BCom 2nd Year Principles Business management Concept Nature Significance Study Material Notes in Hindi

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1 व्यवसाय के आकार तथा उसकी जटिलताओं में वृद्धि-आधुनिक युग में आर्थिक विकास के साथ-साथ औद्योगिक इकाइयों के आकार में भी वृद्धि होती जा रही है। परिणामस्वरूप उत्पादन, विपणन, वित्त, कर्मचारी सम्बन्ध एवं समन्वय से सम्बन्धित समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही हैं। बढ़ते हुए सरकारी नियन्त्रण तथा वृहद्-आकारीय संस्थाओं में विकेन्द्रित व्यवस्था अपनाये जाने के कारण कठिनाइयाँ और भी बढ़ गई हैं। नवीन व्यवसाय के निर्माण तथा विद्यमान संस्थाओं के विकास व विस्तार के कार्य में भी अनेक वैधानिक औपचारिकताओं तथा जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। आज की इन औद्योगिक जटिलताओं का समाधान केवल सुव्यवस्थित प्रबन्ध द्वारा ही किया जा सकता है। प्रबन्ध के सहयोग से संगठन की जटिल समस्याओं का समाधान सुगमता से कर लिया जाता है। स्पष्ट है कि वृहद-आकारीय कम्पनियों का कुशल संचालन प्रबन्ध विशेषज्ञों की सहायता के बिना असम्भव है।

2. न्यूनतम प्रयत्नों से अधिकतम, श्रेष्ठतम एवं सस्ता उत्पादन करने के लिए-प्रबन्ध, नियोजन के माध्यम से श्रेष्ठतम विकल्प का चयन करके, संगठन द्वारा मानवीय व भौतिक साधनों को एकत्रित करके तथा समन्वय, अभिप्रेरण आदि कार्यों के द्वारा न्यूनतम लागत पर वस्तुओं व सेवाओं का अधिकतम व श्रेष्ठतम उत्पादन कर सकता है। अन्य कोई शक्ति ऐसा करने में असमर्थ है। कशल प्रबन्ध द्वारा उपक्रम में होने वाले विभिन्न अपव्ययों को नियन्त्रित कर लागत नियन्त्रण किया जाता है।

Principles Business management Concept

स्वाति प्रकाशन जिससे उत्पादन सस्ता और अच्छा होता है। स्पष्ट है कि प्रबन्ध-तकनीक का उपयोग करके न्यनता। प्रयत्नों से अधिकतम परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है।

उर्विक (Urwick) के अनुसार, “कोई भी विचारधारा, कोई भी वाद, कोई भी राजनीतिक सिद्धान्त प्रदत्त मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से न्यूनतम प्रयत्नों के द्वारा अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति नहीं कर सकता है।

3. उत्पत्ति के साधनों के प्रभावपूर्ण उपयोग के लिए-आज प्राय: सभी लोग यह अनुभव करने लगे हैं कि कुशल प्रबन्ध के द्वारा ही उत्पादन के साधनों का सदुपयोग किया जा सकता है। “प्रबन्ध ही एकमात्र ऐसा साधन है जो सम्पूर्ण उपक्रम को जीवन और संवेग प्रदान करता है। प्रबन्ध चातुर्य की कला के कारण ही अमेरिका व जापान ने प्राकृतिक सम्पदा का समुचित विदोहन किया है।

और ये राष्ट्र आज औद्योगिक प्रगति में अग्रणी समझे जाते हैं. किन्तु प्रबन्ध के अभाव के कारण भारत आज भी ‘प्रचुरता के मध्य गरीब देश’ है।”

पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “प्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्त्व है। इसके नेतृत्व के अभाव में ‘उत्पादन के साधन’ केवल साधन मात्र ही रह जाते हैं कभी उत्पादन नहीं बन पाते।”

