BCom 1st Year Business Development Meaning Scope Statistics Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Statistics Study Material Notes in Hindi

सांख्यिकी का विकास, अर्थ एवं क्षेत्र

(Development, Meaning and Scope of Statistics)

सांख्यिकी का उद्गम एवं विकास

(Origin and Development of Statistics)

आधुनिक युग में मानवीय ज्ञान, विज्ञान तथा सभ्यता के बहुमुखी विकास में संख्याओं का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस समय का मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में अधिकतर संख्याओं के रूप में ही ज्ञान प्राप्त करता है तथा संख्यात्मक रीतियों की सहायता से अनेक महत्वपूर्ण निर्णय भी लेता है । संख्याओं के आधार पर ज्ञान को स्पष्ट एवं निश्चयात्मक रूप में व्यक्त किया जा सकता है । जो ज्ञान संख्यात्मक तथ्यों पर आधारित नहीं होता वह वास्तव में ‘ज्ञान’ ही नहीं कहा जा सकता है। लार्ड केल्विन के अनुसार-“जिस विषय की बात आप कर रहे हैं यदि आप उसका माप कर सकते हैं तथा उसे संख्याओं में प्रकट कर सकते हैं तो आप उसके बारे में कुछ जानते हैं, किन्तु आप उस विषय का माप संख्या में नहीं कर सकते तो आपका ज्ञान जल्प है तथा वह भी असन्तोषजनक प्रकृति का है।”

अंग्रेजी भाषा का शब्द ‘Statistics’ जर्मन भाषा के शब्द Statistik’ तथा लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से लिया गया है जिनका अर्थ है राज्य या सरकार । ‘Statistics’ शब्द को सर्वप्रथम प्रयोग करने का श्रेय जर्मनी के प्रसिद्ध गणिताचार्य गौटफ्रायड एचेनवाल (Gottfried Achenwall), जिन्हें सांख्यिकी का जनक भी कहा जाता है, को है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सांख्यिकी की उत्पत्ति सही अर्थों में राजाओं के विज्ञान’ (Science of Kings) के रूप में हुई है। प्राचीन इतिहास का अध्ययन करने से पता लगता है कि ये शासक अपने राज्य से सम्बन्धित विभिन्न विषयों के सामयिक सर्वेक्षण कराते रहते थे ताकि उन्हें वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता रहे । ये शासक मुख्य रूप से जनशक्ति, धनशक्ति तथा सैन्यशक्ति से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्र कराते थे। 3,050 ई० पूर्व विश्वविख्यात पिरैमिडों के निर्माण हेतु मिस्र के सम्राट द्वारा समंकों का संकलन कराया गया था। इसी प्रकार 1400 ई. पूर्व सम्राट रैमेसिस द्वितीय ने भूमि सम्बन्धी तथा मूसा सम्राट ने जातियों की गणना करायी थी। भारत में कोटिल्य का अर्थशास्त्र, तुजुक-ए-बाबरी जैसे ग्रन्थ समंक संग्रहण की कला का जीता जागत उदाहरण है।

कालान्तरण में धीरे-धीरे इस विज्ञान का प्रयोग अन्य क्षेत्रों में भी किया जाने लगा। जैसे 16वीं सदी में जॉन्स कैपलर ने खगोलशास्त्र के क्षेत्र में,सर टामस ग्रेशम ने आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में,17वीं सदी में जीवन समंकों के रूप में तथा 18वीं सदी में गणितीय विज्ञान के क्षेत्र में इसका प्रयोग प्रारम्भ कर दिया गया। 18वीं सदी में ही सांख्यिकीय बरनौली.लाप्लेस तथा गौस जैसे विद्वानों ने सम्भावना सिद्धान्त, नियमितता सिद्धान्त तथा प्रसामान्य विभ्रम सिद्धान्त (Normal Law of Errors) का प्रतिपादन किया। 19वीं सदी तथा 20वीं सदी तो स्वयं में एक सांख्यिकीय युग है जिसमें मानव जाति से सम्बन्धित सभी विज्ञानों में इसका पूर्णरूपेण प्रयोग किया जाने लगा ।

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सांख्यिकी का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Statistics)

