BCom 3rd Year Co-Operative Auditing Study Material notes in Hindi

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BCom 3rd Year Co-Operative Auditing Study Material notes in Hindi: Origin of Operations Society Registration of Co-Operation Society Liabilities of Members of Operation Society Certain Restrictions Bye-laws of Operation Society Need for Co-Operation Audit From From of Operative Audit Functions of an Operating Auditors Advantages Operative Auditors Appointment of Operative Auditor Nature of Audit:

Co-Operative Auditing
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BCom 3rd Year Auditing Alteration Share Capital Study material notes in Hindi

सहकारी अंकेक्षण

[CO-OPERATIVE AUDITING].

सहकारी समितियों की स्थापना अन्य व्यापारिक संस्थाओं की भांति ही की जाती है। परन्तु सहकारी समितियों की स्थापना का उद्देश्य अन्य व्यापारिक संस्थाओं जैसे, एकाकी व्यापार, साझेदारी एवं कम्पनी से भिन्न होता है। व्यापारिक संस्थाओं की स्थापना का प्रमख उद्देश्य लाभ कमाना होता है जबकि सहकारी समितियां अपने सदस्यों की यथासम्भव सहायता करने के उद्देश्य से स्थापित की जाती हैं। इस प्रकार, सहकारी समिति का प्रमुख कार्य अपने सदस्यों की समस्याओं का समाधान करना एवं उनके आर्थिक विकास में सहायता करना होता है। सहकारी समितियों का समस्त व्यवहार अपने सदस्यों से ही होता है। सहकारी समितियों के सभी सदस्य एक-दूसरे के सहयोगी की तरह कार्य करते हैं। संक्षेप में, सहकारी समितियां कुछ चयनित व्यक्तियों का संघ हैं जो सदस्यों के आर्थिक हितों की रक्षा करती हैं एवं पारस्परिक सहयोग की भावना से कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।

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सहकारी समितियों का प्रादुर्भाव

(ORIGIN OF CO-OPERATIVE SOCIETY)

सर्वप्रथम सहकारी समितियों के सम्बन्ध में 1904 में अधिनियम पारित किया गया था। परन्तु उस समय साख समितियां ही स्थापित की जाती थीं। तत्पश्चात सहकारी समिति अधिनियम, 1912 (Co-operative Societies Act, 1912) पारित किया गया जिसके अन्तर्गत साख (credit) एवं गैर-साख (non-credit) दोनों प्रकार की समितियों की स्थापना से सम्बन्धित प्रावधान किए गए और धीरे-धीरे दोनों ही प्रकार की सहकारी समितियां प्रचलन में आईं। इस अधिनियम का उद्देश्य सहकारी समिति का संचालन करना था, जो किसी राज्य विशेष के सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत की जा सकती है। यद्यपि इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि कुछ राज्यों ने अपने पृथक्-पृथक् सहकारी समिति अधिनियम पारित कर लिए हैं।

सहकारी समिति का पंजीकरण

(REGISTRATION OF CO-OPERATIVE SOCIETY)

सहकारी समिति के लिए आवश्यक न्यूनतम सदस्यों की संख्या 10 निर्धारित की गई है। जिस राज्य में भी सहकारी समिति की स्थापना की जानी है, सहकारी समिति को सम्बन्धित राज्य के सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को पंजीकरण के लिए आवेदन करना होता है। यद्यपि सहकारी समिति का पंजीकरण कराना वैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है। परन्तु सहकारी समिति के पंजीकरण कराने से सहकारी समिति को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होते हैं। अतः सहकारी समितियों का पंजीकरण वांछनीय माना गया है।

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सहकारी समिति के सदस्यों का दायित्व

(LIABILITIES OF MEMBERS OF CO-OPERATIVE SOCIETY)

सहकारी समिति के सदस्यों का दायित्व दो प्रकार का होता है

1 सीमित दायित्व (Limited Liability)—सीमित दायित्व के अन्तर्गत सहकारी समिति के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है अर्थात सहकारी समिति के उत्तरदायित्वों के सन्दर्भ में सदस्य केवल अपने व्यक्तिगत योगदान (Contribution) तक ही उत्तरदायी होता है। किसी भी दशा में सहकारी समिति उस निश्चित योगदान की राशि से अधिक राशि के लिए सदस्य को बाध्य नहीं कर सकती है।

