BCom 1st Year Business Environment Regional Imbalances Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Regional Imbalances Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Regional Imbalances Study Material Notes in Hindi: Meaning of Provincial and Regional Imbalances Causes of Regional Imbalances Effects of Regional Imbalances Regional and Provincial Imbalances Causes and Effects of Regional and Provincial Imbalances Regional and Provincial Imbalances and Five Year Plans :

Regional Imbalances Study Material
Regional Imbalances Study Material

BCom 1st Year Business Environment Problem of Poverty Study Material Notes in Hindi

क्षेत्रीय असन्तुलन

[REGIONAL IMBALANCES]

प्रादेशीय एवं क्षेत्रीय असन्तुलन से अर्थ

(MEANING OF PROVINCIAL AND REGIONAL IMBALANCES)

संसार के सभी देशों में एक-सा विकास नहीं है। कछ देश जैसे संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा पश्चिमी यूरोप के कुछ देश विकास की उच्चस्तरीय अवस्थाओं में पहुंच चुके है, जबकि कुछ देश तो निम्नस्तरीय अवस्थाओं को भी पार नहीं कर पाये हैं। इस प्रकार संसार में दो प्रकार के देश पाये जाते हैं—एक ओर विकसित देश व दूसरी ओर अविकसित या अल्प-विकसित देश।

यही नहीं, एक ही क्षेत्र में दो प्रकार के देश पाये जाते हैं। जैसे—एशिया में जापान उन्नत व विकसित देश है, जबकि उसकी तुलना में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार आदि अल्प-विकसित देश हैं। इस प्रकार एशिया के क्षेत्र में असन्तुलन है। इन असन्तुलनों को क्षेत्रीय असन्तुलन कहते हैं, लेकिन जब एक ही क्षेत्र के विभिन्न खण्डों में असन्तुलन पाया जाता है तो उसे खण्डीय असन्तुलन (Sectoral Imbalances) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में विभिन्न खण्ड होते हैं, जैसेकृषि, खनिज, उद्योग, संचार, परिवहन, शिक्षा, आदि। इन खण्डों में भी असन्तुलन पाया जाता है। जैसे कहीं कृषि उन्नत अवस्था में होती है तो कहीं निम्न। कहीं परिवहन सुविधाएं अधिक होती हैं तो कहीं कम। कहीं खनिज पर्याप्त मात्रा में होते हैं तो कहीं न्यूनता में। यह खण्डीय असन्तुलन कहलाता है।

जब प्रशासनिक दृष्टि से देश को कई राज्यों या प्रदेशों में बांट दिया जाता है तो इसे प्रादेशीय या क्षेत्रीय बंटवारा कहते हैं, लेकिन जब प्रदेशों या क्षेत्रों में समानता नहीं होती है तो इसे प्रादेशीय या क्षेत्रीय असन्तुलन कहते हैं। उदाहरण के लिए, किसी प्रदेश में तो उद्योग अधिक होते हैं तो किसी में कम। इसी प्रकार किसी प्रदेश में प्राकृतिक साधन अधिक होते हैं तो किसी में कम। इसी को हम प्रादेशीय एवं क्षेत्रीय असन्तुलन कहते हैं।

Business Environment Regional Imbalances

क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण

(CAUSES OF REGIONAL IMBALANCES)

विभिन्न देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण निम्नलिखित रहे हैं :

(1) प्राकृतिक साधनों का उचित विदोहन होना—कुछ राष्ट्र अपने यहां उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का उचित मात्रा में विदोहन नहीं कर पाते हैं जिससे वे अविकसित या अल्प-विकसित ही रह जाते हैं. लेकिन जो राष्ट्र उनका उचित विदोहन कर लेते हैं, वे विकसित राष्ट्रों की गिनती में आ जाते हैं। इस प्रकार राष्ट्रों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

(2) औयोगीकरण की धीमी गतिजो राष्ट्र अपने यहां औद्योगीकरण की गति तेज कर लेते हैं, वहां विकास तेज गति से होता है, लेकिन जो राष्ट्र इसमें पीछे रह जाते हैं, वे अपना विकास धीमी गति से करते हैं। साधारणतया कषि-प्रधान देश अपना विकास मन्द गति से करते हैं, जबकि अन्य तेज गति से। इस प्रकार औद्योगीकरण की गति के फलस्वरूप भी क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हो जाता है।

(3) जनसंख्या की मात्रा संरचनाजनसंख्या की मात्रा व उसकी संरचना भी देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा कर देती हैं। जिन राष्ट्रों में जनसंख्या वृद्धि तेजी से होती है तथा श्रम-शक्ति का जनसंख्या में अनुपात कम रहता है, वहां विकास धीमी गति से होता है, लेकिन वे राष्ट्र जहां जनसंख्या वृद्धि की दर सीमित है, जहां श्रम-शक्ति का जनसंख्या में अनुपात अधिक है, वे अपना विकास तीव्र गति से करते हैं। इस प्रकार । जनसंख्या के कारण देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

(4) निर्धनता राष्ट्र गरीबी के कारण भी विकास नहीं कर पाते हैं। गरीबी एक ऐसा कारण है, जो ऋणात्मक घटकों को जन्म देता है तथा विकास को रोकता है। जो देश गरीब नहीं हैं वे अपना विकास तेजी से कर लेते हैं। इस प्रकार गरीबी के कारण भी देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। ।

