BCom 1st Year Royalties Reserve Account Study Material Notes In Hindi
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BCom 1st Year Royalties Reserve Account Study Material Notes In Hindi: Calculation Table Royalties Payable Account Accounting Records Analytical Table Copyright Royalties (This post is Very Important For BCom 1st Year Students )
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[XVI] उप-पट्टे के सम्बन्ध में लेखे (Accounting Records in case of Sub-lease): यदि अधिकार-शुल्क समझौते म प्रावधान है कि पट्टेदार (Lessee) उप-पट्टेदार (Sub-lessee) की नियक्ति कर सकता है, तो ऐसी दशा में तीन पक्ष हो सकते हैं। : (i) भू-स्वामी अथवा पट्टादाता (Landlord or Lessor), (ii) पट्टेदार (Lessee); तथा (iii) उप-पट्टेदार (Sub-lessee)। ऐसी स्थिति में एक समझौता तो भू-स्वामी और पट्टेदार के मध्य होता है तथा दूसरा समझौता पट्टेदार और उप-पट्टेदार के मध्य होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भू-स्वामी का सम्बन्ध केवल पट्टेदार से ही होता है और वह अधिकार-शुल्क कुल उत्पादन (पट्टेदार द्वारा किया गया उत्पादन तथा उप-पट्टेदार द्वारा किया गया उत्पादन) पर पट्टेदार से अपने समझौते के अनुसार प्राप्त करने का अधिकारी होता है। उप-पट्टेदार द्वारा किये गये उत्पादन पर अधिकार-शुल्क प्राप्त करने का अधिकार, उप-पट्टे की शर्तों के अनुसार, पट्टेदार को ही होता है। इस प्रकार ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट होता है कि पट्टेदार की दोहरी स्थिति होती है- भूस्वामी के साथ वह पेट्टेदार है परन्तु उप-पट्टेदार के लिए वह भू-स्वामी जैसा है। पट्टेदार पट्टे के कुल उत्पादन पर अधिकार-शुल्क का भुगतान भू-स्वामी को करेगा और पट्टेदार उप-पट्टे के उत्पादन पर उप-पट्टेदार से अधिकार-शुल्क का भुगतान प्राप्त करेगा।
उप-पट्टे को शिकमी-पट्टा भी कहा जा सकता है। उप-पट्टे की दशा में शर्ते मूल पट्टे के जैसी ही होती हैं परन्तु अधिकार-शुल्क की दर और न्यूनतम किराये की धनराशि प्रायः मूल पट्टे की दर से अधिक होती हैं।
लेखांकन विधि (Accounting Method) : उप-पट्टे के सम्बन्ध में तीनों पक्षकारों की पुस्तकों में लेखांकन की विधियाँ निम्नलिखित हैं :
(1) भू-स्वामी की पुस्तकें (Books of Landlord) : भू-स्वामी का सम्बन्ध केवल पट्टेदार से होता है। भू-स्वामी की पुस्तकों में निम्न खाते खोले जा सकते हैं : (i) न्यूनतम किराया प्राप्य खाता (Minimum Rent Receivable Account); (ii) अधिकार-शुल्क प्राप्य खाता (Royalties Receivable Account); (iii) अधिकार-शुल्क संचय खाता (Royalties Reserve Account) या अधिकार-शुल्क उचन्त खाता (Royalties Suspense Account) अथवा लघुकार्य देय खाता (Shortworkings Payable Account) या लघुकार्य स्वीकार्य खाता (Shortworkings Allowable Account); (iv) पट्टेदार का खाता (Lessee’s Account)। यदि भू-स्वामी अपनी पुस्तकों में न्यूनतम किराया प्राप्य खाता न खोलना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है।
(2) उप-पट्टेदार की पुस्तकें (Books of Sub-lessee) : उप-पट्टेदार की पुस्तकों में अग्रवर्णित खाते खोले जा सकते हैं : (i) न्यूनतम किराया खाता (Minimum Rent Account); (ii) अधिकार-शुल्क खाता (Royalties Account); (iii) लघुकार्य खाता (Shortworkings Account); (iv) मुख्य पट्टेदार का खाता (Main Lessee’s Account)। यदि उप-पट्टेदार अपनी पुस्तकों में न्यूनतम किराया खाता न खोलना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है।