सांख्यिकी’ शब्द का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है

(1) एकवचन तथा

(2) बहुवचन

अति प्राचीन काल से जब सांख्यिकी का अधिक विकास नहीं हो पाया था तब प्रायः इसको बहुवचन अर्थात् समंकों के रूप में ही स्वीकार किया जाता था, परन्तु कालान्तर में इस विज्ञान के पूर्ण विकसित होने पर इसको एकवचन अर्थात् सांख्यिकी विज्ञान (Science of Statistics) के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा है।

केन्डाल तथा बकलैन्ड (Kendall and Buckland) ने सांख्यिकी शब्द की व्याख्या निम्न प्रकार की है

सांख्यिकी बहुवचन र्थात् समंकों के रूप में व्यक्तिगत इकाइयों के समूह से सम्बन्धित संख्यात्मक तथ्य

सांख्यिकी एकवचन अर्थात् विज्ञान के रूप में समंकों के संग्रह, विश्लेषण एवं निर्वचन का विज्ञान है।

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बहुवचन के रूप में समंकों की परिभाषा

(In Plural Sense Definition of Statistical Data)

ए० एल० बाउले (A. L. Bowley) के अनुसार, “समंक किसी अनुसन्धान के किसी विभाग में तथ्यों का संख्या के रूप में प्रकटीकरण है जिन्हें एक दूसरे से सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।”

वेब्स्टर (Webster) के शब्दों में-“समंक किसी राज्य के निवासियों की स्थिति से सम्बन्धित वर्गीकृत तथ्य है-विशेष रूप से वे तथ्य जिन्हें संख्याओं में या संख्याओं की तालिका में या सारणीकृत या वर्गीकृत व्यवस्था में प्रस्तुत किया जा सके।”

आकेनवाल (Ackenwall) के मतानुसार-“राज्य से सम्बन्धित, दोनों ऐतिहासिक व विवरणात्मक, महत्वपूर्ण तथ्यों का संग्रह समंक है।”

इन परिभाषाओं के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

प्रथमउपर्युक्त परिभाषाओं में कुछ परिभाषाएँ ऐसी हैं जिनमें केवल ‘समंक’ शब्द की परिभाषा करने का प्रयत्न किया गया है, उसका वास्तविक अभिप्राय स्पष्ट नहीं किया जा सका। द्वितीय-वेब्स्टर की परिभाषा के अनुसार समंकों को,राज्य की परिधि में रहने वाले व्यक्तियों तक ही सीमित कर दिया गया है। तृतीय-समंकों की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख नहीं किया गया जो कि अत्यन्त आवश्यक है। बहुवचन के रूप में दी गयी सर्वश्रेष्ठ परिभाषा

समंकों की आदर्श परिभाषा प्रो० होरेस सेक्रीस्ट द्वारा दी गयी है जिसमें उपर्युक्त सभी दोषों का निवारण हो जाता है।

होरेस सेक्रीस्ट (Horace Secrist) के अनुसार, “समंकों से हमारा अभिप्राय तथ्यों के उन समूहों से है जो अनेक कारणों से, पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होते हैं, जो संख्यात्मक रूप में व्यक्त किये जा सकते हैं, यथोचित शुद्धता के अनुसार जिनका आगणन अथवा अनुमान लगाया जाता है, जिन्हें किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए एक सुव्यवस्थित रीति द्वारा एकत्रित किया जाता है तथा जिन्हें तुलना के लिए एक दूसरे के सम्बन्ध में रखा जा सकता है।”

इस परिभाषा के अनुसार समंकों के निम्न मुख्य लक्षण प्रकट होते हैं

समंक तथ्यों के समूह होते हैं (They are aggregates of facts) कोई ‘अकेला अंक’ समंक नहीं हो सकता क्योंकि उससे किसी प्रकार का कोई उचित निष्कर्ष नहीं निकाला जा

उदाहरणार्थ 150 समंक से कोई अभिप्राय नहीं निकलता, परन्तु विभिन्न वर्षों में जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े दिये हुए हों तो इनकी तुलना करना व निष्कर्ष निकालना कहीं अधिक सरल होता है । इसलिए यह कहना अनुचित न होगा कि अनेक तथ्यों के अंकों के समूह को ही समंक कहा जा सकता है।

संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाना (Numerically Expressed)-तथ्यों को प्रायः दो रूपों में व्यक्त किया जाता है-संख्यात्मक-जैसे ऊँचाई 1.5 मीटर,1.8 मीटर, 1.4 मीटर, इत्यादि; अथवा गुणात्मक जैसे ‘लम्बा आदमी’ छोटा व बौना कद, इत्यादि । स्मरण रहे कि समंकों की दूसरी विशेषता यह है कि वे सदैव संख्याओं में व्यक्त किये जाते हैं । गुणात्मक वर्णन या अभिव्यक्ति समंकों की विशेषताओं की परिधि से बाहर की वस्तु है।

अनेक कारणों से प्रभावित होना (Affected by a multiplicity of causes) -समको का कारण प्रभावित करते हैं जैसे-ब्याज की दर के समंकों पर केन्द्रीय बैंक की नीति,जमाकर्ताओं की प्रवृति,विनियोग करने का क्षेत्र तथा पूँजी की सीमान्त कार्यक्षमता इत्यादि का प्रभाव पड़ता है।

समंकों का संकलन गणना या अनुमान रीति द्वारा किया जाता है (Enumerated or Estimated)कों का संकलन या तो गणना रीति द्वारा या अनुमान द्वारा किया जाता है । दोनों ही विधियां प्रायः स्वीकार की जाती हैं। संगणना या अनुमान में किसको चुना जाये, यह अनुसन्धान कार्य के क्षेत्र व उसके उद्देश्य पर निर्भर करता है। यदि अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित है तथा शुद्धता की अधिक आवश्यकता है तो संगणना विधि ही अधिक उपयुक्त होगी। परिस्थिति विपरीत होने पर अनुमान विधि का प्रयोग किया जा सकता है।

यथोचित शद्धता की मात्रा की उपस्थिति (A reasonable standard of accuracy) समका का संग्रहण करते समय शुद्धता को बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि शुद्धता का निर्धारण कैसे हो ? इसके उत्तर में केवल यही कहा जा सकता है कि शुद्धता एक सापेक्षिक शब्द है,निरपेक्ष नहीं। शद्धता का स्तर क्या हो ? यह अनुसन्धान की प्रकृति,उद्देश्य, समय व वित्तीय दशा पर निर्भर करता है।

समंकों का संग्रहण किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए होना चाहिये (For a Predetermined Purpose)-आँकड़ों का संग्रहण किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए ही किया जाना चाहिए। बिना उद्देश्य संग्रहीत किये गये समंक निरर्थक होते हैं क्योंकि वांच्छित उद्देश्य के अभाव में शुद्धता को बनाये रखना अत्यन्त कठिन कार्य है।

आँकड़े व्यवस्थित रूप से संकलित किये जाने चाहियें (Collected in a Systematic Manner)-समंकों को एकत्रित करने का कार्य एक व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न किया जाना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि संकलन कार्य करते समय एक योजना बना ली जाये ताकि अनुसंधान का कार्य,क्षेत्र,समय व उद्देश्य पूर्व निर्धारित हो सकें

योजना के अभाव में एकत्रित किये गये समंक,समंक नहीं कहलाते।आँकड़े परस्पर सम्बन्धित हों (Placed in Relation to each other)-समंकों की अन्तिम विशेषता यह होती है कि समंकों को सदैव एक दूसरे से सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि उनकी तुलना सम्भव हो सकें। दूसरे शब्दों में,समंकों में सजातीयता का गुण होना आवश्यक है। यदि विजातीय समंकों को लिया जाये तो उनकी तुलना करना या उनसे कोई निष्कर्ष निकालना कठिन ही नहीं वरन् असम्भव होता है।

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एकवचन के रूप में सांख्यिकी विज्ञान की परिभाषा

(In Singular Sense-Definition of Statistical Science)

एकवचन के रूप में ‘सांख्यिकी’ (Statistics) से अभिप्राय ‘सांख्यिकी विज्ञान’ से लगाया जाता है जिसमें समंकों के संकलन, विश्लेषण एवं निर्वचन से सम्बन्धित विभिन्न सांख्यिकीय रीतियों का अध्ययन किया जाता है। सांख्यिकी विज्ञान के रूप में दी जाने वाली परिभाषाओं को हम मुख्यतः दो भागों में बाँट सकते हैं

