BCom 1st year Business Theories Communication Audience Analysis Study Material Notes in Hindi

//

BCom 1st year Business Theories Communication Audience Analysis Study Material Notes in Hindi

BCom 1st year Business Theories Communication Audience Analysis Study Material Notes in Hindi: Theories of Communication Audience Analysis Satisfying Audience Needs Objectives of Audience Analysis Various Steps of Audience Analysis as a Group and as an Individual Important Examination Questions Long Answer Questions Short  Answer Questions ( Most Important For BCom 1st Year Students )

Audience Analysis Study Material
Audience Analysis Study Material

BCom 1st Year Business Effective Communication Study Material Notes In Hindi

संचार के सिद्धान्त तथा श्रोता विश्लेषण

(Theories of Communication and Audience Analysis)

संचार (सम्प्रेषण) के सिद्धान्त अथवा विचारधारा

(Theories of Communication)

सम्प्रेषण, सन्देश के माध्यम से मनुष्य को एक दूसरे से जोड़ता है। संचार में जिन मान्यताओं, सीमाओं व परिवेश को सर्वहित में संचारित किया जाता है उसे संचार विचारधारा या संचार के सिद्धान्त कहते हैं अर्थात् सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में आदर्श मूल्यों की रक्षा व स्थापना हेतु सार्वभौमिक समुदाय के लिए निर्धारित सीमा में किया गया संचार ही संचार सिद्धान्त है। विश्व में संचार की विभिन्न विचारधाराएँ प्रचलित हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं

(1) कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिद्धान्त (Communist Theory of Communication)-यह विचारधारा साम्यवाद के सिद्धान्तों पर आधारित है। वर्ष 1917 की सफल क्रान्ति के पश्चात् इसे सोवियत संघ में लागू किया गया था। इस सिद्धान्त की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

(i) इसके अन्तर्गत मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के खिलाफ संचार किया जायेगा।

(ii) देश के निर्माण में जनतन्त्र की प्रत्यक्ष भूमिका होगी।

(iii) जनतन्त्र के लिए एक आचार संहिता है कि देश से सर्वोपरि कोई बात नहीं होगी।

(iv) मजदूरों पर कहीं भी हो रहे अत्याचार व उनकी आवाज व माँगों को प्रमुखता से लिया जायेगा।

इस सिद्धान्त का प्रभाव काफी व्यापक था। लेनिन के विचारों को न केवल सोवियत संघ बल्कि चीन व संसार के अनेक देशों में सुना गया। यह संचार का काफी सशक्त सिद्धान्त था, लेकिन साम्यवाद के संकीर्ण विचारों के कारण यह सिद्धान्त अधिक प्रसिद्ध नहीं हो पाया। सोवियत संघ के विघटन ने भी इस सिद्धान्त के प्रसिद्ध होने में बाधा पहुंचाई।

(2) कन्जरवेटिव अथवा कट्टरपंथी सम्प्रेषण सिद्धान्त (Conservative Theory of Communication)-कन्जरवेटिव सम्प्रेषण सिद्धान्त से आशय ऐसे सिद्धान्त से है, जिसमें बिना किसी कारण के अचानक धर्म व जाति के नाम पर पाबन्दियाँ लगाकर सम्प्रेषण को एक तरफ कर दिया जाता है। उनमें से कुछ पाबन्दियाँ ऐसी होती हैं, जो समाज के रहन-सहन, उठने-बैठने, लिखने-पढ़ने आदि पर लगायी जाती हैं। इस स्थिति में स्वच्छ तथा सरल सम्प्रेषण की कल्पना बेकार होती है।

(3) क्रिश्चियन सम्प्रेषण सिद्धान्त (Christian Theory of Communication)-यह सिद्धान्त मनुष्य की संवेदना, कोमल हृदय, सेवाभाव आदि पहलुओं पर आधारित है। स्वतन्त्र विचार, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व ईश्वर (प्रभु) के प्रति समर्पणता इसकी मुख्य बातें हैं। यूरोप के अधिकांश देशों की सम्प्रेषण व्यवस्था का आधार यह सिद्धान्त है। यह एक प्रोग्रेसिव सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त में अवरोधों का कोई स्थान नहीं है, नयी-से-नयी वस्तु मानव कल्याण हित में अविलम्ब व्यक्तियों तक पहुँचा दी जाती है। अत: यह सिद्धान्त अत्यधिक लोकप्रिय व प्रसिद्ध है। इस सिद्धान्त की मुख्य विशेषता व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का क्षेत्र है।

Business Theories Communication Audience

(4) इस्लामिक सम्प्रेषण सिद्धान्त (Islamic Theory of Communication)-इस्लामिक सम्प्रेषण सिद्धान्त का मुख्य आधार पवित्र कुरान व हदीस हैं। इस सिद्धान्त में धर्म के प्रचार की बात कही गयी है। यह सिद्धान्त कठोर और कटट्रवादी है तथा मौहम्मद साहब के बनाये गये कानूनों पर आधारित है। इस सिद्धान्त में पुरूषों को ही ऊँचा स्थान दिया गया है। इस सिद्धान्त के दो भाग हैं, पहला भाग शुद्ध इस्लामिक सिद्धान्त है। यह अत्यन्त मानवीय, वैज्ञानिक व स्नेही है, जबकि दूसरे भाग को कठमुल्लाओं व धर्म के ठेकेदारों ने अपनी जुबान से लिखा है। यह काफी कठोर, निर्दयी व अरूचिकर है। यह सिद्धान्त अत्यन्त ही संकीर्ण है।

(5) वैदिक संचार सिद्धान्त (Vedic Theory of Communication)-यह विश्व का अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। यह “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी” के सिद्धान्त पर लागू है। यह भावना इस सिद्धान्त का सशक्त पहलू है। यह सिद्धान्त किसी समय विशेष से नहीं बँधा है। वैदिक संचार में हजारों केवल मोखिक स्वर संचारित होता रहा था। यह सिद्धान्त भारतीय संचार प्रक्रिया का आधार है परन्तु ब्रिटिश शासन ने भारतीय संचार पद्धति को प्रभावित किया और आज ब्रिटिश सिद्धान्त का झलका भारतीय संचार प्रक्रिया में देखने को मिलती है।

