सहकारी अंकेक्षक के कर्तव्य

Table of Contents

(DUTIES OF CO-OPERATIVE AUDITOR)

सहकारी अंकेक्षक के कार्यों का वर्णन पहले किया जा चुका है। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सहकारी अंकेक्षक के निम्न कर्तव्य हैं :

(1) समिति के लेखों की जांच करनासमिति के व्यवहारों के लेखों की जांच करना तथा यह देखना कि कोई कार्य समिति के हितों के विरुद्ध तो नहीं है।

(2) रिपोर्ट देनासहकारी अंकेक्षक को जांच के पश्चात् रिपोर्ट देनी होती है। सहकारी अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट सरकार को दे देता है।

(3) अपनी रिपोर्ट में समिति का लाभहानि खाता, चिट्ठा, कार्यकलाप, नियमों का पालन, आदि के सम्बन्ध में लिखनाअपनी रिपोर्ट में यह लिखना होता है कि :

(i) समिति का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता ठीक है और सदस्यों के आर्थिक उद्धार में योग दे रहा

(ii) समिति का कार्य सहकारिता के सिद्धान्तों के अनुरूप चलाया जा रहा है।

(iii) समिति द्वारा सहकारी अधिनियम, नियम, उपनियम एवं विभागीय नियमों व व्यवस्थाओं का पालन किया जा रहा है:

(iv) समिति ने सहकारी नियमों के अन्तर्गत सभी आवश्यक पुस्तकों को रखा है।

(v) अंकेक्षक के विशेष रूप से निम्न कार्य हैं :

() कालातीत देय राशि (Overdue debts) की जांच,

() नकदी तथा प्रतिभूतियों का सत्यापन, और

() सम्पत्तियों तथा दायित्वों का मूल्यांकन।

अंकेक्षण का स्वरूप

(NATURE OF AUDIT)

सहकारी अंकेक्षण एक प्रकार से वैधानिक अंकेक्षण है और अनिवार्य भी है, क्योंकि यह सहकारी। अधिनियम के अन्तर्गत कराया जाता है।

सहकारी आन्दोलन जनतान्त्रिक नीतियों एवं गतिविधियों पर आधारित है। इसी कारण सरकार इन सहकारी समितियों को अपने हाथ में नहीं ले सकता है। ये समितियां ऐसे संघ हैं जो स्वेच्छापर्वक कार्य करते। हैं और इनके लिए सरकारी प्रबन्ध म जनतान्त्रिक सिद्धान्तों के विरुद्ध कार्यवाही होगी। इसी कारण सरकार के पास केवल इनका अंकेक्षण ही एकमात्र उपाय है जिससे इन समितियों को धन एवं शक्ति के दुरुपयोग से रोक जा सके और समितियों के सदस्यों के हितों की रक्षा की जा सके। इस प्रकार अंकेक्षक ही सरकार के पास एकमेव साधन है।

सहकारी अंकेक्षण की प्रक्रिया

(PROCEDURE OF CO-OPERATIVE AUDIT)

सहकारी समिति अधिनियम, 1912 की धारा 17 में राज्य सरकारों का दायित्व जो सहकारी संस्थाओं की अंकेक्षण-प्रक्रिया के सम्बन्ध में है, दिया हुआ है। सहकारी वर्ष प्रायः 1 जुलाई से 30 जून तक चलता है। और इस प्रकार सहकारी अंकेक्षक को एक साथ ही पूरे वर्ष का कार्य देखना होता है। सहकारी अंकेक्षकों को विभिन्न दलों (Parties) में बांट करके ही जांच करायी जाती है और इन्हें सामूहिक रूप से भी कार्य करना होता है।

वर्ष का हिसाब एकदम जांचना कठिन होता है। अतः सविधा के लिए अंकेक्षण कार्यक्रम त्रैमासिक बनाया जाता है और वर्ष को तीन-तीन माह के चार भागों में विभाजित कर दिया जाता है। यह भी तय किया जाता है प्रत्येक तीन महीनों में किन-किन समितियों की जांच की जाएगी। इस कार्यक्रम की प्रतिलिपि सहकारी अधिकारियों को भेज दी जाती है।

