अंकेक्षक के अधिकार (RIGHTS OF AN AUDITOR)

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(1) [धारा 143] कम्पनी के प्रत्येक अंकेक्षक को निम्नवत् अधिकार प्राप्त हैं : कम्पनी की लेखा-पुस्तको तथा प्रमाणको को देखने का अधिकार : अंकेक्षक को किसी भी समय लको प्रमाणकों को देखने का अधिकार है चाहे, वह प्रधान कार्यालय में रखे हों अथवा अन्य स्थान पर।

(2) आवश्यक सूचनाएं तथा स्पष्टीकरण प्राप्त करने का अधिकार : अंकेक्षक को कम्पनी के अधिकारियों

मा मांगने का अधिकार है जिनकी आवश्यकता उसे अपने अंकेक्षण कार्य के लिए से ऐसी सचना या स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार है जिनकी आवश्यक है।

(3) शाखा के कार्यालय के निरीक्षण का अधिकार है : यदि कम्पनी की कोई शाखा है जिसके हिसान नि जाने नहीं गये हैं तो अंकेक्षक सभी खातों, बहियों और प्रमाणकों का निरीक्षण कर सकता है। विदेशी शाखाओं के लिए वह उन विवरण पत्रों को देख सकता है, जो उन शाखाओं से प्रधान कार्यालय में प्राप्त किये गये हैं। यदि शाखा के खाते किसी अन्य अंकेक्षक के द्वारा जाँचे गये हैं तो अंकेक्षक को उसकी । रिपोर्ट प्राप्त करने का अधिकार है।

(4) साधारण सभा से सम्बन्धित सचनायें पाने का अधिकार : अंकेक्षक को उन सभी सूचनाओं को प्राप्त रकने का अधिकार है जो कम्पनी के सभी सदस्यों के पास भेजे जाते हैं।।

वैसे ही अंकेक्षक को किसी भी साधारण सभा में उपस्थित होने और उसके अंकेक्षण से सम्बन्धित किसी बात के विषय में सभा में बोलने या सुनने का अधिकार है। इस अधिकार के अनुसार अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट के सम्बन्ध में सदस्यों के सामने अपना बयान या स्पष्टीकरण दे सकता है। सदस्यों की शंका का समाधान का सकता है और उनके द्वारा पछे गये प्रश्नों के उत्तर दे सकता है।

साधारणतया अंकेक्षक के लिए कम्पनी की प्रत्येक साधारण सभा में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, पर उसे निम्न परिस्थितियों में अवश्य उपस्थित होना चाहिए:

(क) जब उसे विश्वास हो जाय कि संचालक कम्पनी के एक गम्भीर आर्थिक विषय को छिपाना चाहते हैं। (ख) जब अंकेक्षण-रिपोर्ट में कुछ ऐसी बातें हैं जो उसकी अनुपस्थिति में गलत समझी जा सकती हैं। (ग) जब कम्पनी के प्रबन्धकों ने उससे सभा में उपस्थित होने के लिए विशेष रूप से प्रार्थना की है।

(5) धारा 463 के अन्तर्गत कम्पनी अंकेक्षक को कम्पनी अधिकारी होने के नाते कुछ राहत (relief) दी। गयी है। किसी दीवानी या फौजदारी मुकदमे में अपना बचाव करने से उत्पन्न दायित्व की क्षतिपूर्ति करने के लिए कम्पनी तैयार हो सकती है, यदि यह सिद्ध हो गया हो कि अंकेक्षक ने ईमानदारी से कार्य किया है अथवा उसके पक्ष में निर्णय हो गया है।

(6) कानूनी तथा तकनीकी सलाह लेने का अधिकार—अंकेक्षक को कानूनी एवं तकनीकी सलाह लेने का अधिकार है और वह विशेषज्ञों से परामर्श प्राप्त कर सकता है। रिपोर्ट में अपनी राय देने के लिए ऐसा परामर्श आवश्यक होता है (लन्दन एण्ड जनरल बैंक केस, 1895)।

(7) पारिश्रमिक पाने का अधिकार-अंकेक्षक को अपना कार्य समाप्त करने के उपरान्त पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार है।

(8) अंकेक्षक को (यदि साझेदारी फर्म की अंकेक्षक के रूप में नियुक्ति हुई है तो साझेदार को) उसके द्वारा अंकेक्षित हिसाब-किताब के सम्बन्ध में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने का अधिकार होता है।

अंकेक्षक का पुस्तकों के सम्बन्ध में अधिकार (Auditor’s Lien on Books)—यह प्रश्न अभी तक विवादास्पद है कि अंकेक्षक का संस्था की पुस्तकों पर कहाँ तक तथा कितना अधिकार है। साधारणतया कम्पनी की पुस्तकें उसके कार्यालय में अंशधारियों तथा जनता के निरीक्षण के लिए रखी जाती हैं। अतः यह स्पष्ट है कि अंकेक्षक का यह अधिकार नहीं है कि वह इन्हें वहाँ से अलग ले जा सके। यह निर्णय दिया गया था कि एक अंकेक्षक केवल उन कागजों पर इस प्रकार का अधिकार रखता है जो उसने स्वयं तैयार किये हैं।

