BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Cheques Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Cheques Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Cheques Study Material Notes in Hindi: Provisions in Case of Dishonour of Certain Cheques for insufficiency of funds in the Account Main Provisions Examination Question Long Answer Question Short Answer Question Objective Type Question :

Dishonour Cheques Study Material
Dishonour Cheques Study Material

BCom 3rd Year Origin Growth Auditing Study Material Notes in Hindi

चैकों का अनादरण

(Dishonour of Cheques)

बैंकर एवं ग्राहक का मुख्य सम्बन्ध ऋणी तथा ऋणदाता का होता है। ग्राहक द्वारा बैंक में खाता खोलते ही ग्राहक, बैंक का ऋणदाता बन जाता है और बैंक, ग्राहक का ऋणी बन जाता है। ग्राहक आवश्यकतानुसार जब चाहे तब अपना रुपया बैंक से वापिस निकाल सकता है। अतः बैंक का यह अतिआवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य हो जाता है कि वह जमा की गई धनराशि तक ग्राहक द्वारा जारी किये गए चैकों का भुगतान करे। यदि कोई बैंक ग्राहक के खाते में पर्याप्त धनराशि जमा होने के बावजूद भी ग्राहक को चैक का भुगतान करने से इन्कार कर देता है तो उसे विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 31 के अनुसार ग्राहक को होने वाली क्षति की पूर्ति करनी पड़ती है। इसके अतिरिक्त यदि ग्राहक द्वारा यह प्रमाणित कर दिया जाए कि बैंक द्वारा उसके चैक का भुगतान न करने से उसकी साख को हानि पहुँची हैं, तो बैंक उसकी मान-हानि की पूर्ति के लिये भी उत्तरदायी होगा।

इस सम्बन्ध में यह महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि बैंक द्वारा चैक का भुगतान नहीं करने पर चैक के धारक को कोई कार्यवाही करने का अधिकार नहीं होता है, बल्कि केवल ग्राहक अथवा चैक का लेखक ही बैंक से क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है। यथाविधि भुगतान न होने पर बैंक ग्राहक को इस कारण से होने वाली हानि पूरी करेगा लेकिन इसके लिए निम्नलिखित शर्ते पूरी होनी आवश्यक हैं

(i) ग्राहक द्वारा भुगतान की मांग की जानी चाहिए।

(ii) मांग उचित ढंग से की जानी चाहिए।

(iii) ग्राहक के खाते में पर्याप्त धनराशि जमा होनी चाहिए:

(iv) चैक उचित रुप से लिखा होना चाहिए; तथा

(v) चैक के भुगतान में कोई कानूनी रुकावट नहीं होनी चाहिए, जैसे गार्निशी या कुर्की आदेश।

किनकिन दशाओं में बैंक अपने ग्राहक का चैक अनादृत कर सकता है? (Under what circumstances a banker can refuse payment of his customer’s cheque?)-निम्नलिखित दशाओं में बैंक अपने ग्राहक का चैक अनादृत कर सकता है-इनको मुख्य रुप से दो भागों में बांटा जा सकता है-(1) जब बैंक चैक का भुगतान मना कर सकता है और (2) जब बैंक को चैक का भुगतान अवश्य ही मना करना चाहिए।

(1) बैंक चैक का भुगतान कब मना कर सकता है (When banker may refuse payment)-निम्नलिखित दशाओं में बैंक चैक का भुगतान रोक सकता है

(i) यदि ग्राहक के खाते में पर्याप्त धनराशि जमा नहीं है।

(ii) जब चैक पर आगे की तिथि (Post dated) लिखी हो। उदाहरण के लिए, चैक पर 16 मई लिखी हो और वह 15 मई को प्रस्तुत किया जाये।

(iii) जब चैक पर 3 महीने से अधिक पहले की तिथि लिखी हो अर्थात् चैक गतावधि (पुराना) (Stale) ETI

(iv) जब चैक उचित प्रकार से प्रस्तुत न किया जाए, उदाहरण के लिए, बैंक के काम के घंटों के पहले या बाद में चैक प्रस्तुत किया जाये।

