal), आन्तरिक यातायात (Internal transport), रॉयल्टी (Royalties), आदि व्यय प्रत्यक्ष माने जाते हैं ।

लागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “प्रत्यक्ष सामग्री एवं प्रत्यक्ष श्रम के अतिरिक्त वह व्यय जिन्हें किसी लागत कन्द्र या लागत वस्तु के साथ सम्बद्ध किया जा सकता है अथवा पहचाना जा सकता है, प्रत्यक्ष व्यय होते हैं।” (Direct Expenses are the expenses other than direct material or direct labour which can be identified or linked with the cost centre or cost object.)

(ii) अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses)—ऐसे व्यय जो किसी विशेष कार्य, उपकार्य, प्रक्रिया या उत्पादन से सम्बन्धित न होकर फैक्टरी के समस्त उत्पादन या अनेक कार्यों से सम्बन्धित होते हैं, अप्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष व्ययों का लाभ एक से अधिक लागत केन्द्रों या इकाइयों को प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, एक ठेकेदार तीन एक जैसे भवन निर्माण हेतु एक ही नक्शा बनाने पर 500 ₹ व्यय करता है तो यह अप्रत्यक्ष व्यय कहलायेगा क्योंकि इस व्यय का सम्बन्ध तीनों मकानों से है। इसी प्रकार यदि किसी विशेषज्ञ को बुलाकर सभी विभागों की मशीनें ठीक करायी जायें तो विशेषज्ञ को दिया गया पारिश्रमिक भी अप्रत्यक्ष व्यय होगा।

लागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “सामग्री एवं श्रम की प्रकृति के अतिरिक्त व्यय एवं ऐसे व्यय जिन्हें किसी विशिष्ट लागत केन्द्र पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित नहीं किया जा सकता, अप्रत्यक्ष व्यय होते हैं।” (Indirect expenses are the expenses other than of the nature of material or labour and can not be directly allocable to a particular cost centre.)
उपरिव्यय (Overheads)-अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष श्रम तथा अप्रत्यक्ष व्ययों के योग को उपरिव्यय कहते हैं। वस्तुतः । इनका सम्बन्ध किसी विशेष कार्य या उत्पादन से न होकर समस्त उत्पादन कार्यों से होता है। किसी वस्तु या इकाई की उत्पादन लागत में इनका हिस्सा निर्धारित करने के लिए इन्हें किसी उचित आधार पर अभिभाजित किया जाता है। इन्हें अंग्रेजी में ‘Overhead’ या ‘Oncost’ कहा जाता है।

लागत लेखांकन प्रमाप-3 (CAS-3) के अनुसार, “उपरिव्ययों में अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष कर्मचारी लागतों एवं अप्रत्यक्ष व्ययों को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें आर्थिक सम्भाव्य रूप में किसी लागत वस्तु पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित नहीं किया जा सकता अथवा पहचाना नहीं जा सकता।” (Overheads comprise of Indirect materials, Indirect employees costs and Indirect expenses which are not directly identifiable or allocable to a cost object in an economically feasible way.)

उपरिव्ययों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है
(1) कारखाना उपरिव्यय (Factory or Works Overhead) किसी वस्तु के निर्माण के सम्बन्ध में कारखाने के अन्तर्गत प्रयुक्त अप्रत्यक्ष सामग्री की लागत, कारखाने में व्यय हुई अप्रत्यक्ष मजदूरी तथा अन्य अप्रत्यक्ष व्ययों के योग को कारखाना उपरिव्यय कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कारखाने का किराया, मशीनों को कार्यरत रखने के लिए आवश्यक तेल, मशीनों की सफाई के लिए प्रयोग किये जाने वाला कपड़ा, उत्पादन में प्रयुक्त कम मूल्य की सामग्री-कीलें, सरेस, लेही, ग्रीस, धागा, आदि, कारखाने के मैनेजर, निरीक्षक, चौकीदार, फोरमैन का वेतन, प्लाण्ट एवं मशीन का ह्रास, प्रकाश एवं शक्ति व्यय, नक्शा कार्यालय के व्यय, श्रम कल्याण व्यय आदि।

