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(7) रेखांकन (Underline)-पत्र को लिखते समय महत्त्वपूर्ण अंशों को रेखांकित कर देना चाहिये। इससे पाठक को पत्र पढ़ने में आसानी होती है। ऐसा करने से सभी मूल बिन्दुओं पर पाठक का ध्यान तत्काल आकर्षित हो जाता है।
(8) आकर्षक लिफाफों का प्रयोग (Use of Attractive Envelops)-लिफाफों का प्रयोग पत्र की सुरक्षा एवं गोपनीयता हेतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक होता है। यदि लिफाफे विशिष्टता से युक्त एवं आकर्षक हैं तो इनका भी प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है जो व्यावसायिक दृष्टिकोण से अत्यन्त लाभकारी होता है। इसलिए व्यापारी एवं संस्थाएँ तथा विभिन्न कम्पनियाँ नाम, पते समेत विशिष्ट चिन्हों (मुद्राओं) से युक्त लिफाफों का प्रयोग करती हैं तथा वर्तमान समय में इन्हें तैयार करने में इनसे सम्बन्धित विशिष्ट एवं योग्य व्यक्तियों की सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं। लिफाफों का विशिष्ट एवं आकर्षक स्वरूप प्रत्येक प्राप्तकर्ता को न केवल तत्काल आकर्षित करता है बल्कि उसके मस्तिष्क पर दीर्घकालिक छवि भी अंकित करता
(9) पत्रों को मोडना एवं लिफाफे में रखना (Folding of Letters)-पत्रों को टाइप अथवा कम्प्यूटर से लिखने के पश्चात् अत्यन्त सावधानी से मोड़ना चाहिए, ताकि एकरूपता की स्थिति बनी रहे। इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पत्र अनावश्यक रूप से मुड़े नहीं तथा पत्र लिफाफे के मुख से थोड़ा पीछे रहे जिससे पत्र खोलते समय उसके कटने-फटने का डर नहीं रहे।
(10) प्राप्तकर्ता का सम्पूर्ण विवरण (Full Information about the Receiver)-लिफाफे के मुद्रण के दौरान उसके ऊपरी भाग पर प्रेषक का नाम, पता, दूरभाष समेत अन्य जानकारी होती है जो आकर्षक एवं स्वच्छ होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त प्राप्तकर्ता का नाम, पता, पिन कोड का उल्लेख होने से पत्र न केवल शीघ्रता से पहुँचते हैं, बल्कि इससे प्राप्तकर्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण तथा लाभपूर्ण परिस्थितियों का निर्माण करता है। अस्पष्ट, अस्वच्छ, कटा-पिटा पत्र न केवल व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है बल्कि निर्धारित स्थान पर भी विलम्ब से पहुँचता है।
(11) मद्रांकन (Stamp-Fixing)-पत्र लेखन की सम्पूर्ण प्रक्रिया के पश्चात उस पर पर्याप्त एवं उचित मुद्रांकन आवश्यक होता है। जिन कार्यालयों में फ्रेंकिंग मशीन (Franking Machine) का प्रयोग किया जाता है, वहाँ पत्रों पर टिकट लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। यदि पत्र कोरियर द्वारा भेजा जा रहा है तो सामान्यतया एकमुश्त भुगतान की व्यवस्था की जाती है। अब पोस्ट ऑफिस में भी स्पीड पोस्ट (Speed Post) के लिए एकमुश्त भुगतान की व्यवस्था है, ऐसी दशा में टिकट लगाने की आवश्यकता नहीं है।
12. मीमो प्रारूप (Memo Formats)-मेमो अथवा मेमोरण्डम मुख्यतः एक लिखित सन्देश होता है जिसका आदान-प्रदान कर्मचारियों द्वारा उनके दैनिक काम-काज के दौरान किया जाता है। अत: मेमोरण्डम एक ऐसा पत्र है जिसका प्रयोग संगठन के भीतर ही होता है। अंग्रेजी भाषा का मेमोरण्डम शब्द लेटिन भाषा के Memorale शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है “कहना” (To Tel)। मेमो एक लघु नोट है जो एक उच्चाधिकारी या मैनेजर अपने अधीनस्थ को या अपने स्टॉफ को किसी विषय की सूचना देने के लिए भेजता है।