(v) जब चैक सम्बन्धित शाखा पर प्रस्तुत न किया जाए, जैसे-पंजाब नेशनल बैंक लाजपत नगर, नई दिल्ली के स्थान पर पंजाब नेशनल बैंक करोलबाग, नई दिल्ली पर प्रस्तुत किया जाए।

(vi) जब बैंक अपने पूर्वाधिकार का प्रयोग करना चाहता है तथा ऐसा करने पर खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं बचेगी।

(vii) संयुक्त खाते की दशा में जब चैक पर सभी पक्षों के हस्ताक्षर नहीं हैं।

(viii) जब चैक संदिग्ध (Doubtful) है। (ix) यदि चैक विकृत (कटा-फटा या मुड़ा हुआ) (Mutilated) हो।

(x) चैक पर अनियमित पृष्ठांकन होने पर।

(xi) ग्राहक के हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से मेल न खाने पर।

(xii) रेखांकित चैक का खिड़की पर भुगतान माँगने पर।

(xiii) चैक में शब्दों एवं अंकों में लिखी गई राशि में अन्तर होने पर।

(xiv) चैक में किये गए किसी संशोधन पर लेखक के हस्ताक्षर न होने की स्थिति में।

(2) जब बैंक को चैक का भुगतान अवश्य मना करना चाहिए (The Bank must refuse for payment of Cheque)-बैंक को निम्नांकित दशाओं में चैक के भुगतान को अवश्य हा मना करना चाहिए

(i) चैक के लेखक द्वारा भुगतान रोकने का निर्देश देने पर।

(ii) जब ग्राहक दिवालिया अधिनियम द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।

(iii) यदि चैक के लेखक की मत्य हो जाती है।

(iv) जब बैंक का ग्राहक अर्थात् आहर्ता पागल हो जाता है।

(v) जब बैंक को न्यायालय द्वारा ग्राहक के खाते को सील करने का आदेश प्राप्त हो गया हो।

(vi) जब चैक का धारक वास्तविक धारक न हो।

(vii) जब बैंक को ग्राहक द्वारा खाता बन्द करने की सूचना दे दी जाती हैं।

(viii) जब ग्राहक द्वारा जमा धनराशि को किसी अन्य खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

Regulatory Framework Dishonour Cheques

खाते में पर्याप्त धनराशि के अभाव में बैंकों के अनादरण सम्बन्धी प्रावधान

(Provisions in case of dishonour of certain cheques for insufficiency of funds

in the account) आज के बढ़ते व्यावसायिक विकास व बढ़ती हुई जटिलताओं को देखते हुए चैकों के भुगतान में कठोर अनुशासन की स्थापना के लिये विनियम साध्य विलेख अधिनियम, 1881 में बैंकिग, सार्वजनिक वित्तीय संस्थान तथा विनियम साध्य विलेख कानून (संशोधन) अधिनियम, 1988 के द्वारा विशेष महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गये हैं, जो 1 अप्रैल, 1989 से लागू हैं। इन प्रावधानों को कुछ और सख्त बनाने के लिय इस अधिनियम में पुन: सन् 2002 में संशोधन किया गया जो 6 फरवरी, 2003 से लागू हो गया था। विनियम साध्य विलेख अधिनियम में एक नया अध्याय XVII जोड़ा गया है, जिसका शीर्षक है-खातों में पर्याप्त धनराशि के अभाव में निश्चित चैकों के अनादरित होने की दशा में दण्ड (Penalties in case of dishonour of certain cheques for insufficiency of funds in the account) इस अध्याय के अन्तर्गत धारा 138 से धारा 147 में इससे सम्बन्धित प्रावधान किये गये हैं।

Regulatory Framework Dishonour Cheques

मुख्य प्रावधान

(Main Provisions)

1 आर्थिक दण्ड एवं सजा (Fine and Punishment) (धारा 138)-अपने ऋण या अन्य दायित्वों के सम्पूर्ण अथवा आंशिक भुगतान में यदि कोई व्यक्ति चैक निर्गमित करता है और उसके खाते में अपर्याप्त धनराशि के होने पर चैक अप्रतिष्ठित हो जाता है, तो ऐसा व्यक्ति अपराधी माना जायेगा। ऐसा व्यक्ति एक वर्ष तक के कारावास अथवा चैक की राशि से दुगुनी राशि तक के आर्थिदण्ड का भागी अथवा दोनों प्रकार के दण्डों का भागी होगा।

