BCom 3rd Year Leverage Study Material Notes in Hindi
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BCom 3rd Year Leverage Study Material Notes in Hindi: Meaning of Definition of Leverage Types of Leverage Operating Leverage Degree of Operating Leverage Financial Leverage. BCom Leverage Sample Paper Utility of Financial Leverage Difference Between Financial and Operating Leverage Examination Questions Long Questions Short Answer Objective Questions:
BCom 3rd Year Financial Management Theories of Capital Structure Study Material Notes In Hindi
लीवरेज
(LEVERAGE)
पूँजी-संरचना’ की अवधारणा का विवेचन करते समय हम स्पष्ट कर चुके हैं कि एक संस्था वित्त पूर्ति देत पंजी लागत या प्रत्याय के दृष्टिकोण से दो प्रकार की पूँजी का प्रयोग कर सकती है-ऐसी पूंजी जिस पर प्रत्याय की दर स्थिर होती है तथा ऐसी पूंजी जिस पर प्रत्याय की दर परिवर्तनशील होती है। स्थायी प्रत्याय टर वाली पूजी में ऋण पत्र,दीर्घकालीन ऋण एवं पूर्वाधिकार अंशों को शामिल किया जाता है जबकि परिवर्तनशील प्रत्याय दर वाली पूंजी में समता अंश पूँजी एवं प्रतिधारित अर्जनों को शामिल किया जाता है। एक संस्था के प्रबन्ध के लिये पूँजी संरचना निर्णय बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये संस्था के ऋण-समता मिश्रण (Debt-equity Mix) पर प्रभाव डालते हैं। यदि ऋण पूँजी, स्वामियों के कोषों से अधिक होती है तो इससे अंशधारियों के प्रत्याय में वृद्धि के साथ-साथ उनकी जोखिम में भी वृद्धि होती है। ऐसा इसलिए होता है कि उधार पूँजी की लागत, जो कि आयकर के लिए स्वीकार्य कटौती मानी जाती है, अंशधारियों के कोषों से कम होती है। किन्तु साथ ही ऋण पूँजी पर स्थायी ब्याज भी देना पड़ता है, चाहे संस्था में लाभ हो अथवा नहीं। इसलिए संस्था की सम्पूर्ण पूँजी संरचना में यदि ऋण पूँजी का अनुपात ऊँचा है तो इससे अंशधारियों की जोखिम में वृद्धि होती है। दूसरी ओर, यदि अंशधारियों के कोषों का अनुपात ऋण-पूँजी की तुलना में अधिक है तो इससे अंशधारियों की प्रत्याय एवं जोखिम दोनों ही कम होंगे। ऋण-समता मिश्रण का अंशधारियों की प्रत्याय एवं जोखिम पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिए यद्यपि पिछले अध्याय में ‘समता पर व्यापार (Trading on Equity) एवं पूँजी दन्तिकरण (Capital Gearing) तकनीकों का विवेचन किया गया है, परन्तु अब ये तकनीकें पुरानी पड़ गई हैं। आधुनिक समय में इस विश्लेषण के लिए ‘उत्तोलक’ (Leverage) तकनीक का अधिक प्रयोग किया जाने लगा है।
उत्तोलक (लीवरेज) का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Leverage)
उत्तोलक का शब्दकोषीय अर्थ किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये संवर्धात्मक स्रोतों से है। वस्तुतः लीवर शब्द यान्त्रिक इन्जीनियरिंग से लिया गया है । यांत्रिक विज्ञान में उत्तोलक से अभिप्राय ऐसी तकनीक से लिया जाता है जिससे भार को कम शक्ति के प्रयोग से उठाया जा सके। वित्तीय प्रबन्ध के क्षेत्र में उत्तोलक का विशेष अर्थ होता है। इसे संस्था द्वारा स्वामियों के प्रत्याय में वृद्धि करने की दृष्टि से स्थायी लागत वाली सम्पत्तियों या कोषों के प्रयोग करने की योग्यता के रूप में प्रयोग किया जाता है।
जिस प्रकार लीवर पर हल्का सा दबाव भी भारी से भारी मशीन को गति प्रदान करते हुए अपना प्रभाव दिखाता है उसी प्रकार व्यवसाय की कुल सम्पत्तियों के वित्तीयन में ऋण पूँजी को हम लीवर मान सकते हैं और इसके प्रयोग का प्रभाव समता अंशधारियों को प्राप्त होने वाली अर्जन दर के रूप में देख सकते हैं। इस प्रकार उत्तोलक (लिवरेज) स्थिर लागत वाले कोषों के प्रयोग से स्वामियों की प्रत्याय बढ़ाने की फर्म की क्षमता का विवेचन करता है। पूँजी में उत्तोलक का समावेश कम्पनी की लाभदायकता की मात्रा में अनुपात से अधिक वृद्धि या कमी उत्पन्न कर सकता है। उत्तोलक को एक अन्य दृष्टिकोण, विक्रय में परिवर्तन के फलस्वरूप लाभों म तुलनात्मक परिवर्तन (relative change in profits due to a change in sales) के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। उत्पादन या बिक्री की मात्रा चाहे जितनी हो, स्थायी लागत या स्थायी प्रत्याय का चुकाना आवश्यक होता है। ऐसी लागत या प्रत्याय की मात्रा अंशधारियों के लिए उपलब्ध लाभों को प्रभावित करती है। अत: जब विक्रय मात्रा में परिवर्तन होता है तब उत्तोलक इन प्रभावों का परिणाम निर्धारित करने में सहायक होता है अर्थात् उत्तोलक विक्रय की मात्रा में की गई थोड़ी-सी वृद्धि या कमी से लाभों में आनुपातिक रूप से अधिक वृद्धि या कमी उत्पन्न करता है। उच्च उत्तोलक की दशा में बिक्री में तुलनात्मक रुप से कम परिवर्तन होने पर भी लाभों में अधिक परिवर्तन होगा तथा निम्न उत्तोलक की दशा में विपरीत प्रभाव होगा। अतः उत्तोलक जितना ऊँचा होगा जोखिम भी उतनी ही अधिक होगी तथा सम्भावित प्रत्याय भी ऊँचा होगा।
स्पष्ट है कि बिक्री में वृद्धि दर की तुलना में लाभों में अधिक दर से वृद्धि होने के दो कारण हैं-प्रथम, परिचालन लागतों का एक भाग स्थायी परिचालन लागतों (जैसे भवन का किराया, संयंत्र पर ह्रास, प्रबन्धकों का वेतन आदि) का होता है जिससे कुल परिचालन लागत उस गति से नहीं बढ़ती जिस गति से बिक्री में वद्धि होती है। इससे बिक्री की तुलना में परिचालन लाभों में अधिक वृद्धि होती है। द्वितीय, कुल गैर-परिचालन व्ययों जैसे-ब्याज का भुगतान आदि स्थायी वित्तीय लागतें हैं जो कि शुद्ध लाभों में परिचालन लाभों की तुलना में अधिक वृद्धि करती हैं । लाभों में वृद्धि के इन दो कारणों के आधार पर उत्तोलक भी (i) परिचालन उत्तोलक (operating leverage) तथा (ii) वित्तीय उत्तोलक (Financial Leverage) दो प्रकार के होते। हैं, जिनकी विस्तृत विवेचना आगे की गई है ।
