BCom 1st year Business Environment Exim Policy Study Material Notes in Hindi

//

BCom 1st year Business Environment Exim Policy Study Material Notes in Hindi

BCom 1st year Business Environment Exim Policy Study Material Notes in Hindi : Indian Export Policy Exim Policy  Focus on Africa Procedural Simplifications Schemes Exim Policy Examination Question Long Answer Questions Short Answer Question :

Exim Policy Study Material
Exim Policy Study Material

BCom 1st Year Business Environment Liberalisation Study Material Notes in Hindi

निर्यातआयात नीति

(EXIM POLICY]

भारतीय निर्यात नीति

(INDIAN EXPORT POLICY)

निर्यात के सम्बन्ध में भारत की नीति तथा दृष्टिकोण की तीन स्पष्ट भिन्न अवस्थाएं हैं। वे इस प्रकार हैं

(1) प्रारम्भिक अवस्था (1951-52 से 1972-73) योजना के प्रारम्भिक काल में भारत ने औद्योगीकरण का अन्तमुखी रणनीति (inward-looking strategy) अपनायी। इस रणनीति के अन्तर्गत घरेलू उत्पादन को संरक्षण देकर घरेलू बाजार के लिए प्रोत्साहित किया। इसका परिणाम हुआ स्पर्धाहीन घरेलू औद्योगिक ढांचा। प्रेबिस (Prebisch), सिंगर (Singer) तथा नर्क्स (Nurkse) के लेखन के आधार पर भारतीय आयोजकों ने ऐसा ख्याल व्यक्त किया कि सीमित विदेशी बाजार में भारतीय निर्यात में वृद्धि की गुंजाइश नहीं है। यह निर्यात-निराशावाद (Export Pessimism) का चरण था, लेकिन 1950 तथा 1960 के दशकों में विदेशी व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई, विश्व आय में वृद्धि की गति से अधिक दर पर।

(2) द्वितीय अवस्था (Second Phase)-1973 के प्रथम तेल संकट के पश्चात् भारत की निर्यात नीति का प्रारम्भ हुआ। यह नीति लगभग 10 वर्षों तक चली। इस अवधि में निर्यात को उच्च प्राथमिकता दी गई। निर्यात के लिए टेक्नोलॉजी, कच्ची सामग्री तथा पूंजी वस्तुओं के आयात के लिए सरल प्रक्रिया अपनाई गई। निर्यात संसाधन क्षेत्र (Export Processing Zone) की स्थापना की गई। निर्यात प्रोत्साहन के लिए प्रोन्नति एजेन्सियां बनाई गईं। निर्यात के लिए वित्तीय प्रेरणाओं को बढ़ा दिया गया तथा निर्यात को सहायता पहुंचाने के लिए विनिमय दर नीति का उपयोग किया गया। शुरू में इन नीतियों के अच्छे प्रभाव पड़े। 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में निर्यात में पर्याप्त वृद्धि हुई, किन्तु यह अल्पकालिक प्रभाव था और शीघ्र ही समाप्त हो गया।

(3) तृतीय अवस्था (Third Phase) इस अवधि में निर्यात औद्योगिक एवं विकास नीति का एक अभिन्न अंग बन गया। निर्यात प्रोत्साहन के निम्न कार्यक्रम आवश्यक माने गए :

  • तकनीकी सुधार;
  • प्लाण्ट के आकार में वृद्धि;
  • उन्मुक्त आयात
  • सम्पूर्ण औद्योगिक क्षेत्र के लिए घरेलू एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा।
  • Business Environment Exim Policy

निर्यातआयात नीति

(EXIM POLICY)

मार्च 1985 से भारत सरकार ने वार्षिक आयात-निर्यात नीति के स्थान पर तीन वर्षीय आयात-निर्यात नीति को अपनाया। ऐसी सिफारिश 1978 में ही एलेक्जेण्डर समिति ने की थी ताकि आयात एवं निर्यात में स्थिरता आए। इस अवधि के चयन के निम्न तीन आधार थे :

  • उत्पादन क्रिया के लिए अधिकतम (gestation) अवधि एक से दो वर्षों की होती है; तथा
  • बाजार को विकसित करने के लिए कम-से-कम 2 से 3 वर्ष लगते हैं।