इसी प्रकार प्रत्येक अंकेक्षक पार्टी अपना मासिक कार्यक्रम तैयार करती है कि अमूक महीने में किन-किन समितियों के खातों की जांच की जाएगी। सुविधा के लिए क्षेत्रीय आधार पर समितियों को बांट लिया जाता है।

अपनी तैयारी करने के पश्चात अंकेक्षक उन समितियों को सूचना देते हैं जिनका अंकेक्षण करना होता है। यह आदेश भी दिया जाता है कि ये समितियां क्या-क्या तैयार करें तथा किस प्रकार अपना हिसाब-किताब तैयार रखें।

अंकेक्षण कार्य से पूर्व जानकारीअपना कार्य प्रारम्भ करने से पहले प्रत्येक अंकेक्षक को समिति एवं उसके कार्य के विषय में निम्न जानकारी करनी चाहिए :

(1) समिति को आदेश देना चाहिए कि वह सभी सूचनाएं तैयार रखे तथा कागज-पत्रों को निरीक्षण के योग्य बना ले।

(2) इसके साथ-ही-साथ अंकेक्षक को समिति के सम्बन्ध में विशेष तान्त्रिक बातों की जानकारी करनी चाहिए।

(3) यह भी देखना चाहिए कि समिति किस सीमा तक सहकारी अधिनियम, अन्य नियम व उपनियम तथा सहकारी आदेशों का पालन कर रही है। यदि नहीं, तो अंकेक्षक को आपत्ति करनी चाहिए।

(4) समिति की कार्यवाही पुस्तक (Minute Book) का भी अंकेक्षक को अध्ययन करना चाहिए।

(5) साथ ही यह भी जानकारी करनी चाहिए कि समिति ने कौन-सी लेखा प्रणाली को अपनाया है तथा अपने यहां किन-किन लेखा पुस्तकों का प्रयोग किया है।

(6) कर्मचारियों के सम्बन्ध में यह जानकारी करनी चाहिए कि उनके समिति के कार्य के सम्बन्ध में क्या-क्या दायित्व हैं।

(7) समिति के द्वारा अपनायी गयी आन्तरिक निरीक्षण की पद्धति की जांच करनी चाहिए।

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सहकारी समिति का अंकेक्षण

(AUDIT OF CO-OPERATIVE SOCIETY)

यहां यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि सहकारी समितियां अपने-अपने हिसाब से कार्य करती हैं। यही नहीं, विभिन्न राज्यों में सहकारी समितियों के सम्बन्ध में बनाए गए अधिनियमों में थोड़ी-बहुत भिन्नता हो सकती है. लेकिन कार्य-प्रणाली प्रायः समान ही है। एक अंकेक्षक अपनी जांच में कितने कार्य को कर पाएगा, यह एक विवादास्पद प्रश्न है। सहकारी समितियों का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को अग्र कार्य करने चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Information)

(1) अंकेक्षक को समिति के नियमों का भली-भांति अध्ययन करना चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि सहकारी समिति अधिनियम, 1912 (Co-operative Societies Act. 1912) की प्रतिलिपि प्राप्त करनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि लेखों के सम्बन्ध में नियम व उपनियम क्या हैं तथा समिति इन नियमों का पालन कर रही है, या नहीं।

(2) समिति की पंजी कितनी है और उसके कितने सदस्य हैं। यह देखना चाहिए कि समिति का कोई। भी सदस्य समिति की अधिकृत अंश-पूंजी के 10% से अधिक का स्वामी तो नहीं है। उनकी सभाओं के कार्य-विवरण की गहन जांच की जानी चाहिए।

(3) समिति के प्रबन्धकारिणी के सदस्यों की कितनी संख्या है और उनके अधिकार क्या-क्या हैं? उनके कर्तव्यों एवं अधिकारों का अध्ययन करना चाहिए। यही नहीं, उनकी समिति के कार्य के प्रति रुचि, सतर्कता. सावधानी एवं पारस्परिक व्यवहार की जांच करनी चाहिए।