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उत्तोलक की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं —
जेम्स वॉन हार्न के अनुसार, “उत्तोलक से अभिप्राय ऐसी सम्पत्तियाँ या कोष के प्रयोग से है जिनके लिये संस्था एक स्थायी लागत या प्रत्याय चुकाती है । स्थायी लागत या प्रत्याय को उत्तोलक का आधार (Fulcrum) कहा जा सकता है। उनके अनुसार उत्तोलक संस्था द्वारा स्थायी लागत या प्रत्याय वाली सम्पत्तियों अथवा कोषों के स्रोतों के प्रयोग का परिणाम होता है । इन लागतों को स्थायी परिचालन लागत (Fixed Operating | Cost) तथा स्थायी वित्तीय लांगत (Fixed Financial Cost) कहा जाता है तथा ये उत्तोलक का आधार (Fulcrum) मानी जाती हैं। यदि किसी संस्था को स्थायी लागत या प्रत्याय नहीं चुकानी पड़ती है तो उसके लिए कोई उत्तोलक नहीं होगा।
सोलोमन इजरा के अनुसार, “समता अंशधारियों को मिलने वाली प्रत्याय दर का कुल पूँजीकरण की प्रत्याय दर के साथ अनुपात, उत्तोलक कहलाता है।”
जे० ई० वाल्टर के अनुसार, “उत्तोलक को समता पर प्रतिशत प्रत्याय तथा पूँजीकरण पर प्रतिशत प्रत्याय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
एस० सी० कुच्छल के अनुसार, “उत्तोलक का अभिप्राय वित्त प्रबन्धन में स्थायी लागत की पूर्ति अथवा स्थायी प्रत्याय का भुगतान करने से है।
निष्कर्ष-संक्षेप में उत्तोलक एक ऐसी स्थिति है जो अनुकूलता या प्रतिकूलता की उस सीमा को व्यक्त करता है जिसके कारण विक्रय की मात्रा या ऋण पूँजी में की गयी थोड़ी-सी कमी या वृद्धि से कम्पनी के लाभों में अनुपात से अधिक कमी या वृद्धि उत्पन्न होती है ।
अनुकूल एवं प्रतिकूल उत्तोलक (Favourable and Unfavourable Leverages)
वित्तीय प्रबन्ध में उत्तोलक से अभिप्राय ऐसी सम्पत्तियों या कोषों के प्रयोग से है जिनके लिए संस्था एक स्थायी लागत या प्रत्याय चुकाती है। स्थायी लागतों को वहन करने तथा चुकाने की क्षमता क्रमशः लाभदायकता एवं वित्तीय सुदृढ़ता को प्रभावित करती है। अतः स्थायी लागत भार उत्तोलक के आधार का कार्य करते हैं। यदि संस्था द्वारा अर्जित ब्याज व कर घटाने के पूर्व के लाभ स्थायी लागत या स्थायी प्रत्याय से अधिक हों तो अनुकूल उत्तोलक (Favourable Leverage) कहलायेगा। इसके विपरीत यदि स्थायी लागत या प्रत्याय संस्था द्वारा अर्जित ब्याज व कर से पूर्व लाभों से अधिक हो तो यह प्रतिकूल उत्तोलक (Unfavourable BCom Leverage Sample Paper
उत्तोलक के प्रकार (Types of Leverage)
वित्तीय प्रबन्ध के अन्तर्गत उत्तोलक मुख्यतः निम्नांकित तीन प्रकार के हो सकते हैं
(1) परिचालन उत्तोलक (Operating Leverage)
(2) वित्तीय उत्तोलक (Financial Leverage)
(3) संयुक्त/कुल उत्तोलक (Combined/Total Leverage)
(1) परिचालन उत्तोलक (Operating Leverage)
यदि किसी संस्था को स्थायी व्यय वहन करने पड़ते हों जिनका कि उत्पादन स्तर या विक्रय मात्रा से कोई सम्बन्ध न हो तो हम कहेंगे कि उक्त संस्था में परिचालन उत्तोलक विद्यमान है। यह विक्रय में परिवर्तन का संस्था के परिचालन लाभ पर पड़ने वाले प्रभाव का माप है। वस्तुतः परिचालन उत्तोलक उस समय उत्पन्न होता है जबकि विक्रय स्तर में होने वाले परिवर्तन संस्था के परिचालनात्मक लाभों में भी परिवर्तन करते हैं। ऋणों पर दिया जाने वाला ब्याज एक स्थिर लागत है। जिस कम्पनी के पूँजीकरण में स्थायी लागत वाली पूँजी का स्वामीगत पूँजी की तुलना में अधिक अनुपात होता है तो ऐसी स्थिति में विक्रय में हुई कमी या वृद्धि की अपेक्षा संचालन लाभों में अधिक तेजी से कमी या वृद्धि होती है। इस प्रवृत्ति को ही परिचालन उत्तोलक कहते हैं।
परिचालन उत्तोलक की कुछ मुख्य परिभाषाएँ नीचे दी गई हैं
(i) वाकर एवं पेट्टी के अनुसार, “परिचालन उत्तोलक को स्थायी परिचालन लागतों के उपयोग के परिणामस्वरूप दी हुई विक्रय मात्रा में हुए परिवर्तनों की तुलना में लाभों में हुए परिवर्तनों के रूप में परिभाषित किया जा
(ii) इजरा सोलोमन के अनुसार, “परिचालन उत्तोलक बिक्री से परिचालन लाभों की संग्राह्यता (sensivity) बतलाता है।”
(iii) ई. एफ. ब्राइगम के अनुसार, “यदि एक फर्म की कुल लागतों में स्थायी लागतों का प्रतिशत ऊँचा है तब यह कहा जायेगा कि फर्म में उच्च मात्रा का परिचालन उत्तोलक है।”
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निष्कर्ष-स्पष्ट है कि यदि संस्था में स्थायी लागतें हैं तथा एक निश्चित स्तर या वर्तमान स्तर से उत्पादन अथवा विक्रय को बदला जाए तो विक्रय दर में परिवर्तन की अपेक्षा लाभ दर में परिवर्तन अभि परिवर्तन के सापेक्ष अध्ययन को ही परिचालन उत्तोलक के नाम से जाना जाता है ।
परिचालन उत्तोलक भी दो प्रकार का होता है उच्च परिचालन उत्तोलक एवं निम्न परिचालन उत्तोलक यदि स्थायी परिचालन लागतें (Fixed operating costs) परिवर्तनशील परिचालन लागतों (Operating variable costs) से अधिक हैं तब परिचालन उत्तोलक ऊँचा होगा तथा विपरीत दशा में नीचा होगा। स्थायी परिचालन लागतों के कारण विक्रय में मामूली परिवर्तन परिचालन लाभों में तुलनात्मक रूप से अधिक परिवर्तन करता है।
उदाहरणार्थ, यदि विक्रय में 25% वृद्धि होने पर परिचालन लाभों में 100% वृद्धि होती है तो यह उच्च परिचालन उत्तोलक होगा। इसके विपरीत यदि विक्रय में 50% वृद्धि होने पर परिचालन लाभों में 10% की वृद्धि होती है तो यह निम्न परिचालन उत्तोलक कहलायेगा। __
यदि किसी संस्था में स्थायी लागतें नहीं हों तो उसमें परिचालन उत्तोलक नहीं होगा तथा परिचालन लाभों में परिवर्तन की दर विक्रय में परिवर्तन की दर के ठीक बराबर होगी। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि उच्च परिचालन उत्तोलक जोखिमपूर्ण होता है क्योंकि इसमें सुरक्षा की सीमा अत्यन्त कम होती है। सुरक्षा की सीमा कम होने पर बिक्री में होने वाले परिवर्तन का सामना करना कठिन हो जाता है क्योंकि बिक्री में कमी होने पर हानि की स्थिति शीघ्र ही आ जाती है । इसके विपरीत निम्न परिचालन उत्तोलक प्रबन्धकों के लिए अधिक उपयुक्त होता है क्योंकि इसमें सुरक्षा की सीमा अधिक होती है ।