मीमो संस्था के अन्दर ही सन्देश प्रेषित करने के लिए काम में लाये जाते हैं। सामान्य तौर पर मीमो का आदान-प्रदान संस्था के कर्मचारियों द्वारा दैनिक कार्यों के सम्बन्ध में किया जाता है।
अधिकतर मीमो धनात्मक सन्देशों या नित्यकर्म सूचना वाले होते हैं किन्तु कभी-कभी ये ऋणात्मक सन्देशों या विश्वासोत्पादक सन्देशों वाले भी होते हैं।
मेमों में न तो कोई अभिवादन होता है और न ही अन्तिम पद (Complimentary Close) जैसे (आपका शुभचिन्तक) होता है। एक मानक मेमो या ज्ञापन (Standard Memo) के फार्मेट में शीर्षक के अतिरिक्त विषय-रेखा और मुख्य भाग सम्मिलित होते हैं।
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अच्छे मीमो की शर्ते
Table of Contents
(Conditions for Good Memorandum)
(1) पढ़ने वालों की पहचान करना (Identify the Readers) और उन्हीं के स्तर पर लिखना।
(2) बाह्य रूप (Appearance)-मेमो के लिए सामान्यत: कम खर्चीली लेखन सामग्री एवं कम खर्चीले पुन: प्रस्तुति के साधन प्रयोग किए जाने चाहिए।
(3) सद्भावना स्वर (Goodwill Tone)-जिन व्यक्तियों के साथ हम कार्य करते हैं उनसे किये जाने वाले संचार का स्वर सद्भावनापूर्ण होना आवश्यक है।
(4) सन्देश (Message)-सन्देश को स्पष्ट, पूर्ण एवं विशेषकर संक्षिप्त बनाए।
(5) विभिन्न श्रेणी के सन्देशों के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करना चाहिए।
(6) व्याकरण (Grammar)-हिज्जे और विरामचिन्हों को सही प्रकार चैक करें क्योंकि आपका मीमो आपकी फर्म की ख्याति में वृद्धि करता है।
मीमो तथा पत्र (Memo and Letters)-मीमो को लिखने का ढंग पत्र के समान ही होता है। उन्हें उसी तकनीक से तैयार किया जाता है जैसे पत्र तैयार किये जाते हैं, अन्तर केवल इतना है कि पत्र बाहरी व्यक्तियों को लिखे जाते हैं जबकि मीमो संस्था के अन्दर ही लिखे जाते हैं। मीमो साधारण तौर पर सीधे लिखे जाते हैं क्योंकि इनमें कार्य सम्बन्धी सूचना दी जाती है तथा स्पष्टीकरण व समझाने आदि। की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि कुछ पत्र भी सीधे लिखे जाते हैं, लेकिन इनकी संख्या कम ही होती है। मीमो की भाषा में अधिक औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन पत्रों में। औपचारिकता का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
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मेमो का प्रारूप
इस प्रकार मीमो में चार सूचनाएँ
(i) किससे
(ii) किसको
(iii) तारीख
(iv) विषय
किसी भी क्रम में लिखी जा सकती है। यदि एक ही सन्देश अनेक विभागों या व्यक्तियों को भेजा जाता है तो ‘As per List’ या नीचे देखिए (See below) शब्द लिख कर सूची नत्थी कर दी जाती है।
मीमो में लिखा जाना वाला सन्देश प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से दोनों प्रकार से हो सकता है। प्रत्यक्ष आदेश संक्षिप्त तथा सरल भाषा में होना चाहिए तथा क्या कार्य किया जाना है, उसका विवरणदिया जाना चाहिए। प्रत्यक्ष रुप से सन्देश देने वाले मीमो का प्रारूप निम्नलिखित प्रकार हो सकता है
त्रिवेणी अल्मीरा कम्पनी
