BCom 2nd year Indian Tax System Study Material Notes In Hindi
Table of Contents
BCom 2nd year Indian Tax System Study Material Notes In Hindi: Merits of Indian tax System Demerits Suggestions for Improvement in Indian Tax System Attempts to Improve Tax System Proposals of Prof Kaldor Direct Tax Administration Enquirer Committee Achoo Direct Tax Equity Committee Measures to Curb Tax Evasion Chelliah Committee Chauksi Committee Indirect Taxes Direct Taxes Reconsecration o Kelkar Committee Personal Income Tax Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Question :
BCom 2nd Year Federal Finance India Study Material Notes in Hindi
भारतीय कर प्रणाली
(Indian Tax System)
“भारत में विभिन्न करों में न तो समन्वय है और न वे एक दूसरे के पूरक ही हैं। करों को लगाते समय विभिन्न वर्गों पर कर प्रभावों का अध्ययन भी नहीं किया जाता जिससे वितरण, रोजगार एवं उत्पादन पर कर के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। संक्षेप में भारतीय कर अवैज्ञानिक हैं।”
भारतीय कर प्रणाली में एक अच्छी कर प्रणाली के अधिकाँश गुणों का समावेश है। विशेष रूप से सन 1951 के बाद भारतीय कर प्रणाली में कुछ ऐसे प्रभावी परिवर्तन किये गये हैं जिससे हमारी कर संरचना की सार्थकता बढ़ी है फिर भी भारतीय कर प्रणाली दोष रहित नहीं है। भारतीय कर प्रणाली के प्रमुख गुण व दोष निम्नांकित हैं
Indian Tax System Notes
भारतीय कर प्रणाली के गुण (Merits of Indian Tax System)
भारतीय कर प्रणाली के प्रमुख गुण या विशेषताएँ निम्नांकित हैं
1 अधिक विस्तृत आधार-भारतीय कर प्रणाली का आधार काफी विस्तृत है। 1951 के बाद कर आधार को और अधिक व्यापक बना दिया गया है। 1951 में राष्ट्रीय आय में कर का प्रतिशत मात्र 7% था जो अब लगभग 13% हो गया है।
2. प्रगतिशील कर प्रणाली-चूँकि भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में आर्थिक विषमाताएँ व्याप्त हैं, अतः इन्हें कम करने के लिए प्रगतिशील करारोपण को अपनाया गया है।
3. करों की विविधता–भारतीय कर प्रणाली में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष लगभग सभी करों का समावेश किया गया है। इससे करारोपण में सामाजिक न्याय एवं करदेय क्षमता का पालन हुआ है तथा सरकारी राजस्व में लोच व उत्पादकता के गुण आये हैं।
4. आर्थिक विकास के अनुकूल-भारतीय कर प्रणाली देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक रही है। ‘एकल कर प्रणाली’ के स्थान पर ‘बहुल कर प्रणाली’ को अपनाया गया है, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों के बीच समन्वय स्थापित किया गया है तथा बचत, निवेश एवं उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये करों में अनेक प्रकार की छूट दी गई हैं। इससे न केवल विकास वित्त के लिए धन उपलब्ध हुआ है, अपितु उत्पादन एवं रोजगार को भी प्रोत्साहन मिला है।
5. भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुरूप-भारतीय अर्थव्यवस्था मूलतः एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों पर कर भार अधिक डाला गया है।
Indian Tax System Notes
भारतीय कर प्रणाली के दोष (Demerits)
भारतीय कर प्रणाली निम्नलिखित दोषों से युक्त है
1 अव्यवस्थित कर–व्यवस्था–भारतीय कर प्रणाली व्यवस्थित नहीं है और इसका विकास भी। वैज्ञानिक आधार पर नहीं हुआ है। इस कर प्रणाली में विभिन्न करों के भार तथा उनका उत्पादन, उपभोग व वितरण पर पड़ने वाले प्रभाव की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। साथ ही विभिन्न करों में समन्वय स्थापित करने का भी प्रयास नहीं किया गया है।
2. लोच का अभाव–भारतीय कर प्रणाली में लोक आय के अधिकांश साधन बेलोचदार हैं। इनसे प्राप्त होने वाली आय देश की वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है। इससे विकास कार्यों ‘ में बाधा पड़ती है।
3. असन्तुलित कर संरचना–भारतीय कर प्रणाली असन्तुलित है तथा इसके प्रभाव प्रतिगामी हैं। भारतीय कर प्रणाली में प्रत्यक्ष करों की अपेक्षा परोक्ष कर अधिक हैं जिनका भार धनिकों की अपेक्षा निर्धनों पर अधिक पड़ता है।