सुरक्षा की सीमा अधिक होने पर बिक्री में होने वाले उतार-चढ़ावों का सरलतापूर्वक सामना किया जा सकता है क्योंकि वास्तविक बिक्री, सम-विच्छेद बिन्दु (Break-Even Point) से बहुत अधिक होती है।
परिचालन उत्तोलक की गणना (Computation of Operating Leverage)
परिचालन उत्तोलक के परिकलन हेतु निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है
Operation Leverage ( OL) = Contribution OR C
Operating Profit EBIT or OP
Where , Contribution = Sales – Variable Cost
Operating Profit = Contribution – Fixed cost
यदि अंशदान स्थायी लागतों से अधिक होता है तब यह अनुकूल परिचालन उत्तोलक (Favourable Operating Leverage) कहलाता है। इसके विपरीत यदि स्थायी लागते, अंशदान से अधिक होती हैं तब यह प्रतिकूल परिचालन उत्तोलक (Unfavourable Operating Leverage) कहलाता है।
परिचालन उत्तोलक की गणना को निम्नलिखित उदाहरण की सहायता से सरलतापूर्वक समझा जा सकता।
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Illustration 1. एक कम्पनी का अनुमान है कि उसके नये उत्पाद का विक्रय मूल्य 15 रुपये प्रति इकाई, परिवर्तनशील लागत 10 रुपये प्रति इकाई और स्थायी लागत 10,000 रुपये है। परिचालन उत्तोलक की गणना कीजिए. यदि बिक्री की मात्रा 4,000 इकाइयाँ और 5,000 इकाइयाँ है।
A company has estimated that for a new product its selling price is Rs. 15 per unit, variable cost is Rs. 10 per unit and fixed cost is Rs. 10,000. Calculate the operating leverage for sales volume of 4,000 units and 5,000 units.
टिप्पणी-स्पष्ट है कि बिक्री में परिवर्तन की तुलना में परिचालन लाभ में परिवर्तन 4,000 इकाइयों के विक्रय पर दुगुना एवं 5,000 इकाइयों के विक्रय पर 1.67 गुना होगा अर्थात् 5,000 इकाइयों के विक्रय की अपेक्षा 4,000 इकाइयों की विक्रय मात्रा पर अधिक परिचालन उत्तोलक है।
परिचालन उत्तोलक की मात्रा
(Degree of Operating Leverage)
स्थायी परिचालन लागतों का प्रयोग करने से उत्पन्न प्रवर्धक प्रभाव (multiplier effect) का माप परिचालन उत्तोलक की मात्रा से किया जाता है । उत्पादन के किसी भी स्तर पर परिचालन उत्तोलक की मात्रा परिचालन लाभों में प्रतिशत परिवर्तन को विक्रय में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जा सकता है ।
(The degree of operating leverage may be defined as the percentage change in profits resulting from a percentage change in sales.) परिचालन उत्तोलक की मात्रा का परिकलन करने हेतु अग्रलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
Degree of Operating Leverage (DOL) = Percentage Change in EBIT or OP
Percentage Changes in Sales
यदि परिचालन उत्तोलक की मात्रा ऊँची है तो विक्रय स्तर में थोड़े से परिवर्तन का ही परिचालन आय पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। परिचालन उत्तोलक की मात्रा परिकलित करने के उपर्युक्त सूत्र का प्रयोग निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में करते हैं
(1) जब परिचालन लाभ में परिवर्तन या बिक्री में परिवर्तन में से कोई एक ज्ञात है एवं दूसरे को ज्ञात करना है।
(2) ब्रिकि की की दो मात्राओं पर परिचालन लाभ (EBIT or OP) में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना चाहते हैं।
(3) जब प्रश्न में स्पष्ट रूप से परिचालन उत्तोलकर की मात्रा ज्ञात करने के लिए कहा गया हो ।
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उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिचालन उत्तोलक एवं परिचालन उत्तोलक की मात्रा को परिकलित करने हेतु भिन्न-भिन्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है। अत: अधिकांशतः विद्यार्थी दोनों को अलग-अलग समझते हैं एवं स्पष्ट रूप से यह भी नहीं समझ पाते कि कब परिचालन उत्तोलक वाले सूत्र का प्रयोग करेंगे एवं कब परिचालन उत्तोलक की मात्रा को परिकलित करने वाले सत्र का प्रयोग करेंगे। अतः इस सम्बन्ध में एक बात तो भली प्रकार यह समझ लें कि परिचालन उत्तोलक एवं परिचालन उत्तोलक की मात्रा दोनों के परिकलन हेतु प्रयोग किये जाने वाले सूत्रों से एक ही परिणाम (result प्राप्त होता है क्योंकि दोनों ही विक्रय में परिवर्तन का संस्था के परिचालन लाभ पर पड़ने वाले प्रभाव के माप हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि OL एवं DOL दोनों का उत्तर सदैव एक समान ही होगा। दूसरी बात यह है कि परिचालन उत्तोलक की मात्रा (DOL) को परिकलित करने वाले सूत्र का प्रयोग उपर्युक्त वर्णित परिस्थितियों में ही करते हैं। मुख्यतः DOL के सूत्र का प्रयोग तभी किया जाता है जब परिचालन लाभ में परिवर्तन या बिक्री में परिवर्तन में से कोई एक ज्ञात है एवं दसरे को ज्ञात करना है। यदि प्रश्न में प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर परिचालन लाभ में परिवर्तन एवं बिक्री में परिवर्तन की गणना करना सम्भव न हो परन्तु प्रश्न में परिचालन उत्तोलक की मात्रा ज्ञात करने के लिए कहा गया हो तो ऐसी दशा में परिचालन उत्तोलक के परिकलन हेतु प्रयोग किये जाने वाले सूत्र का ही प्रयोग किया जायेगा।
Illustration. 2
(a) यदि परिचालन उत्तोलक 2 है और बिक्री में 50% की वृद्धि होती है, तो ब्याज एवं कर से पूर्व अर्जनों में कितने प्रतिशत वृद्धि होगी?
If operating leverage is 2 and sales increase by 50%, then by what percentage of EBIT will increase?
(b) यदि परिचालन उत्तोलक 3 है एवं फर्म अपने ब्याज एवं कर काटने से पूर्व के लाभ को दुगुना करना चाहती है तो प्रतिशत आधार पर बिक्री को किस मात्रा तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी?