(6) चाइनीज सम्प्रेषण सिद्धान्त (Chinese Theory of Communication)-विश्व में चीन सम्प्रषण नीति के लिए बहुत प्रसिद्ध है। अत: इनके सम्प्रेषण सिद्धान्त को चाइनीज सिद्धान्त कहा जाता हा इसने कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिद्धान्त की भाँति क्रान्ति की नहीं बल्कि शान्ति की बात कही है। इस दश को संचार व्यवस्था में बौद्ध के विचारों की बाहुल्यता है। बड़ों का आदर, सम्मान देना व सम्मान लना, देश के प्रति वफादारी इत्यादि इस सिद्धान्त की विशेषताएँ हैं। चीन की सम्प्रेषण पद्धति पंचशील सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त में सरकारी आदेशों. स्थापित मान्यताओं और लोकप्रिय परम्पराओं का निर्वहन सम्मिलित है।

(7) उदारवादी संचार सिद्धान्त (Liberal theory of Communication)-यह संचार सिद्धान्त सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत सरकार तथा समाज के विरूद्ध समाचारों तथा। विचारों को उदारतापूर्वक प्रेषित करने की छूट होती है। यह सम्प्रेषण सिद्धान्त किसी देश विशेष या व्यवस्था विशेष से विकसित नहीं हुआ है बल्कि यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त के रूप में स्वत: विकसित हुआ है। इस सिद्धान्त की मान्यता यह है कि कोई भी संचार क्रिया उदारता के साथ की जानी चाहिए अर्थात् किसी के विरूद्ध भी यदि कोई विचार सम्प्रेषित करना है तो उसमें सहनशीलता, समझदारी एवं सूझ-बूझ का प्रयोग करना चाहिए। एक प्रभावी संचार की लगभग समस्त बातों का ध्यान रखने की बात इस सिद्धान्त में कही गई है, अत: इसे एक सर्वमान्य एवं सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त कहा जा सकता है।

(8) संचार का बोध क्षमता सिद्धान्त (Perception Theory of Communication)-संचार के ‘बोध क्षमता सिद्धान्त’ (Perception Theory) का प्रतिपादन बरलों (Berlo) ने किया था। इस सिद्धान्त में बोध क्षमता (Perception) को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। बोध क्षमता से अभिप्राय इन्द्रियों द्वारा ग्रहण प्रत्यक्ष ज्ञान है।

बरलो (Berlo) के अनुसार, “अपने अनुभव तथा ज्ञान के आधार पर प्रेषक सन्देश को सांकेतिक भाषा में परिवर्तित करता है तथा पांच में से किसी भी एक सांकेतान्द्रिय का प्रयोग कर सन्देश को प्रेषित करता है। प्रेषित सन्देश प्राप्तकर्ता किस प्रकार तथा किस रूप में प्राप्त करता है यह पूर्णत: उसके विवेक एवं ज्ञान पर निर्भर करता है।” इस प्रकार, इस सिद्धान्त के अनुसार, प्राप्तकर्ता की बोध क्षमता ही यह निश्चित करती है कि वह किस प्रकार एवं किस रूप में सन्देश प्राप्त करता है।

(9) संचार का व्यावहारिक सिद्धान्त (Transaction Theory of Communication)-इस सिद्धान्त के अनुसार संचार, प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता के मध्य निरन्तर घुमावदार रूप में चलने वाली प्रक्रिया है। व्यवहार या लेन-देन (Transaction) शब्द में अन्तर निर्भरता (Interdependence) होती है जिसमें एक लेने वाला पक्ष तथा दूसरा देने वाला पक्ष होता है। ये दोनों पक्ष लेने देने (Transaction) के समान रूप से भागी होते हैं तथा पारस्परिक रूप से एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। व्यवहार सिद्धान्त के अनुसार जिस प्रकार प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है उसी प्रकार संचार में भी क्रिया प्रतिक्रिया निरन्तर चलती रहती है। इसका कारण यह है कि सन्देश प्रतिपुष्टि को जन्म देता है अर्थात् उसका कारण होता है तथा प्रतिपुष्टि परिणाम होती है। इसी प्रकार प्रतिपुष्टि सन्देश को जन्म देती है तथा उसका कारण बन जाती है एवं सन्देश उसका परिणाम हो जाता है इस प्रकार यह क्रिया-प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। मेयर्स ने ठीक ही कहा है, “मानवीय संचार एक पद्धति है जिसमें प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता समान रूप से प्राप्तकर्ता तथा प्रेषक हैं।”

Business Theories Communication Audience

सन्देशप्रतिपुष्टि सन्देश प्रतिपुष्टि

व्यवहारिक सिद्धान्त (Transaction Theory) के अनुसार संचार के मुख्य संघटक निम्नलिखित हैं-(i) सन्देश (Message), (ii) प्रेषक (Sender), (iii) संकेतन (Encoding), (iv) साधन (Channel) माध्यम (Medium), (vi) प्राप्तकत्ता (Receiver), (vii) विसकतन (Decoding). (viii) व्यवहार। परिवर्तन (Change in Behaviour), (ix) प्रतिपुष्टि (Feedback), संचार के ये सभी संघटक निरन्तर क्रियाशील रहते हैं।

गुण Merits) इस सिद्धान्त की विशेष रूप से सामूहिक निर्णय (Collective Decision) ने महत्त्वपर्ण भमिका है। संचार के दोनों पक्ष कारण परिणाम (cause-effect) से प्रभावित होते हैं। अतः इस

व्यावसायिक संचार सिद्धान्त के अनुसार संचार के दोनों पक्ष (Parties) संचार प्रक्रिया में एक दसरे से प्रभावित होते हैं।

दोष (Demerits)-इस सिद्धान्त का मुख्य दोष यह है कि इसमें संचार की बाधाओं (Barriers) तथा शोर (Noise) की अवहेलना की गई है।

(10) संचार का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Communication) आधुनिक सिद्धान्त संचार प्रक्रिया को एक चक्र रूप में प्रस्तुत करता है। इस चक्र के अनुसार सन्देश को प्राप्तकर्ता के पास प्रेषित किया जाता है। प्राप्तकर्ता सन्देश प्राप्त करने के बाद अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करता है जो उसकी प्रतिपुष्टि को दिखाती है। इस प्रक्रिया के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं

(i) आगम (Input)-वे विचार तथा सूचनाएँ जो प्रेषक प्रेषित करना चाहता है।

(ii) प्रेषण का माध्यम (Channel) सन्देश प्रेषण का माध्यम-पत्र, रिपोर्ट, टेलीफोन, फैक्स. सभा, e-mail इत्यादि।

(iii) सन्देश (Message)-विचार तथा सूचना जो वास्तव में प्रेषित किया जाता है।

(iv) प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया (Feedback) प्राप्तकर्ता द्वारा सन्देश प्राप्ति के बाद अपनी प्रतिक्रिया जो सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकती है।

(v) सन्देश हानि (Loss in communication)-जो सन्देश भेजा जाना था तथा भेजा गया एवं प्राप्तकर्ता द्वारा जो प्राप्त किया गया, उसमें कुछ अशुद्धि हो सकती है, जो सन्देश हानि कहलाती है। संचार प्रक्रिया में जो बाधायें हैं, उनके कारण से सन्देश हानि होती है। ये बाधाएँ सन्देश को समझने में समस्याएँ खड़ी कर देती हैं।

संचार चक्र को निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया है

1 आगम (Input)

2. माध्यम

3. सन्देश

4. सन्देश की प्राप्ति (Output)

अत: यह सिद्धान्त संचार का विस्तृत एवं पूर्ण सिद्धान्त है। इसमें प्रतिपुष्टि तथा संचार बाधाओं का भी उपयुक्त वर्णन किया गया है।

Business Theories Communication Audience

श्रोता विश्लेषण

(Audience Analysis)

श्रोता, सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु होता है। श्रोता को अंग्रेजी में Audience कहते हैं जो अंग्रेजी के Audio शब्द से बना है जिसका अर्थ सुनने वाला, देखने वाला अथवा पढ़ने वाला होता है। अतः सम्प्रेषणों में श्रोताओं से आशय व्यक्तियों के उस समूह से है जो सम्प्रेषण को सामूहिक रूप से सुनता, देखता तथा पढ़ता है। अत: स्पष्ट है कि सम्प्रेषण में सन्देश प्राप्तकर्ता को ही वास्तव में श्रोता कहा जाता है।

सम्प्रेषण में श्रोताओं की प्रतिक्रिया अथवा प्रतिउत्तर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। श्रोता की पृष्ठभूमि, आदत, विश्वास, पूर्वाग्रह, भावना, परिवेश तथा उसका दृटिकोण आदि प्रेषक के संचार उद्देश्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। अत: सफल तथा प्रभावी संचार के लिये यह आवश्यक है कि श्रोता के विषय में अधिक से अधिक जाना जाए तथा उसका विश्लेषण किया जाए। अतः सम्प्रेषण के प्रभावों का परीक्षण एवं उनका अध्ययन ही श्रोता विश्लेषण कहलाता है।

श्रोता विश्लेषण को हम निम्नांकित प्रकार व्यक्त कर सकते हैं

अत: श्रोता विश्लेषण की प्रक्रिया में सर्वप्रथम यह देखा जाना चाहिए कि श्रोता कौन है, वह क्या चाहता है, तथा वह कैसे सन्तुष्ट होगा?

श्रोता कौन है? (Who is Audience)-जब कभी भी कोई सन्देश किसी व्यक्ति या समूह को प्रषित किया जाना हो. तो सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि श्रोता कोन हे अर्थात् उसकी योग्यता, क्षमता एवं उम्र क्या है तथा उसका स्वभाव कैसा है? श्रोता का संचार क्रम में केन्द्रीय स्थान होता है, अत: इन सभी बातों का अध्ययन करके ही सन्देश सम्प्रेषित किया जाना चाहिए।

आम आदमी यही समझता है कि जो व्यक्ति कभी भी सुनता है वही श्रोता है किन्तु संचार प्रक्रिया में श्रोता का यह अर्थ अत्यन्त संकुचित कहा जायेगा। संचार प्रक्रिया में श्रोता पाँच प्रकार के होते हैं

(1) प्रथम श्रोता (Initial Audience)-संचार प्रक्रिया में प्रथम श्रोता वह होता है जो संदेश को सर्वप्रथम सुनता है तथा आवश्यकतानुसार, दूसरे श्रोताओं तक इसे पहुँचाता है। इसीलिए इसे वाहक श्रोता भी कहते हैं।

(2) माध्यमिक (प्रहरी) श्रोता (Gate Keeper Audience)-प्रहरी अथवा माध्यमिक श्रोता वह है जो यह तय करता है कि संदेश को प्राथमिक श्रोता तक पहुँचाया जाये अथवा नहीं। दूसरे शब्दों में, प्रहरी श्रोता के पास संदेश को प्राथमिक श्रोता तक पहुँचने से रोकने का अधिकार होता है।

(3) प्राथमिक श्रोता (Primary Audience)-वह श्रोता जो प्रेषक द्वारा प्रेषित संदेश पर अपनी प्रतिक्रिया देने का अधिकार रखता है, प्राथमिक श्रोता कहलाता है। यही श्रोता संचार के उद्देश्यों को अनिवार्यतः पूर्ण करता है। इसकी प्रतिक्रिया सदैव संदेश के अनुसार होती है।

(4) द्वितीयक श्रोता (Secondary Audience)-द्वितीयक श्रोता वह होता है जो प्राथमिक श्रोता के द्वारा संदेश की पुष्टि के उपरान्त ही सक्रिय होता है। प्राथमिक श्रोता द्वारा द्वितीयक श्रोता से संदेश पर विचार-विमर्श किया जाता है अथवा उसकी राय मांगी जाती है।

(5) रखवाला श्रोता (Watch Dog Audience)-रखवाला श्रोता वह होता है जो संदेश भेजने वाले तथा प्राथमिक श्रोता के बीच हो रहे संचार पर अपनी पैनी नजर रखता है। इसीलिए इस प्रकार के श्रोता को निरीक्षक श्रोता भी कहा जाता है। इस श्रोता के पास संचार को रोकने या उस पर प्रत्यक्ष कार्यवाही का अधिकार नहीं होता है, लेकिन वह संदेश का मूल्यांकन करके उस पर भविष्य में अपनी प्रतिक्रिया देता है। दूसरे शब्दों में, वह संदेश के विश्लेषण के आधार पर भविष्य की अपनी कार्यवाही निश्चित करता है।

