BCom 2nd Year Centralization Decentralization Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Centralization Decentralization Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Centralization Decentralization Study Material Notes in Hindi: Centralization of Authority Decentralization of Authority Deference Between Decentralization and Delegation Factors Affecting Decentralization of Authority Advantages of Decentralization Demerits and Difficulties of Decentralization Important Examination Questions Long Answer Question Short Answer Question Objectives Type Questions :

Centralization Decentralization Study Material
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BCom 2nd Year Principles Business Management Authority Responsibility Study Material Notes in Hindi

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण

[Centralizations and Decentralization]

संगठन संरचना का विकास करते समय मुख्य समस्या यह आती है कि किस सीमा तक अधिकारों को अधीनस्थों में विकेन्द्रित और केन्द्रित किया जाये। अधिकार के केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण को इस अध्याय में विचारित किया गया है।

अधिकार का केन्द्रीकरण

(CENTRALISATION OF AUTHORITY)

आशय-अधिकार सत्ता का भारार्पण न करना ही केन्द्रीकरण कहलाता है। जब उपक्रम के उच्च-प्रबन्धकों के द्वारा अधीनस्थों को अधिकार का प्रतिनिधायन/भारार्पण (Delegation) नहीं किया जाता है और अधीनस्थ उच्च-प्रबन्ध के निर्देशानुसार ही पूर्णतया क्रिया सम्पादन करते हैं तो यह अधिकार का केन्द्रीकरण कहलाता है। इसमें उन व्यक्तियों द्वारा निर्णय नहीं लिए जाते हैं जो क्रियान्वयन का काम करते हैं, बल्कि उच्च-प्रबन्ध द्वारा निर्णय लिए जाते हैं। लुइस ए० ऐलन (Louis A. Allen) के अनुसार, “केन्द्रीकरण से आशय है कि किये जाने वाले कार्य के सम्बन्ध में अधिकांश निर्णय उन व्यक्तियों द्वारा नहीं लिए जाते हैं जो कि कार्य कर रहे हैं, अपितु संगठन के उच्चतम बिन्दु पर लिए जाते हैं।” हेनरी फेयोल के शब्दों में, “जो भी कार्य अधीनस्थों की भूमिका को कम करते हैं, वे केन्द्रीकरण में सम्मिलित किये जाते हैं।” हॉज एवं जॉनसन के अनुसार, “केन्द्रीकरण संगठन संरचना का वह प्रारूप है जिसमें नियन्त्रण के क्षेत्र के विस्तार को कम किया जाता है।”

विशेषतायें-केन्द्रीकरण की उक्त विवेचना से निम्नांकित विशेषताएँ प्रकट होती हैं

1 संगठन में लगभग समस्त अधिकार सर्वोच्च प्रबन्ध के हाथों में ही रहते हैं।

2. निर्णयन का कार्य उच्चाधिकारियों के द्वारा किया जाता है।

3. अधीनस्थों का महत्व कम होता है।

4. अधिकार का भारार्पण बहुत ही कम या नहीं के बराबर होता है।

5. अधीनस्थ क्रियान्वयन का कार्य करते हैं।

6. यह व्यक्तिगत व एकाकी नेतृत्व को बढ़ावा देता है।

लाभ एवं महत्त्वकेन्द्रीकरण के प्रमुख लाभ निम्नांकित हैं

1. यह व्यक्तिगत नेतृत्व को सुविधाजनक बनाता है।

2. यह उपक्रम के कार्यों के संचालन के लिए एकरूपता एवं समानता लाता है।

3. निर्णय सम्बन्धी अधिकारों का केन्द्रीकरण होने से आकस्मिक परिस्थितियों में निर्णयन अधिक उपयोगी, शीघ्र एवं लाभप्रद रहता है।

4. इससे सम्पूर्ण संगठन पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने में सुविधा होती है।