If operating leverage is 3 and firm wants to double ils EBIT, how much rise in sales would be needed on a percentage basis?
स्पष्ट है कि यदि फर्म अपने ब्याज एवं कर काटने के पूर्ण के लाभ को दुगुना करना चाहता है तो बिक्रि में 33.33 % की वृद्दि करनी होगी ।
परिचालन उत्तोलक की विशेषताएँ (Characteristics of Operating Leverage)
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1.चिटठे के सम्पत्ति पक्ष से सम्बन्धित (Related with asset side of Balance Sheet)परिचालन उत्तोलक स्थायी लागत वाली सम्पत्तियों के उपयोग के कारण उत्पन्न होता है। अतः यह चिटठे के सम्पत्ति पक्ष में दीर्घकालीन अथवा स्थायी सम्पत्तियों के मिश्रण को प्रभावित करता है।।
2. सम-विच्छेद बिन्दु से सम्बन्ध (Relation with Break-Even Point)-सम-विच्छेद बिन्दु तथा परिचालन उत्तोलक की मात्रा में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है । यह उत्पादन या बिक्री का वह बिन्दु है जहाँ सम्पूर्ण स्थायी लागतों की वसूली हो जाती है. परन्त लाभ अथवा हानि नहीं होती। परिचालन उत्तोलक की मात्रा सम-विच्छेद बिन्दु के पास सर्वाधिक होती है। अत: सम-विच्छेद बिन्दु में वृद्धि से परिचालन उत्तोलक की मात्रा में वृद्धि होगी। इस बिन्दु के पास पहुँचने के बाद बिक्री में मामूली वृद्धि लाभों में भारी वृद्धि करती है।
3. विक्रय मूल्य व परिवर्तनशील लागतों से सम्बन्ध (Relation with Selling Price and Variable Cost)-परिचालन उत्तोलक की मात्रा प्रति इकाई विक्रय मूल्य एवं प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत के बीच अन्तर से भी प्रभावित होती है। विक्रय मूल्य एवं परिवर्तनशील लागत के बीच जितना अन्तर कम होगा. परिचालन उत्तोलक की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। यही कारण है कि सम-विच्छेद बिन्दु पर परिचालन उत्तोलक की मात्रा की गणना नही की जा सकती क्योंकि सम-विच्छेद बिन्दु पर अंशदान शून्य हो जाता है।
4. व्यावसायिक जोखिम (Business Risks)-परिचालन उत्तोलक लाभों के साथ-साथ जोखिम में भी वृद्धि करता है । यह बिक्री में हुए परिवर्तनों का लाभों पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट करता है। यदि किसी फर्म का उच्च परिचालन उत्तोलक है तो परिचालन लाभ बिक्री में वृद्धि दर की तुलना में अधिक दर से बढ़ेंगे। इसके विपरीत बिक्री में मामूली सी कमी लाभों में बहुत अधिक कमी लायेगी। इस प्रकार लाभों की परिवर्तनशीलता में वृद्धि के साथ-साथ व्यावसायिक जोखिम में भी वृद्धि होती है।
परिचालन उत्तोलक की उपयोगिता (Utility of Operating Leverage)
(i) लाभ नियोजन (Profit Planning)-परिचालन उत्तोलक, स्थायी लागतों का परिणाम है। अत: यह पूँजी बजटन निर्णयों के लिए उपयोगी है। पूँजी बजटन दीर्घकालीन लाभ-नियोजन के लिए आवश्यक है। इसलिए परिचालन उत्तोलक पूँजी बजटन निर्णयों एवं दीर्घकालीन लाभ-नियोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । ब्राइगम के अनुसार परिचालन उत्तोलक अवधारणा का विकास ही मूलरूप से पूँजी बजटन निर्णयों में उपयोग के लिए हुआ था।
(ii) पूँजी संरचना निर्णय (Capital Structure Decisions)-परिचालन उत्तोलक विक्रय में परिवर्तन का परिचालन आय पर प्रभाव स्पष्ट करता है। चूंकि परिचालन आय ऋण पर ब्याज तथा ऋण के कुछ भाग के भगतान करने के निर्णय का आधार होती है इसलिए परिचालन उत्तोलक ऋण-समता मिश्रण या पँजी संरचना नियोजन को भी प्रभावित करता है । सामान्यतः उच्च परिचालन उत्तोलक एक संस्था की वांछित लाभदायकता प्राप्त करने की जोखिम में वृद्धि करता है और जोखिम में यह वृद्धि ऋण-समता मिश्रण या पूँजी संरचना नियोजन को प्रभावित करती है।
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(2) वित्तीय उत्तोलक
(Financial Leverage)
जैसे कि पीछे स्पष्ट किया जा चुका है कि एक संस्था वित्त पूर्ति हेतु पूँजी की लागत या प्रत्याय के टशिकोण से दो प्रकार की पूँजी का प्रयोग कर सकती है-ऐसी पूँजी जिस पर एक निश्चित दर से ब्याज या लाभांश चकाना पड़ता है जैसे पूर्वाधिकार अंश पूंजी, ऋण पत्र, दीर्घकालीन ऋण आदि (यद्यपि पूर्वाधिकार अंशों लाभांश चकाना कोई कानूनी दायित्व नहीं है, वस्तुतः लाभों के होने पर ही लाभांश का भुगतान किया जाता है लाभों की विद्यमानता की स्थिति में इन्हें एक निश्चित दर से ही लाभांश दिए जाने के कारण इन्हें जगात पँजी के अन्तर्गत ही सम्मिलित किया जाता है) तथा ऐसी पूँजी जिस पर एक निश्चित दर से गचकाने की आवश्यकता नहीं होती जैसे-समता अंश पँजी व प्रतिधारित अर्जनें। यदि हम यों (ब्याज एवं लाभांश) एवं परिचालन लाभों की प्रकृति का विश्लेषण करें तो ज्ञात होता है विनीय व्यय परिचालन लाभों (EBIT) के साथ-साथ परिवर्तित नहीं होते. चाहे ऐसे लाभों की। है कि ये स्थिर वित्तीय व्यय परिचालन लाभों (EBIT) दिन स्थिर वित्तीय व्ययों का भुगतान करने के उपरान्त शेष परिचालन लाभ (EBIT) उपलब्ध होते है ऐसा होने से परिचालन लाभों (EBIT) में परिवर्तन होने पर होती हैं। इस दृष्टि से वित्तीय उत्तोलक पूँजी संरचना में स्थिर दायित्व वाली।
प्रतिभतियों के उपयोग से समता अंशधारियों के लाभों पर पड़ने वाले प्रभाव की मात्रा का माप है। यह वित्तीय जोखिम की मात्रा (Degree of Financial Risk) का स्पष्टीकरण करता है।
चूंकि वित्तीय उत्तोलक ऋणपूँजी के उपयोग द्वारा समता पुँजी पर प्रत्याय दर को बढाने की एक प्रक्रिया है इसलिए इसे ‘समता पर व्यापार (Trading on Equity) भी कहा जाता है। अतः ‘वित्तीय उत्तोलक एवं ‘समता पर व्यापार’ समानार्थी है । वस्तुतः वित्तीय उत्तोलक का सिद्धान्त. समता पर व्यापार के सिद्धान्त की ही आधानिक व्याख्या है। वित्तीय उत्तोलक की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
हैम्पटन के अनुसार, “वित्तीय उत्तोलक तब विद्यमान होता है जब एक फर्म के पास ऋण या कोष के अन्य स्रोत हैं जो स्थायी प्रभाव वाले हैं।” __ सोलोमन इजरा के अनुसार, “अवशेष शुद्ध आय की परिचालन लाभ से अनुपातहीन रूप में परिवर्तन की प्रवत्ति वित्तीय उत्तोलन कहलाता है। इसकी व्याख्या ऋण पँजी द्वारा उत्पन्न आय के रूप में भी कर सकते हैं।
