BCom 3rd Year Auditing Objects Advantages Study Material Notes in hindi

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हिसाब-किताब में गड़बड़ी की विधियां

Table of Contents

(1) ह्रास (depreciation) कम या अधिक या बिल्कुल नहीं दिखाना;

(2) सम्पत्तियों (assets) तथा दायित्वों (liabilities) का कम या अधिक राशि पर मूल्यांकन करना।

(3) बनावटी बिक्री दिखाकर अधिक लाभ दिखाने की व्यवस्था करना तथा बनावटी क्रय दिखाकर कम लाभ दिखाने का उद्देश्य पूरा करना;

(4) पूंजी-व्यय को लाभ-व्यय तथा लाभ-व्ययं को पूंजी-व्यय मानकर लेखा करना;

(5) बनावटी खर्चे दिखाकर, जिससे लाभ की रकम कम हो जाए, अथवा कुछ खर्चे बिल्कुल ही न दिखाकर, ताकि लाभ अधिक दिखाया जा सके।

(6) व्यापार के गुप्त कोषों (secret reserves) का उपयोग आवश्यकता के समय अंशधारियों से बिना पूछे कर लेना;

(7) धोखा देने के लिए पुस्तकों को सजाना (window-dressing), यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत चिट्ठा संस्था की ऐसी स्थिति दिखलाता है जो उसकी वस्तु-स्थिति से अच्छी है।

(8) क्रय तथा व्ययों को घटाकर या बढ़ाकर दिखलाना:

(9) उसी प्रकार बिक्री तथा आय की अन्य मदों को कम करके या बढ़ाकर दिखलाना;

(10) अन्तिम स्टॉक के मूल्य को कम या अधिक दिखलाना तथा

(11) अदत्त (outstanding) दायित्वों तथा पूर्वदत्त (prepaid) व्ययों का समायोजन न करना।

संक्षेप में, हिसाब-किताब में गड़बड़ी निम्न प्रकार हो सकती है :

(i) सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि करके दिखलाना; .

(ii) दायित्वों को छोड़ देना या कम पर अंकित करना;

(iii) लाभों को बढ़ाकर दिखलाना ताकि अधिकारियों को कमीशन अधिक मिल सके और अंशों का मूल्य बाजार में बढ़ सके तथा

(iv) पुस्तकों की सजावट (window-dressing)।

छल कपट एवं अशुद्धि में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN ERROR AND FRAUD)

क्र सं अन्तर के आधार छल कपट अशुद्दिय़ा
1  जानकारी (Knowledge) छल कपट या गबन करने वाले को इसकी पूरी जानकारी होती है। अशुद्धि करने वाले को इसकी जानकारी नहीं होती है।
2  इरादा (Intention) छल कपट इरादे से किया जाता है। अशद्धि चाहकर नहीं की जाती है।
3 योजना (Planning) यह कार्य पूर्व में योजना किया जाता है। बनाकर इसके लिए ऐसा कुछ नहीं किया जाता है।
4  परिणाम (Result) छल कपट या गबन का परिणाम किसी एक पक्ष को लाभ व दूसरे को हानि पहुंचाना होता है। अशुद्धि का परिणाम अनिश्चित होता है
5  सतर्कता (Alertness) इसके लिए अधिक सतर्कता की आवश्यकता होती है।

 

इसमें अधिक सतर्कता की जरूरत नहीं आवश्यकता होती है।

 

6 प्रक्रिया (Process) यह एक अस्वाभाविक प्रक्रिया है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
7 कारण (Reasons) छल कपट बिना सावधानी के नहीं हो सकती । यह असावधानी के कारण होती है।

 

 

8  ढूंढना (Deduction)

 

इसको ढूंढ़ना कठिन है, क्योंकि यह नियोजित ढंग से की जाती है। क्योंकि यह इसको ढंढना आसान है, असावधानी के कारण होती है।

 

 

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अंकेक्षण के उद्देश्य एवं लाभ अशुद्धियां तथा छल-कपट और अंकेक्षक का कर्तव्य

(ERRORS AND FRAUDS AND AUDITOR’S DUTY)

अशुद्धियां तथा कपट के सम्बन्ध में प्रश्न उठता है कि एक अंकेक्षक इनके प्रति कहां तक जिम्मेदार है। अंकेक्षक यह अच्छी तरह जानता है कि उसे एक ओर इन अशद्धियों तथा कपट का पता लगाना है और दूसरी ओर ऐसा प्रबन्ध करना है जिससे ये भविष्य में न होने पायें। यही अंकेक्षक का सहायक उद्देश्य है।

(1) अशुद्धियों व छल-कपट का पता लगाना (Detection of Errors and Frauds) –अंकेक्षक को अशद्धियों तथा छल-कपट का पता लगाने के लिए बड़ी सावधानी और सतर्कता से कार्य करना चाहिए। भिन्न-भिन्न पुस्तकों, खातों तथा प्रमाण-पत्रों की गहन जांच से ही वह अशद्धियों का पता लगा सकता है। इसलिए उसका कर्तव्य हो जाता है कि वह अपना कार्य बद्धिमानी से पूर्ण करे और यदि वह कुछ अशुद्धिया। अथवा छल-कपट का पता लगाने में किसी प्रकार असमर्थ रहे तो वह जिम्मेदार नहीं होगा। उसका कर्तव्य केवल गहन जांच करने तक ही सीमित है।

इस प्रकार गहन जांच करने का कार्य अंकेक्षक का परम कर्तव्य हो जाता है। उसे अपना कार्य अत्यन्त सावधानी, बुद्धिमानी, कुशलता एवं कर्तव्यपराणता से पूर्ण करना चाहिए। यह सब करते हुए भी यदि अशुद्धियां तथा कपट का पता लगाने में असमर्थ होता है तो वह किसी प्रकार उत्तरदायी नहीं है। किन परिस्थितियों में कितनी जांच गहन होगी इसका अनुमान अंकेक्षक के विवेक पर निर्भर होगा। अपनी बुद्धिमत्ता से गहरी जांच करने के पश्चात् जो खाते सही प्रमाणित कर दिये हैं, यदि वे गलत निकलते हैं, तो यह उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