अन्तर्विभाग मीमो
दिनांक : जुलाई 28, 2016
सन्दर्भ : 656/16
लेखा विभाग को
क्रय विभाग से
विषय : कम्प्यूटर खरीद
आपको इस परामर्श के लिए धन्यवाद कि विपणन व लेखा दोनों विभागों के लिए 20 कम्प्यटर करा कर लिए जाएँ। आपकी सलाह पर कम्प्यूटर क्रय करने के लिये इनकी लागत का मूल्यांकन किया गया।
आपका प्रस्ताव वास्तव में सराहनीय है तथा भविष्य में व्यापार के विकास में सहायक होगा, साथ ही साथ लागत में भी कमी आएगी।
इनके क्रय के लिए बजट की व्यवस्था की जा रही है तथा शीघ्र ही इन्हें क्रय करने की प्रक्रिया भी आरम्भ की जाएगी।
नरेश गुप्ता प्रति : श्री आशीष गर्ग
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मेमोरण्डम के लाभ
(Advantages of Memorandum)
मेमोरण्डम के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं
(1) संक्षिप्तता (Brevity) यह औपचारिकता रहित सरल सन्देश होता है जिसमें केवल अत्यन्त आवश्यक सूचना सम्मिलित होती है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।।
(2) सुविधाजनक (Convenient)-मेमो के शिखर पर विषय सामग्री का सन्दर्भ दिया जाता है। तथा एक बड़ा भाग सन्देश के लिए छोड़ा जाता है। प्राय: वे टाइप किए जाते हैं, किन्तु सन्देशों को पैन अथवा पैन्सिल से लिखा भी जा सकता है।
(3) सस्ता (Inexpensive)-चूंकि मेमो का प्रायः संगठन के अन्दर ही आदान-प्रदान (Circulate) होता है, इसे कम्प्यूटर द्वारा तुरन्त तैयार किया जा सकता है।
(4) भविष्य के सन्दर्भ हेतु रिकार्ड (A Record of Information in Future Reference)-मेमो द्वारा रिकार्ड किए गए दैनिक कार्य विवरण भविष्य में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
व्यापारिक पत्र का ढाँचा/संरचना
(Structure of Business Letter)
व्यापारिक पत्र इस प्रकार से लिखना चाहिए जिससे प्राप्तकर्ता उस पर प्रथम दृष्टि पड़ने के साथ ही प्रभावित हो तथा वह यह जानने का प्रयास करे कि सम्बन्धित पत्र किसने लिखा है, किस विषय से सम्बन्धित है आदि। सामान्य रूप से पत्र लिखने के प्रचलित ढंग को परिवर्तित नहीं करना चाहिए। श्री एल.ई. फ्रेली के अनुसार, “पत्र के ढाँचे को मनुष्य के अस्थिपंजर के समान समझना चाहिए जिसके ऊपर माँस, चर्म अथवा अन्य बातें अलग-अलग होने के कारण रूप परिवर्तित दिखलाई देता है परन्तु सभी मनुष्यों के अस्थिपंजर एक-से होते हैं।”
व्यापारिक पत्र विभिन्न भागों में बँटा होता है। जिस प्रकार शरीर के प्रत्येक अंग का अलग महत्त्व एवं क्रियाशीलता होती है, उसी प्रकार व्यापारिक पत्रों के विभिन्न भागों का अपना महत्त्व होता है। जिस प्रकार शरीर के प्रत्येक भाग का एक-दूसरे से सम्बन्ध एवं तारतम्य होता है, उसी प्रकार से व्यापारिक पत्र के विभिन्न भागों का आपस में सम्बन्ध होता है। एक के बिना दूसरा भाग अधूरा रहता है।
सामान्यत: व्यापारिक पत्र के मुख्य भाग निम्नलिखित होते हैं
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(1) शीर्षक अथवा लैटर हैड (Heading and Letter Head)-शीर्षक व्यापारिक पत्र का महत्त्वपूर्ण भाग होता है। इसके द्वारा फर्म का नाम, पता, व्यवसाय की प्रकृति आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। पत्र का शीर्षक सामान्यत: तीन भागों में विभक्त होता है। पत्र के सबसे ऊपर बीच केन्द्र में संस्था का नाम व उसके मुख्य व्यापार का उल्लेख होता है। बायीं तरफ फैक्स, टेलीफोन, मोबाइल एवं ई-मेल. कोड संख्या तथा दाहिनी तरफ व्यापारिक संस्था के कार्यालय का पता, शहर का नाम लिखा होता है। वर्तमान समय में सभी व्यावसायिक संस्थाओं का शीर्षक उनके लैटर हैड पर छपा होता है। लैटर हैड पर व्यापार का चिन्ह (Logo) भी दिया जा सकता है।