अतः यह कहा जा सकता है कि अंकेक्षक पुस्तकों के सम्बन्ध में केवल निरीक्षण का ही अधिकार रखता है, उन्हें अलग करने का नहीं।

अंकेक्षक के कर्तव्य

(DUTIES OF AN AUDITOR)

(1) कम्पनी विधान के अनुसार

1 विशेष जांच करना [धारा 143(1A)]

(अ) क्या कम्पनी के आधार पर दिये गये ऋण और अग्रिम भुगतान (Loans and advances) जा। जमानत के आधार पर दिये गये हैं उचित रूप से सुरक्षित हैं और जिन शर्तों पर ये दिये गये हैं वे शर्ते कम्पनी और उसके सदस्यों के हितों के विरुद्ध तो नहीं हैं?

(ब) क्या कम्पनी के लेन-देन जो पुस्तकों की प्रविष्टियों से प्रकट होते हैं कम्पनी के हितों के विरुद्ध तो नहीं हैं।

(स) यदि एक कम्पनी धारा 143(1D) की व्यवस्था के अनुसार विनियोगी कम्पनी या बैंकिंग कम्पनी नहीं है तो क्या ऐसी कम्पनी की सम्पत्तियों का वह भाग जो अंशों, ऋणपत्रों और अन्य प्रतिभतियों में है, उस मूल्य से कम पर बेचा गया है जिस पर कि उन्हें कम्पनी द्वारा खरीदा गया था?

 (ट) क्या कम्पनी द्वारा दिये गये ऋण और अग्रिम जमा (deposit) की तरह दिखाये गये है।।

(य) क्या व्यक्तिगत खर्चे रेवेन्यू खाते (revenue account) में दिखाये गये हैं ?

(फ) यदि कम्पनी की पुस्तक में और प्रपत्रों में दिखाया गया है कि अंशों का आबंटन रोकड के लिए। किया गया है, तो क्या ऐसे आबंटन के सम्बन्ध में रोकड वास्तव में प्राप्त की गयी है और यदि वास्तव म यस सम्बन्ध में रोकड़ प्राप्त नहीं की गयी है तो क्या लेखा पुस्तकों और चिढ़े में दिखायी गयी स्थिति ठीक व नियमित है और अविश्वसनीय तो नहीं है?

2. धारा 143(2) एवं (3) के अनुसार कम्पनी के अंकेक्षक के निम्नांकित कर्तव्य हैं, जो रिपोर्ट देने से सम्बन्धित हैं :

रिपोर्ट देना अंकेक्षक अपने द्वारा जाँचे गये खातों चिढ़े तथा लाभ-हानि खाते और ऐसे अन्य प्रपत्रों के सम्बन्ध में जो चिट्ठे या लाभ-हानि खाते के साथ नत्थी किये जाते हैं. एक रिपोर्ट देगा और यह लिखेगा कि उसकी राय में और पूर्ण जानकारी में उसे जो स्पष्टीकरण दिये गये हैं, उनके अनुसार ये खाते कम्पनी की सच्ची तथा उचित स्थिति प्रकट करते हैं।

अपनी रिपोर्ट में उसे यह दिखाना होगा कि :

(क) उसे वे सभी सूचनाएँ और स्पष्टीकरण प्राप्त हो गये हैं, अथवा नहीं जो उसकी जानकारी और विश्वास में अंकेक्षण कार्य के लिए आवश्यक थे। ।

(ख) उसके विचार में कम्पनी ने कम्पनी अधिनियम के अनुसार रखी जाने वाली उचित लेखा-पुस्तके रखी हैं, अथवा नहीं और कम्पनी की शाखाओं से जिनका उसने अंकेक्षण नहीं किया है, अंकेक्षण कार्य के लिए पर्याप्त उचित परिलेख (returns) मिल गये हैं, अथवा नहीं।

(ग) कम्पनी का लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा उसके बहीखातों तथा परिलेखों के अनुसार है, अथवा नहीं।

(घ) उसको [धारा 143(3) के अन्तर्गत] शाखा कार्यालय के खातों के सम्बन्ध में कम्पनी अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य अंकेक्षक द्वारा अंकेक्षित खातों की रिपोर्ट प्राप्त हो गई है और अपनी रिपोर्ट तैयार करने में उनका उपयोग कर लिया गया है।

(ङ) उसकी राय में लाभ-हानि खाता व चिट्ठा लेखाकर्म मानकों (Accounting Standard) के अनुरूप हैं।

(च) उसकी राय में अंकेक्षकों की मोटे टाइप में या छोटे में दी गयी आख्याएं तथा प्रतिक्रियाएं कम्पनी के कार्यकलाप पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रही हैं।