(2) अशुद्धियों व छल-कपट को रोकना (Prevention of Errors and Frauds)-अशुद्धियां तथ कपट भविष्य में न होने पायें, प्रत्यक्ष रूप से अंकेक्षक कुछ नहीं कर सकता है। हां, यदि उसका नियोक्ता उन उपायों के सम्बन्ध में सलाह मांगता है जिनसे ये अशुद्धियां तथा कपट फिर न होने पायें, तो यह सलाह वह दे सकता है। अच्छी सलाह देना उसका कर्तव्य है मगर उसके अनुसार कार्य करने की जिम्मेदारी सम्बन्धित संस्था के कर्मचारियों की है। यदि वे उसकी सलाह के अनुसार चलते हैं तो भविष्य में ये अशुद्धियां तथा कपट कम हो सकते हैं।

साथ ही जांच के लिए अंकेक्षक का आना भी एक महत्वपूर्ण बात होती है। संस्था का प्रत्येक कर्मचारी यह जानकर कार्य करता है कि उसकी हिसाब-किताब की पुस्तकें अंकेक्षक द्वारा जांची जायेंगी अतः इस भय के कारण वह सावधानी से कार्य करता है। प्रत्येक को अपने गलत कार्य और बदनामी का डर बना रहता है। भविष्य में ऐसी अशद्धि न हो. इसका सभी प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार अंकेक्षक इन अशुद्धियों तथा कपट की रोकथाम में सहायता करता है और उसका कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव पड़ता है।

सामाजिक उद्देश्य

(SOCIAL OBJECTS)

व्यावसायिक संस्थाओं को व्यावसायिक उद्देश्यों के अतिरिक्त सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने की अपेक्षा की जाती है। वस्तुतः ऐसी संस्थाओं का उद्देश्य मात्र लाभ कमाना ही नहीं होता बल्कि उनके सामाजिक उद्देश्य भी होते हैं। इनकी सामाजिक गतिविधियों के मूल्यांकन को ही सामाजिक अंकेक्षण कहा जाता है। ये सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह दो रूप में करते हैं :

1 आन्तरिक सामाजिक उत्तरदायित्व इसके अन्तर्गत संस्था के कर्मचारियों के प्रति अप्रत्यक्ष मौद्रिक सेवाएं सम्मिलित की जाती हैं। जैसे—(a) Providend Fund, Gratuity, Bonus, Insurance, Leave Incashment, Medical Facilities, Housing Facilities, Canteen Facilities, Promotion of Staff, Recreation and Entertainment for Staff etc.. (b) कार्यस्थल एवं इर्द-गिर्द के वातावरण में सुधार (c) वैधानिक देनदारियों का समय पर भुगतान, (d) सस्ती दर पर अच्छी किस्म की वस्तुएं प्रदान करना, आदि।

2. बाह्य सामाजिक उत्तरदायित्व—इसके अन्तर्गत संस्था द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाएं समाज (Society) से सम्बन्धित होती है, जैसे—(a) सड़क, पार्क, खेल का मैदान तथा पीने के पानी की व्यवस्था (b) वातावरण में सुधार के लिए वृक्षारोपण करना, (c) नये व्यवसाय की स्थापना कर रोजगार के अवसर प्रदान करना, आदि।

निम्न सामाजिक उद्देश्यों की पर्ति हेत सामाजिक अंकेक्षण कराया जा सकता है:

(i) उद्योगों द्वारा सामाजिक गतिविधियों के निष्पादन का मूल्यांकन करना।

(ii) जनता को संस्थाओं द्वारा निष्पादित सामाजिक उत्तरदायित्वों की जानकारी देना।

(iii) संस्था के प्रबन्ध को सामाजिक खातों की शुद्धता की जानकारी देना।

(iv) प्रबन्ध को सामाजिक खातों के निर्माण में सुझाव देना।

(v) उद्योग की सोसियो-इकोनॉमिक में योगदान का मूल्यांकन करना।

(vi) ‘मूल्य योग विवरण’ का मूल्यांकन करना जिसमें किसी संस्था की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान का स्पष्टीकरण किया गया हो।

विशिष्ट उद्देश्य

(SPECIFIC OBJECTS)

अंकेक्षण विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भी कराये जाते हैं। इन विशिष्ट उद्देश्यों से सम्बन्धित अंकेक्षण किसी वैधानिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु होता है या संस्था द्वारा अपने कार्यों एवं क्रियाओं आदि की सफलता की जांच हेतु कराया जाता है। ये अंकेक्षण निम्न प्रकार के होते हैं:

(i) लागत अंकेक्षण,

(ii) प्रबन्ध अंकेक्षण,

(iii) संचालन अंकेक्षण,

(iv) कार्यक्षमता अंकेक्षण,

(v) कर अंकेक्षण, आदि।

अन्य उद्देश्य

(OTHER OBJECTS)

अन्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भी अंकेक्षण कराया जाता है। जैसे :

(1)  प्रबन्धकों को रायअंकेक्षण के द्वारा अंकेक्षक जांच कार्य के दौरान पायी जाने वाली कमियों के सुधार हेतु अपनी राय देता है। यह राय व्यवसाय के आन्तरिक नियन्त्रण में सहयोग प्रदान करती है।

(2) कर्मचारियों पर नैतिक प्रभावव्यवसाय द्वारा समय-समय पर अंकेक्षण कराये जाने से संस्था के कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव पड़ता है। कर्मचारी अपना सम्पूर्ण कार्य समय पर व ईमानदारी से सम्पादन करते हैं एवं कर्मचारी अपनी गलतियों के पकड़े जाने के भय से सावधानी से कार्य करते हैं।