(4) समिति के सदस्यों की संख्या एवं उसकी समिति से प्राप्त आर्थिक लाभ की भी जानकारी करनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि समिति से इन सदस्यों को किस सीमा तक लाभ मिल रहा है।

(5) समिति के कार्य के लिए प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण (Internal Check) की पद्धति की जानकारी करनी चाहिए। 3174 (Income)

(6) सदस्यों के रजिस्टर को देखकर सदस्यों से प्राप्त अंश-पूंजी की राशि की प्राप्ति का सत्यापन करना चाहिए और इसके लिए रसीदों के प्रतिपर्ण व रोकड़ पुस्तक के डेबिट में की गयी प्रविष्टियों की जांच करनी चाहिए। इस सम्बन्ध में समिति के नियमों का भी निरीक्षण करना चाहिए।

(7) सदस्यों के द्वारा जो ऋण एवं ब्याज का भुगतान किया जाता है, उनकी जांच रसीदों एवं सदस्यों के रजिस्टर से की जानी चाहिए।

(8) विनियोगों पर प्राप्त व्याज तथा लाभांश का प्रमाणन विनियोगों, लाभांश अधिनियमों तथा पास-बुक की सहायता से किया जाना चाहिए।

(9) समिति द्वारा प्राप्त जमानतों की जांच रसीदों तथा प्रबन्धकारिणी द्वारा पास किए गए प्रस्तावों से करनी चाहिए।

(10) सहकारी समितियों को सरकार से कभीकभी सहायता प्राप्त होती है। यह देखना चाहिए कि सहायता का उपयोग उन्हीं कार्यों के लिए किया गया है जिनके लिए यह प्राप्त हुई है। व्यय (Expenditure)

(11) यह देखना चाहिए कि समिति के द्वारा किया गया व्यय उचित तथा नियमानुकूल है। इस व्यय का सीधा सम्बन्ध समिति के कार्यों से होना चाहिए।

(12) कर्मचारियों को दिए गए वेतन, भत्ते, आदि का प्रमाणन करना चाहिए।

(13) बैंक, ऋण तथा ब्याज के भुगतान के लिए बैंक द्वारा जारी की गयी रसीदों तथा पास-बुक की जांच की जानी चाहिए।

(14) समिति द्वारा चुकाए गए लाभांश के लिए अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि इससे सम्बन्धित नियमों, उपनियमों एवं आदेशों का पूर्णरूपेण पालन किया गया है। लाभांश 6% से अधिक नहीं होना चाहिए।

लाभांश पुस्तिका तथा अंश रजिस्टर से इनकी रकम की जांच करनी चाहिए।

(15) व्यय की अन्य मदों का प्रमाणन तत्सम्बन्धित प्रमाणकों की सहायता से करना चाहिए। अन्य (Other)

(16) यह देखना चाहिए कि सम्पत्तियों तथा दायित्वों का सही मल्यांकन किया गया है। सम्पत्तियों पर। हास के लिए पर्याप्त आयोजन किया गया है।

(17) अंकेक्षक को रोकड़ प्रतिभूतियों तथा अन्य सम्पत्तियों का सत्यापन करना चाहिए। रोकड़ का सत्यापन स्वयं गिनकर करना सदैव श्रेयस्कर है।

(18) कालातीत देय ऋण (Overdue Debts) की जांच बडी सावधानी से करनी चाहिए और यह देखना। चाहिए कि इन ऋणों में से कितने अच्छे हैं तथा कितने डबत एवं सन्देहास्पद हैं। इन ऋणों की गहन जाच। उपलब्ध प्रमाणकों से की जानी चाहिए।

(19) यह भी देख लेना चाहिए कि समिति के अतिरिक्त कोषों को सरकारी बचत बैंक (Government! Savings Bank) अथवा समितियों के रजिस्ट्रार के द्वारा स्वीकत अन्य बैंकों में विनियोजित किया गया है।