(छ) उसकी राय में कोई भी संचालक, संचालक नियुक्त होने के लिए अयोग्य तो नहीं है।

यदि इन प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक हो, तो अंकेक्षक को उसकी रिपोर्ट में अपने ऐसे उत्तर का कारण भी लिखना होगा।

केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित मामले के सम्बन्ध में भी अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में लिखना होगा। केन्द्रीय सरकार साधारणतया विशेष आदेश के द्वारा उन कम्पनियों के सम्बन्ध में जिनका नाम आदेश में है। यह निर्देश दे सकती है कि अंकेक्षक के रिपोर्ट में केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्देशित विषय पर एक विवरण अवश्य रहेगा। परन्त ऐसा आदेश देने से पूरी केन्द्रीय सरकार चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स एक्ट, 1949 के अन्तर्गत बनी

काट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स ऑफ इण्डिया से राय ले सकती है। केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार है कि बिना राय लिए भी (यदि राय लेना आवश्यक न हो) आदेश निर्गमित कर सकती है।

3. अन्य वैधानिक कर्तव्य : रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करना—(धारा 145 के अनुसार) अंकेक्षक का कर्तव्य है। कि वह अपने द्वारा दी हुई रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करे और यदि कोई फर्म किसी कम्पनी के लिए अंकेक्षक नियत हो तो उनका कोई भी साझेदार रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर सकता है।

4. प्रविवरण में दी गयी सूचना को प्रमाणित करना [धारा 26(b) के अनुसार जब एक चाल कम्पनी (existing company) प्रविवरण (prospectus) निर्गमित करती है तो अंकेक्षक को आगे लिखी बालों सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट देनी चाहिए:

(क) कम्पनी के लाभ-हानि के सम्बन्ध में,

(ख) सम्पत्ति तथा दायित्व के लिए, और

(ग) पिछले पांच वर्षों में से प्रत्येक वर्ष में कम्पनी द्वारा बाँटे गये लाभांश के लिए।

5. वैधानिक रिपोर्ट को प्रमाणित करना धारा 165(3) के अनुसार अंकेक्षक को कम्पनी द्वारा निर्गमित वैधानिक रिपोर्ट (statutory report) को प्रमाणित करना चाहिए कि यह जहाँ तक नीचे लिखी तीन बातों का सम्बन्ध है, कहां तक ठीक है :

(क) कम्पनी द्वारा आबंटित अंश,

(ख) ऐसे अंशों के लिए प्राप्त रकम, और

(ग) प्राप्ति तथा भुगतान।

वैधानिक सभा कम्पनी के व्यापार प्रारम्भ करने के प्रमाण-पत्र प्राप्त करने की तारीख से एक और छः । महीने के बीच बलायी जाती है जिसमें वैधानिक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।

6. ऐच्छिक समापन पर रिपोर्ट देनाधारा 305(1) के अनुसार] जब किसी कम्पनी का स्वैच्छिक समापन (voluntary winding-up) होती है और उसके संचालक कम्पनी की शोधन-क्षमता (solvency) के विषय में अपनी घोषणा करते हैं तो अंकेक्षक का कर्तव्य हो जाता है कि वह इस घोषणा के बारे में अपनी रिपोर्ट दे।

7. (धारा 217 के अनुसार) जब कम्पनी का अनुसन्धान होता है, तो अंकेक्षक का यह कर्तव्य है कि वह निरीक्षक (Inspector) की आवश्यक सहायता करे तथा उसके पास जो कम्पनी से सम्बन्धित पुस्तकें व प्रपत्र हों उनको उसे दे।

उपर्युक्त सभी कर्तव्य विधान के द्वारा बताये गये हैं। विशेष बात यह है कि अंकेक्षक के इन वैधानिक कर्तव्यों को कम्पनी के अन्तर्नियमों के द्वारा किसी प्रकार सीमित नहीं किया जा सकता है। हां, अन्तर्नियम इन कर्तव्यों में विस्तार कर सकते हैं।

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अंकेक्षण की सीमाएं

(LIMITATIONS OF AUDIT)

उपर्युक्त कर्तव्यों को जानने के पश्चात् यह पता चलता है कि अंकेक्षक का व्यावसायिक कार्य कुछ क्लर्को की सहायता से हिसाब-किताब तथा खातों पर निशान लगाना, जोड़ना तथा प्रमाणन करना है। इस कार्य का उद्देश्य हिसाब-किताब से सम्बन्धित प्रतिलिपिकीय अशुद्धियों का पता लगाना है। इस प्रकार अंकेक्षक के द्वारा की गयी जांच कभी-कभी एक ऐसी दिनचर्या-सी (routine work) प्रतीत होती है, जिसे यह उसके ऊपर डाले गये उत्तरदायित्व के कारण यथासम्भव सतर्कता से पूर्ण करता है। यही उसका व्यावसायिक कार्य है।