(3) पट्टेदार की पुस्तकें (Books of Lessee) : पट्टेदार की पुस्तकों में निम्नलिखित खाते खोले जा सकते हैं
(अ) पट्टेदार की हैसियत से पट्टेदार अपनी पुस्तकों में निम्न खाते खोल सकता है : (i) न्यूनतम किराया देय खाता (Minimum Rent Payable Account); (ii) अधिकार-शुल्क देय खाता (Royalties Payable Account); (iii) लघुकार्य खाता (Shortworkings Account) या लघुकार्य प्राप्य खाता (Shortworkings Receivable Account); (iv) भू-स्वामी का खाता (Landlord’s Account)। यदि पट्टेदार की हैसियत से पट्टेदार अपनी पुस्तकों में न्यूनतम किराया देय खाता न खोलना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है।
(ब) पट्टेदाता की हैसियत से पट्टेदार अपनी पुस्तकों में निम्न खाते खोल सकता है : (i) न्यूनतम किराया प्राप्य खाता Minimum Rent Receivable Account); (ii) अधिकार-शुल्क प्राप्य खाता (Royalties Receivable Account); (iii) अधिकार-शल्क संचय खाता (Royalties Reserve Account) या अधिकार-शुल्क उचन्त खाता (Royalties Suspense अथवा लघुकार्य स्वीकार्य खाता (Shortworkings Allowable Account); (iv) उप-पट्टेदार का खाता Account) Sub LesseeAccount)। यदि पट्टेदाता का हैसियत से पट्टेदार अपनी पुस्तकों में न्यूनतम किराया प्राप्य खाता न खोलना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है।
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ट्टेदार का पुस्तकों में दोनों अधिकार-शल्क खातों (Rovalties Accounts) को बनाने की निम्नलिखित तीन विधिया है।
प्रथम विाधि (First Method) : इस विधि में पट्टेदार की पस्तकों में अधिकार-शुल्क देय खाता (Royalties Payable Account) और अधिकार-शुल्क प्राप्य खाता (Royalties Receivable Account) बनाते हैं और बाद में इन दोनों खातों को। पश्थक्-पश्थक् रूप से लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर देते हैं, जिसके लिए निम्नलिखित जर्नल प्रविष्टियाँ की जाती हैं :
(i) Profit & Loss Account Dr.
To Royalties Payable Account
(For Transfer of Royalties Payable A/c to P. & L. A/C)
(ii) Royalties Receivable Account Dr.
To Profit and Loss Account
(For Transfer of Royalties Receivable A/c to P. & L. A/c)
द्वितीय विधि (Second Method) : इस विधि में पट्टेदार की पुस्तकों में अग्रवर्णित तीन खाते खोले जाते हैं : (i) अधिकार-शुल्क देय खाता (Royalties Payable Account); (ii) अधिकार-शुल्क प्राप्य खाता (Royalties Receivable Account) एवं (iii) अधिकार-शुल्क खाता (Royalties Account)। अधिकार-शुल्क सम्बन्धी प्रारम्भिक जर्नल प्रविष्टियाँ करने के पश्चात् पहले दोनों अधिकार-शुल्क खातों को तश्तीय अधिकार शुल्क खाते में हस्तान्तरित करते हैं और फिर तश्तीय अधिकार-शुल्क खाते का शेष लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर देते हैं, जिसके लिए निम्न जर्नल प्रविष्टियाँ की जाती हैं : (i) Royalties Account
To Royalties Payable Account Dr
(For Transfer of Royalties Payable A/c to Royalties A/c)
(ii) Royalties Receivable Account Dr.