(3) अधिनियमों की पूर्ति-अंकेक्षण कराने का उद्देश्य विभिन्न अधिनियमों के प्रावधानों की पूर्ति करना है। कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत प्रत्येक संयुक्त स्कन्ध कम्पनी को अपने खातों का वित्तीय अंकेक्षण कराना अनिवार्य है। कम्पनी अधिनियम की धारा 233(B) के अनुसार कुछ विशिष्ट उद्योगों को लागत लेखांकन व लागत अंकेक्षण कराना अनिवार्य है।

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अंकेक्षण के लाभ/महत्व

(ADVANTAGES/SIGNIFICANCE OF AUDIT)

प्रत्येक संस्था, छोटी हो या बड़ी, अपना हिसाब-किताब रखती है, उसके स्वरूप के अनुसार ही उसमें पंजी का सदपयोग करना तथा उसे भली प्रकार सुरक्षित रखना संस्था व उसके मालिकों के हित में होता है। अतएव संस्था की सफलता के लिए हिसाब-किताब की जांच अत्यन्त आवश्यक हो जाती है। यदि हिसाब-किताब आवश्यक है, तो इसका अंकेक्षण उससे कहीं अधिक आवश्यक है।

वास्तव में अंकेक्षक अपनी गहन जांच के पश्चात् रिपोर्ट देकर एक संस्था के हिसाब-किताब पर इसके सही तथा ठीक होने की सील (मुहर) लगा देता है। प्रत्येक बाहरी व्यक्ति चाहे वह ऋण देने वाला व्यक्ति हो. आय-कर लेने वाला अधिकारी हो, व्यापार का खरीदार हो या नियन्त्रण रखने वाला सरकारी अधिकारी हो. अंकेक्षित (audited) हिसाब-किताब को विश्वसनीय मानता है।

अंकेक्षण से लाभ न केवल अंकेक्षण करने वाली संस्था को होता है बल्कि अंकेक्षण का लाभ संस्था से। सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों को भी होता है। अंकेक्षण के प्रमुख लाभ निम्न हैं :

अंकेक्षण के लाभ

संस्था को लाभ

संस्था के स्वामियों के लाभ

कर्मचारोयों को लाभ

लेनदारों को लाभ

विश्लेषण कर्तओं को लाभ

सरकार को लाभ

संस्था को लाभ (Advantages to Organisation)

(1) लेखांकन कार्य का समय पर होना (Accounting Work within Time)–अंकेक्षण के कारण हिसाब-किताब की पुस्तकों को लिखने वाला व्यक्ति अपने कार्य को नियमित रूप से सावधानीपूर्वक एवं विधिवत् रूप से करने के लिए बाध्य होता है, क्योंकि उसे यह मालूम होता है कि समय-समय पर इनका अंकेक्षण होगा।

(2) अशुद्धि एवं छल-कपट में कमी (Minimisation of Errors & Frauds)—अंकेक्षण के द्वारा संस्था के कर्मचारी द्वारा किये गये किसी प्रकार की अशुद्धि एवं कपट के पकडे जाने की सम्भावना बढ़ जाती है। इस अंकेक्षण के भय के द्वारा कर्मचारियों पर गलत कार्य न करने का नैतिक प्रभाव पड़ता है। अशुद्धियों एवं छल-कपट की सम्भावना कम हो जाती है।

(3) व्यवसाय की लाभ-हानि का ज्ञान (Knowledge of Business Profit & Loss) अंकेक्षण के द्वारा व्यवसाय को होने वाले शुद्ध-लाभ व हानि का सही ज्ञान हो जाता है। अंकेक्षण से न केवल संस्था के सम्पूर्ण लाभ की सूचना प्राप्त होती है बल्कि व्यवसाय के अन्दर होने वाली विभिन्न क्रियाओं या उत्पादन या सेवाओं की सफलता व असफलता व प्रत्येक पृथक् कार्यों या विभागों या उत्पादन क्रियाओं से होने वाले लाभ-हानि का ज्ञान होता है। इसके आधार पर यह निर्णय लिया जा सकता है कि किस क्रिया या कार्य पर विशेष ध्यान दिया जाये या किस क्रिया या कार्य का परित्याग कर दिया जाये।

(4) व्यवसाय की आर्थिक स्थिति का ज्ञान (Knowledge of Financial Position of Business) अंकेक्षण के द्वारा व्यवसाय की आर्थिक या वित्तीय स्थिति का ज्ञान हो जाता है। संस्था के आर्थिक चिठे के द्वारा वित्तीय स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है व उसमें दिखायी गयी मदों की सत्यता व विश्वसनीयता को अंकेक्षण द्वारा प्रमाणित किया जाता है।

(5) कार्य-कुशलता में वृद्धि (Increase in Efficiency)—अंकेक्षण के द्वारा संस्था की कार्य-कुशलता एवं कर्मचारियों की कुशलता में वृद्धि की जा सकती है। व्यावसायिक नीतियों, योजनाओं, प्रक्रियाओं की गहन जांच के द्वारा कार्य-कुशलता में वृद्धि की जा सकती है। इस कारण संस्थाएं कार्यक्षमता अंकेक्षण (Efficiency Audit) भी कराती हैं।

(6) वैधानिक आवश्यकता की पूर्ति (Fulfilment of Statutory Requirement)—अंकेक्षण के द्वारा कई प्रकार की वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। आयकर हेतु प्रदर्शित लाभ अंकेक्षित खातों के आधार पर निर्धारित करना आवश्यक है। पूंजी बाजार से पूंजी प्राप्त करने के लिए तथा स्टॉक-विनिमय बोर्ड के अन्तर्गत अंशों को सूचीबद्ध कराने हेतु (Listing requirements on Stock-Exchange) भी अंकेक्षण कराना अनिवार्य है।

(7) वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेना (Helpful in Obtaining Loan from Financial Institutions)—बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाएं संस्था के अंकेक्षित खातों का अध्ययन कर संस्था की लाभदायकता व वित्तीय स्थिति की जांच कर ऋण प्रदान करती है।