श्रोताओं के उपर्युक्त प्रकारों को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है

उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि उदाहरण में दिये गये मामले में जो संचार प्रक्रिया अपनाई गई, उसमें रिपोर्ट का संचार नीचे से ऊपर की ओर हुआ। रिपोर्ट प्रस्तुतिकरण में श्रोताओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है

Business Theories Communication Audience

उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि श्री अतुल अग्रवाल को जब उनके स्टॉफ कर्मचारियों ने रिपोर्ट सौंपी तथा उन्होंने उस रिपोर्ट को श्री नवीश गुप्ता तक पहुँचाया तो वे प्रथम श्रोता अथवा वाहक श्रोता बन गये। श्री नवीश गुप्ता को उस रिपोर्ट को अपने पास रोके रखने का अधिकार था, इसलिए वे माध्यमिक या प्रहरी श्रोता कहलाये। इस रिपोर्ट पर कार्यवाही का अधिकार चूँकि श्री आशीष गुप्ता को है, इसलिए वे प्राथमिक श्रोता बने। उन्होंने इस रिपोर्ट पर श्री विजय अग्रवाल से सुझाव माँगे, जिन्होंने इसका अध्ययन करके टिप्पणी दी, अत: विजय द्वितीयक श्रोता कहलाये। इस मामले में उपभोक्ता, अन्य कर्मचारी, ऋणदाता, थोक व्यापारी या फुटकर व्यापारी आदि जिन्हें इस रिपोर्ट को रोकने, लागू करने या प्रत्यक्ष टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है, वे रखवाला (Watch Dog) श्रोता कहलायेंगे।

Business Theories Communication Audience

श्रोता क्या चाहता है? (What Audience Wants)-“किसी भी सन्देश की सफलता के लिये श्रोताओं को समझना मौलिक आवश्यकता है। आपको अपना सन्देश श्रोताओं के लक्ष्य, उनकी रुचियों और उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप ढालना होगा।” -कैटी ओ० लाकर और स्टीफेन काऊ कैजमार्क

प्रत्येक सम्प्रेषक के लिये यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वह क्या बोल रहीं है, बल्कि यह महत्त्वपूर्ण है कि सन्देश प्राप्तकर्ता क्या सुनना चाहता है, प्राप्तकर्ता जो सुनना चाहता है, वही उसे यदि सुनाया जायेगा तभी वह सन्तुष्ट होगा। यदि नास्तिक व्यक्ति के समक्ष भगवान का गुणगान किया जाय तो सन्देश प्राप्तकर्ता उसे सुनना ही नहीं चाहेगा और सम्प्रेषण की क्रिया प्रभावी नहीं होगी। किन्तु किसी व्यवसाय में यदि श्रोता (कर्मचारी) की इच्छानुसार ही सम्प्रेषक (अधिकारी) सन्देश देगा तो व्यवसाय की सफलता में सन्देह की स्थिति उत्पन्न होगी, वहाँ तो कर्मचारी की इच्छा के विरूद्ध भी उसे आदेश दिया जायेगा जिसका उसे पालन भी करना होगा तभी संस्था में अनुशासन कायम होगा। अत: संस्था के प्रबन्धक या अधिकारी को चाहिये कि वह अपने कर्मचारियों की आवश्यकता को समझने का प्रयास करे

और सम्भव हो सके तो उनकी इच्छानुसार ही सन्देश सम्प्रेषित करे। श्रोताओं की आवश्यकता को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

(1) श्रोताओं की व्यावहारिक आवश्यकताएँ (Practical needs of Audience)-श्रोताओं का। व्यावहारिक आवश्यकता का आशय है कि अलग-अलग आयु वर्ग, लिंग, पद, शैक्षिक योग्यता, बौद्धिक स्तर, सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि के श्रोताओं की आवश्यकता अलग-अलग प्रकार की होती है। उदाहरण के लिये 20 से 30 वर्ष के श्रोताओं की आवश्यकता 30 से 40 वर्ष की उम्र के श्रोताओं की आवश्यकता से भिन्न होगी। 60 से अधिक उम्र के श्रोताओं की आवश्यकता सबसे अलग हागा। सम्प्रषक का चाहिये कि वह श्रोताओं की व्यावहारिक आवश्यकता का ध्यान रखते हये उन्हें सन्दश प्राषत कर, तभी सम्प्रेषण प्रभावी होगा।

सूचना सम्बन्धी आवश्यकताएँ (Information Needs) सूचना सम्बन्धी आवश्यकता का आशय है कि श्रोता सम्प्रेषक से किस प्रकार की सुचना प्राप्त करना चाहता है। यह तभी सम्भव है जब श्रोता से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके उसकी सचना सम्बन्धी आवश्यकता का ज्ञान प्राप्त किया जाए। प्राय: अखबार वाले इस प्रकार का सर्वे कराते हैं कि आप क्या पढ़ना चाहते हैं, किस प्रकार की खबर अधिक प्रभावित करती है, और फिर उसके अनुरूप अपने अखबारों में परिवर्तन कराते हैं। यही कार्य टी० वी० चैनल का है जो जनता देखना चाहती है वही दिखाया जायेगा तब तो चैनल सफल होगा अन्यथा असफल होगा। अत: सूचना को प्रभावी बनाना है तो श्रोता की सूचना सम्बन्धी आवश्यकता का ध्यान रखा जाना चाहिये।

(3) श्रोताओं को खुश करने सम्बन्धी आवश्यकताएँ (Needs regarding happiness of Audience)-श्रोता किस बात से खुश होता है इस बात की जानकारी भी सम्प्रेषक को होनी चाहिये।। यदि सम्प्रेषक की खुशी को ध्यान में रखकर सम्प्रेषण किया जाय तो श्रोता कभी भी सन्देश को अस्वीकार नहीं करेगा। लुभावने विज्ञापन जो व्यक्ति को कहीं न कहीं से खुश करते हैं, वे उनके विचारों में बदलाव लाने में भी सक्षम हो जाते हैं।

Business Theories Communication Audience

श्रोता की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि

(Satisfying Audience Needs)