To Royalties Account
(For Transfer of Royalties Receivable A/c to Royalties A/c)
(iii) Profit & Loss Account Dr.
To Royalties Account
(For Transfer of Royalties A/c to P.& L. A/c)
तृतीय विधि (Third Method) : इस विधि में पट्टेदार की पुस्तकों में प्रथम विधि के अनुसार अधिकार-शुल्क सम्बन्धी दो खाते (i) अधिकार-शुल्क देय खाता (Royalties Payable Account) एवं (ii) अधिकार-शुल्क प्राप्य खाता (Royalties Receivable Account) खोले जाते हैं। अधिकार-शुल्क सम्बन्धित प्रारम्भिक जर्नल प्रविष्टियाँ करने के पश्चात् वर्ष के अन्त में उप-पट्टे के उत्पादन की मात्रा पर भू-स्वामी या मूल पट्टेदाता से तय की गई अधिकार-शुल्क की दर से अधिकार-शुल्क की गणना करके आई धनराशि को निम्न जर्नल प्रविष्टि के द्वारा अधिकार-शुल्क प्राप्य खाते से अधिकार-शुल्क देय खाते में हस्तान्तरित कर देते हैं :
Royalties Receivable Account Dr.
To Royalties Payable Account
(For Transfer of Royalties calculated on Sub-lease
Output @ of Main Lease from Royalties Receivable
A/c to Royalties Payable Alc)
इसके पश्चात् निम्नलिखित दो जर्नल प्रविष्टियाँ की जाती हैं :
(i) Profit & Loss Account Dr
To Royalties Payable Account
(For Transfer of Royalties Payable A/c to P. & L. A/c)
(ii) Royalties Receivable Account Dr
To Profit & Loss Account
(For Transfer of Royalties Receivable A/c to P. & L. A/c)
उदाहरण 26 . अ ने 1 जनवरी 2006 को ब से एक भूमि का टुकडां पट्टे पर लिया अधिकार शुल्क की दर 1 रु प्रति टन है न्यूनतम किराया 2,000 रु प्रति वर्ष है और लघुकार्य की धनराशि को पट्टे के प्रथम चार वर्षों में अपलिखित किया जाता है ।
अ ने इसी भूमि का एक भाग स को 1 रु 50 पैसे प्रति टन अधिकार शुल्क पर उप पट्टा दि दिया न्यूनतम किराया 1,000 रु प्रति वर्ष है लघुकार्य की धनराशि को प्रथम दो वर्षों में अपलिखित किया जा सकता है।
तीन वर्षों का उत्पादन इस प्रकार है :
On 1st January, 2006 ‘A’ took a Lease from ‘B’ at a R Royalty of Re. 1 per tonne of Coal raised subject to a Minimum Rent of Rs. 2,000 p.a, with a right to recoup Shortworkings during
The first four Years of the Lease Minimum Rent of Rs. 1,000 p.a. with a ry ed Sub-lease of a part of this Lease to ‘C’ on a Royalty of Rs. 1.50 per tonne subject to a Lease.
A Granted Sub Lease of a Part of this Lease to C on a Rotalties Of rs1.50 Per Tonne subject to a Minimum Rent of Rs 1,000 p.a. with a right to recoup Shortworkings during the first two years of the
The output for the first three years was as follows:
Year
A C Total
(Tonnes) (Tonnes) (Tonnes)
2006 1,100 400 1,500
2007 1,160 540 1,700
2008 1,300 700 2,000
अ’ की पुस्तकों में रॉयल्टी खाते बनाइए।
Show various Royalties Accounts in the Books of ‘A’
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उदाहरण 27. जनवरी 1.2004 को कपिल देव ने भमि का एक पट्टा लिया और उसी तिथि से भूमि का एक भाग श्रीकान्त को पर पर द दिया। निम्न सूचना से कपिल देव की पस्तकों में आवश्यक खाते बनाइये। आगणन तालिका भी बनाइये।
On Jan., 1, 2004 Kapil Dev took a Land on Lease and from the same date sub-leased part of the land to Kant. From the following information prepare necesssary Accounts in the Books of Kapil Dev. Also prepare calculation table.