आई० जे० गिटमैन के अनुसार, “वित्तीय उत्तोलक को स्थायी वित्तीय व्ययों के उपयोग से संस्था की प्रति अंश अर्जनों पर परिचालन लाभों (EBIT) में परिवर्तनों के प्रभाव को आवर्धित (magnify) करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
वार्न होर्न होने के अनुसार, “वित्तीय उत्तोलक में स्थायी लागत कोषों का प्रयोग सामान्य स्कन्धधारियों के प्रत्याय को बढ़ाने की आशा में किया जाता है।”
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निष्कर्ष-वित्तीय उत्तोलन का आशय ऐसी स्थिति से है जिसमें कम्पनी द्वारा स्थायी दायित्व वाली पूँजी (ऋण-पत्रों, पूर्वाधिकार-अंश आदि) में कमी या वृद्धि करने से स्वामी पूँजी की लाभदायकता पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः वित्तीय उत्तोलक यह बतलाता है कि पूँजी संरचना में स्थायी लागत वाली पूँजी एवं समता पूँजी का प्रयोग किस अनुपात में किया गया है। परिचालन उत्तोलक की भाँति वित्तीय उत्तोलक भी उच्च या निम्न स्तर का हो सकता है। यदि संस्था में स्थायी लागत पूँजी परिवर्तनशील लागत पूँजी से अधिक है तो संस्था में उच्च स्तर का वित्तीय उत्तोलक होगा, इसके विपरीत यदि परिवर्तनशील लागत पूँजी का अनुपात स्थायी लागत पूँजी से अधिक है तो निम्न स्तर का वित्तीय उत्तोलक होगा। यदि कम्पनी की अर्जनें पर्याप्त नहीं हो तो इस स्थिति में उसे परिवर्तनशील लागत पूँजी का प्रयोग अधिक करना चाहिए अर्थात उसे निम्न उत्तोलक का प्रयोग अधिक करना चाहिए। इसके विपरीत यदि कम्पनी की अर्जने अधिक है तो उस स्थिति में उसे स्थायी लागत पूँजी का प्रयोग अधिक करना चाहिए अर्थात् उच्च उत्तोलक का प्रयोग अधिक करना चाहिए। कम्पनी की अर्जने अधिक तब मानी जायेगी जबकि उसकी विनियोग पर अर्ज स्थायी लागत दर से अधिक हो ।
अनुकूल एवं प्रतिकूल वित्तीय उत्तोलक
(Favourable and Unfavourable Financial Leverage)
यदि संस्था में ब्याज एवं कर से पूर्व लाभ (Earnings Before Interest and Tax i.e., EBIT) की राशि स्थायी पुँजी लागत से अधिक है तो प्राप्त वित्तीय उत्तोलक अनुकूल होगा तथा इसकी विपरीत स्थिति में प्रतिकूल होगा। दूसरे शब्दों में यदि स्थिर भार वाली प्रतिभूतियों के उपयोग के कारण प्रतिअंश अर्जनें (EPS) अधिक होती है तो इसे अनुकूल वित्तीय उत्तोलक (Favourable Financial Leverage) कहा जाता है। ऐसा तब सम्भव होगा जब कम्पनी की सामान्य प्रत्याय दर ऋणपूँजी की लागत से अधिक होती है। यदि संस्था ऋणपूँजी की लागत से कम अर्जित करती है तो यह प्रतिकूल वित्तीय उत्तोलक (Unfavourable Financial Leverage) कहलाता है। उदाहरणार्थ, यदि एक कम्पनी 100 रु., 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर उधार लेती है तथा इसके विनियोग से 15% वार्षिक प्रत्याय अर्जित करती है तो यह अनुकूल वित्तीय उत्तोलक होगा। इस स्थिति में ब्याज का भुगतान करने के बाद 5% वार्षिक अन्तर (15%-10%) की राशि समता अंशधारियों की होगी जिससे उन्हें कम्पनी की सामान्य अर्जन दर से ऊंची दर पर प्रत्याय दी जा सकती है। इसके विपरीत यदि कम्पनी विनियोजित 100 रु.से 7% प्रत्याय ही अर्जित करती हो तो यह प्रतिकल वित्तीय उत्तोलक होगा तथा समता अंशधारियों की हानि 3% वार्षिक अधिक होगी। इस प्रकार वित्तीय उत्तोलका दुधारी तलवार है, जहाँ एक ओर यह समता अंशधारियों के लिए उपलब्ध अर्जनों में वृद्धि करता है,वही दसरी ओर इसमें कमी भी लाता है।
जिस प्रकार स्थायी लागतों के विद्यमान न होने पर परिचालन उत्तोलक नहीं होता है उसी प्रकार यदि कम्पनी स्थायी लागत पूँजी का प्रयोग नही करे तो वित्तीय उत्तोलक भी विद्यमान नही होगा, अर्थात् स्थायी पूँजी लागत के विद्यमान न होने की स्थिति में वित्तीय उत्तोलक नहीं होगा।
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वित्तीय उत्तोलक की गणना (Calculation of Financial Leverage) वित्तीय उत्तोलक की सीमा को ब्याज एवं कर से पूर्व लाभ (EBIT) एवं कर सहित लाभ (EBT) के अनुपात द्वारा निर्धारित करते हैं।
उपर्युक्त सूत्र हमें यह जानकारी प्रदान करता है कि EBIT या OP में एक निश्चित मात्रा में परिवर्तन होने से EBT में कितनी मात्रा में परिवर्तन होगा। इसके अतिरिक्त यह जानकारी भी मिलती है कि प्रयोग किये गये किसी ऋण की मात्रा ने समता अंशधारियों के प्रत्याय में वृद्धि की है अथवा कमी। यदि इसमें वृद्धि होती है तब तो ऋण लेना ठीक है अन्यथा ऋण लेना अंशधारियों के हित में नहीं होगा। प्रभाव की दृष्टि से वित्तीय उत्तोलक धनात्मक हो सकता है अथवा ऋणात्मक । धनात्मक उत्तोलक तब माना जाता है जब EBIT की दर, ऋण पूँजी की लागत से अधिक होती है। यदि EBIT की दर, ऋण पूँजी की लागत की अपेक्षा कम हो तो उत्तोलक ऋणात्मक माना जाता है । ऋणात्मक उत्तोलक हानिकारक होता है क्योंकि यह समता अंशधारियों की आय को पहले से भी कम कर देता है । इस प्रकार वित्तीय उत्तोलक व्यवसाय में परिचालन जोखिम की मात्रा की व्याख्या करता है।
वित्तीय उत्तोलक की गणना के सम्बन्ध में पूँजी संरचना की निम्नलिखित तीन स्थितियाँ हो सकती हैं
(1) जब पूंजी संरचना में समता अंश एवं ऋण पूँजी हो,
(II)जब पूँजी संरचना में समता अश एवं पूर्वाधिकार अंश हो तथा
(III) जब पूँजी संरचना में समता अंश, पूर्वाधिकार अंश एवं ऋण पूँजी हो।
(1) जब पूँजी संरचना में समता अंश पूँजी एवं ऋण पूँजी हो
(When Capital Structure Consists of Equity Share Capital and Debt Capital)
वित्तीय संरचना में सामान्य अंश पूँजी एवं ऋण पूँजी होने पर वित्तीय उत्तोलक की मात्रा ज्ञात करने हेतु । उपर्युक्त वर्णित किसी भी सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है।
स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें
Illustration 3. एक कम्पनी के पास चुनाव हेतु निम्नलिखित तीन वित्तीय योजनायें हैं। प्रत्येक दशा। में आप वित्तीय उत्तोलक की गणना काजिये और इसका विवेचन कीजिये।
A company has a choice of the following three financial plans. You are required The financial leverage in each case and interpret it.