सामान्यतः शीर्षक के सम्बन्ध में निम्नांकित महत्त्वपूर्ण नियमों को ध्यान मे रखना आवश्यक होता
(1) बाँयें हाथ की ओर दी जाने वाली सूचनाएँ मार्जिन से एक समान दूरी से प्रारम्भ की जानी चाहिए। इनमें से प्रत्येक के साथ कोलम (:) लगा देना चाहिएं। इसके पश्चात् नाम एवं संख्या देनी चाहिये।
(2) फर्म के नाम के बाद ‘कोमा’ अथवा ‘फुल स्टॉप.) नहीं लगाना चाहिए।
(3) बाँयें हाथ की ओर प्रत्येक सचना, पहली सूचना से 5 स्पेस (Space) हटाकर दा जाए।
(5) विषय–शाषक (Subject Heading)-पत्र पाने वाले की सुविधा की दृष्टि से पत्र का विषय-शाषक देना उचित होता है। इससे प्राप्तकर्ता पत्र को देखते ही एक लाइन पढ़ने मात्र से पत्र का संक्षिप्त उद्देश्य समझ जाता है। पत्र के विषय से स्पष्ट हो जाता है कि सम्बन्धित पत्र किस विभाग से सम्बन्धित है। उचित अधिकारी के पास भेजकर आवश्यक कार्यवाही शीघ्रता से सम्पन्न की जा सकती है जैसे, विषय-सिले हुए वस्त्रों के सम्बन्ध में पूछताछ।
(6) अभिवादन (Salutation)-वार्ता प्रारम्भ करने से पूर्व शिष्टाचारपूर्ण शब्दों जैसे महोदय, मान्यवर, प्रिय महोदय, आदि के प्रयोग को अभिवादन कहते हैं। अभिवादन शब्द पाने वाले के नाम व पते के ठीक नीचे विषय शीर्षक के बाद लिखा जाता है।
चूँकि व्यापारिक पत्रों को लिखने का तरीका निजी पत्रों की तुलना में भिन्न होता है, इसलिए उनमें प्रयोग किया जाने वाला अभिवादन का ढंग भी निजी पत्रों से भिन्न होता है तथा इसका रूप लिखने वाले एवं प्राप्तकर्ता के वैयक्तिक सम्बन्धों पर निर्भर करता है। व्यापारिक पत्रों में प्रयुक्त अभिवादन के विभिन्न स्वरूप निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं
(अ) व्यक्तियों को पत्र लिखते समय
Dear Sir (प्रिय महोदय)
Dear Madam (प्रिय महोदया) या मात्र (महोदया)
Sir (श्रीमान) जब पत्र सरकारी अधिकारी अथवा सम्पादक को लिखा जाये।
My Dear Sir (मेरे प्रिय श्री) (जब पत्र पाने वाले के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध हो)
(ब) एक फर्म अथवा कम्पनी को पत्र लिखते समय
Dear Sir (प्रिय महोदय)
Dear Madams (प्रिय महोदया) (जबकि फर्म की सभी साझेदार स्त्रियाँ हों।)
My Dear Sir (मेरे प्रिय श्री) (अत्यधिक निकटता/घनिष्ठता की स्थिति में)
Gentlemen (महोदय, श्रीमान)
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Sir अथवा Madam शब्द बहुत औपचारिक होने के कारण सरकारी पत्रों में अधिक प्रयोग किये जाते हैं, व्यापारिक पत्रों में नहीं। बिक्री पत्रों में कभी-कभी Dear Customer (प्रिय ग्राहक) या Dear Subscriber (प्रिय धनदाता/चन्दादाता) का भी प्रयोग होता है। सामान्यत: प्रत्येक अभिवादन के पश्चात् कोमा (Comma) लगा देना चाहिए।
(7) पत्र का मुख्य भाग (Body of the Letter)-यह पत्र का मुख्य भाग होता है तथा इस भाग में भेजे जाने वाला सन्देश लिखा जाता है। इसे अत्यधिक सावधानीपूर्वक लिखा जाना चाहिए। प्राय: पत्र की विषय-सामग्री को तीन भागों में विभक्त किया जाता है