प्राचीन विचारकों द्वारा दी गयी परिभाषायें।

आधुनिक विचारकों द्वारा दी गयी परिभाषायें

प्राचीन मत की परिभाषाएँ

प्राचीन मत के अनुसार दी गयी परिभाषाओं में सांख्यिकीय विज्ञान को अत्यन्त संकुचित व सीमित रूप में स्वीकार किया गया है। इस वर्ग में आने वाले विचारकों की कुछ परिभाषायें इस प्रकार हैं

बॉडिंगटन (Boddington)-“सांख्यिकी अनुमान एवं सम्भावना सम्बन्धी शास्त्र है।” प्रो० बाउले (Bowley)ने सांख्यिकी की अनेक परिभाषायें दी हैं(अ) “सांख्यिकी सामाजिक व्यवस्था को सम्पूर्ण मानकर उसके सभी प्रत्यक्षीकरणों में माप करने का विज्ञान

()सांख्यिकी गणना का विज्ञान (Science of Counting) है।”

()सांख्यिकी को उचित रूप से माध्यों (Averages) का विज्ञान कहा जा सकता है।”

आधुनिक मत अर्थात् विस्तृत दृष्टिकोण से दी गयी परिभाषायें

इस वर्ग के अन्तर्गत वे परिभाषायें वर्गीकृत की जाती हैं जिनमें सांख्यिकी विज्ञान को एक विस्तृत एवं व्यापक रूप में स्वीकार किया गया है । ऐसी कुछ परिभाषाओं का हम नीचे अध्ययन करेंगे

किग (W. I. King)-“सांख्यिकी विज्ञान वह प्रणाली है जिसके द्वारा किसी एक गणना या अनुमाना क सग्रहण के विश्लेषण से प्राप्त फलों के द्वारा सामहिक प्राकतिक या सामाजिक घटनाओं का विवेचन किया जाता है।

पी० एच० कारमेल (P. H. Karmel)-“सांख्यिकी का विषय उन समंकों के संग्रहण,प्रस्तुतीकरण, वर्णन और विश्लेषण से सम्बन्ध रखता है जो संख्या के रूप में मापित किये जाने योग्य हैं।”

सैलिगमैन (Seligman)-“सांख्यिकी वह विज्ञान है जो किसी विषय पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से संग्रह किये गये आंकड़ों के सारणीयन,वर्गीकरण,प्रदर्शन,तुलना और व्याख्या करने की रीतियों का विवेचन करता है।”

केण्डाल (Kendall)-“सांख्यिकी वैज्ञानिक प्रणाली की वह शाखा है जो प्राकृतिक पदार्थों के समूहों के गुणों को गिनने व मापन करने से प्राप्त हए आँकड़ों से सम्बन्ध रखती है।”

क्राक्सटन तथा काउडेन (Croxton and Cowden)-“सांख्यिकी को संख्यात्मक तथ्यों के संग्रहण, प्रस्तुतीकरण,विश्लेषण तथा निर्वचन से सम्बन्धित विज्ञान कहा जा सकता है।” विस्तृत अर्थ में दी गयी परिभाषाओं की विशेषतायें

प्रो० सैलिगमैन तथा केण्डाल जैसे विचारकों द्वारा दी गयी परिभाषाओं की व्याख्या करने से निम्न विशेषतायें प्रकट होती हैं

() आधुनिक परिभाषाओं में सांख्यिकी के क्षेत्र को राजकीय तथा मानवीय क्रियाओं तक सीमित न रखकर प्राकृतिक एवं सामाजिक तथ्यों से सम्बद्ध किया गया है।

() सांख्यिकीय विधियों जैसे संकलन, वर्गीकरण, सारणीयन,प्रदर्शन तथा विश्लेषण आदि का समुचित रूप से उल्लेख किया गया है।

() ये परिभाषाएँ सांख्यिकी की प्रकृति पर भी थोड़ी-बहुत मात्रा में प्रकाश डालती हैं।

() उपर्युक्त परिभाषाओं में नवीन प्रवृत्तियों का समावेश किया गया है।

परन्तु इन परिभाषाओं में एक महत्वपूर्ण दोष यह है कि सांख्यिकीशास्त्र के उद्देश्य के बारे में समस्त परिभाषायें पूर्णतया मौन हैं जिसके अभाव में कोई भी परिभाषा औचित्य की कसौटी पर सही नहीं उतरती,फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि सांख्यिकी की विषय-सामग्री का दर्शन कुछ हद तक उपर्युक्त परिभाषाओं से अवश्य होता है।

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सांख्यिकी की उपयुक्त परिभाषा क्या हो ?