4. विषम प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए-आधुनिक व्यवसाय बड़ा जटिल एवं| प्रतियोगितामूलक हो गया है। बाजार बहुत विस्तृत हो गये हैं तथा प्रतियोगिता गलाकाट हो गई है। विषम प्रतियोगिता के वर्तमान युग में वही व्यवसायी टिक सकता है जो न्यूनतम लागत पर श्रेष्ठ व सस्ती वस्तुएँ बना सकता है। इस समस्या का समाधान केवल कुशल प्रबन्ध द्वारा ही किया जा सकता है। कुशल प्रबन्ध ऐसी रणनीति तैयार कर सकता है जिसके द्वारा सशक्त रूप से तीव्र प्रतिस्पर्धी का सामना किया जा सके।

5. निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्ध ही ऐसी शक्ति है जो उपक्रम में लगे व्यक्तियों के समूह का नेतृत्व एवं कुशल संचालन कर संस्था के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति को सम्भव बनाती है। अत: कुशल प्रबन्ध के बिना उपक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति कठिन ही नहीं असम्भव है। इससे भी ‘प्रबन्ध’ का महत्व स्पष्ट होता है।

6. सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वाह हेतु-एक प्रबन्धक ही कुशल प्रबन्ध के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों (जैसे—कर्मचारी, उपभोक्ता, विनियोजक, ऋणदाता, सरकार आदि) के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का एक साथ निर्वाह कर सकता है।

7. मधुर श्रम-पूँजी सम्बन्धों की स्थापना-औद्योगिक विस्तार एवं श्रम में जागरुकता आ जाने से श्रम समस्याएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। श्रमिकों की संख्या में वृद्धि एवं सुदृढ़ श्रम संगठनों के कारण उनकी अपनी माँगों को पूरा कराने के लिए संघर्ष की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। परिणामत: हड़ताल एवं तालाबन्दी आए दिन समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं। इन समस्याओं का निराकरण कुशल प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव है। कुशल प्रबन्ध ऐसे वातावरण का निर्माण करता है। जिससे समस्याओं का शीघ्र निदान हो जाता है एवं श्रम व पूँजी में मधुर सम्बन्ध रहते हैं।

उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रबन्ध का महत्व उसके द्वारा प्राप्त परिणामों में निहित है तथा मानवीय क्रिया का इससे अधिक महत्वपूर्ण कोई अन्य क्षेत्र नहीं हो सकता।

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भारत में प्रबन्ध की आवश्यकता व महत्त्व

Table of Contents

(NEED AND IMPORTANCE OF MANAGEMENT IN INDIA)

प्रबन्ध ही वह प्रेरक शक्ति है जो प्राकृतिक साधनों के प्रभावपूर्ण एवं कुशलतम उपयोग को सम्भव बनाती है। अमेरिका व जापान इसके ज्वलन्त उदाहरण है जिन्होंने ‘प्रबन्ध के जाट of Management) के माध्यम से अपनी प्राकृतिक सम्पदा का समुचित विदोहन करके राय को उन्नति के शिखर पर पहुंचा दिया है; और इसके विपरीत विकसित प्रबन्ध के अभाव में भारत ‘प्रचुरता के मध्य गरीब’ राष्ट्र बना रहा है। किसी भी देश के आर्थिक विकास में प्रबन्ध महत्वपर्ण भूमिका अदा करता है। डॉक्टर जापान “पवन्ध प्रत्येक देश के आथिक विकास की कुंजी है।”

भारत जैसे विकासशील देश में इस विषय के अध्ययन की आवश्यकता और महत्व स्वयासद्ध हैं। केवल प्रशिक्षित एवं अनुभवी प्रबन्धक ही सीमित साधनों का मितव्ययितापूर्ण उ विकास का गीत को तेज कर सकते हैं। भारत में आर्थिक व औद्योगिक विकास के लिए, बकारा समस्या को सुलझाने हेतु, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने के लिए तथा प्राकृतिक संसाधनों का समचित विदोहन करने के लिए प्रबन्ध का अद्वितीय स्थान है।

भारत जैसे विकासशील देश के लिए प्रबन्ध का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से आंका जा सकता है

1 आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था हेतु (For Managing the Basic Infrastructure)भारत में आधारभूत सुविधाओं (जैसे- औद्योगिक शक्ति, परिवहन व संचार साधन, प्रौद्योगिक आदि) की समुचित व्यवस्था के द्वारा ही उत्पादकता वृद्धि की जा सकती है। कुशल प्रबन्ध के बिना यह सम्भव नहीं हो सकता।