4. कृषि आय की अपेक्षा गैर-कृषि आय पर अधिक भार-राष्ट्रीय आय का लगभग 16.7 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है, परन्तु इस पर कर का भार बहत कम है। पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि तथा सम्बद्ध मदों पर अत्यधिक व्यय के बावजूद कृषि पर कर का भार गैर-कृषि की अपेक्षा बहुत कम है।
5. कुल जनसंख्या के 1 प्रतिशत से कम जनसंख्या पर आयकर का भार-एक अनुमान के अनुसार कुल जनसंख्या के 1 प्रतिशत लोग ही आयकर अदा करते हैं और शेष 99 प्रतिशत जनसंख्या आयकर नहीं देती।
6.करों के रूप में राष्ट्रीय आय का कम भाग-भारत की राष्ट्रीय आय में करों से प्राप्त आय का कुल भाग लगभग 17 प्रतिशत है, जबकि स्वीडन, फ्रान्स, ब्रिटेन और अमेरिका में करों का भाग क्रमशः 41 प्रतिशत, 39 प्रतिशत, 33 प्रतिशत एवं 29 प्रतिशत है।
7. प्रतिगामी कर व्यवस्था–भारतीय कर प्रणाली में न्यायशीलता का अभाव है, क्योंकि यह प्रतिगामी है। प्रो० के० टी० शाह के अनुसार, “धनी वर्ग पर अपेक्षाकृत कम भार है, यद्यपि उनकी करभार सहन करने की शक्ति बहुत अधिक है, जबकि निर्धन व्यक्तियों को करभार में एक शेर का भार सहन करना पड़ता है, यद्यपि उनकी भार सहन करने की शक्ति भेड़ के बच्चे से कम है।”
8. कर–वंचन सम्भव–भारत में करों की चोरी बहुत होती है। करों की वसूली का ढंग दोषपूर्ण होने के कारण समाज में कर-वंचन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
9. परोक्ष करों में उत्पादन शुल्क का भाग अधिक-हमारे देश में अनेक परोक्ष कर लगाये जाते हैं, परन्तु उत्पादन शुल्क का भाग आय के अकेले साधन के रूप में सर्वाधिक है।
10. अपव्ययी कर प्रणाली–हमारे देश में कर संग्रह व्यय निरन्तर बढ़ता जा रहा है, जबकि करों से प्राप्त आय में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई है। इस प्रकार हमारी कर प्रणाली खर्चीली है।
11. संघ और राज्यों के बीच दोषपूर्ण वित्तीय विभाजन-केन्द्र और राज्यों के बीच आय के साधनों का बँटवारा दोषपूर्ण है। राज्यों के पास आय के साधन बेलोचदार तथा व्यय की मदें लोचदार हैं, जबकि केन्द्र के पास आय के साधन लोचदार हैं तथा व्यय की मदें बेलोचदार हैं।
12.जटिल कर प्रणाली–भारतीय कर प्रणाली जटिल है। यह करदाता की समझ के बाहर है। इस कारण करदाताओं को कानूनविदों की शरण लेनी पड़ती है। दूसरे, कर-कानूनों में बार-बार परिवर्तन होने के कारण कर-वंचन सरल हो जाता है।
13. करों की उच्च दर–भारतीय कर प्रणाली के अन्तर्गत अधिक ऊँची दर से कर लगाये जाते हैं। 2012-13 के बजट के अनुसार भारत में कर की उच्चतम दर 30% है।
Indian Tax System Notes
भारतीय कर प्रणाली में सुधार के सुझाव
(Suggestions for Improvement in Indian Tax-system)
कर प्रणाली में सुधार एक निरन्तर प्रक्रिया है। भारतीय कर प्रणाली में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
1 राष्ट्रीय आय के साथ-साथ करों में वृद्धि होना-भारतीय कर प्रणाली के वर्तमान ढाँचे में इस प्रकार परिवर्तन किया जाए कि करों से प्राप्त होने वाली आय राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ-साथ स्वयं बढ़ती जाए।
2. अधिक प्रत्यक्ष कर-कर प्रणाली में प्रत्यक्ष करों का अनुपात बढ़ाना चाहिए। कृषि आय-कर, .धन-कर, पूँजी-कर आदि करों को प्रगतिशील दर पर लगाया जाना चाहिए।
3.प्रतिगामी प्रकृति की समाप्ति-आवश्यक वस्तुओं पर कर कम से कम लगाया जाना चाहिए और विलासिता की वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाना चाहिए। जिससे कर का भार धनिकों पर अधिक पड़े।
4.सदढ कर प्रशासन मशीनरी-करों की चोरी को रोकने के लिए कर प्रशासन सुदृढ़ बनाया जाए। इसके लिए संग्रह विभागों में ईमानदार, सचरित्र, परिश्रमी तथा अनुभवी व्यक्तियों की नियुक्ति की जाए।
5. मितव्ययी कर प्रणाली-करों के वसूल करने में खर्चा कम से कम किया जाए।
6. उत्पादन व बचत को प्रोत्साहन-कर प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो मुद्रा-प्रसार के प्रभावों को कृषि आय की अपेक्षा गैर-कृषि आय पर अधिक भार-राष्ट्रीय आय का लगभग 16.7 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है, परन्तु इस पर कर का भार बहत कम है। पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि तथा सम्बद्ध मदों पर अत्यधिक व्यय के बावजूद कृषि पर कर का भार गैर-कृषि की अपेक्षा बहुत कम है। कुल जनसंख्या के 1 प्रतिशत से कम जनसंख्या पर आयकर का भार-एक अनुमान के अनुसार कुल जनसंख्या के 1 प्रतिशत लोग ही आयकर अदा करते हैं और शेष 99 प्रतिशत जनसंख्या आयकर नहीं देती। करों के रूप में राष्ट्रीय आय का कम भाग-भारत की राष्ट्रीय आय में करों से प्राप्त आय का कुल भाग लगभग 17 प्रतिशत है, जबकि स्वीडन, फ्रान्स, ब्रिटेन और अमेरिका में करों का भाग क्रमशः 41 प्रतिशत, 39 प्रतिशत, 33 प्रतिशत एवं 29 प्रतिशत है।
