BCom 1st Year Business Lawful Consideration Object Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Lawful Consideration Object Study Material Notes in Hindi

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Lawful Consideration Object
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न्यायोचित प्रतिफल तथा उद्देश्य

(Lawful Consideration and Object)

एक वैध अनुबन्ध के लिए न्यायोचित प्रतिफल एवं उद्देश्य का होना आवश्यक है। बिना प्रतिफल के ठहराव एक व्यर्थ का वचन मात्र अथवा ‘जुए’ का समझौता होता है और किसी प्रकार का वैधानिक दायित्व उत्पन्न नहीं कर सकता है। अत: कुछ अपवादों को छोड़कर प्रतिफल के अभाव में ठहराव व्यर्थ होता है।

प्रतिफल तथा उद्देश्य सापेक्षिक शब्द हैं। यह अनुबन्ध के दो पक्षकारों के दृष्टिकोण से एक ही विषय के दो नाम हैं। अनुबन्ध के दोनों पक्षकार एक दूसरे को ‘पारस्परिक वचन’ प्रदान करते हैं जो वस्तु एक पक्षकार के लिए वचन का प्रतिफल होती है वह दूसरे पक्षकार की दृष्टि से वचन का उद्देश्य होती है।

Business Lawful Consideration Object

प्रतिफल का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Consideration)

-सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रतिफल से आशय उस मूल्य या प्राप्ति से होता है जो वचनदाता के वचन के बदले वचनग्रहीता द्वारा दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह कुछ के बदले कुछ (Something for something) है। जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को कोई वचन देता है तो वह ऐसा उस दूसरे व्यक्ति से कोई ऐसा लाभ (प्रतिफल) प्राप्त करने के लिये करता है जो दूसरा स्वयं देने योग्य है या उसे दिलाने योग्य है।

प्रतिफल के सम्बन्ध में मुख्य परिभाषायें निम्नलिखित हैं

सर फ्रेडरिक पोलाक के अनुसार, “प्रतिफल वह मूल्य है जिसके बदले दूसरे का वचन खरीदा जाता है और इस मूल्य के बदले प्राप्त वचन को प्रवर्तित कराया जा सकता है।”

ब्लेकस्टोन के अनुसार, “प्रतिफल अनुबन्ध करने वाले एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दिया जाने वाला पारितोषिक है।”2

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2(d) के अनुसार, “जब वचनदाता की इच्छा पर वचनग्रहीता ने अथवा अन्य किसी व्यक्ति ने कोई कार्य किया हो या उसके करने से अलग रहा हो, कोई कार्य करता हो या उसके करने से अलग रहता हो अथवा करन या व हो तो ऐसा कार्य करना, अलग रहना या वादा करना उस वचन का प्रतिफल कहलाता है। इस परिभाषा के अनुसार प्रतिफल किसी कार्य को करना या न करना हो सकता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण–1.राजीव अपनी कार संजीव को 50,000 ₹ में बेचने का समझौत करता है। यहाँ पर राजीव के लिये 50,000 ₹ और संजीव के लिये कार प्रतिफल है। यह किसी कार्य को करने का उदाहरण है। 2. सुरेश, महेश के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही न करने का वचन देता है बशर्ते कि महेश उसे 500 ₹ दे। यहाँ पर 500 ₹ कानूनी कार्यवाही न करने के वचन का प्रतिफल है। अतः यह किसी कार्य को न करने का उदाहरण है।

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प्रतिफल के लक्षण, तत्व अथवा वैधानिक नियम

(Characteristics, Elements or Legal Rules as to Consideration)

1 प्रतिफल वचनदाता की इच्छा पर होना चाहिये (Consideration must be at the Desireof the Promisor)- प्रतिफल सम्बन्धी कार्य वचनदाता को इच्छा पर या कहने पर ही किया जाना चाहिये। यदि कोई कार्य वचनदाता की बिना इच्छा से अथवा अन्य किसी व्यक्ति की इच्छा से किया जाता है तो उसे प्रतिफल नहीं माना जायेगा। स्वेच्छा से किये गये कार्यों के लिये कोई भी व्यक्ति मुआवजे या पारिश्रमिक की माँग नहीं कर सकता। उदाहरणार्थ, राजीव की घड़ी खो जाती है और संजीव उसे ढूंढ प्रकाशन लेता है। ऐसी स्थिति में संजीव ने घड़ी ढूँढने का कार्य स्वेच्छा से किया है राजीव के कहने या इच्छा पर नहीं, अत: वह पारिश्रमिक या इनाम माँगने का अधिकारी नहीं होगा।

2. प्रतिफल वचनग्रहीता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिया जा सकता है (Consideration may be from the Promisee or any other Person)- अंग्रेजी राजनियम के अनुसार प्रतिफल के लिये यह आवश्यक है कि वह वचनग्रहीता द्वारा ही दिया जाये, परन्तु भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार प्रतिफल वचनग्रहीता या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भी दिया जा सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि जब किसी अनबन्ध में प्रतिफल विद्यमान हो तो इस बात पर कोई ध्यान नहीं देते कि वह प्रतिफल किसके द्वारा दिया गया है।

