BCom 1st Year Business Economics Law Return Scale Study Material Notes

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BCom 1st Year Business Economics Law Return Scale Study Material Notes

Table of Contents

BCom 1st Year Business Economics Law Return Scale Study Material Notes: Meaning  of Return of Scale Changes in Scale and Changes in Factors of Productions Stages of Returns to Scale Increasing Returns to Scale Main Causes of increasing Returns to Scale Constant Returns to Scale Decreasing Returns to Scale Similarities Economies and Diseconomies of Scale Different Internal and External Economies Theoretical Questions  Short Answer Questions :

Law Return Scale
Law Return Scale

BCom 1st Year Economics Law of Variable Proportions Study Material Notes in Hindi

पैमाने के प्रतिफल का नियम

(Law of Returns to Scale)

पैमाने के प्रतिफल का आशय

(Meaning of Returns to Scale)

पैमाने के प्रतिफल का विचार दीर्घकाल से है। दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। पैमाने के प्रतिफल का आशय उत्पादन में होने वाले उस परिवर्तन से है जो उत्पादन के सब साधनों को एक साथ और एक ही अनुपात में परिवर्तन करके दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकार उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन (अर्थात् उत्पादन के सभी साधनों के समान अनुपात में परिवर्तन) के प्रत्युत्तर में उत्पादन के व्यवहार का अध्ययन ही पैमाने के प्रतिफल का नियम कहलाता है। इसमें प्रविधि (technology) को स्थिर माना जाता है।

Business Economics Law Return

पैमाने में परिवर्तन और साधनों के अनुपात में परिवर्तन

(Changes in Scale and Changes in Factors of Production)

पैमाने के प्रतिफल को सही प्रकार से समझने के लिये ‘पैमाने’ (Scale) और ‘अनुपात’ (Proportions) के बीच अन्तर स्पष्ट करना आवश्यक है। एक या अधिक स्थिर साधनों के साथ परिवर्तनशील साधनों के संयोग को अनुपात कहा जाता है। ‘अनुपात’ का विचार अल्पकालीन है क्योंकि अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि उत्पत्ति के सभी साधनों को बढ़ाना सम्भव नहीं होता। अतः इस काल में केवल परिवर्तनशील साधनों का अधिकाधिक प्रयोग करके उत्पादन बढ़ाया जाता है। अतः स्पष्ट है कि अल्पकाल में फर्म में उत्पत्ति का पैमाना स्थिर रहता है जबकि साधन अनुपात बदला जा सकता है।

‘पैमाने’ की धारणा दीर्घकाल से सम्बन्धित है। इस काल में उत्पादन के साधनों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जाना सम्भव है। उत्पादन के सभी साधनों को एक साथ एक ही अनुपात में बढ़ाया जाना पैमाने का बढ़ाया जाना कहलाता है। दूसरे शब्दों में, साधन-अनुपातों को स्थिर रखते हुए सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि करना पैमाने का प्रतिफल कहलाता है।

पैमाने के प्रतिफल को दीर्घकालीन उत्पादन फलन’ तथा प्रतिफल के नियमों को ‘अल्पकालीन उत्पादन फलन’ कहते हैं।

पैमाने और अनुपात का समोत्पाद वक्र द्वारा प्रदर्शन

पैमानेऔर अनुपात में परिवर्तन के अन्तर को समोत्पाद वक्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। अगले पृष्ठ पर दिये गये चित्र 4.1 में X-अक्ष पर श्रम की मात्रा तथा Y-अक्ष पर पूँजी की मात्रा दर्शायी गई है। Y-अक्ष पर K बिन्दु से X-अक्ष के समानान्तर KK, क्षैतिज रेखा खींची गई है। चित्र में OK पूँजी की स्थिर मात्रा में वृद्धि को दिखाया गया है।

अतः KK, रेखा के सहारे दोनों साधनों के अनुपातों में परिवर्तन होता है। इस रेखा पर जैसे-जैसे बायें से दायें चलते हैं, परिवर्तनशील साधन श्रम का स्थिर साधन पँजी के साथ अनुपात बढ़ता। जाता है। अतः KK, रेखा साधन अनुपातों में परिवर्तन का द्योतक है। इसी तरह Y-अक्ष सहारे खींची गई LL, रेखा भी साधन अनुपातों में परिवर्तन की द्योतक है क्योंकि इस रेखा पर श्रम की मात्रा OL स्थिर रखते हुए पूँजी की मात्रा को बढ़ाया गया है।

पैमाने के प्रतिफल की अवस्थाएँ

(Stages of Returns to Scale)

जब सभी साधनों को समान अनुपात में बढ़ाया जाता है तो प्राप्त प्रतिफल के निम्नलिखित तीन रूप हो सकते हैं :

1 पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल

2. पैमाने का स्थिर प्रतिफल

3. पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल

Business Economics Law Return

पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल

(Increasing Returns to Scale)

उत्पादन के पैमाने के बढ़ाये जाने पर यदि कुल लागत में वृद्धि साधनों में की गयी वृद्धि से अधिक है तो यह पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल कहलायगा। उदाहरण के लिये यदि सभी साधनों में 10% वृद्धि किये जाने पर उत्पादन में 15% वृद्धि हो रही है तो यह पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल कहलायेगा।

पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के प्रमुख कारण

(Main Causes of Increasing Returns to Scale)