(8) कर-निर्धारण में सहायक (Helpful in Determination of Tax) अंकेक्षित खातों के आधार पर विभिन्न प्रकार के करों का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है। कर-निर्धारण अधिकारी अंकेक्षित खातों के आधार पर किए गए कर-निर्धारण को सही मानते हैं।

(9) व्यवसाय के विक्रय में सहायक (Helpful in Sale of Business) व्यवसाय के विक्रय के समय क्रय प्रतिफल के निर्धारण के लिए अंकेक्षित खातों को सुदृढ़ आधार माना जाता है।

(10) क्षतिपूर्ति के निर्धारण में सहायक (Helpful in Determination of Compensation) बीमा। कम्पनियों से क्षतिपूर्ति का निर्धारण करने एवं क्षतिपूर्ति के प्राप्त करने हेतु अंकेक्षित लेखों को अधिक विश्वसनीय एवं सहायक प्रमाण के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।

(11) ख्याति में वृद्धि (Increase in Goodwill) खातों के अंकेक्षण किये जाने से व्यवसाय की ख्याति में वृद्धि होती है। इस कारण विनियोजक बिना किसी संकोच के संस्था में धन विनियोग करता है एवं लेनदार माल या सेवाएं प्रदान कर सकते हैं।

(12) आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली का मूल्यांकन (Evaluation of Internal Control System)अंकेक्षण के द्वारा प्रकाश में आयी विभिन्न अशुद्धियां एवं कपट उसकी आन्तरिक निरीक्षण एवं नियन्त्रण व्यवस्था की वैधता एवं प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं। यदि अशुद्धियों एवं कपटों की संख्या अधिक है तो संस्था आन्तरिक निरीक्षण एवं नियन्त्रण व्यवस्था में परिवर्तन कर सकती है

(13) विवादों का निपटारा (Settlement of Disputes) कर्मचारियों के मध्य हुए वेतन या बोनस सम्बन्धी विवादों का निपटारा आसानी से किया जा सकता है। अन्य पक्षकारों से संस्था के विरुद्ध मुकदमों में अंकेक्षित खाते प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किये जा सकते हैं।

(14) अंकेक्षक से सुझाव प्राप्त करना (Obtaining Opinion and Views from Auditor)-अंकेक्षण के दौरान अंकेक्षक नियोक्ता को लेखाकर्म एवं पुस्तपालन के सम्बन्ध में आवश्यक सुझाव प्रेषित कर सकता है। आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली को और सशक्त करने के लिए उसके सुझाव मील के पत्थर के रूप में साबित हो सकते हैं।

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(II) संस्था के स्वामियों को लाभ (Advantages to Owners of Business)

(1) एकाकी व्यवसाय के लिए (For Sole Trader) एकाकी व्यवसाय की दशा में जहां अंकेक्षण अनिवार्य नहीं होता, वहां स्वामी अंकेक्षण के द्वारा सन्तुष्टि कर सकता है कि समस्त प्रविष्टियों को लिख लिया गया है एवं किसी प्रकार की कोई त्रुटि या कपट की सम्भावना नहीं है।

(2) साझेदारी व्यवसाय के लिए (For Partnership Firm)—साझेदारी व्यवसाय की दशा में साझेदार अंकेक्षण के द्वारा यह सन्तोष कर सकते हैं कि समस्त साझेदारों व कर्मचारियों ने ईमानदारी से कार्य किया है। अंकेक्षित लेखे साझेदारों के प्रवेश, निष्कासन या मृत्यु आदि पर खातों के निपटारे में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

(3) संयुक्त स्कन्ध कम्पनी के लिए (For Joint Stock Company) संयुक्त स्कन्ध कम्पनी की दशा में कम्पनी की स्वामी अंकेक्षित लेखों के द्वारा कम्पनी के लाभ-हानि की जानकारी व वित्तीय स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। अंकेक्षित खातों के द्वारा वे इस बात पर भी सन्तोष कर सकते हैं कि कम्पनी के संचालक एवं प्रबन्धक कम्पनी के व्यवसाय को उचित रूप से संचालित कर रहे हैं। प्रबन्धक द्वारा दिये जाने वाले लाभांश की दर के औचित्य को अंकेक्षित खातों द्वारा वैध ठहराया जा सकता है।

(II) कर्मचारियों को लाभ (Advantages to Employees)

अंकेक्षित खातों के द्वारा प्रदर्शित लाभ के आधार पर संस्था के कर्मचारी अपने वेतन, बोनस व अन्य सुविधाओं में वृद्धि की मांग कर सकते हैं।

(IV) लेनदारों को लाभ (Advantages to Creditors)

विभिन्न वित्तीय संस्थाएं, बैंकिंग कम्पनियां व अन्य पूंजी के पूर्तिकर्ता अंकेक्षित खातों के आधार पर व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का अध्ययन कर वित्त प्रदान करने के निर्णय लेते हैं।

(V) विश्लेषणकर्ताओं को लाभ (Advantages to Analyst)

विभिन्न विश्लेषणकर्ता अंकेक्षित खातों के आधार पर संस्था का विश्लेषण करते हैं और आवश्यक सुचना संस्था को व अन्य पक्षकारों को प्रदान करते हैं। जैसे—अभिगोपकों द्वारा विश्लेषण, विभिन्न क्रेडिट

रेटिंग संस्थाओं (Credit rating agencies-ICRA, CRISIL, etc.) द्वारा अंकेक्षित खातों का प्रयोग, मर्चेन्ट बैंकर्स (Merchant Bankers) द्वारा अंकेक्षित खातों का प्रयोग।

(VI) सरकार को लाभ (Advantages tp Government)

अंकेक्षित खातों के आधार पर सरकार राष्ट्रीय आय, शुद्ध राष्ट्रीय आय, वित्तीय सहायता का निर्धारण (Subsidy), प्राथमिक क्षेत्रों का निर्धारण (Priority Sectors), विभिन्न नीतियों का निर्धारण (कर नीति. आयात-निर्मात नीति, आदि) का निर्धारण करती है।