इस सम्बन्ध में चिनैय्या बनाम रमैया का केस उल्लेखनीय है। एक व्यक्ति ने अपनी सारी सम्पत्ति अपनी पुत्री (रमैया) के नाम इस शर्त पर हस्तान्तरित कर दी कि पत्री एक निश्चित राशि वार्षिकी (Annuity) के रुप में अपने चाचा (चिनैय्या) को देती रहेगी। पुत्री ने उसी दिन चाचा के साथ समझौता करके वार्षिकी का भुगतान करते रहने का वचन दिया। कुछ समय बाद पुत्री ने अपने वचन का पालन करने से इस आधार पर मना कर दिया कि चाचा की ओर से उसे कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ। न्यायालय ने निर्णय दिया कि यहाँ प्रतिफल अप्रत्यक्ष रुप से प्राप्त हुआ है। चाचा से सीधे नहीं बल्कि उसके भाई (पिता) से सम्पत्ति के रुप में प्रतिफल मिला है, अत: वह वार्षिकी की राशि देने के लिये बाध्य है।

3. प्रतिफल कुछ कार्य करने या करने (विरति) का वचन हो सकता है- प्रतिफल किसी कार्य को करने अथवा न करने का वचन हो सकता है। इस प्रकार प्रतिफल ऋणात्मक (Negative) तथा धनात्मक (Positive) दोनों प्रकार का होता है। धनात्मक प्रतिफल में वचनग्रहीता वचनदाता की इच्छा पर कोई कार्य करता है जबकि ऋणात्मक प्रतिफल में वचनग्रहीता वचनदाता की इच्छा पर किसी कार्य को करने से अलग रहता है या कार्य को स्थगित करता है।

उदाहरण के लिए, भाभामल रुड़ामल का 25,000 ₹ से ऋणी है जिसके भुगतान की तिथि आ गयी है किन्तु भाभामल भुगतान करने में असमर्थ रहता है। रुड़ामल अपने ऋण की वसूली के लिए भाभामल पर वाद प्रस्तुत करने वाला है। भाभामल रुड़ामल से कहते है कि वह उस पर वाद प्रस्तुत न करे, अभी 3.500 ₹ ऋण के ब्याज के ले लीजिए, ऋण मैं एक वर्ष बाद भुगतान कर दूंगा। रुड़ामल सहमत हो जाते हैं। यहाँ रुड़ामल का वाद प्रस्तुत न करना भाभामल के लिए प्रतिफल है। यह प्रतिफल कार्य से विरति है।

4. कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए (There must be some consideration)- वैध अनुबन्ध के लिए कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए। यहाँ ‘कुछ’ शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रतिफल का होना आवश्यक है किन्तु प्रतिफल का पर्याप्त होना आवश्यक नहीं है। प्रतिफल की पर्याप्तता देखने का कर्तव्य प्रस्तावक का है। धारा 25 के अनुसार प्रतिफल का पर्याप्त होना आवश्यक नहीं है किन्तु प्रतिफल का कुछ मूल्य अवश्य होना चाहिए। प्रतिफल वास्तविक होना चाहिए कल्पनिक नहीं।

अतः कोई अनुबन्ध जिसमें वचनदाता की सहमति स्वतन्त्र है, केवल प्रतिफल की अपर्याप्तता के कारण व्यर्थ नहीं हो जाता। हाँ, अगर वचनदाता स्वतन्त्र सहमति के अभाव के आधार पर अनुबन्ध रद्द कराना चाहता है तो यह निर्णय करने के लिये कि सहमति स्वतन्त्र थी या नहीं, प्रतिफल की अपर्याप्तता को न्यायालय ध्यान में रखेगा। उदाहरणार्थ, राजीव अपना मकान जिसका मूल्य ₹ 50,000 है केवल 10,000 ₹ में संजीव को बेच देता है। ऐसी दशा में यद्यपि प्रतिफल कम है परन्तु फिर भी अनुबन्ध वैध माना जायेगा। इसी उदाहरण में यदि राजीव यह कहता है कि मकान को ₹ 10,000 में बेचने की उसकी स्वतन्त्र सहमति नहीं थी तो संजीव को यह सिद्ध करना होगा कि राजीव की सहमति स्वतन्त्र थी अन्यथा न्यायालय प्रतिफल की अपर्याप्तता को राजीव के आरोप के प्रमाण के रुप में मान सकता है।

5. प्रतिफल भूतकालिक, वर्तमान या भावी हो सकता है (Consideration may be Past For Future)- भारतीय अनुबन्ध अधिनियम भूत, वर्तमान तथा भावी तीनों प्रकार के प्रतिफलों को मान्यता प्रदान करता है जबकि इंग्लेण्ड में भूतकालीन प्रतिफल को मान्यता प्रदान नहीं की गई है।