(8) प्रारम्भिक भाग (The Opening)-यह पत्र का परिचयात्मक भाग होता है और इसकी स्थिति के कारण इसका विशेष महत्त्व होता है। इस भाग का प्रत्यक्ष एवं सीधा प्रभाव पत्र पढ़ने वाले के मस्तिष्क पर पड़ता है। यदि आरम्भ अच्छा है तो आधी सफलता मिली समझिए। अत: पत्र का प्रारम्भिक पैरा ऐसा होना चाहिए जो पत्र पढ़ने वाले व्यक्ति को आकर्षित करे। बाद के पैराग्राफों का काम उस रुचि को कायम रखना एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रेरित करना है। प्रारम्भिक पैराग्राफ संक्षिप्त एवं प्रभावशाली होना। अत्यन्त आवश्यक है। बेबनराथ और पार्कहर्ट के अनुसार, “प्रथम भाग का उद्देश्य पाठक का ध्यान आकर्षित करना है। इसके द्वारा रूचि उत्पन्न करने की शक्ति पर ही आगे बढ़ने की इच्छा निर्भर करती है। यह ध्यानाकर्षक, संक्षिप्त, आकर्षक एवं उपयुक्त होना चाहिये।”
सामान्यतः जब पत्र किसी नये विषय पर लिखा जाता है तो प्रारम्भिक पैराग्राफ लिखने में कछ। कठिनाई होती है। अत: प्रत्येक पत्र की लेखन व्यवस्था अलग-अलग परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग होती है। प्रारम्भिक पैराग्राफ के सम्बन्ध में कुछ उदाहरण निम्नानुसार हैं
आपके शहर के सर्वश्री सचिन एण्ड ब्रदर्स ने आपका नाम हमें सन्दर्भ के रूप में दिया है।”
(ii) “आपका नाम हमें ‘हिन्दू शाश्वत गर्जना’ पत्रिका के सम्पादक द्वारा इस विश्वास से दिया गया है कि आप हमारे अत्यन्त लोकप्रिय समाचार-पत्र ‘महाकौशल की हंकार’ की बिक्री में मिला
(iii) “क्या हम आपका ध्यान इस वर्ष बी. कॉम. परीक्षा के लिये बनाये गये ‘व्यावसायिक संचार परीक्षा प्रश्न-पत्र की ओर आकर्षित कर सकते हैं जो बहत कठिन था।”
(iv) “हमें सूचना देते हुए अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि हमारे उत्पाद सम्बन्धी सम्पर्ण योजना पूर्ण हो चुकी है तथा हमारे नये मॉडल के टी.वी. (सेमसंग) का निर्माण प्रारम्भ हो गया है।”
प्रारम्भिक पैराग्राफ का उद्देश्य पिछले पत्र-व्यवहार के साथ प्रस्तुत पत्र का सम्बन्ध जोड़ना होता है। अधिकांश पत्र पिछले पत्रों के उत्तर में लिखे जाते हैं।
कुछ व्यापारी पूर्व पत्रों का सारांश भी देते हैं। यदि सारांश देना ही हो तो अत्यन्त संक्षिप्त होना चाहिए। इस प्रकार के प्रारम्भिक पैराग्राफ के कछ नमने निम्नानुसार हैं
(क) हमें आपका पत्र दिनांक 23 सितम्बर, 2016 को प्राप्त हुआ।
(ख) 29 सितम्बर, 2016 को आपकी फर्म द्वारा प्राप्त पूछताछ पत्र के लिए धन्यवाद।
(ग) 14 जुलाई, 2016 को मैंने आपके द्वारा माँगी गई जानकारी के बारे में पत्र द्वारा सूचित किया था।
(घ) 11 दिसम्बर, 2016 को आपका पत्र प्राप्त हआ जिसमें आपने यह सूचित किया था कि इस वर्ष एवं अगले वर्ष के लिए आपको आयात का लाइसेंस मिलने की उम्मीद है।
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(ii) मुख्य भाग (Main Part)-पत्र के इस भाग में वास्तविक सन्देश लिखा जाता है। यदि सन्देश संक्षिप्त है तो इसे एक पैराग्राफ में लिखा जा सकता है एवं यदि सन्देश लम्बा है तो अनेक पैराग्राफ बनाए जा सकते हैं। प्रत्येक नई बात के लिए पृथक् पैरा अधिक प्रभावशाली होता है। यथासम्भव प्रत्येक पैरा संक्षिप्त एवं छोटा होना चाहिए, परन्तु यदि विषय लम्बा है तो पैराग्राफ बड़ा भी रखा जा सकता है।