भारत सरकार ने पहली तीन वर्षीय आयात-निर्यात नीति की घोषणा अप्रैल 1985 में अप्रैल 1986 से मार्च 1988 के लिए की। इसका उद्देश्य था नीति में निरन्तरता तथा स्थिरता लाना। दूसरा उद्देश्य था अनिश्चितता को न्यूनतम करना ताकि उद्योग लम्बे समय के लिए योजना बना सके। उत्पादन को बढ़ाने के लिए अग्र उपायों की घोषणा की

  • इनपुट की प्राप्ति को आसान बनाना;
  • निर्यात उत्पादन के आधार को मजबूत करना;
  • सक्षम आयात प्रतिस्थापन द्वारा आयात में बचत;
  • तकनीकी सुधार के लिए सुविधा प्रदान करना;
  • प्रशासन में सुधार
  • निर्यात में सुधार के लिए आयात को उदार बनाना;
  • विश्व बाजार में भारतीय उत्पाद के प्रतियोगिता कर सकने के लिए मदद देना
  • Business Environment Exim Policy

EXIM नीति, 1992-97

जुलाई 1991 से सुधार की जो प्रक्रिया शुरू की गई उसमें व्यापार नीति इस बात से प्रेरित हुई है कि आर्थिक विकास में व्यापार की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए उन दोनों क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना है जिनमें देश को तुलनात्मक लाभ प्राप्त है। यह बात भी सामने आई कि निर्यात की वृद्धि के विरुद्ध जो शक्तियां संरक्षण के वातावरण में काम कर रही थीं उनको हटाने से हमारे निर्यात में काफी वृद्धि हुई। इनपुट्स एवं पूंजी वस्तुओं के आयात में वृद्धि तथा विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा की चुनौती के कारण घरेलू उद्योगों को भी प्रेरणा मिली है।

इस प्रकार उदारवाद की नीति का अच्छा प्रभाव पड़ा है। इसलिए EXIM नीति 1992-97 में निर्यात के विरुद्ध के पक्षपात को मिटाने, साधनों के आवण्टन को और अधिक सक्षम (efficient) बनाने तथा घरेलू बाजार की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने के प्रयास किए गए। आयात पर लगे परिमाणात्मक प्रतिबन्ध, लाइसेन्सिंग तथा नियन्त्रण को समाप्त करने के प्रयल किए गए। पूंजीगत वस्तुओं, कच्ची सामग्री तथा पुर्जा के आयात पर से लाइसेन्सिंग व्यवस्था समाप्त कर दी गई: आयात शुल्क को घटा दिया गया तथा टैरिफ का फिर से वर्गीकरण कर इन्हें सरल बनाया गया।

निर्यात की वृद्धि दर को ऊंचे स्तर पर बनाए रखने के लिए 1992-97 की इक्जिम नीति पर फिर से कई बार विचार किया गया तथा गुणात्मक एवं परिमाणात्मक प्रतिबन्धों में और ढील दी गई।

  • Business Environment Exim Policy

EXIM नीति, 1997-2002

जुलाई, 1991 से व्यापार नीति में सुधार हुए हैं उनके निम्न उद्देश्य रहे हैं :

  • निर्यात में तीव्र गति से वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण का सृजन:
  • विश्व निर्यात में भारत के हिस्से में वृद्धि तथा
  • उच्चतर आर्थिक विकास के लिए निर्यात को इन्जन बनाना।

सुधार प्रक्रिया का फोकस उदारवाद, खुलेपन, पारदर्शिता तथा भूमण्डलीकरण पर रहा है, जबकि रणनीति का दबाव बहिर्मुखी है जिसमें निर्यात प्रोत्साहन, परिमाणात्मक प्रतिबन्ध से दूर हटना तथा विश्व बाजार में भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को बढ़ाने को केन्द्र बिन्दु बनाना है। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए EXIM नीति 1997-2002 को ढाला गया है। इस नीति ने निर्यात उत्पादन के आधार को मजबूत किया है, प्रक्रिया सम्बन्धी चिड़चिड़ाहट को खत्म किया है, इनपुट्स को उपलब्ध कराया है, क्वालिटी तथा तकनीकी सधार पर ध्यान दिया है तथा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है। निर्यात में वृद्धि के लिए द्विपक्षीय या बहुपक्षीय कदम उठाए गए तथा जहां निर्यात में वृद्धि की अधिक सम्भावनाएं थीं उन क्षेत्रों के ऊपर विशेष ध्यान दिया गया है। 2001-02 में अगले पांच वर्षों (2002-07) की EXIM नीति के निर्धारण के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है।