वास्तव में, हिसाब-किताब की पूर्ण शुद्धता तथा सत्यता कहीं भी उपलब्ध नहीं होती है। उदाहरण के लिए, व्यापारिक स्टॉक के मूल्यांकन के सम्बन्ध में प्राप्त विवरण-पत्र पूर्ण शुद्ध नहीं मिल पाता है, क्योंकि उसके भिन्न-भिन्न मदों का बाजार-मूल्य या लागत मूल्य निर्धारित करते समय यह कभी नहीं देखा जाता है कि सम्पूर्ण स्टॉक बिक्री के योग्य है अथवा नहीं। वैसे ही कच्चे माल तथा अन्य सामग्री के विषय में यह कभी नहीं कहा जाता है कि यह उत्पादन के कार्य के लिए प्रयोग किये जाने के उपयुक्त है या नहीं, उसी प्रकार बिजली तथा कोयला के कार्य के उपयोग के सम्बन्ध में यह कभी नहीं बताया जाता है कि इन मदों में अत्यधिक खर्च हआ है अथवा संस्था कम-से-कम खर्च करके मितव्ययिता से कार्य कर रही है।

इन सभी बातों से यह पता चलता है कि अंकेक्षक कुछ विशिष्ट सीमाओं के अन्तर्गत किया हुआ एक इतिहासकार का लेखा मात्र (a historian’s record) जैसा है। वित्त व्यवस्था (finance), नैतिकता (ethics) तथा कुशल प्रबन्ध (effective management) जैसे विषयों से अंकेक्षक का कोई प्रयोजन नहीं है।

यह भी अंकेक्षक की एक सीमा है कि अंकेक्षक को प्रबन्धकों की इच्छाओं से प्रभावित होना होता है। इसका स्पष्ट कारण यह है कि सैद्धान्तिक दृष्टि से कम्पनी के अंशधारी ही अंकेक्षक की नियुक्ति करते हैं, परन्तु वास्तव में वह प्रबन्धकों के द्वारा नियुक्त किया जाता है और वे ही उसे पारिश्रमिक या फीस देते हैं। इस प्रकार अंकेक्षक प्रबन्धकों की इच्छाओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है।

अकेक्षक को प्रहरी (watchdog) कहा जाता है आर वह मालिकों के हितों की रखवाली नियत किया जाता है। यह ठीक है कि वह मालिकों के हितो का पूर्ण ध्यान रखता है परन्तु इसके साथ-साथ उसे

अंकेक्षक की नियुक्ति, पारिश्रमिक, योग्यताएं, अधिकार और कर्तव्य

एक वित्तीय-पुलिस-शक्ति (a financial police force) के रूप में कार्य करना चाहिए जिससे वह समाज-विरुद्ध । (anti-social) कार्यवाहियों को रोक सके और अधिकारों का दुरुपयोग न होने दे। जब तक वित्तीय नियन्त्रण की व्यवस्था कठोर नहीं होगी, तब तक कुशल प्रबन्धक का होना कठिन ही नहीं वरन् नितान्त असम्भव है।

साथ ही यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि समय के परिवर्तन के साथ-साथ औद्योगिक संसार में दिन-प्रतिदिन प्रगति तथा परिवर्तन होते जा रहे हैं। समस्याएं जटिल होती जा रही हैं और एक-दूसरे से इतनी जडी हुई हो गया है कि जब तक अंकेक्षक पूर्ण दक्ष तथा नवीनतम परिवर्तन से पूर्ण परिचित व्यक्ति न होगा, तब तक कोई भी कार्य कुशलता एवं योग्यता से पूरा नहीं किया जा सकता।

अतएव प्रत्येक क्षेत्र में विशेष योग्यता प्राप्त व्यक्तियों की आवश्यकता है जिससे औद्योगिक कार्यों का संचालन समाज तथा अच्छे प्रबन्ध के हितों की दृष्टि से किया जा सके। यह विशेषकर व्यापारी वर्ग, सरकार तथा अंकेक्षण करने वाले व्यक्तियों के सहयोग से ही प्राप्त किया जा सकता है।

इस प्रकार अंकेक्षण की निम्न सीमाएं हो जाती हैं :

(1) पुस्तको का अंकेक्षण उनकी शत-प्रतिशत शब्दता की गारण्टी नहीं है। अंकेक्षक ने जांच कर ली है, इसका यह आशय नहीं है कि खाते पूर्णतया सही है।

(2) अंकेक्षक सभी कर्मचारियों की पर्ण ईमानदारी का प्रमाण-पत्र नहीं दे सकता। इसका अर्थ यह है। कि अंकेक्षित खातों में भी छल-कपट हो सकते हैं।

(3) अंकेक्षक के द्वारा व्यवहारों के व्यापारिक औचित्य को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। अंकेक्षक केवल यह देख सकता है कि ये व्यवहार सही रूप से लिख दिये गये हैं।

(4) अंकेक्षक को व्यावहारिक स्वतन्त्रता की कमी रहती है।

क्या अंकेक्षक काले धन को रोकने में सहायक है? (Can an Auditor be helpful in checking Black

Money?)

