BCom 1st year Regulatory Framework Consequences Breach Contract Study Material notes in Hindi

BCom 1st year Regulatory Framework Consequences Breach Contract Study Material Notes in Hindi

BCom 1st year Regulatory Framework Consequences Breach Contract Study Material Notes in Hindi: Measurement of Damages  Types of Damages Examinations Questions Long Answer Questions Shot Question Answer ( Most Important Notes for BCom 1st Year Students  )

 Consequences Breach Contract
Consequences Breach Contract

BCom 2nd Year Cost Accounting Integrated System study Material Notes In Hindi

अनुबन्ध खण्डन के परिणाम

(Consequences of Breach of Contract)

जब अनबन्ध के पक्षकार अपने-अपने दायित्वों को पूरा कर देते हैं तो अनुबन्ध निष्पादित हआ जाता है और अनुबन्ध का अन्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य रीतियों जैसे पारस्परिक निष्पादन की असम्भवता, किसी राजनियम के क्रियाशील होने पर एवं निर्धारित अवधि के व्यतीत जाने पर भी अनुबन्ध का अन्त हो जाता है। जब निष्पादन या उक्त किसी अन्य रीति के द्वारा अनुबन्ध अन्त नहीं होता परन्तु पक्षकार अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाते तो यह अनुबन्ध का खण्डन कहलाता है। जब अनुबन्ध का एक पक्षकार अनुबन्ध का खण्डन करता है तो दूसरे पक्षकार (पीड़ित पक्षकार) को उसके विरुद्ध कुछ उपचार प्राप्त हो जाते हैं। अनुबन्ध खण्डन की दशा में पीड़ित पक्षकार को निम्नलिखित उपचार प्राप्त हैं

1 निष्पादन से मुक्ति,

2. पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार,

3.निर्दिष्ट निष्पादन का अधिकार,

4. निषेधाज्ञा प्राप्त करने का अधिकार,

5. क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार

Framework Consequences Breach Contract

1 निष्पादन से मुक्ति (Exoneration from performance) यदि अनुबन्ध का एक पक्षकार अपने वचन का निष्पादन नही करता, तो दूसरा पक्षकार अनुबन्ध को समाप्त हुआ समझ सकता है और वह अपने वचन के निष्पादन के लिए दायी नहीं रहता। उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ को एक निश्चित तिथि को 100 टी० वी० सैट देने का वचन देता है और ‘ब’ उसके बदले प्रति सैट 5000 ₹ देने का वचन देता है। ‘अ’ निश्चित तिथि को टी० वी० सैट देने से इन्कार कर देता है। यहाँ पर ‘ब’ अपने दायित्व से मुक्त हो जायेगा।

अपवाद (Exceptions)- निम्नलिखित दशाओं में न्यायालय द्वारा पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध के निष्पादन से मुक्ति नहीं दी जा सकती है

(1) जब अनुबन्ध विभाजन योग्य न हो और पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध के एक भाग को रद्द करना चाहता है।

(2) जब पीड़ित पक्षकार ने जो कि अनुबन्ध के निष्पादन से मुक्त होना चाहता है परन्तु उसने स्पष्ट या गर्भित रुप से अनुबन्ध की पुष्टि कर दी हो; जैसे राम ने जानते हुए भी मिथ्या वर्णन वाले प्रविवरण के आधार पर अंशों पर लाभांश प्राप्त कर लिया हो तो राम अनुबन्ध को रद्द नहीं कर सकता है।

(3) जब किसी भी पक्षकार की त्रुटि के बिना, अनुबन्ध करने के बाद परिस्थितियाँ ऐसी हो जाएं कि अनुबन्ध के पक्षकारों को पहले की स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता हो।

2.पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार (Claim for Quantum Meruit)- यह एक लैटिन भाषा का वाक्यांश है जिसका शाब्दिक अर्थ है “किसी व्यक्ति को उतना धन देना जितना उसने अपने कार्य द्वारा अर्जित किया है।” जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को, उसकी प्रार्थना पर किसी वस्त की पूर्ति करता है अथवा उसके लिये कोई कार्य करता है तथा यदि उसके लिये पूर्व से कोई पारिश्रमिक निश्चित नहीं हुआ है तो न्याय की दृष्टि से उसे उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिये। अनुबन्ध-खण्डन की दशा में यह सिद्धान्त बहत महत्त्वपूर्ण है तथा उस अवस्था में प्रभावशील होता है जब अनुबन्ध पूरा किया जा रहा हो और दसरा पक्षकार बीच में ही अनुबन्ध को समाप्त कर दे। ऐसी स्थिति में प्रथम पक्षकार निष्पादित किए गए भाग के लिए ‘उचित पारिश्रमिक’ प्राप्त करने का अधिकारी है।