(20) यह जांच करनी चाहिए कि लाभ का विभिन्न कोषों जैसे. संचय कोष, कल्याण कोष, आदि में। समिति के नियम व उपनियमों के अनुरूप हस्तान्तरण किया गया है।

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प्रशासनिक अंकेक्षण

(ADMINISTRATIVE AUDIT)

सहकारी अंकेक्षण एक ओर पुस्तकों के लेखों का अंकेक्षण है, तो साथ-ही-साथ दूसरी ओर प्रशासनिक अंकेक्षण भी होता है। सहकारी अंकेक्षण का वास्तविक उद्देश्य सहकारी समितियों और उनके सदस्यों के हित में कार्य करना होता है। सहकारी अंकेक्षण केवल यह ही नहीं देखता है कि खाते नियमानुकूल हैं, बल्कि वह यह भी देखता है कि समितियों का प्रशासन सदस्यों के हित में चल रहा है।

इस प्रकार इसको कुशलता अंकेक्षण (Efficiency Audit) भी कहा जा सकता है। प्रशासनिक अंकेक्षण की दृष्टि से अंकेक्षक को निम्नलिखित बातें देखनी चाहिए :

(1) समितियों का प्रशासन तथा प्रबन्ध नियम तथा अधिनियम के अनुसार चल रहा है।

(2) समितियों के कार्य संचालन में सहकारी सिद्धान्तों का अनुकरण हो रहा है।

(3) समितियां सदस्यों के हित में कार्य कर रही हैं।

(4) समितियों के कार्यक्रम उसके सदस्यों के आर्थिक तथा मानसिक उत्थान में सहायक हो रहे हैं।

(5) समितियों के नियम सार्वजनिक हित के अनुरूप हैं।

(6) समितियों ने कोई नियम-विरुद्ध प्रस्ताव तो पारित नहीं किया है।

(7) समितियों एवं सदस्यों की अधिकतम ऋण सीमा का निर्धारण सही किया गया है।

(8) समितियों को दी गयी सरकारी सहायता का प्रयोग उसी कार्य के लिए किया गया है, जिसके लिए यह सहायता दी गयी थी।

(9) समितियों के तरल साधन विधान के अनुसार हैं तथा अपेक्षित हैं।

(10) समितियों के व्यय उचित हैं।

(11) समिति सही तथा आवश्यक पुस्तकें व रजिस्टर रखती है।

(12) ऋण प्राप्त न होने पर सदस्यों के विरुद्ध की गयी कार्यवाही पर्याप्त है।

अंकेक्षक रिपोर्ट

(AUDIT REPORT)

सहकारी समितियों के भिन्न-भिन्न स्वरूप होते हैं और उसी प्रकार उनके अंकेक्षण सम्बन्धी रिपोर्ट देने के लिए पृथक-पृथक प्रपत्र होते हैं। इन प्रपत्रों में यह व्यवस्था रहती है जिसके अनुसार अंकेक्षक अपना अंकेक्षण कार्य करेगा तथा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। इस सम्बन्ध में व्यवस्थाएं भिन्न-भिन्न होने के कारण कोई सर्वसम्मत बात करना अनुचित है। फिर भी एक नमूना नीचे दिया जाता है :

रजिस्ट्रार, सहकारिता विभाग,

लखनऊ

महोदय,

मैं प्रमाणित करता है कि मैंने 31 मार्च, 2014 को समिति के चिठे और इसी वर्ष के लाभ-हानि खाते का अंकेक्षण इससे सम्बन्धित पुस्तकों, प्रमाणकों, सूचनाओं तथा स्पष्टीकरण के आधार पर किया है।

मैं रिपोर्ट करता हूं कि : (1) मुझे इस अंकेक्षण से सम्बन्धित सभी सूचनाएं एवं स्पष्टीकरण प्राप्त हो गए हैं।

(2) समिति ने अपनी पस्तकें सहकारी समिति अधिनियम, नियम, उपनियम तथा आदेशों के अनुसार तैयार की हैं।

(3) समिति का चिट्ठा 31 मार्च, 2014 को तथा इसी तिथि को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए बनाया गया। लाभ-हानि खाते कम्पनी के कार्यकलापों का सच्चा एवं उचित चित्र प्रस्तुत करते है।।

लखनऊ                                                         ………………………..