(अ) तकनीकी और प्रबन्धकीय अविभाज्यता (Technical and Managerial Indivisibility) : उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त उत्पत्ति के कुछ साधन, विशेषतया यांत्रिक साज-सामान और प्रबन्धकीय चातुर्य एक निश्चित आकार में उपलब्ध होते हैं। इनको छोटे-छोटे । भागों में विभाजित करके प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। उदाहरण के लिये आधा टरबाइन या आधा टेक्टर या आधा उत्पादन प्रबन्धक नहीं प्राप्त किये जा सकते। अतः उत्पादन प्रक्रिया के प्रारम्भ में इन्हें एक न्यूनतम मात्रा में खरीदना आवश्यक होता है, चाहे इनकी क्षमता का उपयोग न किया जा सके। अतः उत्पादन के आकार के बढ़ने पर इनका पूरा-पूरा उपयोग होने लगता है और इनकी प्रति उत्पादित इकाई लागत कम होती जाती है।

(ब) उच्च कोटि का विशिष्टीकरण (Higher Degree of Specialisation) : उत्पादन साकार के बढ़ने के साथ-साथ श्रम और मशीनरी का उच्च कोटि का विशिष्टीकरण होने पैमाने के प्रतिफल का नियम लगता है। इससे साधनों की प्रति इकाई उत्पादकता बढ़ती है और पैमाने का बढ़ता प्रतिफल लागू हो जाता है।

() परिमाणसम्बन्धी सम्बन्ध (Dimensional Relations) : प्रो० बॉमौल के अनुसार पैमाने के बढ़ते प्रतिफल का प्रमुख कारण परिमाणात्मक सम्बन्ध है। जब श्रम और पूँजी की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं तो प्रारम्भ में इनकी वृद्धि से अधिक अनुपात में लाभ प्राप्त होता है क्योंकि निक्रियता (idleness) समाप्त होती जाती है और उत्पादकता में निरन्तर वृद्धि होती है।

() उत्पादन मितव्ययिताएँ (Production Economies) : बड़े पैमाने के उत्पादन पर अनेक आन्तरिक और बाह्य बचतें प्राप्त होती हैं। इससे प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती है।

पैमाने का स्थिर प्रतिफल (Constant Returns to Scale)

उत्पादन के सभी साधनों के बढाने पर उत्पादन में भी उसी अनपात में वद्धि होती है तो उसे पैमाने का स्थिर प्रतिफल कहते हैं। उदाहरण के लिये यदि सभी साधनों में 10% वृद्धि किये जाने पर उत्पादन में भी 10% वृद्धि हो रही है तो यह पैमाने का स्थिर प्रतिफल कहलायेगा। इसका कारण बड़े पैमाने की बचतों की सीमा आ जाना, उत्पादन के साधनों की विभाज्यता तथा पूँजी-श्रम का स्थिर अनुपात में प्रयोग है।

पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल

(Decreasing Returns to Scale)

यदि उत्पादन के सभी साधनों के बढ़ाने पर उत्पादन में उससे कम अनुपात में वृद्धि होती है तो उसे पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल कहते हैं। उदाहरण के लिये यदि सभी साधनों में 10% वृद्धि किये जाने पर उत्पादन में 5% वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल कहेंगे। इसके प्रमुख कारण यांत्रिक और प्रबन्धकीय अमितव्ययितायें तथा प्राकृतिक संसाधनों की कमी हैं।

पैमाने के प्रतिफल के नियम की उपर्युक्त तीनों अवस्थाओं को निम्नलिखित चित्र 4.2 से प्रदर्शित किया गया है :

Business Economics Law Return

पैमाने के प्रतिफल के नियम की तीन अवस्थायें

पैमाने का प्रतिफल और समोत्पाद रेखायें

(Scale to Returns and Isoquants).

पैमाने के प्रतिफल की अवस्थाओं को समोत्पाद रेखाओं के द्वारा भी दशाया जाता है।

(1) पैमाने का बढ़ते हुए प्रतिफल (Increasing Returns to Scale) : इसके अन्तर्गत सभी साथनों के एक साथ बढ़ाये जाने पर उत्पादन में अधिक अनुपात से वृद्धि होती है। दूसरे रूप में हम यह भी कह सकते हैं कि बढ़ते हुए प्रतिफल के अन्तर्गत उत्पादन में एक समान वृद्धि प्राप्त करने के लिये साधनों की उत्तरोत्तर कम मात्रा की आवश्यकता होती है।

में IQ.. IQ, IQ, और IQ, चार समोत्पाद वक्र हैं जो क्रमश: 100, 200, 300 तथा 400 इकाइयों के बराबर उत्पादन दशति है। ये वक्र उत्पादन में एक समान वृद्धि अर्थात् 100 इकाइयों के बराबर वृद्धि चता रहे हैं। चित्र में OS रेखा पैमाने की रेखा है जिसे समोत्पाद रेखाएं छोटे-छोटे AB, BC तथा CD टुकड़ों (segments) में बाँटती हैं। ये टुकड़े श्रम और पूँजी की घटती हुई मात्रा को बताते हैं अर्थात् AB> BC> CD है। इन घटते हुए ट्रकड़ों का अभिप्राय यह है कि श्रम और पूंजी की कम मात्राओं के प्रयोग से एक समान वृद्धि (अर्थात 100 इकाइयों के बराबर वृद्धि) प्राप्त हो रही है। दूसरे शब्दों में, जिस अनुपात में श्रम और पुँजी की इकाइयों को बढ़ाया जा रहा है, उससे अधिक अनुपात में उत्पादन प्राप्त हो रहा है। यही पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था है।