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पेटेन्ट सम्बन्धी अधिकार शुल्क के लेखे
(Accounting Records Related to Patent Royalties)
पेटेन्ट अधिकार (Patent Right) का स्वामी, अपने इस अधिकार को प्रयोग करने का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को देता है और प्रतिफल के रूप में पेटेन्ट के स्वामी द्वारा जो कुछ राशि ली जाती है उसे अधिकार-शुल्क कहा जाता है, जैसे राम एक सेफ्टी ताले (Safety Locks) का पेटेन्ट स्वामी है, उसने अपने इस पेटेन्ट के अधिकार को श्याम को प्रयोग करने का अधिकार दे दिया।
इसके प्रतिफल में राम, श्याम द्वारा बनाये एवं बेचे गये तालों की संख्या के आधार पर कुछ धनराशि लेता है तो इसी धनराशि को अधिकार-शुल्क कहा जायेगा।
पेटेन्ट अधिकार-शुल्क में भी उसी प्रकार से समझौता होता है जैसे खान सम्बन्धी अधिकार-शुल्क में होता है। लेखे करने की विधि भी वही अपनायी जाती है।
उदाहरण 28. रवि का एक सुरक्षा ताले पर पेटेंट अधिकार था। उसने शशि एण्ड कम्पनी को ताले के बनाने तथा बेचने का अधिकार सात वर्ष के लिए निम्न शर्तों पर दिया :
(अ) शशि एण्ड कम्पनी प्रति ताले की बिक्री पर 5 रु० अधिकार-शुल्क रवि को देगी तथा न्यूनतम वार्षिक भुगतान 50,000 रु० होगा। प्रतिवर्ष 31 दिसम्बर को खातों का निपटारा होगा।
(ब) यदि किसी वर्ष बिके हुए तालों के अनुसार अधिकार-शुल्क की धनराशि 50,000 रु0 से कम होगी तो शशि एण्ड कम्पनी को क्षतिपूर्ति का अधिकार उस धनराशि से अधिक अधिकार-शुल्क से आगामी दो वर्ष तक होगा। तालों का बिक्री की संख्या निम्न थीं :
वर्ष तालों का विक्रय
2005 8.000
2006 9,000
2007 11,000
2008 18,000
शशि एण्ड कम्पनी की पुस्तकों में आवश्यक खाते बनाइए।
Ravi owned a Patent of Safety Lock. He granted to Shashi & Company a Licence for seven years to manufacture and sell the Lock on the following terms :
(a) Shashi & Co. to pay to Ravi a Royalty of Rs. 5 for each lock sold with a Minimum Annual Payment of Rs. 50,000. Accounts to be settled annually on 31st December.
(b) If in any year the Royalty calculated on Locks sold amounted to less than Rs. 50,000 Shashi & Co. to have the right to deduct the deficiency from the royalties payable in excess of the sum in the following two years.
The Number of Locks sold was as follows:
Year Sales of Locks
2005 8.000
2006 9,000
2007 11,000
2008 18,000
Prepare necessary Accounts in the Books of Shashi & Co.
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उदाहरण 29 राम ने जो कि कैचीं के पेटेन्ट स्वामी है मोहन को इसके निर्माण का लाइसैसं 1 जनवरी 2004 को दिया अधिकार शुल्क प्रत्येक निर्मित कैची पर 1 रु है न्यूनतम किराया 10,000 प्रति वर्ष है यदि अधिकार शुल्क न्यूनतम किराये से किसी वर्ष कम हो जाता है तो इसे अगले दो वर्षों में न्यूनतम किराये पर अधिकार-शुल्क के आधिक्य से अपलिखित किया जा सकता है। प्रथम पाँच वर्षों में निर्मित कैंचियों की संख्या निम्नलिखित थी:
Ram, the owner of a Patent of Scissors, granted on 1st Jan., 2004 a Licence for its manufacture to Mohan at a Royalty of Re. I per Pair of Scissors manufactured subject to a Minimum Rent of Rs. 10,000 per annum. Any amount by which the Royalty might fall short of the Minimum Rent in any year is allowed to be written off against excess of Royalty over Minimum Rent during the next two years. The number of pairs of Scissors manufactured during the first five years was as under:
2004 2,000 Scissors
2005 4,000 Scissors
2006 10,000 Scissors
2007 14,000 Scissors
2008 16,000 Scissors
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मोहन की पुस्तकों में आवश्यक लेजर खाते खोलिये।
Prepare necessary Ledger Accounts in the Books of Mohan.