5. इससे कार्मिकों की शक्ति का लोचपूर्ण ढंग से उपयोग किया जा सकता है।

6. केन्द्रीकरण के द्वारा स्थायी व्ययों में कमी लायी जा सकती है।

7. उपलब्ध संसाधनों यथा माल, मशीन, मानव आदि का अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है।

8. केन्द्रित व्यवस्था के अन्तर्गत ही विशेषज्ञों की सेवाओं का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सकता है।

9. यह एकीकरण को बढ़ावा देता है।

10. शीर्ष प्रबन्ध सुदृढ़ होने से संगठन की महिमा और व्यक्तित्व निखरता है।

11. केन्द्रीकरण में अधिकार सत्ता की संरचना सरल एवं सुगम होती है।

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दोषविशेषकर जटिल वातावरण में एक बढ़ते हुए संगठन के लिए अधिकार का अत्यधिक केन्द्रीकरण अलाभकारी सिद्ध होता है। अत्यधिक केन्द्रीकरण के दोष अग्रलिखित हैं

1 शीर्ष पर प्रबन्धकीय शक्ति केन्द्रित होने से इसके दुरुपयोग की सम्भावना बढ़ जाती है। यह कहावत कि ‘सत्ता भ्रष्ट करती है, और पूर्ण सत्ता पूरी तरह भ्रष्ट करती है।’ पूरी तरह लागू होने लगती है।

2. अधिकारी और अधीनस्थों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध असौहार्द्रपूर्ण हो जाते हैं और औद्योगिक विवाद बढ़ते हैं।

3. शीर्ष स्तर पर कार्य भार बढ़ने से कार्य कुशलता में कमी आती है। अस्वस्थ, विलम्बित और विकृत निर्णयों की सम्भावना बढ़ती है।

4. इससे नियन्त्रण में शिथिलता आती है।

5. कर्मचारियों का उत्साह, पहलपन, मनोबल आदि शिथिल हो जाता है।

6. कागजी कार्यवाही बढ़ जाती है।

7. यह अप्रजातान्त्रिक है जिससे संगठन में अनावश्यक सख्ती, निरंकुशता और नौकरशाही को बढ़ावा मिलता है।

8. केन्द्रित संरचना में सन्देशवाहन प्रणाली कमजोर पड़ने लगती है।

9. अत्यधिक केन्द्रित संरचना संगठनात्मक संवृद्धि में बाधा डालती है। शीर्ष प्रबन्ध या तो संवृद्धि के वास्तविक अवसरों को समझने में असफल रहता है अथवा उसे प्रबन्धित करने का विश्वास नहीं जुटा पाता है।

उपयुक्ततायह निम्न परिस्थितियों में उपयुक्त कहा जा सकता है

(1) जब संगठन लघु हो। (2) नियन्त्रण का विस्तार संकुचित हो। (3) जब कार्य पुनरावृत्ति वाली प्रकृति का हो। (4) कार्य मानकीकृत हो। (5) सन्देशवाहन की प्रभावी व्यवस्था हो। (6) आकस्मिक परिस्थितियों को नियन्त्रित करना हो। (7) निम्न स्तरीय प्रबन्धकों में कुशलता, निपुणता और मनोबल की कमी हो।

अत्यधिक केन्द्रित संगठनात्मक संरचना का एक प्रतिष्ठित उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका की फोर्ड मोटर कम्पनी का है। हेनरी फोर्ड प्रथम ने 1905 में इस कम्पनी को स्थापित किया। वह प्रबन्धकों पर विश्वास नहीं करते थे और उन्हें मात्र सहयोगियों और सहायकों (Helpers and Assistants) की जरूरत थी। पन्द्रह वर्षों में ही इस कम्पनी ने वृहद् आटोमोबाइल कम्पनी का रूप धारण करके खूब लाभ कमाया, परन्तु 1942 से यह कम्पनी बहुत तेजी से बिखरने लगी और इस विशाल कम्पनी पर फोर्ड का इकलौता नियन्त्रण डमगमाने लगा। 1944 में हेनरी फोर्ड द्वितीय ने इसकी प्रबन्ध शैली में विकेन्द्रीकरण लागू करके कम्पनी को नवजीवन प्रदान किया।