7. प्रतिगामी कर व्यवस्था–भारतीय कर प्रणाली में न्यायशीलता का अभाव है, क्योंकि यह प्रतिगामी है। प्रो० के० टी० शाह के अनुसार, “धनी वर्ग पर अपेक्षाकृत कम भार है, यद्यपि उनकी करभार सहन करने की शक्ति बहुत अधिक है, जबकि निर्धन व्यक्तियों को करभार में एक शेर का भार सहन करना पड़ता है, यद्यपि उनकी भार सहन करने की शक्ति भेड़ के बच्चे से कम है।”
8. कर–वंचन सम्भव–भारत में करों की चोरी बहुत होती है। करों की वसूली का ढंग दोषपूर्ण होने के कारण समाज में कर-वंचन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
9. परोक्ष करों में उत्पादन शुल्क का भाग अधिक-हमारे देश में अनेक परोक्ष कर लगाये जाते हैं, परन्तु उत्पादन शुल्क का भाग आय के अकेले साधन के रूप में सर्वाधिक है।
10. अपव्ययी कर प्रणाली–हमारे देश में कर संग्रह व्यय निरन्तर बढ़ता जा रहा है, जबकि करों से प्राप्त आय में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई है। इस प्रकार हमारी कर प्रणाली खर्चीली है।
11. संघ और राज्यों के बीच दोषपूर्ण वित्तीय विभाजन-केन्द्र और राज्यों के बीच आय के साधनों का बँटवारा दोषपूर्ण है। राज्यों के पास आय के साधन बेलोचदार तथा व्यय की मदें लोचदार हैं, जबकि केन्द्र के पास आय के साधन लोचदार हैं तथा व्यय की मदें बेलोचदार हैं।
12.जटिल कर प्रणाली–भारतीय कर प्रणाली जटिल है। यह करदाता की समझ के बाहर है। इस कारण करदाताओं को कानूनविदों की शरण लेनी पड़ती है। दूसरे, कर-कानूनों में बार-बार परिवर्तन होने के कारण कर-वंचन सरल हो जाता है।
13. करों की उच्च दर–भारतीय कर प्रणाली के अन्तर्गत अधिक ऊँची दर से कर लगाये जाते हैं। 2012-13 के बजट के अनुसार भारत में कर की उच्चतम दर 30% है।
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भारतीय कर प्रणाली में सुधार के सुझाव
(Suggestions for Improvement in Indian Tax-system)
कर प्रणाली में सुधार एक निरन्तर प्रक्रिया है। भारतीय कर प्रणाली में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
1 राष्ट्रीय आय के साथ–साथ करों में वृद्धि होना-भारतीय कर प्रणाली के वर्तमान ढाँचे में इस प्रकार परिवर्तन किया जाए कि करों से प्राप्त होने वाली आय राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ-साथ स्वयं बढ़ती जाए।
2. अधिक प्रत्यक्ष कर–कर प्रणाली में प्रत्यक्ष करों का अनुपात बढ़ाना चाहिए। कृषि आय-कर, .धन-कर, पूँजी-कर आदि करों को प्रगतिशील दर पर लगाया जाना चाहिए।
3. प्रतिगामी प्रकृति की समाप्ति-आवश्यक वस्तुओं पर कर कम से कम लगाया जाना चाहिए और विलासिता की वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाना चाहिए। जिससे कर का भार धनिकों पर अधिक पड़े।
4.सदढ कर प्रशासन मशीनरी–करों की चोरी को रोकने के लिए कर प्रशासन सुदृढ़ बनाया जाए। इसके लिए संग्रह विभागों में ईमानदार, सचरित्र, परिश्रमी तथा अनुभवी व्यक्तियों की नियुक्ति की जाए।
5. मितव्ययी कर प्रणाली–करों के वसूल करने में खर्चा कम से कम किया जाए। 6. उत्पादन व बचत को प्रोत्साहन-कर प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो मुद्रा-प्रसार के प्रभावों को
(v) कम्पनियों के वितरित तथा अवितरित सभी लाभ पर रुपये में 6 आने गैर वापसी सम पर कर लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त व्यापार पर लगे आय कर समाप्त कर दिये जाने चामि।
(vi) निजी आय का लेखा परीक्षण कराया जाए।
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3. प्रत्यक्ष–कर प्रशासन जाँच समिति (Direct Tax Administration Enquiry Committee)
प्रत्यक्ष कर को अधिक कुशल बनाने के लिए भारत सरकार ने 1958 में श्री महावीर त्यागी अध्यक्षता में एक जाँच समिति की नियुक्ति की, जिसने 1959 के अन्त में अपनी रिपोर्ट प्रस्तत की। समिति के 308 सुझावों में से लोकसभा ने 209 सुझाव स्वीकार कर लिये।
4. भूतलिंगमम समिति (Bhootlingham Committee)