उपर्युक्त सीमाओं के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि अंकेक्षण का कार्य कागज से ही सम्बन्धित होता है। वह प्रमाणकों व प्रपत्रों की सहायता से खातों की जांच करता है। यदि प्रमाणक हैं और तत्सम्बन्धित प्रविष्टियां पुस्तकों में की गयी हैं, तो वह किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं कर सकता है। यही उसकी दुर्बलता है। इस सम्बन्ध में निम्न बातें उल्लेखनीय हैं :

(1) अंकेक्षक के अधिकार सीमित होते हैं। कम्पनी अधिनियम के अनुसार प्रदत्त अधिकार व्यापक नहीं हैं। काले धन का पता चलाना एक बात है और यदि वह पता चला सकता है, तो उसका रोकना नहीं हो सकता। रोकथाम न होने से काला धन बढ़ता जाता है और इस प्रकार वह असमर्थ होता है जिससे भविष्य में इस धन की वृद्धि में वह सहायक होता है, न कि बाधक। इसका एकमात्र इलाज उसके अधिकारों में वृद्धि करना और उनको अधिक व्यापक बनाना है।

(2) अपनी क्षमता के अनुरूप वह छानबीन करता है। यदि किसी संस्था में बिक्री अधिक दिखायी गयी है। और उसकी मात्रा के अनुरूप स्टॉक की मात्रा अधिक है, तो उसे प्रश्न करने का अधिकार नहीं है। दोनों का अनपात इस वर्ष क्या है और गत वर्षों में क्या रहा है, यह देखना उसका प्रमख कार्य है। यह शंका उत्पन्न हो जाती है मगर वह प्रश्न करने का अधिकारी नहीं है। जब तक यह नहीं होगा उसका कार्य एक इतिहासकार का लेखामात्र जैसा बना रहेगा।

(3) अंकेक्षक के कर्तव्यों में भी व्यापकता आनी चाहिए। उसको अपने कर्तव्यों में ध्यान रखना चाहिए कि वही अंशधारियों अथवा मालिकों के हितों के संरक्षण के लिए नियुक्त किया गया है। परम्परागत कार्यों को सही उसका लक्ष्य नहीं है, वरन् उसके विचारों और कार्यों में प्रगतिशीलता आनी चाहिए। काला धन रोकना उसका कार्य है और इस सन्दर्भ में उसका लक्ष्य यह देखना होना चाहिए कि विभिन्न लेन-देन कहां ले धन्धे को प्रोत्साहन देते हैं। जहां भी शंका हो, उसको निस्संकोच उन्हें प्रकाश में लाना चाहिए।

(4) काले धन की वृद्धि के अनेक मार्ग हो सकते हैं। अंकेक्षक का दायित्व इस सन्दर्भ में पर्ण परिभाषित जाना चाहिए। आवश्यकतानुसार उसके दायित्वों के सन्दर्भ में कम्पनी अधिनियम में परिवर्तन तथा स्पष्ट व्याख्या की जानी चाहिए।

(5) काला धन उस कागज पर नहीं आता है जो अंकेक्षक के सम्मुख जांच के लिए प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में, अंकेक्षक उन प्रविष्टियों की जांच करता है, जो उसको दिखाये जाते हैं। काला धन छिपा हुआ धन है जिसके लिए लेखा भी गुप्त रखा जाता है।

काला धन एक प्रमुख समस्या है जिसे रोकने के लिए अंकेक्षक को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना आवश्यक है जिसके लिए संस्थागत अधिनियम में परिवर्तन तथा संशोधन की आवश्यकता है। यदि अंकेक्षक वैधानिक सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करता रहेगा तो काला धन कम नहीं होगा, वरन् इसमें वृद्धि होती रहेगी और अंकेक्षक भी इसे न रोक पाने के कारण इसकी वृद्धि में सहायक बना रहेगा। इतना ही इस सम्बन्ध में यहां कहना पर्याप्त है।

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संयुक्त अंकेक्षक

कभी-कभी बड़ी व्यावसायिक संस्थाओं; जैसे बैंक, बीमा, आदि कम्पनियों में दो या दो से अधिक अंकेक्षक नियुक्त किये जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में प्रत्येक अंकेक्षक सामूहिक दृष्टि से उत्तरदायी होता है। लेकिन जब आपसी समझौते के आधार पर कार्य का विभाजन किया जाता है तो प्रत्येक अंकेक्षक के लिए यह अच्छा होता है कि वह अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट कर दे कि उसने कौन-सा विशिष्ट कार्य पूरा किया है जिससे जो कार्य उसने नहीं किया है, उसके लिए उसे अपने दायित्व से मुक्त किया जा सके।

कम्पनी की शाखाओं के अंकेक्षक

शाखाओं के अंकेक्षण के सम्बन्ध में नीचे लिखी व्यवस्था है :

यदि कम्पनी की कोई शाखा होती है तो उसके हिसाब-किताब (1) कम्पनी के अंकेक्षकों के द्वारा, अथवा (2) धारा 139 के अनुसार किसी योग्य व्यक्ति के द्वारा अंकेक्षित किये जाते हैं। यदि शाखा भारत से बाहर हो तो इसके खाते :