2. ताव्र आद्यागिकरण हतु (For Rapid Industrialisation)-कुशल प्रबन्ध द्वारा ही देश की प्राकृतिक सम्पदा का समुचित विदोहन करके तीव्र गति से औद्योगीकरण किया जा सकता है।

3. पर्याप्त ग्रामीण विकास हेतु (For Adequate Rural Development)-कृषि विकास को प्रक्रिया में कुशल प्रबन्ध के उपयोग से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों का विकास किया जा सकता है और गाँवों के विकास से सम्पूर्ण देश का विकास होगा।

4. रोजगार के अवसरों में वृद्धि (For Increasing Employment Opportunities)-कुशल प्रबन्ध के द्वारा ही भारत की विशाल एवं मूल्यवान मानवीय सम्पदा का सदुपयोग करके रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है तथा बेरोजगारी की समस्या को हल किया जा सकता है।

5. अधिकारी व अधीनस्थों में मधुर सम्बन्धों की स्थापना हेतु (For Sweet Relations between Boss and Subordinates)-कुशल प्रबन्ध के द्वारा ही आये दिन होने वाली हड़तालों, तालाबन्दी, घेराव, औद्योगिक संघर्ष आदि पर विजय पाई जा सकती है।

6. न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादकता (For Maximum Productivity at Minimum Cost)-कुशल प्रबन्ध के द्वारा उत्पादन के साधनों में उचित समन्वय स्थापित करके भाल व मशीनों के दुरुपयोग को रोककर उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है जिसकी आज देश में विशेष आवश्यकता है।

7. समाजवादी समाज की स्थापना हेतु (For the Establishment of Socialistic Society)-भारत सरकार का लक्ष्य देश में एक समाजवादी समाज की स्थापना करना है। केवल कुशल प्रबन्ध के द्वारा ही इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है एवं आर्थिक सत्ता के केन्द्रीकरण को रोककर अमीर व गरीब के बीच की खाई को पाटा जा सकता है। संक्षेप में, कुशल प्रबन्ध सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना को जागृत करके समाजवादी समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।

8. ‘निर्यात करो या नष्ट हो जाओके नारे को क्रियान्वित करने के लिए (For Implementing the Slogan of ‘Export or Perish’)-भुगतान सन्तुलन की समस्या को हल करके व्यापाराधिक्य को अपने पक्ष में करने के लिए भारतीय निर्यातों को बढ़ाना नितान्त आवश्यक है एवं इस हेतु विदेशी व्यापार का कुशल प्रबन्ध जरूरी है।

9. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्दा पर विजय पाने के लिए (For Combating International Competition)-कुशल प्रबन्ध के द्वारा ही वैज्ञानिक एवं विवेकीकरण सम्भव है एवं भारत जैसे श्रम-बाहुल्य वाले देश में स्वचालन का सही प्रचलन प्रबन्धकीय चातुर्य द्वारा ही किया जा सकता है और अन्ततः तभी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है।

10. पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता के लिए (For the Success of Five-year Plans)-भारत की पंचवर्षीय योजनाओं की वास्तविक सफलता प्रबन्ध के सिद्धान्तों के परिपालन में ही निहित है, तभी केवल उपलब्धियाँ होंगी एवं योजनानुसार विकास होगा।