अधिकार का विकेन्द्रीकरण

(DECENTRALISATION OF AUTHORITY)

विकेन्द्रीकरण अधिकार के केन्द्रीकरण की विपरीत स्थिति है। विकेन्द्रीकरण अधिकारों के भारार्पण का ही एक विकसित रूप है। जब उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थों को अधिक मात्रा में अधिकारों का भारार्पण किया जाता है तो वह विकेन्द्रीकरण कहलाता है। अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का जितना अधिक अन्तरण होगा उतना ही विकेन्द्रीकरण की मात्रा अधिक मानी जायेगी। विकेन्द्रीकरण की परिभाषायें (Definitions of Decentralisation)

1 कुण्ट्ज एवं डोनेल के अनुसार–“अधिकार का विकेन्द्रीकरण भारार्पण का प्राथमिक पहलू है और जिस सीमा तक अधिकारों का भारार्पण नहीं किया जाता है वे केन्द्रित हो जाते हैं।

2. ई० एफ० एल० बेच के अनुसार, “विकेन्द्रीकरण भारार्पण के फलस्वरूप मिलने वाला दायित्वों का आकार होता है।”

3. हेनरी फेयोल के अनुसार, “वह प्रत्येक कार्य जिससे अधीनस्थ की भूमिका के महत्व में वृद्धि होता ह, विकेन्द्रीकरण कहलाता है और जिससे उसकी भमिका के महत्व में कमी होती है, केन्द्रीकरण के नाम से जाना जाता है।”

4. कीथ डेविस के अनुसार, “संगठन की छोटी से छोटी इकाई तक, जहाँ तक कि व्यावहारिक हो, सत्ता एवं दायित्व का वितरण विकेन्द्रीकरण कहलाता है।”

5. लुइस ए० ऐलन के अनुसार, “विकेन्द्रीकरण का तात्पर्य समस्त संगठन में, व्यवस्थित ढंग से, निर्णय सम्बन्धी अधिकारों को अधीन व्यक्तियों को सौंपने से है।”2

अतः हम कह सकते हैं कि विकेन्द्रीकरण अधिकारों को सौंपने की एक ऐसा व्यवस्थित विधि है जिसके अन्तर्गत उच्च अधिकारियों द्वारा निम्न-स्तरों के अधीनस्थों को दायित्वों के अनुसार। अधिकार प्रदान किये जाते हैं।

लक्षण

1. यह अधीनस्थों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है।

2. यह संगठन में ऊपर से नीचे तक लाग होने वाली प्रक्रिया होती है।

3. इसमें उत्तरदायित्वों के अनुपात में अधिकारों का भारार्पण किया जाता है।

4. अधिक संख्या में निर्णय प्रबन्ध सोपान के निम्न स्तर पर लिये जाते हैं।

5. यह अधिकार सत्ता का वितरण करती है।

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विकेन्द्रीकरण और प्रतिनिधायन (भारार्पण) में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN DECENTRALISATION AND DELEGATION)

विकेन्द्रीकरण और भारार्पण एक दूसरे के पर्यायवाची नहीं हैं। दोनों में अन्तर मात्रा (Degree) का होता है। विकेन्द्रीकरण को भारार्पण का विकसित, अग्रिम और परिवर्द्धित रूप माना जाता है। भारार्पण में सत्ता और दायित्व एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सौंपे जाते हैं जो विकेन्द्रीकरण की दिशा में उठाया जाने वाला एक कदम होता है, परन्तु याद रहे, कदम उठाना, गन्तव्य स्थान तक पहुँचने का सूचक नहीं हो सकता है। श्री लुइस एक ऐलन के अनुसार, “एक व्यक्ति अपने किसी कार्य को किसी अन्य व्यक्ति को सौंप दे तो भारार्पण की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, किन्तु विकेन्द्रीकरण तभी सम्पूर्ण होता है, जबकि कार्य का समस्त उत्तरदायित्व सभी या अधिकांश उन लोगों को दे दिया जाता है जिनको कि वह विशेष दायित्व सौंपा जाता है।” विकेन्द्रीकरण और भारार्पण के बीच अन्तर को हम सूचीबद्ध रूप में निम्न प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं

1 विकेन्द्रीकरण, भारार्पण का ही परिणाम होता है, कारण नहीं। भारार्पण से विकेन्द्रीकरण को जन्म मिलता है, विकेन्द्रीकरण से भारार्पण को नहीं।

2. भारार्पण दो स्तरों के मध्य अधिकार सुपुर्दगी का नाम है, जबकि सम्पूर्ण संगठन में अधिकार संपर्दगी की क्रिया को विकेन्द्रीकरण कहते हैं।

3. भारार्पण की प्रक्रिया द्वारा विकेन्द्रीकरण को पूरा किया जाता है। प्रभावी भारार्पण के लिए विकेन्द्रीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है। विकेन्द्रीकरण में भारार्पण स्वत: निहित है, अत: विकेन्द्रीकरण भारार्पण की तुलना में अधिक व्यापक है।

4. भारार्पण प्रक्रिया अधिशासी द्वारा निकटतम अधीनस्थ को अधिकार सौंपने के साथ पूरी हो जाती है, परन्तु विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया तब पूरी होती है, जबकि सत्ता का भारार्पण संगठन स्तर पर ऊपर से नीचे तक व्यापक रूप में होता है।

5. भारार्पण में केवल अधीनस्थों को निर्दिष्ट सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करने का अधिकार प्रदान किया जाता है, जबकि विकेन्द्रीकरण में प्रबन्धकीय निर्णय लेने की विकेन्द्रित, नियमित व व्यवस्थित व्यवस्था होती है। विकेन्द्रीकरण की वास्तविक कसौटी यह है कि निम्नस्तरीय प्रबन्धकों का शीर्ष प्रबन्ध के हस्तक्षेप अथवा उनके संघर्ष के बिना निर्णय लेने लोगों से काम करवाने। संसाधनों का आबंटन करने तथा क्रियाओं व घटनाओं पर नियन्त्रण रखने के मामले में पर्याप्त स्वायत्तता है।

विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करने वाले घटक

(FACTORS AFFECTING DECENTRALISATION OF AUTHORITY)

आधिकार के विकेन्द्रीकरण की मात्रा एवं सीमा विभिन्न तत्त्वों पर निर्भर रहती है जिनमें से निम्नांकित मुख्य हैं

1 नीतियों में एकरूपता (Uniformitv in Policies)-यदि उच्चाधिकारी गुण, मूल्य, माल सुपुर्दगी, सेवा आदि सम्बन्धी निर्णयों और नीतियों में एकरूपता के हामी होते हैं तो वे अधिकारों के केन्द्रीकरण पर बल देते हैं। इसके विपरीत, जिन क्षेत्रों में नीतियों में विभिन्नता की गुंजाइश रहती है वहाँ निर्णयन के अधिकार विकेन्द्रित भी किये जाते हैं।

2. उपक्रम का आकार (Size of Enterprise)-एक बड़े उपक्रम में जहाँ कर्मचारियों और विभागों की संख्या अधिक है और समन्वय तथा नियन्त्रण की समस्याएँ विषम हों वहाँ पर पूर्ण केन्द्रीकरण न तो सम्भव है और न ही अपेक्षित। ऐसे उपक्रमों में यदि निर्णय एक केन्द्रीय स्थल या सत्ता से लिए जायेंगे तो देरी. कागजी कार्यवाही में वृद्धि, उच्चाधिकारियों के कार्यभार में अनावश्यक बढ़ोत्तरी और निर्णयों में दोषपर्णता परिलक्षित होती है। उपक्रम के संगठन को छोटी-छोटी इकाइयों, सम्भागों, विभागों और परिक्षेत्रों में विभाजित करके निर्णयन प्रक्रिया को विकेन्द्रित करना ठीक रहता है। छोटी आकार की इकाइयों में ही केन्द्रीकरण सरल व मितव्ययी ढंग से प्रभावी रूप में क्रियान्वित किया जा सकता है।