उदाहरण- (i) अमित, दिनेश के लिये एक मकान बनाने का वचन देता है जिसके लिये कोई पारिश्रमिक तय नहीं किया गया है। बाद में 2 कमरे बनने के पश्चात् दिनेश अमित को मकान बनाने से मना कर देता है। अमित 2 कमरों को बनाने का पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकारी है।

Framework Consequences Breach Contract

(ii) , ब के लिए एक चित्र बनाने का वचन देता है परन्त चित्र पर होने से पर्व ही अ की मृत्यु हा जाती है। यहाँ पर अ का प्रतिनिधि उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि यह काम अलग-अलग भागों में विभाजित नहीं किया जा सकता है।

यदि अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार कार्य के पूरा होने पर ही पारिश्रमिक देने का वचन दिया गया काय का अधूरा छोड़ने पर दोषी पक्षकार उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकारी नहीं होगा।

3. निर्दिष्ट निष्पादन का अधिकार (Claim for specific performance)- जब अनुबन्ध खण्डन की दशा में क्षतिपर्ति पर्याप्त उपचार न समझा जाय. तो पीडित पक्षकार को विशेष सहायता के अन्तर्गत निर्दिष्ट निष्पादन पाने का अधिकार है अर्थात् पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध का निष्पादन किए जाने की आज्ञा न्यायालय से प्राप्त कर सकता है। किन्तु व्यक्तिगत सवा क अनुबन्धों तथा उन परिस्थितियों में जहाँ मौद्रिक क्षतिपूर्ति पर्याप्त समझी जाती है निर्दिष्ट निष्पादन की आज्ञा प्राप्त नहीं की जा सकती।

उदाहरण के लिए ‘अ’ किसी निर्दिष्ट स्थान पर एक अच्छे मकान की तलाश में है। बहुत खोज करने पर वह एक मकान पा जाता है जो ‘ब’ का है। ‘अ’ ‘ब’ से उस मकान को खरीदने का अनुबन्ध करता है। बाद में ‘ब’ ‘अ’ को मकान बेचने से इन्कार कर देता है। ऐसी दशा में चूंकि हर्जाना ‘अ’ के लिए अपर्याप्त उपचार है, इसलिए ‘अ’ न्यायालय से प्रार्थना कर सकता है कि ‘ब’ को मकान बेचने के लिए बाध्य किया जाये।

4.निषेधाज्ञा प्राप्त करने का अधिकार (Claim for Injunction)-पीड़ित पक्षकार को विशिष्ट परिस्थितियों में निषेधाज्ञा प्राप्त करने का भी अधिकार प्राप्त होता है। विवाद का निर्णय होने तक न्यायालय, दूसरे पक्षकार को ऐसा कार्य करने से, जिसके लिये पीड़ित पक्षकार ने शिकायत की है, रोकने की आज्ञा दे सकता है।

उदाहरण- (i) राम अपना मकान 15 जनवरी को श्याम को 50,000₹ में बेचने का ठहराव करता है। कुछ समय बाद राम उसी मकान को मोहन को 70,000₹ में बेचने का ठहराव कर लेता है। ऐसी परिस्थिति में श्याम, राम द्वारा मकान मोहन को न बेचने की न्यायालय द्वारा निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकता है।

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(ii) एक प्राध्यापक कॉलेज की प्रबन्ध समिति के साथ ठहराव करता है कि वह निर्धारित शर्तों पर एक वर्ष तक कॉलेज में अध्यापन कार्य करेगा और इस बीच किसी अन्य कॉलेज में अध्यापन नहीं करेगा। वह एक वर्ष से पूर्व ही सर्विस छोड़ देता है तो प्रबन्ध समिति उसे सर्विस करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती, केवल हर्जाना प्राप्त कर सकती है। परन्तु वह इस अवधि में किसी अन्य कॉलेज में उस प्राध्यापक को जाने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा निर्गमित करा सकती है।

5. क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार (Claims of Damages)-पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध खण्डन की दशा में क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार भी होता है। क्षतिपूर्ति का आशय प्रचलित मुद्रा के रुप मे हर्जाना प्राप्त करने से है। क्षतिपूर्ति वास्तविक क्षति के लिये होती है, दण्ड के रुप में नहीं होती, अंत: क्षतिपूर्ति वास्तविक उठाई गई हानि के बराबर होगी, कम-ज्यादा नहीं।

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क्षतिपूर्ति की माप

(Measurement of Damages)

भारत में क्षतिपूर्ति की माप के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं

(i) स्वाभाविक एवं प्रत्यक्ष क्षति-जब किसी अनुबन्ध का खण्डन किया गया है, तो वह पक्षकार जिसे अनुबन्ध के खण्डन से क्षति उठानी पड़ती है, अनुबन्ध का खण्डन करने वाले पक्षकार से इस प्रकार होने वाली क्षति को पूरा कराने का अधिकारी है। किन्तु ऐसी क्षति की पूर्ति उसी समय कराई जा सकती है जबकि

(अ) वह ऐसे खण्डन से स्वाभाविक रुप से तथा साधारणत: होती है अथवा

(ब) जिसका पक्षकारों को अनुबन्ध करते समय ज्ञान था कि खण्डन की दशा में ऐसी हानि होगी।

उदाहरण (अ) राम, श्याम को 100 बोरी शक्कर 1.375₹ प्रति बोरी की दर से 15 मार्च को सपुर्द करने का ठहराव करता है। निश्चित तिथि पर राम श्याम को शक्कर सपुर्द नहीं करता और श्याम बाजार से 1,400₹ प्रति बोरी की दर से 100 बोरी शक्कर क्रय कर लेता है। यहाँ श्याम को स्वाभाविक कप से 2500₹ की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी माना जायेगा।

(ब) अ, ब का जहाज 60,000 ₹ में खरीदने का अनुबन्ध करता है परन्तु वह अपना वचन भग कर देता है। अ, ब की क्षतिपूर्ति में वह धन, यदि कोई हो, देने के लिए बाध्य है जिससे कि अनुबन्ध। मल्य उस बाजार मूल्य से आधक है जोकि अनुबन्ध भंग के समय ‘ब’ को प्राप्त होता। यदि उस समय

जार मल्य 55,000₹ हे तो ब, अ से 5,000 ₹ वसूल करेगा। यह हानि अनुबन्ध खण्डन से स्वाभाविक रुप से हुई मानी जाएगी।

(स) मोहन शादी के लिए श्याम की कार निश्चित तिथि पर किराए पर लेता है। अनुबन्ध की शों के अनुसार श्याम निश्चित तिथि पर कार बारात स्थल पर पहुंचाएगा और मोहन निश्चित तिथि पर कार्यक्रमोपरान्त 5,000 ₹ श्याम को देगा। यह भी तय हुआ कि यदि निश्चित तिथि पर कार विवाह स्थल पर न पहुँचे तो श्याम मोहन को 4,000₹ हर्जाने के देगा। कार निश्चित तिथि पर विवाह स्थल पर नहीं पहुँचती। यहाँ मोहन क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।

(ii) दूरस्थ तथा अप्रत्यक्ष क्षति (Remote and Indirect Loss)-धारा 73 के अनुसार ऐसी क्षतिपूर्ति अनुबन्ध खण्डन से होने वाली किसी दूर की तथा अप्रत्यक्ष क्षति के लिए नहीं की जाएगी। इस सम्बन्ध में हैडले बनाम बैक्सेनडेल (Hadley Vs Baksendale) का वाद महत्त्वपूर्ण है। इसमें एक मिल के स्वामी हैडले ने टूटी हुई मशीन का एक भाग बैक्सेनडेल को एक निर्दिष्ट व्यक्ति के पास पहुँचाने के लिए सुपुर्द किया। बैक्सेनडेल की लापरवाही से उस मशीन को निर्दिष्ट व्यक्ति के पास पहुँचाने में विलम्ब हआ. जिसके कारण मिल का स्वामी लम्बी अवधि तक मशीन प्राप्त नही कर सका और उसे अपनी मिल बन्द करनी पड़ी। मिल मालिक ने बैक्सेनडेल पर उस लाभ को प्राप्त करने के लिये वाद प्रस्तुत किया जो उसे मिल बन्द न करने की दशा में होता। न्यायालय ने निर्णय दिया कि मिल स्वामी ऐसी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है क्योकि हानि दूर के अप्रत्यक्ष कारणों से उत्पन्न हुई है और न बैक्सेनडेल को अनुबन्ध करते समय ऐसी किसी हानि का ज्ञान था।

(iii) क्षति को कम करने वाले साधनों का प्रयोग-अनुबन्ध के खण्डन से उत्पन्न हुई क्षति को निर्धारित करते समय उन समस्त साधनों को ध्यान में रखना चाहिए जो अनुबन्ध का निष्पादन न होने से उत्पन्न असुविधा को दूर करने के लिए उपस्थित थे। यदि अनुबन्ध के खण्डन से क्षति होती है तो पीड़ित पक्षकार उन समस्त कार्यों को करने के लिए बाध्य है जो यथोचित विवेक-बुद्धि का मनुष्य उस क्षति को कम करने के लिए करता। यदि वह क्षति को कम करने का प्रयास नहीं करता तो वह उस सीमा तक क्षति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।