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अंकेक्षण की सीमाएं

किसी भी कम्पनी या संस्था में खातों की जांच व सत्यता को जांचने के लिए अंकेक्षक की नियुक्ति की जाती है। अतः अंकेक्षक खातों की जांच करता है तथा अपनी प्रतिवेदन देता है। इसी प्रतिवेदन के आधार पर कई निर्णय लिये जाते हैं। अंकेक्षक की अंकेक्षण के कार्य करते समय कुछ सीमाएं एवं मर्यादाएं होती हैं, वह निम्नलिखित हैं:

(1) अंकेक्षण शत-प्रतिशत शुद्धता व सत्यता की गारण्टी नहीं दे सकता है किसी भी व्यवसाय में अनेक लेन देन किये जाते हैं। अतः अंकेक्षक सभी लेन-देन को पूरी तरह जांच नहीं सकता है और कुछ लेन-देन जांच से रह जाते हैं और इससे कुछ गलतियां छिपी रह सकती हैं

(2) अंकेक्षण तुच्छ बातों पर ध्यान नहीं देताअंकेक्षक अंकेक्षण करते समय तुच्छ या छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं दे पाता है। अतः कुछ गलतियां रह भी जाती हैं।

(3) अंकेक्षण कर्मचारियों की ईमानदारी को प्रमाणित नहीं करता हैकोई भी अंकेक्षक केवल व्यवसाय के खातों की ही शुद्धता व सत्यता की जांच करता है तथा उन्हें प्रमाणित करता है। वह किसी कर्मचारी की ईमानदारी की जांच नहीं करता है।

(4) सभी गबन या छल-कपट का पता लगाना मुमकिन नहीं है कोई भी अंकेक्षक अपना कार्य पूर्ण सतर्कता के साथ निर्वाह करता है। फिर भी वह सभी छल-कपट या गबन ढूंढ़ ले यह सम्भव नहीं है।

(5) अंकेक्षक केवल अपनी राय प्रकट कर सकता हैअंकेक्षक कभी भी यह प्रमाणित नहीं करता कि संस्था या कम्पनी के खाते पूर्ण रूप से सही हैं। वह केवल अपनी जांच पर अपनी राय प्रकट करता है।

एक अंकेक्षक चौकसी करने वाले कुत्ते के समान है, खूनी कुत्ते की तरह नहीं।

” “An Auditor is a watch-dog and not a blood-hound.”

उपर्युक्त कथन का सन्दर्भ किंग्स्टन कॉटन मिल्स कम्पनी लिमिटेड (1896) के विवाद से सम्बन्धित है। इस मुकदमे में न्यायाधीश जस्टिस लोपस ने अंकेक्षक के कर्तव्यों की ओर संकेत करते हुए जो उसकी संस्था की अशुद्धियों तथा छल-कपट के सम्बन्ध में थे यह निर्णय दिया था। इस मुकदमे का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:

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किंगस्टन कॉटन मिल्स कं. लि.,1896

(RE: KINGSTON COTTON MILLS CO. LTD., 1896)

मुकदमे का आधारकिंगस्टन कॉटन मिल्स कं. का मैनेजर कई वर्षों तक छल-कपट करता रहा। कम्पनी की वित्तीय स्थिति अच्छी दिखाने के उद्देश्य से उसने 1890, 1891, 1892 और 1893 के वर्षों के अन्त में कपास तथा सूत के स्टॉक की मात्रा और मूल्यों को बढ़ाकर दिखाया। स्टॉक के लिए केवल स्टॉक जर्नल (Stock Journal) ही रखा गया था। प्रतिवर्ष मैनेजर इन खातों से बनाये गये सारांश (Summary) को प्रमाणित करता था। मैनेजर स्वयं चरित्रवान तथा अद्वितीय कुशलता वाला व्यक्ति था। उस पर संचालकों से लेकर सभी निम्न अधिकारियों तक का विश्वास था।

कम्पनी के चिठे में अन्तिम स्टॉक को दिखाते समय यह लिख दिया जाता था कि यह मैनेजर के। प्रमाण-पत्र (Manager’s Certificate) के अनुसार है। कम्पनी के अंकेक्षक मैसर्स पिकरिंग एण्ड पीसगुड्स (Messers Pickering and Peacegoods) ने मैनेजर के प्रमाण-पत्र पर विश्वास कर लिया और खातों की अधिक जांच नहीं की। इस प्रकार मैनेजर के द्वारा स्टॉक को बढ़े हुए मूल्यों पर लिखकर कम्पनी के लाभों में बनावटी वृद्धि हो गयी और लाभांश का भुगतान पूंजी में से होता रहा। अंकेक्षक पर यह आरोप लगाया गया। कि उसने सावधानीपूर्वक कार्य नहीं किया है। अतः कम्पनी के द्वारा जितना लाभांश अनुचित रूप से चुकाया। गया, उस सीमा तक वह हर्जाना कम्पनी को दे।

निर्णय स्टॉक का मूल्यांकन करना अंकेक्षक का कर्तव्य नहीं है। इस मामले में अंकेक्षक ने मैनेजर पर। विश्वास किया, क्योंकि वह चरित्रवान व्यक्ति था और संचालकों आदि प्रत्येक व्यक्ति का विश्वासपात्रा उसके लिए यह कभी सन्देह का कारण नहीं बना कि स्टॉक की मात्रा व मूल्य के सम्बन्ध म मनजर सूचना नहीं देगा और इस कारण उसने विश्वास कर लिया। ऐसी सन्देहास्पद परिस्थितियों में याद अक कम्पनी के किसी उत्तरदायी अधिकारी के प्रमाण-पत्र पर विश्वास कर लेता है, तो वह कदापि लापरवाही के लिए दोषी नहीं है।