उदाहरण 30. मालपानी इन्जीनियरिंग कम्पनी ने, जो कि सिलाई मशीन के पेटेन्ट की स्वामी है, मालीवाल एण्ड कम्पनी को इसके निर्णाण का लाइसेंस 1 जुलाई 2004 को दिया अधिकार शुल्क एक मशीन के निर्णाण पर 20रु है । न्यूनतम किराया प्रथम दो वर्षों तक प्रत्येक वर्ष के लिए 50,000 रु0 ह आर इसके बाद प्रत्येक वर्ष के लिए 60,000 है । यदि किसी वर्ष सिलाई मशीनों का अधिकार शुल्क न्यूनतम किराये से कम हो तो इस कमी को अगले दो वर्षों के आधिक्य से पूरा किया जा सकता है।
निर्मित मशीनों की संख्या निम्नांकित है।
Malpani Engineering Company, the owner of a Patent of Sewing Machines, granted on Licence for its manufacture to Maliwal and Company at a Royalty of Rs. 20 per Machine
sewing Machines, granted on 1st July, 1999 subject to a Minimum Rent of Rs. 50.000 per annum for the first two years and RS. OU, thereafter. If in any year the Royalties calculated on the machines manufactured amounted to less Minimum Rent, Maliwal and Company has the right to recoun from the Surplus during the next two years.
Number of Machines manufactured was as follows:
June 30, 2005 2,000 Machines
June 30, 2006 2.200 Machines
June 30, 2007 2,750 Machines
June 30 , 2008 3,300 Machines
June 30, 2009 3,500 Machines
यह मानते हुए कि वार्षिक खाते 30 जून को तैयार किये जाते है, मालीवाल एण्ज कम्पनी की पुस्तकों में जर्नल तथा लघुकार्य खाता बनाइए।
Assuming that the Annual are closed on 30th june , Pass jounal Entries in the Books of Maliwal and Conmpany and prepare Shotworkings Account .
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कॉपीराइट सम्बन्धी अधिकार-शुल्क के लेखे
(Accounting Records Related to Copyright Royalties)
पुस्तकों के लेखक सामान्यतः अध्यापक, कवि या कहानीकार होते हैं, वे अपने द्वारा लिखी हुई पुस्तकों को स्वयं प्रकाशित नहीं करते, बल्कि उनका प्रकाशन, व्यावसायिक प्रकाशकों (Professional Publishers), जिनको प्रकाशन कार्य में दक्षता प्राप्त होती है, द्वारा ही कराया जाता है। ऐसी दशा में लेखक को प्रतिफल के रूप में, प्रकाशक द्वारा बेची गई पुस्तकों के मूल्य का एक निश्चित प्रतिशत की दर से प्रकाशक जिस धनराशि का भुगतान करता है उसे अधिकार-शुल्क कहते हैं। यह प्रतिशत लेखक एवं प्रकाशक के आपसी समझौते से निश्चित होता है। यह समझौता आमतौर में लिखित होता है परन्तु मौखिक भी हो सकता है। प्रकाशक द्वारा बेची गई पुस्तकों की संख्या को दी हुई मूल्य दर से गुणा करने पर बिकी हुई पुस्तकों का मूल्य निकल आता है। कभी-कभी प्रश्न में बिकी हुई पुस्तकों की संख्या नहीं दी गई होती है, तो उसे इस प्रकार निकाल लेते हैं :