(5) राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरताजिन देशों में राजनीतिक व आर्थिक स्थिरता रहती है, वे देश अपना विकास तीव्र गति से कर लेते हैं, लेकिन जहां इसमें अस्थिरता रहती है, वहां विकास नहीं होता है या मन्द गति से होता है। इस प्रकार राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरता भी असन्तुलन पैदा कर देती है।

(6) विदेशी सहायता प्राविधिक ज्ञानजो देश विदेशी सहायता, पूंजी, तकनीकी ज्ञान, आदि प्राप्त कर लेते हैं, वे अपना विकास कर लेते हैं, लेकिन इसके विपरीत, जो देश इस प्रकार की सहायता व प्राविधिक ज्ञान प्राप्त करने में असफल रहते हैं, वे विकास में पिछड़ जाते हैं, जिससे देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हो जाता है।

(7) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अविकसित देश विदेशी व्यापार के क्षेत्र में पीछे रहते हैं। उन्हें निर्यात का मूल्य कम मिलता है जबकि इसके विपरीत उन्हें आयात का अधिक मूल्य देना पड़ता है। इससे वे अपना विकास नहीं कर पाते हैं। विकसित देश विदेशी व्यापार में अग्रणी रहते हैं। इस प्रकार के विकास की गति को और तेज कर लेते हैं। इससे भी देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हो जाता है।

(8) सामाजिक व्यवस्था जिन देशों में सामाजिक व्यवस्था इस प्रकार की होती है कि वे नवीन परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते हैं तो ऐसे देश विकास में पिछड़ जाते हैं, लेकिन जहां साहसी होते हैं, परिवर्तन को स्वीकार करते हैं, अभिनवीकरण को सुदृढ़ करते हैं, वहां विकास तीव्र गति से होता है। इस प्रकार इस कारण से भी देशों में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन विभिन्न कारणों से होता है। जिन देशों में असन्तुलन नहीं है, वे अपना विकास तीव्र गति से कर लेते हैं। इसके विपरीत, जो देश विकास में पीछे रह जाते हैं वहां प्रति व्यक्ति आय कम रहती है, जीवन-स्तर निम्न रहता है, उत्पादन के तरीके पुराने होते हैं, शिक्षा व ज्ञान का अभाव रहता है, विदेशी व्यापार सीमित रहता है, जनसंख्या तेजी से बढ़ती है, बेरोजगारी पैदा हो जाती है, पूंजी का असमान वितरण रहता है, गरीबी के कुचक्र चलते रहते हैं, आदि।

Business Environment Regional Imbalances

क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रभाव

(EFFECTS OF REGIONAL IMBALANCES)

जब किसी देश में क्षेत्रीय असन्तुलन होता है तो इसका देश के विकास पर निम्न प्रभाव पड़ता है :

(1) देश का असन्तुलित विकासयदि किसी देश में क्षेत्रीय असन्तुलन होता है तो उस देश का आर्थिक विकास असन्तुलित हो जाता है, क्योंकि कहीं तो विकास चरम सीमा पर होता है तो कहीं विकास का कोई चिह्न भी दिखाई नहीं देता है।

(2) रहनसहन के स्तर में मित्रताजब देश में विकास असन्तुलित होता है तो देशवासियों के रहन-सहन के स्तर में अन्तर होता है। देश का जो हिस्सा विकसित है वहां रहन-सहन का स्तर ऊंचा होता है। इसके विपरीत, अल्प-विकसित या अविकसित हिस्से में रहन-सहन का स्तर नीचा होता है।

(3) सम्पत्ति का असमान वितरण क्षेत्रीय असन्तुलन के कारण सम्पत्ति का वितरण ऐसे देश में समान नहीं होता है। इसका कारण यह है कि विकसित क्षेत्रों में विनियोग की सुविधा के कारण सम्पत्ति तेजी से बढ़ती है और वहां के लोग अधिक धनवान बन जाते हैं, जबकि अविकसित क्षेत्र के रहने वाले लोग गरीब ही बने रहते हैं।

(4) आर्थिक संकटजिन क्षेत्रों में विकास हो जाता है, वहां अति उत्पादन होता है, जबकि अविकसित क्षेत्रों में न्यून उत्पादन। इस प्रकार ऐसे देश में आर्थिक संकट पैदा हो जाता है। इससे मूल्यों में घटा-बढी होती है।

(5) क्षत्रवाद को बढ़ावा कम विकसित क्षेत्र केन्द्र पर दबाव डालते हैं कि उन्हें अलग राज्य बनाने का अनुमति दी जाय, जिससे कि वे अपने राज्य का विकास कर सकें। इससे क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलता है, जो देश की एकता के लिए खतरा होता है।

(6) प्राकृतिक साधनों का कम विदोहन क्षेत्रीय असन्तुलन से देश के प्राकृतिक साधनों का विदोहन कम हो पाता है।

(7) अति और न्यून उपभोग की समस्या क्षेत्रीय असन्तुलन से अति और न्यून उपभोग की समस्या पैदा हो जाती है। जिन स्थानों पर विकास होता है. वहां आय बढ़ने से उपभोग बढ़ जाता है, परन्तु जहा विकास नहीं हो पाया है, वहां आय कम होने से उपभोग का स्तर निम्न रहता है।

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क्षेत्रीय और प्रादेशीय असन्तुलन

(REGIONAL AND PROVINCIAL IMBALANCES)

भारतीय अर्थव्यवस्था का रूप एक-सा नहीं है। यहां विभिन्न राज्यों में प्रति व्यक्ति आय अलग-अलग है। इसी प्रकार औद्योगिक विकास भी विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। यहां कृषि विकास, जनसंख्या, प्राकृतिक साधन सामाजिक सेवाओं की दृष्टि से भी विभिन्न राज्यों में विषमता पाई जाती है। ये सभी क्षेत्रीय प्रादेशीय असन्तुलन की श्रेणी में आते हैं।