3.उपक्रम का इतिहास (History of Enterprise)-जब प्रतिष्ठान का विस्तार एक लघु इकाई से धीरे-धीरे बड़ी इकाई के रूप में होता है तो प्रारम्भ में सभी अधिकार संस्थापक स्वामी के पास केन्द्रित होते हैं। जिस गति से व्यापार का विस्तार होता है उस गति से अधिकार का भारार्पण न होने से केन्द्रीकरण हो जाता है। इसके विपरीत, अगर कोई बड़ा प्रतिष्ठान छोटे-छोटे प्रतिष्ठानों के सम्मिश्रण का परिणाम होता है तो सम्मिश्रण के पूर्व के स्वतन्त्र प्रतिष्ठानों के अधिकारी निर्णयन के अभ्यस्त होते हैं और वे बाद में भी अधिकार चाहते हैं अत: विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा मिलता है।

4. उच्चाधिकारियों का स्वभाव (Nature of Top Management)-शीर्ष प्रबन्धकों की व्यक्तिगत मान्यताएँ एवं उनका प्रबन्धकीय दर्शन और विचार अधिकार के विकेन्द्रीकरण की सीमा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। अगर उच्चाधिकारी अपनी आत्म तुष्टि, अहं, पद लोलुपता, अधिकार लिप्सा अथवा अन्य किसी कारण से अधीनस्थों का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं तो अधिकार का केन्द्रीकरण होता है। अगर उच्चाधिकारी जनतान्त्रिक परम्पराओं का विकास, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, पहलपन को प्रोत्साहन, अधीनस्थों का रचनात्मक सहयोग विकसित करने को इच्छुक हों तो प्रतिष्ठान में विकेन्द्रीकरण होता है।

5. बाह्य वातावरण (External Environment)-सरकारी नियन्त्रण, राष्ट्रीय संघवाद, कर नीतियाँ, पड़ोसी और समान प्रतिष्ठानों में विकेन्द्रीकरण की सीमा जैसे बाह्य तत्त्व भी विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करते हैं। अगर मूल्यों का नियमन और निर्धारण सरकार के द्वारा किया जाता है तो बिक्री प्रबन्धक को उन्हें निर्धारित करने की स्वतन्त्रता नहीं जाती है  निर्धारित करने की स्वतन्त्रता नहीं रहती है। सामग्री का क्रय सरकारी वितरण के आधार पर किया जाता हो तो क्रय प्रबन्धक की स्वतन्त्रता में बाधा आती है। प्रबन्धक और श्रम संघ की सामूहिक सौदेबाजी के द्वारा मजदूरी, बोनस, कार्य-घण्टे और श्रम कल्याण नीतियाँ तय होती हैं तो सेविवर्गीय प्रबन्धक के अधिकार का विकेन्द्रीकरण नहीं हो पाता है, परन्तु व्यवहार में बाह्य तत्त्व इतने कठोर नहीं होते हैं कि अधिकारों का विकेन्द्रीकरण न किया जा सके।

6. लागत (Cost)-अधिकारों के विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों में लागत का महत्वपूर्ण स्थान होता है। प्रमुख निर्णयों; जैसे—प्लान्ट का क्रय विनियोग, आदि में बहत अधिक लागत निहित होती है अतः ऐसे निर्णय को उच्च प्रबन्धक अपने हाथ में सुरक्षित रखने।

केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण हेतु केन्द्रीकरण को बढ़ावा देते हैं। नैत्यक निर्णयों की कम लागत को देखते हुए विकेन्द्रीकरण ठीक रहता है।