EXIM नीति, 2002-07

31 मार्च, 2002 को पंचवर्षीय आयात-निर्यात नीति, 2002-07 की घोषणा की गई। इस नीति का लक्ष्य यह है कि 2006-07 तक भारत 80 अरब डॉलर का वार्षिक निर्यात कर सके ताकि विश्व निर्यात में हमारी हिस्सेदारी 0.6 प्रतिशत से बढ़कर 1.0 प्रतिशत हो जाए। इस प्रकार 12 प्रतिशत वार्षिक निर्यात वृद्धि प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया। इस पंचवर्षीय नीति की मुख्य बातें 31 मार्च, 2003 तक किए गए संशोधनो । के साथ इस प्रकार है:

विशेष आर्थिक क्षेत्र (Scops for SEZs):

  • वर्तमान में कार्यरत 14 विशेष आर्थिक क्षेत्रों को खास प्रोत्साहन।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्रों में भारतीय बैंकों को विदेशी शाखाएं खोलने की अनुमति पहली बार दी गई है ताकि ये क्षेत्र विश्व स्तर पर प्रतियोगी बन सकें।
  • इन क्षेत्रों को अब सस्ती भूमण्डलीय ब्याज दर पर विदेशी व्यावसायिक ऋण प्राप्त हो सकता है। वे अब विदेशों में बिना किसी प्रतिबन्ध के निवेश कर सकते हैं। इन पर वायदा कारोबार (hedging) की भी छूट दी गई है।
  • इन बैंकों को नकद रिजर्व अनुपात (CRR) तथा वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) से छूट दी जाएगी।
  • इन क्षेत्रों (SEZS) को केन्द्रीय विक्री कर से मुक्त रखा गया है।
  • घरेलू टारिफ क्षेत्र (Domestic Tariff Area-DTA) से SEZ को की जाने वाली विक्री को निर्यात समझा जाएगा। इसलिए घरेलू आपूर्तिकर्ता को केन्द्रीय बिक्री कर, सेवा कर तथा अन्य कर पर छूट प्राप्त होगी।
  • कषि/ कृषि उद्यान संसाधित (processing) इकाइयां, जो SEZ में स्थित हैं. को अब यह अनमति दी गई है कि वे DTA में स्थित कॉन्ट्रैक्ट किसानों को आयात करने वाले देशों की आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं के निर्माण करने के लिए सामान उपलब्ध करा सकती हैं।
  • विदेश जाने वाले यात्रियों को अब यह अनुमति दी गई है कि व्यापार, पर्यटन तथा निर्यात की प्रोन्नति के लिए SEZ से वस्तुएं ले सकते हैं। निर्यात प्राप्ति को एक वर्ष के अन्तर्गत भेजने की समय सीमा को समाप्त कर दिया गया है।

कृषि निर्यात को बढ़ावा (Thrust on Agricultural Exports) :

  • प्याज तथा पटसन (jute) को छोड़कर अन्य सभी कृषि उत्पादों के निर्यात से परिमाणात्मक प्रतिवन्ध हटा लिए गए हैं।
  • फलों, सब्जियों, फूलों, मुर्गा-मुर्गी तथा डेयरी उत्पादों के निर्यात के लिए परिवहन सब्सिडी दी जाएगी।
  • कृषि वस्तुओं, संसाधित (processed) उत्पादों के लिए 20 कृषि निर्यात क्षेत्र बनाए जाएंगे।
  • रूस को रुपया-ऋण पुनर्भुगतान योजना के अन्तर्गत किए जाने वाले निर्यातों पर लगे पंजीकरण,
  • न्यूनतम निर्यात मूल्य तथा स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के द्वारा निर्यात जैसे प्रतिबन्धों को हटा लिया
  • गया है।