भारत में कृषि क्षेत्र में भी विषमता है। यहां पंजाब व हरियाणा मिलकर कुल गेहूं उत्पादन का लगभग एक-तिहाई उत्पादन करते हैं। यदि इसमें उत्तर प्रदेश को और जोड़ दें तो ये तीनों राज्य कुल गेहूं उत्पादन का लगभग 68 प्रतिशत गेहूं उत्पादन करते हैं।

इसी प्रकार औद्योगिक क्षेत्र में भी असन्तुलन है। यहां के 12 राज्य महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक आन्ध्र प्रदेशमिलकर कुल औद्योगिक उत्पादन का लगभग 83.5 प्रतिशत उत्पादन करते हैं, जबकि शेष 24 राज्य व संघीय प्रदेशों का हिस्सा केवल 16.5 प्रतिशत है।

जब विकास राज्य के एक क्षेत्र में ही दिखाई देता है और उसी राज्य का दूसरा हिस्सा उतना विकसित नहीं है तो यह खण्डीय असन्तुलन कहलाता है। उदाहरण के लिए, औद्योगिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा अधिक विकसित है, जबकि पूर्वी हिस्सा उतना विकसित नहीं है।

इस प्रकार भारत में क्षेत्रीय एवं प्रादेशीय असन्तुलन पाया जाता है, जिसे निम्नलिखित आधारों पर विस्तार से समझा जा सकता है :

(1) गरीबी रेखागरीबी की दृष्टि से भारत में कुछ राज्य व क्षेत्र सम्पन्न हैं, जबकि कुछ पिछड़े। उदाहरण के लिए, राज्य की जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर सबसे अधिक गरीबी छत्तीसगढ़ राज्य में है। इसके बाद क्रमशः मणिपुर, ओडिशा आता है। चौथा स्थान मध्य प्रदेश का है। इसके बाद क्रमशः झारखण्ड, बिहार, सिक्किम, असम व त्रिपुरा का स्थान है। गरीबी के प्रतिशत के आधार पर पंजाब राज्य सम्पन्न है। इस विवरण से यह अर्थ निकलता है कि यहां क्षेत्रीय असन्तुलन है। कुछ राज्य सम्पन्न हैं तो कुछ पिछड़े हुए।

(2) उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगिक दृष्टि से भी क्षेत्रीय असन्तुलन है। महाराष्ट्र औद्योगिक दृष्टि से सबसे अधिक सम्पन्न राज्य है, जो देश के कुल औद्योगिक उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत उत्पादन करता है वैसे महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश मिलकर कुल कारखाने उत्पादन का 83.5 प्रतिशत उत्पादन करते हैं, जबकि शेष 24 राज्य व संघीय प्रदेश केवल 16.5 प्रतिशत। इस प्रकार ये 12 राज्य औद्योगिक दृष्टि से उन्नत हैं, जबकि शेष पिछड़े हुए। इस प्रकार यहां औद्योगिक दृष्टिकोण से भी असन्तुलन पाया जाता है।

(3) साक्षरता अनुपात भारत में साक्षरता की दृष्टि से भी असन्तुलन है। यहां केरल राज्य में साक्षरता का प्रतिशत 94.0 है, जो सबसे ऊंचा है। सबसे कम साक्षरता बिहार में है, जिसका प्रतिशत 61.8 है। शेष राज्यों का प्रतिशत इनके मध्य में है, जैसे—दिल्ली 86.2%, महाराष्ट्र 82.3%, तमिलनाड 80.1%, त्रिपुरा 87.2%, मणिपुर 79.2%, पश्चिम बंगाल 76.3%, कर्नाटक 75.4%, सिक्किम 81.4%, मध्य प्रदेश 69.3%, उत्तर प्रदेश 67.7%। 1 Census of India, 2011.

(4) जनसंख्या का घनत्व (Density of Population) भारत में जनसंख्या का औसत घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, लेकिन इस दृष्टि से भी यहां क्षेत्रीय असन्तुलन है। दिल्ली व चण्डीगढ़ में यह घनत्व 11,320 व 9,258 व्यक्ति है, जो सर्वाधिक है। सबसे कम घनत्व अरुणाचल प्रदेश में है. जहा केवल 17 व्यक्ति ही 1 वर्ग किलोमीटर में निवास करते हैं। अन्य राज्यों का घनत्व इस प्रकार है : केरल 860, पश्चिम बंगाल 1028, बिहार 1106, उत्तर प्रदेश 829, पंजाब 551, असम 398, आंध्र प्रदेश 308, मध्य प्रदेश 236, छत्तीसगढ़ 189, राजस्थान 200 व हिमाचल प्रदेश 1231

(5) प्रति व्यक्ति आयभारत के सभी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय समान नहीं है, कहीं अधिक तो कहीं कम। गोवा में प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद चालू कीमतों पर सबसे अधिक है, जो कि 2015-16 में 3,57,059 ₹ थी। अन्य राज्यों जैसे दिल्ली में 2.73.618 ₹, महाराष्ट्र में 1,47,399₹, पंजाब में 1.19.2617 हरियाणा में 62,034 र, राजस्थान में 82,325 ₹, हिमाचल प्रदेश में 1,34,376 ₹ व बिहार में 31,4543 है। इस प्रकार भारत में प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से भी क्षेत्रीय असन्तुलन है। ।