श्रोता जो सुनना चाहता है, यदि सम्प्रेषक वही सुनाता है तो श्रोता को सन्तुष्टि प्राप्त होती है। श्रोता की व्यवहारिक आवश्यकता, सूचना सम्बन्धी आवश्यकता एवं श्रोता की खुशी से सम्बन्धित आवश्यकता को यदि सम्प्रेषक समझ जाता है और उसके अनुरूप सन्देश का सम्प्रेषण करता है तो सन्देश प्रभावशाली सिद्ध होगा। इन विभिन्न आवश्यकताओं को निम्नलिखित प्रकार सन्तुष्ट करने का प्रयास किया जा सकता

(1) श्रोता की सूचना सम्बन्धी आवश्यकताएँ सन्तुष्ट करना (Satisfying the Audience’s Information Needs)—प्रभावपूर्ण संचार के लिए सम्प्रेषक को अपने श्रोताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप सम्प्रेषण करना चाहिए। श्रोताओं को वह सब जो वे जानना चाहते हैं एक अर्थपूर्ण प्रारूप में देने का प्रयत्न करना चाहिए। इस हेतु निम्नलिखित बातों का अनुसरण करना आवश्यक है- –

(i) इस बात का ज्ञान होना कि श्रोता क्या जानना चाहता है? (Find out What the Audience wants to Know)?-श्रोता की सूचना सम्बन्धी आवश्यकता को सन्तुष्ट करने के लिये इस बात का ज्ञान होना परमावश्यक है कि श्रोता की इच्छा क्या है तथा वह क्या जानना चाहता है? अनेक बार श्रोता क्या चाहता है, यह ज्ञात करना आसान होता है, परन्तु कई अवसरों पर श्रोता स्वयं यह नहीं बता पाता कि वह क्या जानकारी चाहता है। जैसे यदि आप एक सूचना के लिए अस्पष्ट प्रार्थना प्राप्त करते हैं तो श्रोता से एक बार यह अवश्य पूछ लेना चाहिये कि उसकी आवश्यकता क्या है। यदि सन्देश प्रेषक अथवा श्रोता के मन में किसी प्रकार का सन्देह है तो इसे बिना समय नष्ट किये स्पष्ट कर लेना चाहिये। यदि हम अपने संशयों को समय रहते स्पष्ट कर लेंगे तो इससे संचार प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

(ii) अनकहे प्रश्नों का अनुमान लगाना (Anticipate Unstated Questions)-आपको यह भी ज्ञात करने का प्रयास करना चाहिए कि श्रोता के लिए क्या आवश्यक है अर्थात् उसकी आवश्यकता के आधार पर अनकहे प्रश्नों का भी अनुमान लगा लेना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप स्वाति प्रकाशन में विपणन अधिकारी नियुक्त हैं तथा आपको यदि एक पुस्तक विक्रेता से एक पत्र प्राप्त होता है। कि विक्रेताओं को पुस्तकों पर कितना कमीशन दिया जाता है? इसके उत्तर में आप यदि उसे कमीशन की जानकारी के साथ-साथ अपना सूची-पत्र भी भेजते हैं जिसमें इस प्रकाशन से छपने वाली पुस्तकों का नाम, लेखक का नाम, उनका मूल्य तथा पृष्ठ संख्या आदि का विवरण दिया हुआ है तथा साथ ही माल भेजने की शर्तों का भी उल्लेख करते हैं, तो पुस्तक विक्रेता आपको माल मँगाने के लिये आदेश भेज सकता है।

(iii) सम्पूर्ण आवश्यक सूचना उपलब्ध कराना (Provide all the Required Information)-श्रोताओं को सूचना सम्बन्धी आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त करने के पश्चात तरन्त। ही आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। इस गतिविधि की पूर्णता जाँचने का सबसे

व्यावसायिक संचार सरल मार्ग है छ: “क” : कौन (Who), क्या (What), कब (When), कहाँ (Where), क्यों (Why), तथा कैसे (How)

आपको अपने श्रोता को यह स्पष्ट रूप से बताना चाहिये कि आप उनसे क्या चाहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपके कर्मचारी रविवार के दिन भी आयें तो उन्हें इस सम्बन्ध में स्पष्ट सूचना दी जानी चाहिए। अपने सन्देशों को स्पष्ट रखना चाहिय। अस्पष्ट सन्देशों से आप अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पायेंगे।

(iv) यह निश्चित करना कि सचना सत्य है (Be Sure that Information is Accurate)-व्यवसाय में किसी बाहरी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का लिखित आश्वासन देने से पहले यह आवश्यक है कि सभी तथ्यों पर पुनः विचार कर लिया जाये। लिखित आश्वासन देने पर व्यवसाय के ऊपर यह कानूनी बन्धन लग जाता है कि उस लिखित आश्वासन का पालन किया जाए। अत: लिखित आश्वासन देते समय सभी बिन्दुओं का गहराई से अध्ययन करें। अनेक अवसरों पर ऐसा होता है कि आप किसी के द्वारा मांगी गई सूचना उपलब्ध कराते हैं, परन्तु वह सूचना गलत निकलती है। इस अवस्था में, बिना समय नष्ट किये सूचना प्राप्तकर्ता से सम्पर्क करके अपनी गलती को स्वीकार कर लेना चाहिए। इससे दूसरे व्यक्ति आपकी ईमानदारी की प्रशंसा करेंगे तथा आपके द्वारा की गई गलती को क्षमा कर देंगे।

सूचना की सत्यता को बार-बार परखना चाहिए। इस बात को भी निश्चित कर लेना चाहिए कि आपका व्यवसाय आपके द्वारा किये गये लिखित आश्वासनों को पूरा कर सकता है अथवा नहीं। इसके पश्चात् यह भी निश्चित कीजिये कि आपके द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना सही है। यदि सूचना किसी बाहरी स्रोत से ली गई है तो उसकी शुद्धता तथा सत्यता निश्चित कर लेनी चाहिए।