परिमाणात्मक प्रतिबन्ध की समाप्ति

  • पशु उत्पादन, सब्जी एवं मसाले, एण्टीबायोटिक्स तथा फिल्म जैसे 69 मदों को प्रतिबन्धात्मक लिस्ट से हटा लिया गया।
  • बासमती को छोड़कर बाकी धान, रूई लिनटरस, दुर्लभ मिट्टी, रेशम, कोकुन, पारिवारिक योजना के माध्यम (कनडोम को छोड़कर) जैसे 5 निर्यात मदों को प्रतिबन्धात्मक लिस्ट से बाहर कर दिया गया है

अफ्रीका देशों पर विशेष ध्यान (Focus on Africa) :

  • नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, मॉरीशस, इथियोपिया, तंजानिया तथा घाना जैसे अफ्रीकी देशों के बाजार में पहुंच के लिए अभियान चलाया जाएगा।
  • इन देशों के लिए जाने वाले 5 करोड़ र के कृषि निर्यात को निर्यात गृह प्रतिष्ठा (Export House Status) की पदवी दी जाएगी

प्रक्रियात्मक सुधार (Procedural Simplifications) :

  • विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत इलेक्ट्रोनिक आवेदन-पत्र के लिए अधिकतम शुल्क सीमा को 5 लाख ₹ से घटाकर 1 लाख ₹ कर दिया गया है।
  • वाणिज्य विभाग, सीमा-शुल्क विभाग तथा निर्यातकों के बीच होने वाले वर्गीकरण सम्बन्धी विवाद को घटाने के लिए नए 8 अंक वाले उत्पादों के वर्गीकरण को अपनाया गया है।

योजनाएं (Schemes):

  • 1975 से चल रही कर छूट अधिकार प्रमाण-पत्र (Duty Exemption Entitlement Certificate-DEEC) पुस्तिका प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। इससे निर्यातकों तथा भ्रष्ट अधिकारियों पर अंकुश लगेगा।
  • वार्षिक आवश्यकताओं के लिए अग्रिम लाइसेन्स प्रणाली (Annual Advance License-AAL) समाप्त कर दी गई है। अब निर्यातक किसी भी कीमत के लिए स्वयं अग्रिम लाइसेन्स प्राप्त कर सकते हैं।

सेवानिर्यात

  • 10 लाख ₹ की न्यूनतम विदेशी विनिमय उपार्जन करने वाले सेवा क्षेत्र को आयात शुल्क के भुगतान के बिना ही आयात की सुविधा।

स्टेटस होल्डर के लिए पैकेज :

  • विनिमय अर्जक के विदेशी मुद्रा खातों (Exchange Earner’s Foreign Currency Accounts) में शत-प्रतिशत धारण (Retention)
  • सामान्य देश प्रत्यार्वतन अवधि (Normal Repatriation Period) को 180 दिनों से बढ़ाकर 360 दिन कर दिया गया।
  • लघु क्षेत्र में निर्यात गृह (Export House) की स्थिति को पाने के लिए प्रवेश सीमा को 15 करोड़ ₹ से घटाकर 5 करोड़ ₹ कर दिया गया।

उपर्युक्त प्रावधानों के अतिरिक्त क्षेत्र के अनुसार पैकेज दिए गए हैं। ऐसे क्षेत्र हैं : हस्तशिल्प एवं कुटीर उद्योग, रल एवं जवाहरात, चमड़ा, वस्त्र, रसायन एवं दवाएं, परियोजनाएं तथा इलेक्ट्रोनिक्स।

EXIM नीति 2002-07 के चार प्रमुख उद्देश्य हैं, यथा

() निर्यात में निरन्तर वृद्धि ताकि विश्व निर्यात में भारत का हिस्सा कम-से-कम 1% हो जाए।

() निरन्तर आर्थिक विकास जिसके लिए कच्ची सामग्री, मध्यवर्ती वस्तुएं, पुर्जे तथा पूंजी वस्तुएं उपलब्ध की जाएंगी।

() भारतीय कृषि, उद्योग तथा सेवाओं में तकनीकी सुधार तथा कार्यक्षमता (efficiency) में वृद्धि ताकि उनकी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति में सुधार हो, रोजगार के नए अवसरों का सृजन हो तथा विश्वस्तरीय क्वालिटी प्राप्त हो।