(6) नगरीय जनसंख्या भारत की 31.2 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है, लेकिन यह प्रतिशत भी भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है, जैसे महाराष्ट्र का यह प्रतिशत 45.2, तमिलनाडू का 48.4, गुजरात का 42.6, कर्नाटक का 38.7, पश्चिम बंगाल का 31.9, आंध्र प्रदेश का 33.4, मध्य प्रदेश का 27.6, छत्तीसगढ़ का 23.2, ओडिशा का 16.7, हिमाचल प्रदेश का 10 व बिहार का 11.3 है। इस प्रकार यहां नगरीय जनसंख्या के फलस्वरूप भी क्षेत्रीय असन्तुलन पाया जाता है।

(7) सिंचाईसिंचाई सुविधाओं की उपलब्धि की दृष्टि से पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु व उत्तर प्रदेश में स्थिति अच्छी है, जबकि गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में सिंचाई सुविधाएं कम हैं। यही कारण है कि इन राज्यों में कृषि उत्पादन कम है।

(8) विद्युत् उपभोगविद्युत् उपभोग की दृष्टि से पंजाब, हरियाणा, गुजरात व महाराष्ट्र में विद्युत् उपभोग ऊंचे स्तर का है, जबकि असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, जम्मू व कश्मीर तथा केरल में औसत से भी कम है। इस प्रकार यह असन्तुलन पाया जाता है।

(9) परिवहन सुविधापरिवहन के क्षेत्र में केरल, तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा अच्छे माने जाते हैं। यहां रेल सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में हैं, लेकिन असम, जम्मू व कश्मीर, ओडिशा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आदि में रेल सेवाएं उतनी नहीं हैं। इस प्रकार भारत में इस क्षेत्र में भी असन्तुलन है।

(10) अवसंरचना इस अवसंरचना की दृष्टि से पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा व पश्चिम बंगाल की स्थिति मजबूत है। इसीलिए इन राज्यों ने विकास किया है, शेष राज्यों में अवसंरचना का अभाव है। अतः वहां उतना विकास नहीं हो पाया है। इस प्रकार भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन पाया जाता है।

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क्षेत्रीय एवं प्रादेशीय असन्तुलन के कारण एवं प्रभाव

(CAUSES AND EFFECTS OF REGIONAL AND PROVINCIAL IMBALANCES)

भारतीय अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय व प्रादेशीय असन्तुलन के अनेक कारण एवं प्रभाव हैं, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं :

(1) भौगोलिक भारत के कुछ क्षेत्र अभी भी पिछड़े हुए हैं, इसका मूल कारण भौगोलिक परिस्थितियां हैं। जैसे, जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार व उत्तर-पूर्वी राज्य आज भी पिछड़े हुए हैं। इसका मुख्य कारण वहां तक पहाड़ों के कारण पहुंचना ही कठिन है। जलवायु भी असन्तुलन के लिए उत्तरदायी है। गंगा-यमुना का मैदानी क्षेत्र जितना उपजाऊ है, उतना अन्य नहीं। इसी कारण ये क्षेत्र शेष अन्य क्षेत्रों की तुलना में कृषि में उन्नत हैं।

(2) ब्रिटिश शासन ब्रिटिश शासन के कारण भी असन्तुलन रहा है। उन्होंने उन्हीं क्षेत्रों का विकास किया जहां उद्योग व व्यापार की सुविधाएं विद्यमान थीं। उन्होंने पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र को ही अच्छा माना। इसी प्रकार जमींदारी प्रथा ने कृषि का विकास नहीं होने दिया। आय का एक बड़ा हिस्सा जमींदार व साहूकार ही ले लेते थे। ब्रिटिश शासन में जहां से उन्होंने नहरें निकाली, वही क्षेत्र विकसित हो गये, शेष नहीं।

(3) स्थिति लाभ असन्तुलन सन्तुलन का एक कारण स्थिति लाभ है। लोहा एवं इस्पात उद्योग व तेल शोधक पर स्थापित किये गये हैं, जहां उनकी स्थापना से कुछ लाभ हैं। इन्हीं कारणों से ये स्थान विकसित हो गये हैं व शेष वैसे ही रह गये हैं।

(4) निजी विनियोग निजी उद्योगपति उन्हीं स्थानों पर पंजी लगाता है जहां पहले से ही सभी सुविधाए उपलब्ध हो। इस प्रकार ऐसे स्थानों का विकास तेजी से हआ है जो विकसित हैं, जबकि पिछड़े क्षेत्र पिछड़ ही बने हैं। इस प्रकार निजी विनियोग के कारण भी असन्तुलन बढ़ा है।

(5) कृषि में नवीन तकनीकी स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात सरकार का ध्यान खाद्य उत्पादन बढ़ाने की ओर गया, जिसके लिए सरकार ने उन क्षेत्रों में सिंचाई सविधाएं बढ़ाने का प्रयास किया, जहां पहले से हा यह सुविधाएं उपलब्ध थीं। इसका परिणाम यह हआ कि वे क्षेत्र और सम्पन्न व विकसित हो गये, जबकि शष राज्य वैसे ही बने रहे। इस प्रकार असन्तुलन और गहरा हो गया।

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(6) राज्यों की राजनीतिकुछ राज्य प्रारम्भ से ही औद्योगिक विकास की ओर ध्यान देते रहे है, जस पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र व तमिलनाडू, आदि जबकि शेष क्षेत्र राजनीति में लगे रहे। उन्होंने विकास की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया है। इसका परिणाम यह है कि असन्तुलन बढ़ता ही चला गया है।