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11. देश की सन्तलित व चहुमुखी प्रगति के लिए (For Balanced and Around Development of the Nation केवल प्रबन्धक जादू (magic of management के माध्यम से। ही भारत का चहुँमुखी विकास करक समृद्धि लाई जा सकती है, क्योंकि प्रबन्ध के सामान्य सिद्धान्त आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक सभी क्षेत्रों में लागू किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष-उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों का समचित विदोहन करके औद्योगीकरण की गति को तीव्र करने तथा देशवासियों का जीवन-स्तर ऊचा करने के लिए प्रबन्ध नितान्त आवश्यक है। इसी कारण वर्तमान में सरकार व अन्य संस्थाओं द्वारा ‘प्रबन्ध’ के शिक्षण-प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया जा रहा है। उदारीकरण, निजीकरण और। वैश्वीकरण के व्यापक दौर के उपरान्त समग्र विश्व में विद्यमान वर्तमान वित्तीय मन्दी हमें यह बोध कराती है कि अब वैश्विक नेतृत्व एशिया के दो बड़े राष्ट्रों भारत और चीन के हाथों में होगा। तभी सन् 2020 तक हम विकसित राष्ट्र की श्रेणी प्राप्त करने के लक्ष्य से पेशेवर प्रबन्ध पर अधिक बल दे पायेंगे। इक्कीसवीं शताब्दी का वर्तमान दशक प्रबन्धकीय कौशल, चातुर्य एवं प्रखरता का दशक सिद्ध होगा. लेकिन हमें राजनीति. समाज और निगमों में व्याप्त वित्तीय भ्रष्टाचार से मजबती से निपटने हेतु पारदर्शी प्रबन्धकीय प्रणाली विकसित करनी होगी

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प्रबन्ध की सीमाएँ

(LIMITATIONS OF MANAGEMENT)

प्रबन्ध की अत्यधिक महिमा के बावजूद किंचित सीमाओं के कारण इसकी कटु आलोचना की जाती है। यह पुरातन कला एवं नूतन विज्ञान है। एक सामाजिक विज्ञान होने के नाते इसके नियम भौतिक शास्त्र तथा रसायन शास्त्र की भाँति पूर्ण नहीं होते, अपितु मान्यताओं पर आधारित रहते हैं। प्रबन्ध में मानवीय तत्त्व की उपस्थिति इसे अपूर्ण विज्ञान बनाता है। प्रबन्ध की सीमाओं के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं

1 निजी-हित एवं विशिष्ट प्रतिफल की आकांक्षा (Ambition of Private Interest and Specific Consideration)-प्रबन्ध का कार्य करने वाले लोग अपने हितों को सर्वोत्तम मानते हैं। इसके बाद ही वे संस्था व समाज का हित देखते हैं। आज प्रबन्धक सबसे पहले अपनी प्रगति, लाभ व विशिष्ट प्रतिफल की बात सोचते हैं और बाद में उस उपक्रम के सुधार की, जिसका कि वे प्रबन्ध करते हैं। बड़े औद्योगिक उपक्रमों को नियन्त्रित करने वाले व्यवसायी अपने लिए परामर्श देने तथा कार्य करने हेतु तकनीकी विशेषज्ञों को उपक्रम में नियुक्त कर लेते हैं, जिससे कि वे अपने-आपको ‘कुशल-प्रबन्धक’ कह सकें और उपक्रम का शोषण करके अपने निजी-हितों को पूरा कर सकें। भारत में प्रबन्ध-अभिकर्ता प्रणाली (Managing-agency System) इसका जीता-जागता उदाहरण था, जिसके उन्मूलन के लिए सरकार को बाध्य होकर कानून का सहारा लेना पड़ा। इन तकनीकी विशेषज्ञों की सेवाओं का मुख्य लाभ औद्योगिक उपक्रम को न होकर इनके प्रबन्ध अभिकर्ताओं व स्वामियों को होता था।

2. नौकरशाही (Bureaucracy)-पारकिंसन के नियम (Parkinson’s Law) में नार्थकोट पारकिंसन ने यह आरोप लगाया कि प्रबन्ध के ही कारण उपक्रम में ऊँच-नीच का भेदभाव, मनमटाव, लालफीताशाही और नौकरशाही जैसी दुषित मनोवृत्तियाँ पनपती हैं। व्यवसाय का प्रबन्ध एक प्रकार से नौकरों का राज्य और उच्च जाति के प्रशासकों का राज्य बन जाता है। प्रबन्धक ‘हुजुर

और मजूर’ का वातावरण बना करके अपनी जेबों को भरने के लिए शक्ति का दुरुपयोग करने लगते हैं। अपनी शक्ति के नशे में मदमस्त होकर मनमानी करने लगते हैं और यही उनके पतन की शुरुआत होती है।

