BCom 1st Year Business Regulatory Framework An Introduction Study Material notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework An Introduction Study Material Notes in Hindi

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An Introduction Study Material
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Bcom 2nd Year Cost Accounting Integrated System study Material Notes In Hindi

व्यापारिक सन्नियमएक परिचय

(Business Law-An Introduction)

व्यापारिक सन्नियम का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Business/Mercantile/Commercial Law)

व्यापारिक सन्नियम, दो शब्दों व्यापारिक तथा सन्नियम से मिलकर बना है। व्यापारिक या व्यावसायिक शब्द के अन्तर्गत प्रत्येक प्रकार के लेन-देन, क्रय-विक्रय, यातायात, बैंकिंग, बीमा, संचार, संदेशवाहन के साधन तथा उद्योग आदि सभी क्रियाएँ शामिल की जाती हैं। सन्नियम से आशय उन नियमों, उपनियमों और अधिनियमों से है जो राज्य द्वारा समय-समय पर बनाए व लागू किए जाते हैं तथा जिनका उपयोग राज्य सत्ता द्वारा समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने हेतु मानवीय व्यवहारों को व्यवस्थित एवं नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार व्यापारिक सन्नियम का अभिप्राय उन सभी वैधानिक नियमों (कानूनों) से है जो वाणिज्य एवं व्यापार के संचालन में प्रत्यक्ष रूप से लागू होते

सरल शब्दों में व्यापारिक लेन-देनों को नियमित एवं नियंत्रित करने वाले वैधानिक नियमों के समूह को व्यापारिक सन्नियम कहते हैं।

प्रो० एम० सी० शुक्ला के अनुसार, “व्यापारिक सन्नियम राजनियम की वह शाखा है जिसमें व्यापारिक व्यक्तियों के उन अधिकारों एवं दायित्वों का वर्णन होता है जो व्यापारिक सम्पत्ति के विषय में व्यापारिक व्यवहारों से उत्पन्न होते हैं। यहाँ पर व्यापारिक व्यक्ति से अभिप्राय एक व्यक्ति, साझेदारी, कम्पनी अथवा किसी अन्य संगठन से है।

ए० के० बनर्जी के अनुसार, “व्यापारिक अथवा वाणिज्यिक सन्नियम से आशय राजनियम के उस भाग से है जो व्यापार या वाणिज्य में संलग्न व्यक्तियों के मध्य हुए व्यवहारों से उत्पन्न कर्तव्यों एवं दायित्वों का वर्णन करता है।”

प्रो० ए० के० सेन के अनुसार, “व्यापारिक सन्नियम के अन्तर्गत वह सन्नियम आते हैं जो व्यापारियों, बैंकर्स तथा व्यवसायियों के सामान्य व्यवहारों से सम्बन्धित हैं और जो सम्पत्ति के अधिकारों एवं वाणिज्य में संलग्न कम्पनियों के सम्बन्धों से सम्बन्ध रखते हैं।”

निष्कर्षअत: व्यापारिक सन्नियम से आशय ऐसे नियमों से है जो व्यवसाय में लगे व्यक्तियों के सामान्य व्यवहारों तथा उनसे उत्पन्न दायित्वों एवं अधिकारों को प्रशासित एवं निर्देशित करते हैं और जो न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं। यहाँ पर न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) कराए जाने का अभिप्राय यह है कि किसी व्यक्ति द्वारा अपने दायित्व का पालन न किए जाने पर उसे न्यायालय की सहायता से पूरा कराया जा सकता है।

व्यापारिक सन्नियम का क्षेत्र या विषयवस्तु

(Scope or Subject-matter of Commercial Law)

व्यापारिक सन्नियम का क्षेत्र काफी व्यापक है क्योंकि इसके अन्तर्गत जो अधिनियम आते हैं उनकान केवल व्यापारिक गतिविधियों से ही होता है वरन् समाज के प्रत्येक व्यक्ति से होता है। सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित अधिनियमों को व्यापारिक सन्नियम के क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है

1 अनुबन्ध अधिनियम (Contract Act), 2. वस्तु-विक्रय अधिनियम (The Sales of Goods Act), 3. साझेदारी अधिनियम (Partnership Act), 4. कम्पनी अधिनियम (Company Act), 5. बीमा सन्नियम (Law of Insurance), 6. पंचनिर्णय अधिनियम (Arbitration Act), 7. बैंकिंग नियमन 8. पेटेन्ट ट्रेडमार्क एवं कॉपीराइट अधिनियम (Patent, Trade Mark and Copy Right Act), 9. विनिमय साध्य विलेख अधिनियम (The Negotiable Instrument Act), 10. दिवाला अधिनियम (Insolvency Act), 11. सार्वजनिक वाहक तथा दुलाई और जहाजी भाड़ा सम्बन्धी अधिनियम (Law Relating to Common Carriers and Carriage and Shipping)|

भारतीय व्यापारिक सन्नियम के स्रोत

(Sources of Indian Commercial Law)

भारतीय व्यापारिक सन्नियम अधिकतर अंग्रेजी सन्नियमों पर ही आधारित है क्योंकि भारतीय व्यापारिक सन्नियमों से सम्बन्धित अधिकतर अधिनियम अंग्रेजी शासन काल में ही निर्मित हुए हैं। स्थानीय रीति-रिवाज, व्यापारिक प्रथाएँ तथा देश में विद्यमान विशेष परिस्थितियाँ भी व्यापारिक सन्नियमों को प्रभावित करती हैं। भारतीय व्यापारिक सन्नियम के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