सामान्यतः सदस्यों के दायित्व सीमित होते हैं। सहकारी समिति अधिनियम, 1912 (Co-operative Societies Act, 1912) के अन्तर्गत पंजीकत प्रत्येक सीमित दायित्व वाली सहकारी समिति को अपने ना के अन्तिम शब्द के रूप में लिमिटेड (Limited) शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य है।

2. असीमित दायित्व (Unlimited Liability)-असीमित दायित्व के अन्तर्गत सहकारी समिति के सदस्यों का दायित्व उनके व्यक्तिगत अंशदान तक ही सीमित नहीं होता है, वरन् उनका दायित्व असीमित होता है। सामान्यतः जहां समितियों का उद्देश्य उसके सदस्यों को धन उधार देना है और जिसके लिए समितियों के कोषों का निर्माण किया जाता है एवं समितियों के लेनदार सदस्यों की संख्या अधिक हो, वहां सदस्यों का दायित्व असीमित होता है।

सहकारी समिति के उपनियम

(BYE-LAWS OF THE CO-OPERATIVE SOCIETY)

सहकारी समिति अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक सहकारी समिति अपने उपनियम बना सकती है। पंजीकरण के लिए सहकारी समिति को उपनियमों की एक प्रतिलिपि आवेदन-पत्र के साथ रजिस्ट्रार को प्रेषित करनी होती है। धारा 11 (Section 11) के अन्तर्गत सहकारी समिति के उपनियमों को तब तक वैध नहीं माना जाता है जब तक उन्हें रजिस्ट्रार के यहां पंजीकृत एवं स्वीकृत न कराया गया हो।

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कुछ प्रतिबन्ध

(CERTAIN RESTRICTIONS)

सहकारी समितियों के क्रियाकलाप पर निम्न प्रमुख प्रतिबन्ध हैं :

(1) अंशस्वामित्व (Shareholdings)—सहकारी समिति अधिनियम की धारा 5 में यह प्रावधान है कि यदि सदस्यों का दायित्व सीमित है, रजिस्टर्ड समिति के अलावा कोई भी सदस्य, 20 प्रतिशत से अधिक, नियमों के द्वारा निर्धारित एक समिति की अंश-पूंजी के भाग अथवा 1,000 ₹ से अधिक के मूल्य के समिति के अंशों का स्वामी नहीं हो सकता है।

(2) अंशों का हस्तान्तरण (Transfer of Shares) यदि समिति असीमित दायित्व के साथ रजिस्टर्ड है, तो कोई भी सदस्य अपने अंश-स्वामित्व का तब तक हस्तान्तरण नहीं कर सकता है, जब तक कि

(i) उसके पास अंश-स्वामित्व में एक वर्ष से कम न हुआ हो, अथवा

(ii) हस्तान्तरण समिति को या समिति के किसी सदस्य को किया गया हो।

(3) उधार ऋण प्राप्ति (Borrowings)—समिति के नियमों या उपनियमों के अन्तर्गत निर्धारित सीमा के अन्तर्गत ही केवल एक रजिस्टर्ड समिति उन व्यक्तियों के ऋण या निक्षेप (deposits) स्वीकार कर सकती है जो समिति के सदस्य नहीं हैं। यह व्यवस्था धारा 30 में की गयी है।

(4) ऋण (Loans)—सहकारी समिति अधिनियम की धारा 29 के अन्तर्गत सदस्य के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को कोई भी रजिस्टर्ड समिति ऋण नहीं दे सकती है।

(5) केन्द्रीय सरकार का अधिकार (Power of the Central Government) सहकारी समिति। अधिनियम की धारा 28 केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार देती है कि वह किसी रजिस्टर्ड समिति को आयकर, स्टाम्प कर (Stamp Duty) तथा रजिस्ट्रेशन फीस से छूट दे सकती है।

(6) कोषों का विनियोग (Investment of Funds) धारा 22 के अन्तर्गत एक रजिस्टर्ड समिति केवल। निम्नलिखित संस्थाओं में विनियोग या जमा (Deposit) कर सकती है:

(i)) सरकारी बचत बैंक (Government Savings Bank),

(ii) भारतीय प्रन्यास अधिनियम, 1882 (Indian Trust Act, 1882) की धारा 20 में निदिष्ट

(iii) प्रतिभूतियों में से किसी में, किसी अन्य रजिस्टर्ड समिति की प्रतिभूतियों अथवा अंशों में

(iv) रजिस्टार द्वारा स्वीकृत बैंकिंग व्यवसाय में संलग्न किसी व्यक्ति या बैंक के साथ

(v) नियमों (rules) के द्वारा अनुमोदित किसी अन्य स्थान पर।

 (7) संचय कोष लाभांश (Reserve Fund and Dividend) सहकारा सामात आषा 33 के अन्तर्गत एक रजिस्टर्ड समिति को प्रति वर्ष अपने शुद्ध लाभ का कम-से-कम 25% संचय कोष म हस्तान्तरण करना होगा। शेष लाभ अंशधारियों में लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। असीमित दायित्व वाली समिति राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त करने के उपरान्त ही लाभांश वितरण कर सकती है।

(8) धर्मार्थ कार्यों के लिए अंशदान (Contribution to Charitable Purposes)-Charitable Endowment Act, 1890 की धारा 2 में परिभाषित किसी धर्मार्थ कार्य के लिए एक रजिस्टर्ड समिति रजिस्ट्रार की आज्ञा से संचय कोष में अनिवार्य हस्तान्तरण के पश्चात शेष शद्ध लाभ (Net Profits) में से ऐसी राशि का जो इसके 10 प्रतिशत से अधिक न हो, अंशदान कर सकती है।

(9) हिसाब रखना (Maintenance of Accounts) अधिनियम की धारा 43(h) के अन्तर्गत राज्य सरकार, ऐसे नियम बना सकती है जिनसे सहकारी समितियां अपने लेखों के लिए पुस्तकें तथा खातों का स्वभाव निर्धारित कर सकती हैं। समितियों के द्वारा सामान्यतया आय-व्यय खाता, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा तैयार किए जाते हैं।

(10) सहकारी समिति का अंकेक्षण (Audit of Co-operative Society) सहकारी समिति अधिनियम की धारा 17 के अनुसार प्रत्येक समिति की पुस्तकों व खातों का अंकेक्षण सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार अथवा अंकेक्षण के लिए उसके द्वारा नियुक्त किसी भी अधिकत व्यक्ति के द्वारा किया जाएगा। अंकेक्षण में सम्पत्तियों तथा दायित्वों का सत्यापन और पुराने कों का निरीक्षण, आदि महत्वपूर्ण बातें होंगी।

इस प्रकार सहकारी अंकेक्षक अंकेक्षण कार्य के लिए समिति की खाता-पुस्तकों को स्वतन्त्र रूप से देख सकता है और समिति के प्रत्येक अधिकारी का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह सहकारी अंकेक्षक को अंकेक्षण कार्य के लिए आवश्यक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे।

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सहकारी अंकेक्षण की आवश्यकता

(NEED FOR CO-OPERATIVE AUDIT)

सहकारी समितियां प्रमुखतः अपने सदस्यों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए बनायी जाती हैं। इनका कार्य ठीक प्रकार से चलाने के लिए आर्थिक व्यवहारों का उचित लेखा करना परमावश्यक है। यह लेखा किए बिना यह जानना कठिन है कि ये समितियां कहां तक एवं किस प्रकार अपने उद्देश्यों की ओर बढ़ रही हैं। दैनिक लेन-देनों का लेखा भी किया जाना चाहिए और यदि इन लेखों में त्रुटियां हों तो उनका भी पता चलाना चाहिए। यही नहीं, इन त्रुटियों तथा दोषों को दूर करने के उपाय भी किए जाने चाहिए ताकि समितियों का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे। इसी कारण इन समितियों के लेखों के अंकेक्षण की आवश्यकता प्रतीत होती है।