(i) भूतकालिक प्रतिफल-यदि काई पक्षकार वचनदाता द्वारा वचन दिये जाने से पर्व ही उसके । में वैध प्रतिफल दे चुका है तो यह भूतकालिक प्रतिफल कहलायेगा। उदाहरणार्थ, राजीव उसके बच्चों की देखभाल करती है। एक वर्ष पश्चात् राजीव, सुमन की सेवाओं की प्रार्थना पर सुमन उसके बच्चों की देखभाल करती है।

(ii) वर्तमान प्रतिफल-जब प्रतिफल अनुबन्ध करते समय ही दिया जाता है तो उसे वर्तमान प्रतिफल कहते हैं। उदाहरणार्थ, ‘अ’ अपनी कार ‘ब’ को 50,000 ₹ में बेचता है। अनुबन्ध के समय ही ‘अ’ ‘ब’ को कार दे देता है तथा ‘ब’ ‘अ’ को 50,000 ₹ चुका देता है। यह वर्तमान प्रतिफल कहा जायेगा।

(iii) भावी प्रतिफल-जब वचनदाता को अपने वर्तमान वचन के लिये प्रतिफल भविष्य में मिलना हो तो ऐसे प्रतिफल को ‘भावी प्रतिफल’ कहते हैं। उदाहरणार्थ, राजीव संजीव को कुछ माल बेचने का अनुबन्ध करता है। माल की सुपुदगी एवं मूल्य का भुगतान भविष्य में किया जाना है। यहाँ प्रत्येक पक्षकार का वचन दूसरे पक्षकार के वचन का भावी प्रतिफल है।

6. प्रतिफल अवैधानिक नहीं होना चाहिये (Consideration must not be Unlawful)प्रतिफल सदैव वैधानिक ही होना चाहिये क्योंकि अवैधानिक प्रतिफल होने पर ठहराव व्यर्थ माना जाता है। अतः प्रतिफल वैधानिक होना चाहिए।

7. प्रतिफल वास्तविक, निश्चित, स्पष्ट तथा नैतिक होना चाहिये। (Consideration must be Real, Certain, Clear and Moral)- प्रतिफल भ्रमात्मक (Illusory), असम्भव (Impossible),

अनिश्चित (Uncertain), अस्पष्ट (Ambiguous), कपटपूर्ण (Fraudulent), अनैतिक (Immoral) अथवा लोकनीति के विपरीत नहीं होना चाहिये। अत: प्रतिफल का मूल्य स्पष्ट तथा वास्तविक होना चाहिए। यदि प्रतिफल अस्पष्ट, अनिश्चित अथवा छलपूर्ण होगा तो वह वास्तविक प्रतिफल नहीं माना जाएगा।

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अवैधानिक प्रतिफल तथा उद्देश्य

(Unlawful consideration and object)

वैध अनुबन्ध के लिए कुछ प्रतिफल होना ही पर्याप्त नहीं है अपितु प्रतिफल तथा उद्देश्य वैध होना चाहिए। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत निम्नांकित दशाओं में प्रतिफल तथा उद्देश्य अवैध होता है तथा ठहराव व्यर्थ होता है

(i) यदि वह राजनियम द्वारा वर्जित हो-यदि किसी अनुबन्ध का वचन अथवा वचन का प्रतिफल अथवा उद्देश्य कानून द्वारा वर्जित है तो वह अनुबन्ध अवैध होता है। उदाहरणार्थ, यदि कोई अनुबन्ध बिना लाइसेंस के शराब बेचने के लिये किया जाता है तो वह अनुबन्ध अवैध माना जायेगा क्योंकि शराब का व्यवसाय राजनियम द्वारा वर्जित है।

(ii) यदि वह राजनियम के प्रावधानों को निष्फल करता हो- यदि किसी अनबन्ध का प्रतिफल अथवा उद्देश्य ऐसा है कि उसकी अनुमति दिये जाने पर वह किसी अन्य राजनियम की व्यवस्थाओं को निष्फल कर देगा तो ऐसी दशा में प्रतिफल अथवा उद्देश्य अवैधानिक माने जायेंगे। उदाहरणार्थ, ‘अ’ की जमीन मालगुजारी (Land Revenue) न दिये जाने के कारण वैधानिक रुप से नीलाम की जा रही है। परन्तु वैधानिक प्रावधानों के अनुसार, ‘अ’ इस जमीन को स्वयं नहीं खरीद सकता। परन्त ‘अ’ ‘ब’ के। साथ एक गुप्त ठहराव करके ‘ब’ को खरीदार बना देता है और ‘ब’ यह वचन देता है कि वह जितनी कीमत में उस जमीन को खरीदेगा, उसी कीमत पर ‘अ’ को हस्तान्तरित कर देगा। यह अवैध ठहराव माना जायेगा क्योंकि इसको मान लेने से कानून का उद्देश्य ही विफल हो जायेगा।