7. प्रशिक्षित प्रबन्धकों की उपलब्धि (Availability of Trained Managers)-प्राशक्षित, कुशल व निष्ठावान प्रबन्धकों का अभाव संस्था को केन्द्रीकरण की ओर प्रेरित करता है। अधिकारों है कि प्रशिक्षित व अनुभवी प्रबन्धक पर्याप्त मात्रा में संगठन के हर स्तर पर उपलब्ध हों, फिर कुछ शीर्ष प्रबन्धक यह बहाना बना करके कि अच्छ। प्रबन्धकों की कमी है वे अधिकारों का केन्द्रीकरण कर लेते हैं। जबकि विकेन्द्रीकरण तो प्रबन्धकों के प्रशिक्षण व विकास की सफल कुंजी होती है।

8. कम्प्यूटर एवं प्रबन्ध सूचना पद्धति (Computer and MIS)-वर्तमान समय में जिन उपक्रमों में कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है वहाँ केन्द्रित प्रबन्ध सूचना पद्धति को ही प्रोत्साहित किया जाता है। महत्वपूर्ण निर्णय सरलता और शीघ्रता से अधिकार के केन्द्रीकरण से लिए जा सकते हैं। प्राचीन समय में जब सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती थीं तो विकेन्द्रीकरण को अच्छा माना जाता था।

विकेन्द्रीकरण के लाभ

(ADVANTAGES OF DECENTRALISATION)

1 इसमें निर्णयन में सुविधा व सरलता रहती है।

2. इसमें उच्च प्रबन्ध व अधीनस्थों के मध्य अनावश्यक भेदभाव नहीं रहता है।

3. इसमें अनावश्यक लालफीताशाही और राजनीति को निरुत्साहित किया जाता है।

4. प्रबन्ध में अनौपचारिकता और लोकतन्त्र पनपता है।

5. विकेन्द्रीकरण से उच्च प्रबन्ध तथा उसके विभागों के मध्य टकराव की सम्भावना नहीं रहती है।

6. योग्य एवं अनुभवी प्रबन्धकों की कमी नहीं रहती, अपितु वे स्वयं संगठन में उपलब्ध होते रहते हैं।

7. इसमें विभागों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने से उनकी कमजोरियों का तुरन्त ज्ञान हो जाने से सुधारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं।

8. इससे अधीनस्थों में रुचि, मौलिकता, उत्तरदायित्व और मनोबल को बढ़ावा मिलता है।

9. यह अधिकारी प्रशिक्षण और विकास का एक श्रेष्ठ माध्यम है।

10. संस्था में समन्वय, निरीक्षण, नियन्त्रण, उत्पादों की विविधता, शोध, नवीन परिवर्तन आदि को प्रोत्साहन विकेन्द्रीकरण से मिलता है।

11. इससे उच्च अधिकारियों के कार्यभार में कमी और युवा अधिकारियों को प्रेरणा प्राप्त होती है।

विकेन्द्रीकरण के दोष एवं कठिनाइयाँ

(DEMERITS AND DIFFICULTIES OF DECENTRALISATION)

1 विकेन्द्रीकरण की दशा में उचित समन्वय के अभाव के कारण उपक्रम की नीतियों एवं विधियों में विभिन्नता पायी जाती है।

2. प्रबन्ध व्ययों में बढ़ोतरी होती है, क्योंकि विकेन्द्रित इकाइयों में अलग से कर्मचारी सुविधाओं का प्रावधान करना नितान्त आवश्यक हो जाता है।

3. संकटकालीन परिस्थितियों में शीघ्र निर्णयन सम्भव नहीं होता है।

4. विशिष्ट सेवाओं; जैसे-लेखाकार्य और सांख्यिकी विभाग में विकेन्द्रीकरण लागू नहीं किया जा सकता है।