इसके अतिरिक्त सहकारी समिति का स्वभाव व्यावसायिक संगठनों से काफी भिन्न होता है। सहकारी समितियों के उद्देश्य, कार्यक्षेत्र एवं कार्यप्रणाली अन्य व्यावसायिक संगठनों से भिन्न होती हैं। सहकारी समितियों का प्रमुख उद्देश्य अपने सदस्यों के व्यक्तिगत एवं सामूहिक हितों का संरक्षण करना होता है। अधिकांशतः सहकारी समितियों के सदस्य लेखाकर्म का प्रारम्भिक ज्ञान नहीं रखते हैं अतः अंकेक्षण के अभाव में सदस्यों के शोषण किए जाने की सम्भावना अधिक रहती है। इस प्रकार सहकारी समिति में अंकेक्षण की आवश्यकता और अधिक प्रतीत होती है, क्योंकि सहकारी समिति में वित्तीय एवं प्रशासकीय दोनों ही प्रकार के अंकेक्षण समान रूप से महत्वपर्ण हैं जिससे कि सहकारी समिति के सदस्यों का विश्वास सहकारी समिति की कार्यप्रणाली में बढ़ जाता है। साथ ही सहकारी अंकेक्षण एवं उचित आन्तरिक निरीक्षण से कोषों के गबन एवं लेखों की अशुद्धता की सम्भावना लगभग समाप्त ही हो जाती है।

सहकारी अंकेक्षण का स्वरूप

(FROM OF CO-OPERATIVE AUDIT)

सामान्यतया अंकेक्षण किसी व्यापारिक संस्था की वित्तीय जांच के उद्देश्य से किया जाता है। सहकारी अंकेक्षण वित्तीय अंकेक्षण (Financial Audit) होने के साथ-साथ प्रशासकीय अंकेक्षण (Administrative Audit) भी है। यहां यह देखना आवश्यक है कि ये समितियां कहां तक सहकारिता के सिद्धान्तों का परिपालन कर रही हैं और किस प्रकार अपने सदस्यों के आर्थिक विकास के कार्य में योगदान कर रही हैं। इस प्रकार अंकेक्षक जहां एक ओर सहकारी लेखों की जांच करके अशद्धियों को प्रकाश में लाता है, वहां दूसरी ओर आवश्यक सुझाव देकर इनकी कार्यविधि में सुधार करने के लिए प्रेरणा देता है

सहकारी अंकेक्षक के निम्न कार्य होते हैं :

(1) समिति के आय व व्यय का प्रमाणन ।

(2) समिति के क्रय-विक्रय का प्रमाणन।

(3) सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सत्यापन एवं मूल्यांकन।।

(4) लेखों की अशुद्धियों तथा अनियमितताओं का पता चलाना तथा इन्हें दूर करने के सुझाव देना।

(5) यह देखना चाहिए कि समिति सहकारिता के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य कर रही है।

(6) सहकारी समितियों के सम्बन्धित अधिनियम (Act), नियम (Rules), उपनियम एवं विभागीय आदेशों का पालन किस सीमा तक किया गया है इसकी जांच करना।

(7) समिति का प्रशासकीय अंकेक्षण।

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सहकारी अंकेक्षक के कार्य

(FUNCTIONS OF A CO-OPERATIVE AUDITOR)

सहकारी अंकेक्षक के कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है :

(1) समिति के आयव्यय का प्रमाणन सहकारी अंकेक्षक को समिति के निश्चित समयावधि के लिए समिति की आय-व्यय का पूर्ण विवरण प्राप्त करना होता है। साथ ही सहकारी अंकेक्षक को आय-व्ययों से सम्बन्धित सभी प्रमाणकों को भी संकलित करना होता है जिसके द्वारा सम्बन्धित आय-व्ययों को सत्यापित किया जा सके।

 (2) समिति के क्रयविक्रय का प्रमाणनयदि सहकारी समिति वस्तुओं के क्रय-विक्रय में संलग्न हो तो सहकारी समिति के अंकेक्षक को क्रय-विक्रय सम्बन्धी प्रलेखों एवं प्रमाणकों को भी एकत्र करना होता है। अंकेक्षक को निश्चित समयावधि में समिति द्वारा की गयी समस्त क्रय-विक्रय का सघन निरीक्षण करना चाहिए ताकि तत्सम्बन्धित प्रलेखों में किसी प्रकार की त्रुटि न रहे।

