BCom 2nd Year Income Tax An Introduction Study Material Notes in Hindi
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BCom 2nd Year Income Tax An Introduction Study Material Notes in Hindi : Brief History of Income Tax in India Main Features of the Indian Income tax System at a Glance Main Components of the Indian Income Tax System Circulars and Clarification of the Central Board of Direct Taxes Surcharge Marginal Relief ( This Post Is Most Important For BCom 2nd Year Examination )
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आय–कर : एक परिचय
(INCOME TAX : AN INTRODUCTION)
‘आय-कर’ जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है. आय पर लगने वाला एक कर है। भारतीय संविधान के अन्तर्गत आय-कर वसूल करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दिया गया है। संक्षेप में, ‘आय-कर’ एक ऐसा प्रत्यक्ष कर है जो किसी व्यक्ति की किसी वर्ष के । लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित कर-मुक्त आय की अधिकतम सीमा से अधिक कर योग्य वार्षिक आय पर उस वर्ष के लिए निर्धारित । दरा स केन्द्रीय सरकार द्वारा वसूल किया जाता है। आय-कर की गणना तथा वसुली का कार्य केन्द्रीय सरकार के एक पृथक् विभाग, जिस आय-कर विभाग (Income-tax department) कहते हैं, द्वारा किया जाता है। यह विभाग ‘प्रत्यक्ष-करों के केन्द्रीय बोर्ड (Central Board of Direct Taxes) के नियन्त्रण एवं देखरेख में कार्य करता है तथा प्रत्यक्ष-करों का केन्द्रीय बोर्ड ‘वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) भारत सरकार के अधीन होता है। इस प्रकार, आय-कर भारत सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। निश्चित मानदण्डों के आधार पर आय-कर की राशि को केन्द्र एवं राज्यों के मध्य वितरित किया जाता है। राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक 5 वर्ष के अन्तराल में वित्त आयोग की नियुक्ति की जाती है जो वितरण के मापदण्डों पर अपने सुझाव देता है।
भारत में आय–कर का संक्षिप्त इतिहास
(Brief History of Income-tax in India)
(अ) स्वतंत्रता से पूर्व भारत में आय-कर की स्थिति
1 आय–कर अधिनियम, 1860 (Income Tax Act, 1860)-भारत में आय-कर सर्वप्रथम सन् 1860 में सर जेम्स विलसन द्वारा लगाया गया था। सन् 1860 का आय-कर अधिनियम ब्रिटिश आय-कर अधिनियम पर आधारित था। इस अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित चार प्रकार की आयों पर आय-कर लगाने की व्यवस्था थी—(1) वेतन एवं पेंशन, (2) प्रतिभूतियों से आय, (3) भूमि एवं सम्पत्ति की आय. इसमें कषि आय भी सम्मिलित थी, (4) व्यापार या पेशे की आय। इस प्रकार, इस अधिनियम में कृषि आय पर भी आय-कर लगाने का प्रावधान था।
इस अधिनियम में सन् 1863, 1867, 1871, 1873, 1878 एवं 1880 में अनेक संशोधन किये गये।
2. आय–कर अधिनियम, 1886 (Income tax Act, 1886)-आय-कर को स्थायी रूप देने के उद्देश्य से ‘आय-कर अधिनियम 1886’ पारित किया गया। इस अधिनियम में कृषि आय को कर मुक्त घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आयें कर-योग्य मानी गई। यह अधिनियम 1917 तक लागू रहा। यह अधिनियम भारत में आय-कर की आधारशिला माना जा सकता है।