() उपभोक्ताओं को विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर अच्छी क्वालिटी की वस्तुएं तथा सेवाएं प्राप्त हों।

इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आयात-निर्यात नीति में प्रक्रिया को सरल बनाने, राज्यों को निर्यात प्रोत्साहन में भागीदार बनाने, विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकास करने, टैरिफ को सुसंगत बनाने तथा कृषि एवं कुटीर और हस्तकला क्षेत्रों जैसे महत्वपूर्ण (Strategic) क्षेत्रों के विकास पर बल दिया गया है। सभी उपाय स्वागत योग्य हैं। किन्तु, वास्तव में प्रश्न यह है कि क्या इन उपायों को शीघ्र एवं सक्षम ढंग से लागू किया जा सकेगा। निर्यात प्रोत्साहन के राज्यों को शामिल करना सही कदम है। किन्तु, क्या राज्य ढांचागत (infrastructure) तथा अन्य अवरोधों को दूर करने में सफल होंगे।

31 मार्च, 2003 को भारत सरकार ने 2003-04 के लिए संशोधित EXIM नीति की घोषणा की। इस संशोधित नीति की मुख्य बातें इस प्रकार हैं :

(i) स्वास्थ्य सेवा, मनोरंजन तथा व्यावसायिक सेवाओं जैसे गैर-पारम्परिक सेवा क्षेत्रों तथा पर्यटन जैसे पारम्परिक सेवा क्षेत्र में निर्यात में वृद्धि के उपाय

(ii) भूमण्डलीकरण के लाभ को किसानों तथा ग्रामीण क्षेत्र तक पहुंचाने के लिए तथा कृषि निर्यात जोन (AEZs) के कार्यान्वयन में कम्पनियों को सहभागी बनाकर कृषि निर्यात के प्रोत्साहन के लिए उपाय;

(iii) लघु स्तरीय क्षेत्र सहित भारतीय निर्यात के औद्योगिक आधार में विस्तार के लिए एक अधिक लचीली एवं आकर्षक निर्यात प्रोत्साहन पूंजी वस्तु (Export Promotion Capital Goods EPCG) स्कीम।

(iv) स्टेटस होल्डर (States Holder) के प्रेरणाएं (incentive) विकास दर में वृद्धि के लिए:

(v) निर्यात प्रतिबन्धों को हटाना;

(vi) विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZS) में निवेश के लिए उपाय;

(vii) भारत को विश्व में प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए लेन-देन लागत (transaction cost) में कमी करने के उपाय।

निर्यातआयात नीति, 2004-09

(EXIM POLICY, 2004-09)

संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (UPA) सरकार की नई विदेशी व्यापार नीति का खलासा वाणिज्य मन्त्री द्वारा अगस्त 31, 2004 को किया गया। इस नई नीति में दसवीं योजना की नीति (2002-07 की नीति) में कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं लाया गया है, लेकिन इस पर नई सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम का प्रभाव अवश्य देखा जा सकता है। हमारा विदेशी व्यापार काफी उन्मुक्त (free) हो चुका है तथा आयात शल्क में लगातार कमी हो रही है। इस पृष्ठभूमि में नई नीति की भूमिका ससाध्य (facilitating) तक ही मीमित है। व्यापार के क्षेत्र में विस्तार हुआ है। इसलिए नई नीति. शद्ध निर्यात पर जो पारम्परिक ध्यान दिया जाता था, उससे काफी आगे गई है। कारण यह है कि नई नीति इस मान्यता पर आधारित है कि व्यापार अपने आप कोई उद्देश्य नहीं है, यह तो आर्थिक विकास का एक माध्यम है। निर्यात केवल विदेशी विनिमय प्राप्त करने का माध्यम नहीं है, यह विकास का इंजिन है जिससे किसी देश में आर्थिक क्रियाओं का सृजन होता है।

इन मान्यताओं को वास्तविकता में परिणत करने के लिए इस नई विदेशी व्यापार नीति का यह उद्देश्य है। इन 5 वर्षों की अवधि में विदेशी व्यापार में (वस्तुओं के व्यापार में) भारत का हिस्सा जो 2003 में 0.7 प्रतिशत था को 2009 में 1.5 प्रतिशत पर लाना है। साथ ही रोजगार के सृजन में भारी मात्रा में वृद्धि करना है। इस नई नीति की मुख्य-मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