उदाहरण-अ अपना कारखाना चलाने के लिए 1,000 कुन्तल सरसों ब से क्रय करने का अनुबन्ध करता है। ब सरसों देने में असमर्थ रहता है। अ को किसी अन्य व्यक्ति से सरसों क्रय कर लेना चाहिये तथा केवल मूल्य अन्तर के लिये ब पर दावा प्रस्तुत करना चाहिये। उसको मिल बन्द करके हानि को नहीं बढ़ाना चाहिए।

(iv) अनुबन्ध में क्षति की राशि का उल्लेख होने पर उचित क्षतिपूर्ति- यदि अनुबन्ध में, उसके खण्डन की स्थिति में भुगतान की जाने वाली क्षतिपूर्ति की राशि का स्पष्ट रुप से उल्लेख कर दिया गया है अथवा यदि अनुबन्ध में कोई अन्य वर्णन दण्डस्वरुप (Stipulation by way of penalty) नियत है तो अनुबन्ध का खण्डन हो जाने पर पीड़ित पक्षकार (भले ही खण्डन से वास्तविक क्षति का होना प्रमाणित होता है अथवा नहीं) अनुबन्ध खण्डन करने वाले दोषी पक्षकार से केवल उचित क्षतिपूर्ति पाने का  अधिकारी है जो कि निर्धारित धनराशि या दण्ड से, जैसी भी दशा हो, अधिक नहीं होनी चाहिए। इंगलिश राजनियम में ऐसी क्षति को निस्तीर्ण क्षति एवं दण्ड (Liquidated damages and penalty) कहते हैं।

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इस नियम का एक अपवाद भी है। धारा 74 के अनुसार जब कोई व्यक्ति जमानतनामा (Bail Bond) मुचलका (Recognizance) अथवा इसी प्रकार का कोई अन्य विपत्र भरता है अथवा किसी ऐसे कार्य को करने के लिए कोई बॉण्ड भरता है जिसमें जनता का हित है और सरकार के प्रति अपने को बाध्य करता है, तो ऐसे विपत्र की किसी शर्त के खण्डन होने पर वह उसमें लिखी हुई सम्पूर्ण धनराशि देने के लिए उत्तरदायी होगा।

उदाहरण- (i) ‘अ’ ‘ब’ के साथ एक अनुबन्ध करता है कि यदि वह ‘ब’ को एक निर्दिष्ट दिन 500 ₹ देने में असफल होगा. तो वह उसे 1000₹ देगा। ‘अ’ ‘ब’ को उक्त दिन 500₹देने में असफल रहता है। ‘ब’ ‘अ’ से इतनी क्षतिपूर्ति कराने का अधिकारी है जो 1000₹से अधिक न हो तथा जिसे न्यायालय उचित समझे।

(ii) ‘‘ ‘के साथ यह अनुबन्ध करता है कि यदि ‘अ’ कलकत्ता में चिकित्सक के रुप में कार्य करता है तो वह ‘ब’ को 5,000 ₹ देगा। ‘अ’ चिकित्सक के रुप में कलकत्ता में कार्य करता है। ‘ब’ ‘अ’ से इतनी क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है जो 5,000 ₹से अधिक न हो तथा जिसे न्यायालय उचित समझे।

(ii) ‘‘ ‘को 12 प्रतिशत ब्याज सहित 1000 ₹छ: महीने के अन्त में भुगतान करने के लिए एक बाण्ड इस प्रतिबन्ध के साथ लिखकर देता है कि त्रुटि की दशा में त्रटि के दिन से ब्याज 75 प्रतिशत से देय होगा। यह प्रतिबन्ध दण्ड के रुप में है और ‘ब’ असे क्षतिपर्ति के रुप में केवल वहीं धन पाने का अधिकारी है जिसे न्यायालय उचित समझे।

(iv) ‘अ’ न्यायालय में किसी निर्दिष्ट दिन उपस्थित होने के लिए एक मुचलका लिखता है जिसमें वह ऐसा न करने पर 5000₹ दण्ड से बाध्य होता है। यदि मुचलका जब्त हो जाता है तो वह सम्पूर्ण दण्ड देने के लिए दायी है।

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क्षतिपूर्ति के प्रकार

(Types of Damages)

क्षतिपूर्ति निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है :