3. आय–कर अधिनियम, 1918 (Income Tax Act, 1918)-सन् 1918 में एक नया आय-कर अधिनियम पारित किया गया, क्योंकि प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न आर्थिक संकट को दूर करने के लिए आय के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में आय-कर का प्रयोग किया जाना था।
इस अधिनियम में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया गया था
(i) चालू-वर्ष की आय पर आय-कर वसूल किया जाना।
(ii) आकस्मिक प्राप्तियों (Casual receipts) को कर-योग्य आय मानना।
(iii) ‘अधिकर’ को स्थायी बनाना।
(iv) ऊँची दरों से आय-कर वसूल करना।
4. आय–कर अधिनियम, 1922 (Income-tax Act, 1922)-सन् 1919 में ‘भारत सरकार अधिनियम 1919 पारित किया गया, जिसके अन्तर्गत आय-कर को केन्द्रीय सरकार का विषय बनाया गया। सन् 1921 में भारत सरकार ने कर ढाँचे में। परिवर्तन हेतु एक ‘अखिल भारतीय कर जांच समिति’ की नियुक्ति की। समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर ‘आय-कर अधिनियम 1922 पारित किया गया। इस अधिनियम की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार थी
(i) 1924 में ‘केन्द्रीय राजस्व बोर्ड’ (Central Board of Revenue) की स्थापना।
(ii) ‘गत वर्ष की आय पर चालू वर्ष में कर-निर्धारण’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन।
(iii) ‘आय-कर’ के साथ-साथ ‘अधि-कर’ लगाने की व्यवस्था।
(iv) ‘कर की दरों के लिए ‘वित्त अधिनियम’ (Finance Act) में प्रावधान करने की व्यवस्था आदि।
इस अधिनियम में समय-समय पर अनेक संशोधन किये गये, परन्त सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन 1939 में किया गया जिसके आय की श्रेणीकरण व्यवस्था के स्थान पर खण्ड-प्रणाली (Slab System) लागू की गई।
(ब) स्वतंत्रता के बाद भारत में आय–कर की स्थिति
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सन् 1950 में भारतीय संविधान लाग हआ। आय-कर अधिनियम, 1922 की जटिलताओं को दूर करने तथा इसे अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए सन् 1956 में सरकार ने इस अधिनियम को ‘विधि आयोग’ (Law | Commission) के सुपुर्द कर दिया। विधि आयोग ने सितम्बर 1958 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी, किंतु इसी दौरान डा० महावीर त्यागी की अध्यक्षता में ‘प्रत्यक्ष कर प्रशासन जांच समिति’ गठित कर दी गयी। इस समिति ने 1959 में अपनी रिपोर्ट। प्रस्तुत की। तदुपरांत ब्रिटिश अर्थशास्त्री प्रो० कॉलडार से प्राप्त सुझावों तथा संविधान की 7वीं अनुसूची की सूची (1) के अन्तर्गत प्राप्त अधिकारों के फलस्वरूप उक्त दोनों समितियों के आधार पर सरकार ने एक बिल संसद में पेश किया, जो पारित होने के पश्चात् “आय-कर” अधिनियम, 1961 कहलाया।
वर्तमान आय–कर अधिनियम 1961 सम्पूर्ण भारत (जम्मू–कश्मीर राज्य सहित) में 1 अप्रैल 1962 से लागू किया गया। इसमें 298 धाराएँ एवं 14 अनुसूचियाँ दी गयी हैं।
भारतीय आय–कर व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण अंग
(Main Components of the Indian Income-tax System)
भारतीय आय-कर व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण अंग निम्न प्रकार हैं
1 आय–कर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961)-आय-कर अधिनियम, 1961 जम्मू कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में 1 अप्रैल, 1962 से लागू किया गया। वर्तमान में इस अधिनियम के अन्तर्गत 298 धाराएँ, विभिन्न उपधाराएँ तथा 14 अनुसूचियाँ हैं। इस अधिनियम को समय-समय पर संशोधित किया जाता रहा है। प्रत्येक वर्ष पारित होने वाले वित्त अधिनियम (Finance Act) के अनुसार आय-कर अधिनियम की धाराओं एवं उपधाराओं में परिवर्तन एवं संशोधन होते रहते हैं।