(iii) यदि वह कपटमय हो- यदि किसी ठहराव का उद्देश्य किसी व्यक्ति को जानबझकर धोखा देना है तो भी वह अवैध माना जायेगा। उदाहरणार्थ, ‘अ’ किसी भूस्वामी का एजेन्ट है। वह अपने स्वामी को बताये बिना ‘ब’ को यह वचन देते हुये कि वह उसके पक्ष में भूमि का पट्टा कर देगा, ‘ब’ से कुछ रुपया ले लेता है। ‘अ’ और ‘ब’ के बीच हुआ यह ठहराव व्यर्थ होगा क्योंकि इसमें ‘अ’ द्वारा तथ्य को छिपाकर अपने स्वामी के विरुद्ध कपटपूर्ण व्यवहार करना निहित है।

(iv) यदि उससे दूसरे व्यक्ति के शरीर अथवा सम्पत्ति को क्षति होती हो- जब किसी ठहराव का प्रतिफल एवं उसका उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष के शरीर को अथवा उसकी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने का है तो ऐसा ठहराव भी व्यर्थ होगा क्योंकि इसके प्रतिफल एवं उद्देश्य अवैधानिक हैं। उदाहरणार्थ, राकेश, अनूप को यह वचन देता है कि यदि वह संजय की पिटाई कर देगा, तो वह (राकेश) उसे (अनूप) को 500₹ देगा। यह अवैध प्रतिफल है क्योंकि इसका उद्देश्य संजय के शरीर को क्षति पहुँचाना है।

 (v) यदि न्यायालय उसको अनैतिक अथवा लोकनीति के विरुद्ध समझता है- यदि ठहराव के उद्देश्य अथवा प्रतिफल को न्यायालय द्वारा अनैतिक अथवा लोकनीति के विरुद्ध समझा जाये तो भी उद्देश्य एवं प्रतिफल अवैध होगा। उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर अपना मकान वेश्यावृत्ति के लिय किराये पर देता है तो वह उसका किराया प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि इस ठहराव का उद्देश्य अनैतिक है।

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प्रतिफल के बिना अनुबन्ध व्यर्थ होता हैनियम के अपवाद

(A Contract without Consideration is Void–Exceptions)

सामान्यतया यह नियम है कि प्रतिफल के बिना अनुबन्ध व्यर्थ होता है अर्थात् उसे न्यायालय द्वारा पूरा नहीं कराया जा सकता है। परन्तु भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 25 में इस नियम के कुछ अपवाद दिये गये हैं जिनके अन्तर्गत प्रतिफल के बिना भी अनुबन्ध वैध माने जाते हैं एवं उन्हें न्यायालय में प्रवर्तित कराया जा सकता है। ये अपवाद निम्नलिखित हैं

1 स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह पर आधारित ठहराव (Agreement Based on Natural Love and Affection)- यदि कोई अनुबन्ध स्वाभाविक (प्राकृतिक), स्नेह एवं प्रेम के कारण निकट सम्बन्धियों के बीच लिखित रुप में किया गया है और सम्बन्धित प्रचलित कानून के अनुसार उसकी रजिस्ट्री हो चुकी है तो ऐसी दशा में विना प्रतिफल के किया गया ठहराव भी वैध अनुबन्ध माना जाता है। उदाहरणार्थ, विजय स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह के कारण अपना मकान अपने पुत्र आशीष को देने का वचन देता है तथा अपने इस वचन को लिखित रुप में प्रमाणित करके रजिस्टर्ड भी करा देता है। यह ठहराव बिना प्रतिफल के भी वैध अनुबन्ध होगा।

2. स्वेच्छा से किये गये कार्यों के लिये क्षतिपूर्ति का वचन (Promise to Compensate for Voluntary Services)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 25(2) के अनुसार यदि अनुबन्ध किसी ऐसे व्यक्ति की पूर्ण या आंशिक क्षतिपूर्ति का वचन है जिसने भूतकाल में स्वेच्छा से वचनदाता के लिये कोई ऐसा कार्य किया है जिसे करने के लिये वचनदाता कानूनी रुप से बाध्य था तो ऐसा अनुबन्ध वैध माना जाता है। उदाहरणार्थ, सुमन स्वेच्छा से विजय के पुत्र का पालन-पोषण करती है। विजय, सुमन द्वारा पालन-पोषण में किये गये व्ययों को चुकाने का वचन देता है। यह अनुबन्ध वैध माना जायेगा क्योंकि सुमन ने स्वेच्छा से ऐसा कार्य किया है जिसे करने के लिये विजय कानूनी रुप से बाध्य था।