सामान्यतः एक पत्र एक विषय-विशेष से ही सम्बन्धित होना चाहिए। यदि अनेक विषय हैं तो सम्बन्धित प्रत्येक विषय का पृथक् पत्र होना चाहिए क्योंकि बड़े व्यापारियों के कार्यालयों में अलग-अलग विषय के अलग-अलग विभाग एवं इनके पृथक् प्रभारी या विशेषज्ञ होते हैं। यदि एक पत्र में सभी विषयों के उत्तर हैं तो इससे प्राप्तकर्ता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
(iii) अन्तिम भाग (Last Part)-पत्र के अन्तिम भाग का मूल उद्देश्य सन्देश को संक्षिप्त रूप में पुन: दुहराकर प्राप्तकर्ता को कार्य के लिए प्रेरित करना होता है। यदि अन्तिम पैरा उत्साह से भरा एवं प्रेरणात्मक है, तभी पत्र प्रभावपूर्ण होता है। वास्तव में अन्तिम वाक्य सद्भावना प्रकट करने हेतु लिखा जाता है।
अन्तिम पैराग्राफ को यथासम्भव पूर्ण वाक्य से ही समाप्त करना चाहिए। इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि किसी पत्र में कार्य होने के पहले धन्यवाद देना व्यावहारिक नहीं होता है। इसी प्रकार से व्यापारिक पत्र को निम्नांकित वाक्यांशों से समाप्त करना भी उचित नहीं होता है
शुभ कामनाओं के साथ-With Good Wishes, अत्यन्त सादर के साथ-With Kind Regards
उपरोक्त वाक्यांश निजी पत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, परन्तु व्यापारिक पत्रों के लिए नहीं। अन्तिम वाक्यों के सन्दर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण निम्नानुसार हैं
(1) हम आपसे इस माह के अन्त तक उत्तर की आशा रखते हैं।
(We expect to hear from you by the close of this month)
(2) क्या आप ऐसे सुअवसर को खोना पसन्द कर सकते हैं?
(Can you afford this opportunity slip by?)
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(8) अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य (Complementarv Sentence)-पत्र का विषय समाप्त होने के पश्चात् कुछ शिष्टाचारपूर्ण शब्द लिखे जाते हैं जिन्हें अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य कहते हैं जैसे आपका शुभचिन्तक, भवदीय, भवनिष्ठ आदि। इन्हें पत्र समाप्त होने के बाद दाहिनी तरफ लिखा जाता है। अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य के अनेक प्रकार हैं लेकिन ऐसे वाक्यांशों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो उसके अभिवादन वाक्य से मेल खाता हो।
(9) हस्ताक्षर (Signature)-पत्र का सत्यापन करने हेतु पत्र-लेखक के हस्ताक्षर होने आवश्यक है। ‘पत्र के अन्त’ वाले भाग के ठीक नीचे हस्ताक्षर का स्थान होता है। हस्ताक्षर स्याही से ही करने चाहियें। यदि पत्र टाइप किया हुआ हो तो भी पत्र पर हस्ताक्षर हाथ से ही करने चाहिये।
हस्ताक्षर के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति अथवा व्यवसायी का नाम एवं संस्था का नाम भी लिखा जाता है। इसके अतिरिक्त पद को भी उल्लिखित किया जाता है।
हस्ताक्षर के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण बातें (Essentails of Signature)-व्यापार में हस्ताक्षर के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण बातें होती हैं जो निम्नांकित हैं