2. आय–कर नियम, 1962 (Income Tax Rules, 1962)-आय-कर नियम, आय-कर अधिनियम के अनुपूरक हैं, जिनमें आय-कर अधिनियम में वर्णित विभिन्न धाराओं से सम्बन्धित विस्तृत नियमों, विभिन्न फॉर्मो, प्रपत्रों आदि की विवेचना की गई है। आय-कर नियमों में भी आय-कर अधिनियम की भाँति समय-समय पर संशोधन व परिवर्तन होते रहते हैं।
3. राजकीय अधिसूचनाएँ (Government Notifications)-भारत सरकार का वित्त मन्त्रालय (Ministry of Finance) आय-कर से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में अधिसूचनाएँ जारी करता रहता है। आय-कर का अध्ययन करते समय इन अधिसूचनाओं को भी ध्यान में रखना होता है।
4. वार्षिक वित्त अधिनियम (Annual Finance Act)-जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि सामान्यतया प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी को वित्त मंत्री द्वारा लोक सभा (संसद) में आगामी 1 अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष (गत वर्ष) के सम्बन्ध में वित्त विधेयक (Finance Bill) पेश किया जाता है। पूरे दिन टी० वी० एवं रेडियो पर इसकी चर्चा चलती रहती है। हमारे देश का प्रत्येक व्यक्ति इसे सुनने का प्रयास करता है कि सम्बन्धित वित्त विधेयक/बजट की मुख्य-मुख्य बातें क्या है ? अगले दिन सभी समाचार-पत्र भी इसी वित्त विधेयक की सूचना को ही पूरी तरह से हाईलाईट करते हैं। इस वित्त विधेयक में आगामी 1 अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष हेतु आय-कर की प्रस्तावित दरें होती हैं एवं आय-कर के विभिन्न प्रावधानों में प्रस्तावित संशोधनों/परिवर्तनों का उल्लेख होता है। लोक सभा एवं राज्य सभा दोनों सदनों में वित्त विधेयक पर चर्चा व पारित होने के उपरान्त वह वित्त अधिनियम (Finance Act) का रूप धारण कर लेता है। इस बात को ध्यान से समझ लें कि फरवरी 2018 में प्रस्तावित वित्त विधेयक संसद/राज्य सभा दोनों सदनों में पारित होने के उपरान्त उक्त विधेयक में उल्लेखित आय-कर की दरें एवं संशोधन वित्तीय वर्ष 2018-19 (1.4.2018 से 31.3.2019) अर्थात् कर निर्धारण वर्ष 2019-20 में प्रभावी/लागू होंगे। अत: कर। निर्धारण वर्ष 2018-19 में वित्त अधिनियम, 2017 में पारित आय-कर की दरें एवं संशोधन प्रभावी/लागू होंगे। यदि किसी कारणवश सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की 1 अप्रैल तक वित्त विधेयक पारित नहीं हो पाता है तो आय-कर नियम, 1962 की धारा 294 के अनुसार प्रस्तावित वित्त विधेयक अथवा वित्त विधेयक के पूर्व वाले वित्त अधिनियम में से जो भी करदाता के पक्ष में हो, उसके प्रावधान लाग होंगे। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि यदि किसी कर-निर्धारण वर्ष की 1 अप्रैल तक वित्त विधेयक ही। तैयार नहीं किया गया है तो सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष से ठीक पूर्व वाले कर-निर्धारण वर्ष में लाग आय-कर अधिनियम के । प्रावधान ही लागू होंगे जब तक कि सम्बन्धित चालू कर-निर्धारण वर्ष के लिए प्रावधान न बन जायें।।
5. केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के परिपत्र तथा स्पष्टीकरण (Circulars and Clarifications of the Central Board of Direct Taxes)-आय-कर से सम्बन्धित विवादास्पद मामलों अथवा आय-कर अधिनियम की किसी धारा या प्रावधान के। सम्बन्ध में अलग-अलग विचार या सन्देह होने की स्थिति में केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड स्पष्टीकरण या परिपत्र जारी कर सकता है।। ऐसे सभी स्पष्टीकरणों व परिपत्रों में दी गयी सूचनाओं की जानकारी परमावश्यक है
6. न्यायालयों के निर्णय (Court Decisions)-करदाता एवं आय-कर विभाग के मध्य विवाद के निपटारे हेतु करदाता न्यायालय की शरण ले सकता है। इस सम्बन्ध में करदाता आय-कर विभाग के अपीलेट ट्रिब्यूनल, उच्च न्यायालय एवं सर्वाच्च। न्यायालय की शरण ले सकता है। समय-समय पर न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णयों की जानकारी भी आय-कर अध्ययन के लिए। महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
Income Tax An Introduction
भारतीय आय–कर व्यवस्था के मुख्य बिन्दु एक दृष्टि में
(Main Features of the Indian Income-tax System At a Glance)
1 आय–कर किसी व्यक्ति (Person) की करयोग्य वार्षिक आय पर केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाया जाने वाला प्रत्यक्ष कर है। प्रत्यक्ष कर इसलिए है क्योकि आय-कर का भार उसी व्यक्ति पर पड़ता है जो आय अर्जित करता है अर्थात् आय-कर को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता।
2. व्यक्ति, हिन्दू अविभाजित परिवार, साझेदारी फर्मे, कम्पनियाँ, ट्रस्ट, संस्थान आदि सभी व्यक्ति (Person) आय-कर चुकाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
3. आय-कर निर्धारण के लिए 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि वाले वित्तीय वर्ष को आधार माना जाता है। जिस वर्षमें आय कमाई जाती है, उसे गत वर्ष (Previous year) एवं जिस वर्ष में इस आय पर कर का निर्धारण होता है, उसे कर-निर्धारण वर्ष (Assessment year) कहते हैं।
4. कुल आय को 5 शीर्षकों में बाँटा गया है-वेतन से आय, मकान सम्पत्ति से आय, व्यापार अथवा पेशे से आय, पूँजी लाभ एवं अन्य साधनों से आया
5. आय के पाँचों शीर्षकों की करयोग्य आय के योग को सकल कल आय (Gross Total Income) कहते है।
6. इस सकल कुल आय (GTI) में से जीवन बीमा प्रीमियम, प्रॉविडेण्ट फण्ड में अशंदान, चिकित्सा बीमा, दान, नए। उपक्रमों के लाभ आदि के सम्बन्ध में धारा 80 की कटौतियाँ घटाने के बाद ज्ञात आय कुल आय (Total Income) या करयोग्य आय कहलाती है।
7. कुछ आयें करमुक्त (Exempted) हैं, जिन्हें कर योग्य आय में शामिल नहीं किया जाता, जैसे-भारत में कृषि आय, कम्पनियों से प्राप्त लाभांश, पोस्ट ऑफिस बचत खाते में जमाधन पर प्राप्त ब्याज, अनिवासियों की कुछ आयें, सार्वजनिक संस्थाओं की आयें आदि।
8. व्यक्ति एवं हिन्दू अविभाजित परिवार करदाता को सामान्य रूप से एक निश्चित सीमा तक की कुल आय पर कोई आय-कर नहीं देना पड़ता, लेकिन फर्म/कम्पनी आदि को अपनी सम्पूर्ण आय पर आय-कर देना पड़ता है।
9. जिन करदाताओं पर 10,000र से अधिक आय-कर चुकाने का दायित्व है, उन्हें अग्रिम कर (Advance Tax) चुकाना होता है। परन्तु धारा 207(2) के अनुसार कर-निर्धारण वर्ष 2013-14 से यह प्रावधान भारत में निवासी व्यक्ति पर लागू नहीं होगा जिसकी (अ) ‘व्यापार अथवा पेशे से लाभ एवं प्राप्तियों’ वाले शीर्षक में कोई कर-योग्य आय न हो, एवं (ब) गत वर्ष में वह 60 वर्ष या अधिक आयु का हो।
10. वेतन, ब्याज, किराया, कमीशन, फीस आदि भुगतान करने वाले व्यक्ति या संस्थान देय आय-कर की राशि को काटकर भुगतान करते हैं एवं सरकारी कोष में जमा कराते हैं। इसे ‘उद्गम स्थान पर कर की कटौती’ कहते हैं।