3. अवधि वर्जित (कालातीत) ऋण के भुगतान का वचन (Promise to Pay a Time Barred Debt)- जब कोई ऋणी या उसका अधिकृत एजेन्ट किसी अवधि वर्जित (Time Barred) ऋण के पूर्ण अथवा आंशिक भुगतान करने का लिखित एवं हस्ताक्षरयुक्त वचन देता है तो इस प्रकार दिया गया वचन बिना प्रतिफल के भी वैध होता है। कालातीत ऋण के भुगतान का वचन स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिये। कालातीत ऋण से अभिप्राय ऐसे ऋण से है जो लिमिटेशन अधिनियम के अनुसार वसूल न किया जा सकता हो अर्थात् उस ऋण की वसूली के लिये ऋणी के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती हो। भारत में लिमिटेशन अधिनियम के अनुसार भुगतान देय होने की तिथि। से तीन वर्ष व्यतीत हो जाने पर ऋणी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। उदाहरणार्थ, राजीव, संजीव का 1,000 ₹ के लिये ऋणी है और यह ऋण कालातीत हो चुका है। अब राजीव लिखित रुप में हस्ताक्षर करके संजीव को 600 ₹ चुकाने का वचन देता है। इस वचन के लिये यद्यपि कोई प्रतिफल नहीं है फिर भी यह वैध अनुबन्ध माना जायेगा।

4. एजेन्सी का अनुबन्ध (Contracts of Agency)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 185 के अनुसार, एजेन्सी की स्थापना के अनुबन्ध के लिये प्रतिफल का होना अनिवार्य नहीं है। बिना प्रतिफल के भी एजेन्सी की स्थापना का अनुबन्ध वैध होता है।

5.निःशुल्क निक्षेप (Gratuitous Bailment)– नि:शुल्क निक्षेप की दशा में प्रतिफल का होना आवश्यक नहीं है। उदाहरणार्थ, राम अपने 5 लिहाफ श्याम को उसके यहाँ शादी पर प्रयोग के लिये 2 दिन देत निःशल्क देने को सहमत हो जाता है तो यह वैध अनबन्ध माना जायेगा।

6. दान तथा उपहार (Gift and Donation)- साधारणत: दान या उपहार देने के वचन । वैधानिक दायित्व उत्पन्न नहीं करते। अत: दान या उपहार का वचन देने वाले वचनदाता को दिये गये कोपरा करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। कारण स्पष्ट ही है कि वचनदाता को उसके वचन का कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ है। परन्तु जब दान मिल जाने के विश्वास में दान या उपहार का वचनग्रहीता कछ व्यय कर देता है और वचनदाता दान या उपहार देने से बाद में इन्कार कर दे, तो वचनग्रहीता (दान प्राप्त करने वाले) को जो हानि होगी, वचनग्रहीता उतनी रकम का वाद प्रस्तुत करक वचनदाता से ऐसी हानि की क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी होता है। इसके विपरीत यदि दान या उपहार दिया जा चूका हा तो दानदाता यह कहकर कि ‘प्रतिफल नहीं है’ दी गई सम्पत्ति को वापिस नहीं ले सकता।

उदाहरण 1- राजीव कालेज का प्रबन्धक है. कालेज को 5.000₹ दान देने का वचन देता है। यह समझोता राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है।

उदाहरण 2- राजीव कालेज का प्रबन्धक है, कालेज लाइब्रेरी के लिये 50,000₹ का दान देने का वचन दता है। कालिज के प्रधानाचार्य दान प्राप्त होने के विश्वास से लाइब्रेरी बनवाने का कार्य। आरम्भ कर देते हैं। राजीव अपने वचन की पूर्ति के लिये बाध्य है।

उदाहरण 3- राजीव कालेज को 5,000 ₹ दान दे देता है बाद में प्रतिफल के अभाव का तर्क देकर रुपया वापस लेने का अधिकारी नहीं होगा।

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लोक नीति के विरुद्ध ठहराव

(Agreements Against Public Policy)

लोकनीति के विरुद्ध होने का आशय ऐसे ठहरावो से है जिनका उद्देश्य देश या सामान्य जनता के अहित में है। ‘लोक नीति’ शब्द का क्षेत्र बहुत व्यापक है इसमें सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक सभी प्रकार के मामले सम्मिलित किये जाते हैं। भारतीय अनबन्ध अधिनियम में ‘लोक नीति के विरुद्ध’ वाक्यांश की ऐसी कोई व्याख्या नहीं की गयी है कि इसके अन्तर्गत कौन-कौन से मामले आते हैं। वास्तव में ऐसे ठहरावों का वर्गीकरण बहुत कठिन है। सामान्यत: निम्नलिखित ठहराव लोकनीति के विरुद्ध समझे जाते

(1) वादविवाद को अनुचित रुप से बढ़ावा देना (Improper Promotion of Litigation)– जब ठहराव करने वाले पक्षकारों का उद्देश्य मुकदमेबाजी को अनुचित रूप से प्रोत्साहन देना होता है तो ऐसा ठहराव लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होता है। इस सम्बन्ध में दो प्रकार के ठहराव हैं-मेण्टीनेन्स तथा चैम्पर्टी। इनका विस्तृत विवरण निम्नलिखित प्रकार है–