(1) कम्पनी के अंकेक्षक द्वारा, या

(2) उस व्यक्ति के द्वारा जो धारा 139 के अनुसार कम्पनी के अंकेक्षक का कार्य करने के योग्य है, या

(3) उस देश के कानून के अनुसार कम्पनी के अंकेक्षक के रूप में कार्य करने के योग्य व्यक्ति के द्वारा अंकेक्षित किये जायेंगे।

नियुक्ति-अंकेक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में कम्पनी अपनी साधारण सभा में तय करती है कि शाखा के खाते कम्पनी के अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जाँचे जायेंगे। यदि सभा अंकेक्षक की नियुक्ति नहीं करती तो संचालक मण्डल को यह अधिकार दे सकती है कि कम्पनी के अंकेक्षक की सलाह से किसी योग्य व्यक्ति को शाखा का अंकेक्षक नियुक्त कर दे। ऐसा व्यक्ति शाखा का अंकेक्षक कहलाता है।

अधिकार तथा कर्तव्य-शाखा के खातों के अंकेक्षण के समय कम्पनी अंकेक्षक के वही अधिकार तथा कर्तव्य होंगे, जो इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को दिये जायेंगे।

रिपोर्ट शाखा का अंकेक्षक खातों के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट तैयार करके कम्पनी अंकेक्षक के पास भेजेगा, जो कम्पनी के अंकेक्षण की रिपोर्ट बनाते समय यथाविधि इस रिपोर्ट का प्रयोग कर सकेगा।

पारिश्रमिक शाखा के अंकेक्षक का पारिश्रमिक कम्पनी द्वारा साधारण सभा में निश्चित किया जाता है। अथवा संचालकों द्वारा तय किया जाता है, जबकि साधारण सभा ने संचालकों को यह अधिकार दे दिया हो।

केन्द्रीय सरकार और शाखा का अंकेक्षण–धारा 143(4) के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार किसी शाखा को अंकेक्षण की उपर्युक्त व्यवस्था से मुक्त करने के सम्बन्ध में नियम बना सकती है। केन्द्रीय सरकार ने कुछ नियम “Companies (Branch Audit Exemption) Rules, 1961” बनाये हैं जिनमें दी हुई शर्तों के अनुसार किसी भी शाखा को अंकेक्षण से मुक्त किया जा सकता है।

Companies (Branch Audit Exemption) Rules, 1961 के अनुसार किसी कम्पनी को उसकी शाखा के खातों के अनिवार्य अंकेक्षण से छूट के सम्बन्ध में निम्नलिखित व्यवस्था है : ।

(1) कार्य की मात्रा पर आधारित छूट (Exemption based on Quantum of Activity) इसका। तात्पर्य यह होता है कि यदि किसी कम्पनी की, जो उत्पादन या व्यापार का कार्य करती है. एक शाखा है।

जिसके कार्य की मात्रा (quantum of activity) का औसत उस वर्ष 2 लाख रया कम्पनी का कुलाबक्रा (जिसमें उसकी शाखाओं, अन्य कार्यालयों की बिकी तथा सेवाओं से प्राप्ति या अन्य साधना से प्राप्त मा सम्मिलित है) के आसत के 2 प्रतिशत जो भी अधिक हो.से अधिक नहीं होता है, तो ऐसी शाखा आनवाय अंकेक्षण से मुक्त कर दी जायगी।

उपर्युक्त कार्य के अनुमान के लिए 3 वित्तीय वर्षों का औसत ही कार्य की मात्रा का औसत होगा।

इस कार्य के लिए कम्पनी अंकेक्षक को शाखा के कार्यालय की जाँच करने का अधिकार होगा आर वह इस सम्बन्ध में खातों, पुस्तकों एवं प्रमाणकों की जाँच करने का अधिकारी होगा।

(2) अन्य परिस्थितियों में छुट-प्रार्थना-पत्र देने पर केन्द्रीय सरकार स्थिति का पूर्ण अध्ययन तथा जाच करने के पश्चात् कम्पनी की शाखा को अनिवार्य अंकेक्षण में निम्न बातों के आधार पर छूट दे सकती है

(i) कि इस कम्पनी ने, जो व्यापारिक संस्था नहीं है. अपनी शाखा के खातों की जांच के लिए

सन्तोषजनक व्यवस्था कर ली है।

(ii)कि शाखा का अंकेक्षक बनने के लिए योग्य व्यक्ति के द्वारा शाखा के हिसाब का अंकेक्षण करवाने की व्यवस्था कर ली है. चाहे ऐसा व्यक्ति कम्पनी का कर्मचारी ही क्यों न हो;

(iii) कि किसी विशेष कारणवश शाखा के लिए यथोचित लागत पर अंकेक्षक उपलब्ध नहीं है;

(iv) कि किसी अन्य कारणवश केन्द्रीय सरकार इस बात से सहमत है कि शाखा को अंकेक्षण से छूट दे दी जाय।