(7) केन्द्रीय सरकार द्वारा पक्षपात केन्द्रीय सरकार द्वारा बड़ी-बड़ी योजनाओं की स्वीकृति दी जाती है, जिन्हें देते समय केन्द्रीय सरकार राजनीतिक दवाव का ध्यान रखती है। जो प्रदेश जितना अधिक राजनीतिक दबाव डाल देता है, वही उन योजनाओं को अपने यहां ले जाने में सफल हो जाता है। इस प्रकार केन्द्रीय सरकार की इस नीति के कारण भी देश में क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ा है।

(8) प्राकृतिक साधनों का उचित विदोहन होना—भारत के कुछ क्षेत्र या प्रदेश अपने यहां उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का उचित मात्रा में विदोहन नहीं कर पाये हैं और ये अविकसित या अल्प-विकसित रह गये हैं, लेकिन जिन्होंने उनका उचित विदोहन कर लिया है वे विकसित क्षेत्रों या प्रदेशों की गिनती में आ गये हैं। इस प्रकार क्षेत्रों एवं प्रदेशों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो गया है।

(9) औद्योगीकरण की धीमी गतिजिन क्षेत्रों या प्रदेशों ने अपने यहां औद्योगीकरण की गति तेज कर ली वहां विकास तेज गति से हुआ है, लेकिन जो इसमें पीछे रह गये उनका विकास पिछड़ गया है। इस प्रकार औद्योगीकरण की गति के फलस्वरूप भी क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हो गया है।

(10) जनसंख्या की मात्रा संरचना जनसंख्या की मात्रा व उसकी संरचना भी क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा कर देती है। जिन क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि तेजी से हुई है तथा श्रम-शक्ति का जनसंख्या में अनुपात बढ़ा है वहां विकास धीमी गति से हुआ है, लेकिन वे क्षेत्र जहां जनसंख्या वृद्धि की दर सीमित है तथा जहां श्रम शक्ति का जनसंख्या में अनुपात कम है वे अपना विकास तीव्र गति से कर पाये हैं। इस प्रकार जनसंख्या के कारण देशों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो गया है।

(11) निर्धनताभारत में कई प्रदेश या क्षेत्र गरीबी के कारण भी विकास नहीं कर पाते हैं। गरीबी एक ऐसा कारण है जो अनेक ऋणात्मक घटकों को जन्म देती है तथा विकास को रोकती है। जो प्रदेश या क्षेत्र गरीब नहीं हैं वे अपना विकास तेजी से कर लेते हैं। इस प्रकार गरीबी के कारण भी प्रदेशों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो गया है।

(12) राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरताजिन प्रदेशों में राजनीतिक व आर्थिक स्थिरता रहती है वे अपना विकास तीव्र गति से कर लेते हैं, लेकिन जहां इसमें अस्थिरता रहती है वहां विकास नहीं होता या मन्द गति से होता है। इस प्रकार राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरता भी असन्तुलन पैदा कर देती है।

(13) विदेशी सहायता प्राविधिक ज्ञान—जो प्रदेश विदेशी सहायता, पूंजी, तकनीकी ज्ञान, आदि प्राप्त कर लेते हैं वे अपना विकास कर लेते हैं, लेकिन इसके विपरीत जो प्रदेश इस प्रकार की सहायता व प्राविधिक ज्ञान प्राप्त करने में असफल रहते हैं वे विकास में पिछड़ जाते हैं जिससे प्रदेशों में क्षेत्रीय असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

(14) सामाजिक व्यवस्था जिन प्रदेशों में सामाजिक व्यवस्था इस प्रकार की है कि वे नवीन परिवर्तन को स्वीकार नहीं करती है तो ऐसे प्रदेशों में विकास पिछड़ जाता है, लेकिन जहां लोग साहसी हैं और पारिवर्तन को स्वीकार करते हैं. अभिनवीकरण को सदढ करते हैं वहां विकास तीव्र गति से होता है। इस प्रकार इस। कारण से भी प्रदेशों में असन्तुलन उत्पन्न हो गया है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राज्यों में क्षेत्रीय असन्तुलन विभिन्न कारणों से होता है। जिन प्रदेशों में। असन्तुलन नहीं है वे अपना बिकास तीव्र गति से कर लेते हैं। इसके विपरीत, जो प्रदेश विकास में पीछे रह जाते हैं वहां प्रति व्यक्ति आय कम रहती है। जीवन-स्तर निम्न रहता है। उत्पादन के तरीके पुराने होते हैं। शिक्षा व ज्ञान का अभाव रहता है। जनसंख्या तेजी से बढ़ती है। बेरोजगारी पैदा हो जाती है। पूंजी का असमान वितरण रहता है, गरीबी के कचक्र चलते रहते हैं, आदि।

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भारत में क्षेत्रीय असन्तुलन के प्रभाव को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है

(1) साधनों का अपूर्ण प्रयोग क्षेत्रीय असन्तुलन के फलस्वरूप अविकसित क्षेत्रों में साधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है इसका एक कारण वहां ज्ञान का भी अभाव है।

(2) साधनों का अनुचित प्रयोग असन्तुलन के कारण निजी व्यवसायी किसी क्षेत्र विशेष के प्राकृतिक साधनों का अनुचित प्रयोग करते हैं जिससे क्षेत्र विशेष में पायी जाने वाली वस्तुओं का लोप शीघ्र ही हो जाता है और इस प्रकार प्राकृतिक असन्तुलन पैदा हो जाता है जो वहां के निवासियों व राष्ट्र दोनों के लिए अहितकर होता है।