साधारणतया कॉपीराइट अधिकार-शुल्क में न्यूनतम अधिकार-शुल्क की व्यवस्था नहीं होती है, इसलिये लघुकार्य की धनराशि एवं इसके अपलेखन की समस्या नहीं आती है। परन्तु कहीं-कहीं न्यूनतम अधिकार-शुल्क की व्यवस्था हो भी सकती है, यह लेखक और प्रकाशक के बीच हुये समझौते पर निर्भर करता है।
कॉपीराइट अधिकार-शुल्क की दशा में भी लेखे ठीक उसी प्रकार से किये जाते हैं जैसे कि खान सम्बन्धी अधिकार-शुल्क की दशा में किये जाते हैं जिनका विस्तृत विवरण इसी अध्याय में पहले दिया जा चुका है।
उदाहरण 31. प्रोफेसर ए० एन० अग्रवाल ने यातायात पर एक पुस्तक लिखी और इसके छापने तथा बेचने का अधिकार मैसर्स केदार नाथ राम नाथ, मेरठ को नीचे दी गई शर्तों पर दिया।
(अ) बिकी हुई पुस्तकों की छपी हुई कीमत पर 15 प्रतिशत अधिकार-शुल्क।
(ब) छपी हुई पुस्तक का मूल्य 20 रु0 प्रति पुस्तक। ।
(स) अधिकार-शुल्क का भुगतान प्रत्येक अगले वर्ष 15 जनवरी को किया जाता है।
Professor A. N. Agarwal wrote a Book on Transport and gave the right of its printing and Kedar Nath Ram Nath, Meerut, on the following terms :
(a) Royalty @ 15% on the Printed Price of the Books sold.
(b) Printed Price of a Book Rs. 20.
(c) Each year’s Royalty is paid on 15th January of the following year.
उदाहरण 32 डॉ० दास ने व्यावसायिक संगठन पर एक पुस्तक लिखी और इसके प्रकाशन का अधिकार रीता प्रकाशन मन्दिर, मेरठ को 1 जनवरी 2006 को पाँच वर्ष के लिए दिया ।
लेखन को 1 जनवरी 2006 को अधिकार शुल्क की एक मुश्त धनराशि 5,000 रु दी और इसके अलावा प्रत्येक वर्ष 2 रुपया प्रति पुस्तक अधिकार शुल्क देय था ,ऩ्यूनतम अधिकार शुल्क प्रथम वर्ष में 3,000 रु द्दितिय वर्ष में 5,000 रु तथा इसके बाद 6,000 रु प्रति वर्ष था ।
प्रथम तीन वर्षों में बिक्री प्रतिलिपियाँ क्रमश: 1,000 2,000 एवं 5,000 थीँ
रीता प्रकाशन मन्दिर की पुस्तकों में तीन वर्ष के लिये आवश्यक खाते दिखाइये।
Dr. Das wrote a Book on Business Organisation and gave the right of its publication to Rita Prakashan Mandir, Meerut on 1st January, 2006 for five years.
A Lump-sum Royalty of Rs. 5,000 was paid to Author on 1st January, 2006 and in addition a Royalty of Rs. 2 per copy was payable each year subject to a Minimum Royalty of Rs. 3,000 in the first year, Rs. 5,000 in the second year and Rs. 6,000 per annum thereafter.
The number of copies sold during the first three years was 1,000, 2,000 and 5,000 respectively.
Show the necessary Ledger Accounts in the Books of the Rita Prakashan Mandir, Meerut for three years.