(2) पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल (Diminishing Returns to Scale): इस अवस्था में उत्पादन में वृद्धि का अनुपात सभी साधनों में वृद्धि से कम होता है। दूसरे शब्दों में, इसके अन्तर्गत उत्पादन में एक समान वृद्धि प्राप्त करने के लिये साधनों की मात्रा में क्रमशः अधिकाथिक वृद्धि की आवश्यकता होती है। चित्र 4.4 में 05 पैमाना रेखा है जिसे AB, BC और CD टकड़ों में बाँटा गया है। चित्र में प्रत्येक टुकड़े की लम्बाई बढ़ती जाती है अर्थात इन बढ़ते हुए टुकड़ों का अभिप्राय यह है कि और और पैंजी की अधिकाधिक मात्राओं के प्रयोग से एक समान (100 इकाइयों के बराबर) उत्पादन प्राप्त रहा है। यहा पमान के घटत हुए प्रतिफल की अवस्था कहलाती है।

(3) पैमाने के बदलते प्रतिफल (Varying Returns to Scale) पैमाने के प्रतिफल की उपर्युक्त तीनों अवस्थाओं के विवेचन से यह समझना भूल होगा कि पृथक-पृथक उत्पादन फलन पैमाने के प्रतिफल की पथक-पृथक अवस्थाओं को बतलात है। वस्तुतः एक ही उत्पादन फलन पैमाने के प्रतिफल की तीनों अवस्थाओं को बताता है। सपा को बताता है। सर्वप्रथम ‘पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल’ की अवस्था प्राप्त होती है, तत्पश्चात् ‘पैमान का अवस्था और अन्त में ‘पैमाने के घटते हए प्रतिफल’ की अवस्था प्राप्त होती है। अतः एका फर्म के अन्तर्गत उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर ये तीनों ही अवस्थायें देखने को मिलती हैं। इसे चित्र 4.6 में दर्शाया गया है।

पैमाने के बदलते प्रतिफल इस चित्र में IQ1, IQ2, IQ3, IQA, IQ5, IQs और IQ, समोत्पाद वक्र हैं। प्रत्येक समोत्पाद वक्र पर उत्पादन की समान इकाइयाँ (अर्थात् 100 इकाइयाँ) बढ़ रही हैं। OS पैमाने की रेखा को विभिन्न समोत्पाद वक्र अनेक छोटे-छोटे भागों में बाँट रहे हैं। OS रेखा के प्रारम्भ में OA, AB तथा BC भाग एक दूसरे से क्रमशः छोटे, इसके पश्चात BC, CD तथा EF भाग एक दूसरे के समान तथा इसके बाद EF, FG भाग क्रमशः बढ़ते हुए हैं। अर्थात OA > AB> BC = CD = DE <EF < FG| अतः स्पष्ट है कि प्रारम्भ में उत्पादन की एक निश्चित मात्रा (100 इकाइया) के उत्पादन के लिये साधन की कम मात्रा का प्रयोग किया जाता है

एक सीमा के बाद (चित्र में C बिन्दु के बाद) उतनी ही मात्रा का उत्पादन प्राप्त करने के लिये साधन की समान मात्रायें लगाई जा रही हैं और अन्त में (F बिन्द के बाद) उत्पादन की प्रत्येक निश्चित समान मात्रा के लिये क्रमशः साधनों की अधिकाधिक मात्राओं का प्रयोग करना होता है। अतः स्पष्ट है कि एक ही उत्पादन फलन पर पैमाने की तीनों अवस्थायें लाग होती हैं। प्रारम्भ में पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल, फिर पैमाने के स्थिर प्रतिफल और अन्त में पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की अवस्था लागू होती है।

Business Economics Law Return

एक साधन का प्रतिफल तथा पैमाने का प्रतिफल में समानताएँ और असमानताएँ

(Similarities and Dissimilarities between Returns to a Factor and Returns to Scale)

एक परिवर्ती साधन का प्रतिफल और पैमाने का प्रतिफल उत्पादन के दो महत्वपूर्ण नियम हैं। दोनों नियमों में निम्नलिखित समानताएँ व असमानतायें हैं :

समानताएँ (Similarities)

(1) दोनों ही नियम आदाओं (inputs) और प्रदाओं (output) के बीच सम्बन्धों का परीक्षण करते हैं।

(2) दोनों ही नियम (i) स्थिर प्रविधि (ii) समरूप साधन इकाइयाँ (iii) भौतिक इकाइयों में उत्पादन और (iv) स्थिर साधन मूल्यों की मान्यता को लेकर चलते हैं।

(3) दोनों ही नियमों के अन्तर्गत उत्पादन का व्यवहार तीन अवस्थाओं में अध्ययन किया जाता है। परिवर्तनशील अनुपातों के नियम के अन्तर्गत इन्हें (i) वृद्धिशील प्रतिफल की अवस्था (ii) घटते प्रतिफल की अवस्था (iii) ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था कहते हैं जबकि पैमाने के प्रतिफल के अन्तर्गत इन्हें (i) पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था (ii) पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था और (iii) पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था कहते हैं।

असमानतायें (Dissimilarities)

(1) एक साधन के प्रतिफल में उत्पादन का एक साधन परिवर्तित होता है तथा अन्य सभी साधन स्थिर रहते हैं जिससे विभिन्न साधनों के बीच अनुपात परिवर्तित हो जाता है जबकि पैमाने के प्रतिफल के अन्तर्गत सभी साधन परिवर्तित होते हैं, अतः सभी साधनों के बीच अनुपात स्थिर या अपरिवर्तित रहता है।

(2) एक साधन का प्रतिफल अल्पकाल में लागू होता है जबकि पैमाने का प्रतिफल केवल दीर्घकाल में ही लागू होता है क्योंकि इस काल में उत्पत्ति के सभी साधन परिवर्तनीय होते हैं।

(3) यदि उत्पादन के लिये सभी साधन एक स्थिर अनुपात में प्रयोग किये जाते हैं तो साधन के प्रतिफल का नियम नहीं लागू होता है जबकि इस स्थिति में पैमाने का प्रतिफल लागू होता है।