(3) सामाजिक लागतों में वृद्धि क्षेत्रीय असमानता या असन्तुलन के फलस्वरूप किसी क्षेत्र विशेष में अत्यधिक औद्योगीकरण हो जाता है जिससे वहां प्रदूषण व औद्योगिक बस्ती की बुराइयां पैदा हो जाती हैं। इन सबसे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे बीमार रहने लगते हैं। अतः उनके उपचार के लिए अस्पताल व स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना करनी पड़ती है जिससे सामाजिक लागत बढ़ती है।

(4) प्राकृतिक विपदा का भय यदि किसी एक क्षेत्र में विकास हो जाता है और कुछ क्षेत्रों में प्राकतिक विपदा आ जाती है तो इसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है। इसके विपरीत, यदि सभी क्षेत्र विकसित होते हैं। तो किसी एक क्षेत्र में विपदा भी जाती है तो उसका प्रभाव देश पर कम ही पड़ता है।

(5) सामाजिक जटिलताओं में वृद्धि अविकसित क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम होने के कारण अनेक सामाजिक जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। जैसे चोरी की घटनाएं बढ़ जाती हैं, स्थान-स्थान पर लूट-पाट होने लगती है, आदि।

(6) सुरक्षात्मक खतरा–यदि एक ही क्षेत्र विकसित है तो युद्ध के समय दुश्मन उस क्षेत्र को हवाई हमला कर नष्ट कर सकता है। इसके विपरीत, यदि सभी क्षेत्र समान रूप से विकसित हैं तो इस प्रकार का खतरा कम ही रहता है, क्योंकि एक क्षेत्र के नष्ट होने पर अर्थव्यवस्था पर कोई भारी प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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क्षेत्रीय प्रादेशीय असन्तुलन एवं पंचवर्षीय योजनाएं

(REGIONAL AND PROVINCIAL IMBALANCES AND FIVE YEAR PLANS)

भारतीय विकास रणनीति का एक आवश्यक हिस्सा सन्तुलित क्षेत्रीय विकास रहा है ताकि राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता बनी रहे। नवीं योजना का कहना है कि देश का प्रत्येक भाग समान रूप से प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों से सम्पन्न नहीं है तथा ऐतिहासिक असमानता समाप्त नहीं की जा सकी है. अतः। आयोजित हस्तक्षेप जरूरी है ताकि क्षेत्रीय असमानता में वृद्धि न हो।

पहली पंचवर्षीय योजना में इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा गया, लेकिन दूसरी पंचवर्षीय योजना में इस पर ध्यान दिया गया। तीसरी योजना में कहा गया कि पिछड़े क्षेत्रों या राज्यों में केन्द्रीय सरकार की योजनाओं के लिए इसको ध्यान में रखा जायेगा व केन्द्रीय सहायता देते समय ऐसे राज्यों व क्षेत्रों को महत्व (weightage) दिया जायेगा।

इसी प्रकार चौथी, पांचवीं व छठवीं पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करने की बात कही गई। सातवीं योजना में कहा गया कि “सातवीं योजना की विकास रणनीति का उद्देश्य गरीबी, बेरोजगारी व क्षेत्रीय असन्तुलन पर सीधा प्रहार करना है।” इसके लिए सरकार को आठवीं योजना में भी क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करने के लिए नियोजन प्रक्रिया के माध्यम से साधनों को वहां पहुंचाने की बात कही गई। नौवीं योजना तथा इसके बाद की योजनाओं में भी क्षेत्रीय असन्तुलन कम करने की बात कही गई और उन राज्यों को अधिक निवेश करने का आश्वासन दिया गया जो अपेक्षाकृत कम साधन वाले राज्य थे।

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आर्थिक सधारों के पश्चात् की स्थिति का विश्लेषण

अनेकानेक आश्वासनों के बावजूद क्षेत्रीय असंतुलन में वृद्धि हुई। अभी आम धारणा यह है कि आर्थिक सुधारा का अपनाने के पश्चात अर्थात 1990 के दशक से, 1980 के दशक की तुलना में, राज्यों के मध्य कामता में वृद्धि हुई है। साधारणतः धनी राज्यों ने निर्धन राज्यों की तुलना में अधिक तेजी से विकास किया है। राज्यों के मध्य की प्रति व्यक्ति आय का अन्तर और भी अधिक बढ़ा है, क्योंकि निर्धन राज्यों में जनसंख्या का वृद्धि दर तीव्रतर रही है। इसलिए देश की कल संख्या का 60 प्रतिशत उन राज्यों में निवास । करता है जिनका प्रति व्यक्ति आय राष्टीय औसत से कम है। इन्हीं राज्यों में निर्धनता रेखा के नीचे का कल आबादी का 75 प्रतिशत भाग निवास करता है।

सुधार-पश्चात की अवधि में यह तस्वीर क्यों प्राप्त हो रही है? एक उत्तर GDP को तीन क्षेत्रों-प्राइमरी, द्वितीयक (Secondary) तथा तृतीयक (Tertiary) में बांटकर दिया जा सकता है। प्राइमरी क्षेत्र से प्राप्त प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद में अन्तरराज्यीय असमानता द्वितीयक प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) की तुलना में कम है। 1980 के दशक के अन्त तक प्रायः सभी राज्यों ने हरित क्रान्ति का अपना लिया था। इसलिए प्राइमरी क्षेत्र में सभी राज्यों में प्रायः समान विकास हुआ। 1990 के दशक से इस क्षेत्र की स्थिति प्रायः एकसमान ही बनी रही।