भारतीय कर-पद्धति के नवीनीकरण तथा सरलीकरण हेतु सुझाव देने के लिए भारत सरकार ने वित्त-मन्त्रालय के भूतपूर्व सचिव श्री ए० भूतलिंगम की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की जिसने अपनी रिपोर्ट 25 दिसम्बर 1968 को प्रस्तुत की। इस समिति के सुझाव निम्नलिखित थे
(i) केन्द्रीय उत्पादन-कर-संवैधानिक अधिकारों के अन्तर्गत वस्तुओं पर उत्पादन शुल्क मूल्यानुसार लगाये जाएँ तथा इनकी दर अपेक्षाकत कम रखी जाए।
(ii) निगम कर-कर योग्य आय में उपयुक्त छूट देकर पंजीकृत और गैर-पंजीकृत कम्पनियों पर समान दर से कर लगाया जाए। लाभांश-कर तथा अति-कर समाप्त किया जाए।
(iii) आय–कर-विकास छूट को समाप्त किया जाए। व्यक्तिगत रूप से 7,500 रुपये तथा अविभाजित हिन्दू परिवार में न्यूनतम छूट की सीमा 10,000 रुपये कर दी जाए।
(iv) सहकारी समितियों पर कर-सहकारी संस्थाओं की 25,000 रुपये तक की आय को आय-कर से मुक्त रखा जाए और कर की दरें कम्पनियों की अपेक्षा 10% कम रखी जाएँ।
(v) उपहार-कर-व्यक्ति द्वारा वर्ष में प्राप्त कुल उपहारों पर कर लगाया जाए।
(vi) आस्ति–कर के स्थान पर उत्तराधिकार कर लगाया जाए।
(vii) सीमा-शुल्क की दरों के ढाँचे का सरलीकरण किया जाए।
(viii) बिक्री–कर के स्थान पर 10 प्रतिशत सामान्य उत्पादन शुल्क लगाया जाए।
(ix) कम्पनियों के लिए कर के आधार के रूप में पूँजी-कर लगाया जाए।
(x) अधिनियम की भाषा सरल बनाई जाए।
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5. वाँचू (प्रत्यक्ष कर जाँच) समिति (Wachhoo (Direct Tax Enquiry) Committee)
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायधीश श्री के० एन० वाँचू (K. N. Wanchoo) की अध्यक्षता में मार्च 1970 में केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रत्यक्ष कर-जाँच समिति की नियुक्ति की गई। इस समिति के लिए विचारणीय विषय निम्नलिखित थे
(i) प्रत्यक्ष करों की चोरी अर्थात् कर-वंचन को रोकने के लिए सुझाव देना।
(ii) काले धन को बाहर निकालने तथा उसके पुनः अपवंचन को रोकने के लिए प्रभावशाली एवं दृढ़ उपाय सुझाना।
(iii) करों की शेष राशि को वसूल करने के सुझाव देना।
(iv) संवैधानिक एवं प्रशासनिक उपायों पर सुझाव देना।
(v) कर–कानूनों में निहित कर छूटों में सुधार देना। समिति ने अपनी रिपोर्ट 24 दिसम्बर 1971 को प्रस्तुत की।
काले धन से आशय–वाँचू समिति के अनुसार, “काले धन का अभिप्राय न केवल उस धन से है जो कानून व्यवस्थाओं का उल्लंघन करके तथा सामाजिक अन्तःकरण का हनन करके अर्जित किया गया है, वरन् उस धन से होता है जिसे गुप्त रखा जाता है और जिसका कोई हिसाब–किताब नहीं रखा जाता।“
समिति के अनुसार काला धन और कर-वंचन परस्पर सहगामी हैं। कर-वंचन के कारण उत्पन्न काले धन को किसी व्यवसाय में लगाया जाता है। इससे कर-वंचन बढ़ता है और पुनः काले धन सृजन होता है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह चेतावनी दी कि, “काला धन देश की अर्थव्यवस्था में घुन तरह लग गया है और यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो काले धन की तरह यह समान्तर अर्थव्यवस्था को ठप्प कर देगी।”
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कर वंचन तथा काले धन के निर्माण के कारण
Causes of Tax Evasion and Generation of Black Money)
(i) प्रत्यक्ष करों की ऊँची दरें (97.5%),
(ii) देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं का कृत्रिम अभाव,
(iii) राजनैतिक दलों को चन्दा देना,
(iv) व्यापारी वर्ग द्वारा भ्रष्ट तरीके अपनाना, कर निर्माण के समय व्यावसायिक व्ययों पर प्रतिबन्ध,
(vi) बिक्री-कर तथा अन्य करों की ऊँची दरें,
(vii) नैतिक स्तर में गिरावट, तथा
(viii) कर–कानूनों का प्रभावशाली ढंग से लागू न होना।
काले धन को बाहर निकालने के उपाय (Measures to Quantify Black Money)
वाँचू समिति ने काले धन को बाहर निकालने के निम्न उपाय बताये हैं
(1) कर-व्यवस्था सरल हो तथा कर-प्रशासन उदार रुख अपनाये।
(2) दीर्घकालीन बाण्ड्स जारी किये जाए तथा निवेशकर्ता को यह आश्वासन दिया जाए कि उससे धन के स्रोत को बताने के लिए नहीं कहा जाएगा।
(3) काला धन संग्रह करने वाले लोगों की जानकारी देने के लिए एक अच्छी गुप्तचर संस्था बनाई जाए।
(4) कराधिकारियों को अधिक अधिकार दिए जाएँ और कर अधिनियमों में संशोधन किये जाएँ।
(5) समिति ने ऐच्छिक प्रकटीकरण योजना, स्विट्जरलैण्ड जैसी बैंक योजना तथा काले धन का विशिष्ट कार्यों में उपयोग के सुझावों को मानने से इन्कार कर दिया।