(4) साधन के बढ़ते प्रतिफल के नियम का कारण साधनों की अविभाज्यता और श्रम का विशिष्टीकरण है तथा साधन के घटते प्रतिफल का कारण साधनों का अनुकूलतम अनुपात में प्रयोग न करना और साधनों के प्रतिस्थापन की अपूर्ण लोच है जबकि पैमाने के बढ़ते प्रतिफल का कारण पैमाने की बचतें हैं तथा पैमाने के घटते प्रतिफल का कारण पैमाने की अमितव्ययितायें हैं।

पैमाने की मितव्ययिताएँ और अमितव्ययिताएँ

(Economies and Diseconomies of Scale)

() बड़े पैमाने की मितव्ययिताएँ या बचतें (Economies of Large Scale) आजकल बड़े पैमाने के उत्पादन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इसका प्रमुख कारण बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतें हैं। ऐसी बचतें जो कि किसी फर्म को उसके उत्पादन के आकार में वृद्धि के कारण अथवा उस उद्योग विशेष में फर्मों की संख्या बढ़ जाने के कारण प्राप्त होती। हैं, उन्हें पैमाने की बचतें कहते हैं। ये बचतें दो प्रकार की होती हैं :

(I) आन्तरिक बचतें (Internal Economies) : मार्शल के अनसार, “आन्तरिक बचत वे होती हैं जो किसी एक फर्म को उसकी आन्तरिक कशलता तथा व्यवस्था आदि का श्रष्ठता। के कारण प्राप्त होती हैं। इस प्रकार ये बचतें _ किसी इकाई की आन्तरिक व्यवस्था का अच्छा होने के कारण प्राप्त होती हैं। (2) केवल किसी इकाई विशेष को ही प्राप्त होता है,

उद्योग की समस्त इकाइयों को नहीं। (3) ये बचतें फर्म के उत्पादन के पैमाने में वृद्धि का परिणाम होती हैं तथा प्रत्येक फर्म के लिये उसके आकार के अनुसार भिन्न होती हैं। (4) ये एक फर्म द्वारा किये गये किसी प्रकार के आविष्कारों का परिणाम नहीं होतीं वरन् ये तो उत्पादन की पूर्व प्रचलित विधियों का परिणाम होती हैं जिनको एक छोटी फर्म प्रयोग में लाकर लाभ नहीं उठा सकती।

किसी फर्म को आन्तरिक बचतें प्राप्त होने के निम्न दो कारण होते हैं :

(1) साधनों की अविभाज्यता (Indivisibility of Factors) : इसकी आशय किसी साधन की उस निम्नतम सीमा या आकार से होता है जिसके नीचे उसे उत्पादन के आकार के आधार पर उप-विभाजित नहीं किया जा सकता। मशीन, प्रबन्धक, विपणन, वित्त और अनुसंधान में ‘अविभाज्यता का तत्व’ होता है। फर्म के आकार में वृद्धि से इनका पूरा-पूरा उपयोग होने लगता है। यही कारण है कि एक बड़ी

फर्म छोटी फर्म की तुलना अधिक लाभ की स्थिति में होती है। (2) विशिष्टीकरण (Specialisation) : फर्म के आकार में वृद्धि हो जाने पर (i)

प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्ट कार्य ही करता है, (ii) अविशिष्ट साधनों के स्थान पर . विशिष्ट साधनों का प्रयोग किया जाता है तथा (iii) उत्पादन की प्रत्येक उप-क्रिया को अलग-अलग फर्मे करती हैं। इस विशिष्टीकरण से उत्पादकता बढ़ती है तथा वस्तु की प्रति इकाई लागत घटती है।

(II) बाह्य बचतें (External Economies): ये वे बचतें होती हैं जो f के विकास के कारण उस उद्योग की सभी फर्मों को समान रूप से प्राप्त होती हैं। प्रो० चैपमैन के शब्दों में, “बाह्य बचतें वे होती हैं जिनमें उद्योग विशेष के सभी व्यावसायियों का भाग होता है।” इन बचतों के दो कारण होते हैं-

(1) उद्योग विशेष का स्थानीयकरण और

(2) एक स्थान पर केन्द्रित फर्मों द्वारा विशिष्टीकरण को अपनाना।

आन्तरिक और बाह्य बचतों में अन्तर

(Difference between Internal and External Economies)

(1) आन्तरिक बचतें किसी फर्म विशेष के आकार पर निर्भर करती हैं जबकि बाह्य बचतें उद्योग के आकार व उद्योग के स्थानीयकरण पर निर्भर करती हैं।

(2) आन्तरिक बचतें किसी फर्म विशेष को प्राप्त होती हैं जबकि बाह्य बचतें उद्योग की समस्त फर्मों को प्राप्त होती हैं।

(3) आन्तरिक बचतें प्रत्येक फर्म के लिये उसके आकार के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं जबकि बाह्य बचतें सभी फर्मों को समान रूप से प्राप्त होती हैं।

(4) आन्तरिक बचतों का प्रमुख कारण उत्पत्ति के साधनों की अविभाज्यता है जबकि बाह्य बचतों का प्रमुख कारण उद्योग विशेष का स्थानीयकरण है।