3. प्रबन्ध के सिद्धान्तों की परिवर्तनीयता (Changeability of the Principles of Management)-आलोचकों का यह आरोप है कि प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रयोग स्थान, समय एवं परिस्थिति के अनुसार होना चाहिए। प्रबन्ध विज्ञान के सिद्धान्तों में परिवर्तनीयता होती है, स्थायित्व नहीं। प्रबन्ध विज्ञान का कोई सिद्धान्त एक उपक्रम के लिए अति लाभदायक सिद्ध होता है तो यह। आवश्यक नहीं है कि किसी दूसरे उपक्रम के लिए भी उतना ही लाभदायक सिद्ध होगा। प्रत्येक राष्ट्र के व्यावसायिक उपक्रमों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं, साथ ही साथ, एक ही राष्ट्र के

प्रबन्ध : अवधारणा, प्रकृति एवं महत्त्व विविध उपक्रमों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। यहाँ तक कि एक ही प्रकार के व्यावसायिक उपक्रम की विभिन्न इकाइयों में समानता नहीं पायी जाती है। आज जो प्रबन्ध का सिद्धान्त लागू होता है, कल पूर्णतया व्यर्थ सिद्ध हो सकता है। अतः क्या प्रबन्ध इतनी शीघ्रता से अपनी परम्परागत तकनीक को छोड़कर परिवर्तनों को ग्रहण करने के लिए तैयार है? सम्भवतया, उत्तर है कि, नहीं।

4. मानव आचरण की स्वतंत्रता (Freedom of Human Behaviour)-प्रबन्ध कार मानव आचरण से है। मानव के विभिन्न वर्ग होते हैं: जैसे—ग्राहक, कर्मचारी, श्रमिक, स्वामा, अधिकारी आदि; जिसके आचरण एवं प्रवृत्ति में भिन्नता होती है। उनका व्यवहार किसी ठोस नियम पर आधारित न होने के कारण प्रबन्ध विज्ञान को वैज्ञानिक आधार देना सम्भव नहीं हो पाता है। ओलिवर शैल्डन के शब्दों, “जहाँ भी मानव से सम्बन्ध होगा. प्रबन्ध विज्ञान के सिद्धान्त व्यर्थ सिद्ध हो सकते हैं।”

4. अन्य सीमाएँ (Other Limitations)-प्रबन्ध की कुछ अन्य सीमाएँ संक्षेप में इस प्रकार

(i) प्रबन्ध पर बाह्य वातावरण का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।

(ii) संगठनात्मक उद्देश्यों व दर्शनों में भिन्नता होती है।

(iii) प्रबन्धकीय कुशलता एवं प्रभावशीलता के समुचित माप का अभाव है।

(iv) प्रबन्ध पर देश व समाज की संस्कृति, मूल्यों, विश्वासों व लोकाचारों का पर्याप्त असर होता है।

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महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. प्रबन्ध की विभिन्न अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से समझाइये

Clearly explain the various concepts of management.

प्रश्न 2. “प्रबन्ध व्यक्तियों से कार्य कराने की कला है।” टिप्पणी कीजिये तथा प्रबन्ध के महत्त्व को भी समझाइये।

“Management is the art of getting things done through and with the people.” Comment and explain the importance of management.

प्रश्न 3. व्यावसायिक प्रबन्ध से क्या आशय है ? ‘प्रशासन’, ‘प्रबन्ध’ तथा ‘संगठन’ में क्या अन्तर है?

What is ‘Business Management’ ? How do you distinguish between ‘Administration’, ‘Management’ and ‘Organization’ ?

प्रश्न 4. “प्रबन्ध कला, विज्ञान एवं पेशा इन तीनों का समूह है।” विवेचना कीजिये।

“Management is the group of art, science and profession”. Discuss.

प्रश्न 5. प्रबन्ध की परिभाषा दीजिये और इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइये।

Define Management and explain its essential characteristics.

प्रश्न 6. प्रबन्ध को परिभाषित कीजिये। आधनिक व्यवसाय में इसकी महत्ता समझाइये।।

Define Management. Explain its importance in modern business.