(i) मेण्टीनेन्स (Maintenance) यदि कोई व्यक्ति धन अथवा किसी अन्य प्रकार से किसी ऐसे वाद के भरण पोषण का वचन देता है जिसमें उसका कोई हित नहीं है तो ऐसी दशा में उसका ठहराव ‘मेण्टीनेन्स’ कहलाता है।

(ii) चैम्पर्टी (Champerty)-कोई ऐसा ठहराव जिसके अनुसार एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को उसकी सम्पत्ति वापस कराने में सहायता देता है और उसके बदले में बाद में प्राप्त सम्पत्ति में से हिस्सा लेने का ठहराव करता है तो ऐसे व्यवहारों को चैम्पर्टी कहते हैं।

इंग्लैण्ड में मेण्टीनेन्स तथा चैम्पर्टी सम्बन्धी दोनों ही प्रकार के ठहरावों को व्यर्थ घोषित किया गया है लेकिन भारतवर्ष में ऐसा नहीं है। भारत में ऐसे ठहराव उस समय तक व्यर्थ नहीं होते जब तक कि व्यवहार स्पष्ट रुप से लोक नीति के विरुद्ध एवं अनुचित उद्देश्य से न किया गया हो। इस सम्बन्ध में कुँवर रामलाल बनाम नीलकान्त का विवाद महत्वपूर्ण है। इस वाद में वादी ने उन समस्त व्ययों का पूर्ण भुगतान करने के लिए ठहराव किया था जो प्रतिवादी की सम्पत्ति के लिए वाद चलाने में व्यय होंगे। प्रतिवादी ने इसके प्रतिफल में वाद से प्राप्त होने वाली सम्पत्ति का एक भाग वादी को देने का वचन दिया। इसमें न्यायालय ने निर्णय दिया कि वादी केवल उतना ही धन ब्याज सहित प्राप्त कर सकता है जो उसने उचित रुप से इस वाद में व्यय किया है।

(2) विदेशी शत्रु के साथ व्यापार का ठहराव (Trading with Alien Enemy)- युद्ध के समय विदेशी शत्र के साथ किया गया कोई ठहराव लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण अवैध है। विदेशी । शत्रु से आशय ऐसे देश के रहने वाले व्यक्तियों से है जिस देश के विरुद्ध भारत का युद्ध चल रहा हो या युद्ध की घोषणा कर चुका हो। यदि ठहराव शान्ति के समय किया गया है और बाद में युद्ध हो जाने के कारण उसका निष्पादन अवैध हो जाता है, तो ऐसे में अनुबन्ध का निष्पादन रोक दिया जाता है अथवा समाप्त कर दिया जाता है।

(3) दलाली लेकर विवाह कराने का ठहराव (Marriage Brokerage Contracts)-दलाला। लेकर विवाह कराने का ठहराव लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होते हैं। उदाहरण के लिए यदि अ एक निश्चित धनराशि के बदले में ब की दूसरी शादी कराने का ठहराव करता है तो यह ठहराव व्यर्थ है। इसी प्रकार अवयस्क लड़की के माता-पिता को धन का लालच देकर शादी के लिए तैयार कर लेना भी वैवाहिक दलाली का ही अंग है, अत: व्यर्थ होता है।

(4) सरकारी नौकरी अथवा उपाधि दिलाने का ठहराव (Trafficking in Public offices) –धन लेकर सरकारी नौकरी अथवा उपाधि (Degree) दिलाने का ठहराव भी लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होता है। उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ को ₹ 10,000 लेकर सरकारी नौकरी दिलाने का। वचन देता है। यह ठहराव व्यर्थ है क्योंकि इसका प्रतिफल अवैधानिक है।

(5) दण्डनीय प्रकरण को दबाने का ठहराव (Stiffing of Criminal Prosecution)-किसी दण्डनीय अपराध को दबाने या अपराध को छुपाने का ठहराव भी लोकनीति के विरुद्ध होता है। उदाहरण के लिए ‘अ’ जानता है कि ‘च’ ने ‘स’ की हत्या की है। ‘अ’ 50,000 ₹ के प्रतिफल में ‘ब’ के साथ यह ठहराव करता है कि वह यह तथ्य किसी के समक्ष प्रकट नहीं करेगा, यह ठहराव व्यर्थ है।

(6) न्यायविधि में हस्तक्षेप डालने वाले ठहराव (Agreements Influencing Legal Proceedings)- ऐसे ठहराव जिनका उद्देश्य न्यायाधीशों पर अनुचित प्रभाव डालना होता है लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होता है। जैसे राम 10,000 ₹ एक न्यायधीश को देने का वचन इस शर्त । पर देता है कि न्यायाधीश उसके पक्ष में निर्णय देगा यह ठहराव व्यर्थ होगा।