किन्तु यह ध्यान रहे कि इन दोनों प्रकार की बचतों के बीच अन्तर की कोई स्पष्ट या निश्चित रेखा नहीं खींची जा सकती। यह सम्भव है कि एक स्थिति में जो बचतें आन्तरिक हैं, दसरी स्थिति में वे बाह्य हो जायें। उदाहरण के लिये, किसी क्षेत्र की चीनी मिलों के शीरे का उपयोग करने के लिये यदि कोई एल्कोहल प्लाण्ट लग जाता है तो यह उद्योग की बाह्य बचत लेकिन यदि एक बडी चीनी मिल अपने शीरे के सदुपयोग के लिये अपना एल्कोहल प्लाण्ट लगाती है तो यह फर्म की आन्तरिक बचत कहलायेगी। इसके अतिरिक्त, जैसा कि प्रो० कान्ह ने बतलाया है कि आन्तरिक और बाह्य बचतो का भेद केवल व्यक्तिगत फर्मों के लिये है। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिये सभी प्रकार की बचतें आन्तरिक ही होती हैं।

विभिन्न आन्तरिक और बाह्य बचतें

(Different Internal and External Economies)

(1) आन्तरिक बचतें (Internal Economies) : प्रो० रोबिन्सन ने इन बचतों को निम्न पाँच भागों में बाँटा है : (1) तकनीकी बचतें (Technical Economies) : एक बड़े आकार की फर्म (i) उत्पादन की महँगी किन्त श्रेष्ठ तकनीकी का प्रयोग करके, (ii) बड़ी और स्वचालित मशीनों का प्रयोग करके, (iii) सह-प्रक्रियाओं को फर्म के अन्तर्गत ही पूरा करके (जैसे एक कपड़ा मिल रुई ओटने तथा कताई के कारखाने लगा सकती है, एक चीनी मिल कच्चे माल की पूर्ति नियमित बनाने के लिये अपना गन्ने का फार्म चला सकती है, एक वनस्पति घी बनाने वाली फैक्ट्री अपने अवशिष्ट पदार्थ के सदुपयोग के लिये साबुन बनाने की फैक्ट्री लगा सकती है तथा अपने लिये पैकिंग-सामग्री की व्यवस्था के लिये पीपे व डिब्बे बनाने का कारखाना लगा सकती है आदि) तथा (iv) विशिष्टीकरण और श्रम विभाजन अपनाकर उत्पादन-लागत में कमी ला सकती है।

(2) प्रबन्धकीय बचतें (Managerial Economies) : एक बड़ी फर्म में (i) सर्वोच्च

प्रबन्ध नैत्यिक क्रियाओं तथा छोटी-छोटी बातों को अपने अधीनस्थों को सौंपकर अपना ध्यान फर्म की अधिक महत्वपूर्ण बातों तथा समस्याओं में लगा सकता है, (ii) कार्यात्मक विशिष्टीकरण (अर्थात् प्रत्येक कार्य के लिये एक अलग विभाग खोलना) अपनाया जा सकता है तथा प्रत्येक क्रिया के लिये विशेषज्ञ नियुक्त किये जा सकते हैं, (iii) प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यतानुसार उचित कार्य दिया जा सकता है, तथा (iv) प्रबन्धकीय कार्य में यन्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है। इन बातों से फर्म की कुशलता बढ़ती है तथा उत्पादन लागत घटती है। इसके अतिरिक्त प्रबन्ध-व्यवस्था पर किये गये बड़ी मात्रा में व्यय को यदि उत्पादित वस्तुओं पर फैला कर गणना की जाय तो वास्तव में एक बड़ी फर्म में ऊपरी व्यय की प्रति इकाई लागत बहुत कम आती है।

(3) वाणिज्यिक और विपणन बचतें (Commercial and Marketing Economies) : बड़ी फर्म की श्रेष्ठ संगठन कुशलता तथा अधिक मोल-भाव की शक्ति के कारण क्रय और विक्रय दोनों में बचत होती है। एक बड़ी फर्म में क्रय विशेषज्ञों द्वारा तथा बड़ी मात्रा में भूमि, कच्चा माल, ईंधन, बिजली तथा मशीनें वऔजार क्रय करने के कारण कम कीमत पर श्रेष्ठ माल प्राप्त होता है, माल की सुपुर्दगी शीघ्र तथा नियमित रहती है तथा यातायात सुविधाएँ रियायती दरों पर प्राप्त होती हैं। इसी तरह विपणन के क्षेत्र में एक बड़ी फर्म विक्रय विशेषज्ञ नियुक्त कर सकती है, सस्ते दर पर यातायात सुविधायें प्राप्त कर सकती है, अपने निजी यातायात वाहनों का प्रयोग कर सकती है, विज्ञापन व प्रचार की आधुनिकतम युक्तियों का प्रयोग कर सकती है, ग्राहकों को माल की मरम्मत और वापसी की सुविधा दे सकती है। इन सब पर अधिक व्यय के बावजद एक बड़ी फर्म का प्रति इकाई व्यय छोटी फर्मों से कम पड़ता है।

(4) वित्तीय बचतें (Financial Economies): एक बड़ी फर्म की ख्याति अधिक के कारण उसे आवश्यकतानुसार सरल शर्तों पर पंजी व साख सुविधा प्राप्त हो जाती हैं। एक बड़ी फर्म की स्पर्धात्मक शक्ति भी अधिक होती है।

(5) जोखिम उठाने की बचतें (Risk Bearing Economies) : एक बड़ी फर्म (1) उत्पादन के विविधीकरण, (ii) बाजारों के विविधीकरण, तथा (iii) कच्चे माल के स्रोतों के विविधीकरण के कारण अपने जोखिम को फैला सकती है, अर्थात् वह एक वस्तु या एक स्थान पर माँग की कमी की हानि को दूसरी वस्तु या दूसरे स्थान पर माँग में वृद्धि के लाभों से पूरा कर लेती है। इस प्रकार एक बड़ी फर्म में छोटी फर्म की तुलना कम जोखिम रहती है।

अन्य आन्तरिक बचतें :