(2) कार्यालय या प्रशासन उपरिव्यय (Office or Administration Overhead) कार्यालय या प्रशासन उपरिव्ययों के अन्तर्गत ऐसे व्ययों को शामिल किया जाता है जो कार्यालय के संचालन तथा संस्था के प्रशासन व प्रबन्ध के लिए किये जाते हैं। उदाहरण के लिए, कार्यालय भवन का किराया व बीमा, कार्यालय बिजली एवं पानी व्यय, कार्यालय टेलीफोन व्यय, कार्यालय की स्टेशनरी एवं डाक व्यय, कार्यालय के प्रबन्धकों, संचालकों, लिपिकों तथा अन्य कर्मचारियों का वेतन, कार्यालय भवन एवं फर्नीचर की मरम्मत तथा ह्रास, कानूनी व्यय, व्यापारिक चन्दे तथा अन्य कार्यालय व्यय आदि।

(3) विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय (Selling and Distribution Overhead) जो व्यय उत्पादित वस्तु की सामान्य बिक्री, माँग बढ़ाने या वस्तु का बाजार विस्तृत करने के लिए किये जाते हैं, विक्रय उपरिव्यय कहलाते हैं। जैसे, विक्रय विभाग में प्रयुक्त स्टेशनरी, मूल्य सूची, नमनों पर होने वाला व्यय, विक्रय प्रतिनिधियों, विक्रय प्रबन्धक एवं अन्य कर्मचारियों का वेतन । विज्ञापन व्यय। दूसरी ओर ऐसे व्यय जो निर्मित वस्तओं को ग्राहकों तक पहुंचाने के सम्बन्ध में किये जाते हैं वितरण व्यय कहला है। जैसे, वितरण विभाग के कर्मचारियों का वेतन, पैकिंग सामग्री, गोदाम का किराया, सुपुर्दगी देने वाली गाड़ियों का ह्रास, मरम्मत पामा व्यय, बाहरी गाड़ी भाड़ा व अन्य परिवहन व्यय। सुविधा की दृष्टि से दोनों का लेखा साथ-साथ करते है।

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अप्रत्यक्ष व्यय एवं उपरिव्यय में अन्तर (Difference Between Overheads and Indirect Expenses)-उपरिव्यय (Overhead or Oncost) से अभिप्राय अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष श्रम एवं अप्रत्यक्ष व्ययों के योग से है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष व्यय, उपारव्यय का एक अंग मात्र ही हैं। परन्त दोनों में मौलिक एवं सैद्धान्तिक अन्तर होते हुए भी सामान्य बोलचाल में, इनसे कोई अन्तर नहीं माना जाता। अत: अप्रत्यक्ष व्ययों को उपरिव्यय भी कहा जाता है।

उपरिव्यय एवं अधिव्यय में अन्तर (Difference Between Overhead and Oncost)-सामान्यतया उपरिव्यय एवं आधव्यय को एक दूसरे का पर्यायवाची माना जाता है, परन्तु दोनों शब्दों में महत्त्वपूर्ण तकनीकी अन्तर है। अप्रत्यक्ष सामग्री एवं अप्रत्यक्ष श्रम के अतिरिक्त सभी वास्तविक अप्रत्यक्ष व्यय के योग को ‘उपरिव्यय’ कहते हैं। इसके विपरीत अधिव्यय (Oncost) अप्रत्यक्ष व्यय के उस भाग को कहते हैं जो प्रायः प्रतिशत के आधार पर किसी एक वस्तु की कुल लागत में आबंटित (Allocate) किये जाते हैं।

डब्ल्यू डब्ल्यू० बिग के अनुसार, “अधिव्यय, अप्रत्यक्ष व्ययों की वसूली के लिए उत्पादन पर एक प्रभार है।” (Oncost is defined as charge made to production for the recovery of indirectexpenses.)

लागत लेखों में सम्मिलित न की जाने वाली मदें (Items not to be Included in Cost Accounts)-लागत लखो में उत्पादन सम्बन्धी मदों का ही लेखा किया जाता है। कुछ व्ययों का लागत से न तो प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है और न ही अप्रत्यक्ष सम्बन्ध। अत: उन्हें लागत में शामिल नहीं किया जाता। इसी प्रकार अनेक मदें विशुद्ध रूप से वित्तीय प्रकृति की होती है उन्हें भी लागत लेखों में सम्मिलित नहीं किया जाता। ऐसी मदों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