अपराध की शर्तेअपर्याप्त कोषों के कारण चैक का अनादरण होने पर उसे अपराध तभी माना जाएगा जब निम्नांकित शर्ते पूरी होती हों–

(i) लेखक द्वारा वैधानिक रुप से प्रवर्तनीय दायित्व के निर्वाह के लिये भुगतान प्राप्तकर्ता को चैक जारी/दिया जाना चाहिये।

(ii) चेक को भुगतान के लिए 3 महीने अथवा उसकी विशिष्ट वैधता अवधि, जो भी पहले हो, के अन्दर प्रस्तुत किया गया हो;

(iii) चैक के अनादरण होने पर अपराध तभी बनता है जबकि उस चैक का अनादरण आदेशक (चैक के लेखक) के खाते में अपर्याप्त कोष या अपर्याप्त शेष के कारण हुआ हो।

अपर्याप्त कोष या खाते में जमा राशि कम तब कही जाती है जबकि खाते में जमा राशि चैक का राशि से कम होती है। इसके अतिरिक्त, यदि खाते में जमा राशि तो अधिक है किन्तु वह राशि उस चैक के भगतान में उपयोग नहीं की जा सकती है तो भी यही माना जायेगा कि खाते में जमा धन कम है। ऐसा तब हो सकता है जबकि चैक के आदेशक ने खाते की राशि किसी ओर उद्देश्य से सरक्षित करवा ली हो या बैंक ने उस राशि पर अपना ग्रहणाधिकार (Lien) का उपयोग कर लिया हो।

न्यायिक निर्णयों के अनुसार यदि निम्नांकित कारणों से चैक का अनादरण होता है तो भी उस। खाते में जमा राशि में कमी के कारण ही अनादरण हुआ माना जायेगा ।

भुगतान रोकने का आदेश देने पर अनादरणउच्चतम न्यायालय के अनुसार यदि चेक का आदेशक चेक का भुगतान रोकने (Countermand) का आदेश देता है तो वह भी अनादरण के समान ही है। मोदी सीमेन्ट्स लि. बनाम कुचिल कुमार के मामले में चैक जारी करने के बाद आदेशक ने चैक का भुगतान रोकने का बैंक को आदेश दे दिया। साथ ही उसने चैक के आदाता को सूचित कर कह दिया। कि वह चेक को बैंक में प्रस्तुत न करे किन्तु आदाता धारक ने चैक प्रस्तुत कर दिया और चैक अनादृत। हो गया। उच्चतम न्यायालय ने इसे धारा 138 के अन्तर्गत अपराध माना। (Modi Cements Ltd. Vs. Kuchil Kumar Nandi, (1998) 28 CLA 491 SC)

खाता बन्द करने के कारण अनादरण उच्चतम न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी चेक का अनादरण आदेशक द्वारा खाता बन्द करने के कारण होता है तो भी धारा 138 के अधीन। अपराध ही माना जायेगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब खाता बन्द कर दिये जाने के कारण चेक का अनादरण किया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि चैक प्रस्तुत करते समय उस खाते का शेष कुछ।

HET (Nil) T1 (NEPC Micon Ltd. Vs. Meghna Leasing Ltd., (1999) 33 CLA 385 SC)

(iv) अनादरण की सूचना तथा भुगतान की मांग की हो- चैक के धारक को बैंक से चैक के अनादरण की सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर चैक के आदेशक को चैक के अनादरण की सूचना भेजनी चाहिये। इस सूचना के साथ ही उस अनादृत चैक के भुगतान की माँग अवश्य की जानी चाहिये।

उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आदेशक को चैक के अनादरण की सूचना में उससे उस चैक के भुगतान की मांग भी करनी चाहिये। ऐसा नहीं करने पर आदाता के विरुद्ध धारा 138 के अधीन कार्यवाही आगे जारी नहीं रखी जा सकती है। (Rajesh Aggarwal Vs. Amit J. Bhalla, (2001) SCALE 38 SC)