A (Rs.) B (Rs.) C (Rs.)
Equity Capital 20,000 10,000 30,000
Debt @ 10% 40,000 60,000 20,000
Operating Profit (EBIT) 10,000 10,000 10,000
निर्वचन-वित्तीय उत्तोलक के उपर्युक्त परिकलन से स्पष्ट है कि परिचालन लाभ (OP or EBIT) में परिवर्तन की तुलना में कर योग्य लाभ (EBT) में परिवर्तन उसी दिशा में A योजना में 1.67 गुना, B योजना में ढाई गुना तथा C योजना में सवा गुना हो रहा है।
(II) जब पूँजी संरचना में समता अंश पूँजी एवं पूर्वाधिकार अंश पूँजी हो
(When Capital Structure Consists of Equity Share Capital and Preference Share Capital)
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यदि पूँजी संरचना में समता अंश एवं पूर्वाधिकार अंश पूँजी हो तो पूर्वाधिकार अंशों पर देय लाभांश को कम्पनी पर लागू आयकर की दर से सकल (Gross) बनाने के पश्चात् ही EBIT में से घटाया जायेगा क्योंकि पूर्वाधिकार अंशों पर देय लाभांश का भुगतान कर चुकाने के पश्चात् ही किया जाता है। संक्षेप में, ऐसी स्थिति में वित्तीय उत्तोलक ज्ञात करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जायेगा
FL = EBIT
EBIT – (PD * 1)
(1 – T)
PD = Preference Dividend
T= Tax Rate
स्पष्टीकरण हेतु निम्नांकित उदाहरण देखिए
Illustration 4. एक कम्पनी की पूँजी संरचना में निम्नलिखित प्रतिभूतियाँ सम्मिलित हैं
8% पूर्वाधिकारी अंश पूँजी 5,00,000
रुपये समता अंश पूँजी (10 रुपये प्रति अंश) 5,00,000
रुपये परिचालन लाभ 2,80,000 रुपये है और कम्पनी 50% की कर सीमा में है। कम्पनी के वित्तीय उत्तोलक की गणना कीजिए।
The capital structure of a company consists of the following securities :
8% Preference share capital Rs. 5,00,000
Equity share capital (Rs. 10 per share) Rs. 5,00,000
The amount of operating profit is Rs. 2,80,000. The company is in 50% tax bracket.
You are required to calculate the financial leverage of the company.
स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखिए
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Illustration 5. एक कम्पनी की पूँजी संरचना निम्नलिखित है
समता अंश पूंजी 4,00,000 रुपये
8.75% पूर्वाधिकारी अंश पूँजी 4,00,000 रुपये
6% ऋणपत् 5,00,000
रुपये कम्पनी का वर्तमान परिचालन लाभ 2,00,000 रुपये है ! कम्पनी को 50% कर सीमा में मानकर वित्तीय उत्तोलक की गणना कीजिए।
A company has the following capital structure :
Equity Share Capital Rs. 4,00,000
8.75% Preference share capital Rs. 4,00,000
6% Debentures Rs. 5,00,000
The Present EBIT is Rs. 2,00,000. Calculate the financial leverage assuming that company is in 50% tax bracket.
=2,00,000 = 2,00,000
2,00,000 – 30,000 -70,000 1,00,000=2
वित्तीय उत्तोलक की मात्रा (Degree of Financial Leverage)
वित्तीय उत्तोलक की मात्रा को परिचालन लाभ में होने वाले परिवर्तन प्रतिशत के परिणामस्वरूप कर-योग्य लाभ में होने वाले परिवर्तन प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है। सूत्रानुसार :
Degree of Financial Leverage (DFL)
= Percentage Change in Taxable Income (EBT)
Percentage Change in Operating Profit (OP or EBIT)
वित्तीय उत्तोलक की प्रति अंश अर्जन विचारधारा (EPS Approach of Financial Leverage)
अनुकूलतम पूँजी संरचना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य समता अंशधारियों के कोषों पर प्रत्याय को अधिकतम करना अर्थात् प्रति अंश अर्जन को अधिकतम करना होता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए गिटमैन, हैम्पटन आदि अनेक विद्वानों ने वित्तीय उत्तोलक को ‘ब्याज और कर से पूर्व अर्जन’ (EBIT) तथा ‘प्रति अंश अर्जन’ (EPS) के बीच सम्बन्ध के रूप में परिभाषित किया है। इस दृष्टिकोण से वित्तीय उत्तोलक,ब्याज और कर से पूर्व अर्जन में प्रतिशत परिवर्तन को अभिव्यक्त करता है। सूत्र रूप में
Degree of Financial Leverage (DFL)
% Change in EPS
% Change in OP or EBIT
परिचालन उत्तोलक की भाँति वित्तीय उत्तोलक एवं वित्तीय उत्तोलक की मात्रा से समान परिणाम ही प्राप्त होते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि FL एवं DFL दोनों का उत्तर सदैव एक समान ही होगा। दूसरी बात यह है कि DFL के सूत्र का प्रयोग तभी करते हैं जब परिचालन लाभ (EBIT or OP) तथा कर योग्य लाभ (EBT) अथवा प्रतिअंश आय (EPS) में परिवर्तन में से किसी एक में होने वाले परिवर्तन का प्रतिशत ज्ञात हो और दूसरे का परिवर्तन प्रतिशत ज्ञात करना हो।
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Illustration 6. (a) यदि वित्तीय उत्तोलक 1.5 है एवं ब्याज और कर से पूर्व लाभ को 10% बढाते हैं तो कर-योग्य लाभ कितने प्रतिशत बढ़ेगा?
If financial leverage is 1.5 and EBIT increase by 10%, then what percentage of EBT will increase?
(b) यदि वित्तीय उत्तोलक 2 है एवं प्रति अंश आय में 10% की वृद्धि होती है, तो ब्याज एवं कर से पूर्व लाभ कितने प्रतिशत बढ़ेगा?