(6) विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन (Specialization and Division of Labour) : उत्पादन के पैमाने के विस्तार से उच्च कोटि का विशिष्टीकरण और श्रम विभाजन सम्भव होता है। इससे कर्मचारियों की कुशलता और निपुणता में सुधार आता है तथा निष्क्रिय कार्य समय में कमी आती है क्योंकि इससे कर्मचारियों को एक कार्य से दूसरे कार्य पर जाने और अपने औजार बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। इससे प्रति इकाई श्रम लागत में कमी आती है।

(7) उत्पादन बचत (Production Economies): एक बडी फर्म अपनी व्यर्थ सामग्रीव अवशिष्ट का प्रयोग किसी उपोत्पाद उद्योग के विकसित करने में लगा सकती है। उदाहरण के लिये एक बड़ी चीनी मिल गन्ने की खोई का प्रयोग कागज बनाने के लिये कर सकती है तथा अपने शीरा के प्रयोग के लिये शराब की भट्टी लगा सकती है। एक बड़ी फर्म अपनी मशीनों के अनुरक्षण व मरम्मत का कार्य अपने यहाँ ही करा सकती है, फालतू पूों का स्टॉक रख सकती है तथा सामग्री व तैयार माल का यथोचित स्टॉक बनाये रख सकती है।

(8) कर्मचारी कल्याण योजनाओं में बचत (Economies of Employees Welfare Scheme) : एक बड़ी फर्म अपने कर्मचारियों के मुफ्त या रियायती खाने की व्यवस्था कर सकती है, उनके मनोरंजन, निवास, चिकित्सा, शिक्षा आदि की सविधायें प्रदान कर सकती है तथा महिला श्रमिकों के लिये क्रेच की व्यवस्था भी कर सकती है। इन सुविधाओं से कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा होता है और वे अपनी संस्था के प्रति अधिक वफादार हो जाते हैं।

(II) बाह्य बचतें (External Economies) : ये वे बचतें हैं जो कि उद्योग के आकार के विस्तार के कारण उद्योग की प्रत्येक फर्म को समान रूप से उपलब्ध होती हैं। ये निम्न तीन प्रकार की होती हैं :

(1) केन्द्रीयकरण की बचतें (Economies of Concentration) : किसी उद्योग का किसी स्थान या क्षेत्र विशेष में केन्द्रीयकरण हो जाने पर उस उद्योग को प्रत्येक फर्म को निम्न लाभ प्राप्त होते हैं : (i) कुशल श्रमिक सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं, (ii) परिवहन, संचार, विद्युत शक्ति, बीमा, बैंक व अन्य वित्तीय कम्पनियों की सविधाएँ उचित दर पर प्राप्त होती हैं, (iii) कच्चे माल की पूर्ति के लिये सहायक उद्योग खुल जाते हैं, (iv) उद्योग के अवशिष्ट पदार्थों के सदुपयोग के लिये कारखाने खुल जाते हैं, (V) श्रमिकों के प्रशिक्षण, माल के विक्रय तथा विशेषज्ञ सेवाओं (जैसे मरम्मत कार्य) की उपलब्धि के लिये सामूहिक व्यवस्था की जा सकती उत्पादन के सामूहिक विक्रय व विज्ञापन की व्यवस्था की जा सकती है।

(2) ज्ञान की बचतें (Economies of Information) : उद्योग की सभी फर्मे मिलकर व्यावसायिक व तकनीकी पत्रिकायें प्रकाशित कर सकती हैं तथा शोध व विकास की सामूहिक व्यवस्था की जा सकती है। इसका लाभ उद्योग की सभी फर्मों को प्राप्त होता है।

(3) वियोजन की बचतें (Economies of Disintegration) : किसी उद्योग के पर्याप्त विकसित हो जाने पर यह सम्भव है कि उसकी कुछ प्रक्रियाएँ तोड़कर एक फर्म उसमें विशिष्टीकरण प्राप्त कर ले और उसे अधिक कुशलता से चलाये।

() बड़े पैमाने के उत्पादन की अमितव्ययिताएँ या अपव्यय

(Diseconomies of Large Scale)

उत्पादन के पैमाने के विस्तार से फर्म को अनेक आन्तरिक और बाह्य बचतें प्राप्त होती हैं। किन्तु ये बचतें फर्म के अनुकूलतम स्तर तक विस्तार तक ही प्राप्त होती हैं। इसके बाद भी यदि फर्म का विस्तार किया जाता है तो अनेक अपव्यय बढ़ जाते हैं और फर्म में घटते अनुपात का नियम लाग हो जाता है। ये अपव्यय निम्नलिखित हैं

आन्तरिक अपव्यय (Internal Diseconomies)

(1) प्रबन्धकीय अकुशलता (Managerial Inefficiency) : उत्पादन के अनुकूलतम स्तर से अधिक हो जाने पर प्रबन्धकीय समस्याएँ बढ़ जाती हैं जिससे प्रबन्धकीय कुशलता में ह्रास आ जाता है। विभिन्न क्रियाओं के बीच समन्वय और नियंत्रण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। सर्वोच्च प्रबन्ध द्वारा अपने कार्य भार को हल्का करने के लिये अपने अधिकार और दायित्वों का अन्तरण करना पड़ता है जिससे वह वास्तविक कार्य परिस्थितियों तथा साधारण कर्मचारियों से दूर हो जाता है और उसका पर्यवेक्षण और नियंत्रण ढीला पड़ जाता है। इस सबके कारण पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल लागू हो जाता है।

(2) तकनीकी अपव्यय (Technical Diseconomies) : प्रत्येक संयंत्र की एक अनुकूलतम क्षमता होती है जिस पर वह अधिकतम कुशलता और मितव्ययितापूर्वक कार्य करता है। यदि इस स्तर से अधिक उत्पादन किया जाता है तो अवरक्षण और टूट-फूट के व्यय बढ़ जाते हैं।