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(3) उपर्युक्त (2)

(i) के आधार पर छूट के लिए प्रार्थना-पत्र देने के लिए निम्नांकित प्रपत्र प्रस्तुत करना चाहिए:

(ii) कम्पनी के प्रबन्धक तथा प्रबन्ध-संचालक से हस्ताक्षर किया गया एक प्रमाण-पत्र कि शाखा के खातों के अंकेक्षण के लिए सन्तोषजनक आन्तरिक व्यवस्था है । (ii) कम्पनी अंकेक्षक की ओर से एक लिखित बयान कि आन्तरिक अंकेक्षण की व्यवस्था सन्तोषजनक है तथा शाखा के खाते उचित प्रकार से रखे जा रहे हैं। कम्पनी के आन्तरिक अंकेक्षक को शाखा की पुस्तकों, खातों तथा प्रमाणकों को देखने के लिए हर समय सुविधा होगी और वह सूचनाएँ या स्पष्टीकरण माँगने का अधिकारी होगा।

साथ ही यह भी नियम है कि आन्तरिक अंकेक्षक उस अवधि के लिए जिसके लिए यह छूट दी गयी है. प्रत्येक वर्ष के शाखा के खातों के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट तैयार करेगा और उसे कम्पनी के अंकेक्षक के पास भेजेगा।

यह भी आवश्यक होगा कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष के चिढ़े के साथ यह प्रमाण-पत्र नत्थी किया जाय कि आन्तरिक अंकेक्षण की व्यवस्था में, जो शाखा के खातों के अंकेक्षण के लिए की गयी है, कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया गया है।

4 जब अनिवार्य अंकेक्षण से छूट के लिए प्रमाण-पत्र दिया गया हो और इसका आधार यह हो कि कोई भी अंकेक्षक किसी भी कीमत पर उपलब्ध नहीं है, तो एक ऐसा विवरण-पत्र (Statement) प्रस्तुत करना होगा जिसमें उन अंकेक्षकों के नाम तथा उनमें माँगे गये पारिश्रमिक या फीस का उल्लेख होगा जिनसे शाखा का अंकेक्षण करने के लिए प्रार्थना की गयी थी।

रिप्रोर्ट का विवरण-जब किसी वित्तीय वर्ष में कम्पनी शाखा के कार्यालय के खाते धारा 143(1) में वर्णित अंकेक्षक के द्वारा अंकेक्षित न किये गये हों, तो कम्पनी का अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट में यह लिखेगा शिया (4) के अन्तर्गत शाखा के कार्यालय को खातों के अनिवार्य अंकेक्षण से छूट दे दी गयी है। ये नियम उपर्युक्त (1) तथा (2) के अन्तर्गत क्रमश: दिये गये हैं।

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कम्पनियों का विशेष अंकेक्षण

[धारा 143(11)] सरकार विशेष अंकेक्षण कराने का आदेश दे सकती है. यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय हो कि :

(क) कम्पनी के कार्य का प्रबन्ध उचित व्यापारिक सिद्धान्तों अथवा व्यावसायिक सिद्धान्तों के अनसार नहीं चल रहा है, या

(ख) कम्पनी का प्रबन्ध इस प्रकार हो रहा है कि उसके व्यापार, उद्योग या सम्बन्धित व्यवसाय के हितों। की गम्भीर हानि या क्षति हो सकती है, या विशेष अंकेक्षण

(ग) कम्पनी की वित्तीय स्थिति इतनी कमजोर है कि इसके यदि केन्द्रीय सरकार की राय में शीघ्र ही दिवालिया हो जाने की सम्भावना है।

केन्द्रीय सरकार अपने आदेश के द्वारा विशेष की अवधि निर्धारित कर सकती है और यह तय कर सकती है कि ऐसा अंकेक्षण करने के लिए किसी चार्टर्ड एकाउण्टैण्ड को नियुक्त किया जायेगा या यह अंकेक्षण कम्पनी के अंकेक्षक किया जायेगा।

ऐसा अंकेक्षक विशेष अंकेक्षक कहलायेगा। अधिकारतथा कर्तव्य वे ही होंगे जो धारा 143 के अन्तर्गत कम्पनी अंकेक्षक को दिये जाते हैं। अन्तर यह है कि विशेष अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट कम्पनी के सदस्यों को देने के स्थान पर केन्द्रीय सरकार को देगा।

केन्द्रीय सरकार को किसी भी व्यक्ति को यह आदेश देने का अधिकार है कि वह विशेष अंकेक्षक को उसकी आवश्यकता के अनुसार आवश्यक सूचनाएँ देता रहे। साथ ही केन्द्रीय सरकार विशेष अंकेक्षक की रिपोर्ट के समाप्त होने पर जो आवश्यक समझे, वह कार्यवाही कर सकती है।

विशेष अंकेक्षक की रिपोर्ट में निम्न सूचनाएं होती हैं :