विभिन्न दृष्टिकोणों से दी गयी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या के बाद एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि ‘सांख्यिकी’ शब्द की उपयुक्त परिभाषा क्या हो ? सांख्यिकी की एक उचित परिभाषा देना अत्यन्त कठिन कार्य है क्योंकि सांख्यिकी का क्षेत्र व स्वभाव आज के युग में इतने विस्तृत एवं अस्थिर रूप में सामने आता है कि सांख्यिकी स्पष्ट शास्त्र होने के बावजूद भी संदिग्ध प्रतीत होने लगता है। इसके साथ-साथ दूसरी समस्या यह उत्पन्न होती है कि इसका क्षेत्र दिन-प्रतिदिन विस्तृत होता जा रहा है. हो सकता है कि जो परिभाषा आज उचित मान ली जाये वह आने वाले युग में स्वयं में एक संकुचित विचार बनकर रह जाये। फिर भी एक उपयुक्त परिभाषा देते समय निम्न तथ्यों को परिभाषा में सम्मिलित अवश्य कर लेना चाहिये ताकि उक्त परिभाषा स्वयं ही सांख्यिकीय विषय-सामग्री का सही प्रतिनिधित्व कर सके

सांख्यिकी की प्रकृति अर्थात् परिभाषा यह स्पष्ट करे कि सांख्यिकी विज्ञान है या कला या दोनों।

सांख्यिकी ऐसे सामूहिक तथ्यों से सम्बन्धित है जिनको संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है तथा जिन पर विविध कारणों का प्रभाव पड़ता है।

मानवजीवन से सम्बन्धित, प्राकृतिक तथा सामाजिक तथ्यों का अध्ययन सांख्यिकी की विषय-सामग्री होना चाहिए।

सांख्यिकी का उद्देश्य स्वतः स्पष्ट होना चाहिए।

सांख्यिकी में विभिन्न रीतियों जैसे-संग्रहण, वर्गीकरण, सारणीयन, चित्रमय प्रदर्शन, सम्बन निर्वचन और पूर्वानुमान आदि का समावेश होना आवश्यक है।

उपर्युक्त तत्वों को ध्यान में रखते हुए सांख्यिकी की निम्न परिभाषा दी जा सकती है जो अपने में एक उचित परिभाषा कही जा सकती है

“सांख्यिकी एक विज्ञान एवं कला है जिसमें किसी भी अनुसन्धान क्षेत्र-सामाजिक, प्राकृतिक व आर्थिक से सम्बन्धित समंकों, जो विभिन्न कारणों से प्रभावित होते हैं, का सामूहिक रूप से संग्रहण, वर्गीकरण, सारणीयन, प्रस्तुतीकरण,विश्लेषण,निर्वचन तथा पूर्वानुमान किया जाता है जिससे कि निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति हो सके।”

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सांख्यिकी का क्षेत्र तथा विभाग

(Scope and Division of Statistics)

प्राचीन काल में सांख्यिकी का क्षेत्र अत्यन्त सीमित था । सांख्यिकी की उत्पति ‘राजाओं के विज्ञान’ के रूप में हुई थी। परन्त आधुनिक युग में इस विज्ञान का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है। वास्तव में प्रत्येक विज्ञान में मांख्यिकीय विधियों का काफी प्रयोग किया जाता है। यह कहना अनुचित न होगा कि “सांख्यिकी के बिना विज्ञान फलदायक नहीं होते और विज्ञान के बिना सांख्यिकी निराधार और निर्मल है।

सांख्यिकी के क्षेत्र तथा विभागों (अथवा विषय-सामग्री) को अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में बांटा जा सकता है