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कर–वंचन को रोकने के उपाय (Measures to Curb Tax Evasion)
वाँचू समिति ने कर-वंचन को रोकने के लिए निम्न सुझाव दिए
(1) करों की उच्चतम दर 97.5% से घटाकर 75 प्रतिशत कर दी जाए।
(2) नियन्त्रण व लाइसेन्स कम से कम हों, ताकि काले धन को प्रोत्साहन न मिले।
(3) किसी व्यक्ति को अपनी आय का 10 प्रतिशत या 10,000 रुपये से अधिक किसी भी राजनीतिक दल को चन्दा देने की अनुमति न दी जाए।
(4) केन्द्र सरकार कृषि आयकर लगाने का अधिकार राज्यों से ले ले, ताकि आयकर कृषि और गैर कृषि दोनों आयों पर समान रूप से लगाया जा सके।
(5) बिक्री–कर के स्थान पर अतिरिक्त उत्पादन-कर लगाया जाए।
(6) प्रत्येक व्यापारी को खातों का रखना अनिवार्य किया जाए तथा 50,000 रुपये से अधिक बिक्री करने वाले व्यापारियों के लिए खातों का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया जाए।
(7) सभी करदाताओं के लिए एक स्थायी खाता संख्या निर्धारित कर दी जाए।
(8) आयकर अधिकारी को किसी भी करदाता के मकान में नकद रुपया गिनने, स्टॉक को चैक । करने, हिसाब की जाँच करने तथा अतिरिक्त सचना अथवा रिकार्ड माँगने का अधिकार दिया जाए।।
(9) आय के विवरण के साथ करदाता अपने व्यय का भी विवरण दें।
(10) व्यय–कर लगाया जाए।
(11) कठोर दण्ड-नीति अपनाई जाए।
(12) सभी करदाताओं के लिए लेखा वर्ष समान किया जाए।
(13) काले धन तथा कर-वंचन के विरुद्ध जनमत तैयार किया जाए।
(14) यदि किसी सम्पत्ति का बैनामा बाजार से कम मूल्य पर किया गया है तो सरकार को चाहि कि वह स्वयं उन सम्पत्तियों को अनिवार्य रूप से ले ले।
(15) पत्नी, बच्चों एवं पति की आय को मिलाया जाए।
(16) अचल सम्पत्तियों का मूल्याँकन एक बार हो जाने पर उसमें 5 वर्ष तक परिवर्तन न किया जाए।
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6. झा (अप्रत्यक्ष कर जाँच) समिति (Jha (Indirect Taxation Enquiry) Committee)
भारत सरकार ने अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार की दृष्टि से 19 जुलाई 1976 को जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल श्री एल० के० झा की अध्यक्षता में एक ‘अप्रत्यक्ष कर जाँच समिति’ का गठन किया। समिति ने अपनी अन्तरिम रिपोर्ट अप्रैल 1977 में तथा अन्तिम रिपोर्ट 16 जनवरी 1978 को सरकार के समक्ष पेश की। समिति की जाँच का मुख्य उद्देश्य कर प्रणाली को उत्पादक बनाना. करारोपण में व्याप्त असन्तुलनों एवं अरूपताओं को दूर करना तथा सामान्य उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाना था। समिति की मुख्य सिफारिशें निम्नांकित थीं
(i) आयात शुल्क की वर्तमान दरों में कमी की जाए।
(ii) विशिष्ट कर के स्थान पर मूल्यानुसार कर लगाये जाएँ।
(iii) पूँजीगत माल को करारोपण से मुक्त रखा जाए।
(iv) कुछ चयनित वस्तुओं पर उनके तैयार माल की बिक्री कीमत के आधार पर उत्पाद शुल्क लगाया जाए।
(v) लघु उत्पादकों को प्रोत्साहन देने के लिए एक न्यूनतम उत्पादन को सीमा करों से मुक्त रखा जाए।
(vi) करों के आधार को व्यापक बनाया जाए।
(vii) राष्ट्रीय स्तर पर बिक्री कर की दरों में समानता लाई जाए तथा बिक्री कर के स्वरूप को एक बिन्दु कर में परिवर्तित कर दिया जाए।
(viii) सम्पूर्ण देश को चुंगी कर से मुक्त कर दिया जाए।
(ix) सीमित आय वाले वर्ग पर प्रत्यक्ष करों का भार कम किया जाए।
7.चौकसी समिति (Chauksi Committee)
प्रत्यक्ष कर नियमों को सरल तथा विवेकपूर्ण बनाने की दृष्टि से भारत सरकार ने 26 जून 1977 को एन० ए० पालकीवाला की अध्यक्षता में एक पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया। बाद में श्री पालकीवाला को अमेरिका में भारतीय राजदूत बना दिए जाने के कारण श्री सी० सी० चौकसी इनके अध्यक्ष बना दिये गये। समिति ने अपनी अन्तरिम रिपोर्ट दिसम्बर 1977 में तथा अन्तिम रिपोर्ट अक्टूबर 1978 में दी।
समिति की मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित थीं_
1 आयकर सम्बन्धी सिफारिशें– (i) आयकर की अधिकतम दर 2 लाख रुपये की आय पर 60 प्रतिशत होनी चाहिए और इसका आधार आय वृद्धि के साथ-साथ प्रगतिशील रखा जाए, (ii) आयकर पर लगे अधिभार को समाप्त कर दिया जाए।