(3) वित्तीय अपव्यय (Financial Diseconomies) : एकाधिकार व सम्पत्ति के केन्द्रीकरण को रोकने के लिये सरकार द्वारा बड़े उद्योगों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं जो उनके विकास में बाधा डालते हैं।

(4) जोखिम उठाने के अपव्यय (Risk Bearing Diseconomies) : एक बड़ी फर्म में हड़ताल, तालाबन्दी, छंटनी आदि की जोखिमें अधिक रहती हैं। इसी तरह बड़ी फर्म में उधार ली गई पूँजी की मात्रा भी अधिक होती है जिससे फर्म पर ब्याज का भार अधिक रहता है।

(5) प्राकृतिक साधनों की सीमित उपलब्धता (Limited Availability of Natural Resources) : सीमित प्राकृतिक सम्पदा वाले उद्योगों में (जैसे खनिज के क्षेत्र में) साधनों की मात्रा बढ़ाने पर उत्पादन में अनुपात से कम वृद्धि होती है तथा पैमाने के घटते प्रतिफल का नियम लागू हो जाता है।

Business Economics Law Return

बाह्य अमितव्ययिताएँ

(External Diseconomies)

उद्योग का आकार बहुत अधिक बढ़ जाने पर एक फर्म को निम्नलिखित अमितव्ययिताऔं । का सामना करना पड़ता है :

1 प्रतियोगिता में वृद्धि (Increase in Competition) : उद्योग के आकार के बहुत अधिक बढ़ जाने पर उद्योग की फर्मों के बीच प्रतियोगिता बढ़ जाती है जिससे कच्ची सामग्री और उत्पादन के साधनों के मूल्य बढ़ जाते हैं।

2. केन्द्रीयकरण के दोष (Evils of Concentration) : किसी स्थान विशेष में औद्योगिक इकाइयों के बढ़ जाने पर यातायात व्यवस्था पर दबाव बढ़ जाता है और ट्रैफिक जाम आदि के कारण कच्चे माल और तैयार माल के यातायात में कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं। इसी तरह उद्योगों के केन्द्रीयकरण के द्वारा पर्यावरण, कर्मचारी कल्याण, बिजली-पानी, वित्तीय संस्थाओं आदि से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ बढ़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त श्रमिकों की भीड-भाड तथा मकानों की कमी के कारण गन्दी बस्तियाँ स्थापित हो जाती हैं।

3. वर्गसंघर्ष (Class War) : औद्योगिक केन्द्रों पर श्रमिकों की बहुत बड़ी संख्या हो जाने से वे संगठित हो जाते हैं और मालिक-मजदूरों के बीच सदैव संघर्ष का वातावरण बना रहता है।

4. अति उत्पादन का भय (Fear of Over-Production) : उद्योग के आकार के बढ़ जाने पर वस्तुओं के अति उत्पादन का भय रहता है जिससे आर्थिक मन्दी व बेरोजगारी की समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।

सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 पैमाने के प्रतिफल के नियम को समझाइये। उत्पादन फलन कब पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल दर्शाता है ?

Discuss the law of returns to scale. When does a production function show increasing returns to scale?

2. पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल के नियम को समझाइये। इस नियम के क्रियान्वयन को सीमित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ? उदाहरण दीजिये।

Explain the law of increasing returns to scale. What are the factors that limit the operation of this law ? Give example.

3. पैमाने की मितव्ययितायें’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? ये मितव्ययिताएँ क्यों अमितव्ययिताओं में बदल जाती हैं ?

What do you mean by the term ‘economies of scale’? Why do these economies turn into diseconomies?

4. क्या पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल घटते प्रतिफल के नियम का काट है? समझाइये कि क्या पैमाने का प्रतिफल घटते प्रतिफल के नियम के अनुकूल है ?

Is increasing returns to scale a refutation of the law of diminishing returns? Explain whether returns to scale is compatible with the law of diminishing returns.

5. पैमाने की मितव्ययितायें और अमितव्ययितायें क्या हैं ?

What are the economies and diseconomies to scale?

6. अन्तर बताइये:

(अ) पैमाने की आन्तरिक और बाह्य मितव्ययिताएँ पैमाने के प्रतिफल का नियम

(ब) स्थिर कारक और परिवर्तनशील कारक

(स) पैमाने का प्रतिफल और एक कारक का प्रतिफल

(द) परिवर्तनशील साधन का बढ़ता हुआ प्रतिफल और पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल ।

Distinguish between :

(a) Internal and External Economies of Scale

(b) Fixed Factors and Variable Factors

(c) Returns to Scale and Returns to a Factor

(d) Increasing Returns to a Variable Factor and Increasing Returns to Scale.

7. पैमाने के प्रतिफल के विचार को समझाइये।

Explain the concept of returns to scale.

Business Economics Law Return

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

उत्तर 100 से 120 शब्दों के बीच होना चाहिये।

The answer should be between 100 to 120 words.

1 अनुपात और पैमाने में अन्तर बताइये।।

Differentiate between Ratio and Scale.

2. पैमाने का प्रतिफल और एक साधन का प्रतिफल में अन्तर कीजिये।

Differentiate between returns to scale and returns to a factor.

3. एक साधन के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल में क्या-क्या समानतायें हैं ?

What are the similarities between returns to a factor and returns to scale ?

4. बाह्य और आन्तरिक बचतों में अन्तर कीजिये।

Differentiate between external and internal economies.

5. पैमाने की आन्तरिक अमितव्ययितायें क्या हैं ?

What are internal diseconomies of scale ?

6. तकनीकी बचतें क्या हैं ?