If financial leverage is 2 and EPS increase by 10%, then what percentage of EBIT will increase
Bu Putting the given values , we got :
2 = 10%
% Change in EBIT
% Change in EbIT = 10% = 5%
2
स्पष्ट है कि यदि EPS में 10% की वृद्धि होती है तो EBIT में 5% की वृद्धि होगी।
वित्तीय उत्तोलक की विशेषताएँ (Characteristics of Financial Leverage)
1 चिट्टे के दायित्व पक्ष से सम्बन्धित (Related with liability side of Balance Sheet)-जिस प्रकार परिचालन उत्तोलक चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष से सम्बन्धित है, उसी प्रकार वित्तीय उत्तोलक चिट्ठे के दायित्व पक्ष से सम्बन्धित है।
2. वित्त-पूर्ति के स्रोतों का मिश्रण (Mix of various sources of financing) वित्तीय उत्तोलक आवश्यक सम्पत्तियों के अर्थ-प्रबन्धन की विधियों वे मिश्रण का निर्धारण करता है अर्थात् कुल पूँजी की आवश्यकताओं की पूर्ति किन-किन स्त्रोतों से की जाय ताकि अंशधारियों की आय अधिकतम हो सके।
3. प्रति अंश अर्जनों पर प्रभाव (Effect on earnings per share)-वित्तीय उत्तोलक, स्थिर वित्तीय व्ययों के कारण परिचालन लाभों में होने वाले परिवर्तनों का प्रति अंश अर्जनों पर प्रभाव स्पष्ट करता है।
4. वित्तीय जोखिम (Financial Risk)-वित्तीय उत्तोलक का उपयोग समता पूँजी के धारकों की जोखिम अर्थात संस्था की वित्तीय जोखिम में वृद्धि करता है। एक संस्था को जिसकी सम्पूर्ण वित्त-पूर्ति समता अंश पूँजी से की गई हो, कोई वित्तीय जोखिम नहीं होगी। किन्तु पूँजी संरचना में ऋण की मात्रा से वित्तीय जोखिम बढ़ती है क्योंकि ऋण उपयोग से अंशधारियों की प्रत्याय में परिवर्तनशीलता तथा संस्था के दिवालिया हो जाने (तरलता में कमी से) की सम्भावना में वृद्धि होती है।
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वित्तीय उत्तोलक की उपयोगिता
(Utility of Financial Leverage)
(1) संतुलित पूँजी संरचना का निर्धारण (Determination of Balanced Capital Structure)-अधिकांश संस्थाएं ऋण व समता पूंजी का मिश्रण रखती हैं। चूंकि वित्तीय उत्तोलक ऋण व समता पूँजी में उचित संतुलन से सम्बन्धित है, अतः इसकी सहायता से संतुलित पूँजी संरचना का निर्धारण किया जा सकता है, जहाँ पूँजी की लागत न्यूनतम तथा अंशधारियों की प्रत्याय अधिकतम होगी।
(2) लाभ-नियोजन के लिए महत्त्वपूर्ण (Important for Profit – Planning)-वित्तीय उत्तोलक प्रति अंश अर्जनों अथवा कर से पूर्व लाभों को प्रभावित करता है । इस प्रभाव की जानकारी के लिए बिक्री के विभिन्न स्तरों पर लाभदायकता का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना पड़ता है । इसके लिए सम-विच्छेद विश्लेषण एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है। चूँकि वित्तीय उत्तोलक की अवधारणा को समझने के लिए सम-विच्छेद विश्लेषण का उपयोग किया जाता है, इसलिए वित्तीय उत्तोलक की अवधारणा लाभ-नियोजन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
(3) अंशधारियों की आय में वृद्धि (Increase in income of shareholders)-अनुकूल वित्तीय उत्तोलक की दशा में अंशधारियों को अधिक लाभांश वितरित किये जा सकते है। इससे कम्पनी की ख्याति में वृद्धि होगी तथा बाजार में अंशों का मूल्य बढ़ जायेगा। साख बढ़ने से संस्था को नीची ब्याज दर पर ऋण आसानी से उपलब्ध हो पायेंगे।
(4) व्यवसाय विस्तार की सीमा का निधारण (Determination of Business Expansion Timits-वित्तीय उत्तोलक संस्था के व्यवसाय विस्तार की अधिकतम सीमा का निर्धारण करने में उचित मार्गदर्शन करता है। उदाहरणार्थ, जैसे ही अतिरिक्त विनियोग पर प्रत्याय ऋण की स्थायी लागतों से कम हो, तो प्रबन्ध को व्यवसाय विस्तार रोक देना चाहिए।
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वित्तीय उत्तोलक की सीमाएँ
(Limitations of Financial Leverage)
1 अस्पष्ट लागतों की अवहेलना (Implicit cost is ignored)-इस तकनीक के अनुसार जब तक पर ब्याज (स्पष्ट लागत) से आधक रहे, अतिरिक्त कोषों की पर्ति ऋण से की जानी चाहिए.क्योंकि यह वित्त पूर्ति का सबसे सस्ता स्त्रोत है। किन्तु यह कार्यवाही हमेशा अंशधारियों की सम्पदा को अधिकतम नही करती क्योंकि इस तकनीक में अस्पष्ट लागतों का ध्यान नहीं रखा जाता है। अस्पष्ट लागते ऋण की अधिक मात्रा के फलस्वरूप वित्तीय जोखिम में वद्धि होने के कारण समता अंशों के बाजार मूल्य में कमी से उत्पन्न होती है। इसलिए ऋण की अस्पष्ट लागत को ध्यान में रखे बिना पूँजी संरचना सम्बन्धी कोई भी निर्णय भ्रमात्मक होगा।
2.ऋण का स्थिर लागत की गलत मान्यता (Wrong assumption of debt’s fixed cost) वत्ताया उत्तोलक को तकनीक इस मान्यता पर आधारित है कि ऋण की लागत सदेव स्थिर रहती है. चाहे वित्तीय उत्तोलक की मात्रा कितनी ही हो। यह मान्यता अवास्तविक है। ऋण की उत्तरोत्तर मात्रा के साथ-साथ जोखिम में वृद्धि के कारण ब्याज दरों में वृद्धि होती जाती है जिससे स्थिर लागतें बढती रहती है।
3 .अति-पूँजीकरण का भय (Fear of over-capitalisation)-एक निश्चित सीमा के बाद उधार के बल पर व्यवसाय संचालन करना असम्भव हो जाता है.क्योंकि निश्चित ब्याज दर के कारण संस्था पर व्ययों का बोझ इतना बढ़ जाता है कि कुछ समय में व्यवसाय अति-पँजीकत हो जाता है। संस्था की ऋण प्राप्त करने की क्षमता घट जाती है तथा लाभांश दर कम होने से अंशों के बाजार मूल्य में गिरावट आने लगती है।
परिचालन उत्तोलक एवं वित्तीय उत्तोलक में अन्तर
(Difference Between Financial and Operating Leverage)
(i) परिचालन उत्तोलक मुख्यतः चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष को प्रभावित करता है, जबकि वित्तीय उत्तोलक चिटठे के दायित्व पक्ष पर प्रभाव डालता है।
(ii) आय वितरण की दृष्टि से परिचालन उत्तोलक संस्था की परिचालन क्रियाओं से आय का निर्धारण करता है जबकि वित्तीय उत्तोलक यह निर्धारित करता है कि परिचालन लाभों का ऋणदाताओं एवं अंशधारियों में किस प्रकार आबंटन किया जायेगा।
(iii) परिचालन उत्तोलक सम्पत्तियों के मिश्रण को प्रभावित करता है जबकि वित्तीय उत्तोलक संस्था के अर्थ-प्रबन्धन की विधियों का निर्धारण करता है।