अंकेक्षक का यह कर्तव्य है कि वह अपना कार्य करते समय यथोचित सावधानी व चतुराई (reasonable care and skill) का प्रयोग करे। उचित सावधानी व चतुराई क्या होगी, यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर होगा। न्यायाधीश ने इस मकदमे के सम्बन्ध में कहा, “अंकेक्षक पालतू कुत्ते के समान कार्य करता है, न कि शिकारी कुत्ते की भांति। कम्पनी के विश्वासपात्र अधिकारियों में विश्वास करना उसके लिए सर्वथा उचित है। यदि किन्हीं परिस्थितियों में कुछ शंका उत्पन्न होती है, तो उसे उचित सावधानी व चतुराई का प्रयोग करना चाहिए तथा गहराई से जांच करनी चाहिए। अत्यन्त चालाकी तथा सावधानीपूर्वक किये गये अंकेक्षण में अंकेक्षक को उत्तरदायी नहीं बनाना चाहिए जबकि ऐसे छल-कपट कम्पनी के विश्वस्त कर्मचारियों द्वारा किये गये हों और वर्षों तक संचालक उनको न पकड़ पाये हों।

उपर्युक्त कथन की व्याख्या की जाये तो यहां दो महत्वपूर्ण विषय अंकेक्षक के सम्बन्ध में कहे गये हैं :

(i) वह चौकसी करने वाले कुत्ते के समान है।

(ii) वह एक खूनी कुत्ते के समान नहीं है।

अंकेक्षक चौकसी करने वाले कुत्ते के समान है (An Auditor is a Watch Dog) विद्वानन्यायाधीश ने यहां अंकेक्षक की तुलना चौकसी करने वाले कुत्ते से की है। पालतू कुत्ता सदैव अपने मालिक के प्रति वफादार रहता है और अपने मालिक की चौकसी करना उसका प्रमुख कार्य है। वह जिस मालिक का खाना खाता है उसकी रखवाली बड़ी होशियारी तथा ईमानदारी से करता है। मालिक को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाने का प्रयास यदि कोई करता है तो वह भौंककर मालिक को सावधान या चेतावनी देता है। जिस प्रकार पालतू कुत्ते में वफादारी, सेवा भाव, समर्पण एवं सतर्कता का गुण अपने मालिक के प्रति होता है ठीक इसी प्रकार अंकेक्षक का कर्तव्य अपने नियोक्ता के प्रति होना चाहिए। संस्था की लेखा-पुस्तकों में अशुद्धियों तथा छल-कपट को ढूंढ़ निकालने के लिए उसे सावधानी तथा ईमानदारी से कार्य करना चाहिए। उसे अपने नियोक्ता के हितों की रक्षा बहुत ही चौकसीपूर्वक और सावधानी से करनी चाहिए। अपना कार्य करते समय यदि उसे कोई शंका उत्पन्न होती है तो वह निम्नांकित कार्य कर सकता है :

(1) वह संस्था के अधिकारियों से शंका के सन्दर्भ में सूचना या स्पष्टीकरण प्राप्त कर सकता है। इस प्रमाणित स्पष्टीकरण के आधार पर विश्वास करके शंका का समाधान कर सकता है।

(2) यदि इस स्पष्टीकरण से वह सन्तुष्ट न हो, तो इस आपत्ति का उल्लेख उसे अपनी रिपोर्ट में निःसंकोच कर देना चाहिए।

अंकेक्षक एक खूनी कुत्ते के समान नहीं है (An Auditor is not a Blood Hound)—एक खूनी कुत्ता अपने शिकार को पकड़कर दबोच लेता है। अंकेक्षक को इस प्रकार का कार्य नहीं करना चाहिए। वह अशुद्धियों तथा छल-कपट का पता तो अवश्य लगाये, मगर जो कर्मचारी इसके लिए जिम्मेदार हैं, उनसे किसी प्रकार का द्वेष या घृणा उसके हृदय में नहीं होनी चाहिए। जिसकी गलती उसको दबाना’ उसका सिद्धान्त नहीं होना चाहिए। उसको अपनी ईमानदारी तथा सावधानी में कमी नहीं करनी चाहिए और छल-कपट के लिए उत्तरदायी पति का पता लगाना चाहिए, उसको किसी कर्मचारी के प्रति सन्देहास्पद वत्ति उत्पन्न कर हानि पहुंचाने की भावना से कार्य नहीं करना चाहिए। उसे खातों की गहन जांच करने और अपनी स्पष्ट रिपोर्ट देने में। संकोच नहीं करना चाहिए।

इस निर्णय के साथ-साथ बहुत कुछ ऐसी ही बात लन्दन एण्ड जनरल बैंक (1895) के मुकदमे में निर्णय देते हुए विद्वान जज ने कही थी। इसके अनुसार अंकेक्षक एक बीमक (insurer) नहीं है। वह इस प्रकार की कोई भी गारण्टी नहीं दे सकता है कि पुस्तकें कम्पनी की सही स्थिति को बताती हैं और न वह यह कह सकता है कि चिट्ठा कम्पनी की पुस्तकों के अनुसार सही है। उसका केवल यह कार्य है कि उसे ईमानदारी, सावधानी व चतुराई से कार्य करना चाहिए और तब ही खातों को प्रमाणित करना चाहिए। जिसको वह सही नहीं समझता, उसे सही प्रमाणित करने के लिए वह बाध्य नहीं है। अतः केवल ईमानदारी तथा कुशलता से कार्य करना ही उसका कर्तव्य है। इससे अधिक कोई अन्य उसका दायित्व नहीं है। _

सरल शब्दों में, उसका कार्य केवल गहन जांच करना है जिससे अशुद्धियों तथा छल-कपट का पता लग सके और इस प्रकार वह संस्था के स्वामियों के हितों की रक्षा कर सके।

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उपर्युक्त मुकदमे एवं विवेचना के आधार पर अंकेक्षक के निम्न कर्तव्य दृष्टिगोचर होते हैं :