  • कृषि उत्पाद के निर्यात पर विशेष ध्यान देना।
  • विशेष रूप से उल्लेखित कृषि वस्तुओं को नई शुल्क मुक्त साख का लाभ प्राप्त होगा जो निर्यात के FOB मूल्य का 5 प्रतिशत होगा। अन्य कृषि वस्तुओं के निर्यात को EPCG (Export Promotion Capital Goods) स्कीम के अन्तर्गत शुल्क मुक्त पूंजी वस्तुओं के आयात की अनुमति होगी।
  • विशेष फोकस पहल (Special Focus Initiative) इस नीति का एक भाग है। इस स्कीम के अन्तर्गत रल एवं आभूषण, हस्तकरघा, हस्तशिल्प, चमड़े तथा जूते जैसे क्षेत्रों पर रोजगार सृजन की दृष्टि से विशेष ध्यान दिया जाएगा। निर्यातक के पद को प्राप्त करने की सीमा को 45 करोड़ र से घटाकर 15 करोड़ ₹ कर दी गई व्यक्ति के लिए, जबकि निर्यात गुच्छे (Clusters) के लिए इस सीमा को 1,000 करोड़ से घटाकर 250 करोड़ र कर दिया गया। ऐसे क्लस्टर को Town of Export Excellence कहा जाएगा।
  • लघु एवं मध्यम निर्यातकों को पूंजी वस्तुओं के आयात उदारीकरण से लगभग पहुंचेगा तथा EPCG स्कीम के अन्तर्गत निर्यात दायित्व को पूरा करने के लिए अतिरिक्त लचीलापन भी प्राप्त होगा।
  • तीन नई निर्यात प्रोत्साहन स्कीम चालू की गई हैं, यथा,

(i) Target Plus-इसका उद्देश्य परिमाणात्मक लक्ष्यों को पूरा करना है।

(ii) विशेष कृषि उपज योजना—फल, वनस्पति, फूल, वन के छोटे-मोटे उत्पाद के निर्यातों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष सुविधाएं।

(iii) Served from India सेवा निर्यात के सन्दर्भ में यह एक विशेष ब्राण्ड का सृजन करना

  • नई नीति के निर्यातकों की सुविधा के लिए प्रक्रिया को सरल एवं विवेकपूर्ण बनाया गया है।
  • नई नीति का यह भी उद्देश्य है कि आयात तथा निर्यात के भण्डारण सम्बन्धी इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जाएगा तथा UAE में स्थापित मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zones-FTZs) की स्पर्धा में वृद्धि की जाएगी।
  • विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए मुक्त व्यापार एवं भण्डारण क्षेत्र (Free Trade and Warehousing Zones-FTWZs) की स्थापना विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZS) के आधार पर की जाए। इन क्षेत्रों की स्थापना बन्दरगाह, हवाई अड्डा या सूखे बन्दरगाह के निकट की जाएगी, ताकि रेल तथा सड़कों से आसानी से प्रवेश किया जा सके।
  • पूरे देश में बायो-टेक्नोलॉजी पार्क की स्थापना करना है।
  • घरेलू टैरिफ क्षेत्रों (Domestic Tariff Area) से होने वाले निर्यातों सहित 161 व्यापार की जाने। वाले वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यातों को सेवा कर से छूट।
  • श्रम प्रधान उद्योगों के लिए श्रम प्रधान सेवाओं के आयात को आयात शुल्क से छूट।
  • Business Environment Exim Policy

पर कोई इंसेंटिव नहीं मिलेगा। इंसेंटिव के रूप में प्राप्त होने वाले स्क्रिप्स से निर्यातक किसी भी प्रकार के कर जैसे उत्पाद कर, सीमा शुल्क व सेवा कर को चुका सकते हैं। स्क्रिप्स को ट्रांसफर भी किया जा सकेगा।

बाजारों का वर्गीकरण–निर्यात बाजार को भी तीन श्रेणी में बांटा गया है : ए श्रेणी में अमेरिका, यूरोपीय संघ के देश व कनाडा को मिलाकर 30 देश हैं। बी श्रेणी में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, सीआईएस देश, आसियान देशों को मिलाकर 139 देशों को शामिल किया गया है। अन्य 70 देशों को सी श्रेणी का देश माना गया है जहां निर्यात काफी कम है।