(i) धारा 143 के अनुसार जो बातें इस रिपोर्ट में होना आवश्यक हैं वे सभी बातें इसमें लिखनी चाहिए।

(ii) यदि केन्द्रीय सरकार चाहे, तो विशेष रूप से अंकेक्षक को किसी खास मामले के सम्बन्ध में रिपोर्ट देने को कह सकती है। ऐसे मामलों पर भी इस रिपोर्ट में विवरण होना चाहिए।

विशेष अंकेक्षक के व्यय केन्द्रीय सरकार के द्वारा निर्धारित किये जायेंगे और उनका भुगतान कम्पनी को करना होगा।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 कम्पनी के अंकेक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में क्या नियम हैं? समझाइए।

What are the rules as regard to appointment of auditor ? Explain.

2. एक कम्पनी के अंकेक्षक के अधिकार, कर्तव्य तथा दायित्वों की विवेचना कीजिए।

Discuss the rights, duties and liabilities of an auditor of a company.

3. कम्पनी अंकेक्षक को क्या वैधानिक अधिकार प्राप्त हैं? क्या अंकेक्षक अपने अंकेक्षण के अन्तर्गत पुस्तकों में कोई परिवर्तन कर सकता है?

What are the legal right possessed by the Auditor ? Can an auditor make necessary changes in books of accounts while auditing ?

4. सीमित दायित्व प्रमण्डलों के अंकेक्षकों की नियुक्ति, पारितोषिक और सेवाओं की समाप्ति के लिए प्रमण्डल अधिनियम, 1956 में क्या प्रावधान हैं?

What are the provisions in Companies Act, 1956 as regard to appointment, remuneration and ceasing of services of an auditor in joint stock company.

5. एक अंकेक्षक की नियुक्ति, कर्तव्य तथा हटाये जाने के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम की धाराओं की संक्षेप में। विवेचना कीजिए।

Discuss the various provisions of Companies Act as regard to appointment, duties and removal of an auditor in brief.

6. एक अंकेक्षक की मृत्यु या उसके द्वारा त्यागपत्र दे देने पर रिक्त हुए पद की पूर्ति एक कम्पनी कैसे कर सकती है ?

How can a company fill the position of an auditor vacated due to death or resignation ?

7. किन परिस्थितियों में केन्द्रीय सरकार को कम्पनियों के विशेष अंकेक्षण का अधिकार प्राप्त है ? उत्तर स्पष्ट दीजिए।

On what circumstance, the Central Government has the right to get conduct special audit of a company?

Auditor Appointment Remuneration Qualification

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 अंकेक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम के प्रावधान बताइए।

2. कम्पनी अंकेक्षक कैसे हटाया जा सकता है ?

3. अंकेक्षक का रिक्त स्थान कैसे भरा जा सकता है ?

4. शाखा-अंकेक्षक की नियुक्ति, अधिकार व कर्तव्य समझाइए।

5. रोकड़ के अतिरिक्त अन्य प्रतिफल के लिए निर्गमित अंशों का अंकेक्षण कैसे होगा ?

6. अंकेक्षक का पारिश्रमिक कैसे तय होता है ?

7. केन्द्र सरकार कम्पनी-अंकेक्षक की नियुक्ति कब व किस प्रकार करती है ?

Auditor Appointment Remuneration Qualification

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत वित्तीय अंकेक्षक किसे कहते हैं ?

2. वैधानिक रिपोर्ट से क्या आशय है ?

3. कम्पनी अंकेक्षक की योग्यताएं बताइए।

4. विशेष अंकेक्षक कौन होता है ? इसकी नियुक्ति किस प्रकार की जाती है ?

5. शाखा अंकेक्षक पर एक टिप्पणी दीजिए।

Auditor Appointment Remuneration Qualification

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 एकाकी व्यवसायी के लिए लेखा पुस्तकों का अंकेक्षण होता है :

(अ) अनिवार्य

(ब) आवश्यक

(स) ऐच्छिक

(द) इनमें से कोई नहीं

2. कर-निर्धारण वर्ष 1985-86 से आयकर अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत किस धारा से कुछ व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है :

(अ) 45A

(ब) 55BIBAILc

(स) 44AB

(द) 44C

3. कम्पनी के प्रथम अंकेक्षक निम्न में से किसके द्वारा नियुक्त किये जाते हैं :

(अ) संचालक मण्डल

(ब) केन्द्रीय सरकार

(स) वार्षिक साधारण सभा

(द) विशेष प्रस्ताव

Auditor Appointment Remuneration Qualification

4. कम्पनी अंकेक्षण का पारिश्रमिक निम्न धारा के अन्तर्गत निर्धारित किया जाता है।

(अ) 143

(ब) 142

(द) 139

5. निम्न धारा में से किसके अन्तर्गत कम्पनी की शोधन-क्षमता पर अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट देता है :(अ) 305

(ब) 309

(स) 217

(द) 308

(स) 140

Auditor Appointment Remuneration Qualification

chetansati

Admin

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