(1) साधारण क्षतिपूर्ति (General Damages)- साधारण क्षातपूत स है जो कि मामले की साधारण प्रगति में अनबन्ध भंग से स्वाभाविक रुप से उत्पन्न होती है। प्रायः यह उतनी हानि होती है जिसका ज्ञान अनबन्ध के दोनों पक्षकारों को पहले से ही होता है। उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ को 850 ₹ प्रति कुन्तल के भाव से 100 कुन्तल गेहूँ बेचने का अनुबन्ध करता है। गेहूँ का मूल्य सुपुर्दगी के समय देना तय होता है। इस बीच गेहँ का भाव बढ़ जाता है तथा ‘अ’ निष्पादन की असमर्थता दिखाते हुए अनुबन्ध का खण्डन कर देता है और बाध्य होकर ‘ब’ को बढ़े हुए मूल्य 900₹ प्रति कुन्तल । के भाव से गेहूँ खरीदना पड़ता है। इस प्रकार उसे (900 – 850) x 100 = 5,000 ₹ की हानि उठानी पड़ती है जिसे वह ‘अ’ से हर्जाने के रुप में पाने का अधिकारी है।

(2) विशेष क्षतिपूर्ति (Special Damages)- विशेष क्षतिपूर्ति विशेष हानि के लिए दी जाती है । जो विशेष परिस्थितियों में अनुबन्ध के खण्डन के कारण उठायी जाती है। इस प्रकार की हानि के सम्बन्ध प्रतिपूति में यह आवश्यक है कि दोनों पक्षकारों को अनुबन्ध के खण्डन की दशा में होने वाली हानि का पहले से ज्ञान हो तथा ऐसी हानि प्रत्यक्ष कारणों से हुई हो। किन्तु जब अनुबन्ध भंग होने के कारण विशेष अनुबन्ध परिस्थितियों में किसी पक्षकार को विशेष हानि होती है तो उसकी सूचना दूसरे पक्षकार को दी जानी सकार चाहिए। ऐसी स्थिति में अनुबन्ध भंग होने पर विशेष हर्जाने की माँग की जा सकती है। उदाहरण के लिए या न्या ‘अ’ ‘ब’ को एक ट्रक बिनौला निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचाने के लिए देता है जो कि एक ट्रक कम्पनी का मालिक है एवं साथ में यह निर्देश देता है कि यह खाद्य पदार्थ पशुओं के मेले के लिए है तथा यदि यह ण्ड ।। खाद्य पदार्थ उक्त मेले में देर से पहुंचा तो उसे विशेष हानि होगी। लेकिन इसके बावजूद भी खाद्य सामग्री। मेला समाप्त होने के बाद पहुँचती है। ऐसी स्थिति में ‘ब’ केवल देरी के कारण हुई क्षतिपूर्ति के लिए ही उत्तरदायी नहीं होगा बल्कि पशु मेला में इसे विक्रय करने से जो लाभ होता उसके लिए भी उत्तरदायी होगा।

(3) आदर्श अथवा दण्डात्मक क्षतिपूर्ति (Exemplary or Vindictive Damages)कभी-कभी किसी अनुबन्ध का खण्डन होने के कारण दूसरे पक्षकार को मानहानि उठानी पड़ती है तथा उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है तथा व्यापारिक जगत में उसकी ख्याति कम हो जाती है। इन परिस्थितियों में अधि दण्डात्मक क्षतिपूर्ति के लिए दावा किया जा सकता है क्योंकि साधारण क्षतिपूर्ति पीड़ित पक्षकार की प्रतिष्ठा में को लगने वाली ठेस की उचित क्षतिपूर्ति नहीं होती है। इस प्रकार की क्षतिपूर्ति का उद्देश्य दोषी पक्षकार को न दण्डित कर समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करना होता है। इसमें पीड़ित पक्षकार लॉ ऑफ टोर्टस (Law of Torts) के अन्तर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में हर्जाने की माँग कर सकता है

(i) विवाह करने के वचन को भंग करने पर-यदि कोई व्यक्ति किसी लड़की के साथ विवाह । करने का अनुबन्ध करता है और बाद में बिना किसी विशेष कारण के तोड़ देता है तो उसके द्वारा विवाह करने के वचन को खण्डित करने से केवल यह क्षति नहीं होती कि विवाह के लिए मँगाया गया सामान एवं सभी तैयारियाँ बेकार हो गई बल्कि समाज में लड़की की प्रतिष्ठा को भी ठेस लगती है।

ऐसी दशा में केवल साधारण क्षतिपूर्ति उचित क्षतिपूर्ति नहीं मानी जा सकती। अत: लड़का दण्डात्मक क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारी होगी।

(ii) चैक के अनादरित होने पर- यदि कोई बैंक बिना किसी कारण के किसी ग्राहक के चैक को। अनादरित (Dishonour) कर दे जिससे ग्राहक की ख्याति को ठेस पहुँचती है तो बैंक ग्राहक के प्रति आदर्श/दण्डात्मक क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा।