20 दिसम्बर, 2014अंकेक्षक

उपर्युक्त रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सहकारी अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में किन-किन प्रमुख बातों की आर संकेत करना चाहिए।

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अन्य सहकारी संस्थाओं का अंकेक्षण नीचे दिया गया है।

(AUDIT OF CONSUMER CO-OPERATIVE STORES)

एक अंकेक्षक को सहकारी उपभोक्ता भण्डार का अंकेक्षण निम्न प्रकार से करना चाहिए:

(1) सहकारी उपभोक्ता भण्डार के क्रियाकलाप की जानकारी करनी चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि भण्डार किन वस्तुओं में क्रय-विक्रय करता है तथा हिसाबकिताब के लिए कौन सी पद्धति अपनायी जाती है।

(2) सहकारी भण्डार के कार्य को चलाने के लिए प्रयुक्त आन्तरिक प्रणाली की गहन जांच करनी चाहिए तथा उसमें निहित दोषों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

(3) भण्डार की वस्तुएं क्रय करने की क्या प्रणाली प्रचलित है, इसकी जानकारी करनी चाहिए।

(4) भण्डार से सामान्य प्रशासन एवं व्यवस्था के विषय में भी जानकारी करनी चाहिए, ताकि अंकेक्षण करते समय उन बातों की विशेष रूप से जांच की जाए जो शंका उत्पन्न करने के कारण बनती हैं।

(5) गत वर्ष के लाभ के सम्बन्ध में जानकारी करनी चाहिए और इसके विवरण के सम्बन्ध में भी जानकारी करनी चाहिए।

(6) गत तीन या पांच वर्षों में बांटे गए लाभांश की दरों की जांच करनी चाहिए।

(7) व्यक्तियों को जो बोनस दिया गया है, उसकी जानकारी करनी चाहिए।

(8) भण्डार के खर्चों की राशि का प्रमाणन करना चाहिए।

(9) यदि प्रबन्धक समिति के किसी सदस्य ने कोई ऐसा प्रसंविदा या कार्य किया है और फलस्वरूप कुछ लाभ उठाया है, तो यह देखना चाहिए कि समिति को कहीं इससे हानि तो नहीं हुई है।

(10) किसी विशेष खरीद की मद में यदि संचालक कोई दिलचस्पी रखता हो जो समिति के हित में न हो, तो इसकी जानकारी करनी चाहिए।

(11) स्टॉक लेने की विधि की जांच करनी चाहिए।

(12) भण्डार के कुछ नीति सम्बन्धी प्रश्न जैसे, वस्तुओं का मूल्य निर्धारण, उधार माल की बिक्री की सीमा, आदि के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी करनी चाहिए।

(13) यह देखना चाहिए कि कमीशन या चालान पर भेजे गए सामान का लेखा ठीक प्रकार रखा जाता

(14) बिक्री केन्द्र की व्यवस्था की जांच करनी चाहिए।

(15) भण्डार में कोई धोखाधड़ी या गबन या मिलावट के मामले हों तो उनकी छानबीन करनी चाहिए।

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केन्द्रीय सहकारी बैंक का अंकेक्षण

(AUDIT OF CENTRAL CO-OPERATIVE BANK)

(1) रोकड़ एवं प्रतिभूतियों की जांच करनी चाहिए।

(2) दैनिक पुस्तक (Day Book) की जांच की जानी चाहिए।

(3) बैंक के द्वारा अन्य बैंकों में खोले गए खातों की जांच की जानी चाहिए।

(4) विभिन्न खातो की खाता-बही से जांच करनी चाहिए।

(5) कालातीत ऋणों (Overdue Debts) की वसूली की व्यवस्था की जांच करनी चाहिए।

(6) बैंक के तरल साधनों के सम्बन्ध में प्रचलित व्यवस्था की जांच करनी चाहिए तथा इनके रजिस्टर की भी जांच करनी चाहिए।