(7) पैतृक अधिकार में रुकावट डालने वाले ठहराव (Agreements in Restraint of Parental Right)- प्रत्येक माता पिता को अपने बच्चों का लालन-पालन करने का अधिकार होता है। यदि इस अधिकार के विपरीत कोई ठहराव किया जाता है तो वह लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होगा। गिन्दु नारायणीश बनाम श्रीमती एनी बेसेण्ट के विवाद में गिन्दु नारायणीश ने अपने दो अवयस्क पुत्रों के संरक्षण का अधिकार एनी-बेसेण्ट को दिया तथा इस ठहराव को रद्द न करने का वचन भी दिया। गिन्दु द्वारा बच्चों को वापस प्राप्त करने के लिए वाद प्रस्तुत करने पर निर्णय दिया गया कि एनीबेसेण्ट को बच्चे गिन्दु नारायणीश को लौटाने पड़ेंगे।

(8) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में बाधा (Agreement in restraint of Personal Liberties)व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में अनुचित रुप से बाधा पहुँचाने वाला अथवा किसी व्यक्ति को गुलाम बनाने वाला ठहराव लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होगा। रामा शास्त्रीयर बनाम अम्बेला कोटेन के वाद में ऋणी ने ऋण के ब्याज के बदले में बहुत ही कम मजदूरी पर मजदूरी करने का वचन दिया। उसमें न्यायालय ने निर्णय दिया कि उक्त ठहराव ऋणी को गुलाम बनाता है, अत: प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता।

(9) लिमिटेशन अवधि को निष्फल करने वाले ठहराव (Agreement Limiting the Period of Limitation Act)- लिमिटेशन अधिनियम के अनुसार ऋण का भुगतान तीन वर्ष के अन्दर हो जाना चाहिए। अतः इस तीन वर्ष की अवधि को घटा या बढ़ा देना लोकनीति के विरुद्ध माना जायेगा। अत: इस प्रकार भारतीय लिमिटेशन अधिनियम द्वारा निर्धारित अवधि में किसी प्रकार का परिवर्तन करने वाला ठहराव लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होगा।

(10) व्यापारिक एकाधिकार (Trade Monopoly)-कोई भी ऐसा व्यापारिक संयोजन जो कि एकाधिकार स्थापित करने के अभिप्राय से किया गया है और जो जनता के हितों के विरुद्ध हो तो वह लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होगा।

(11) धोखा देने के उद्देश्य से नीलामी बिक्री में बोली लगाने का ठहराव (Agreement restricting a bid in Auction)-किसी पक्षकार को धोखा देने के उद्देश्य से नीलामी बिक्री में बोली न बोलने का अनुबन्ध लोकनीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होता है। इसके अतिरिक्त वे सभी ठहराव जिनका उद्देश्य लोकनीति के विरुद्ध है प्रवर्तनीय नहीं होते जैसे-रिश्वत के ठहराव, चुनाव को प्रभावित करने वाले ठहराव आदि।

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आंशिक रुप से अवैध प्रतिफल तथा उद्देश्य

(Consideration and Object Unlawful in Part)

अपर्याप्त प्रतिफल (Inadequate Consideration)- भारतीय अनुबन्ध अधिनियम में कहीं भी इस तथ्य की ओर संकेत नहीं किया गया है कि प्रतिफल कितना होना चाहिए। धारा 25 के नीचे दी गई द्वितीय व्याख्या में बताया गया है कि कोई ठहराव केवल अपर्याप्त प्रतिफल होने के कारण व्यर्थ नहीं होगा. यदि वचनदाता ने स्वतन्त्र सहमति प्रदान की है, किन्तु न्यायालय यह निश्चित करते समय कि सहमति स्वतन्त्र रुप से प्रदान की गयी थी या नहीं, प्रतिफल की अपर्याप्तता को भी ध्यान में रख सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि सहमति स्वतन्त्र रुप से प्रदान की गई है तो अपर्याप्त प्रतिफल वाला अनबन्ध भी वैध होगा। जैसे-आलोक अपना ₹ 10,000 मूल्य का स्कूटर ₹2000 में बेचने का ठहराव करता है तथा स्वतन्त्र सहमति प्रदान करता है तो यह ठहराव अपर्याप्त प्रतिफल होने पर भी वैध अनुबन्ध

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 प्रतिफल की परिभाषा दीजिए और उसके लक्षणों को समझाइए।

Define consideration and explain its characteristics.

2. प्रतिफल के अभाव में समस्त ठहराव व्यर्थ होते हैं।’ इस नियम को समझाते हुए इसके अपवादों की सोदाहरण व्याख्या कीजिए। ”

All agreements are void in the absence of consideration.” While explaining this law, explain its exception with illustrations.

3. वैध अनुबन्ध के तत्व के रुप में प्रतिफल की व्याख्या कीजिये। ‘बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ होता है’ इस नियम के अपवाद बताइये।

Explain consideration as an element in a valid contract. State the exceptions to the rule that ‘an agreement without consideration is void.’