(ii) यदि अनुबन्ध की शर्त के अनुसार मूलधन का निश्चित तिथि पर भुगतान करने में त्रुटि की. दशा में नियत ब्याज से अधिक ब्याज देना होगा तो यदि यह अधिक ब्याज त्रुटि की तिथि से देय है और उचित है तो वह उचित क्षतिपूर्ति मानी जाती है और देय होगी, परन्तु जब ब्याज बहुत अधिक है-जैसे 10% से 70% तो यह दण्ड माना जायेगा और न्यायालय उसमें कमी कर सकता है।

(iii) जब अनुबन्ध में यह लिखा हो कि मूलधन पर साधारण ब्याज का भुगतान करने में त्रुटि की दशा में उसी दर से चक्रवृद्धि ब्याज देय होगी तो यह दण्ड नहीं माना जायेगा और देय हो सकता है, परन्तु जब चक्रवृद्धि ब्याज की दर साधारण ब्याज की दर से अधिक हो तो वह दण्ड होगा और न्यायालय उसमें कमी कर सकता है।

(iv) जब किसी अनुबन्ध में यह लिखा हो कि यदि ऋणी प्रत्येक वर्ष बिना किसी त्रुटि के ब्याज देगा तो ऋणदाता 8 प्रतिशत ब्याज स्वीकार करेगा, किन्तु त्रुटि की दशा में 11 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देय होगी तो त्रुटि की दशा में ऋणदाता 11 प्रतिशत ब्याज पाने का अधिकारी होगा और यह दण्ड स्वरुप नहीं माना जायेगा!

(5) नाममात्र की क्षतिपूर्ति (Nominal Damages)- जब किसी अनुबन्ध भंग की दशा में न्यायाधीश यह समझते हैं कि पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध-भंग से कोई विशेष हानि नहीं हुई है, परन्तु साथ ही में दोषी पक्षकार को दण्ड भी देना चाहते हैं तो ऐसी परिस्थिति में वे केवल नाममात्र के लिए ही क्षतिपूर्ति का आदेश दे देते हैं।

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(6) निस्तीर्ण क्षति एवं दण्ड (Liquidated Damages and Penalty)- अनुबन्ध करते समय अनुबन्ध के पक्षकार कभी-कभी ऐसा वर्णन करते हैं कि अनुबन्ध खण्डन की दशा में त्रुटि करने वाला पक्षकार दूसरे पक्षकार को पूर्व निर्दिष्ट धन देगा। अब प्रश्न यह उठता है कि अनुबन्ध खण्डन की दशा में क्या न्यायालय ऐसा निर्दिष्ट धन दिलाने के लिए बाध्य है।

इंगलिश राजनियम के अनुसार इस दृष्टि से निर्दिष्ट धन, निस्तीर्ण क्षति (Liquidated damages) या दण्ड (Penalty) के रुप में हो सकता है। यदि पक्षकारों द्वारा निर्धारित धन उचित है और निर्दोष पक्षकार को हानि से बचाने की दृष्टि से न्यायपूर्वक निर्धारित किया गया है तो वह ‘निस्तीर्ण क्षति’ कहलाता है। अनुबन्ध खण्डन की दशा में यदि न्यायालय यह अनुभव करता है कि अनुबन्ध में हर्जाने के रुप में निर्दिष्ट धन ‘निस्तीर्ण क्षति’ के रुप में है तो न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं करता और हर्जाने के रुप में ऐसा सम्पूर्ण धन दिलाने की आज्ञा प्रदान करता है।

जब पक्षकार, अनुबन्ध खण्डन से होने वाली वास्तविक क्षति की तुलना में क्षतिपूर्ति की राशि बहत अधिक निर्धारित करते हैं, तो उसे दण्ड कहते हैं। दण्ड की राशि निश्चित करने का उद्देश्य दोषी पक्षकारों में भय उत्पन्न करना है ताकि वे अपने-अपने अनुबन्ध के निष्पादन में किसी प्रकार की भूल अथवा चूक न कर सकें। किन्तु भारतीय राजनियम में निस्तीर्ण और दण्ड में किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया गया है। अनुबन्ध के खण्डन की दशा में केवल उतने ही हर्जाने के लिए वाद प्रस्तुत किया जा सकता है, जो कि वास्तविक हानि को ध्यान में रखते हुए उचित हो।

अनुबन्ध में इस प्रकार निर्दिष्ट कोई धन ‘निस्तीर्ण क्षति’ के रुप में है या दण्ड के रुप में, न्यायालय द्वारा प्रत्येक प्रकरण में समस्त तथ्यों व परिस्थितियों को दृष्टिगत करके निश्चित किया जाता है। कोई धन जो अनुबन्ध की शर्तों के अन्तर्गत स्पष्ट रुप से ‘निस्तीर्ण क्षति’ बताया गया है, उसे ‘दण्ड’ के रुप में माना जा सकता है यदि न्यायालय उसे अनुचित समझता है और अनुबन्ध खण्डन से होने वाली वास्तविक हानि से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।