5. विकेन्द्रित इकाइयों और प्रबन्धकों में साम्राज्य निर्माण की भावना पनप सकती है जो समग्र व्यवसाय के उत्थान में बाधक सिद्ध हो सकती है। परिवर्तित परिस्थितियों में समायोजन करना कठिन होता है।

6. दोबारगी और अतिव्यापन (Duplication and Overlapping) की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

7. निम्न स्तर पर भी योग्य कार्यकारी अधिकारियों की नियुक्ति करनी पड़ती है।

8. इससे उच्च प्रबन्धकों की स्थिति और अधिकार सत्ता में कमी आती है तो वे विरोध करते।

अतः अधिकारों का विकेन्द्रीकरण तभी उपयुक्त सिद्ध होता है जहाँ पर कार्य प्रमापित व। पुनरावृत्ति स्वभाव का हो, संगठन विशाल व जटिल हो, प्रबन्धक अनुभवी व कुशल हों, नियन्त्रण का विस्तार व्यापक हो और प्रबन्ध के स्तर कम हो। वास्तव में केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण के अपने-अपने गुण दोष हैं। पूर्णतया किसी को भी लागू नहीं किया जा सकता है। पूर्ण केन्द्रीकरण से सस्था के अधिकार मद्री भर लोगों के हाथों में केन्द्रित हो जाते है, जबकि पूर्ण विकेन्द्रीकरण से। सर्वोच्च सत्ता के पास कुछ भी नहीं बचता है। अत: प्रत्येक संस्था के लिए वही स्थिति उत्तम कही जा सकती है कि बिना बाधा के प्रबन्धकीय कार्य का निष्पादन सम्भव हो सके, भले ही वहाँ अंशतः। केन्द्रीकरण और अंशत: विकेन्द्रीकरण का उपयोग किया जाता हो।

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विकेन्द्रीकरण को प्रभावी बनाने के उपाय

( MEASURES OF MAKING DECENTRALISATION EFFECTIVE)

1 विकेन्द्रीकरण की सफलता का मूल तत्त्व केन्द्रित विकेन्द्रीकरण की नीति है। उपक्रम के विभिन्न कार्यकारी अंगों को एक सूत्र में बाँधने के लिए केन्द्रीय प्रबन्ध का होना आवश्यक है जिससे कि निम्नस्तरीय प्रबन्धक स्वतन्त्र, स्वेच्छाचारी और निरंकुश न हो सकें।

2. मध्य और निम्न स्तरीय प्रबन्धक वास्तव में कुशल, उत्साही और उत्तरदायित्व को अनुभव करने वाले होने चाहिएँ। मात्र जी हजूरी करने वाले व्यक्ति उन पदों पर न बैठाए जाएँ।

3. विभिन्न इकाइयों और सम्भागों में परस्पर प्रतिस्पर्धा स्वस्थ किस्म की विकसित होनी चाहिए।

4. प्रभावशाली संदेशवाहन, समन्वय और नियन्त्रण की व्यवस्था होनी चाहिए।

5. आपस में आदान-प्रदान और सहकारिता की भावना पनपनी चाहिए।

6. एकाकी निर्णय के स्थान पर सामूहिक निर्णयों को श्रेष्ठ मानना चाहिए।

7. सेविवर्गीय नीतियाँ प्रमापित आधार पर होनी चाहिएँ और उनमें समयानुसार संशोधन होते रहना चाहिए।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. अधिकार के केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण से क्या तात्पर्य है ? नीति के रूप में इनके बीच आप चुनाव किस प्रकार करेंगे?

What do you understand by Centralisation and Decentralization of Authority in an organization ? How would you decide to choose between them as a matter of policy

प्रश्न 2. आप, एक प्रबन्धक के रूप में, केन्द्रीयकरण अथवा विकेन्द्रीयकरण में से किसे प्राथमिकता देंगे  कारण सहित समझाइये।

You, as a manager, would prefer centralisation or decentralisation. Explain with reasons.