() सांख्यिकीय रीतियाँ (Statistical Methods) :

() सांख्यिकी के विभाग या वर्गीकरण (Division or Classification of Statistics)

() सांख्यिकी के प्रयोग (Application of Statistics)

सांख्यिकीय रीतियों से अभिप्राय उन प्रक्रियाओं से है जिनकी सहायता से समंकों का संग्रहण, वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण एवं निर्वचन किया जाता है । जोन्सन तथा जैकसन के मतानुसार, “सांख्यिकीय रीतियाँ उनको कहते हैं जिनका संख्यात्मक तथ्यों के संग्रहण,वर्गीकरण, विश्लेषण व निर्वचन करने में प्रयोग किया जाता है।” सांख्यिकीय रीतियों की तुलना किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त की जाने वाली विभिन्न रीतियों से की जा सकती है । यद्यपि सांख्यिकीय रीतियाँ अनेक प्रकार की होती हैं लेकिन सुविधा की दृष्टि से उन्हें चार वर्गों में बाँटा सका

(i) संकलन (Collection)-इन रीतियों को अनुसन्धान का आयोजन करने के बाद समंकों के संग्रहण व उनके सम्पादन के सिलसिले में प्रयुक्त किया जाता है।

(ii) प्रस्तुतीकरण (Presentation)-संकलित सामग्री को सुव्यवस्थित रूप देने के लिए उसका वर्गीकरण, सारणीयन, चित्रीय व बिन्दुरेखीय प्रदर्शन भी करना आवश्यक होता है ताकि विश्लेषण के लिए यह कच्ची सामग्री तैयार हो सके।

(iii) विश्लेषण (Analysis)-समंकों के विश्लेषण के दौरान अपनायी जाने वाली रीतियाँ इस प्रकार हैं-केन्द्रीय प्रवृत्ति का मापन, अपकिरण, विषमता, सहसम्बन्ध, सूचकांक रचना, काल श्रेणी का विश्लेषण, आन्तर गणन तथा बाह्य गणन इत्यादि।

(iv) निर्वचन (Interpretation)-इस व्यवस्था में प्रयुक्त होने वाली रीतियों का मुख्य काम निष्कर्ष निकालना व उनकी सांख्यिकीय तरीके से जाँच करना है।

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() सांख्यिकी के विभाग या वर्गीकरण

(Division or Classification of Statistics):

व्यावहारिक प्रयोग की दृष्टि से सांख्यिकी के निम्न प्रकार विभाग किये जा सकते हैं_

विवरणात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics)-विवरणात्मक सांख्यिकी संख्यात्मक आँकड़ों अथवा तथ्यों से सम्बन्धित होती है। ये आँकड़े गणना द्वारा अथवा अन्य किसी प्रक्रिया द्वारा एकत्र किये जाते हैं जो किसी विषय में समग्र (Universe) के सम्बन्ध में हो सकते हैं। ये समंक अपने आप में भी कुछ निष्कर्ष दे सकते हैं तथा अन्य सांख्यिकीय रीतियों के लिये कच्चे माल का काम कर सकते हैं।

इस प्रकार विवरणात्मक सांख्यिकी, संख्यात्मक तथ्यों के सम्बन्ध में प्रयोग की जाने वाली उन रीतियों से सम्बन्धित है जिनके द्वारा इन तथ्यों की मूलभूत विशेषताओं को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें समंकों का सम्पादन, वर्गीकरण, सारणीयन, चित्रमय तथा बिन्दुरेखीय प्रदर्शन, केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप, अपकिरण की माप तथा। सहसम्बन्ध आदि रीतियों को सम्मिलित किया जाता है। इन सभी रीतियों द्वारा समंकों को सरल,स्पष्ट, क्रमबद्ध एवं अर्थपूर्ण बनाने का प्रयत्न किया जाता है ।