(v) आदेशक ने सूचना के 15 दिनों में भुगतान नहीं किया हो- आदेशक को चैक के अनादरण की सूचना प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर अनादृत चैक की राशि का भुगतान कर देना चाहिये। यदि वह इस अवधि में भुगतान नहीं करता है तो वह चैक के अनादरण के अपराध के लिए दण्ड का भागी बन जाता है।

(vi) ऐसे अनादरित चैक के सम्बन्ध में, अनादरण की सूचना प्राप्ति के एक माह के भीतर लिखित में वाद प्रस्तुत कर देना चाहिये।

3. धारक के सम्बन्ध में मान्यता (Presumption in Relation to Holder)-विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 139 के अनुसार, यदि कोई विपरीत बात या तथ्य सिद्ध नहीं हो जाए तो यह माना जायेगा कि चैक के धारक ने चैक को किसी वैध ऋण या किसी अन्य दायित्व के आंशिक अथवा पूर्ण भुगतान में प्राप्त किया था।

4. न्यायालय द्वारा बचाव का आधार मानना (Defence not Allowed in Prosecution)-विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 140 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि चैक का अनादरण बैंक में अपर्याप्त धनराशि होने के कारण हुआ है तो न्यायालय बाद में ऐसा कोई भी बचाव का आधार या कारण स्वीकार नहीं करेगा कि जब आहर्ता ने चैक को प्रस्तुत किया था तो उसके पास यह विश्वास करने का कोई पर्याप्त कारण नहीं था कि बैंक खाते में धनराशि की अपर्याप्तता के कारण चैक अनादरित हो जायेगा।

5. कम्पनियों द्वारा अपराध (Offences by companies)- यदि चैकों के अनादरण का अपराध (धारा 138 के अन्तर्गत) किसी कम्पनी द्वारा किया जाता है तो वह कम्पनी तथा अपराध के समय उस कम्पनी का प्रत्येक प्रभारी तथा व्यवसाय के संचालन के लिए उत्तरदायी व्यक्ति को इस अपराध का दोषी माना जायेगा और उसके विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी तथा उसे दण्डित किया जायेगा। …

परन्तु, यदि वह व्यक्ति यह सिद्ध कर देता है कि यह अपराध उसकी जानकारी में नहीं हुआ है अथवा उस अपराध को रोकने के लिए उसने पर्याप्त प्रयास किये थे तो ऐसा व्यक्ति दण्ड का भागीदार नहीं होगा।

यह उल्लेखनीय है कि यदि केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या उनके स्वामित्व या नियंत्रण के अधीन किसी भी निगम के अधिकारी को किसी भी कम्पनी में संचालक नामांकित किया जाता है तो ऐसे नामांकित संचालक पर चैक के अनादरण की दशा में अभियोग चलाया नहीं जा सकेगा। (सन्। 2002 में जोड़ा गया धारा 141 का परन्तुक)

6. संचालक/प्रबन्धक/सचिव या अन्य किसी अधिकारी की स्वीकृात आदिस Offence with consent of the director, manager, secretary on director, manager, secretary or any other officer) माना को अलग रखते हुए यदि किसी कम्पनी द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत कया गया है और यह सिद्ध कर दिया जाता है कि अपराध किसी संचालक, प्रबन्धक, सचिव कम्पनी के किसी अन्य अधिकारी की सहमति या मौन सहमति से किया गया था अथवा उसकी परवाहा के कारण हुआ है तो वह संचालक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी उस अपराध का दोष माना जायेगा और उसके विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी और दण्ड दिया जायेगा।

7. अपराध का संज्ञान (Cognizance of offences)-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत काइ भा व्यवस्था दी गई हो लेकिन इस अधिनियम की धारा 138 के अन्तर्गत अपराधों के संज्ञान के लिये निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं :

 (i) धारा 138 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिये कोई भी न्यायालय तब तक संज्ञान नहीं ले सकता हैं, जब तक कि भुगतान प्राप्तकर्ता अथवा उस चैक का यथाविधिधारक जैसी भी स्थिति हो, लिखित रुप में कोई शिकायत प्रस्तुत नहीं करता है।

(ii) ऐसी शिकायत धारा 138 के अन्तर्गत चैक के आदाता या यथाविधिधारी को वाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त होने के एक महीने के भीतर कर दी गई हो।