प्राइमरी क्षेत्र की तुलना में द्वितीयक क्षेत्र की प्रति व्यक्ति GSDP में अधिक असमानता पायी जाती है। यह विषमता सुधार पश्चात् की अवधि में और बढ़ गयी है। सुधार-पश्चात् अवधि में प्रति व्यक्ति GDP में वृद्धि मुख्य रूप से तृतीयक क्षेत्र में विकास के माध्यम से हुई है। यह वृद्धि विकसित औद्योगिक राज्यों में कम विकसित राज्यों की अपेक्षा काफी अधिक हुई है। हम जानते हैं कि GDP में प्राइमरी क्षेत्र का हिस्सा काफी घटा है, द्वितीयक क्षेत्र के हिस्से में थोड़ी वृद्धि हुई है तथा तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा बड़ी मात्रा में बढ़ा है।

इस प्रकार GDP में प्राइमरी क्षेत्र के महत्त्व में सापेक्ष ह्रास (यह वह क्षेत्र है, जिसमें अन्तर्राज्यीय असमानता कम मात्रा में विद्यमान है) तथा अन्य दो क्षेत्रों के महत्त्व में सापेक्ष वृद्धि (जहां अधिक असमानता राज्यों के मध्य पायी जाती है) के कारण प्रति व्यक्ति GSDP में विषमता सुधार-पश्चात् की अवधि में राज्यों के मध्य बढ़ गई है।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ है कि एक ओर जहां राज्यों के मध्य प्रति व्यक्ति GSDP में असमानता बढ़ी है 1990 के दशक से, वहां दूसरी ओर, मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) में जो अन्तर राज्यों के मध्य था वह घट गया है—प्राइमरी शिक्षा तथा प्राइमरी स्वास्थ्य में राज्यों के मध्य की असमानता घटी है

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योजना तथा सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश

योजना के मद में प्रति व्यक्ति योजना व्यय निर्धन राज्यों में उन्नत राज्यों की तुलना में हमेशा ही कम रही है। यह विषमता आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम को अपनाने के पश्चात् बढ़ी है। छठी योजना काल (1980-85) में चार निर्धनतम राज्यों का प्रति व्यक्ति योजना व्यय गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब जैसे उन्नत राज्यों की तुलना में आधा था। नौवीं योजना (1997-02) में यह अनुपात और घटकर मात्र 40 प्रतिशत रह गया।

ग्यारहवीं योजना के अनुसार, इस योजना के प्रारंभ होने के समय प्रचलित अवधारणा यही थी कि राज्यों के मध्य तथा प्रत्येक राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के बीच, ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के मध्य, तथा समाज के विभिन्न समुदायों के मध्य की असमानता पिछले कई वर्षों में बढ़ी है। इस योजना में आगे यह कहा गया कि दसवीं योजना में आर्थिक वृद्धि की औसत वार्षिक वृद्धि दर पिछली सभी योजनाओं की तुलना में अधिक थी। फिर भी प्रति व्यक्ति आय में अन्तर्राज्यीय असमानता बढ़ी।।

ऐसा इसलिए भी हुआ है, क्योंकि प्रति व्यक्ति योजना व्यय के अतिरिक्त निजी निवेश भी उन्नत एवं विकसित राज्यों में अधिक मात्रा में हो रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि विकसित राज्यों में स्वास्थ्य, शिक्षा तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में विकसित राज्यों की स्थिति निर्धन राज्यों की तुलना में अधिक अच्छी है।

पिछड़े राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य, भवन, सड़कों पेय जल तथा बिजली की आपूर्ति की स्थिति विकसित राज्यों की अपेक्षा काफी पीछे है। इसलिए निजी निवेश धनी राज्यों की ओर रही अधिक मात्रा में हो रहा है।

पिछड़े राज्यों में उद्योग प्रायः अनुपस्थित हैं एवं इनके निवासी कृषि पर ही अधिक निर्भर करते हैं। गैर-कृषि क्षेत्र की तुलना में कृषि क्षेत्र की उत्पादकता काफी कम है। 2017-18 में कृषि एवं संबद्ध क्रियाओं का GVA में योगदान मात्र 17.4 प्रतिशत था, जबकि इस क्षेत्र में कुल श्रमिकों का आधा से भी अधिक भाग कार्यरत था। उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है और यह विस्तार अधिकांशतः विकसित राज्यों में ही हो रहा है।

क्षेत्रीय असंतुलन के एक बड़े भाग की व्याख्या ऐतिहासिक कारणों, प्रारंभिक स्थिति में भिन्नता तथा प्राकृतिक सम्पदा में अन्तर के रूप की जा सकती है। लेकिन, क्षेत्रीय असमानता योजना की दोषपूर्ण रणनीति तथा वित्त आयोग द्वारा वित्तीय साधनों के असमान ऊर्ध्व (vertical) तथा क्षैतिज (horizontal) हस्तान्तरण का भी परिणाम है।