2.कृषि आयकर सम्बन्धी सिफारिशें-(i) कृषि तथा गैर कृषि आय को मिलाकर ही आयकर लगाया जाए, (ii) क्रषि आय पर करारोपण केन्द्रीय अधिनियम के अन्तर्गत किया जाए, यदि केन्द्रीय सरकार कृषि पर आयकर लगाने को तैयार नहीं होती तो निम्न सुझावों का पालन किया जाए
(अ) जिन राज्यों के पास कृषि आयकर सम्बन्धी नियम नहीं हैं, वे केन्द्रीय सरकार के परामर्श से शीघ्र नियम तैयार करा लें।
(ब) ऐसे नियमों का प्रारूप सभी राज्यों के लिए लागू हो।
(स) कृषि आयकर की दर प्रगतिशील रखी जाए, परन्तु यह न्यूनतम छूट सीमा तथा अधिकतम दर की दृष्टि से केन्द्रीय आयकर के समान हो ।
3. वेतन शीर्षक के अन्तर्गत आय का आगणन सम्बन्धी सिफारिशें-() विभिन्न उद्देश्यों के लिए शाद को समरूपता के आधार पर परिभाषित करना उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह पता जटिलता को ही बढ़ावा देगी, (ii) प्रमाप कटौती’ का आगमन 20 प्रतिशत की समान दर पर या जाए, (iii) सवारी व्यय की वर्तमान छूट सीमा को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया जाए।
4. पंजीगत लाभों पर कराधान सम्बन्धी सिफारिशें-विक्रय द्वारा अचल सम्पत्ति के किये गये सतरण के सम्बन्ध में, जबकि विक्रय समझौता लिखित रूप में हो, पूँजीगत लाभकर उस समय पर लगाया जाए, जबकि सभी शर्ते पूरी होती हों, (ii) पूँजीगत लाभकर अधिनियम की परिभाषा से दी जाए. ताकि ‘स्वयं निर्मित’ सम्पत्ति की परिभाषा स्पष्ट हो सके. (iii) अधिग्रहण लागत के औरण के सम्बन्ध में समिति ने अपनी विशिष्ट सिफारिशें प्रस्तुत की।
5. उपहार कर सम्बन्धी सिफारिशें-(i) उपहार कर अधिनियम अपने वर्तमान रूप में लागू रहना साहिए. (ii) उपहार कर की दरे निम्न प्रकार होनी चाहिएँ-20 लाख से 25 लाख तक 60 प्रतिशत, 25 लाख रुपये से 30 लाख रुपये तक 70 प्रतिशत तथा 30 लाख रुपये से ऊपर 75 प्रतिशत।
6.आस्ति–कर सम्बन्धी सिफारिशें-(i) पूरे जीवन के लिए दिये गये उपहारों को मतक की मापत्ति के साथ मिला देना विवेकपूर्ण नहीं है, (ii) मृतक के अन्तिम संस्कार के लिए 1,000 रुपये की कटौती को बढाकर 2,500 रुपये कर देना चाहिए, (iii) आस्ति-कर की अधिकतम दर 85 प्रतिशत के स्थान पर 80 प्रतिशत होनी चाहिए, (iv) 20 लाख से 25 लाख रुपये की सम्पत्ति पर 60 प्रतिशत (तत्कालीन दर 85 प्रतिशत), 25 लाख रुपये से 30 लाख रुपये तक 90 प्रतिशत (तत्कालीन दर 85 प्रतिशत) तथा 30 लाख रुपये से ऊपर की सम्पत्ति पर 80 प्रतिशत (तत्कालीन दर 85 प्रतिशत) होना चाहिए।
7.एक ही प्रत्यक्ष–कर अधिनियम–एक ही प्रत्यक्ष-कर अधिनियम आयकर, सम्पत्ति-कर, उपहार-कर आदि प्रत्यक्ष करों के स्थान पर उपयुक्त होगा।
8.केन्द्रीय कर न्यायालय-सम्पूर्ण भारत के लिए ‘सैन्ट्रल टैक्स कोर्ट की स्थापना की जाए। जब | तक इस न्यायालय की स्थापना न हो तब तक उच्च न्यायालय ‘कर बैंच’ तदर्थ रूप में नियुक्त करें।
9.रिटर्न के सम्बन्ध में सुझाव-(i) प्रत्येक वर्ष 30 जून तक रिटर्न भर देना अनिवार्य होना चाहिए, (ii) 30 जून के बाद भी रिटर्न वैध होगा, यदि वह अधिनियम में वर्णित प्रावधानों का पालन करे।
10. समान दण्ड–आयकर, सम्पत्ति-कर, उपहार-कर तथा कम्पनी के लाभों पर एवं सुपर टैक्स | पर दण्ड का प्रावधान समान होना चाहिए।
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चेल्लैया समिति
(Chelliah Committee)
केन्द्र सरकार ने देश के कर ढाँचे की जाँच हेतु सन् 1991 में राजा जे० चेल्लैया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति का मुख्य उद्देश्य कर पद्धति को अधिक लोचदार बनाने के लिए सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तत करना तथा नियमों के सरलीकरण हेतु अपने सुझाव देना था। समिति ने अपनी अन्तरिम रिपोर्ट फरवरी 1992 में संसद में प्रस्तत की जिसकी अधिकाँश सिफारिशों को 1992-93 के बजट प्रस्तावों में शामिल कर लिया गया। अगस्त 1992 में समिति ने अन्तरिम रिपोर्ट का प्रथम भाग सरकार को प्रस्तुत किया। समिति की अधिकाँश सिफारिशों को 1993-94 के बजट प्रस्तावों में शामिल कर लिया गया।
कर सुधारों के लिए निर्देशक सिद्धान्त
चेल्लैया समिति ने कर सुधारों के सम्बन्ध में निम्नलिखित सिद्धान्त अपनाये
1 कर पद्धति तथा उसका भार करदाताओं को स्वीकार्य होना चाहिए।
2. कर ढाँचा यद्यपि प्रगतिशील होना चाहिए. किन्त इसका प्रभाव काले धन की मात्रा में वृद्धि करने वाला कदापि नहीं होना चाहिए।
3. कर पद्धति पर्याप्त समय तक स्थिर बनी रहनी चाहिए।