(i) साक्षर हाना (Signature should be Clear) हस्ताक्षर पूर्ण एवं स्पष्ट होन चाहिर पाक कमा-कभी हस्ताक्षर इतने अस्पष्ट एवं बरे होते है कि यह ज्ञात करना असम्भव होता है कि समाचत हस्ताक्षर किसके हैं एवं किसने पत्र भेजा है। अत: हस्ताक्षर न केवल स्पष्ट हो बल्कि हस्ताक्षर के नीचे सम्बन्धित व्यक्ति का नाम स्पष्ट रूप से अंकित होना चाहिए।
(ii) मुख्य नाम होना (Main Name should be there) हस्ताक्षरों के सम्बन्ध में दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें केवल मुख्य नाम ही लिखा जाना चाहिए। इसमें श्री, डॉक्टर, प्रोफेसर इत्यादि का प्रयोग नहीं होता है।
(iii) हस्ताक्षर लिखित होने चाहिएँ (Signature Should be in Writing)-हस्ताक्षर सदैव लिखित होने चाहिएँ। रबर स्टाम्प (Rubber Stamp) का प्रयोग सर्वथा अनुचित होता है। यदि व्यक्ति से सम्बन्धित कोई ‘डिग्री’ है तो उसे हस्ताक्षर के ठीक नीचे लिखा जाता है।
(iv) हस्ताक्षर में एकरूपता होना (Similarity in Signature)-हस्ताक्षर सदैव एक-से होने चाहिये। इन्हें यदि कुछ समय के उपरान्त बदला जाये तो इससे प्रामाणिकता पर न केवल प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है बल्कि कानूनी प्रक्रिया में व्यापक असुविधा का सामना करना पड़ता है।
(v) स्थिति सम्बन्धी सूचना (Information about Status)-प्राय: व्यापारिक संस्था का स्वामी ही व्यापार के पत्रों पर हस्ताक्षर करता है। सामान्यत: बड़े कार्यालयों एवं प्रतिष्ठानों में हस्ताक्षर सम्बन्धी। कार्य कुछ उत्तरदायी अधिकारियों के सुपुर्द होता है। ऐसी स्थिति में ये अधिकारी संस्था के प्रतिनिधि के रूप में हस्ताक्षर करते हैं, परन्तु इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हस्ताक्षर के पूर्व संस्था की सील अथवा मोहर लगाई जाये अथवा जिस संस्था का वे प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उस संस्था का नाम टाइप करा दिया जाये। इसके पश्चात् हस्ताक्षर करना ज्यादा उचित होगा अन्यथा वें पत्र के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होंगे तथा संस्था पर कोई जिम्मेदारी नहीं आयेगी।
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(10) संलग्नक (Enclosures)-व्यापारिक पत्रों के साथ कभी-कभी कुछ अन्य आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण कागजात संलग्न किये जाते हैं, जैसे-चैक, बिल्टी, पुराने पत्रों की प्रतिलिपियाँ, प्रलेख इत्यादि। अत: इनका सन्दर्भ पत्र समाप्ति के पश्चात् बाँये हाथ की ओर नीचे दिया जाता है। यदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पत्र संलग्न किये जा रहे हैं तो इनका उल्लेख पृथक्-पृथक् होना चाहिए तथा साथ-साथ क्रमांक का भी उल्लेख कर देना चाहिए।
(11) पुनश्च (Post Script)-पत्र समाप्त हो चुकने के बाद यदि कोई महत्त्वपूर्ण बात लिखने से रह जाये तो ‘पुनश्च’ शब्द लिखकर फिर से लिखना प्रारम्भ करना चाहिए। इस सुविधा का प्रयोग अत्यन्त कठिन परिस्थिति में ही करना चाहिए। प्रत्येक पत्र में इसको स्थान नहीं देना चाहिए। इससे पत्र का प्रभाव कम हो जाता है। ‘पुनश्च’ में लिख चुकने के बाद हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।
(12) टाइप लिपिक के हस्ताक्षर (Typist Initials)-सामान्यत: व्यापारिक पत्र को टाइप करने वाला लिपिक पत्र के बांये हाथ के निचले कोने में अपने संक्षिप्त हस्ताक्षर कर देता है। प्राय: बड़े कार्यालयों में अनेक व्यक्ति पत्र लेखन का कार्य करते हैं, इसलिए किसने पत्र टाइप किया है या लिखा है, उसके हस्ताक्षर करा लिए जाते हैं।