(3) समिति की सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सत्यापन एवं मूल्यांकन सहकारी समिति के अंकेक्षण के अन्तर्गत अंकेक्षक को सहकारी समिति की समस्त सम्पत्तियों एवं दायित्वों को सत्यापित करना होता है जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समिति द्वारा उल्लिखित समस्त सम्पत्ति एवं दायित्व वास्तविक हैं। साथ ही अंकेक्षक को इनके मूल्यांकनों का भी पुनरावलोकन करना चाहिए और यदि वास्तविक मूल्यांकन पुस्तक मूल्यों से काफी भिन्न हो तो उसका स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए।

(4) लेखों की अशुद्धियों/अनियमितताओं का पता लगाना सहकारी समिति के अंकेक्षक को सहकारी समिति के लेखे की पुस्तकों का सघन निरीक्षण करना चाहिए और यदि लेखों में किसी प्रकार की अशुद्धि अथवा अनियमितता का पता चलता है तो उसका उल्लेख अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में करना चाहिए एवं इस सन्दर्भ में, यदि अंकेक्षक चाहे तो अपने सुझाव भी प्रस्तुत कर सकता है।

(5) सहकारिता के सिद्धान्तों के अनुपालन को सुनिश्चित करना सहकारी समिति की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य समिति के सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करना तथा उनके आर्थिक विकास में यथासम्भव सहयोग देना होता है। अतः अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि सहकारी समिति सहकारिता के सिद्धान्तों का अनुसरण उचित प्रकार से कर रही है अथवा नहीं। ।

( 6) विभिन्न नियमों के पालन को सुनिश्चित करना सहकारी समिति के अंकेक्षक को यह भी सनिश्चित सा चाहिए कि सहकारी समिति से सम्बन्धित अधिनियम (Act), नियम, उपनियम एवं विभागीय आदेशों atmental Orders) का पालन किस सीमा तक किया जाता है। अंकेक्षक को इस सन्दर्भ में सम्पूर्ण जांच करनी चाहिए एवं किसी भी प्रकार की अनियमितता (यदि हो) का उल्लेख करना चाहिए।

(7) समिति का प्रशासकीय अंकेक्षणसहकारी समिति का कार्यक्षेत्र एवं कार्य स्वरूप काठ इस प्रकार ना है कि इस प्रकार प्रशासकीय अकेक्षण भी वित्तीय अकेक्षण की भांति समान रूप से महत्वपर्ण होता है इसलिए इस सन्दर्भ में अकेक्षक को सहकारी समिति के प्रशासन सम्बन्धी पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए ।

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सहकारी अंकेक्षण के लाभ

(ADVANTAGES OF CO-OPERATIVE AUDIT)

सहकारी समितियों के लिए अंकेक्षण से निम्न लाभ हो सकते हैं :

1 सहकारी समितियां अधिक संख्या में हैं, अतः अंकेक्षण कार्य के लिए अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं।

2. अधिकांशतः सहकारी समितियों के सदस्य लेखाकर्म का प्रारम्भिक ज्ञान नहीं रखते हैं, अतः अंकेक्षण कार्य से उनके पोषण किए जाने की सम्भावना कम आती है।

3. यदि सहकारी समितियां आन्तरिक निरीक्षण (Internal Check) की व्यवस्था कर लेती हैं तो विभिन्न सहकारी समितियों के संचालकों के द्वारा कोषों के गबन तथा लेखों के गड़बड़ी (Falsification) के अवसर समाप्तप्राय हो जाते हैं।

4. समिति के सदस्यों का विश्वास अंकेक्षण कार्य से समिति में अधिक बढ़ जाता है।

5. अंकेक्षित खाते समिति के सदस्यों के मतभेद समाप्त करने तथा उसके सफल संचालन में सहायक होते हैं।

सहकारी अंकेक्षण का कार्यक्षेत्र

(SCOPE OF CO-OPERATIVE AUDIT)

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, सहकारी अंकेक्षक को विशेष रूप से यह देखना होता है कि सहकारी समितियां सहकारी अधिनियम, नियम, उपनियम तथा विभाग से प्राप्त आदेशों का पालन कर रही हैं। वास्तव में, ये सभी नियम व अधिनियम इस आधार पर बनाए जाते हैं कि ये समितियां सहकारिता के सिद्धान्तों का पालन करती रहें और निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ती रहें। सहकारी अंकेक्षण में प्रायः निम्न बातें आती हैं :