4. कर पद्धति तथा नियम यथा सम्भव सरलतम होने चाहिएँ।
5. कर सुधारों के सुझाव कर की सम्पूर्ण राशि को यथावत् बनाये रखते हुए कर पद्धति को अधिक। सरल एवं लोचदार बनाने में सहायक होने चाहिएँ। चेल्लैया समिति के उद्देश्य
6. प्रत्यक्ष तथा परोक्ष करों के ढाँचे की जाँच करना।
7. कर पद्धति को अधिक लोचदार बनाने के लिए सरकार को सुझाव देना।
8.बेहतर कर प्रशासन हेतु कर नियमों के सरलीकरण के सम्बन्ध में सुझाव देना।
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चेल्लैया समिति की अन्तरिम रिपोर्ट–भाग I की मुख्य सिफारिशें ।
1 सन् 1993-94 तक स्वदेशी कम्पनियों के सन्दर्भ में निगम कर की दर को तत्कालीन 51-75 प्रतिशत से घटाकर 45 प्रतिशत तक करना अर्थात् निगम कर पर लगाये गये अधिभार को समाप्त करना।
2. 1994-95 में पुनः उक्त दर को 45 प्रतिशत से घटाकर 40 प्रतिशत कर देना।
3. प्लाण्ट तथा मशीनरी की सामान्य हास दर को तत्कालीन 25 प्रतिशत तक के स्तर पर ही बनाये रखना।
4. ब्याज कर को समाप्त कर देना।
5. उपहार-कर को चालू रखते हुए छूट सीमा को 20,000 रुपये से बढ़ाकर 30,000 रुपये तक कर देना।
6. गैर क्रषकों की 25.000 रुपये से अधिक की क्रषि आय पर कर लगाना।
7. उत्पादन कर पद्धति का निर्माण स्तर पर उपयुक्त मूल्य आवर्तित कर (VAT) के अन्तर्गत विस्तार करना।
8. निर्माण क्षेत्र के अन्तर्गत बिक्री कर को एक प्रकार के राज्य वैट (State VAT) के रूप में परिवर्तित करना।
9. स्थिर कर प्रशासन तथा करदाताओं के किये उचित लक्ष्यों को निर्धारित करना।
10. करदाताओं की पहचान हेतु स्थायी खाता संख्या (PAN) के स्थान पर करदाता पहचान संख्या (TIN) प्रारम्भ करना।
Indian Tax System Notes
चेल्लैया समिति की अन्तिम रिपोर्ट–भाग II की मुख्य सिफारिशें _
1 आयात शुल्क की शून्य दर को समाप्त करना।
2. आयात शुल्क की वर्तमान अधिकतम 110 प्रतिशत की दर को घटाकर 50 प्रतिशत तक के स्तर पर ले आना।
3. सभी वस्तुओं के लिए आयात शुल्क की एक ही दर को न अपनाना।
4. कर की दरों को कम से कम रखा जाना तथा शून्य दर को उचित समय पर समाप्त कर देना।।
5. आयात शुल्क की कम से कम दर 5 प्रतिशत रखना तथा उसे 6 स्तरों पर 5 प्रतिशत, 10 प्रतिशत, 15 प्रतिशत, 20 प्रतिशत, 25 प्रतिशत तथा 30 प्रतिशत बढ़ाते हुए अधिकतम 30 प्रतिशत मूल्यानुसार निर्धारित करना, समिति ने गैर आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं के लिए 50 प्रतिशत शुल्क का प्रस्ताव किया।
6. कर की दरों का समायोजन 1997-98 तक चरणबद्ध तरीके से लागू करना।
7. अनाज एवं चावल के आयात को शुल्क मुक्त रखना, किन्तु तिलहनों एवं दालों आदि कृषि वस्तुओं पर मूल्यानुसार 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाना।
8. जिन वस्तुओं पर आयात शुल्क नहीं लगता, उन पर संरक्षण के नाम पर 5 प्रतिशत की दर से शुल्क लगाना।
9. बादाम एवं काजू जैसी गैर अनिवार्य कृषिगत वस्तुओं के आयात पर 50 प्रतिशत की दर से शुल्क लगाना।
10. उर्वरक एवं अखबारी कागज जैसी आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में काम आने वाले सामान पर 5 प्रतिशत आयात शुल्क लगाना।
11. चिकित्सा के काम में आने वाले उपकरणों के आयात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाना।
12. आवश्यक क्षेत्रों के लिए उद्योग अथवा किसी नये उत्पाद को किसी निश्चित अवधि के लिए अतिरिक्त संरक्षण प्रदान करना।
13.निर्यातकों के लिए अग्रिम लाइसेन्स प्रणाली को जारी रखना।
केलकर समिति की सिफारिशें (Recommendations of Kelkar Committee)
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों के सरलीकरण एवं उन्हें तर्कसंगत बनाने के लिए सुझाव देने हेतु विजय र की अध्यक्षता में एक कार्यबल का गठन किया जिसने 25 नवम्बर 2002 को अपनी रिपोर्ट पेश की। प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं
अप्रत्यक्ष कर/परोक्ष कर (Indirect Taxes)
कर प्रशासन (Tax Administration)
1 सीमा निकास सभी आयात और निर्यातकर्ताओं पर समान रूप से लागू करना।
2. अन्तर एजेन्सी समस्याओं का समाधान एक उच्चस्तरीय शासकीय समिति द्वारा।
3. संसाधन स्थिति तक लगातार मूल्य जोड़ पर केन्द्रीय शुल्क।
4. एम० आर० पी० आधारित कर निर्धारण का विस्तार।
5. पूँजीगत वस्तुओं और आगतों में भेद समाप्त करने के लिए सेनवेट क्रेडिट नियमों में सुधार।
6. सभी सीमा एवं केन्द्रीय शुल्क कार्यालयों का जनवरी 2004 तक स्वचालन।