भारतीय राजनियम में ऐसा कोई अन्तर नहीं किया जाता कि निर्दिष्ट धन निस्तीर्ण क्षति के रुप में है या दण्ड के रुप में। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 74 के अनुसार प्रत्येक दशा में ‘उचित क्षतिपूर्ति’ (Reasonable compensation) दिए जाने की व्यवस्था है जो कि अनुबन्ध में उल्लेखित धन से अधिक नहीं हो सकती है।

उचित रुप से अनुबन्ध निरस्त करने वाले पक्षकार का अधिकार-धारा 75 के अनुसार यदि अनुबन्ध का कोई पक्षकार उचित रुप से किसी अनुबन्ध को निरस्त करता है तो वह ऐसी क्षतिपूर्ति कराने का अधिकारी है जो कि उसे अनुबन्ध के निष्पादन न होने के कारण उठानी पड़ी है। उदाहरण के लिए, ‘अ’ एक गायिका किसी थियेटर के प्रबन्धक ‘ब’ के साथ उसके थियेटर में अगले दो माह तक प्रति सप्ताह दो रात्रि गाने का अनुबन्ध करती है और ‘ब’ उसे प्रत्येक रात्रि के गायन के लिए 500₹ देने का वचन देता है। छठवीं रात्रि को ‘अ’ अपनी इच्छानसार थियेग से अनपस्थित हो जाती है फलस्वरुप ‘ब’ अनुबन्ध को निरस्त कर सकता है और अनबन्ध परान होने के कारण हुई हानि के लिए। क्षतिपूर्ति कराने का भी अधिकारी है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 अनुबन्ध खण्डन की दशा में पीड़ित पक्षकार को कौन-कौन से वैधानिक उपचार प्राप्त है?

What are the various remedies available to a party in case of breach of Contract

2. अनुबन्ध खण्डन की दशा में कब न्यायालय निष्पादन से मुक्ति देने से इन्कार कर सकता है?

When may a court refuse to grant exoneration in case of Breach of Contract?

3. न्यायालय किन सिद्धान्तों के आधार पर अनुबन्ध खण्डन के लिये क्षतिपूर्ति का आदेश देता है बताइए।

State the principles, on which damages are assessed for breach of contract by court

4. उन सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिये, जिनके आधार पर अनुबन्ध भंग की दशा में क्षति का आकलन किया जाता है।

State the principles, on which damages are assessed for a breach of contract.

5. अनबन्ध के खण्डन में पीड़ित पक्षकार को प्राप्त उपचारों का वर्णन कीजिए। निस्तीर्ण क्षति व दण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Discuss the remedies available to the aggrieved party in a breach of contract. Distinguish between liquidated damages and penalty.

6. “अनुबन्ध भंग की स्थिति में राजनियम जहाँ तक द्रव्य द्वारा सम्भव होता है, क्षतिग्रस्त पक्ष को उसी स्थिति में रख देने का प्रयत्न करता है जिस स्थिति में वह अनुबन्ध के निष्पादन की दशा में होता।” इस कथन की विवेचना कीजिए। ”

If a contract is broken to law will endeavour, so far as money can do it to replace the injured party in the same position as if the contract has been performed.” Discuss.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 उचित पारिश्रमिक के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।

Explain the right for quantum meruit.

2. निषेधाज्ञा को स्पष्ट कीजिये।

Explain injuction.

3. निस्तीर्ण क्षतिपूर्ति को स्पष्ट कीजिए।

Explain the liquidated damages.

4. साधारण तथा विशेष क्षतिपूर्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

Explain the difference between ordinary and special damages.

5. आदर्श क्षतिपूर्ति का अर्थ समझाइए।

Explain the meaning of exemplary damages.

6. निस्तीर्ण हर्जाना तथा दण्ड में अन्तर बताइये।

Explain the difference between liquidated damages and penalty.

7. नाममात्र को क्षतिपूर्ति क्या है?

What is Nominal Damages?

8. दूरस्थ हानियाँ क्या होती हैं?

What are Remote Damages?

9. उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिये, जिनमें विनिर्दिष्ट निष्पादन के लिये आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है?

State the circumstances in which suit for specific performance may be filed?