किन्तु, न्यायालय उचित कारणों के आधार पर संतुष्ट हो जाये तो वह निर्धारित अवधि (30 दिन) के बाद भी शिकायत पर विचार कर सकता है।

8. अपराध की सुनवाई का अधिकार (Jurisdiction to try the offence)- भारतीय दण्ड संहिता में चाहे कोई भी व्यवस्था हो, किन्तु इस अधिनियम की धारा 138 के अन्तर्गत अपराधों की सुनवाई महानगर मजिस्ट्रेट अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट से निचले स्तर का न्यायालय नहीं कर सकेगा।

9 न्यायालय के मामलों को संक्षिप्त विवरण की शक्ति (Power of court to try cases summarily) (धारा 143)

(i) दण्ड प्रक्रिया संहिता में अन्यथा प्रावधानों के बावजूद भी चैक अनादरण सम्बन्धी अपराधों पर संक्षिप्त विचारण प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगरीय मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकेगा। ऐसे विचारण के सम्बन्ध मे उक्त संहिता की धारा 262 से 265 तक के प्रावाधानों का यथासम्भव पालन किया जायेगा।

इस धारा में विचारण के बाद अधिकतम एक वर्ष तक के कारावास की सजा तथा अधिकतम 5,000 ₹ तक का जुर्माना किया जा सकेगा।

यदि संक्षिप्त विचारण की कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट को यह लगे कि एक वर्ष से अधिक अवधि का कारावास दिया जा सकता है अथवा मामले पर संक्षिप्त विचारण करना उपयुक्त नहीं होगा तो वह मजिस्ट्रेट पक्षकारों को सुनने के बाद आवश्यक आदेश लिखकर पूर्व में परीक्षित गवाहों को वापस बुला सकता है तथा संहिता के प्रावधानों के अनुसार मामले की सुनवायी या पुनः सुनवायी प्रारम्भ कर सकता है।

 (i) इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण की कार्यवाही जहाँ तक सम्भव होगा. न्याय के हितों के अनुरुप उसकी समाप्ति तक प्रतिदिन जारी रहेगी। किन्तु, न्यायालय आवश्यक समझेगा तो आगामी दिन के बाद वाले दिन तक के लिए भी कार्यवाही स्थगित कर सकेगा जिसके कारणों को अभिलिखित करना होगा।

 (iii) इस धारा के अन्तर्गत प्रत्येक विचारण शीघ्र किया जायेगा और इस विचारण को शिकायत दर्ज होने की तिथि से छ: महीने के भीतर ही पूरा करने की कोशिश/प्रयास किया जायेगा।

8.बुलावा आदेशों की तामील की विधि (Mode of service of summons)-मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी या गवाह के नाम उनको बुलाने के आदेशों को निम्नांकित स्थानों में से कहीं भी तामील किया जा सकता है : (i) सामान्य निवास स्थान, (ii) व्यवसाय का स्थान, (iii) जहाँ लाभ हेतु स्वयं कार्य करता है। आदेश की तामील स्पीड-पोस्ट अथवा सत्र न्यायालय द्वारा स्वीकृत कुरियर सेवा के माध्यम से की जा सकती है।

यदि आरोपी या गवाह के हस्ताक्षरों से रसीद प्राप्त हो जाती है तो आदेश तामील हुआ माना जाता है किन्तु यदि डाक विभाग या कुरियर सेवा द्वारा आदेश इस टिप्पणी के साथ लौटाया गया है कि आरोपी। गवाह ने आदेश की सुपुर्दगी लेने से इन्कार कर दिया है तो उस आदेश को जारी करने वाला न्यायालय यह घोषणा कर सकता है कि बुलावा आदेश की तामील की विधिवत सपर्दगी हो गयी है।।

9. शपथपत्र का साक्ष्य (Evidence of affidavit शिकायतकर्ता. शिकायत का साक्ष्य शपथपत्र पर दे सकता है जिसे सामान्यत: किसी भी जाँच.विचारण या अन्य कार्यवाही में उपयोग किया जा सकेगा। न्यायालय उचित समझे तो अभियोजक या आरोपी के आवेदन पर किसी भी व्यक्ति को शपथपत्र पर साक्ष्य देने के लिए उपस्थित होने का आदेश दे सकता है तथा उससे पूछताछ कर सकता है।