(1) वित्त सम्बन्धी मदें (Financial Items) जैसे अर्थ-दण्ड, जुर्माना, हर्जाना, आय-कर व सम्पत्ति कर, ऋण पर ब्याज, नकद बट्टा दिया एवं प्राप्त किया, कर्मचारियों को देय क्षतिपूर्ति की राशि, बैंक जमाओ एवं विनियोगों पर प्राप्त ब्याज, लाभांश, अंश हस्तान्तरण फीस, विनियोगों व स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय पर लाभ या हानि, प्राप्त कमीशन आदि।

(2) लाभ नियोजन सम्बन्धी मदें (Appropriation of Profits) जैसे आय-कर एवं सम्पत्ति कर, कोषों में हस्तान्तरित राशि, चुकाया गया लाभांश, दान, अपलिखित राशियाँ-प्रारम्भिक व्यय, अभिगोपन कमीशन, अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर बट्टा, पूँजी निर्गमन के व्यय, आदि।
(3) असामान्य मदें (Abnormal Items)—इसमें असाधारण हानियाँ जैसे, सामग्री या अन्य व्यावसायिक सम्पत्ति की आग, चोरी, बाढ़, भूकम्प, उपद्रव या अन्य प्राकृतिक दुर्घटनाओं से होने वाली हानि, असाधारण निष्क्रिय समय की लागत, सामग्री या निर्मित माल की असाधारण हानि, आदि मदें होती हैं।
कुल लागत के विभिन्न अंग
(Components of Total Cost)
उत्पादन की कुल लागत की जानकारी प्राप्त करने हेतु एक लागत विवरण तैयार किया जाता है। इसमें लागत के उपरोक्त वर्णित विभिन्न तत्वों के आधार पर कुल लागत का निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है

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(1) मूल लागत (Prime Cost)—मूल लागत को प्रत्यक्ष लागत (Direct Cost), प्रथम लागत (First Cost) तथा सम लागत (Flat Cost) भी कहते हैं। मूल लागत को ज्ञात करने का उद्देश्य उत्पादित वस्तु की कुल लागत को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लागतों में बाँटना है। समस्त प्रत्यक्ष व्ययों के योग को मूल लागत (Prime Cost) कहते हैं अर्थात् प्रत्यक्ष सामग्री, प्रत्यक्ष श्रम तथा अन्य प्रत्यक्ष व्ययों को जोड़कर जो लागत आती है उसे मूल लागत कहते हैं।
Prime Cost = Direct Material + Direct Wages + Direct Expenses
(2) कारखाना लागत (Works Cost or Factory Cost) कारखाना लागत ज्ञात करने का उद्देश्य कारखाना लागत पर। नियन्त्रण करना व कारखाने की कार्यकुशलता ज्ञात करना है। मूल लागत में कारखाना उपरिव्यय जोड़ देने से कारखाना लागत ज्ञात हो जाती है।
Works Cost = Prime cost + Works Overheads
(3) कार्यालय लागत या उत्पादन लागत (Office Cost or Cost of Production)-कारखाना लागत में कार्यालय एवं शासन उपरिव्ययों की रकम जोड़ देने से कार्यालय लागत (Office Cost) ज्ञात हो जाती है। इसे उत्पादन लागत (Cost of production) भी कहा जाता है। सूत्र रूप में
Office Cost = Works Cost + Office Overheads
इस लागत की पिछले वर्षों से तुलना करने पर कार्यालय की क्षमता का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और भविष्य में कार्यालय को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा सकती है।
(4) कुल लागत (Total Cost) कार्यालय लागत में विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय जोड़ देने से कुल लागत ज्ञात हो जाती है। विक्रय एवं वितरण व्यय चूँकि केवल बेची गयी इकाइयों पर ही चार्ज किये जाते हैं, इसलिए इन्हें चार्ज करने से पूर्व निर्मित माल के स्कन्ध का समायोजन करना आवश्यक होता है। सूत्र रूप में
Total Cost = Office Cost + Selling and Distribution Expenses
(5) विक्रय मूल्य (Selling price)कुल लागत में अपेक्षित लाभ जोड़ देने पर विक्रय-मूल्य प्राप्त हो जाता है। यदि विक्रय-मूल्य एवं लागत ज्ञात हों तो दोनों का अन्तर लाभ अथवा हानि की रकम होगी। सूत्र रूप में
Selling Price = Cost + Profit; Prosit = Sales – Cost
उपर्युक्त विवेचन के उपरान्त लागत लेखों में उपर्युक्त लागत वर्गीकरण को प्रस्तुत करने वाले लागत विवरण (Statement of Cost) को निम्नलिखित प्रारूप में प्रदर्शित किया जा सकता हैलागत लेखांकन प्रमाप-1 (CAS-1) के अनुसार, “सामग्री एवं श्रम की प्रकृति के अतिरिक्त व्यय एवं ऐसे व्यय जिन्हें किसी विशिष्ट लागत केन्द्र पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित नहीं किया जा सकता, अप्रत्यक्ष व्यय होते हैं।” (Indirect expenses are the expenses other than of the nature of material or labour and can not be directly allocable to a particular cost centre.)
उपरिव्यय (Overheads)-अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष श्रम तथा अप्रत्यक्ष व्ययों के योग को उपरिव्यय कहते हैं। वस्तुतः । इनका सम्बन्ध किसी विशेष कार्य या उत्पादन से न होकर समस्त उत्पादन कार्यों से होता है। किसी वस्तु या इकाई की उत्पादन लागत में इनका हिस्सा निर्धारित करने के लिए इन्हें किसी उचित आधार पर अभिभाजित किया जाता है। इन्हें अंग्रेजी में ‘Overhead’ या ‘Oncost’ कहा जाता है।
लागत लेखांकन प्रमाप-3 (CAS-3) के अनुसार, “उपरिव्ययों में अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष कर्मचारी लागतों एवं अप्रत्यक्ष व्ययों को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें आर्थिक सम्भाव्य रूप में किसी लागत वस्तु पर प्रत्यक्ष रूप से आबंटित नहीं किया जा सकता अथवा पहचाना नहीं जा सकता।” (Overheads comprise of Indirect materials, Indirect employees costs and Indirect expenses which are not directly identifiable or allocable to a cost object in an economically feasible way.)