(1) ईमानदार (Honest) एक पालतू कुत्ता अपने मालिक के प्रति बफादार होता है और उसकी रखवाली बड़ी होशियारी एवं ईमानदारी से करता है। मालिक के प्रति आने वाले किसी भी प्रकार के खतरे पर वह भौंक कर उसे चौकन्ना करता है, ठीक यही कार्य अंकेक्षक का है। अंकेक्षक को अपने नियोक्ता के खातों की सावधानीपूर्वक एवं ईमानदारी से जांच करनी चाहिए। लेखा-पुस्तकों में व्याप्त कोई भी अनियमितता, कमी या उसके कर्मचारी द्वारा बरती गयी लापरवाही उसे अपने नियोक्ता को अवगत करानी चाहिए।

(2) शंकायुक्त न होना (Not to be Suspicious) अंकेक्षक को शंकायुक्त स्वभाव का नहीं होना चाहिए। एक शिकारी कुत्ता अपने मालिक के पास आने वाले समस्त व्यक्तियों को मालिक का दुश्मन समझकर उन पर भौकता है और शंकायुक्त दृष्टि से देखता है और उन्हें नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है। इस प्रकार अंकेक्षक को अपने स्वभाव में एक शिकारी कुत्ते के गुणों को समावेश नहीं करना चाहिए और इस दृष्टि से नहीं कार्य करना चाहिए कि समस्त कर्मचारी मालिक को नुकसान पहुंचाने वाले हैं। अर्थात् अंकेक्षक को कर्मचारी को सन्देह की दृष्टि से न देखना चाहिए वरन् उनमें विश्वास करना चाहिए। इस प्रकार अंकेक्षक को यह मानकर कार्य नहीं करना चाहिए कि लेखा-पुस्तकों में त्रुटियां, अनियमितताएं एवं गबन विद्यमानहोंगे।

(3) विश्वास (Belief) एक रखवाली करने वाला कुत्ता अपने मालिक के नौकरों पर या उनसे आने वाले विभिन्न व्यक्तियों पर विश्वास करता है कि वह उसके मालिक को नुकसान नहीं पहुंचायेंगे। यदि कोई व्यक्ति उसके मालिक से असामान्य व्यवहार करता है या उसे नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है तभी एक पालतू कुत्ता अपने मालिक की सुरक्षा के लिए सामने आकर उसकी रक्षा करता है। इसके विपरीत एक शिकारी कुत्ता प्रत्येक व्यक्ति को शक की नजर से देखता है कि वह उसके मालिक को नुकसान पहुंचाएगा। ठीक इसी प्रकार अंकेक्षक को रखवाली करने वाले कुत्ते के समान होना चाहिए न कि शिकारी कुत्ते के समान। अंकेक्षक को अपने नियोक्ता के कर्मचारियों पर विश्वास करना चाहिए जब तक कि कोई ऐसी परिस्थिति, घटना या स्थिति उत्पन्न न हो जिसके कारण उसके विश्वास करने का भ्रम टूट न जाए।

(4) कार्य में सावधानी (Careful in Work)—जिस प्रकार एक रखवाली करने वाला कुत्ता अपने मालिक के प्रति सावधानी एवं चतुराई से मालिक की रखवाली करता है एवं दिन-रात वह जरा सी आहट पाते ही चौकन्ना हो जाता है और मालिक को आने वाली विपत्ति से सचेत कराता है। इसी प्रकार एक अंकेक्षक को अपने कार्य के प्रति चौकस रहना चाहिए और हमेशा कर्मचारियों के कार्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि कर्मचारी कभी भी किसी प्रकार के लालच से प्रेरित होकर उसके नियोक्ता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

(5) विश्वास करना (Faith or Belief)—जिस प्रकार रखवाली करने वाले कुत्ते के मालिक को अपने विभिन्न कर्मचारियों पर विश्वास होता है और उन पर पालतू कुत्ता भी विश्वास कर उन पर भौंकता नहीं है ठीक उसी प्रकार अंकेक्षक को भी अपने नियोक्ता के उन कर्मचारियों पर विश्वास करना चाहिए जिनके हाथों पर उसने समस्त व्यवसाय की बागडोर छोड़ रखी है।

(6) शिकारी कुत्ते की प्रकृति का होना (Should not be of nature of Blood Hound)-एक शिकारी कुत्ता प्रत्येक व्यक्ति या वस्तु को अपना शिकार समझता है और सदैव उस पर हमला करने की चेष्टा करता है अर्थात् उसका हमलाकारी स्वभाव होता है। एक अंकेक्षक को इस प्रकार का स्वभाव नहीं रखना चाहिए अर्थात् उसे नियोक्ता के कर्मचारियों पर शंका की दृष्टि से और उन्हें नुकसान पहुंचाने का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। यदि कर्मचारी अपने कार्य में अनियमितता बरतते हैं या छल-कपट करते हैं तब उसे शिकारी कुत्ते का स्वभाव अपनाना चाहिए।

(7) अंकेक्षक जासूस नहीं है (An auditor is not Spy)—एक शिकारी कुत्ता प्रायः अपने शिकार को अपनी क्षमता, स्वभाव व कार्यशैली के आधार पर किसी न किसी तरह से पकड़ने में सफल हो ही जाता है परन्तु एक रखवाली करने वाले कुत्ता अपने शिकार को पकड़ भी सकता है और नहीं भी। इसी प्रकार अंकेक्षक छल-कपट को पकड़ भी सकता है और नहीं भी।

(8) सत्यता की गारण्टी (Guarantee of Truth)—एक रखवाली करने वाले कुत्ते से हमेशा यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह चोर को हमेशा पकड ही लेगा। इसी प्रकार अंकेक्षक से सदैव यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह त्रुटियां, छल-कपट करने वाले कर्मचारी को सदैव पकड़ लेगा।

निष्कर्षउपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि एक अंकेक्षक को सदैव रखवाली करने वाले कुत्ते के समान कार्य नहीं करना चाहिए। यदि उसे लेखा-पुस्तकों में छल-कपट या गबन अथवा कई अनियमितताओं का पता लगता है तो उसे शिकारी कुत्ते के रूप में कार्य करना चाहिए। परन्तु प्रत्येक परिस्थिति में शिकारी कुत्ते का रूप धारण नहीं करना चाहिए, आवश्यकता पड़ने पर ही शिकारी कुत्ते के रूप में कार्य करना चाहिए।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 अंकेक्षण का क्या अर्थ है? अंकेक्षण के उद्देश्य एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।

What is meant by Audit? Discuss its objects and limitations.