11. वित्तीय वर्ष 31 मार्च को समाप्त होने के बाद व्यक्ति करदाता को सामान्य रूप से 31 जुलाई तक अपनी आय का विवरण (Return of Income) प्रस्तुत करना पड़ता है। जिनके लेखों का अंकेक्षण होता है, उन्हें 30 सितम्बर तक आय की विवरणी प्रस्तुत करनी पड़ती है।
12. निर्धारित तिथि तक अग्रिम कर या देयकर नहीं जमा कराने पर 1% मासिक की दर से ब्याज चुकाना पड़ता है।
13. आय-कर अधिनियम के प्रावधानों एवं नियमों के उल्लंघन करने पर अर्थदण्ड एवं सजाओं के लिए करदाता उत्तरदायी होता है।
14. आय-कर अधिकारी के किसी निर्णय या आदेश से असंतुष्ट होने पर करदाता को अपील करने का अधिकार होता है।
15. आय-कर दाता को अपनी पहचान के लिए स्थायी खाता संख्या (Permanent Account Number) जिसे पेन (PAN) कहते हैं, प्रदान किया जाता है।
कर निर्धारण वर्ष 2018-19 हेतु प्रभावी आय–कर की दरें एक दृष्टि में
(अ) निवासी पुरुष एवं महिला करदाता (60 वर्ष से कम आयु के), हिन्दू अविभाजित परिवार, व्यक्तियों का समूह (A.O.P.) अथवा प्रत्येक कृत्रिम व्यक्ति (Artificial Person) की दशा में
Income Tax An Introduction
आयकर में कटौती (Rebate of Income Tax) [धारा 87A]-भारत में निवासी व्यक्ति (An individual resident in India) (साधारण निवासी हो या असाधारण निवासी हो), जिसकी कुल कर योग्य आय 3,50,000 ₹ से अधिक नहीं है, देय आयकर की सम्पूर्ण राशि अथवा 2,500 ₹ दोनों में जो भी कम हो उतनी रकम की देय आय-कर में कटौती स्वीकृत की गई है। यह कटौती अधिभार (Surcharge) एवं शिक्षा उपकर (Education cess) जोड़ने से पूर्व दी जायेगी। यह कटौती HUF, AOP अथवा BOI को नहीं मिलेगी केवल एक individual resident को ही मिलेगी।
(स) 80 वर्ष या अधिक आयु वाले निवासी व्यक्ति (पुरुष एवं महिला) अति वरिष्ठ नागरिक (Super Senior Citizen) की दशा मेंआय के खण्ड
अधिभार (Surcharge)-यदि कुल आय 50 लाख से अधिक परन्तु एक करोड़ से अधिक नहीं है तो देय आयकर की राशि पर 10% सरचार्ज लगेगा। यदि कुल कर योग्य आय 1 करोड़ र से अधिक है तो आय-कर की देय राशि पर 15% की दर से अधिभार लगेगा।
सीमान्त राहत (Marginal Relief-यदि कल आय 50 लाख से अधिक है, परन्तु एक करोड़ से अधिक नहीं है। तो कर की राशि अधिभार (surcharge) सहित 50 लाख से अधिक आय की राशि पर इस आय से अधिक नहीं होगी। जब कल आय 1 करोडर से अधिक है तो कर की राशि अधिभार सहित 1 करोड़र से अधिक आय की राशि पर उक्त आय से अधिक नहीं होगी, परन्तु शिक्षा उपकर पर सीमान्त राहत नहीं मिलेगी।
(द) फर्म की दशा में आय-कर की दरें-फर्म की दशा में, विशिष्ट दर से कर योग्य आय (जैसे दीर्घकालीन पूँजी लाभ आदि) के अतिरिक्त अन्य सम्पूर्ण आय पर 30% की दर से आय-कर लगेगा।
Income Tax An Introduction
अधिभार (Surcharge)-यदि कुल कर योग्य आय 1 करोड़ ₹ से अधिक है तो आय-कर की देय राशि पर 12% की दर से अधिभार लगेगा।
सीमान्त राहत (Marginal Relief)-जब कुल आय 1 करोड़ से अधिक है तो कर की राशि अधिभार सहित 1 करोड़ से अधिक आय की राशि पर उक्त आय से अधिक नहीं होगी, परन्तु शिक्षा उपकर पर सीमान्त राहत नहीं मिलेगी।
शिक्षा उपकर (Education Cess)-देय आय-कर की रकम पर 2% की दर से शिक्षा उपकर (Education Cess) तथा। 1% की दर से माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा उपकर (SHEC) लगाया जायेगा।