योजनाकरण की प्रक्रिया का एक प्रमुख उद्देश्य क्षेत्रीय विषमता को कम करना रहा है। किन्तु, जैसा ग्यारहवीं योजना का कहना है, ऐसी चेष्टाओं के बावजूद क्षेत्रीय विषमता बढ़ती चली ही गई, क्योंकि आर्थिक वृद्धि के लाभ विकसित राज्यों को ही अधिक मात्रा में मिले। यह एक विरोधाभास ही है कि प्राकृतिक सम्पदा में धनी राज्य पिछड़ता चला गया, जिसने नक्सलवादी आन्दोलन के पनपने तथा मजबूत होने में सहायता पहुंचायी। (ग्यारहवीं योजना, भाग 1, p. 140, पैरा 7.1.10) इसलिए क्षेत्रीय विषमताओं को कम करना अपने आप में एक उद्देश्य नहीं है, बल्कि देश के सामाजिक एवं आर्थिक एकीकरण के लिए भी आवश्यक योजना के प्रारंभिक वर्षों में आर्थिक विकास को संचालित करने वाली प्रमुख शक्तियां (key drivers of growth) राज्य के नियंत्रण में थीं। ऐसी प्रमुख शक्तियां थीं राजकोषीय चर (fiscal variables), साख एवं वित्तीय बाजार, भौतिक निवेश, स्थानीयकरण संबंधी निर्णय, आदि। ऐसे नियंत्रण के परिणाम न तो आर्थिक वृद्धि की दर और न ही क्षेत्रीय असंतुलन को घटाने के ख्याल से ही लाभदायी रहे। हाल के वर्षों में सार्वजनिक निवेश का अंश कुल निवेश में घटकर 22 प्रतिशत मात्र रह गया है। आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को 1991 से तेजी से लागू किया गया। फलतः अधिकांश निजी क्षेत्र द्वारा ही किया जाता है। जैसा ऊपर बताया गया, यह अधिकांशतः धनी राज्यों में ही हो रहा है जहां सामाजिक तथा भौतिक इन्फ्रास्ट्रक्चर उपस्थित है। इससे अन्तर्राज्यीय विषमता बढ़ रही है।

भारत एक संघीय राज्य है। केन्द्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का जो विभाजन हुआ है, उसमें राजस्व के सर्वाधिक उत्पादक स्रोत केन्द्र को मिले, जबकि सामाजिक क्षेत्र के अधिकांश उत्तरदायित्व राज्य को सौंपे गए। इस उत्तरदायित्व का एक बड़ा भाग अब पंचायती राज्य संस्थाओं को हस्तान्तरित कर दिया गया है। ऐसी व्यवस्था में यह केन्द्र की यह जिम्मेवारी बनती है कि केन्द्र से राज्यों को हस्तान्तरित वित्तीय साधन इस ढंग से हो कि पिछड़े राज्यों को अधिक अनुपात में ये साधन मिलें।

कुल हस्तान्तरण का एक हिस्सा वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर होता है। योजना आयोग की सिफारिशों के अनुसार भी करीब-करीब इतने ही हिस्से का हस्तान्तरण होता है। अब तक चौदह वित्त आयोगों की अनुशंसायें उपलब्ध हैं। प्रारंभिक आयोगों ने अन्तर्राज्यीय असंतुलन को कम करने पर विशेष ध्यान नहीं दिया। लेकिन, अब वित्त आयोग का हस्तान्तरण अधिक प्रगतिशील रहा है। तेरहवें आयोग का कहना था कि क्षैतिज आबंटन (राज्यों के मध्य केन्द्रीय कर राजस्व की वितरण के लिए अनुशंसित राशि के लिए इधर के कुछ वित्त आयोगों ने जिन दो प्रमुख कसौटियों का इस्तेमाल किया वे हैं समानता (equity) तथा कार्य कुशलता (efficiency)। इससे सर्वाधिक निर्धन राज्यों के सापेक्ष हिस्से में वृद्धि हुई है। चौदहवें वित्त आयोग ने केन्द्रीय विभाज्य पूल में राज्यों का हिस्सा 32% से बढ़ाकर 42% किया है। इससे राज्यों के बजट व्यय क्षमता में वृद्धि होगी। इन अन्तरणों का ज्यादा बेहतर प्रभाव अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों की तलना में सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए ज्यादा लाभदायक है। इस आयोग ने दर अन्तरण में ऐसे दूरगामी परिवर्तन किए हैं, जो राज्यों को अधिक स्वायत्तता देते हुए देश को बेहतर राजकोषीय संघवाद की ओर ले जाएगा।

योजना का भी एक उद्देश्य अन्तर्राज्यीय विषमता को कम करना रहा है। योजना के मद में केन्द्र अनेक प्रकार से राज्यों को सहायता प्रदान करता है। सामान्य केन्द्रीय सहायता (Normal Central AssistanceNCA) गाडागल मुखर्जी फॉर्मला के अनसार दी जाती है। इस फार्मला में भी क्षेत्रीय विषमता को कम करने के तत्त्व मौजूद हैं।

दसवी योजना पहली ऐसी योजना थी, जिसमें प्रत्येक राज्य के लिए पृथक-पृथक आर्थिक वृद्धि दर निर्धारित की गई। ग्यारहवीं योजना तथा बारहवीं योजना में भी इस व्यवस्था को जारी रखा गया। इसके अतिरिक्त अनेक नई स्कीमों को प्रारंभ किया गया।

  • जंगल तथा खनिज पर निर्धन राज्यों को अधिक रॉयल्टी
  • क्षेत्रीय विषमता को ध्यान में रखते हुए पिछड़े राज्यों के विकास के लिए पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (Backward Regions Grants Fund-BRGF); तथा
  • निर्धन राज्यों में ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर विशेष ध्यान देते हुए भारत निर्माण परियोजनाओं को पुनः केन्द्रित करना

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 भारत में क्षेत्रीय असमानता के कारणों तथा प्रभाव की विवेचना करें।

2. पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करने के लिए उठाए गए कदमों की विवेचना करें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 क्षेत्रीय असमानता से आप क्या समझते हैं?

2. क्षेत्रीय असमानता के कारणों की विवेचना करें।

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