(iv) परिचालन उत्तोलक विक्रय में परिवर्तन के फलस्वरूप परिचालन लाभों में होने वाले आनुपातिक परिणामों को बतलाता है जबकि वित्तीय उत्तोलक परिचालन लाभों में परिवर्तनों के कारण प्रति अंश अर्जनों में आनुपातिक परिवर्तनों को स्पष्ट करता है।
(v) परिचालन उत्तोलक व्यावसायिक जोखिम में वृद्धि करता है जबकि वित्तीय उत्तोलक वित्तीय जोखिम में वृद्धि लाता है।
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(3) संयुक्त या मिश्रित उत्तोलक (Composite or Combined Leverage)
परिचालन उत्तोलक व्यावसायिक जोखिम को प्रभावित करता है तथा विक्रय मात्रा में परिवर्तन के कारण परिचालन लाभों (EBIT) को आवर्धित (magnify) करता है। वित्तीय उत्तोलक वित्तीय जोखिम को प्रभावित करता है तथा परिचालन लाभों में परिवर्तन का प्रति अंश अर्जनों पर प्रभाव स्पष्ट करता है। चूंकि दोनो ही उत्तोलक संस्था की स्थायी लागतों (परिचालन उत्तोलक से स्थायी परिचालन लागत तथा वित्तीय उत्तोलक से स्थायी वित्तीय लागत) को वसूल करने की योग्यता स सम्बन्धित है, अतः दोनो उत्तालको को मिल स्थायी लागतों का प्रभाव जानने हेतु संयुक्त उत्तोलक की गणना की जाती है । अतः स्थायी परिचालन व्यय एवं स्थायी वित्तीय व्ययों के आधार पर ज्ञात किया कुल उत्तोलक ही ‘संयुक्त उत्तोलक’ कहलाता है।
दसरे शब्दों में मिश्रित उत्तोलक की गणना द्वारा वित्तीय उत्तोलक तथा परिचालन उत्तोलक के संयक्त प्रभाव को स्पष्ट किया जा सकता है । संक्षेप में, मिश्रित उत्तोलन की गणना हेत निम्नलिखित सत्र प्रयोग किया जाता हैं
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Illustration 7. निम्नलिखित समंकों से परिचालन उत्तोलन, वित्तीय उत्तोलन एवं मिश्रित उत्तोलन की गणना कीजिए
बिक्री 40,000 इकाइयाँ,5 रुपये प्रति इकाई रुपये 2,00,000
परिवर्तनशील लागत 2.00 रुपये प्रति इकाई
स्थायी लागत रुपये90,000
ऋण पूँजी पर ब्याज रुपये 5,000
Calculate operating leverage,financial leverage and combined leverage from the following data :
Sales 40,000 units @ Rs. 5 p.u. Rs. 2,00,000
Variable Cost per unit @ Rs. 2.00
Fixed Costs Rs. 90,000
Interest charges on debt capital Rs. 5,000
Solution :
Rs.
Sales Revenue 2,00,000
Less Variable Cost (40,000 X 2) 80,000
Contribution 1,20,000
Less Fixed Costs 90,000
EBIT 30,000
Less Interest Charges 5,000
EBT 25,000
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Illustration 8. एक कम्पनी की बिक्री 1 लाख रुपये जबकि स्थायी परिचालन लागत 30,000 रुपये है। दीर्घकालीन ऋण पर ब्याज 10,000 रुपये है।
आप परिचालन वित्तीय एवं मिश्रित उत्तोलनों की गणना कीजिए और इसका प्रभाव उदाहरण द्वारा समझाइये यदि बिक्री में 5% से वृद्धि होती है।
A Company has sales of Rs. 1 Lakh. The variable costs are 40% of the sales while the fixed operating costs amount to Rs. 30,000. The amount of interest on long-term debt is Rs. 10,000.
You are required to calculate the Operating, Financial and Composite leverages and illustrate its impact if sales increased by 5%.
Comment on firm’s performance
The financial position of firm can be regarded better than that of other firms A and B because of the following reasons :
1 Financial leverage is the measure of financial risk. Firm has the least Financial risk as it has minimum degree of financial leverage.
2. Combined leverage is maximum in Firm B, i.e. 20 against Firm A i.e., 12 and Firm C, 1.c, 6. The total risk complexion of Firm C is the lowest while that of other firms are very high.
3. The ability of Firm C to meet interest liability is better than that of Firms A and B.
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Illustration 14 निम्नलिखित समंक स्वाति लिमिटेड से सम्बन्धित हैं :
The Following data relate to Swati Ltd :
प्रति इकाई विनय मूल्य (Selling Price Per Unit) Rs. 80
प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत (Variable Cost Per Unit) Rs. 50
स्थिर परिचालन लागतें (Fixed Operating Costs) Rs. 24,000
विक्रय मात्रा (Sales Volume) 1,000 Units
यदि बिक्री में 5% का परिवर्तन, प्रति अंश आय में 40% का परिवर्तन लाता है तो कम्पनी का वित्तीय लीवरेज क्या है ? यह भी बताइये कि परिवर्तनशील लागत में कितने प्रतिशत का परिवर्तन विद्यमान परिचालन में 160% की वृद्धि लायेगा ?
What is the financial leverage of the company if 5% change in sales will bring about 40% change in EPS ? What percentage increase in variable costs will result the incrcese of 160% in the existing operating leverage ?
Illustration 15. अनमोल लि0 का विक्य आगय 50 रुपये प्रति इकाई की दर से 5,00,000 रुपये और अंशदान 2,00,000 रुपयें है । संचालन के वर्तमान स्तर पर कम्पनी की परिचालन लीवरेज 2.5 है । कम्पनी के पास कोई पूर्वाधिकार अंश नहीं है । समता अंशों की संख्या 20,000 है । आयकर की दर 50% है और ऋण पूँजी पर ब्याज दर 10% प्रतिवर्ष है । यदि बिक्रि में 20% की कमी प्रति अंश आय को समाप्त कर देती हो तो ऋण पूँजी की रकम क्या होगी एवं 5 लाख रुपये की बिक्रि पर प्रति अंश आय का परिकलन भी कीजिए ।
The Sales revenue of Anmol LTD @ Rs 50 Per Unit is Rs 5,00,000 and the Contribution is Rs 2,00,000 At the Present Level of Operations OL of the Company is 2.5 The Company does not have any Preference shares . The number of equity shares is 20,000 Income Tax rate is 50% and the rate of Interest on debt capital is EPS. Also Calculate the EPs at Sales Of Rs 5 lakhs.
माना पूँजी ऋण x है अत : ऋण पूँजी पर ब्याज x का 10% अर्थात् 0.10* होगा । Let us assume debt capital as x ; therefore the interest of debt capital will be 10% of xie., 0. 20% decline in sales )
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