निष्कर्षात्मक सांख्यिकी (Inferential or Inductive Statistics)-सांख्यिकी के नवीन दृष्टिकोण के अन्तर्गत निष्कर्षात्मक सांख्यिकी का विचार अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इसे अनुमानित सांख्यिकी भी कहा जाता है। इसमें सांख्यिकी की उन समस्त रीतियों को शामिल किया जाता है, जिनके आधार पर न्यादर्श (sample) के सम्बन्ध में अनुसन्धान करके समग्र के बारे में सामान्यीकरण किया जाता है। इसके अन्तर्गत समग्र में से कुछ इकाइयों को न्यादर्श के रूप में चना जाता है और उनके विश्लेषण द्वारा समग्र के सम्बन्ध में उचित और विवेकपूर्ण निष्कर्ष निकालने, अनुमान लगाने तथा निर्णय लेने की विभिन्न रीतियों को सम्मिलित किया जाता है । इन रीतियों में सम्भावना सिद्धान्त तथा न्यादर्श परीक्षण की रीतियाँ मुख्य हैं।

सांख्यिकी के उपरोक्त दोनों पहलओं को एक उदाहरण द्वारा सरलता से समझा जा सकता है। यदि एक देश की जनगणना के समंकों को आय.लिंग.आय.शहर तथा गांव आदि के आधार पर वर्गीकृत करके सारणी रूप में प्रस्तुत किया जाये और इन्हें अनुपात केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप तथा सह-सम्बन्ध सारणी के रूप में रखा जाये तो यह विवरणात्मक सांख्यिकी कही जायेगी। परन्तु कुछ न्यादर्शों के आधार पर देश में जनसंख्या वृद्धि दर,राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर तथा आयु संरचना का अनुमान लगाना निष्कर्षात्मक सांख्यिकी है

() सांख्यिकी के प्रयोग (Application of Statistics):

प्राचीन समय में सांख्यिकी का क्षेत्र बहुत सीमित था। इसका सम्बन्ध मुख्य रूप से सरकार के प्रशासन से था, इसीलिये इसे ‘राजाओं का विज्ञान’ कहा जाता था। परन्तु वर्तमान समय में सांख्यिकी का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है। सामान्य रूप से जो तथ्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संख्याओं में व्यक्त किये जाते हैं,सांख्यिकी के क्षेत्र में आते हैं।

आजकल अर्थशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान, औषधि विज्ञान, व्यावसायिक प्रबन्ध, इन्जीनियरिंग,गणित और मौसम विज्ञान इत्यादि सभी क्षेत्रों में सांख्यिकी का व्यापक प्रयोग हो रहा है। इसी क्रम में सांख्यिकी की अनेक विशिष्ट शाखाएँ भी विकसित हो गयी हैं। इनमें आर्थिक सांख्यिकी, सामाजिक सांख्यिकी, गणितीय साख्यिकी, मानस विधा (Psychometry), जनांकिकी (Demography), अर्थमित्ति (Econometrics) इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

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व्यावसायिक सांख्यिकी

(Business Statistics)

व्यवसाय की विभिन्न समस्याओं का अध्ययन, विश्लेषण और समाधान करने में सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग ‘व्यावसायिक सांख्यिकी’ के अन्तर्गत किया जाता है। वर्तमान युग में “व्यावसायिक सांख्यिकी द्वारा किसी व्यवसाय के संचालन से सम्बन्ध सभी मामलों पर बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने के लिए संख्यात्मक आधार प्रस्तुत किये जाते हैं। इस प्रकार व्यावसायिक सांख्यिकी का क्षेत्र व्यापक है,उसमें व्यावसायिक समंकों को संकलित करने और उन्हें चित्रों व सारणियों में प्रस्तुत करने की रीतियों का ही समावेश नहीं होता वरन् ऐसी प्रक्रियाओं का भी काफी उपयोग होता है जिनसे यन्त्र व श्रम की कुशलता तथा उत्पादन, विज्ञापन व विपणन की नवीन प्रविधियों का मूल्यांकन करके उपयुक्त प्रणालियों के सम्बन्ध में निर्णय लिए जा सकें। सांख्यिकीय किस्म-नियन्त्रण, बजटरी-नियन्त्रण, व्यावसायिक पूर्वानुमान, काल-श्रेणी विश्लेषण, विपणन और विनियोजन विश्लेषण, परिकल्पना-परीक्षण (Testing of Hypothesis), रेखीय प्रकृमन (Linear Programming) क्रिया-शोध (Operations Research) आदि आधुनिक व्यावसायिक सांख्यिकी की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं।

chetansati

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