(v) श्रोता की रूचि से सम्बन्धित विचारों को महत्त्व देना (Emphasize Ideas of Interest to the Audience)-अपरिचित श्रोता के साथ अथवा एक समूह से संवाद करते समय उनकी रूचि के मुख्य अंशों को समझकर उसी के अनुरूप विवरण देना चाहिए। इसमें आयु, वर्ग, कार्य, स्थल, आय तथा शिक्षा इत्यादि जैसे कारक आपकी बहुत मदद कर सकते हैं। यदि आप एक पुस्तक बेचने की चेष्टा कर रहे हैं तो विद्यार्थियों के लिये वह मितव्ययी होनी चाहिए। एक पाठक के लिये पर्याप्त पठनीय सामग्री होनी चाहिए। एक व्यवसाय संचारकर्ता (Communicator) के रूप में आपका मुख्य उद्देश्य अपने श्रोताओं को उनकी रुचियों के अनुसार सूचना प्रदान करने का होना चाहिये।

(2) श्रोता की प्रेरणा सम्बन्धी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करना (Satisfying the Audience’s Motivational Needs)-कुछ सन्देशों का मुख्य उद्देश्य श्रोताओं को अपने व्यवहार (Behaviour) तथा विचारों (Beliefs) में परिवर्तन लाने के लिये अभिप्रेरित करने का होता है। संचारक के लिए मुख्य समस्या उस समय आती है जब उसे श्रोताओं के विरोध का सामना करना पड़ता है। श्रोतागण कई अवसरों पर सूचना को सुने बिना ही उसे अस्वीकार कर देते हैं। इस प्रकार के विरोध को रोकने के लिये सन्देश को इस प्रकार से प्रवाहित करना चाहिये कि वह सभी को स्वीकार्य हो। उदाहरण के लिए यदि आप किसी उपभोक्ता सामान जैसे वाशिंग पाउडर के विक्रयकर्ता हैं और आप घर-घर जाकर उपभोक्ताओं को वाशिंग पाउडर खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं तो श्रोता द्वारा आपके सन्देश को न सुनने की समस्या अधिक आती है। कई श्रोता तो दरवाजा खोलने से पहले ही कह देते हैं-“जाओ भाई हमें कुछ नहीं खरीदना।” श्रोताओं के इस प्रकार के व्यवहार और दृष्टिकोण को बदलने के लिए उनकी प्रेरणात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करना आवश्यक है। उपभोक्ताओं से मिलने का समय लेना, उनसे अन्य वार्तालाप करना, जो बातें उन्हें पसन्द हैं, उन पर अधिक जोर देना और फिर धीरे-धीरे अपनी बात पर आना, ये कुछ ऐसी बातें हैं जो श्रोता का व्यवहार परिवर्तन करने में सहायता करती हैं।

(3) श्रोताओं की व्यावहारिक आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करना (Satisfying the Audience’s Practical Needs)-श्रोता की प्रेरणात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करने से वह संचारकर्ता की बात सुनने के लिए राजी हो जाता है लेकिन वह सन्देश को स्वीकार भी करे, इसके लिए सन्देश को सरल, सहज तथा स्वीकार्य बनाया जाना आवश्यक है। आज के युग में Business-‘Busi-ness’ अर्थात् व्यस्तता का पर्याय बन गया है। श्रोताओं को अनेक प्रकार के सन्देश सुनने पड़ते हैं तथा उन्हें अपने पद से सम्बन्धित भी अनेक काम होते हैं। इस सबके बीच वे अत्यन्त व्यस्त होते हैं। अत: सन्देश प्राप्त करने का व्यावहारिक पहलू यह है कि प्राप्तकर्ता या श्रोता के पास समय की बड़ी कमी होती है। ऐसे में वह लम्बा सन्देश सुनने में रुचि नहीं रखता। अत: प्रेषक को सन्देश की विषय-वस्तु मोटे शीर्षक के रूप में लिखनी चाहिए तथा आवश्यकता होने पर सन्देश का सार भी

सक्षप में देना चाहिए जिससे श्रोता कम समय में सन्देश की मख्य बातों से परिचित हो सका सचारकत्ताओं को इस उद्देश्य की पर्ति के लिए सन्देश को आवश्यकतानुसार चित्रों, आलेखों तथा सारिणा रूप में भी प्रस्तुत करना चाहिए। इससे श्रोता सन्देश के प्रति अधिक सचेत एवं सजग होंगे।

Business Theories Communication Audience

श्रोता विश्लेषण के उद्देश्य

(Objects of Audience Analysis)

श्रोता विश्लेषण का एक मात्र उद्देश्य होता है सन्देश को प्रभावशाली बनाना। श्रोता विश्लेषण के अन्तर्गत जब हम श्रोता की शिक्षा, ज्ञान, समझ. विवेक, विचार, आवश्यकता आदि को जानने का प्रयास करते हैं तो उसका उद्देश्य होता है कि हम इन बातों को ध्यान में रखते हुये ही सन्देश सम्प्रेषित करें। अतः श्रोता विश्लेषण का उद्देश्य श्रोता की इच्छानुसार सन्देश सम्प्रेषण कहा जा सकता है।

सम्प्रेषण में श्रोताओं की जागरूकता का विश्लेषण निम्नलिखित चार महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्भर करता है जिनको श्रोता विश्लेषण के उद्देश्य कहा जाता है

(i) श्रोताओं तक पहुँच (Audience Coverage) सम्प्रेषण श्रोताओं के किस वर्ग, खण्ड, क्षेत्र तक पहुंच रखता है ? दूसरे शब्दों में, सम्प्रेषण के फैलाव की परिधि में कितने श्रोता शामिल होते हैं ? इसको श्रोताओं तक पहुँच भी कहा जाता है।

(ii) श्रोताओं का प्रतिउत्तर (Audience Response)-सम्प्रेषण प्राप्तकर्ता अथवा श्रोताओं ने प्रतिउत्तर किस प्रकार दिया है ? क्या वे सन्देश के वास्तविक अर्थ को समझे ? क्या सन्देशानुसार वांछित प्रतिक्रिया हुई ? क्या प्रतिक्रियाओं का रूख सकारात्मक है?

(iii) सम्प्रेषण प्रभाव (Communication Impact)-क्या सम्प्रेषण ने श्रोताओं पर कोई प्रभाव डाला ? क्या श्रोताओं के दृष्टिकोण एवं विचारों पर सार्थक प्रभाव पड़ा है।

(iv) प्रभाव की प्रक्रिया (Process of Influence)-श्रोताओं को किस प्रक्रिया द्वारा प्रेरित किया गया है ? किस सम्प्रेषण माध्यम का कितना प्रभावकारी उपयोग सम्प्रेषण में किया गया है ? श्रोताओं के ऊपर पड़े प्रभावों का प्रतिउत्तर किस प्रकार दिया गया है ?