विदेश व्यापारकृषि उत्पादों के निर्यात पर जोर देते हुए इन उत्पादों को ज्यादा छूट देने का प्रावधान किया है। साथ ही सरकार ने नीति को ‘मेक इन इण्डिया’ और ‘डिजिटल इण्डिया’ से जोड़ने का प्रयास किया है। देश से होने वाला वस्तु व सेवाओं का निर्यात अगले पांच वर्ष में बढ़कर 900 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। इससे विदेश व्यापार में भारत की हिस्सेदारी वर्तमान दो से बढ़कर 3.5 प्रतिशत हो जाएगी।

एसईजेड को प्रोत्साहन सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों अर्थात् एसईजेड की भूमिका और बढ़ाने के लिए नीति में एमईआईएस और एसईआईएस के अर्न्तगत निर्यात दायित्व में 25 प्रतिशत की कमी कर दी है। ऐसा होने के बाद निवेशकों की दृष्टि से एसईजेड और आकर्षक बनेंगे। साथ ही इससे घरेलू पूंजीगत समान उद्योग को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अतिरिक्त एसईजेड की इकाइयों को भी अब विदेश व्यापार नीति के चैप्टर तीन के अन्तर्गत मिलने वाली छूट भी मिलेंगी। वर्ष 2012 में एसईजेड पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) लागू होने के बाद से निवेशक इससे दूर हो रहे थे।

राज्यों के साथ सहयोग केन्द्र निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों का भी सक्रिय सहयोग लेगा। इसके लिए नीति में एक संगठनात्मक ढांचे का प्रस्ताव भी किया गया है। राज्य सरकारों की भागीदारी के लिए एक एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के गठन का प्रस्ताव किया गया है।

सरकार के अभियानों को सहायतामैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र और रोजगार सृजन में छोटे व मझोले उद्यमों को महत्व दिया गया। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के 108 समूहों की पहचान की गई है। इसी तरह ‘स्किल इण्डिया’ के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निर्यात बन्धु योजना को मजबूत बनाया जा रहा

नई विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) ई-कॉमर्स को भी बढ़ावा देगी। विशेष रूप से उन क्षेत्रों को नीति में ज्यादा प्रोत्साहन देने की व्यवस्था की गई है, जो ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा करते हैं। एफटीपी के अन्तर्गत ऐसी ई-कॉमर्स कम्पनियों को प्रोत्साहन मिलेगा, जो ऐसे क्षेत्रों के उत्पाद निर्यात करेंगी जिन पर सरकार रोजगार सृजन के लिए ध्यान दे रही है। इनमें चमड़ा और हस्तशिल्प क्षेत्र प्रमुख हैं। नई नीति के अनुसार विदेश में स्थित डाकघरों या कूरियर कम्पनियों के द्वारा 25,000 ₹ से कम के निर्यात मूल्य वाले सामान को भेजने पर ई-कॉमर्स कम्पनी को एमईआईएस योजना के अन्तर्गत मिलने वाली छूट मिलेंगी। यदि ई-कॉमर्स द्वारा निर्यातित सामान का निर्यात मूल्य 25,000 से अधिक होगा, तो भी छूट 25 हजार र तक सीमित रहेगी। इस योजना के अन्तर्गत जिन उत्पादों को शामिल किया गया है, जिनमें हैंडलूम, पुस्तकें, चमड़े के फुटवियर, खिलौने और फैशन परिधान शामिल हैं।

  • Business Environment Exim Policy

प्रश्न

1 1990 के दशक में अपनाई गई EXIM नीति की विवेचना कीजिए।

2. EXIM नीति 2002-07 की मुख्य बातों पर प्रकाश डालें।

3. EXIM नीति 2004-09 की मुख्य बातों पर प्रकाश डालिए।

4. विदेशी व्यापार नीति (2015-20) की समुचित विवेचना कीजिए।

  • Business Environment Exim Policy

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Business Environment Liberalisation Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 1st Year Business Environment Devaluations Study material Notes in Hindi

Latest from BCom 1st year Business Environment Notes