What are technical economies?

7. पैमाने के तीन प्रतिफलों के नाम बताइये।

Name the three returns to scale.

8. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के मुख्य कारण क्या हैं ?

What are the main causes of increasing returns to scale ?

9. समोत्पाद वक्रों की सहायता से पैमाने के तीनों प्रतिफलों का ग्राफ बनाइये।

Draw a graph of the three returns to scale through isoquants.

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Questions)

(अ) एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिये।

Answer in one word or in one line.

1 पैमाने की धारणा अल्पकालीन है या दीर्घकालीन।

Whether the concept of scale is short-run or long-run.

2. साधन-अनुपात का अर्थ बतलाइये।

State the meaning of factor proportion.

3. पैमाने के प्रतिफल का अर्थ बतलाइये।

State the meaning of returns to scale.

4. पैमाने के प्रतिफल की तीन अवस्थाओं के नाम गिनाइये।

Name the three stages of returns to scale.

5. आन्तरिक बचत की परिभाषा दीजिये।

Define internal economies.

6. बाह्य बचत की परिभाषा दीजिये।

Define external economies.

7. साधनों की अविभाज्यता से कौन-सी बचतें उत्पन्न होती हैं ?

Which economies arise due to indivisibility of factors ?

[उत्तरमाला : 1. दीर्घकालीन 7. आन्तरिक बचतें]

बतलाइये कि क्या निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य।

State whether the following statements are True or False.

1 पैमाने के प्रतिफल के नियम आदाओं और प्रदाओं के अल्पकालीन सम्बन्धों को दर्शाते हैं।

Laws of returns to scale show short-run input-output relationships.

2. दीर्घकालीन उत्पादन फलन में साधनों के प्रयोग का पैमाना बदलता है।

In the long-run production function, scale of factors is varied.

3. प्रबन्धकीय और विपणन बचतें दोनों ही आन्तरिक बचते हैं।

Managerial and marketing economies both are internal economies

4. साधनों का प्रतिफल और पैमाना का प्रतिफल एक ही हैं।

Returns to a factor and returns to scale are one and the same.

5. पैमाने के प्रतिफल को दीर्घकालीन उत्पादन फलन कहते हैं।

Returns to scale is known as the logn-run production function.

[उत्तरमाला : सत्य : 2, 3, 5; असत्य : 1, 4.]

() रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

(Fill in the blanks) :

1 पैमाने के प्रतिफल आदाओं और प्रदाओं के बीच …………. सम्बन्ध दर्शाते हैं।

Returns to scale show input-output relationship in the …….

2. पैमाने के प्रतिफल की प्रथम अवस्था …………. कहलाती है।

The first phase of returns to scale is known as

3. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के अन्तर्गत उत्पादन में आनुपातिक वृद्धि ……… साधनों की मात्रा में आनुपातिक वृद्धि से।

In increasing returns to scale proportionate increase in output is … proportionate increase in factor quantity.

4. आन्तरिक और बाह्य बचतों के कारण पैमाने का ………… प्रतिफल उत्पन्न होता है।

Internal and external economies give rise to ………… returns to scale.

5. मूल बिदु से खींची गई कोई भी रेखा केवल ………… को बताती है।

A line drawn from origin indicates only the ……….

[उत्तरमाला : 1. दीर्घकालीन (long-run) 2. पै ।ने का बढ़ता प्रतिफल (increasing returns to scale) 3.>4. बढ़ता (increasing) 5. पैमाना (scale)]|

 () सही उत्तर का चयन करो

(Choose the correct answer) :

1 पैमाने की धारणा है :

(अ) अति अल्पकालीन

(ब) अल्पकालीन

(स) दीर्घकालीन

(द) उपर्युक्त तीनों ही।

The concept of scale is :

(a) Very short period

(b) short-run

(c) long-run

(d) all the above three.

2. साधन-अनुपात की धारणा है :

(अ) अल्पकालीन

(ब) दीर्घकालीन

(स) (अ) और (ब) दोनों

(द) दोनों में से कोई नहीं।

The concept of factor ratio is :

(a) short-run

(b) long-run

(c)(a) and

(b) both

(d) none of the two.

3. मूल-बिन्दु से खींची गई रेखा दर्शाती है :

(अ) पैमाना

(ब) अनुपात

(स) उपर्युक्त दोनों

(द) दोनों में से कोई नहीं।

A line drawn from origin reflects :

(a) scale

(b) proportion

(c) both the above

(d) none of the two.

4. प्रो० बॉमोल के अनुसार पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के लागू होने का प्रमुख कारण है :

(अ) साधनों की विभाज्यता

(ब) परिमाणात्मक सम्बन्ध

(स) श्रम विभाजन

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं।

According to Prof. Baumol the main cause of application of increasing returns to scale is:

(a) divisibility of factors

(b) dimensional relations

(c) division of labor

(d) none of the above.

5. तकनीकी बचत उदाहरण है :

(अ) आन्तरिक बचत का

(ब) बाह्य बचत का (स) दोनों का

(द) दोनों में से किसी का भी नहीं।

Technical economy is an example of:

(a) Internal economies

(b) external economies

(c) both

(d) none

6. आन्तरिक और बाह्य बचतों के कारण उत्पन्न होता है :

(अ) पैमाने का बढ़ता प्रतिफल

(ब) पैमाने का घटता प्रतिफल

(स) पैमाने का स्थिर प्रतिफल।

Which is the result of internal and external economies :

(a) Increasing returns to scale

(b) decreasing returns to scale

(c) constant returns to scale.

[उत्तरमाला : 1. (c) 2. (a) 3. (a) 4. (b) 5. (a) 6. (a)]

Business Economics Law Return

chetansati

Admin

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