प्रश्न 7. “प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है, न कि वस्तुओं का निर्देशन।” इस कथन को स्पष्ट कीजिये।

Management is the development of men and not the direction of things.” Explain this statement.

प्रश्न 8. हम मोटरें, हवाई जहाज, फ्रिज, रेडियो या जूते के फीते नहीं बनाते, हम बनाते हैं। मनुष्य और मनुष्य इन वस्तुओं का निर्माण करते हैं, इस कथन के प्रकाश में यह बतलाइये कि क्या प्रबन्ध कार्मिक प्रशासन है ?

We do not build Automobiles, Aeroplanes, Fridge, Radio or Shoe-strings, we build men and the men build products. In the light of this statement, explain whether management is personnel administration ?

प्रश्न 9. प्रबन्ध की प्रकृति का वर्णन कीजिये। क्या प्रबन्ध एक पेशा हैं ?

Describe the nature of management. Is management a profession?

प्रश्न 10. प्रबन्ध की परिभाषा दीजिये। भारतीय सन्दर्भ में प्रबन्ध का महत्त्व बताइये। Define management. Explain the importance of management in Indian context.

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॥ लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।

State the main characteristics of management.

प्रश्न 2. प्रबन्ध और प्रशासन के मध्य अन्तर कीजिये।

Distinguish between management and administration.

प्रश्न 3. प्रबन्ध की महत्ता को संक्षेप में समझाइये।

Explain in brief the significance of management.

प्रश्न 4. प्रबन्ध तथा संगठन में अन्तर कीजिये।

Distinguish between management and organization.

प्रश्न 5. प्रबन्ध की अवधारणा से क्या आशय है ?

What is meant by Managemeent concept ?

प्रश्न 6. “प्रबन्ध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है’ स्पष्ट कीजिये।

Management is an universal process. Explain.

प्रश्न 7. “प्रबन्ध विज्ञान है अथवा कला अथवा दोनों।” इस कथन को स्पष्ट कीजिये। ”

Management is an art or science or both.” Explain this statement.

प्रश्न 8. वर्तमान समय में प्रबन्ध के बढ़ते महत्त्व के कारण बताइये।

State the reasons of increasing importance of management.

अ वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

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1 बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही है’ या ‘गलत’

Indicate whether the following statements are ‘true’ or ‘false’

(i) प्रबन्ध कला तथा विज्ञान दोनों हैं।

Management is both art and science.

(ii) प्रबन्ध एक गत्यात्मक प्रक्रिया है।

Management is an dynamic process.

(iii) प्रशासन ही प्रबन्ध है।

Administration is management.

(iv) संगठन का दूसरा नाम प्रबन्ध है।

Another name of management is organization.

(v) प्रबन्ध पेशेवर नहीं है।

Management is not professional.

(vi) प्रबन्ध क्रिया सार्वभौमिक नहीं है।

Management process is not universal.

प्रबन्ध : अवधारणा, प्रकृति एवं महत्त्व

(vii) प्रबन्ध वस्तुओं का निर्देशन नहीं है।

Management is not the direction of things.

उत्तर-(i) सही (ii) सही (iii) गलत (iv) गलत (v) गलत (vi) गलत (vii) सही

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2. सही उत्तर चुनिये (Select the Correct Answer)

(i) निम्नलिखित में से कौन सा प्रबन्ध का कार्य नहीं है

Which of the following is not the function of management ?

(अ) नियोजन (Planning)

(ब) संगठन (Organization)

(स) लेखांकन (Accounting)

(द) निर्देशन (Direction)

(ii) थियो हैमन के अनुसार प्रबन्ध की अवधारणायें हैं

According to Theo Haimann the concept of management are :

(अ) 2

(ब) 3

(स) 4

(द) 6

(iii) प्रबन्ध की आवश्यकता है

Management is needed :

(अ) निम्न स्तर पर (Lower Level)

(ब) मध्यम स्तर पर (Middle Level)

(स) उच्च स्तर पर (Top Level)

(द) सभी स्तर पर (All Levels)

उत्तर-(i) () (ii) (ब) (iii) (द)

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chetansati

Admin

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