Business Theories Communication Audience

श्रोता विश्लेषण के विभिन्न चरण

(Various Steps of Audience Analysis)

प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के लिये श्रोता विश्लेषण अत्यन्त आवश्यक होता है। इसके लिये सन्देश प्रेषक को निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना पड़ता है

(1) श्रोता समूह के आकार एवं संरचना सम्बन्धी सूचनाओं का संग्रह (Collection of Information about Size and Structure of Audience)-अलग-अलग प्रकार के श्रोता समूहों के लिए अलग-अलग संचार तकनीक का प्रयोग किया जाता है क्योंकि छोटे एवं बड़े समूहों के श्रोता एक सा व्यवहार नहीं करते। श्रोता समूह के आकार के साथ-साथ उसकी संरचना की सामान्य जानकारी होना भी परम आवश्यक है। छोटे श्रोता समूह में अधिक भिन्नताएँ नहीं होती हैं जबकि बड़े समूह में श्रोताओं की शिक्षा, रुचियाँ, जीवन-स्तर तथा दृष्टिकोण में पर्याप्त भिन्नताएँ होती हैं। अतः सम्प्रेषण करते समय श्रोताओं के आकार व संरचना का प्राथमिक ज्ञान होना आवश्यक होता है।

(2) प्राथमिक श्रोता का पता लगाना (To know the Primary Audience)-संचार प्रक्रिया में प्राथमिक श्रोता का पता लगाना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यही श्रोता वास्तव में सन्देश को प्राप्त । करके उस पर अपनी कार्यवाही करता है। अत: यदि यह पता लग जाए कि प्राथमिक श्रोता कौन है, तो उसी के विषय में अधिक से अधिक सूचनाएँ एकत्रित की जानी चाहिए। सामान्य रूप में प्राथमिक श्रोता एक संगठन के उच्च पदासीन व्यक्ति भी हो सकते हैं और निचले स्तर पर भी कार्यरत हो सकते हैं। परन्तु ऐसे श्रोता प्राय: विशिष्ट कार्यों में ही व्यस्त रहते हैं तथा उसी से सम्बन्धित निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।

(3) श्रोताओं की सम्भावित प्रतिक्रिया जानना (Having Knowledge about expected Reaction of Audience)-श्रोता विश्लेषण के लिये श्रोताओं की संदेश पर संभावित प्रतिक्रिया जानना महत्त्वपर्ण है। यदि हम यह चाहते हैं कि श्रोता हमारे संदेश पर अनुकूल प्रतिक्रिया दे या उनका रुख सकारात्मक रहे तो हमें बड़ी स्पष्टता से संदेश के निष्कर्ष एवं सुझावों से उन्हें अवगत कराना होगा। श्रोता को प्रभावित करने के लिए प्रमाणों का प्रयोग किया जा सकता है। बड़े श्रोता समह के समक्ष संदेश के सझावों एवं निष्कर्षों को अत्यधिक प्रामाणिकता तथा क्रमबद्धता से प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि श्रोता समूह जितना बड़ा होता है, आलोचक प्रकृति के व्यक्ति उतने ही अधिक होते हैं। छोटे श्रोता समह के सामने सीधे निष्कर्ष एवं सुझावों के विषय में बात की जा सकती है।

(4). व्यावसायिक संचार Understanding Level of Audience)-दिये जा रहे संदेश के सम्बन्ध में संचारकर्ता को श्रोता के अनुभव, विवेक एवं परिवेश का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक होता है। यदि संदेश की पृष्ठभूमि से श्रोता का परिवेश एवं ज्ञान मेल नहीं खाता तो श्रोता को अधिक शिक्षित करने की आवश्यकता होती है। श्रोता के विवेक का आकलन सन्देश प्रेषक उससे दो चार प्रश्न पूछकर कर सकता है और यह जान सकता है। कि श्रोता को कितना शिक्षित करने की आवश्यकता है।

(5) श्रोताओं से सम्प्रेषक का किस प्रकार का सम्बन्ध है? (What type of relation is there between Communicator and Audience)-सन्देश देने वाले का श्रोताओं के साथ सम्बन्ध केसा है, यह जानना भी अत्यन्त आवश्यक होता है। एक संगठन में आपका पद व श्रोताओं से आपका सम्बन्ध, आपके सन्देश की शैली, आवाज एवं प्रस्तति को प्रभावित करता है। उच्चाधिकारियों से संचार का ढंग, सहयोगियों या अधीनस्थों के साथ संचार के ढंग से भिन्न होता है। इसी प्रकार यदि किसी ग्राहक, ऋणदाता, अंशधारी अथवा लेनदार के साथ संचार होता है तो प्रत्येक अवस्था में संदेश की शैली एवं प्रस्तुतिकरण बदल जाता है। यदि प्रेषक तथा श्रोता अपरिचित हैं तो सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए श्रोताओं को अपने विश्वास में लेना आवश्यक होता है। यदि प्रेषक के प्रति श्रोता के मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह या छवि बनी हुई है तो संचारकर्ता को अपने संवाद से पहले इसे समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि श्रोता हर पल संचारकर्ता की योग्यता एवं संदेश की उपयोगिता का विश्लेषण कर रहा होता है। अत: कभी-कभी संदेश की परिधि के बाहर जाकर भी संवाद करना उपयोगी होता है।

Business Theories Communication Audience

सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से ओता विश्लेषण

(Audience Analysis as a Group and as an Individual)

संचारकर्ता को सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से श्रोताओं का विश्लेषण करना आवश्यक होता है। संचारकर्ता यदि श्रोता से पहले से परिचित है तो ऐसे श्रोता का विश्लेषण आसान हो जाता है। श्रोता का विश्लेषण करते समय कुछ बातों की जानकारी आवश्यक होती है, जैसे-श्रोता कौन है? उसका संचारकर्ता से क्या सम्बन्ध है? संचार की विषय-वस्तु या उसकी पृष्ठभूमि से वह कितना परिचित है? सन्देश पर श्रोता की सम्भावित प्रतिक्रिया क्या होगी? वैसे तो ये सभी प्रश्न श्रोताओं का विश्लेषण करते समय आवश्यक हैं किन्तु विश्लेषण में अन्य बहुत से तथ्य भी ध्यान में रखे जाने चाहिए जैसे आयु वर्ग, लिंग, पद, शैक्षिक योग्यता, बौद्धिक स्तर, सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि आदि।