प्रश्न 3. अधिकार के विकेन्द्रीयकरण की अवधारणा को समझाइये तथा उन घटकों का उल्लेख कीजिये जो एक संगठन में विकेन्द्रीयकरण की सीमा को प्रभावित करते हैं। एक उपयुक्त उदाहरण की सहायता से अधिकार एवं उत्तरदायित्व के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या कीजिये।

Explain the concept of decentralisation of authority and enumerate the factors which influence the limit of decentralisation in an organization. With the help of a suitable example explain the relationship between authority and responsibility.

प्रश्न 4. “अधिकार का प्रत्यावर्तन संगठन की कुंजी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिये और प्रत्यावर्तन के सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइये। प्रत्यावर्तन और विकेन्द्रीयकरण में अन्तर बताइये।

Delegation of authority is the key to organization.” Discuss this statement and | narrate the principles of delegation. Differentiate between delegation of authority and decentralisation.

प्रश्न 5. केन्द्रीयकरण किसे कहते हैं ? केन्द्रीयकरण के लाभ-दोषों का वर्णन कीजिये।

What is meant by centralisation ? Describe the advantages and disadvantages of centralisation.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. किसी संगठन में अधिकारों के विकेन्द्रीयकरण की महत्ता बताइये। विकेन्द्रीयकरण की वृद्धि में सहायक घटक कौन-कौन से हैं ?

Explain the importance of decentralisation of authority in any organization. What are the factors that are helpful in increasing decentralisation ?

प्रश्न 2. “केन्द्रीयकरण और विकेन्द्रीयकरण साथ-साथ चलते हैं।” टिप्पणी कीजिये। ”

Centralisation and Decentralisation go together

प्रश्न 3. केन्द्रीयकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिये।

What is centralisation ?

प्रश्न 4. केन्द्रीयकरण और विकेन्द्रीयकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

Distinguish between centralisation and decentralisation.

प्रश्न 5. अधिकारों के प्रत्यायोजन एवं अधिकारों के विकेन्द्रीयकरण में अन्तर बताइये।

Distinguish between Delegation of Authority and Decentralisation.

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Type Questions)

1 बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं’ या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’ —

(i) केन्द्रीयकरण छोटे आकार वाले उपक्रमों के लिये उपयुक्त है।

Centralization is suitable for small-sized enterprises.

(ii) विकेन्द्रीयकरण प्रजातान्त्रिक है।

Decentralisation is democratic

(iii) विकेन्द्रीयकरण और भारार्पण एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।

Decentralisation and delegation are synonymous.

(iv) विकेन्द्रीयकरण अधीनस्थों की महत्ता में वृद्धि करता है।

Decentralisation increases the significance of subordinates.

उत्तर-(i) सही (ii) सही (iii) गलत (iv) सही

2. सही उत्तर चुनिये (Select the correct answer)

(i) विकेन्द्रीयकरण उपयुक्त है (Decentralisation is suitable for) :

(अ) छोटे आकार वाले उपक्रमों के लिये (For small sized enterprises)

(ब) मध्यम आकार वाले उद्योगों के लिये (For medium sized enterprises),

(स) बड़े आकार वाले उपक्रमों के लिये (For large sized enterprises)

(ii) उच्चतम प्रबन्ध के कार्य-भार में कमी करता है (Workload of top management reduces):

(अ) केन्द्रीयकरण (Centralisation)

(ब) विकेन्द्रीयकरण (Decentralisation)

(स) इनमें से कोई नहीं (None of these)

(iii) सत्ता का विकेन्द्रीयकरण सम्भव है (Decentralisation of authority is possible by):

(अ) समन्वय द्वारा (Co-ordination)

(ब) प्रत्यायोजन द्वारा (Delegation)

(स) अभिप्रेरणा द्वारा (Motivation)

(द) नियन्त्रण द्वारा (Controlling)

उत्तर-(i) (स) (ii) (ब) (iii) (ब)

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chetansati

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