1 परिनियम (Statutes)-किसी देश की संसद अथवा विधान सभा द्वारा पारित किए गए अधिनियम, परिनियम (Statute) कहलाते हैं। भारतीय व्यापारिक सन्नियम के निर्माण में भारतीय संसद एवं विधानसभाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अनुबन्ध अधिनियम, वस्तु-विक्रय अधिनियम, साझेदारी अधिनियम और कम्पनी अधिनियम आदि सभी इसी प्रकार के अधिनियम हैं। इनमें से अधिकांश सर्वप्रथम इंग्लैंड की संसद में वहाँ के लिए बने थे और भारतीय परिस्थितियों के अनुसार उनमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन करके यहाँ की संसद द्वारा उन्हें अधिनियम का रूप दिया गया है।

2. इंगलिश कॉमनलॉ (English Common Law)-भारतीय व्यापारिक सन्नियम का यह भी महत्वपूर्ण स्रोत है। यह लॉ इंग्लैंड के न्यायाधीशों के निर्णयों पर आधारित हैं। इंगलिश कॉमन लॉ इंग्लैंड का सबसे पुराना राजनियम माना जाता है। जहाँ किसी विषय के सम्बन्ध में कोई परिनियम नहीं है अथवा जहाँ वह अस्पष्ट एवं भ्रमात्मक है, वहाँ भारतीय न्यायालय इंगलिश कॉमन लॉ का सहारा लेते हैं। इतना ही नहीं परिनियमों की व्याख्या करते समय भी इंगलिश कॉमन लॉ का प्रयोग किया जाता है।

3. न्याय के सिद्धान्त (Principles of Equity)-इंग्लैंड की ही भाँति भारत में भी उन दशाओं में, जिनमें साधारण सन्नियम न्यायपूर्ण हल प्रदान करने में असफल होते हैं, न्यायालयों को न्याय के आधार पर निर्णय करने का अधिकार होता है। इंग्लैंड में राजा के चांसलरों ने न्याय के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की रचना की है जिनको ‘न्याय का सिद्धान्त’ कहते हैं।

4. भारतीय रीतिरिवाज (Indian Customs and Usages)-रीति-रिवाजों का समाज में बड़ा महत्व होता है। कभी-कभी रीति-रिवाजों का महत्व परिनियमों से भी अधिक होता है। भारतीय व्यापारिक सन्नियम रीति-रिवाजों को प्राय: सब स्थानों पर मान्यता देते हैं। हुंडी से सम्बन्धित अधिकतर नियम रीति-रिवाजों पर ही बने हैं।

5. प्रमुख निर्णय (Leading Cases)-भूतकाल में हाई कोर्ट (High Court) एवं सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा दिए गए आधारभूत निर्णय भविष्य में उत्पन्न होने वाले समान विवादों के हल के लिए सन्नियम बन जाते हैं अर्थात् ऐसे निर्णय भविष्य में उन्हीं परिस्थितियों में, उसी प्रकार लागू किए जाते हैं। अत: इस प्रकार के निर्णय भी भारतीय व्यापारिक सन्नियम के प्रमुख स्रोत हैं।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 व्यापारिक सन्नियम से आप क्या समझते हैं? इसके क्षेत्र की विवेचना कीजिए।

What do you understand by Commercial Law? Discuss its scope.

2. भारतीय व्यापारिक सन्नियम अंग्रेजी सन्नियम पर आधारित है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? भारतीय व्यापारिक सन्नियम के स्रोत बताइए। ”

Indian Commercial Law is based on English Law.” Do you agree with this statement? Explain the sources of Indian Commercial Law

3. व्यापारिक सन्नियम उन विभिन्न अधिनियमों के आर्थिक कार्यकलापों से सम्बन्धित हैं।” इस कप व्यावसायिक नियामक ढाँचा

Commercial Law is nothing but a mixture of number of Acts which are related with man’s economic activities”’ Discuss.

4. व्यापारिक सन्नियम की परिभाषा कीजिए। इसके क्षेत्र को समझाइए।

Define Commercial Law. Explain its scope.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 व्यापारिक सन्नियम से क्या आशय है?

What is meant by Commercial Law?

2. भारत में व्यापारिक सन्नियम के उद्गम को स्पष्ट कीजिए।

Explain the origin of Commercial Law in India.

3. भारतीय व्यापारिक सन्नियम के स्रोत क्या हैं?

What are the sources of the Indian Commerical Law?

4. व्यापारिक सन्नियम के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।

Explain the scope of Commercial Law.

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1. भारतीय व्यापारिक सन्नियम बना था

(Indian Commercial Law was framed) :

(अ) सन् 1772 में (in 1772).

(ब) सन् 1872 में (in 1872) (1)

(स) सन् 1972 में (in 1972)

(द) सन् 1982 में (in 1982)

2. भारतीय व्यापारिक सन्नियम का स्रोत है

(The Source of Indian Commercial Law is):

(अ) अंग्रेजी सन्नियम (English Law) (1)

(ब) अमरीकन सन्नियम (American Law)

(स) फ्रांसीसी सन्नियम (French Law)

(द) जापानी सन्नियम (Japanese Law)

3. व्यापारिक सन्नियम में सम्मिलित हैं

(In Commercial Law included) :

(अ) अनुबन्ध अधिनियम (Contract Act)

(ब) वस्तु विक्रय अधिनियम (The Sales of Goods Act)

(स) साझेदारी अधिनियम (Partnership Act)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

4. व्यापारिक सन्नियम में सम्मिलित है

(In Commercial Law included) :

(अ) दण्डनीय सन्नियम (Criminal Law)

(ब) सामाजिक सन्नियम (Social Law)

(स) नैतिक सन्नियम (Moral Law)

(द) अनुबन्ध अधिनियम (Contract Act) (1)

BCom 1st Year Introduction

chetansati

Admin

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