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33. डॉ० अनिल मित्तल ने एक पुस्तक लिखी और इसके प्रकाशन का अधिकार मैसर्स एस० चान्द, दिल्ली को प्रत्येक वर्ष 31 मार्च तक बेची गयी प्रतियों के छपे मूल्य पर 10% के अधिकार-शुल्क पर दिया। पुस्तक का छपा मूल्य 60 रुपये है। अधिकार-शुल्क का भुगतान प्रत्येक वर्ष आने वाली 31 अगस्त को दिया जाता है तथा पुस्तकें 31 मार्च को बन्द होती हैं। प्रकाशक ने खाते इस प्रकार प्रस्तुत किये :
मेसर्स एस० चान्द द्वारा डॉ० अनिल मित्तल को 10 वर्ष के अनुबन्ध के लिये 10,000 रुपये 1 अप्रैल, 2004 को नजराने के रूप में भी दिये गये।
31 मार्च, 2008 तक मेसर्स एस चान्द की पुस्तकों में आवश्यक खाते बनाइये।
Dr. Anil Mittal wrote a book an Accountancy and gave the right of its publication to M/S S. Chand. Delhi at a royalty of 10% on the printed price of the copies sold upto 31st March each year. The printed nrice of the book is Rs. 60. The amount of royalty is paid on 31 August following and the books are closed on 31 st March. The publisher submitted the accounts as under
On 1st April, 2004 M/s S. Chand also paid 10,000 as Nazrana to Dr anil Mittal For 10 Years
agreement.
Prepare necessary ledger Accounts upto 31st march 2008 in the books of M/S S Chand Delhi .
तेल कुओं से सम्बन्धित अधिकार-शुल्क के लेखे
(Accounting Records Related to Oil Wells Royalties)
तेल कुएं के स्वामी द्वारा उसमें से तेल न निकालकर, उसके द्वारा कुएं से तेल निकालने का अधिकार किसी अन्य पक्ष को दे दिया जाता है, तो तेल निकालने वाला पक्षकार, कएं के स्वामी को तेल की निकासी के आधार पर जो धनराशि भुगतान करता है, उसे अधिकार-शुल्क कहते हैं। इसमें भी लेखांकन की विधि वही होती है जो कि खान सम्बन्धी अधिकार-शुल्क के लेखे करने की होती है। जिसका विस्तश्त विवरण इसी अध्याय में किया जा चुका है।
उदाहरण 34.1 जनवरी, 2005 को श्री यज्ञ प्रकाश ने 24,000 रु0 प्रति वर्ष न्यूनतम किराये पर कुछ तेल कुएं पट्टे पर लिए। अधिकार-शुल्क की धनराशि, निकाले जाने वाले तेल पर, 1 60 प्रति टन है। प्रत्येक वर्ष की लघुकार्य की धनराशि को अगले दो वर्षों में अपलिखित किया जा सकता है। परन्तु शर्त यह है कि यदि लघुकार्य धनराशि होने वाले वर्ष से अगले वर्ष में लघुकार्य की पूरी धनराशि को अपलिखित न किया जा सके तो बिना अपलिखित हुई लघुकार्य की धनराशि का 50% यज्ञ प्रकाश को अगले वर्ष में अपलिखित करने का अधिकार नहीं रहेगा।
प्रथम चार वर्षों की तेल की निकासी इस प्रकार हुई- प्रथम वर्ष में 6,000 टन, द्वितीय वर्ष में 15,000 टन, तश्तीय वर्ष में 30,000 टन, और चौथे वर्ष में 28,000 टन।
यज्ञ प्रकाश की पुस्तकों में आवश्यक खाते खोलिए।
On 1st January, 2005, Sri Yagya Prakash acquired on lease certain Oil Wells at a Minimum Rent of Rs. 24.000 per annum, merging into a Royalty of Re. 1 per tonne of oil taken out. The Shortworkings were recoverable in the next two years, but on the condition that if full shortworkings could not be recovered in the next year of the Shortworkings, Yagya Prakash will lose his right to recover 50% of the unrecovered balance of Shortworkings.
The Output of the first four years was 6,000 tonnes in the first year; 15,000 tonnes in second year; 30,000 tonnes in the third year and 28,000 tonnes in the fourth year.