(1) समितियों के आय व व्यय की जांच।

(2) हिसाब-किताब की अशुद्धियों की जांच एवं दूर करने के लिए सुझाव देना।

(3) रोकड़, आदि सम्पत्तियों का सत्यापन।

(4) कालातीत देय राशि (overdue debts) की जांच करना।

(5) पूंजी दायित्वों का सत्यापन करना।

(6) यह देखना कि नियमों व उपनियमों का पालन किस सीमा तक किया जा रहा है।

(7) समितियों के वर्गीकरण की जांच करना।

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सहकारी अंकेक्षक की नियुक्ति

(APPOINTMENT OF CO-OPERATIVE AUDITOR)

कम्पनी के अंकेक्षक की नियुक्ति, योग्यताएं, अयोग्यताएं, पारिश्रमिक, आदि के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम में प्रावधान होते हैं। इसके विपरीत, सहकारी अंकेक्षक के लिए कोई भी योग्यता निर्धारित नहीं होती है। सहकारी रजिस्ट्रार को यह अधिकार होता है कि वह किसी भी व्यक्ति को सहकारी अंकेक्षक नियुक्त कर सकता है। सामान्यतया विभागीय कर्मचारी ही इस पद पर नियुक्त किए जाते हैं। रजिस्ट्रार के अधीन एक अलग से विभाग (Section) होता है जिसके कर्मचारी ही अंकेक्षक के रूप में कार्य करते हैं। ये कर्मचारी सीधे भर्ती किए जाते हैं और पदोन्नति से भी अंकेक्षक बन जाते हैं। इस विभाग में जिला एवं खण्ड स्तर पर कई अधिकारी भी होते हैं। यदि रजिस्ट्रार आवश्यक समझे तो किसी चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट को किसी समिति के हिसाब-किताब की जांच के लिए नियुक्त कर सकता है।

इस प्रकार रजिस्ट्रार को सहकारी अधिनियम के अन्तर्गत पूर्ण स्वतन्त्रता होती है और वह किसी चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट या विभागीय कर्मचारी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को भी समिति के कार्य की जांच के लिए नियक्त कर सकता है, पर ऐसा बहुत कम किया जाता है।

सहकारी अंकेक्षक के अधिकार

(RIGHTS OF CO-OPERATIVE AUDITOR)

(1) पुस्तकें, लेखे, आदि देखने का अधिकारसहकारी समिति अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत अंकेक्षक को समिति की पुस्तकें, लेखे, दस्तावेज, पत्रादि, प्रतिभूतियां, नकदी एवं अन्य सम्पत्तियां देखने का अधिकार है।

(2) समिति के नए पुराने सदस्य, अधिकारी प्रतिनिधि के विषय में जानकारी करने का अधिकारअंकेक्षक को समिति के अधिकारी, प्रतिनिधि, नए या पराने समिति के सदस्य या भूतपूर्व सदस्य से समिति के कार्य एवं व्यवहार के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।

(3) समिति की सभाओं के नोटिसों को प्राप्त करने का अधिकारसहकारी अंकेक्षक को समिति के सभी नोटिसों तथा वार्षिक साधारण सभाओं के सम्बन्ध में प्रत्येक सूचना प्राप्त करने तथा बैठकों में उपस्थित होने एवं विचार सुनने का अधिकार है। .

(4) समिति के कार्यकलापों से सम्बन्धित किसी व्यक्ति को बुलाने का अधिकारसहकारी अंकेक्षक किसी ऐसे व्यक्ति, अधिकारी या प्रतिनिधि को उपस्थित होने की आज्ञा (Summon) जारी कर सकता है जिसके पास समिति की कोई पुस्तक, लेखा, प्रलेख, पत्रादि, प्रतिभूति, रोकड़ या अन्य सम्पत्ति हो। इन वस्तुओं को मुख्य कार्यालय या शाखा पर कहीं भी लाने का आदेश वह दे सकता है।

(5) समिति के लेखों को तैयार कराने का अधिकार यदि किसी सहकारी समिति के लेखे तैयार नहीं हैं तो सहकारी अंकेक्षक समिति के खर्चे पर लेखों को तैयार कराने के लिए कह सकता है।

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chetansati

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