Framework Consequences Breach Contract

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 अनुबन्ध भंग की स्थिति में पीड़ित पक्षकार को क्या विकल्प उपलब्ध हैं-

(What option is available to the aggrieved party in case of breach of contract):

(अ) संविदा निष्पादन से मुक्ति (Relief from discharge of contract)

(ब) क्षतिपूर्ति के लिए वाद (Suit for compensation)

(स) निर्दिष्ट निष्पादन के लिए वाद (Suit for specific performance)

(द) उपरोक्त सभी (All the above)

2. अनुबन्ध भंग होने की स्थिति में पीड़ित पक्षकार को क्या विकल्प उपलब्ध नहीं है

(What is not available to the aggrieved party in case of breach of contract) :

(अ) क्षतिपूर्ति (Compensation)

(ब) अर्जित परिणाम का भुगतान (Payment on quantum meruit)

(स) लाभों का प्रत्यास्थापन (Restitution of benefit)

(द) निष्पादन का प्रस्ताव (Tender of performance) (1)

3. अनुबन्ध में निर्दिष्ट निष्पादन से छुटकारे की राहत का आदेश-

(The order of relief from specific performance in a contract) :

(अ) न्यायालय की इच्छा पर निर्भर करता है (Depends on discretion of the court)(”

(ब) पक्षकार का अधिकार होता है एवं न्यायालय को अवश्य देना चाहिए (Right of the party and the court has to give it )

(स) अनुबन्ध अधिनियम में प्रावधान है (Provision in the Contract Act)

(द) ब और स दोनों (B and C both)

4. पीड़ित पक्षकार द्वारा कार्य के अनुसार क्षतिपूर्ति का दावा निम्नलिखित में किस वाद द्वारा सम्भव है-

(The suit for quantum meruit to aggrieved party lies in which) :

(अ) क्षतिपूर्ति (Damages)

(ब) निषेधाज्ञा (Injunction)

(स) कार्यानुसार (Quantum meruit)()

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

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व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. ‘ नामक गायक ‘ब’ के थियेटर में आगामी दो माह में तीन रात्रि प्रति सप्ताह गाने का अनुबन्ध करता है और ‘ब’ उसे प्रति रात्रि के गाने के लिये 100 ₹ देने के लिए सहमत हो जाता है। छठी रात्रि को ‘अ’ जान-बूझकर थियेटर से अनुपस्थित रहता है। ‘ब’ के क्या अधिकार हैं?

A singer contracts B to sing at his theatre three nights every week during the next two months and Bengages to pay him ₹ 100 for on each night performance. On the 6th night A wilfully absents himself from the theatre, What are B’s rights?

उत्तर-‘ब’ ऐसी हानि के लिए क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है, जो कि उसे वचन के पूरा न किये जाने के कारण उठानी पड़ी हो।

PP2. ‘एक्स’ नामक शिल्पकार वाई की मार्बल की एक मूर्ति बनाने का अनुबन्ध करता है। प्लास्टर की रुपरेखा बनाने के पश्चात् ‘एक्स’ स्वयं उसे बनाने में असमर्थता प्रकट करता है और ‘वाई’ से उसे किसी अन्य व्यक्ति से पूरा कराने की प्रार्थना करता है। क्या ‘एक्स’ भुगतान पाने का अधिकारी है ? यदि हाँ, तो किस आधार पर?

X, a sculptor, contracts with Y to make a marble bust of Y. After making a plaster cast X expresses his inability to make the bust in marble himself and requests Y to get the work done by somebody else. Is X entitled to payment ? If so, on what basis?

उत्तर-प्रस्तुत समस्या उचित पारिश्रमिक पाने के अधिकार (Claim for Quantum Meruit) के सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी व्यक्ति को उतना ही धन दिया जाना चाहिए, जितना कि उसने अर्जित किया है। यहाँ x ने कार्य पूरा नहीं किया है और इसके अतिरिक्त पूरे हये कार्य को न पुरा किये गये कार्य से अलग नहीं किया जा सकता। अतएव X भुगतान पाने का अधिकारी नहीं है।

_PP3. A, एक निर्धारित तिथि पर B को एक निश्चित धनराशि देने का अनुबन्ध करता है। A निर्धारित तिथि पर B को धन का भुगतान नहीं करता। निश्चित तिथि पर भगतान न मिल पाने के कारण B पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। आप B को किस प्रकार की क्षति दिलायेंगे और क्यों?

A contracted to pay a sum of money to B on a specified day. A did not pay the money on that day. B in consequence of not receiving the money on that day is totally ruined. What damages will you award and why?

उत्तर-एक पक्ष द्वारा अनुबन्ध भंग करने के कारण उससे होने वाली हानि के लिए पीड़ित पक्षकार। दोषी पक्षकार से केवल सामान्य क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी होता है। किसी दूरस्थ या हानि के लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाएगी।

Framework Consequences Breach Contract

chetansati

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