10. बैंक की पची कुछ तथ्यों की प्रथमतया साक्ष्य (Bank’sslip prima facie evidence of certain facts)- चैकों के अनादरण सम्बन्धी मामलों में बैंक की वह स्लिप या बैंक का वह मेमो, जिस पर चैक के अनादृत होने की औपचारिक पहचान लिखी गयी है, को ही चैक के अनादरण का तथ्य माना जायेगा जब तक इस तथ्य को अन्यथा सिद्ध या अमान्य नहीं कर दिया जाता है। धारा 146]

11. अपराधों का शमनीकरण (Offences to be compounded)-इस अधिनियम के अधीन सभी प्रकार के अपराध शमनयोग्य होंगे।

Regulatory Framework Dishonour Cheques

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 खातों में अपर्याप्त धनराशि होने पर चैक के अप्रतिष्ठित होने पर दण्ड सम्बन्धी प्रावधानों को बताइए।

State the provisions of penalties for dishonour of a cheque for insufficiency of funds in the account.

2. उन दशाओं का वर्णन कीजिए जब एक चैक अनादृत हुआ माना जाता है। चैक जारी करने वाले व्यक्ति के खाते में अपर्याप्त शेष होने के कारण चैक का अनादरण होने पर विनिमय साध्य विलेख अधिनियम, 1881 में क्या दण्ड निर्धारित है ?

Discuss the conditions in which a cheque deemed to have been dishonoured. What are the penalties prescribed in the Negotiable Instruments Act, 1881 in case of dishonour of a cheque for insufficiency of funds in the account of the person issuing the cheque?

3. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-

Write short notes on the following

(i) धारा 138 के अन्तर्गत किये गए अपराधों की सुनवाई

Cognizance of offences under section 138.

(ii) धारा 138 के अन्तर्गत कम्पनियों द्वारा अपराध

Offences by companies under section 138.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 किन दशाओं में बैंक चैक का भुगतान रोक सकता है ?

In Which circumstances a bank can stop payment of cheque?

2. चेक के अनादरण से क्या आशय है?

What is meant by dishonour of cheque?

3. कब बैंक द्वारा चैक के भगतान से इन्कार किया जा सकता

When the banker may refuse payment of cheque?

4. धारा 138 के अधीन दण्ड की शर्ते क्या हैं ?

What are the conditions of punishment under section 138 ?

Regulatory Framework Dishonour Cheques

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 धारा 138 के अन्तर्गत किये गये अपराध की अधिकतम कारावास की अवधि है-

(The maximum period of imprisonment for the offence under section 138 is) :

(अ) 6 महीने (6 Months )

(ब) 12 महीने (12 Months) (1)

(स) 24 महीने (24 Months)

(द) 48 महीने (48 Months)

2. धारा 138 के अन्तर्गत किये गये अपराध की अधिकतम आर्थिक दण्ड की राशि है-

(The maximum amount of punishment for the offence under section 138 is):

(अ) मूलधन से दुगुनी (Double of the Principal Amount) (1)

(ब) मूलधन से तिगुनी (Three Times of the Principal Amount)

(स) मूलधन से चौगुनी (Four Times of the Principal Amount)

(द) मूलधन की आधी (Half of the Principal Amount)

3. धारा 138 लागू नहीं होती है यदि—

(Section 138 will not apply if) :

(अ) चैक ऋण के भुगतान में निर्गमित हो (Cheque issued for Payment of Loan )

(ब) वैध दायित्व हो (Legal Liability)

(स) चैक उपहारस्वरुप हो (Gift Cheque) (1)

(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं (None of the above)

4. धारा 138 के अन्तर्गत अपराध की शिकायत प्रस्तुत करने की अधिकतम अवधि है-

(The maximum period of filing complaint for an offence under section 138 is):

(अ) 3 महीने (3 Months)

(ब) 2 महीने (2 Months)

(स) 4 महीने (4 Months)

(द) 1 महीना (1 Month) (1)

Regulatory Framework Dishonour Cheques

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