सीमा शुल्क (Custom Tarrif)
1.करों की अधिकता को घटाकर ठीक करना।
2. जीवन रक्षक दवाइयों, साजो सामान और आर० बी० आई० आयातों पर शून्य प्रतिशत शुल्क! अन्य पर 5 से 10 प्रतिशत शुल्क घटाना।
3. सन् 2003-04 से कच्चे तेल पर 5 प्रतिशत और पैट्रोलियम उत्पादों पर 10 प्रतिशत शुल्क।
4. विशेषीकत कषि उत्पादों एवं हानिकारक वस्तुओं पर 150 प्रतिशत उच्च शल्क दर।
5. अनेक वस्तुओं पर छूटों की समाप्ति।
III. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क (Central Excise Duties)
1 सभी शुल्कों को CENVAT में परिवर्तित किया जाए।
2. जीवन रक्षक दवाई और अन्य सम्बन्धित सामान, सुरक्षा सम्बन्धी वस्तुएँ तथा कृषि उत्पादों पर शून्य प्रतिशत शुल्क, संसाधित आहार उत्पादों और माचिसों पर 6 प्रतिशत शुल्क, तथा अन्य वस्तुओं पर 14 प्रतिशत मानक दर।
3. सभी रेशा युक्त कपड़ों और धागों पर 16%, सूती धागे पर 149%
4. वस्त्र क्षेत्र में सभी छूटें समाप्त करना (हैण्डलूम वस्त्र छोड़कर)।
5. एक समान-एक पद्धति में वैट।
6. सेवा कर को व्यापक ढंग से विस्तृत करना।
प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes)
कर प्रशासन (Tax Administration)
1. करदाताओं की सेवाओं की गुणवत्ता एवं मात्रात्मक रूप से विस्तृत करना, सरल सम्पर्क, ई० फाइल की सुविधा।
2. सभी आर्थिक एजेन्टों और नागरिकों को PAN उपलब्ध करना।
3. सभी आयकर की रिटों पर आवश्यक कार्य करके चार महीनों के अन्दर कर वापसियाँ जारी करना।
4. प्रकरणों के चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं वस्तुपरकता लाना।
5. कर्मचारियों और अधिकारियों के दायित्व को बढ़ाना।। 6. CBDT को उचित प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकारों से सशक्त बनाना।
व्यक्तिगत आयकर (Personal Income Tax)
1 करदाताओं की सामान्य श्रेणी के लिए छूट की सीमा 1 लाख तक बढ़ाना, विधवाओं एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिए 1.50 लाख रुपये की उच्च छूट सीमा।
2. दो दरीय कार्यक्रम : 4 लाख रुपये तक 20% और 4 लाख से अधिक पर 30% आय कर, सरचार्ज समाप्त करना।
3. योग्य कटौती का विलोपन।
4. गृह निर्माण के लिए 5 लाख रुपये से कम सभी ऋणों पर 2% ब्याज की रियारत।
5. पेन्शन फण्ड में योगदान देने के लिए सैक्शन 80 CCC के अन्तर्गत कटौती, 10,000 रुपये से बढ़ाकर 20,000 करना।
6. सैक्शन 80, 80L के अन्तर्गत प्रोत्साहनों और सैक्शन 10 के अधीन ब्याज आय को समाप्त करना।
III. निगम कर सुधार (Corporation Tax Reforms)
1. घरेलू कम्पनियों के निगम कर 30%, विदेशी कम्पनियों पर 35%, सूचीबद्ध शेयरों पर पूँजी लाभ से कर मुक्ति।
2.न्यूनतम विकल्प दर की समाप्ति!
3. दीर्घकालीन पूँजी लाभों को अन्य आयों के साथ तथा सामान्य दरों पर कर लगाना।
4. सैक्शन 33 AB, 33 AC, 33B, 35, 35 AC, 35CCA के अधीन छूटों का विलोपन।
5. होटल में खर्चे पर कर को सेवा कर के साथ मिलाना।
परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(Expected Important Questions for Examination)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Questions)
प्रश्न 1. क्या भारत की करारोपण प्रणाली सन्तोषजनक है ? आप उसमें सुधार हेतु कौन-से सुझाव देंगे?
Is the system of taxation in India satisfactory ? What improvements would you suggest ?
प्रश्न 2. कालेधन को निकालने तथा कर वंचन को रोकने के लिये भारत सरकार द्वारा किये गये प्रयासें का मूल्यांकन कीजिये।
Evaluate the steps taken by Government of India to unearth the black money and prevent tax evasion.
प्रश्न 3. भारतीय कर प्रणाली में सुधार के लिये सरकार द्वारा किये गये प्रयासों का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
Briefly explain the attempts made by the Government to improve the tax system.
II लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Questions)
प्रश्न 1. भारतीय कर प्रणाली के प्रमुख गुण बताइये।
Mention the merits of Indian Tax System.
प्रश्न 2. क्या भारतीय कर प्रणाली में दोष हैं ? यदि हाँ, तो दोषों का उल्लेख कीजिये।
Is demerits exist in Indian Taxation System ? If yes, mention them.
प्रश्न 3. केलकर समिति की प्रमुख सिफारिशें बताइये।।
Mention the main recommendations of Kelkar Committee.