2. अंकेक्षण की परिभाषा दीजिए तथा इसके उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए। क्या अंकेक्षक त्रुटियों एवं जालसाजी को रोक सकता है?

Define Auditing and discuss the objects of Auditing. Can an auditor prevent errors and fraud? .

3. अंकेक्षण का क्या अर्थ है? इसके उद्देश्य एवं लाभों का वर्णन कीजिए।

What is meant by Audit? Discuss its objects and importance.

4. “अशुद्धियों और कपटों को रोकना अथवा ढूंढ़ना अंकेक्षण के दो मुख्य उद्देश्य हैं।”

“Two main objects of an audit are prevention and detection of errors and frauds. Discuss this statement.

5. अंकेक्षण के उद्देश्यों व लाभों की व्याख्या कीजिए।

Explain the objects and advantages of Auditing.

6. “एक अंकेक्षक रखवाली करने वाला कुत्ता है, न कि शिकारी कुत्ता।” इस कथन की विवेचना कीजिए।

“An Auditor is a watch-dog but not a blood-hound.”‘ Explain this statement.

7. तलपट मिलने के बाद भी लेखा-पुस्तकों में रह जाने वाली अशुद्धियों को बताइए। इन्हें ढूंढ़ने के लिए एक अंकेक्षक को क्या कदम उठाने चाहिए?

Explain the errors which might still exist in a set of books after the trial balance had been agreed. What steps should be taken by an Auditor to locate them?

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8. प्रमुख प्रकार की अशुद्धियों व कपट, जो एक फर्म के खातों का अंकेक्षण करते समय पाये जाते हैं, का विवरण दीजिए। क्या एक अंकेक्षक इन अशुद्धियों व कपटों को रोक सकता है?

Give the main classes of errors and frauds found in auditing a firm’s accounts. Can an Auditor prevent such errors and frauds?

9. “एक अंकेक्षक रखवाली करने वाला कुत्ता है, रक्त पिपासित कत्ता नहीं।” उपर्युक्त कथन के सन्दर्भ में अंकेक्षक के कर्तव्यों एवं दायित्वों का वर्णन कीजिए।

“An Auditor is a watch-dog and not a blood hound.” In the light of the above statement discuss the duties and liabilities of an Auditor.

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10. वित्तीय लेखों में विभिन्न प्रकार से किये जाने वाले कपटों को समझाइए। उन्हें ढूंढ लेने की अंकेक्षण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए तथा उन्हें रोकने के उपाय बताइए।

Explain different types of frauds committed in financial accounts. Describe the audit procedure to detect them and suggest measures to prevent them.

11. मुख्य प्रकार की अशुद्धियों तथा कपटों को समझाइए। क्या अंकेक्षक से इन सब अशुद्धियों व कपटों को ढूंढ़ निकालने की आशा की जा सकती है?

Explain briefly the main classes of errors and frauds. Is the auditor expected to detect all errors and frauds?

12. विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों को बताइए। अशुद्धियों के सम्बन्ध में एक अंकेक्षक के उत्तरदायित्वों को बताइए।

Discuss the different kinds of errors. Explain the responsibilities of an Auditor in connection with errors.

13. विभिन्न प्रकार के कपटों की व्याख्या कीजिए। क्या अंकेक्षक इन कपटों को रोक सकता है ?

Explain the different kinds of frauds. Can the Auditor prevent these frauds?

14. अंकेक्षण क्या है ? इसके प्रमुख लाभों का वर्णन कीजिए।

What is Auditing? Describe its important merits.

15. “एक अंकेक्षक रखवाली करने वाले कुत्ते के समान है, शिकारी कुत्ते के समान नहीं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए कम्पनी अंकेक्षक के कर्तव्य बताइए। ”

An auditor is a watch-dog and not a blood hound.” In the light of this statement discuss the duties of a company auditor.

16. “अशुद्धियों का पता लगाना अंकेक्षण का एक उद्देश्य है।” ऐसी त्रुटियों का वर्गीकरण कीजिए तथा यह बताइए कि अशुद्धियां कैसे उत्पन्न होती हैं और उनका पता कैसे लगाया जाता है? ”

One of the objects of an audit is said to be detection of errors.” Classify such errors and explain how each class of errors may arise and how they can be detected.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 अंकेक्षण नोट-बुक का क्या उद्देश्य है?

2. अंकेक्षण के सिद्धान्त तथा प्रविधि का अन्तर समझाइए।

3. “अंकेक्षण-कार्यक्रम उपयोगी बनाने के लिए लचीला होना चाहिए।” व्याख्या कीजिए।

4. अंकेक्षण कार्यक्रम के उद्देश्य बताइए।

5. गहन जांच किसे कहते हैं?

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. जांच करने की सामान्यतया कितनी विधियां होती हैं?

2. प्रथम अंकेक्षण किसे कहते हैं?

3. बाद के अंकेक्षण किसे कहते हैं?

4. परीक्षण जांच का क्या अर्थ है ?

5. अंकेक्षण नोट-बुक क्या है?

6. परीक्षण जांच के दो लाभ बताइए।

7. अंकेक्षण के काम-काज से सम्बन्धित कागजातों में से दो का नाम लिखिए।

8. चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट के पास प्रशिक्षण हेतु जो सहायक होते हैं उनका नाम लिखिए।

9. अंकेक्षण आरम्भ करने से पूर्व अंकेक्षक द्वारा नियोक्ता को दिए जाने वाले चार निर्देशों को बताइए।

10. नैत्यक जांच में चिह्नों का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?

11. परीक्षण जांच के सम्बन्ध में अंकेक्षक का दायित्व बताइए।

12. अंकेक्षक को अपने कर्मचारियों में कार्य का वितरण किस प्रकार करना चाहिए?

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chetansati

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