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उपरिव्ययों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है
(1) कारखाना उपरिव्यय (Factory or Works Overhead) किसी वस्तु के निर्माण के सम्बन्ध में कारखाने के अन्तर्गत प्रयुक्त अप्रत्यक्ष सामग्री की लागत, कारखाने में व्यय हुई अप्रत्यक्ष मजदूरी तथा अन्य अप्रत्यक्ष व्ययों के योग को कारखाना उपरिव्यय कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कारखाने का किराया, मशीनों को कार्यरत रखने के लिए आवश्यक तेल, मशीनों की सफाई के लिए प्रयोग किये जाने वाला कपड़ा, उत्पादन में प्रयुक्त कम मूल्य की सामग्री-कीलें, सरेस, लेही, ग्रीस, धागा, आदि, कारखाने के मैनेजर, निरीक्षक, चौकीदार, फोरमैन का वेतन, प्लाण्ट एवं मशीन का ह्रास, प्रकाश एवं शक्ति व्यय, नक्शा कार्यालय के व्यय, श्रम कल्याण व्यय आदि।
(2) कार्यालय या प्रशासन उपरिव्यय (Office or Administration Overhead) कार्यालय या प्रशासन उपरिव्ययों के अन्तर्गत ऐसे व्ययों को शामिल किया जाता है जो कार्यालय के संचालन तथा संस्था के प्रशासन व प्रबन्ध के लिए किये जाते हैं। उदाहरण के लिए, कार्यालय भवन का किराया व बीमा, कार्यालय बिजली एवं पानी व्यय, कार्यालय टेलीफोन व्यय, कार्यालय की स्टेशनरी एवं डाक व्यय, कार्यालय के प्रबन्धकों, संचालकों, लिपिकों तथा अन्य कर्मचारियों का वेतन, कार्यालय भवन एवं फर्नीचर की मरम्मत तथा ह्रास, कानूनी व्यय, व्यापारिक चन्दे तथा अन्य कार्यालय व्यय आदि।
(3) विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय (Selling and Distribution Overhead) जो व्यय उत्पादित वस्तु की सामान्य बिक्री, माँग बढ़ाने या वस्तु का बाजार विस्तृत करने के लिए किये जाते हैं, विक्रय उपरिव्यय कहलाते हैं। जैसे, विक्रय विभाग में प्रयुक्त स्टेशनरी, मूल्य सूची, नमनों पर होने वाला व्यय, विक्रय प्रतिनिधियों, विक्रय प्रबन्धक एवं अन्य कर्मचारियों का वेतन । विज्ञापन व्यय। दूसरी ओर ऐसे व्यय जो निर्मित वस्तओं को ग्राहकों तक पहुंचाने के सम्बन्ध में किये जाते हैं वितरण व्यय कहला है। जैसे, वितरण विभाग के कर्मचारियों का वेतन, पैकिंग सामग्री, गोदाम का किराया, सुपुर्दगी देने वाली गाड़ियों का ह्रास, मरम्मत पामा व्यय, बाहरी गाड़ी भाड़ा व अन्य परिवहन व्यय। सुविधा की दृष्टि से दोनों का लेखा साथ-साथ करते है।
अप्रत्यक्ष व्यय एवं उपरिव्यय में अन्तर (Difference Between Overheads and Indirect Expenses)-उपरिव्यय (Overhead or Oncost) से अभिप्राय अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष श्रम एवं अप्रत्यक्ष व्ययों के योग से है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष व्यय, उपारव्यय का एक अंग मात्र ही हैं। परन्त दोनों में मौलिक एवं सैद्धान्तिक अन्तर होते हुए भी सामान्य बोलचाल में, इनसे कोई अन्तर नहीं माना जाता। अत: अप्रत्यक्ष व्ययों को उपरिव्यय भी कहा जाता है।