(7) सम्पत्ति रजिस्टर का निरीक्षण करना चाहिए तथा इसका सत्यापन और मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए।

(8) बैंक के लाभ, लाभांश व बोनस के वितरण से सम्बन्धित नियमों की जांच करनी चाहिए।

(9) संचालकों की बैठकों से सम्बन्धित कार्यवाही पुस्तक (Minute Book) की जांच करनी चाहिए और बैंक के द्वारा दिए गए ऋणों के सम्बन्ध में जानकारी करनी चाहिए। ।

(10) नियमानुसार ऋणों की स्वीकृति में देर नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा हुआ हो तो इस बात की जांच करनी चाहिए।

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प्रश्न

1 सहकारी अंकेक्षण क्या है ? इसके उद्देश्य बताइए या सहकारी अंकेक्षण के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

Describe the objectives of the Co-operative Audit. What is Co-operative Audit? Describe its objects.

2. यह बताइए कि एक सहकारी अंकेक्षक की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है? उसके अधिकार तथा कर्तव्य भी बताइए।

Describe how a Co-operative Auditor is appointed? Also mention his rights and duties.

3. एक सहकारी समिति का अंकेक्षण किस प्रकार किया जाएगा? ।

How would you audit a co-operative society?

4 एक सहकारी उपभोक्ता भण्डार का अंकेक्षण आप किस प्रकार करेंगे?

How would you audit a Co-operative Consumer Store?

5. केन्द्रीय सहकारी बैंक के अंकेक्षण में आप किन-किन बातों की ओर विशेष ध्यान देंगे?

To which points, will you pay your special attention in the audit of a Central Co-operative Bank?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 यह बताइये कि एक सहकारी अंकेक्षक की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है?

2. किन्हीं पांच व्यवस्थाओं का उल्लेख कीजिए जो सहकारी समिति के खातों का अंकेक्षण करने में लागू होती है।

3. सहकारी समिति के अंकेक्षक के पांच प्रमुख अधिकारों का वर्णन कीजिए।

4. सहकारी समिति के सम्बन्ध में अंकेक्षक द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट का नमूना दीजिए।

5. सहकारी समिति का अंकेक्षण करते समय ध्यान दी जाने वाली किन्हीं चार प्रमुख बातों का उल्लेख कीजिए।

6. एक सहकारी समिति का अंकेक्षण करते समय ध्यान दी जाने वाली किन्हीं चार प्रमुख बातों का उल्लेख कीजिए।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. क्या सहकारी समिति के खातों का अंकेक्षण प्रतिवर्ष होना आवश्यक है या नहीं तथा यहां अंकेक्षक का चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट होना भी आवश्यक है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?

2. क्या सहकारी समितियों के खातों का अंकेक्षण प्रतिवर्ष आवश्यक है ?

3. सहकारी अंकेक्षक के दो कार्य बताइये।

4. सहकारी समितियों के खातों का अंकेक्षण क्यों आवश्यक है ?

5. सहकारी अंकेक्षक दो कर्तव्य बताइए।

6. सहकारी समिति के अंकेक्षक को नियुक्त करने का अधिकार किसको है?

7. किन-किन को सहकारी समितियों का अंकेक्षक नियुक्त किया जा सकता है ?

8. सहकारी अंकेक्षक के कोई दो अधिकार बताइए।

9. सहकारी अंकेक्षक के कार्य-क्षेत्र में आने वाली दो बातें लिखिए।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 सहकारी अंकेक्षक की नियुक्ति की जाती है :

(अ) कम्पनी अधिनियम द्वारा

(ब) साझेदारी संलेख द्वारा 0

(स) पारस्परिक वार्तालाप द्वारा

(द) सहकारी रजिस्ट्रार द्वारा

2. सहकारी अंकेक्षण होता है :

(अ) अनिवार्य

(ब) ऐच्छिक

(स) आवश्यक

(द) कोई नहीं

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chetansati

Admin

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