Open necessary Accounts in the Books of Sri Yagya Prakash.
2005 की लघुकार्य की धनराशि 18,000 रु० थी जिसे अगले वर्ष 2006 में पूरा न किया जा सका, अतः प्रश्न में दी गयी शर्त के अनुसार इस धनराशि की 50% अर्थात् 9,000 रु० जिसे अब अपलिखित करने का अधिकार नहीं रहा, वर्ष 2006 लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर दी गयी।
**2007 वर्ष की शेष लघकार्य की धनराशि 3,000 रु० जिसे अब आगे अपलिखित करने का अधिकार नहीं रहा और । 2006 वर्ष की लघुकार्य की धनराशि 9,000 रु० जिसे अगले वर्ष 2007 में पूरा न किया जा सका, इस राशि का 50% अथात् । 4.500 भी इस वर्ष लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया गया। वर्ष 2007 में कल मिलाकर 3,000 रु0 + 4,500 रु0 = 7000 रु0 लघुकार्य को लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया गया है।
4,500 भी इस वर्ष लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया गया। वर्ष 2007 में कुल मिलाकर 3,000 रु0 + 4,500 रु0 = 7,500। | 50 लघुकार्य को लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया गया है।
***2006 वर्ष की 2007 वर्ष में शेष लघुकार्य की धनराशि 4,500 रु0 में से 2008 में 4,000 रु0 अपलिखित किये गये। और शेष धनाराशि 500 रु0 जिसे अब अपलिखित करने का अधिकार नहीं रहा, उसे वर्ष 2008 लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर दिया गया।
ईंटें बनाने से सम्बन्धित अधिकार-शुल्क लेखे
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(Accounting Records Related to Bricks Making Royalties)
ईंट निर्माता ईंटें बनाने के लिए बहधा मिट्टी निकालने के लिए जमीन पट्टे पर लेते हैं. जमीन से निकाला मीटर की दर से ईंटें बनाने वाला जमीन के स्वामी को अधिकार-शुल्क का भुगतान करता है। कभी-कभी लिए जमीन पट्टे पर लेते समय नजराना भी देना पड़ता है। इस अधिकार-शुल्क के लेखों भी की तरह ही किये जाते हैं।
उदाहरण 35. बरेली ब्रिक कम्पनी ईंटों का निर्माण करती है। इसन सर वर्षा के पट्टे पर भूमि का एक प्लाट लिया। पट्टे की शर्ते निम्न थीं: ।
(i) पट्टा प्रारम्भ होने पर 1 जनवरी 2005 को पट्टा देने वाले को 5,000 रु नजरान के दिए जायें ।
(ii) उसे निकाली गयी मिट्टी के प्रति घन मीटर के लिए 10 पैसे अधिकार शुल्क दिया जाये । न्यूनतम किराया 2,000 रु प्रति वर्ष था। लघुकार्य की पूर्ति भविष्य के आधिक्य से की जा सकेगी।
पट्टेदार द्दारा निकाली गई मिट्टी का मात्रा 2005 , 2006 और 2007 में क्रमश : 16,000 18,000 और 24,000 घन मीटर थी । बरेली ब्रिक कम्पनी की पुस्तकों में तीन वर्षों के खाते बनाइए ।
Barilly Brick company manufactures bricks It Acquied on a ten Years Leas a Plot of Land Form Sardar Jaswant Singh for the Purpose of getting Clay The lease Provided That :
(i) A Nazana of Rs 5,000 Is to be paid to the lessor on 1st January 2005 when the peried the lease commenced ; and
(ii) An annual Royalty of 10 paise per cubic metre of Clay Taken our is to be paid Subject to a Minimum Rent of Rs 2,000 per Year , Any Shortworkings ot be recouped out o future excess Rotalty .
The Quatity of clay Extracted by the Lessee In 2005 ,2006 and 2007 was 16,000 18,000 and 24,000 cubic metre respectively Prepare Ledger Accounts for there years in the Books of Bareilly Brick Company
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