श्रोता विश्लेषण के अनेक अध्ययन किये गये हैं जिनके कुछ सामान्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं

  • शिक्षित श्रोता चाहे किसी भी उम्र का हो, प्राय: अधिक चतुर होता है।
  • अवसर एवं प्रसंग के अनुसार श्रोताओं की प्रतिक्रिया बदल जाती है जैसे कारों की प्रदर्शनी में केवल धनी एवं विलासिता प्रिय लोग ही भाग लेंगे।
  • धनी व्यक्ति सामाजिक परिवर्तन के प्रति उदासीन होते हैं।
  • गरीब व्यक्ति सामाजिक परिवर्तन के सन्देश को ध्यान से सुनता है।
  • बच्चों पर नाट्य शैली का अधिक प्रभाव पड़ता है। आवेग, हर्ष, शोक, खेद आदि से सम्बन्धित सन्देश यदि उन्हें कहानी, नाटक के माध्यम से दिये जायें तो संचार अधिक प्रभावी होता है।
  • किशोरावस्था में श्रोताओं पर टी.वी. आदि दृश्यिक उपकरणों का प्रभाव अधिक पड़ता है। वे आज्ञाकारी. वयस्क की भाँति व्यवहार करने की चेष्टा करने वाले तथा अपेक्षाकृत कम चतुर होते हैं। उनकी विवेचन क्षमता भी प्रायः कम होती है।
  • तरुण उम्र के श्रोता नये सन्देशों को बड़े चाव से सुनते हैं। वे सीधे, सरल, चौकन्ने, ईमानदार एवं आदर्शवादी होते हैं। प्राय: कॉलेज के विद्यार्थी इस श्रेणी के श्रोता होते हैं।
  • वयस्क श्रोता प्राय: विकासोन्मुखी, प्रवीण, व्यापक रुचि वाले, नयी-नयी बातों को पसन्द करने वाले तथा विनम्र स्वभाव वाले होते हैं।
  • प्रौढ़ उम्र के व्यक्ति प्राय: नये विचारों या सन्देशों को आसानी से स्वीकार नहीं करते। ये अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर पुराने विचारों पर डटे रहते हैं तथा परिवर्तन के प्रति उदासीन होते हैं। यद्यपि इन्हें यदि कोई सन्देश अत्यन्त रुचिकर ढंग से तथा आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाये तो ये उसका श्रवण तो ध्यान से करते हैं लेकिन उसके आधार पर अपने विचारों को परिवर्तित नहीं करते। ऐसे श्रोता प्राय: संकुचित विचारधारा वाले होते हैं।

इसके अतिरिक्त अन्य ऐसी कई बातें हैं जिनकी जानकारी एक सम्प्रेषक या वक्ता को होनी चाहिए  जस श्रीता की शैक्षिक या सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि जो कि श्रोता की समझ व सहमति को मावत करती है। किसी भी उम्र का शिक्षित व्यक्ति स्वभावत: अधिक प्रवीण या चतुर होता है। धनी व्यक्ति सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर नहीं होते. जबकि एक निर्धन या गरीब व्यक्ति परिवर्तन के प्रति जिज्ञासु होता है। इसके साथ-साथ अवसर व प्रसंग भी श्रोता की प्रकृति को कुछ सीमा तक विश्लेषित करता है। उदाहरण के लिए एक फोटोग्राफी प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में केवल वही व्यक्ति सहभागी होंगे जो फोटोग्राफी में विशेष रुचि रखते हैं जबकि एक बच्चों के पार्क के उद्घाटन समारोह में केवल बच्चे ही श्रोता होंगे।

अतः स्पष्ट है कि सम्प्रेषक को अपने श्रोताओं का विश्लेषण करना आवश्यक है चाहे वह समूह रूप में हो या एकल स्वरूप में। यदि वह श्रोता पूर्व परिचित है, उदाहरणार्थ, अधिकारी या सहकर्मी तो श्रोता का विश्लेषण अत्यन्त ही आसान होता है, परन्तु यदि श्रोता समूह में है तो उनका परीक्षण व विश्लेषण अत्यन्त जटिल होता है। इसके लिए सम्प्रेषक को श्रोताओं से उनके बारे में कुछ प्रश्न पूछकर, जैसे, वे कौन हैं? उनकी सन्देश पर सम्भावित प्रतिक्रिया क्या होगी? वे प्रासन्गिक विषय-वस्तु से कितने पर्व परिचित हैं? व सम्प्रेषक का उनसे क्या सम्बन्ध है? इत्यादि जानकारी प्राप्त करना उपयुक्त होगा।

Business Theories Communication Audience

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 सम्प्रेषण के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

Discuss the various theories of communication.

2. श्रोता विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य एवं अवस्थाओं को समझाइए।

What do you understand by Audience Analysis? Clarify its objectives and types.

3. श्रोता विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न चरण लिखिए।

What do you mean by Audience Analysis? Write its various types.

Business Theories Communication Audience

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिद्धान्त को समझाइए।

Explain communist communication theory.

2. उदारवादी संचार सिद्धान्त को समझाइए।

Explain liberal communication theory.

3. वैदिक सम्प्रेषण सिद्धान्त को समझाइए।

Explain medic communication theory.

4. संचार के बोध क्षमता सिद्धान्त को समझाइए।

Explain perception theory of communication.

5. संचार के व्यवहारिक सिद्धान्त को समझाइए।

Explain transaction theory of communication.

6. संचार के आधुनिक सिद्धान्त को समझाइए।

Explain modern theory of communication.

7. श्रोता विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के श्रोताओं की व्याख्या कीजिए।

What is meant by Audience analysis? Discuss the different types of audiences.

Business Theories Communication Audience

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Business Effective Communication Study Material Notes In Hindi

Next Story

BCom 1st Year Business Self Development Communications Study material Notes in Hindi

Latest from BCom 1st Year Business Communication Notes