उपरिव्यय एवं अधिव्यय में अन्तर (Difference Between Overhead and Oncost)-सामान्यतया उपरिव्यय एवं आधव्यय को एक दूसरे का पर्यायवाची माना जाता है, परन्तु दोनों शब्दों में महत्त्वपूर्ण तकनीकी अन्तर है। अप्रत्यक्ष सामग्री एवं अप्रत्यक्ष श्रम के अतिरिक्त सभी वास्तविक अप्रत्यक्ष व्यय के योग को ‘उपरिव्यय’ कहते हैं। इसके विपरीत अधिव्यय (Oncost) अप्रत्यक्ष व्यय के उस भाग को कहते हैं जो प्रायः प्रतिशत के आधार पर किसी एक वस्तु की कुल लागत में आबंटित (Allocate) किये जाते हैं।
डब्ल्यू डब्ल्यू० बिग के अनुसार, “अधिव्यय, अप्रत्यक्ष व्ययों की वसूली के लिए उत्पादन पर एक प्रभार है।” (Oncost is defined as charge made to production for the recovery of indirectexpenses.)
लागत लेखों में सम्मिलित न की जाने वाली मदें (Items not to be Included in Cost Accounts)-लागत लखो में उत्पादन सम्बन्धी मदों का ही लेखा किया जाता है। कुछ व्ययों का लागत से न तो प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है और न ही अप्रत्यक्ष सम्बन्ध। अत: उन्हें लागत में शामिल नहीं किया जाता। इसी प्रकार अनेक मदें विशुद्ध रूप से वित्तीय प्रकृति की होती है उन्हें भी लागत लेखों में सम्मिलित नहीं किया जाता। ऐसी मदों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
(1) वित्त सम्बन्धी मदें (Financial Items) जैसे अर्थ-दण्ड, जुर्माना, हर्जाना, आय-कर व सम्पत्ति कर, ऋण पर ब्याज, नकद बट्टा दिया एवं प्राप्त किया, कर्मचारियों को देय क्षतिपूर्ति की राशि, बैंक जमाओ एवं विनियोगों पर प्राप्त ब्याज, लाभांश, अंश हस्तान्तरण फीस, विनियोगों व स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय पर लाभ या हानि, प्राप्त कमीशन आदि।
(2) लाभ नियोजन सम्बन्धी मदें (Appropriation of Profits) जैसे आय-कर एवं सम्पत्ति कर, कोषों में हस्तान्तरित राशि, चुकाया गया लाभांश, दान, अपलिखित राशियाँ-प्रारम्भिक व्यय, अभिगोपन कमीशन, अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर बट्टा, पूँजी निर्गमन के व्यय, आदि।

(3) असामान्य मदें (Abnormal Items)—इसमें असाधारण हानियाँ जैसे, सामग्री या अन्य व्यावसायिक सम्पत्ति की आग, चोरी, बाढ़, भूकम्प, उपद्रव या अन्य प्राकृतिक दुर्घटनाओं से होने वाली हानि, असाधारण निष्क्रिय समय की लागत, सामग्री या निर्मित माल की असाधारण हानि, आदि मदें होती हैं।

 

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