एक श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र लेखक के गुण
(Qualities of a Good Business Letter Writer)
व्यापारिक पत्र लिखित सन्देश पहुँचाने का एक माध्यम है। यह माध्यम तभी प्रभावी हो सकता है, जब इसमें अच्छे शब्दों एवं भावों का प्रयोग किया जाय। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये लेखक में निम्नलिखित गुण होने चाहिये
1 भाषा का विशिष्ट ज्ञान (Knowledge of Language)-पत्र लेखक का उस भाषा का विशिष्ट ज्ञान होना चाहिये जिस भाषा में वह पत्र लिख रहा है क्योंकि तभी वह सही शब्दों का उपयुक्त स्थान पर प्रयोग कर सकेगा। यदि उसे भाषा का पूर्ण ज्ञान नहीं है तो वह पत्र को कभी भी पढ़ने वाले के लिये प्रभावशाली नहीं बना पायेगा।
2. लेखन सिद्धान्तों का ज्ञान (Knowledge of Writing Principles)-एक अच्छा पत्र लेखक होने के लिये लेखन सिद्धान्तों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है अर्थात् किसे किस प्रकार का सम्बोधन दिया जाये, कहाँ शब्दों को कम रखा जाय, कहाँ अधिक रखा जाय, किस बात को अधिक महत्त्व देना है और किसे कम महत्त्व देना है आदि।
3. संस्था के विषय में सम्पूर्ण जानकारी (Complete Knowledge of Institution)-पत्र लेखक जिस संस्था में कार्यरत है, उस संस्था के बारे में सम्पूर्ण जानकारी पत्र लेखक को होनी चाहिये। यदि ऐसा नहीं है तो वह व्यक्ति एक अच्छा पत्र लेखक नहीं बन पायेगा।
4. संस्था के प्रति वफादार (Loyal Towards Institution)—पत्र लेखक का संस्था के प्रति वफादार होना भी आवश्यक है क्योंकि कई बार ऐसी बातें पत्र में लिखी जाती हैं जिनकी गोपनीयता अनिवार्य होती है। अतः पत्र लेखक को गोपनीयता बनाये रखते हुये ही पत्र लेखन करना चाहिये।।
5. पाठकों के प्रति उदार (Liberal Attitude Towards Readers)-एक अच्छे पत्र लेखक को पत्र के पाठक के प्रति उदार दृष्टिकोण रखना चाहिये तभी वह पाठक को प्रभावित कर सकता है तथा प्रतिकूल संवाद पत्रों में भी प्रभावशीलता ला सकता है।
6. कल्पना शक्ति (Imagination Power)-ऊँची कल्पना शक्ति रखने वाला व्यक्ति ही लेखक कहलाता है। अत: एक अच्छे पत्र लेखक में कल्पना शक्ति का होना भी आवश्यक होता है। जो व्यक्ति जितना कल्पनाशील होगा उसके पास उतना ही अधिक शब्द भण्डार होगा, भाव होगा तथा अभिव्यक्ति होगी जो कि अच्छे पत्र लेखक के लिये आवश्यक है।
7. आदर्श व्यवहार (Ideal Behaviour)—एक पत्र लेखक को कभी भी अपना व्यवहार छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष, धोखेबाजी, बेईमानी आदि से प्रभावित नहीं होने देना चाहिये। उसे स्वयं द्वारा आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये, तभी उसके द्वारा लिखे गये पत्र प्रभाव उत्पन्न कर सकेंगे।
व्यापारिक पत्र की प्रभावशीलता के निर्णायक घटक
(Essentials of Effective Business Letter)
एक व्यावसायिक पत्र की प्रभावशीलता निम्नलिखित दो तत्त्वों पर निर्भर करती हैं
(1) पत्र का बाहरी रूप (Physical Appearance)
(2) पत्र की विषय सामग्री (Subject-matter of the letter) ना है
उपर्युक्त तत्त्वों को अग्रलिखित चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है