4. प्रतिफल के बिना दिया गया वचन एक उपहार होता है और प्रतिफल के बदले जो वचन दिया जाता है, वह एक वेध व्यवहार होता हे” सालमण्ड एवं विनफील्ड के उपर्युक्त कथन की टीका कीजिये।

“A promise without consideration is a gift, one made for consideration is a bargain.” –Salmond and Winfield. Comment.

5. प्रतिफल की परिभाषा दीजिए। किन परिस्थितियों में किसी अनबन्ध के उद्देश्य अथवा प्रतिफल अवैधानिक माने जाते हैंउदाहरण प्रस्तुत कीजिये।

Define consideration.Under what circumstances is the object or consideration of a contract deemed unlawful ? Give illustrations.

6. लोकनीति के विरुद्ध अनुबन्ध से सम्बन्धित राजनियम स्पष्ट रुप से बताइए।

Explain clearly the law regarding contracts against public policy.

7. प्रतिफल की अपर्याप्तता महत्त्वहीन है, किन्तु बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ होता है।” इस कथन की टीका कीजिये। ”

Insufficiency of consideration is immaterial but an agreement without consideration is void.” Comment.

Business Lawful Consideration Object

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ होता है।” समझाइए।

“An agreement without consideration is void.” Explain.

2. क्या प्रतिफल रहित ठहराव सदैव व्यर्थ होते हैं ?

Are agreements without consideration always void ?

3. किन परिस्थितियों में एक अनुबन्ध का उद्देश्य या प्रतिफल अवैधानिक समझा जाता है?

Under what circumstances is the object or consideration of a contract deemed unlawful?

4. प्रतिफल की पर्याप्तता अनिवार्य नहीं है,” समझाइए।

The adequacy of consideration is not essential,” explain.

5. प्रतिफल से सम्बन्धित वैधानिक नियम बताइए।

Explain legal rules as to consideration.

व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. ‘ अपने पुत्र ‘ब’ को पत्र लिखकर बिना प्रतिफल के किन्तु प्राकृतिक प्रेम एवं स्नेह के कारण 10,000 ₹ देने का वचन देता है। क्या ‘ब’ अनुबन्ध प्रवर्तनीय करा सकता है ?

A writes a letter to B, his son, where in he promises to pay 10,000 to B without any consideration on account of natural love and affection. Can B enforce the contract?

उत्तरप्रस्तुत समस्या धारा 25 के अपवादों पर आधारित है। प्राकृतिक स्नेह व प्रेम के कारण किया गया ठहराव बिना प्रतिफल के भी वैध होता है।

PP2. ‘अ’ जिसे रुपये की आवश्यकता है 500 ₹ की एक तस्वीर ‘ब’ को 100 ₹ में बेच देता है। क्या वह बाद में प्रतिफल की अपर्याप्तता के आधार पर विक्रय को रद्द करा सकता है ?

A being in want of money sells a picture worth ₹ 500 to B for ₹ 100 only. Can he afterward set aside the sale on the ground or inadequacy of consideration?

उत्तरप्रस्तुत समस्या धारा 25 पर आधारित है। यहाँ पर अ अपर्याप्त प्रतिफल के आधार पर अनुबन्ध को समाप्त नहीं कर सकता।

PP3. ‘अ’ गाँधी मैमोरियल फण्ड में 10,000 ₹ का चन्दा देने का वचन देता है। बाद में वह चन्दा नहीं दे पाता है। इसके लिए न्यायालय में क्या कोई उपचार है ?

A promises a subscription of ₹ 10,000 to the Gandhi Memorial Fund. He does not pay afterward. Is there any remedy in court of law?

उत्तरसामान्य रुप से प्रत्येक वैध अनुबन्ध के लिए न्यायोचित प्रतिफल का होना परम आवश्यक होता है। बिना वैध प्रतिफल के अनुबन्ध व्यर्थ होता है। यहाँ अ गाँधी स्मारक कोष में 10,000 ₹ चन्दे के रुप में देने का वचन देता है। किन्तु बाद में वह अपने वचन को पूरा करने में असमर्थ रहता है। ऐसी स्थिति में अ को अपना वचन पूरा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि यहाँ पर प्रतिफल का अभाव है।

PP4. ‘अ’ ‘ब’ को सरकारी सेवा में नौकरी दिलाने का वचन होता है और ‘ब’ उसे 1,000 ₹ देने का वचन देता है। क्या यह ठहराव प्रवर्तनीय है?

A primises to obtain for B employment in the Public Service and B promises to pay * 1,000 to A. Is the agreement enforceable ?

उत्तरवैध अनुबन्ध के लिए न्यायोचित प्रतिफल तथा उद्देश्य होना परम आवश्यक होता है। प्रस्तुत समस्या में अ, ब के लिए 1,000 ₹ के बदले में राजकीय सेवा दिलवाने का वचन देता है। इस ठहराव को कार्यान्वित नहीं कराया जा सकता, क्योंकि प्रतिफल तथा उद्देश्य न्यायोचित नहीं है।

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chetansati

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